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बहुमुखी कृतित्व सैंकड़ों कीजे जतन पर पाप-कृति छुपती नहीं,
दाविए कितनी ही खांसी की ठसक रुकती नहीं।" लोभी मनुष्य की प्रकृति का वर्णन कवि ने इस प्रकार किया है"दान की भनक कान में पड़ते ही बिदक पड़े, मानो कोटि-कोटि विच्छू शीष पर विदक पड़े।
चमड़ी उतरवाले हँस-हँस काम पड़े,
दमड़ी न दाम नामे कभी दीन-हाथ पड़े।" 'धर्मवीर सुदर्शन' पर एक दृष्टि :
कवि श्री जी के जीवन गाथा काव्य-ग्रन्थों में 'धर्मवीर सुदर्शन' भी अपना अग्रगण्य स्थान रखता है। कवि जी ने चरित्र रूप में इस पुस्तक की रचना की है। इससे साधु तथा श्रावक-दोनों को अत्यधिक लाभ रहा है। प्रतुस्त पुस्तक के लिए सम्मति देते हुए श्रीमान् पंडित हरिदत्त जी शर्मा ने लिखा है
"श्रीयुत मान्य मुनिवर श्री अमरचन्द्र जी की अमर कृति 'धर्मवीर सुदर्शन' को पढ़ने में काव्य तथा रसास्वादन की लहरी सुधा-सागर से उठने वाली लहरियों से कम नहीं है। यह कहना कहीं भी अनुचित न होगा। मैंने इसे निष्पक्ष आलोचक की दृष्टि से देखा और पढ़ते समय अपनी सौहार्द्र भावना को एक तरफ रख कर इसके गुण-दोष विवेचन के लिए कसा तो यह अनुपम काव्य सुवर्ण उज्ज्वल ही नजर आया। यह मेरा हार्दिक भाव है । खड़ी-बोली की कविताओं का आज युग है। इस अमर-काव्य में भी खडी-बोली में कविता की गई है, साथ ही कोमल मति वाले धर्म के जिज्ञासुओं के लिए आत्म-भोजन की सामग्री भी दी गई है । यह पुस्तक धर्म के गहन ग्रन्थों की ग्रन्थियों से डरने वाले भावुक धर्मानुरागियों के लिए एक ग्रन्थ का काम करेगी । इस धर्म-ध्वंसक युद्ध में ऐसी ही शिक्षाप्रद पुस्तकों की आवश्यकता है, जिसकी पूर्ति में यह पुस्तक काव्य और धर्म दोनों ही दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखेगी यह मेरा विश्वास है ।"
'धर्मवीर सुदर्शन' द्वारा कविवर ने जैन इतिहास के उस महाचरित्र का चित्र खींचा है, जो अपने धर्म के बल पर मृत्यु का आलिंगन करते हुए भी सिंहासन प्राप्त कर गया था। जैन साहित्य के उस महा