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व्यक्तित्व और कृतित्व सोजत सम्मेलन में जाते हुए कवि जी को जालौर में पन्यास श्री कल्याण विजय जी मिले । कल्याण विजय जी इतिहास के गम्भीर विद्वान् हैं। आपके द्वारा लिखित 'श्रमण भगवान् महावीर' पुस्तक युग-युग तक जीवित रहेगी। आप तटस्थ दृष्टि के विद्वान् सन्त हैं। जालौर में आपने कवि जी को अपना प्राचीन भण्डार भी दिखाया था। निशीथ भाप्य और निशीथ चूणि भी सर्वप्रथम वहीं देखी थी। कल्याण विजय जी बहुत ही सहृदय और बहुत ही विद्वान सन्त हैं । कवि जी के साथ में आपका मधुर स्नेह सम्बन्ध है।
आचार्य विजयसमुद्र सूरि जी और पण्डित जनक विजय जी आगरा में पाए थे, तो वे भी कवि जी से मिलकर अत्यंत प्रसन्न हुए थे। सूरि जी महाराज हृदय के सरस, प्रकृति के कोमल और मन के सरल हैं । आगरा के वर्षावास में कवि जी के साथ में आपका मधुर एवं सरस स्नेह सम्बन्ध रहा। साथ में अनेक वार भाषण भी हुए थे। शहर से विहार करके सूरि जी लोहामंडी पधारे और कवि जी के पास स्थानक में ही ठहरे । साथ में व्याख्यान भी हुआ था। उस स्नेह मिलन का एक अद्भुत दृश्य था।
जनक विजय जी वय से भी और विचारों से भी तरुण. हैं । आप सुधारवादी भी हैं, और क्रान्तिकारी भी हैं। आप में जिज्ञासा वृत्ति का चरम विकास है । कवि जी के विचारों से और उनकी कृतियों से जनक विजय जी महाराज बहुत ही प्रभावित हैं। आगरा के वर्षावास में आप शहर से लोहामंडी आकर कवि जी से अनेक विषयों पर प्रश्न पूछ कर अपनी जिज्ञासा वृत्ति को परितृप्त करते थे । पण्डित जनक विजय जी एक साधक हैं परन्तु नव-युग के । नव-युग की नयी चेतना आपको बहुत प्रिय है । भाषण शैली आपकी बहुत ही प्रिय और रोचक है। अमर साहित्य के आप चिरकाल से अध्येता रहे हैं । आपका कहना है, कि कवि जी के विचार युगानुकूल हैं, और इस प्रकार के विचारों से ही समाज का उत्थान और विकास हो सकता है।
• जिस समय कवि जी निशीथ चूणि का सम्पादन कर रहे थे, उस समय तेरापंथ सम्प्रदाय के महान् प्राचार्य श्री तुलसी जी उत्तर-प्रदेश की विहार-यात्रा करने के लिए आगरा आए थे । कवि श्री जी का और