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व्यक्तिन्त्र और कृतित्व मैं चाहता हूँ, कि श्वेताम्बर-परम्परा की तीनों शाखाओं के अधिकृत विद्वान आगमों पर विचार करने के लिए निकट भविष्य में एक 'पागम संगीति' अर्थात् 'पागम-वाचना' की संयोजना को मूर्त रूप देने का सफल प्रयत्ल करें। आगमोद्धार का सबसे पहला, साथ ही महत्वपूर्ण कदम है। आगम-वाचना के विना आगम प्रकाशन का कार्य स्थायी एवं प्रभावशाली नहीं होगा।
अस्तु, वीर जयन्ती के पुनीत पर्व पर तीनों सम्प्रदायों की अोर से इस दिशा में महत्वपूर्ण निर्णय होना चाहिए। तभी हमारा वीर जयन्ती मनाना सफल होगा । भगवान् महावीर के प्रति सच्ची श्रद्धाञ्जली यही है। क्या हम इस दिशा में कुछ सोचेंगे, विचारेंगे ?"
-- 'जैन-प्रकाश' में प्रकाशित सामाजिक समन्वय-जो व्यक्ति धर्म, दर्शन और साहित्य में समन्वयवादी रहा है, वह अपने व्यवहार में समन्वयवादी क्यों न होगा? कवि जी के व्यक्तित्व की यही एक अनुपम विशेषता है, कि जैसे उनके विचार, वैसी उनकी वाणी, और जैसी उनकी वाणी, वैसा उनका व्यवहार । जीवन की एक रूपता और स्पष्टता जैसी कवि जी में अभिव्यक्त हुई है, वैसी अन्यत्र दुर्लभ है। वे सोचने में, बोलने में और करने में सर्वत्र स्पष्ट हैं, निर्भय हैं, और निर्द्वन्द्व हैं । यही कारण है, कि सामाजिक समन्वय में भी आप प्रारम्भ से ही अग्रसर रहे हैं। समाजगत विषमता को आप कभी सहन नहीं करते। आपने अपने शक्ति-भर प्रयत्न से समाज में समन्वय भावना भरने और फैलाने का प्रयत्न किया है, और वर्तमान में भी कर रहे हैं।
मनुष्य-समाज की जातिगत उच्चता और नीचता में कवि जी को जरा भी विश्वास नहीं है। वे मनुष्य मात्र को एक मानते हैं। मनुप्य की मौलिक पवित्रता में भी वे विश्वास करते हैं। जन्म से न कोई ऊंचा है, और न कोई नीचा। मनुप्य अपने कर्म से ही उच्च एवं नीच वनता है । उनका विश्वास है, कि किसी भी जाति में जन्म क्यों न हुआ हो, अगर वातावरण और संस्कार अनुकूल मिल गया, तो मनुप्य प्रगति कर लेता है । जाति को कोई महत्व नहीं दिया जा सकता,