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व्यक्तित्व और कृतित्व तन पर मन का जय-घोप। वासना पर संयम का जयनाद ! और क्या है, वह ? विचार में आचार, और प्राचार में विचार ।
उपाध्याय अमर मुनि जी श्रमण-संस्कृति के पावन पवित्र अग्रदूत हैं। त्याग, तपस्या और वैराग्य के वे साकार रूप हैं। जीवन की विशुद्धि में उनका अगाध विश्वास है।
कविश्री जी क्या हैं ? ज्ञान और कृति के सुन्दर समन्वय । विचार में प्राचार, और प्राचार में विचार। उन्होंने निर्मल एवं अगाध ज्ञान पाया, पर उसका अहंकार नहीं किया। उन्होंने महान् त्याग किया, परन्तु त्याग करने का मोह उनके मन में नहीं है। उन्होंने तप किया, किन्तु उसका प्रचार नहीं किया। उन्होंने वैराग्य की उत्कट साधना की है, पर उसका प्रचार नहीं किया। अपने इन्हीं सद्गुणों के कारण आप श्रमण-संस्कृति के व्याख्याकार, उद्गाता सजग प्रहरी और सतेज नेता है। उनका सम्पूर्ण जीवन संघ-हित और संघ-विकास और संघ-शुद्धि के लिए ही है। वे संघ को विकास पथ पर अग्रसर होता देखना चाहते हैं। अतः संघ-हित के लिए और समाज के एकीकरण के लिए वे अपने स्वास्थ्य की भी चिन्ता नहीं करते।
उन्होंने समाज को नया विचार-दर्शन दिया। समाज के इतिहास को नया रास्ता बताया। उन्होंने अपने गुलावी वचपन में जान की साधना की, अपने यौवन के वसन्त में साहित्य की साधना की, प्रौढ़ अवस्था में विखरी समाज का एकीकरण किया और आज भी उनका पावन जीवन समाज को कुछ-न-कुछ दे ही रहा है। उनका जीवन वरदान रूप है। काश, उनके मंगलमय जीवन से हम मंगल, कल्याण और अमृत ग्रहण कर सकें। निश्चय ही वे अमृत-वी सन्त है, किन्तु उस अमृत को ग्रहण करने के लिए, धारण करने के लिए सत् पात्र भी तो कोई होना चाहिए !
याध्याय अमर मुनि जी हमारी समाज के उन महापुरुपों में से एक है, जिन्होंने समाज के भविष्य को वर्तमान में ही अपनी भविष्य वाणी से साकार किया है। उन्होंने अपने जीवन की साधना से अतीत के अनुभवों का, वर्तमान के परिवर्तनों का और भविष्य की सुनहरी आशाओं का साक्षात्कार किया है।