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व्यक्तिव और कृतित्व उसका जीवन है । वह आत्मशान्ति का उपलब्धि के साथ विश्व-शान्ति के प्रसार में भी अपना योगदान देता है। मैं भी यथाशक्ति उस योग दान में संलग्न हूँ।"
उसी वर्ष दिल्ली में फिर एक वार कवि जी और सन्त विनोवा मिले। दोनों का एक साथ प्रवचन भी हुआ था। कवि जी के जीवनस्पर्शी साहित्य को देखकर विनोबा जी ने सन्तोष व्यक्त किया। विनोवा जी का अध्ययन विशाल और गम्भीर है। साप्ताहिक हिन्दुस्तान में विनोवा जी का एक चित्र प्रकाशित हुआ है, जिसमें वे कवि श्री जी के श्रमण-सूत्र का अध्ययन कर रहे हैं ।
___भारत की स्वाधीनता से पूर्व कवि जी सरदार पटेल, भूलाभाई देसाई, महादेव देसाई, देवीदास भाई, आसफअली, कृपलानी जी, जमनालाल बजाज, धीरेन्द्र मजूमदार, अरविन्द वोस और काका कालेलकर आदि से भी मिले हैं।
कवि जी अपने स्वभाव के निराले व्यक्ति हैं। वे स्वयं अपनी ओर से जोड़-तोड़ लगाकर किसी नेता से मिलने की उत्कण्ठा नहीं रखते । परन्तु किसी प्रसंग-विशेष पर यदि किसी से मिलना हो, तो उन्हें किसी प्रकार का संकोच भी नहीं है। उनका व्यक्तित्व अपने ढंग का निराला है। जातिवाद के बन्धन से परे:
कवि जी के सम्बन्ध में कुछ आलोचक यह कहते हैं, कि कवि जी जात-पाँत को नहीं मानते । वे हरिजनों के घरों से भोजन-पानी ग्रहण कर लेते हैं। वे हरिजनों को प्रोत्साहन देते हैं और उनसे प्रेम करते हैं उनका पक्ष लेते हैं।
यह विल्कुल ठीक वात है। कवि जी हरिजनों से प्रेम करते हैंखूब प्रेम करते हैं । वे मानव-जाति में ऊँच-नीच की भेद-रेखा को कथमपि स्वीकार नहीं करते । व्यक्ति अपने कर्मो से ऊँचा और नीचा वनता है-जन्म-मात्र से नहीं । कवि जी हरिजनों का भोजन-पान ग्रहण अवश्य करते हैं, परन्तु प्रश्न है—किन का ? जिनका आचार पवित्र है, जिनके विचार शुद्ध हैं-वे जाति की दृष्टि से कोई भी हों, कवि श्री जी विना किसी संकोच के मुक्त-भाव से उनके घर से भोजन-पान ग्रहण कर सकते