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व्यक्तित्व और कृतित्व कवि ने आत्म-बल को भी बहुत महत्व प्रदान किया है"पातम वल सव वल का सरदार"
अथवा सुकृत्य करने के लिए कवि ने मानव को इस तरह समझाया है"क्या पड़ा गाफिल सुकृत कर जिन्दगी बन जाएगी,
क्या करेगा कूच की जब भेरी ही वज जाएगी।"
संसार तरने के लिए एक उपयुक्त अवसर का निर्देश देते हुए कवि कहता है
"तारना चाहे तो खुद को मौका है, अव तार ले,
इस असार शरीर से भी सार का भी सार ले।" मिथ्या जगत् को कवि ने एक दस दिन का मेला बताया है, जिसमें मानव आता है, दुःख सहन करता है, माया का चेला बन जाता है, पाप करता है और फिर इस नश्वर शरीर को त्याग देता है। उसकी आत्मा उसके कर्मों के साथ एक अपरिचित लोक को प्रस्थान करती है और परमात्मा की किसी सत्ता में लीन हो जाती है
"जगत में धरा क्या है दिन दस का मेला है, __ समझ ले यह सारा झूठा झमेला है।"
संसार की क्षण-भंगुरता पर भी कवि ने अपने भाव व्यक्त किए हैं तथा मनुष्य किस प्रकार इस क्षण-भंगुरता के सम्मुख नतमस्तक है, इसका भी उत्तम दिग्दर्शन किया है
"भीम जैसे बली फेंके नभ में गजेन्द्र वृन्द, पार्थ जैसे लक्षवेधी कीति जग जानी है। राम-कृष्ण जैसे नर-पुङ्गव जगत-पति, . रावण की दैत्यता भी किसी से न छानी है।
काल के आगे न चली कुछ भी बहाना वाजी, छिनक में हार हुए रह गई कहानी है। तेरे जैसे कीटाकार मूढ़ की विसात क्या है, करले सुकृत चार दिन की जिन्दगानी है।"