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सर्वतोमुखी व्यक्तित्व
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जैन समाज में ऐसी निष्पक्ष तथा उदार संस्था का भी प्रभाव - सा है, जो साम्प्रदायिकता से ऊपर उठकर विशुद्ध जैन-धर्म के सांस्कृतिक तथा मौलिक रूप की ओर निर्देश कर सके । फिर भी, ग्रव की वार ऐसी व्यवस्था हो सकेगी, जिसमें जैन संस्कृति के विशेषज्ञ पण्डितों से निकट सम्पर्क स्थापित किया जा सके ।"
उपाध्याय श्री जी ने विचार-विनिमय को चालू रखते हुए कहा कि- "भगवान् महावीर और भगवान् बुद्ध समस्त भारत की महत्तम विभूति हैं । विशेषतः ग्रापके बिहार के साथ तो उनका घनिष्ठतम सांस्कृतिक सम्बन्ध है । इन दोनों महापुरुषों के पुण्य जन्म-दिवस मनाने का भारत व्यापी नियम जनता के सामने आना चाहिए था । केन्द्र की ओर से इस दिशा की ओर क्या प्रयत्न हो रहा है ?"
राष्ट्रपति ने मीठी मुस्कान के साथ उत्तर दिया-- "बिहार प्रान्त ने तो इस विषय में काफी उदारता दिखायी है । इन दिनों में सार्वजनिक छुट्टियाँ भी वहाँ स्वीकृत हो चुकी हैं । किन्तु, केन्द्र की स्थिति इससे भिन्न है । हमारे यहाँ छुट्टियों की भरमार है, जिनमें वहुत-सी छुट्टियाँ तो ऐसी हैं, जो वास्तव में कोई अर्थ नहीं रखतीं । फिर भी वे चल रही हैं । उन्हें एकदम हटा देने में भी कठिनाइयाँ हैं । आपने जो कुछ कहा है, हम स्वयं इस सम्बन्ध में जागृत हैं । जव भी स्थिति सामने आएगी, इन महापुरुषों के जन्म-दिवस की छुट्टी के के सम्बन्ध में विशेषतः विचार किया जायगा ।"
गांधी जी के निधन के वाद जव सन्त विनोवा हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष के शमनार्थ शान्ति यात्रा कर रहे थे, तब कवि जी दिल्ली में थे । उस अवसर पर कवि जी और सन्त विनोबा दो बार मिले। एक बार तो विनोबा जी मिलने के लिए कवि जी के पास महावीर भवन में आए । लगभग एक घंटे तक दोनों में विभिन्न विषयों पर वार्तालाप होता रहा । विनोबा जी ने मुस्करा कर कहा
"आप मुझे मेरी शान्ति यात्रा में सहयोग दीजिए ।" कवि जी ने मुस्करा कर शान्त स्वर में कहा
" एक जैन सन्त के जीवन का लक्ष्य यही है, कि वह जीवन भर शान्ति यात्रा करता रहे। लोक-सुख और लोक-कल्याण के लिए ही