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व्यक्तित्व और कृतित्व "प-भाव कर दूर, हमेशा मिलजुल करके रहना"
"देवी वन के धरम को दिपाया करो" . .. कवि जी नारी को ढोंग आदि छोड़ देने के लिए उपदेश भी देते हैं
__ "अव तो सेंढ़ शीतलाओं का पिण्डा छोड़ो" कवि देवियों को जगा रहा है
"देवियो ! जागो उठो, अब छोड़ दो बालस्यता"
आधुनिक जैन-नारी को जगाने के लिए कवि ने जैन इतिहास की अमर नारियों का भी विवेचन किया है। उन महानारियों के वर्णन में हमें महादेवी सुमित्रा (रामायण के नायक राम की चाची), देवी सीता, कुन्ती, द्रौपदी, सिंहिका सत्यवती, रूपरानी पद्मावती, दुर्गा व लक्ष्मी आदि का वर्णन कवि अमर के काव्य में मिलता है। नारी-भावना को प्रदर्शित करने में कवि ने आधुनिक नारी की जागृत अवस्था का स्मरण नहीं रखा है। सूक्ष्म दृष्टि से विचार करने पर हम पाते भी यही हैं। कविता में कवि जी के नारी-सम्वन्धी विचार इस तरह हैं
"भारत की नारी एक दिन देवी कहाती थीं, संसार में सव ओर आदर-मान पाती थीं।"
"भारत में कैसी थीं एक दिन शीलवती कुल-नारियाँ,
धर्म-पथ पर जो हुई हँस-हंस के बलहारियाँ ।" " कवि अमर की नारी-भावना का उज्ज्वल स्वरूप हमें कवि जी के बृहत् जीवन-गाथा काव्य "सत्य हरिश्चन्द्र" में मिलता है। देवी तारा का उज्ज्वल चरित्र कवि ने लिखा है, और कवि सन्देह करता है नारी पर
"नारी क्या कर्तव्य-भ्रष्ट ही
करती जग में मानव को ! देश-जाति के जीवन में क्या,
पैदा . करती लाघव को ?" , कवि ने उस महानारी का चित्र अपने काव्य में खींचा है, जो