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वहुमुखी कृतित्व "पाते दुख देतोल शरावी"
"बहुतेरी पीलई रे अव मत पीवो भंग"
"प्यारे वतन को चाय ने वरवाद कर दिया"
"तमाखू पीते हैं नादान"
"बुरा है यह हुक्का कभी भी मत पीना ॥"
अमर-काव्य की सर्वाधिक सफलता का दिग्दर्शन हमें उनके देशप्रेम अथवा देशी वस्तुओं के प्रेम में मिलता है। भारत की.महानता का वर्णन करके कवि ने अपने आप को धन्य कर लिया है। विचारों को अपने महाप्रांगण में समेटे हुए अमर मुनि ने वास्तव में एक महाकवि का प्रतिनिधित्व-सा कर दिया है ।। __ भारत की प्रधानता का वर्णन करते हुए कवि लिखता है"भारत है सरदार अहा, सव देशों का"
अथवा खादी की धवल चांदनी में कवि ने कुछ जोड़ देने का सफल प्रयास किया है
"अहा, बढ़ी चढ़ी सबसे खादी, सवसे आदी, सब से सादी, शुद्ध धवल है अानन्दकारी, जैसे चन्दा अरु चाँदी।" "सुखी हिन्द को यह वनाएगा खद्दर, गुलामी से सवको छुड़ाएगा खद्दर ।"
अथवा विदेशो माल को अर्थहीन करते हुए कवि लिखता है
"विदेशी माल से रे हो गया हिन्द वीरान"
कवि श्री जी ने अहिंसा के मार्ग को सर्वश्रेष्ठ बताते हुए गांधीवाद का तथा कांग्रेस के नम्न दल का पूर्ण समर्थन किया है। परतंत्रता की