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व्यक्तित्व और कृतित्व
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अमर काव्य में मनस्तत्त्व :
सफल कवि की सफलता का रहस्य उसके दर्शन वर्णन ग्रथवा आध्यात्मिक भावों में छिपा रहता है । ग्रव्यात्मिक भावों का चित्रण ही कवि की आत्मा का प्रतिविम्व होता है । संसार की असारता का वर्णन ही कवि के काव्य का चरम लक्ष्य होता है । ग्रात्मा-परमात्मा को विशुद्धि के सफल चित्र ही दार्शनिक भाव हैं, और इन भावों का सफल चित्रण उसी कवि की सामर्थ्य है, जिसने इस असार संसार से मोह-बन्धन तोड़ दिया हो, जिसे संसार एक चित्रपट की भाँति लगता हो, जहाँ जीवन के चित्र अंकित होते हैं-धूमिल पड़ते हैं और समाप्त हो जाते हैं। जिसने इस संसार के परिवर्तन को समझ लिया है । जिसने जन-जीवन से कुछ ऊपर उठकर ग्रात्मा में झाँका है और उसे परमात्मा का ही एक स्वरूप पाया है । अमर कवि एक जैन मुनि हैं, जीवन-भर कण्टकमय पथ अपनाते हुए भी हँसते रहे हैं, जिनका जीवन ही सांसारिक मोह त्याग कर धर्म-प्रेम में लीन हो गया है । ऐसे जैन मुनि, जो संसार में रहते हुए भी उससे विरक्त हैं, जिन्होंने अपनी ग्रात्मा में झाँक कर जीवन का स्वरूप ही बदल डाला है - ऐसे त्यागी कवि की लेखनी दार्शनिक तत्त्व अथवा आध्यात्मिकता में कितनी रमी होगी - अकल्पित है । आाव्यात्मिकता का सच्चा भाव हमें इन्हीं कवियों की काव्य विभूतियों में मिल सकता है— इसे हम ग्रमर-काव्य का निचोड़ कह सकते हैं । क्योंकि अपने गीत कविवर ने उन्हीं साधकों को अर्पित कर दिए हैं, जो प्राध्यात्मिकता के साथ गुनगुना सकें ।
दर्शन के उदाहरण अमर-काव्य में भरे पड़े हैं । उन्हें गीतों के रूप में कवि ने विभिन्न भावनात्रों के साथ प्रस्तुत किया है । ग्रात्मा को जगाने में कवि तल्लीन ही रहा है । कवि ने संसार के समस्त पुरुषों को अन्तर-जागरण के लिए आह्वान किया है । इस संसार में ग्रात्मा मलिन होती है और इसको शुद्ध करने के लिए ग्रात्मा को जगाना पड़ता है । इस संसार से मोह छोड़ना पड़ता है और यह किसी विरले के लिए ही सम्भव है ।
एक हठीले मन के अन्तर्जागरण के लिए कवि यह लिखता है"हठीले भाई ! जाग जाग अन्तर में !"