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व्यक्तित्व और कृतित्व
आपके जैन श्रमणों के ग्राचार-पक्ष के प्रशंसक हैं । आपकी त्याग-वृत्ति पर राष्ट्र के महानायक भी मुग्ध हैं । आपके ग्राचार की कठोरता की कहानी सुनकर साधारण शिक्षित प्रशिक्षित जन भी आश्चर्य-भाव से दाँतों तले अंगुली दवा लेते हैं । और तो क्या, अन्य भिक्षु-परम्परा के साधु भी आपके प्राचार पर कभी-कभी सहज भाव से सहसा प्रशंसा मुखरित हो उठते हैं ।
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आपकी प्रतिष्ठा, आपकी पवित्रता पर है । आपकी पवित्रता यदि सुरक्षित है, तो आपकी प्रतिष्ठा भी संर्वथा सुरक्षित है । कितना ही कोई क्यों न निन्दनीय प्रचार करे - किन्तु यदि आप पवित्र हैं, निर्मल हैं, तो आपका यश कदापि धूमिल नहीं हो सकता, आपका विनाश बाहर के किन्हीं हाथों में नहीं है । किसी भी व्यक्ति की, संस्था की या संघ की दुर्वलता ही उसके अपने विनाश का हेतु होती है । अस्तु, आपको आज और कुछ नहीं करना है । आपको एकमात्र करना है, अपने ग्राचार की पवित्रता के लिए सतत सात्विक प्रयत्न | ज्वलनशील अग्निशिखा को भला कौन स्पर्श कर सकता ? जलती हुई चिनगारियाँ अन्धकार के लिए चुनौती हैं । यदि चिनगारी बुझी, तो वस समझ लीजिए, अन्धकार के काले आवरण में सदा के लिए विलुप्त ।
आपके अन्तर्मन में वैराग्य की कभी ज्वाला जगी थी, ग्रापने सद्गुरु की वाणी का कभी महाघोप सुना था और आपके अन्तर्मन का कण-कण चिर निद्रा से जागा था । ग्राप मुनिवृत्ति के लिए मचल पड़े थे । आपके कदम तलवार की धार पर दौड़ने के लिए चंचल हो उठे थे । आप जब घर से निकले, तो सारा घर हाहाकार कर उठा था । आपके ग्रादरणीय माता-पिता, आपकी स्नेहशील धर्मपत्नी, ग्रापके प्रेम-वन्धन में बँधे हुए भाई वन्धु एवं पुत्र-पुत्रियाँ हजार-हजार ग्रासू वहाते रहे, ग्रापको भुजाएँ प्रसार कर रोकते रहे, किन्तु आप नहीं रुके । आपका मानस त्याग के प्रकाश से चमक रहा था । वैराग्य को हजार-हजार जल-धाराएं आपके अन्तर में विद्युत गति से बह रही थीं । आखिर आप साधु वन गए। भगवान् के सच्चे उत्तराविकारी वन गए । ग्रापकी जय-जयकार से धरती और आकाश गूँज उठे ।