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हमुखी कृतित्व
"यज्ञों में नित्य ही लाखों पशु मारे जाते थे, हा ! हा ! मनुष्य भी घाट असि के तारे जाते थे । जलते अनल कुण्डों में जिन्दा डाले जाते थे, नित्य शोणित के बहाएं नाले जाते थे झंडा अहिंसा धर्म का दिशा-दिशे में लहराया, श्री वीर ने आ हिन्द को सोते से जगाया ॥" कवि ने भगवान् महावीर को जिनेन्द्र, अर्थात्- जिन्होंने इन्द्रियों का दमन कर दिया हो, कहा है और उन्हें वन्दन करते हुए कवि ने लिखा है
" जय जिनेन्द्र विनम्र वन्दन पूर्णतया स्वीकार हो, दीन भक्तों के तुम्ही सर्वस्व सर्वाधार हो ।"
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कवि ने उस समय की भी कल्पना की है, यदि भगवान् महावीर हमारे बीच में न ग्राए होते
"अगर वीर स्वामी हमें न जगाता,
तो भारत में कैसे नयां रङ्ग आता ?",
कवि ने हम सब को महावीर स्वामी का सैनिक बताया है और भगवान् से प्रार्थना की है कि जव हमारे प्राण इस तन से निकलें, तब हम प्रसन्न हों तथा हमारे सम्मुख विश्व के ऊँचे आदर्श हों ।
कवि ने उन महावीर भगवान् की स्तुति की है, जिनके श्रागमन से विश्व की तस्वीर बदल गई है । उद्दण्डता के साम्राज्य में जन्म लेकर, घोर हिंसा-काल में अवतरित होकर भी भगवान् महावीर ने ये सारे दुष्कर्म दूर करा दिए थे । ये वही वीर जिनेश्वर हैं, जिन्होंने सोते हुए संसार को जगा दिया था । और इसीलिए कवि श्री जी ने लिखा है"महावीर जग स्वामी, तुमको लाखों प्रणाम !"
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और इसीलिए कवि वीर जिनेन्द्र का सच्चा भक्त बनना चाहता है । और एक जैन मुनि होने के नाते जगत् में वीर प्रभु के गीतों को गाने का भी सारा भार कवि ने अपने ही ऊपर ले लिया है ।
भगवान् महावीर की स्तुति में कवि श्री जी ने स्फुट गीतों की रचना की है, जिन्हें नित्य गुनगुनाने से मन कल्याणकारी कार्यों में लगता है ।