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व्यक्तित्व और कृतित्व
अभिव्यक्ति से समाज को नया चिन्तन और नूतन मनन करने की पावन प्रेरणा दी। अपने पुरातन सांस्कृतिक भण्डार से कवि जी ने अपनी प्रतिभा की शान पर चढ़ाकर, चमका कर विचार-रत्न जन-चेतना को प्रस्तुत किए । अपने युग के प्रत्येक विचार को कवि जी ने अपनी बुद्धि की तुला पर तोला । इसी आधार पर उपाध्याय अमर मुनि जी अपने युग के युग-निर्माता हैं, और युग-द्रटा भी हैं। वे स्थानकवासी समाज के सन्त हैं, साधक हैं, विचारक हैं, लेखक हैं, कवि हैं, प्रवचनकार हैं, समालोचक हैं और साहित्यकार हैं। शब्दों की रचना भी उन्होंने की है और साथ ही समाज की रचना भी। कवि जी का व्यक्तित्व इन्द्रधनुप की तरह बहुरंगी रहा है, तभी तो उसमें से विचारों की वह अद्भुत चमक और भावनाओं की दिव्य दमक प्रकट हो सकी है, जिससे समस्त समाज चमत्कृत हो गया है ।
जैन-जगत् के चमकते-दमकते इस प्रभास्वर व्यक्तित्व के विय में मुझे केवल इतना भर कहना है, कि विचारों की इस जलती मशाल ने नव-जागरण तथा सुधारवादी इस अणु-युग में जिस विचार-स्रोत को समाज की शुष्क मरुभूमि की ओर उन्मुख किया, उसने समाज को नया जीवन दिया, और उसके साहित्य को नवयुग की नयी वाणी दी। इसी आधार पर कवि जी वर्तमान युग में युग-निर्माता हैं। वे समाज के प्रकाश-स्तम्भ हैं। वे समाज की भव्य-भावनाओं के मेरु-मणि हैं। उन्होंने अतीत से प्रेरणा लेकर, वर्तमान से उत्साह लेकर और भविष्य से प्राशा लेकर समाज को नया मार्ग दिया है। समाज के प्रत्येक क्षेत्र में कवि जी अपने ढंग के आप हैं।
कवि जी एक सिद्धहस्त लेखक हैं। उनके ग्रन्थों में जन-धर्म, जैन-संस्कृति और जैन-दर्शन के मौलिक विवेचन के साथ एक अनुभवशील प्राध्यात्मिकता के भी दर्शन होते हैं, जो अपने आप में मौलिक हैं। उनके विचार अत्यन्त स्पष्ट हैं। उनका शरीर भले ही अस्वस्थ है, पर उसमें शक्ति और स्फूर्ति अदम्य है । उनकी मुस्कान के भीतर उनकी प्रात्मा की विजय स्पष्ट है। वर्तमान समाज उन्हें सुनकर, पढ़कर और उनके दर्शन करके प्रानन्द और उल्लास का अनुभव करता है।
आज की भौतिक पीड़ाओं के लिए और आज की बौद्धिक कुण्ठानों के लिए उनका जीवन-साहित्य जीवन का एक सच्चा हल है।