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व्यक्तित्व और कृतित्व
: वैदिक परम्परा के दर्शनों में न्याय और वैशेषिक का, सांख्य
और योग का, मीमांसा और वेदान्त का अध्ययन किया है। परन्तु विशेष रूप से सांख्य, योग और वेदान्त प्रिय रहे हैं। . . बौद्ध परम्परा के दर्शन में कवि जी ने विनयपिटक, दीर्घनिकाय, मज्झिमनिकाय आदि पिटक-साहित्य और जातकों का अध्ययन किया है । बौद्ध दर्शन के न्यायविन्दु, प्रमाण वार्तिक, . धर्म-कोप आदि अन्य अनेक ग्रंन्यों का भी उन्होंने समय-समय पर चिन्तन, मनन और अध्ययन किया है। ' जैन परम्परा के दर्शन में कवि जी ने समस्त मूल अागमों का, उपलब्ध नियुक्तियों का, उपलव्ध भाप्यों का, उपलब्ध चूर्णियों का और संस्कृत टीकाओं का गम्भीरता पूर्वक अध्ययन किया है। वर्तमान में प्राप्त टव्वों का पर्यालोचन भी यथासमय एवं यथाप्रसंग किया है। ..
___ जैन-दर्शन के अाकर और मूर्धन्य ग्रन्यों में विशेषावश्यक भाष्य का, तत्त्वार्थ भाष्य का, बृहत्कल्प भाप्य का, व्यवहार भाष्य का और निशीथ भाष्य · का अध्ययन किया । सन्मतितर्क, प्रमाणमीमांसा, न्यायावतार स्यावाद मञ्जरी, रत्नाकरावतारिका, सर्वार्थ सिद्धि प्राप्त मीमांसा जैसे कठिनं ग्रन्थों का भी अंध्ययन किया। प्राचार्य कुन्द-कुन्द के अध्यात्म ग्रन्थ-समय-सार, प्रवचन-सार, पञ्चास्तिकाय और नियम-सार का अध्ययन किया है। गोमट-सार का भी अध्ययन किया हैं । आचार्य हरिभद्र के योग-विषयक ग्रन्थ-योगदृष्टि समुच्चय, योगविन्दु, योगशतक और षोडशक आदि का अध्ययन किया है। इसके अतिरिक्त दिगम्बर और श्वेताम्बरों के, श्वेताम्बर ( मूर्ति पूजक ).और स्थानकवासियों के और स्थानकवासी एवं तेरापन्थियों के चर्चा-साहित्य को भी यथाप्रसंग पंढ़ा है।
भाषा की दृष्टि से भी कवि जी का ज्ञान बहुत विशाल है। संस्कृत, प्राकृत और पाली जैसी प्राचीन भाषाओं का उन्होंने गहरा अध्ययन किया है. हिन्दी भाषा के वे प्रकाण्ड पण्डित हैं। गुजराती और उर्दू भाषा पर उनका खासा अच्छा अधिकार है। अंग्रेजी भाषां का अध्ययन भी उन्होंने प्रारम्भ किया था, परन्तु परिस्थितिवंश वहं आगे नहीं वढ़ सका।