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व्यक्तित्व और कृतित्व
दो छोर हैं - एक व्यक्ति के अपने हाथ में, और दूसरा हम सब के हाथ में। संघ का काम संघ की मर्यादा में हो, और व्यक्ति का व्यक्ति की सीमा में हो । इस सीमा रेखा को यदि हम समझ लेंगे, तो हम देखेंगे कि हमने कितनी सुगमता से समस्याओं के महासागर को पार कर लिया है । समस्यायों से हमें भागना नहीं है, बल्कि अपने समवेत सहयोग से बदलना है । समस्याएं न कभी मिटी हैं, और न कभी मिटेंगी । हमारी शान इसी में है, कि हम अपनी समस्याओं पर संजीदगी के साथ विचार करें। समस्याएं उत्पन्न करने वाले भी हम हैं और उनका हल निकालने वाले भी हम ही हैं । बुद्धि के विचार से, हृदय की भावना से और मन की लगन से हम अपनी समस्याओं को क्यों नहीं सुलझा सकेंगे ?
स्नेह, सद्भावना और समादर -- ये प्रत्येक मानव के मन की भूख है। एक-दूसरे के गौरव की रक्षा करना, हम सव का कर्त्तव्य होना चाहिए। मैं तरुण श्रमणों से अनुरोध करता हूँ, कि वे बड़ों की भक्ति और विनय करना सीखें । गुरुजनों की आज्ञाओं व प्रदेशों का पालन करना--आप सब का सहज धर्म है । अनुशासन का परिपालन करने वाला ही भविष्य में श्रेष्ठ शासक बन सकने की क्षमता रख सकता है । आपके पास नये विचार हैं, 'नयी स्फुरणा है और नई उमंगें हैं । यह सव सत्य है । परन्तु ग्राप वड़ों का तिरस्कार करके अपने मनोरथों की पूर्ति का सब्ज वाग देखने की मनोवृति का परित्याग कर दें | वड़ों के अनुभव से लाभ उठाने के प्रयत्न में अपनी सारी शक्ति लगा दें, इसमें आपके गौरव की ग्रक्षुण्णता है । इसी धुरी पर घूम कर आप अपने भविष्य को शानदार वना सकेंगे । गुरुजनों को प्रसन्न करके, उनकी शिक्षाओं का समादर करके और उनसे ग्राशीर्वाद पाकर ग्राप फलेंगे, फुलेंगे तथा अपने जीवन उपवन को हरा-भरा रख सकेंगे, विनय धर्म की अवज्ञा आपकी जिन्दगी के लिए खतरा है ।
मैं अपने पूज्य और आदरणीय गुरुजनों से भी प्रार्थना करता हूँ, कि वे समय की प्रगति को पहचानें । छोटों से स्नेह और प्यार से व्यवहार करें। उनकी अभिलापात्रों और महत्त्वाकांक्षात्रों को सुन्दर मोड़ देने का प्रयत्न करें । स्नेह और सद्भाव के साथ लघु मुनियों