________________
कवि जी को काव्य-साधना
-
"कविता जीवन की व्याख्या है", आज इस सिद्धान्त पर कोई आपत्ति नहीं रह गई है। 'सुन्दर को असुन्दर से पृथक् करना, सौन्दर्य की झांकी लेना और उसका रस प्राप्त करना'-कविता के लिए 'वाल्टर पेटर' की समीक्षा भी इसी वात की पुष्टि करती है। जीवन का कोई तात्त्विक विरोध नहीं पैदा करती। रही सत् की खोज, सो सत् की प्रेरणा मनुष्य-मात्र के हृदय की स्वाभाविक वृत्ति है। मनुष्य-मात्र सदाचार, सद्धर्म, सुप्रवृत्ति आदि से तृप्त होता है और उसके विपरीत गुणों से उसे घृणा होती है। मनुष्य की मानसिक-तृषा शान्ति के लिए उसे सुप्रवृत्तियों की आवश्यकता अनिवार्य रूप से होती है। इस अवस्था में हम कविता को मानव अन्तःकरण का प्रतिविम्ब मानकर उसे 'सत्' से पृथक् नहीं मान सकते है और जो 'सत्' है, वही 'शिव' और 'सुन्दर' भी है।"
जीवन की व्याख्या द्वारा कविता का निर्माण वताकर कवि 'अमर' ने जीवन के प्रत्येक पहलू पर कविताओं की रचना की है। उनकी कविताओं में हमें एक जैन मुनि होने के नाते केवल धर्म-प्रेम ही नहीं मिलता, बल्कि एक महान् कवि की कल्पनाओं का द्योतक राष्ट्र-प्रेम, जाति-प्रेम तथा मानव-प्रेम, सभी कुछ मिल जाता है। उनकी कविताएँ जन-जागृति का सन्देश अपने कलेवर में समेटे हुए हैं। युग-युग से परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ी हुई भारतमाता को बन्धन मुक्त कराने के लिए कवि की आत्मा मानो चीत्कार कर उठी हो। भारत की पिछड़ी हुई दशा देखकर कवि का हृदय द्रवित हो उठा हो, भारत की