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बहुमुखी कृतित्व
१०६ "हरिचन्द्र भी बन गए भङ्गी के घर दास,
किन्तु न छोड़ा सत्य का अपना दृढ़ विश्वास ।" अमर कवि की काव्य-धारा में उस समय का वर्णन निश्चय ही बड़ा रोचक हुआ है, जबकि हरिश्चन्द्र पर दुःख पड़ते हैं। इस वर्णन में वड़ी स्वाभाविकता है, यदि सहृदय पाठक ध्यान देकर इन वर्णनों को पढ़े, तो स्वतः ही उनके अश्रु प्रवाहित हो जाएंगे । वास्तव में यह कवि की महान् सफलता है। कवि की सफलता तो इसी में निहित है कि वह मानव-मन में कहाँ तक गहरा उतरता है। अमर कवि का काव्य इस दृष्टि से खरा उतरा है।
__ कल का अयोध्या का राजा आज चांडाल है, किन्तु फिर भी वह अपना धर्म नहीं छोड़ता है ।
"पाठक यह है वही अयोध्या कौशल का अधिपति राजा, वजता था जिसके महलों पर नित्य मधुर मंगल बाजा । अाज वने चांडाल किस तरह करते मरघट रखवाली, मात्र सत्य के कारण भूपति ने यह विपदा है पाली।"
रोहित सर्प के काटने से मृत्यु को प्राप्त होता है और तारा उसके पार्थिव शरीर को लेकर श्मशान जाती है, जहाँ उसके पास कफन तक नहीं, और ऐसे समय में हरिश्चन्द्र का धैर्य तथा सत्य परीक्षा योग्य है। वह अपने पुत्र की मृत्यु पर भी कपन माँगता है और उसके विना उसके दाह की आज्ञा नहीं देता है।
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि कवि जी ने मानव के चित्रण में हरिश्चन्द्र का चरित्र हमारे सम्मुख रखकर उसकी जीवन-गाथा को अपने काव्य सरोवर में खिलाकर एक कुशल कवि तथा साहित्यकार होने का परिचय दिया है अथवा अपने प्रयास में कवि जी को पूर्ण सफलता प्राप्त हुई है। अमर काव्य में महावीर स्तुति :
अमर मुनि ने अपने काव्य में भगवान् महावीर को जगत-गुरु का सम्बोधन दिया है और इन्हीं विचारों में लिखी हुई उनकी पुस्तक "जगत्-गुरु महावीर" हमारे सम्मुख प्रस्तुत है । कवि जैनियों को "वीर स्वामी" भजने के लिए आह्वान करता है--