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व्यक्तित्व और कृतित्व वेड़ियों से तृषित मां को स्वतंत्र करने का बस एक ही तरीका है, वह है-अहिंसा।
"अहिंसा ही दिलाएगी हमें स्वाधीनता प्यारी"
भारतवर्ष की महान् संस्कृति ने आदि-काल से ही गऊ को मां माना है, किन्तु आधुनिक युग का मानव माँ का हत्यारा बनकर अघोर कर्म कर रहा है। नित्य ही कितनी ही गऊ माताओं की नृशंस हत्या की जा रही है - गोवध होते हुए भारत-उन्नति की कल्पना भी एक-दम व्यर्थ है, और इसके चालू रहते हुए मानव-मात्र का कल्याण नहीं है । कवि ने अपने गीतों में प्रस्तुत प्रश्न पर भी पूरा विचार किया है
"दूर जब तक हिन्द से होगी न गोवव की प्रथा,
उन्नति की तब तलक आशा न विल्कुल कीजिए।" अमर काव्य में समाज-सुधार की भावना : . महाकवि अमर एक सच्चे साधक, कंटकमय पथ पर चलने वाले जैन मुनि तथा एक महाकवि होने के साथ-साथ समाज-सुधार की भावनाएं भी अपने आप में संजोए हुए हैं। वे एक महान् समाजसुधारक हैं, भारत से पाखण्ड को दूर भगाने के लिए प्रयत्नशील हैं।
कवि ने अपने कविता कुज में वाल-विवाह का सर्वथा निषेध बतलाया है। वास्तव में वाल-विवाह की प्रथा आधुनिक युग का एक अभिशाप है। वाल-विधवाओं का करुण क्रन्दन आज मानव हृदय को इस प्रथा को समूल नष्ट कर देने के लिए विवश कर रहा है । कवि के विचार भी देखिए -
"धर्मवीरो वाल-वय में व्याह करना छोड़ दो।
इस विषैली कुप्रथा पर अव तो मरना छोड़ दो॥" साथ-साथ कवि वृद्धों को भी सम्बोधन करता है कि उन्हें भी विवाह नहीं करना चाहिए
___ "बुढ़ापा है, अव तो न शादी कराओ" कुछ और भी।
"वना के वह हाय बेटी-सी कन्या, . न भारत में अब विधवाएं बढ़ायो !"