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सर्वतोमुखी व्यक्तित्व
" एक कला- प्रवीण चित्रकार था । उसने रंग-विरंगे रंगों से और सधे हाथ की कूची से बड़े परिश्रम से एक सुन्दर, प्रिय और दर्शनीय चित्र बनाया । प्रतियोगिता महोत्सव पर उसे सजा-धजा कर रखा । देखने वाले पारखियों ने उसकी मुक्त हृदय से प्रशंसा की, क्योंकि वह एक मूल्यवान् कृति थी । विधि की विडम्बना है कि एक रोज घरवालों में से ही किसी की नासमझी के कारण वह सुन्दर चित्र नष्ट हो गयाफट गया। कलाकार को कितना दारुण दुःख हुआ होगा ? इसकी कल्पना एक सर्जक ही कर सकता है, विध्वंसक नहीं कर सकता ।
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वर्षो की साधना से, बड़े ही परिश्रम से सादड़ी में संघटन का एक सुन्दर तथा आकर्षक चित्र बना। आस-पास की समाजों ने उसकी मुक्त-हृदय से प्रशंसा की । चिरनिद्रा से जागकर समाज नव-जागरण और नवोत्थान के पुण्य-प्रभात में सुनहली आभा से चमक उठा । इतिहास के पृष्ठों पर वह दिवस कितना सौभाग्यशाली था ? श्रमणजीवन की स्फुरणा और स्फूर्ति के वे मधुर क्षण आज भी हमारी स्मृति-भूमि में सुरक्षित हैं। समाज का वह जागरण, समाज की वह प्रगति और समाज का वह विकास - हम सब के लिए गौरव एवं गर्व की वस्तु था । उसकी रक्षा का दायित्व अव किस पर है ? हमें दृढ़ता के साथ कहना होगा, हम संव पर है । हम आगे बढ़े, पीछे न लौटें - यह इस्पाती संकल्प हम सव का होना चाहिए । यदि दुर्भाग्य से हम - लौट गए, तो हमें पूर्व स्थान से भी शताब्दियों पीछे लौटना पड़ेगा । अतः हम हरेक कोशिश से संघटन की रक्षा करें - यही हम सव का मूल ध्येय होना चाहिए ।
समस्याएँ व्यक्ति की भी होती हैं और समाज की भी । वस्तुतः विना समस्या का जीवन एक निष्प्राण, निस्तेज और निष्क्रिय जीवन होता है । समस्याएँ दूषण नहीं हैं, भूषण हैं । समस्याएं अभिशाप नहीं हैं, वरदान है । समस्याओं के विना न व्यक्ति आगे बढ़ सकता है और न समाज ही अपना विकास कर सकता है । समस्याओं से घबराकर हमें भागना नहीं, बल्कि मौलिक समाधान से उन्हें अपने अनुकूल बनाने की कला ही हमें सीख लेनी है । हमें जो सबसे पहले करना है, वह केवल इतना ही है, कि हम अपनी व्यक्तिगत समस्याओं को समाज और संघ पर न थोपें । दोनों को सुलझाने के