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आओ संस्कृत सीखें
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(अ (शव्) विकरण प्रत्यय वित्-शित् होने से ङित् नही है, अत: गुण हुआ है।
नी + तुम् = नेतुम्
नी + तव्य = नेतव्य । (ये प्रत्यय कित् - ङित् नहीं होने से गुण हुआ है।)
नी + त्वा (क्त्वा) = नीत्वा ।
नी + त (क्त) = नीतः, नीतवान् । (ये प्रत्यय कित् होने से गुण नहीं हुआ है।) 7. कर्मणि तथा भावे प्रयोग में शित् प्रत्यय लगने पर धातु को य (क्य) प्रत्यय लगता है।
नी + य (क्य) + ते = नीयते, नीयमानः
भू + य (क्य) + ते = भूयते, भूयमानम् य प्रत्यय कित् होने से गुण नहीं हुआ है। 8. धातु को अन (अनट्) तथा त (क्त) प्रत्यय लगने से भाववाचक नपुंसक नाम बनता है।
गम् + अन = गमनम् पत् + अन = पतनम्
नृत् + त = नृत्तम् (नाच) 9. धातु के अंत में रहे संध्यक्षर का आ होता है।
त्रै + अन = त्राणम् ।
ध्यै + त्वा = ध्यात्वा, ध्यानम्, ध्यायते 10. शित् प्रत्ययों पर धातु के अंत्य संध्यक्षर का आ नहीं होता है।
त्रै + अ (शव) + ते = त्रायते
___ध्यै + अ (शव्) + ति = ध्यायति यहाँ संधि के नियमानुसार ऐ का आय् हुआ है। 11. परा और वि उपसर्ग के बाद जि धातु आत्मनेपदी होता है। उदा.
पराजयते, विजयते ।