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सर्वतोमुखी व्यक्तित्व नहीं हैं। आप अपनी श्रद्धा में दृढ़ हैं, किन्तु फिर भी आप उदार हैं, विशाल हैं, व्यापक हैं। किसी भी प्रकार का साम्प्रदायिक अभिनिवेश
आपके जीवन-व्यवहार में हटिगोचर नहीं होता है। प्रत्येक सम्प्रदाय के . व्यक्ति से वे बड़े प्रेम, सद्भाव और स्नेह के साथ मिलते हैं ।
__कवि जी जब पंजाव की विहार-यात्रा कर रहे थे, तब पंजाब में प्राचार्य श्री विजय वल्लभ सूरि जी भी थे। एक बार ऐसा प्रसंग आया कि कवि जी और सूरि जी दोनों का अम्बाला में मिलन हो गया। दोनों ने एक साथ, एक ही स्थान पर बड़े ही स्नेह एवं सद्भावपूर्ण वातावरण में वीर जयन्ती का उत्सव मनाया। पंजाब में इस मिलन का वड़ा अच्छा प्रभाव रहा। फिर उसी वर्ष पंजाव के रायकोट नगर में कवि जी और सरि जी का वर्षावास भी हया था। पंजाव के लिए यह एक आश्चर्य की बात थी, कि विरोधी मोर्चे के दो नेता एक साथ रहकर भी आपस में टकराए नहीं। विवेक, संघर्ष को सद्भाव में परिणत कर देता है।
आचार्य श्री इन्द्रविजय जी सूरि के साथ भी कवि जी का अत्यन्त घनिष्ट मित्र-भाव है। अनेक बार साथ में प्रवचन हुए हैं। सूरि जी इतिहास के विद्वान् हैं । इतिहास पर उन्होंने अनेक पुस्तकें भी. लिखी हैं।
आगमोद्धारक श्री पुण्यविजय जी के साथ में वर्षों से कवि जी का वहत निकट का परिचय । सादड़ी सम्मेलन के अवसर पर पुण्य विजय जी वहीं पर थे । कवि जी ने दो बार उनका सम्मेलन में भाषण कराया था। वे आगमों के गम्भीर विद्वान् हैं। उनके अनुभव बड़े ही महत्वपूर्ण हैं और मननीय हैं। पूण्यविजय जी की प्रेरणा से ही कवि जी ने सादड़ी सम्मेलन के वाद में पालनपुर का वर्षावास स्वीकार किया था। परन्तु किसी कारणवश पुण्यविजय जी पालनपुर न ठहर सके और वे अहमदाबाद चले गए। कवि जी के लिए उनका यह आग्रह था, कि पालनपुर वर्षावास के बाद में वे पाटण के भण्डार अवश्य ही देखें। इसके लिए अहमदावाद से पं० वेचरदास जी, जयभिक्खू आदि का एक शिष्टमंडल भी पालनपुर आया था। परन्तु सोजत सम्मेलन में जाने के कारण कवि जी पाटण नहीं जा सके । पुण्यविजय जी के साथ कवि जी की प्रगाढ मित्रता का अखण्ड प्रवाह अब भी चालू है।