Book Title: Swarna Sangraha
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। स्वर्ण संग्रह शुभ भावाँ गीत Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वर्ण संग्रह शुभ भावाँ एवं गीत वर्षी तप के उपलक्ष में सद् भाव भेंट श्रीमती मोहनी बाई डागा नं: ३, टेलर एस्टेट दूसरी गली कोडम्बाक्कम मद्रास - ६०००२४. १९९० - ९२ Page #3 --------------------------------------------------------------------------  Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रेरणा १००८ श्री रतन मुनिजी स्वर्गीय श्री केवलचन्दजी डागा श्रीमती मोहनो बाई डागा Page #5 --------------------------------------------------------------------------  Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ श्री शान्तिनाथाय नमः चोवीस तीर्थकरों के माता-पिताओं का नाम तर्ज : जेठ कूटे चूरमो देवरजी रांदे दाल । नाभिराज पिता ने, मोरा देवी जी माय, वनिता नगरी का वन्दं ऋषम जिनराज ॥१॥ जितशत्रु राजा पिता ने, विजया देवीजी माय, अयोध्या नगरी का वन्दं अजित जिनराज ॥२॥ जितारथ राजा पिता ने, सेना देवीजी माय, सावत्यी नगरी का वन्दं संभव जिनराज ॥३॥ संवर राजा पिता ने, सिद्धार्था देवीजी माय, वनिता नगरी का वन्दं, अभिनन्दन जिनराज ॥४॥ मेघरथ राजा पिता ने, मंगलादेवीजी मांय, कोशलपुर नगरी का वन्दं सुमति जिनराज ॥५॥ श्रीधर राजा पिता ने, सुषमा देवीजी माय, कोशम्बी नगरी का वन्दं पद्मप्रभु जिनराज ॥६॥ प्रथिष्ठ राजा पिता ने, पृथ्वी देवीजी माय, बणारसी नगरी का वन्दं सुपार्श्व जिनराज ॥७॥ मासेन राजा पिता ने, लक्ष्मा देवी जी माय, चन्द्रापुरी नगरी का वन्दं चन्द्रप्रभु जिनराज ॥८॥ सुग्रीव राजा पिता ने, रामादेवीजी माय, काकंदी नगरी Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का वन्दं सुविधि जिनराज ॥९॥ दृढरथ राजा पिता ने, नन्दा देवीजी मांय, भद्दिलपुर नगरी का वन्दं शीतल जिनराज ॥१०॥ विष्णु राजा पिता ने, विष्णु देवीजी माय, सिंहपुर नगरी का वन्दं श्रेयांस जिनराज ॥११॥ वसु राजा पिता ने, जया देवीजी माय, चंपापुर नगरी का वन्दं वासपूज्य जिनराज ॥१२॥ कृतवर्म राजा पिता ने श्यामा देवीजी माय, कम्पिल पुर नगरी का वन्दं विमल जिनराज ॥१३॥ सिंहसेन राजा पिता ने, सुयशा देवीजी मांय, अयोध्या नगरी का वन्, अनन्त जिनराय ॥१४॥ भान राजा पिता ने, भद्रा देवीजी माय, रत्नपुरी नगरी का वन्दं धर्म जिनराज ॥१५॥ विश्वसेन राजा पिता ने, अचला श्री देवीजी माय, हस्तिनापुर नगरी का दन्दु शान्ति जिनराज ॥१६॥ सूर राजा पिता ने, श्री देवी जी माय, गजपुर नगरी का वन्दं कुन्थु जिनराज ॥१७॥ सुदर्शन राजा पिता ने, देवीराणी जी माय, हस्तिनापुर नगरी का वन्दं अरह जिनराय ॥१८॥ कुंभ राजा पिता ने, प्रभावती देवीजी माय, मिथिला नगरी का बन्दु मल्लि जिनराज ॥१९॥ सुमित्र राजा पिता ने, पद्मावती जी माय, राजग्रही नगरी का वन्दुं, मुनिसुव्रत जिनराज ॥२०॥ विजय राजा पिता ने, विप्रादेवीजी माय, मथुरा नगरी का वन्दं नमि जिनराज ॥२१॥ समुद्र राजा पिता ने, Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेवादेवीजी माय, सोरियपुर नगरी का वन्दं, अरिष्टनेमी जिनराज ॥२२॥ अश्वसेन राजा पिता ने, वामादेवीजी माय, बणारसी नगरी का वन्दं पार्व जिनराज ॥२३॥ सिद्धारथ राजा पिता ने. त्रिशला देवीजी माय, कुंडलपुर नगरी का वन्दं, महावीर जिनराज ॥२४॥ केवलचन्दजी पिता ने. हुल ताबाई माय, भोपाल शहर का वन्दं, पूज्य अमोलक ऋषिजी महाराज ॥२५॥ चउदे स्वप्न (तर्ज : दस लक्षण साधु तणो, मारच्या श्री भगवान) दसमा स्वर्ग थकी चवीयाजी, चौवीसमा जिनराज । चउदे सपना देखियाजी, त्रिशला दे ज्यांरी मांय ॥ ___जिनंद माय, दीठाओ सपना सार ॥१॥ पहले गयवर देखियाजी, सुंडा--दण्ड, प्रचण्ड । दूजे ऋषभ देखियाजी, घोला धवरी सांडोजिनंद।।२।। तीजे सिंह सुलक्ष्णाजी, मुखK करे रे बगास । चौथे लक्ष्मी देवताजी, कर रह्या लील विलाल जि. ३॥ पंत वरण फलां तणीजी, मोटी देखी फूल माल । छठे चन्द्र उजासियाजी, अमिय झरे आकाश जि. ४।। दिनकर ऊग्यो तेजसूजी, किरणा झाक झमाल । फरकती देखी ध्वजाजी, ऊँची अति असराल जि.५।। Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुंभ कलश रत्ना जड़योजी, उदक भर्यो सुविशाल । कमल फूलां को ढाकनोजी, नवमो स्वपन रसाल।जि.६॥ पद्म सरोवर जल भरयो जी, कमल करी शोभाय । देव-देवी रंग में रमेजी, देख्या आवे दाय जि. ७॥ क्षीर समुद्र चारों दिशाजी, जेनो मीठो नीर । दूध जैसो पानी भरयो जी, तिन रोकोई न पार जि. ८॥ मोत्यां केरा झूमका जी, देख्या देव विमान । देव-देवी कौतुक करेजी, आवता आसमान ॥जि. ९॥ रत्नांरी राशि निर्मलीजी, देख्यो स्वपन उदार । स्वपनो देख्यो तेरमो जी, हियड़े हर्ष अपार ॥जि. १०॥ ज्वाला देखी दीपतीजी, अग्नि शिखा बहतेज । इतने जाग्या पद्मिनीजी, धरता स्वपना से हेत ॥जि. ११॥ गजगति चाल्या मलकताजी, आया राजाजी रेपास । भद्रासन आसन दियोजो, स्वामी पूछे हुल्लास जि. १२॥ कहो किन कारण आवियाजी, कहो थारा मननी बात। चवदा सपना देखियाजी, अर्थ कहो साक्षात ॥जि. १३।। स्वपना सुन राया हषियाजी, कीनो स्वपन विचार । तीर्थकर चक्रवर्ती होवसीजी,तीन लोक आधार जि.१४॥ प्रभाते पंडित तेड़ियाजी, करनो स्वपन विचार । तीर्थक र चक्रवर्तीहोवसीजी, तीन लोक आधार जि.१५॥ पंडित ने बहु धन दियोजी, वस्त्र ने फूल-माल । गर्भवास पूरा थया जद, जनम्या पुण्यवंतबाल ॥१६॥ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौसठ इन्द्र आवियाजी, छप्पन दिशा कुमार । असूचि कर्म निवारनेजी, गावे मंगलाचार ॥१७॥ प्रतिबिम्ब पास में धरियोजी, माता ने विश्वास । शकेन्द्र लीधा हाथ में जी, पंचरूप प्रकाश ॥जि. १८॥ मेरु शिखर न्हवरावियाजी, तेहनो बहु विस्तार । इन्द्रादिक सुर नाचियाजी, नाचे अप्सरा नार जि. १९।। अठाई महोत्सव सुर करेजी, द्वीप नन्दीश्वर जाय । गुण गावे प्रभुजी तणांजी, हिरड़े हर्ष न जाय ॥जि. २०॥ प्रभाते जो स्वप्नो भणेजी, भणता आनन्द थाय । रोग-शोक दूरा टलेजी, अशुभ कर्म सब जाय जि. २१॥ || हथणी ॥ (तर्ज-हथणी सिनगारो के देव पूतलियां) हथणी सिनगारो के देव विराजिया ॥टेर।। आदिनाथ करे रे नमस्कार, मोरादेवीजी मायडिया॥१॥ हथणी सिनगारो के देव विराजिया । शान्तिनाथजी करे रे नमस्कार, अचलादेवीजी मा. ॥२॥ हथणी सिनगारो के देव विराजिया । नेमीनाथजी करे रे नमस्कार, सेवादेवीजी मा. ॥२॥ हथणी सिनगारो के देव विराजिया। पार्श्वनाथ करे रे नमस्कार, वामादेवीजी मा. ॥४॥ 5 Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हथगी सिनगारो के देव विराजिया । महावीर करे रे नमस्कार, त्रिशलादेवीजी मा. ॥५॥ हथणी सिनगारो के देव विराजिया। गौतमस्वामीजी करे रे नमस्कार, पृथ्वीदेवीजी मा. ॥६॥ हथणी सिनगारो के देव विराजिया। छोटा-मोटा करे रे नमस्कार, आप-आपरी मा. ॥७॥ ॥ झालर । (तर्ज-झालर को झणको में सुन्योजी) झालर को झणको में सुन्योजी कांई, नगरी वनिता री पोल। वनिता में आदिनाथ जनमियोजी कांई, माता मरुदेवीजी रा नंद ॥१॥ झालर को झनको में सुन्योजी काई, नगरी हस्तिनापुर री पोल । हस्निनापुर में शान्तिनाथ जनमियोजी कांई, माता अचलादेवीजी रा नंद ॥२॥ झालर को झनको में सुन्योजी कांई, नगरी सोरियापुर री पोल । सोरियापुर में नेमीनाथ जनमियोजी कांई, माता शिवादेवीजी रा नंद ॥३॥ झालर को झनको में सुन्योजी कांई, नगरी बणारसी री पोल । बणारसी में पारनाथ जनमियोजी कांई, माता वामादेवीजी रा नन्द ॥४॥ झालर रो झणको में सुन्योजी कांई, नगरी कुण्डलपुर री पोल। कुण्डलपुर Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ में महावीर जनमियोजी काई, माता त्रिशलादेवीजी रा नन्द ॥५॥ झालर रो झनको में सुनयोजी कांई नगरी गोवर ग्राम री पोल । गोवर ग्राम में गौतम स्वामी जनमियोजी कांई, माता पृथ्वीदेवीजी रा नन्द ।।६।। झालर को झनको में सुन्योजी कांई, सिकन्द्राबाद री पोल । जटे तो जिनरा पुत्र-पुत्री जनमियाजी कांई, लेवोनी प्रभुजी रो नाम ॥७॥ । तारा ।। (त-माहरा बाला वाहन जोतो; माहरा बाला रे वाहन जोतो, प्रभातियो तारो ऊगियो। तारो ऊगियो वनितारी पोल, जठे आदिनाथ जनमिया।१। माहरा बाला रे वाहन जोतो, प्रभातियो तारो ऊगियो। तारो ऊगियो हस्तिनापुर री पोल,जठे शान्तिनाथ ज.॥२॥ माहरा बाला रे वाहन जोतो,प्रभातियो तारो अगियो । तारो ऊगियो सोरियापुर री पोल, जठे नेमीनाथ ज.॥३॥ माहरा बाला रे वाहन जोतो, प्रभातियो तारा ऊगियो । तारो अगियो बणारसी री पोल, जठे पार्श्वनाथ ज.॥४॥ माहरा बाला रे वाहन जोतो, प्रभातियो तारो ऊगियो । तारो ऊगियो कुंडलपुर री पोल,जठे महावीर स्वामी ज.॥ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माहरा बाला रे वाहन जोतो, प्रभातियो तारो ऊगियो । तारोऊगियो गोवर-ग्राम रीपोल,जठे गौतमस्वामीजी ज.। आदिनाथजी मोटा देव, जहाँ धर्म प्रकाशिया। शान्तिनाथजी मोटा देव, जहाँ शान्ति वरताविया । नेमिनाथजी मोटा देव, जहाँ पशुव छुड़ाविया । पार्श्वनाथजी मोटा देव, जहाँ कमठ हटाविया । महावीर स्वामीजी मोटा देव, जहाँ मेरु कॅपाया। गौतम स्वामीजी मोटा देव, जहाँ प्रशन पूछिया । ॥ दीपक ॥ (तर्ज-पोर पाछ लडी रात, उज्जले लक्ष्मी ) पहर पाछलड़ी रात, घर जोइये लक्ष्मी दीवलो । दिवलो थारोवनितापुरी मैं टांग, जठे आदिनाथ जनमिया आदिनाथजी मोठा देव, जो धर्म प्रकाशियाजी ॥१॥ दिवलो थारो हस्तिनापुर में टांग, जठे शांतिनाथजी ज. शान्तिनाथजी मोटा देव, जो शान्ति वरतावियाजी। दिवलो थारो सोरियापुर में टांग, जठे नेमिनाथजी ज. नेमिनाथजी मोटा देव, जो पशुव छुड़ावियाजी । दिवलो थारो बणारसी में टांग, जठे पार्श्वनाथजी जन. पार्श्वनाथजी मोटा देव, जो कमठ हरावियाजी । दिवलो थारो कुंडलपुर में टांग,जठे महावीर स्वामी ज. महावीर स्वामी मोटा देव, जो मेरु कंपायियाजी । Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिवलो थारो गोवर ग्राम में टांग, जठे गौतमस्वामीजी ज. गौतमम्वामीजी मोटा देव, जो परशन पूछियाजी । ॥ सूरज ॥ (तर्ज : इंगरिया री खिड़कियो राज) निषढ़ पर्वत रे ऊचां ओ रात सूरज भल ऊगिया, केवल पाया आदिनाथ देव, जिन धर्म प्रकाशिया, केवल पाया शान्तिनाथ देव, शान्ति वरताविया । केवल पाया नेमिनाथ देव, पशुव छुडाविया । केवल पाया पार्श्वनाथ देव, नाग-नागनी बचाविया । केवल पाया महावीर स्वामी देव, मेरु कंपाविया । केवल पाया गौतम स्वामी देव, परशन पूछिया। पोढ़या जागो वींद राजा ओ राज सूरज भल ऊगिया । थे तो लेवो अरिहंत रा नाम, सूरज भल ऊगिया । थे तो लेवो थारा माता-पिता रा नाम, सूरज भल ऊगिया। ॥ दांतुण ॥ (तर्ज : उठो नेमीश्वर राज करली, दांतणियां) उठो नेमीश्वर राज करलो दांतणियां, कांई जल भर जारी ओ राज दांतुण केला रो॥ उठो नेमीश्वर राज करलो कलेवो, पीणां तो रोटी ओ राज लचको लूणी को। Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उठो नेमीश्वर राज कर लो जिमणियां, लाडू तो पेड़ा ओ राज सरस जलेबियां ॥ उठो नेमीश्वर राज करलो मूचणियां, कांई लूंग सुपारी ओ राज डोडा एलची ॥ उठो नेमीश्वर राज करलो दोपहरी, कच्चा तो खोपरा ओ राज, गुंजा मिश्री का ।। उठो नेमीश्वर राज, करलो ब्यालूडो, कांई पतला तो फलकाओ राज, दालज उड़दां की। उठो नेमीश्वर राज, करलो पोढ़णियां, कांई हिंगल तो डोल्या ओ राज सेजां सावटो ।। उठो नेमीश्वर राज, करलो सिनगारो, कांई केसरिया जामो ओ राज कसुमल पेचो है । उठो नेमीश्वर राज, करलो तिलकिया, कांई काजल कुंकुंओ राज चोखा चांवलिया ।। उठो नेमीश्वर राज परण पधारजो, कांई परण पधारो ओ राज, उग्रसेनजी री पोल ॥ करुणा दिल आणी ओ राज, पाछा फिर गया, संजम लीना ओ राज, राजुल ने त्यागिया ॥ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। वीरा ॥ (तर्ज : में थाने पूछं माहरा वीरा विनजारा) मैं थाने पूर्वी माहरा वीराओ व्यापारी तो, वीरा ओ व्यापारी तो। किसा रे मारग होय आवियाजी ॥१॥ जहाज में नहीं आया ये बाई, एरोप्लेन में नहीं आया तो, रेल-मोटर मांही आवियाजी ॥२॥ चोटियो तो रुद्यो माहरो, वीरा ओव्यापारी तो २, ___सेरियां वीरा री मोटरांजी ॥३॥ पोलिया तो रुंदी साहरी भावज ओ चूडावाली २, कंवर भतीजा गोखामेजी ॥४। रसोइयां तो रुंदी माहरी बहन जूड़ावाली २, ___कंवर भाणेजा पालणेजी ॥५॥ उजला-उजला कपड़ा थे, पेहरो जामण जाया तो २, ___ लोग जाने ओ वीरा ऊजलोजी ॥६॥ डोरा ओ कंठी थे, पेहरो जामण जाया तो २, लोग जाने ओ वीरा लखपतिजी ॥७॥ लचपच लापसडी, ललोल जामण जायी तो २, लोग जाणे ओ वीरा रसभरयोजी ॥८॥ पान सुपारो थे, चाबो जामण जाया तो २, लोग जाने ओ वीरा रंग भरयोजी ॥९॥ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचरंग पेचो वीरा, सुसरा-सारे बंधाओ तो २, सासुजी रे साड़ी बणारसीजी ॥१०॥ पंचरंग पेचो वीरा, जेठ-सारे बंधाओ तो २, दिवर जिठानी रे पोमचाजी ॥११॥ पिलिया रे वेश वीरा, ननन्दल ने पहिरावो तो २, पंचरंग ननंदोयां रे मोलियाजी ॥१२॥ पां) ही कपड़ा वीरा, बहनोई सारे लावो तो २, बहिन रे बाली चूंदडीजी ॥१३॥ ॥ राजुल री चूंदड़ी ॥ (तर्ज : रंगाइजो नेमीटवर चून्दड़ीजी) ए कुण जी चुन्दड़ी मोलवेजी, ए कुण जी खर्चेला दाम, रंगाइजो नेमजी चूंदड़ीजी ॥१॥ समुद्र विजयजी चूंदड़ मोलवेजी, उग्रसेनजी खर्चेला दाम, रंगाइजो नेमजी चूंदडीजी ॥२॥ ओढ़ पहरनने राजुल नीसरीजी, गया है द्वारिका री पोल, रंगाइजो नेमजी चूंदडीजी ॥३॥ चार सज्जन मिल पूछियाजी, किण सज्जन री आ दीव के, रंगाइजो नेमजी चूंदड़ीजी॥४॥ उग्रसेन राजा री दीकरी जी, कंस राजा री बेन, रंगाइजो नेमजी चंदडीजी ॥५॥ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समुद्र विजयजी री कुल बहुजी, नेनडिया नेमनाथजी री नार, रंगाइजो नेमजी चुंदडीजी ॥६॥ राजुल संयम आदर्योजी, पहुँची है मुक्ति मझार, रंगाइजो नेमजी चूंदड़ीजी ॥७॥ इति ॥ ॥ राजुल की मेहन्दी ॥ (तर्ज-कठोडे मेंहदी नोपजे नमजी) कठो रे मेहन्दी नीपजे नेमजी कठो रे खरीदन वाला मेहंदी रंग राती ॥टेर।। मथुरा में मेहन्दी नीपजे नेसजी, सोरियापुर में खरीदन वाला नेमजी ॥१॥ उग्रसेनजी मेहन्दी मोलवे नेमजी, समुद्रविजयजी खर्चेला दाम नेमजी ॥२॥ रत्न कठोरयां में ओलसी नेमजी, भोजायां मांडेला हाथ राजुल रा सायबा नेमजी ॥३॥ मेहन्दी लगाय ने राजल नीसरया नेमजी, लीनो है संजम भार, सती मुगती सिधाविया नेमजी ॥४॥ || केसर।। (त-केस मंगाइदो मूंगा मोलरी) केसर मंगाइदो मूंगा मोलरी ॥टेर॥ कठोडे केसर नीपजे, कठोडे खरीदन वाला ए संगवीए, केसर मंगाइदो मंगा मोलरी॥१॥ वनिता में केसर नोपजे, 13 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हस्तिनापुर में खरीदन वाला ए संगवीए, केसर मंगाइदो मूंगा मोलरी ॥ २ ॥ एकुण जी केसर मोलवे, ए कुण जी खर्चेला दाम ए संगबीए, केसर मंगाइदो मूंगा मोलरी ||३|| नाभि राजाजी केसर मोलवे, विश्वसेन राजा खर्चेला दाम ए संगवीर, केसर मंगाइदो मूंगा मोलरी ||४|| एकुण जी केसर घोटसी, ए कुण जी रालेला दूध ए संगवीए, केसर मंगाइदो मूंगा मोलरी ||५|| समुद्रविजयजी केसर घोटसी, सेवादेवीजी रालेला दूध ए संगवीए. केसर मंगाइदो मूंगा मोलरी ॥६॥ कीनाजी रा करसां ओ घेरा छांटना, कोनाजी रे चूदड़ियां घेरो, रंग ए संगवीए, केसर मंगाइदो मंगा मोलरी ||७|| नेमीश्वरजी रे करसां ओ घेरा छांटना, राजुल रे चुन्दडियाँ घेरो, रंग ए संगवीए केसर मंगाइदो मूंगा मोलरी ||८|| आनन्द ऋषिजी मारासा रे करणां ओ घेरा छांटना, कल्याण ऋषिजी मारासा रे करसां ओ घेरा छांटना भानुऋषिजी मारासा रे चदरां घेरो रंग ए संगवीए, केसर मंगाइदो मूंगा मोलरी ॥९ । नन्दुकुँवरजी माराला रे करसां ओ घेरा छांटना, सायरकंवरजी मारासा रे चदरां घेरो रंग ए संगबीए, केसर मंगाइदो मूंगा मोलरी ॥ १० ॥ श्री संघरे करसां ओ घेरा छांटना, बानां रे चुन्दडियां घेरो रंग ए संगवी ए केसर मंगा इदो मूंगा मोलरी ॥ ११ ॥ इति ॥ 14 Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || बधाआ॥ (तर्ज-ऊंची ऊंची मेडिया शोभंती) ऊंची-ऊंची मेडिया शोभंती बधाओ जी, कांई दिवका रो उद्योत के राज बधाओ जी ॥१॥ हिंगल तो डोलयो डल रह्यो बधाओ जी, कांई कोमल बिछाई है, सेज के राज बधाओजी ॥२॥ जठे माता त्रिशला देवी पोढ़िया बधाओ जी, कांई सपना लिया दस चार के राज बधाओ जी ॥३॥ पहला गयधर देखिपा बधाओ जी, कांई दीठा है राज दरबार के राज बधाओ जी ।।४॥ दूजे ऋषभ सुलक्षणों बधाओ जी, कांई दीठा है गाय गवाल के राज बधाओजी ।।५।। तीजे सिंह सुलक्षणों बधाओ जी, काई वन मांये करे रे किलोल के राज बधाओजी ॥६॥ चौथे लक्ष्मी देवता बधाओ जी काई सदा रे सवागण नार के राज बधाओ जी ॥७॥ पांचमी माला मलकंती बधाओ जी, कांई पांच वरण री होय के राज बधाओ जी ८|| छठे चन्द्र सभी बधाओ जी ॥९॥ सातमों सूरज ऊगियो बधाओ जी, काई सहस्र किरणां को राय के राज वधाओ जी ॥१०॥ आठमी ध्वजा फरकंती बधाओ जी, कांई सदा रे धर्म की लेर के राज पधाओ जी ॥११॥ नवमों कलश 15 Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नां जड़ियो बधाओ जी, कांई भरयो सम्पूर्ण होय के राज बधाओ जी ||१२॥ पद्म सरोवर स्वामी दसमां बधाओ जी, कांई कमल भरयो तिन मांय के राज बधाओ जी ॥१३॥ क्षीर समुद्र ग्यारहमां बधाओ जी, काई क्षीर को जैसो नीर के राज बधाओ जी ॥१४॥ देव विमान बारहमां बधाओ जी, कांई रुणझण घंटा बाजे के राज बधाओ जी, रत्नारी राशि तेरमा बधाओ जी, कांई रत्नां सु भरया भंडार के राज बधाओ जी ॥१६।। अग्नि दीठा स्वामी दशमा बधाओ जी, काई झाल जपंति लेर के राज बधाओ जी ॥१७॥ चउदे तो रानी सपना देखिया बधाओ जी कांई गया राजाजी के पास के राज बधाओ जी ॥१८ । भद्रासन दियो बैठ नो बधाओ जी, कांई दीनों घणो सन्मान के राज बधाओ जी ।।१९।। तीर्थंकर, चक्रर्वात जन्मसी बधाओ जी, काई तीन भवन रा नाथ के राज बधाओजी ॥२०॥ चैत्र सुदी तेरस ने जनमिया बधाओ जी कांई छप्पन कुमारियां मंगल गाया के राज बधाओजी ।।२१॥ चौंसठ इन्द्र मिल आविया बधाओ जी, कांई मेरु शिखर नवाय के राज बधाओ जी ॥२२॥ महावीर नाम स्थापन कोनो बधाओ जी, कांई मेल्या माताजी रे पास के राज बधाओ जी ॥२३॥ प्रभुजी तो संयम आदरया बधाओ 16 Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जी, काई शासन रा सिरदार के राज बधाओजी ॥२४॥ गावतडा सुख ऊपजे बधाओ जी, कांई सुणियां रो परम कल्याण के राज बधाओ जी ।।२५॥ थे तो गावोनी मंगल चार के गज बधाओ जी कांई होसी जय-जय कार के राज बधाओ जी ॥२६॥ । पतामा । तर्ज : छोटी वय में दिक्षा धाग, हुआ पड़ित भारी) त्रिशलादेवीजी रो आयो रे बुलावो, जब हुई तैयारी, पतासा दे देना, दे देना ।। ।। ज्ञान भी देना, ध्यान भी देना, तपस्या देवो पचखा ॥ पतासा दे देना, दे देना ॥१॥ सूत्र भी लाई, चौपाधियाँ भी लाई, माला लायी दोय चार ॥२॥ काम छोड़ स्थानक में आई, सामयिक दोय चार ॥३॥ भायां भी आया, बायां भी आई, वन्दना करूं बारम्बार ।।४। मंगलीक देवो पचखान करावो, दर्शन करां बारम्बार ।।५।।इति।। || विनादिक गीत ॥ .. (तसं : कातो आयो मेढ़ना ने उत र यो ए रंग भगय । .. कोति पसरी देश में जी, पसरी परदेश मांय । केसरिया तिलका शान्ति लालजी, आवोनी घर मांय ॥१॥ जाऊं-जाऊं कांई करो थे, बैठोनी जाजम बिछाय । 17 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीमोनी चावल दाल, तपस्या वाला रा कोड़ करने रेवोनी दिन चार ॥ २ ॥ इति ॥ || गुल को गीत || तर्ज : गाढ़ा भर गुल लाविया, रस मेवारो) बाजारां में गुल आवियो रस मेवारो । जाय बाबूलालजी खरीदियो रस मेवारो ॥ १॥ व्याणसारो बुढ़ापो आवियो वाने गुलरो सोरो जिमावजो रस मेवारो ॥२॥ वानी बाटकी रामचन्दजी ले गया रस मेवारो ||३|| ये लारे पद्माबाई दौड़िया रस मेवारो ॥४॥ बादीजो रो सोरो मत खावजो रस मेवारो ॥५॥ दादोजी रो मत दुःखजो आखियां रस मेवारो ॥ ६ ॥ वानी बुढापो सेवा करो रस मेवारो ||७|| ये तो जाय ने सब पग पड्या रस मेवारो ॥ ८ ॥ इति || 18 ॥ चौवीसी ॥ ( तजं पहला वन्दुजी श्री ऋपम जिनेश ) पहला वन्दुजी श्री ऋषम जिनेश, दूजा अजितनाथ वंदस्यां । कर जोडीजी प्रभुजी ने लांगुजी पाय, स्वामी सुनोजी माहरी विनंती, धर्म सुनोजी माहरी विनन्ती ॥ नोट : इसी तरह चौबीस तीर्थकरों का नाम लेना चाहिये । Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || चौदह स्वप्न || ( पहली ढाल, तर्ज : शारद माता नम् सिरनामी) नमुंजी शारद नाम तुम्हारा, अक्षर ज्ञान देवो मुझ सारो || १ || चौदह सपना त्रिशलादेवी ने देख्या, इन सपना से करोनी विचारो ||२|| सोवन पलंग पोड्या पटराणी, सपना देख्या इण विध जानी ॥३॥ पहला गयवर दन्ताजी देख्या, दूजे ऋषभ घूघर, माल घंटा बाजन्ता ||४|| तीजे सिंह सुलक्षणोजी, वन खण्ड माय फिरे रे अकेलो ॥ ५ ॥ चौथे दीठा लक्ष्मी, ओस्वामी मलकंती माता री चाल सुहावे || ६ || पांचमो पंच वर्ण की माला, कमल फूलांरी मालजी दीठी ||७|| छट्ठे सपना चन्द्र जो देखी, अमिय झरंता दोठाओ स्वामी ||८|| सातमो सूरज देख्या ओ स्वामी, सहस्र किरण रा दिनराज विराजे ||९|| आठमो दोठा ध्वजा ओ स्वामी चारों दिशां में लेरांजी लेवे ॥ १० ॥ नवमां सपना दीठा ओ स्वामी, कुंभ कलश गल फूलांरी माला ॥११॥ पद्म सरोवर देख्या ओ स्वामी, कमल भरयो तिण मांय ॥ १२ ॥ क्षीर समुद्र देख्या ओ स्वामी, क्षीर को जैसो नीर ओ स्वामी ||१३|| देवविमानिक दोठा ओ स्वामी, रुणझुण घंटा बाजे ||१४|| रत्नांरी राशि दीठा ओ स्वामी, " 19 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सपना तेरहमो भलाय विराजे ॥१५॥ चौदह सपना अग्नि जो देखी, धूम्र रहित शोभे ओ स्वामी ॥१६॥ पोड्या राणी जाग्या ओ स्वामी, आया राजाजी रे पास ॥१७॥ भद्रासन बैठाय ओ स्वामी, सपना रो अर्थ बतायो ॥१८॥ || दुसरी ढाल । (तर्ज : गज सायना रानी थे दोडाजी) जठे राजाजी पंडित ने तेडावियागी, जठे पंडित आया ततकाल । बोले अमृत वाणियाजी ॥१॥ मलकता मंगल रानी थे दीठाजी, थारे होसी जी मंगला चार, बधाओ घर गावसीजी ॥२॥ गजवर सपना रानी थे दीठाजी, थारे पुत्र होसीजी गजवंत, गजवर ऊपर सोवसीजी ॥३॥ वृषभ सपना रानी थे दीठाजी, थारे पुत्र होसीजी रक्षावन्त, घणी रक्षा पालसीजी ॥४॥ सिंह सपना रानी थे दीठाजी, थारे पुत्र होसीजी बलवंत, मेरु कंपावसीजी ॥५।। लक्ष्मी रो सपना रानी थे दीठाजी, थारे अन्नधन भरया रे भण्डार । दूनी रिद्धी होवसीजी ॥६॥ पंच वर्ण री माला रानी थे दीठाजी, थारे पुत्र होसीजी शील सुजान, पांचों इन्द्रियां वश करसीजी ॥७॥ अमिय झरंता चन्द्र रानी थे दीठाजी, 20 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थारे पुत्र होसीजी अमीवंत, अंगूठे अमी झरसीजी ॥८॥ सातमो सूरज रानी थे दीठाजी, थारे पुत्र होसीजी तेजवंत घणो यश पावसीजी ॥९॥ ध्वजा रो सपना रानी थे दीठाजी, थारे पुत्र होसीजी ध्वजावंत, ध्वजा आगे चाल सीजी ।।१०।। कुंभ कलश रानी थे दीठाजी, थारे पुत्र होसीजी कुलवंत घणा कुल दीपावसीजी ॥११॥ पद्म सरोवर रानी थे दीठाजी, थारे पुत्र होसीजी पदवीवंत, तीर्थकर पदवी पावसीजी ॥१२॥ क्षीर समुद्र रानी थे दीठाजी, थारे पुत्र होसीजी क्षमावंत, देवां मांही सोवसीजी ॥१३॥ देवधिमाण रानी थे दीठाजी, थारे पुत्र होसीजी महावीर, चौंसठ इन्द्र सेवा करेजी ॥१४॥ रत्नांरी राशि रानी थे दीठाजी, थारे पुत्र होसीजी, रिद्धिवंत, द्विगुणी-तिगुणी सिग चढ़ेजी ॥१५॥ अग्नि शिखा रानी थे दीठाजी, थारे पुत्र होसीजी चारित्रवंत, चारित्र त पालसीजी॥१६॥ पंडित ने दक्षिणा दीनीजी, काई दोनो घणो सन्मान सोनो दीनो सोलमोजी ।।१७।। । तीनरी ढाल । (तर्ज : रानी ने पहलो डोहला उपन्योजी, रानी रा धूकतडा) त्रिशलादेवी जी बैठा महल में जी, वाने डोहलो उपन्यो मन माय, सिद्धारथ ने वीनवेजी ॥१। रानी ने Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहलो डोहलो उपन्योजी, इन्द्राणी रे कुंडल पेरन आस के, सिद्धारथ पेरावियाजी ॥२॥ रानी ने दूजो डोहलो उपन्योजी, ये तो दया-धर्म चित्त जाय के, खिम्या धर्म पालनोजी ॥३॥ रानी ने तोजो डोहलो उपन्योजी, दान देवन मन जाय के, अभयदान मोटकाजी ॥४॥ रानी ने चौथो डोहलो उपन्योजी, रानी ने शील पालन मन जाय के, व्रत पाले मोटको जी ॥५॥ रानी ने पांचमो डोहलो उपन्योजी, तपस्या करन मन जाय, नौकारसी तप करेजी ॥६॥ रानों ने छट्ठो डोहलो उपन्योजी, रानी रे भाव सामायिक मांय, पडिकमणो नित करेजी ॥७॥ रानी ने सातमो डोहलो उपन्योजी, रानी रो घेवरिया मन जाय के, चीनि खांडराजी ॥८॥ रानी ने आठमां डोहलो उपन्योजी, रानी ने लापसड़ी मन मांय, झरता घिरतराजी ॥९॥ रानी ने नवमो डोहलो उपन्योजी, रानी ने अजमो झूठ सन जाय के, लाडू गूंदराजी ॥१०॥ सवा नौ मास पूरा हुआजी, चैत्र सुदी तेरस दिन जान, तीर्थकर जगमियाजी ।।१२॥ जठे छप्पन कुमारियां मिल आवतीजी, माताजी ने करे नमस्कार, डर मती लावजोजी ॥१२॥ जठे सोनारी छुरिया नालो मोड़ियोजी, जठे रत्नां रा थाल बजायो, आनन्द बधावनांजी॥१३॥ गंगा जल नीर नवावियाजी, 22 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जठे पाठ पीताम्बर पलेटिया जी, महावीर जनमियाजी ॥१४॥ जठे धर्म पालणिये पोढावियाजी, जठे पोढाया माताजी रे पास, महावीर जनमियाजी ॥१५॥ जठे शकेन्द्र चली आवियाजी, वांका बालक ने लिया छे उठाय, मेरु शिखर पर जा धरयाजी ॥१६॥ जठे चौंसठ इन्द्र आवियाजी, जठे इन्द्राणियां गावे छे गीत, छप्पन कुमारियां आयी मिलीजी ॥१७॥ जठे रत्नां रा कलश जल भरयाजी, उठे बालक दिया नवाय, इन्द्र मन चिन्तवेजी ॥१८॥ मोटी तो धार जल तणीजी, ये तो देखी इन्द्र शंका लाय, बालक बे जावसीजी ॥२०॥ जठे प्रभुजी शंका निवारियाजी, मेरु पर्वत ने दियो रे धुजाय, इन्द्र मन हरषियाजी ॥२०॥ जठे चौंसठ इन्द्र पावें पड्याजी, स्वामी विनवां छे बे कर जोड़, गुनों माहको खमजोजी ॥२१॥ जठे महावीर नाम स्थापन करियोजी, लाया माताजी रे पास, पालनिये पोढावियाजी ॥२२॥ जठे दासी देवे बधावनाजी, सिद्धारथ राजा ने जाय, तीर्थकर जनमियाजी ॥२३॥ सोनारी झारी जल भरीजी, दासी ने दीनी नवाय, धन दीनो घणोजी ॥२४॥ जठे बंधिवान छुड़ावियाजी जठे दान दियो जलधार, तीर्थकर जनमियाजी ॥२५॥राजा दशोटन करावियाजी, कांई बुलाया सब परिवार, जीमन ने आवियाजी ॥२६॥ 23 Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीमने सगला राजी हुआजी, राजा दीना सब सिर पाव, गेहणा दीन। शोभता जी ॥२७॥ भद्रासन बैठावियाजी, ये तो मोतियां रा चौक पुरावियाजी, जठे कुंभ कलश ले आवियाजी ॥२८॥ गुण निष्पन्न नाम जो स्थापियाजी, ये तो नाम दियो वर्धमान, तीर्थकर जनमियाजी ॥२९॥ मैं तो अरिहंतरा गण गावस्यां जी, मैं तो गावस्यां चेत्र के मांही, तेरस ने वधावना जी ॥३०॥ ॥चौथी ढाल ॥ (तर्ज : गज सायना रानी थे दोठा जी) कुण्डलपुर नगर सुहावनोजी, वीर लीनो संजम भार, मिगसर वद ग्यारसजी ॥१॥ तपस्या तो कोनी आकरोजी, करम करया चकचर, परिसा घणा सह्याजी ॥२॥ वैशाख सुदी दशमी दिनेजी, पाया है केवल ज्ञान, चार तीर्थ स्थापियाजी ॥३॥ साधु-साध्वी-श्रावकश्राविका जी, धर्म रा दोय प्रकार, प्रभुजी प्रकाशिया जी ॥४॥ पावापुरी में पधारियाजी, कार्तिक वद अम्मावस्याजी जठे वीर पहुँच्या निर्वाण इन्द्र उत्सव नियोजी ॥५॥ जठे गोलम स्वामी केवल पामियाजी, जठे सुधर्मा पाट विराज, जम्बु परशन पूछियाजी॥६॥ जठे गावतला सुख उपजेजी, वारो सुनियांरो पातक जाय, आनन्द बधावनाजी इति! 24 Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ हथनी ।। (तर्ज-हथनी माहरो मलकती चाली तो) आ हथनी माहरी मलकंती चाली तो, समुद्र माहीं चाली तो, पांच कलश लेने नीरिजी ॥१॥ पहलो तो कलश वनिता में मेलयो तो, वनिता में मेलयो तो, वनिता में आदिनाथ जनमियोजी ॥ आदि-नाथ जनम्या बड़ो उपकार तो, भलो उपकार तो, ज्यां देवां धर्म प्रकाशियाजी ॥२॥ दूजो तो कलश हस्तिनापुर में मेलयो तो, हस्तिनापुर में मेलयो तो, हस्तिनापुर में शान्तिनाथ जनमियाजी, शान्तिनाथ जन्म्या बड़ो उपकार तो, भलो उपकार तो, ज्यां देवा शान्ति वरतावियाजी ॥२॥ तीजो तो कलश सोरियापुरमें मेलयो तो, सोरियापुर) मेलयो तो, सोरियापुर में नेमिनाथजी जनमियाजी, नेमिनाथ जनम्गा बड़ो उपकार तो, भलो उपकार तो, ज्यां देवा पाव छुडावियाजी ॥३॥ चौथो तो कलश बणारसी में मेलयो तो, बणारसी में मेलयो तो, बणारसी में पार्श्वनाथ जनमियोजी ॥ पार्श्वनाथ जनम्या बड़ो उपकार तो, भलो उपकार तो, ज्या देवा कमठ हठावियाजी ॥४॥ पांचमो तो कलश कुण्डलपुर में मेलयो तो, कुण्डलपुर में मेलयो तो, कुण्डलपुर में 25 Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीर स्वामी जनमियाजी, महावीर स्वामी जनम्या, बड़ो उपकार तो, भलो उपकार तो, ज्यां देवा मेरू कंपावियाजी ॥५॥ ॥ तारा ॥ (तर्ज- सहेलियाँ ए आंबो मोरियो ) सहेलियां ए तारो ऊगियो, ओ तो ऊगियो ओ वनिता रे गांय के, सहेलियां ए तारो ऊगियो ॥ १ ॥ जठे जनमिया ओ आदिनाथ देव के ॥ सहेलियां ||२|| जनम्या रा हर्ष बधावना, संयम रा लाड़ न कोड || ३ || सहेलियां ए तारो ऊगियो, ओ तो ऊगियो ओ हस्तिनापुर रे मांय के, सहेलियां ए तारो ऊगियो ||४|| जठे जनम्या ओ शान्तिनाथ देव के ॥ सहेलियां ||५|| जनम्या रा हर्ष बधावना, संयम श प्रभु लाड़ न कोड || ६ || सहेलियां ए तारो ऊगियो, ओ तो ऊगियो ओ शोरियापुरी रे मांय के, सहेलियां ए तारो ऊंगियो ||७|| जठे जनम्या ओ नेमीनाथ देव के ॥ सहेलियां ॥ ८ ॥ जनम्या रा हर्ष बधा वना, संयम रा प्रभु लाड न कोड || ९ || सहेलियां ए तारो ऊगियो, ओ तो ऊगियो ओ बणारसी रे मांय के, सहेलियां ए तारो ऊगियो ||१०|| जठे जनम्या ओ पार्श्व. नाथ देव के ॥ सहेलियां ॥ ११ ॥ जनम्या रा हर्ष बधावना, 26 Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयम रा लाड न कोड ॥१२॥ सहेलियां ए, तारो ऊगियो ओ तो ऊगियों ओ कुंडलपुर रे मांय के, सहेलियां ए तारो ऊगियो ॥१३॥ जठे जन्मया है महावीर देव के ॥ सहेलियां ॥१४॥ जनम्या रा हर्ष बधावना, संयम रा लाड़ न कोड़ ॥१५॥ सहेल्या ए तारो ऊगियो, ओ तो ऊगियो गोवर ग्राम के मांय के, सहेलियां ए तारो ऊगियो ।।१६॥ जठे जनम्या ओ गौतम स्वामी देव ।। सहेलियां ॥१७॥ जनम्या रा हर्ष बधावना, संयम रा लाड़ न कोड ॥१८॥ । दीपक ॥ (तर्ज :-कपूरां रा लियो पंथ सार, सभी सांझ दियो बलेजी ॥) वनिता रे मेलारे मांय, सभी सांज दियो बलेजी ।। मोरादेवीजी जायो है पूत, तीन लोक रा राजवी जी नाभि राजाजी पूछे है बात, किन वेला जनमियाजी ।। जनम्या है आधी जी रात के, मोच्छव मंडावियोजी । हस्तिनापुर रे मेलारे मांय, सभी सांज दियो बलेजी ।। अचलादेवीजी जायो है पूत, तीन लोक रा राजवीजी ॥ विश्वसेन पूछे है बात, किन वेला जनमियाजी ।। जनम्या है आधी जी रात के, मोच्छव मंडावियोजी ।। शोरियापुर के महल के मांय, सभी सांज दियो बलेजी। 27 Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेवादेवीजी जायो है पूत, तीन लोक रा राजवी जी ॥ समुद्रविजयजी पूछे है बात, किन वेला जनमियाजी ॥ जनम्या है आधी जी रात, मोच्छव मंडावियोजी ॥ बणारसी के महल के मांय, सभी सांज दियो बलेजी ॥ वामादेवीजी जायो है पूत, तीन लोक रा राजवी जी ॥ अश्वसेन पूछे है बात, किन वेला जनमियाजी || जनम्या है आधी जी रात, मोच्छव मंडावियोजी || कुण्डलपुर के महल के मांय, सभी सांज दियो बलेजी || त्रिशलादेवीजी जायो है पूल, तीन लोक रा राजवीजी || सिद्धारथ राजा पूछे है बात, किन वेला जनमियाजी ॥ जनम्या है आधी जी रात, मोच्छव मंडावियोजी || गोवर-ग्राम के महल के मांय, सभी सांज दियो बलेजी ॥ पृथ्वीदेवीजी जायो है पूत, अंगूठे अमी झरेजी ॥ वसुभूति पूछे है बात के, किन वेला जनमियाजी || जनम्या है आधी जी रात, मोच्छ मंडावियोजी । ॥ सूरज ॥ (तर्ज :-- आज शदर में रत्ना रो सूरज ऊगियों) आज वनिता में रत्नों से सूरज ऊगियो, अगो माता मोरादेवीजी रो कुल में तीर्थकर, रंग रो बधाओ माहरे नाभि राजाजी से आवियो, कीर्ति तो पसरी तीन 28 Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोक रे मायने ॥ चौंसठ इन्द्र करे रे बधावना || आज हस्तिनापुर में रत्नां रो सूरज ऊगियो, ऊगो माता अचलदेवजी रो कुल में तीर्थंकर, रंग रो बधाओ माहरे विश्वसेनजी रो आवियो, कीर्ति तो पसरी तीन लोक रे मांयने, चौंसठ इन्द्र करे रे बधावना ||२|| आज सोरियापुर में रत्नां रो सूरज ऊगियो, ऊगों माता सेवादेवीजी रो कुल में तीर्थकर, रंग रो बधाओ माहरे समुद्र विजयजी रो आवियो, कीर्ति तो पसरी तीन लोक रे मांयने, चौंसठ इन्द्रकरे रे बधावना || ३ || आज बनारस में रत्नां रो सूरज ऊगियो, ऊगो माता वामदेवीजी रो कुल में तीर्थंकर, रंग रो बधावों माहरे अश्वसेनजी रो आवियो, कीर्ति तो पसरी तीन लोक रे मायने, चौंसठ इन्द्र करे रे बधावना ॥४॥ आज कुण्डलपुर में रत्नां रो सूरज ऊगियो, ऊगो माता त्रिशालदेवीजी रो कुल में तीर्थंकर, रंग रो बधाओ माहरे सिद्धार्थजी रो आवियो, कीर्ति तो पसरी तीन लोक रे मायने चौंसठ इन्द्र करे रे बधावना || ५ || ॥ कलेवो ॥ ( तर्ज - उठो माहरा बालक बनड़ा, करोनी कलेवो) उठो माहरा नेमीश्वर बनड़ा, करोनी दांतनियां इसड़ा दांतनियां थारा, भावज करावे 29 Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावज करावे थारा, वीराजी हर्षावे इसड़ो कलेवो थारा, माताजी करावे माताजी करावे थारा, पिताजी हर्षावे फीणा तो रोटी ओ बनड़ा, लूणी रो लचको इसडा जिमणियां थारा, मामाजी करावे मामीजी करावे थारा, मामीजी हर्षावे खाजा तो लाडू बनडा, सरस जलेबी जीम चूटने बनडा, परण पधारो पशुवारी करुणा बनडा, पाछा जो फिरिया संजम लीनो बनडा, धर्म ने दिपाया गिरनारी ऊपर बनडा, मुगत सिधाया ॥ वीरा ॥ (तर्ज- भविका परम पजुशन आया) केवल वीरा मिलवाने वेगा आयजो, मोक्ष पियरियारी बात बतायजो ॥टेर। पियरिया में बेटी बाजं, सासरिया में गांजू । बहन ने वीरा आस तुम्हारी, मेल भूल मत जायजो ॥१॥ मात-पितारी पाय पडीजे, भावज ने नमन करोजे, भई रे भतीजा बहन भानजो, सहेलियां ने याद करीजे ॥२॥ वार तिवारी याद करीजो, चुन्दड़ी चीर रंगायजो, अल्लांजो-पल्ला जडिया 30 Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रे साकिया, अध बीच चाँद कोरायजो ॥३॥ दिल्ली शहर को पोत मंगायजो, नानी सी बंदन बंदायजो । बिन्दली रे वीरा लाल जडायजो, मुन्दड़ी में रतन जडायजो ॥४॥ साला बहनोई जयजिनेन्द्र बोलीजें, आतम कारज सारीजे कहे हीरालालजी सुन बहन सुमति, श्रीमुख गुण गायजो ॥५॥ इति ॥ ॥ मेहन्दी ॥ (तर्ज :-सूती ने स ना आयो माहरी सैयां ए) सूती ने सपना आयो माहरी सैयां ए, जागती तो विनीता में जाती माहरी सैयां ए, वनिता में आदिनाथ विराज्या माहरी सैयां ए, आदिनाथ रे पिछवाडे वाडी माहरी सैयां ए, वाडी में केसर बवाऊं माहरी सैयां ए, वाडी में मेहन्दी बवाऊं माहरी संयां ए, मोरादेवीजी रे हाथ मंडावो माहरी सैयां ए, आदिनाथजी रे तिलक कढावो माहरी सैयां ए। सती ने सपना आयो माहरी सैयां ए, जागती तो हस्तिनापुर में जाती माहरी सैयां ए, हस्तिनापुर में शान्तिनाथ विराज्या माहरी सैयां ए, शान्तिनाथ जी रे पिछवाडे वाड़ी माहरी सैयां ए, वाडी में केसर बवाऊं 31 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माहरी सैयां ए, अचलादेवीजी रो हाथ मंडावो माहरी सैयां ए, शान्तिनाथजी रे तिलक कढ़ावो माहरी सैयां ए। सूती ने सपना आयो माहरी सैयां ए, जागती तो सोरियापुरी में जाती माहरी सैयां ए, सोरियापुर में नेमीनाथ विराज्या माहरी सैयां ए, नेमीनाथ जी रे पिछवाडे वाड़ी माहरी सैयां ए, वाडी में केसर बवाऊं माहरी सैयां ए, सेवादेवीजी रे हाथ मंडावो माहरी सैयां ए नेमीनाथजी रे तिलक कढावो माहरी सैयां ए। सूती ने सपना आयो माहरी सैयां ए, जागती तो बणारसी में जाती माहरी सैयां ए, बणारसी में पार्श्वनाथ विराज्या माहरी सैयां ए, पार्श्वनाथजी रे पिछवाडे वाडी माहरी सैयां ए, वाडी में केसर बवाऊं माहरी सैयां ए, वामादेवीजी रे हाथ मंडावो माहरी सैयां ए, पार्श्वनाथजी रे तिलक कढावो माहरी सैयां ए।... सूती ने सपना आयो माहरी सैयां ए, जागती तो कुण्डलपुर में जाती माहरी सैयां ए, कुण्डलपुर में महावीर स्वामी विराज्या माहरों सैयां ए, Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीर स्वामी रे पिछवाडे वाडी माहरी सैयां ए वाडी में केसर बवाऊँ माहरी सैयां ए, त्रिशलादेवी जी रो हाथ मंडावो माहरी सैयां ए, महावीर स्वामीजी रे तिलक कढ़ावो माहरी सैयां ए। सूती ने सपना आयो माहरी सैयां ए, जागती तो गोवर-ग्राम में जाती माहरी सैयां ए, गोवर ग्राम में गौतम स्वामी विराज्या माहरी सैयां ए वाडी में केसर बवाऊँ माहरी सैयां ए, पृथ्वीदेवीजी रा हाथ मंडावो माहरी सैयां ए, गौतम स्वामीजी रे तिलक कढ़ावो माहरी सैयां ए। ॥ बधावी ॥ (वर्ग :-माभि राजाजी चौंटे चाल्या, चूंदड़ी चार मोलाय ।) वनिता नगरी में उच्छव होवे, नाभि राजा रा राज में। माता मोरादेवीजी जायो है पूत, बघावो राजा नाभि के घरे ॥१॥ नाभि राजाजी चौंटे चाल्या, चन्दडियाँ चार मोलाया, सजनी राती, पीली, हरी, कसुम्बा, चार, सगला रे मन भावती ॥२॥ नाभि राजाजी चौंटे चाल्या, चुड़ला चार मोलाया सजनी दान्त्या, लाख्या, राता, पीला चार, सगला रे मन भावता ॥३॥ नाभि राजाजी चौटे चाल्या, छाबां चार Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोलाया सजनी लाडु, पेडा, फिणिया. बर्फी, चार, सगला रे मन भावता ॥४॥ पेरया ओड़या भोजन कोना, अबे मने घर पुगावो चिरंजीवी ओ माता मीरादेवीजी थारा पूत, बधावो माहरे आवियो ॥५॥ ॥चौवीसी । (तर्ज :-शीतल जिनवर करू प्रणाम ।। ) नाभि राजा मोरादेवी नार, वनिता नगरी में लियो अवतार, धन-धन ओ मोरादेवी मांय, पहला श्री ऋषभनाथ स्वामी लियो अवतार ॥१॥ जितशत्र राजा विजयादेवी नार, अयोध्या नगरी में लियो अवतार, धन-धन ओ विजयादेवी मांय, दूजा श्री अजितनाथ स्वामी लियो अवतार ॥२॥ जितारथ राजा सेनादेवी नार, सावत्थी नगरी में लियो अवतार, धन-धन ओ सेनादेवी मांय, तीजा श्रीसंभव स्वामी लियो अवतार ॥३॥ संवर राजा सिद्धार्था देवी नार, वनिता नगरों में लियो अवतार, धन-धन ओ सिद्धार्थादेवी मांध, चौथा श्री अभिनन्दन स्वामी लियो. अवतार ॥४॥ मेघरथ राजा सुमंगलादेवी नार, कौशलपुरी में लियो अवतार, धनधन ओ सुमंगलादेवी मांय, पांचमा श्री सुमतिनाथ स्वामी लियो अवतार ॥५॥ श्रीधर राजा सुषमादेवी नार, 34 Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोशम्बी नगरी में लियो अवतार, धन-धन ओ सुषमादेवी मांय, छट्ठा श्री पद्मप्रभु स्वामी लियो अवतार || ६ || प्रतिष्टसेन राजा पृथ्वीराज नार, बणारसी नगरी में लियो अवतार, धन-धन ओ पृथ्वीदेवी मांय, सातमां श्री सुपार्श्वनाथ स्वामी लियो अवतार ॥७॥ मासेन राजा लक्ष्मादेवी नार, चन्द्रपुरी नगरी में लियो अवतार धन-धन ओ लक्ष्मादेवी मांय, आठमा श्री चन्दाप्रभु स्वामी लियो अवतार ||८|| सुग्रीव राजा रामादेवी नार, काकंदी नगरी में लियो अवतार, धन-धन ओ रामादेवी मांय, नवमा श्री सुदिविताय स्वामी लियो अवतार ॥ ९ ॥ दृढ़रथ राजा नन्दादेवी नार, भद्दिलपुर नगरी में लियो अवतार, धन-धन ओ नन्दादेवी मांघ, दसमा श्री शीतलनाथ स्वामी लियो अवतार ॥१०॥ विष्णुसेन राजा विष्णुदेवी नार, सिंहपर नगरी में लियो अवतार, धन-धन ओ विष्णुदेवी नांय, ग्यारहमा श्री श्रेयांसनाथ स्वामी लियो अवतार ॥। ११॥ वास पूज्य राजा जयादेवी नार, चंपा नगरी में लियो अवतार, धन-धन ओ जयादेवी मांय, बारहमां श्री वास पूज्य स्वामी लियो अवतार ॥१२॥ कृतभानु राजा श्यामादेवी नार कंपिलपुर में लियो अवतार, धन-धन ओ श्यामादेवी मांय, तेरहमां श्री विमलनाथ स्वामी लियो अवतार | १३ || 35 Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिंहसेन राजा सुयशादेवी नार, अयोध्या नगरी में लियो अवतार, धन-धन ओ सुयशा देवी मांय, चौदमा श्री अनन्तनाथ स्वामी लियो अवतार ॥१४॥ भानुराजा भद्रादेवी नार, रत्नपुरी नगरी में लियो अवतार, धनधन ओ भद्रादेवी मांय, पन्द्रहमा श्री धर्मनाथ स्वामी लियो अवतार ॥१५॥ विश्वसेन राजा अचलादेवी नार, हस्तिनापुर नगरी में लियो अवतार । धन-धन ओ अचलादेवी मांय, सोलमा श्री शान्तिनाथ स्वामी लियो अवतार ॥१६॥ सूर राजा श्रीदेवी नार, गजपुर नगरी में लियो अवतार । धन-धन ओ श्रीदेवी मांय, सत्रहमा श्री कुंथुनाथ स्वामी लियो अवतार ॥१७॥ सुदर्शन राजा देवी रानी नार, गजपुर नगरी में लियो अवतार, धन-धन ओ देवी रानी मांय, अठारहमा श्री अरहनाथ स्वामी लियो अवतार ॥१८॥ कुंभ राजा प्रभावती नार, मिथिलापुर नगरी में लियो अवतार । धन-धन ओ प्रभावती माय, उन्नीसमा श्री मल्लिनाथ स्वामी लियो अवतार ॥१९॥ सुमित्र राजा पद्मावती नार, राजग्रही नगरी में लियो अवतार । धन-धन ओ पद्मावती मांय, बीसमा श्री मुनिवत स्वामीजी लियो अवतार ॥२०॥ विजयसेन राजा विप्रादेवी नार, मथुरा नगरी में लियो अवतार, धन-धन ओ विप्रादेवी मांय, इक्कीसमा 36 Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नेमिनाथजी स्वामी लियो अवतार ॥२१॥ समुद्रविजयजी राजा सेवादेवीजी मांय, शोरियापुर नगरी में लियो अवतार, धन-धन ओ सेवादेवीजी मांय, बाईसमा श्री अरिष्टनेमीजी लियो अवतार ॥२२॥ अश्वसेन राजा वामादेवी नार, बणारसी नगरी में लियो अवतार, धन-धन ओ वामादेवी मांय, तेईसमा श्री पार्श्वनाथ स्वामीजी लियो अवतार ||२३|| सिद्धारथ राजा त्रिशलादेवी नार, कुण्डलपुर नगरी में लियो अवतार । धन-धन ओ त्रिशला देवीजी मांग, चौवीसमा श्री महावीर स्वामी लियो अवतार ||२४|| इति || || चौदह सपना || ( तचं - गुणभर ओरी ने पोढिया है गोरी तो ) गुणभर ओरी ने पोढ़िया है गोरी तो, चौदह ओ सपना रानी रतेमी || १ || पेले ओ सपना में गयवर दीठा तो, दूजे ओ ऋषभ सुलक्षणोजी ॥ २॥ तीजे ओ सपना में सिंह जो दीठा तो, चौथे ओ लक्ष्मी देवताजी पांचमी पांच वरणांरी ओ माला तो, छट्ठे ओ चांद अमी झरेजी ||३|| सातमा सूरज, आठमा ध्वजा तो, नवमो कलश रत्नां जडियोजी । पद्म सरोवर स्वामी दसमा ओ दीठा तो, क्षीर समुद्र स्वामी ग्यारहमाजी ॥४॥ 37 Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देव विमानीक स्वामी बारहमा दौठा तो, • रुण-जुण घंटा मादल बाजियाजी ॥५॥ रत्नारी राशि स्वामी तेरहमा दीठा तो, अग्नि दीठा ओ स्वामी चौदहमाजी ॥६॥ चौदह ओ सपना तो दीठा है रानी तो, रानी ओ राज जगावियाजी ॥७॥ जागो-जागो ओ माहरा सिद्धारथ राजा तो, इन सपना रो स्वामी फल किसोजी ॥८॥ इन ने सपना रो रानी फल ऐसोजी, तीर्थंकर-चक्रवती आपरे होसी तो, कुल माहे कलश चढ़ावसोजी ॥९॥ चैत्र सुदी तेरस ने तीर्थकर जनमिया तो, छप्पन कुमारियां मिल आवियाजी ॥१०॥ सोनारी छुरिया तो नालो पर नाल्योतो, रत्नां रा थाल बजावियाजी ॥११॥ गंगा जल नीर नवायने लीधा तो, वस्त्र पीताम्बर पलेटियाजी ॥१२॥ स्नान कराय ने हाथ माहें लीधा तो, माताजी रे पास पोदावियाजी ।। धर्म पालणिये पोढावियाजी ॥१३॥ 38 Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अगर चन्दन सुं राजा गार गलावो तो, मोतीडासुं चोक पुरावियोजी ॥१४॥ चारों ही दिशा में राजा तणीएबंधावो तो, ऊपर रालो बाला चून्दडीजी ॥ १५ ॥ हाथां रे पां रे राणी रे मेहन्दी दिरावो तो, चूडले ओ चोल मजीठजी ॥१६॥ रतन जड़तरो राजा बाजोटियो ढलावो तो, कुंभ कलश आगे धरियोजी ॥१७॥ अणियो तो गुणियो राजा पंडित बुलावो तो, नाम दिरावो वर्धमान रो जो ॥१८॥ केसर कुंकरा रानी रे तिलक कडावो तो, नेणा ओ काजल गुलरह्योजी ॥१९॥ ओढ़ पहरने रानी बाजोटिये विराजिया तो, पूत तीर्थकर रानी खोले लिया जी ॥ मनरा मनोरप्र रानी पूरियाजी ॥२०॥ सिद्धारथ राजा तो दशोटन कीधा तो ॥ frefer है न्याती गोत्री, परिवारनेजी ॥ २१ ॥ खाजा ने लाडू तो सरस जलेबी तो, घेवरिया छंटाया चीनी खांडसारी ॥२२॥ सिद्धारथ राजा तो मूछणियां दिराया तो, लूंग सुपारी ओ डोडा एकचीजों ॥२३॥ 39 Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धारथ राजा तो चलये, करायो तो, सोना री झारी ओ वारां हाथ में जी ॥२४॥ सिद्धारथ राजा तो दान दिरायो तो, सोना री मेहरा ओ बकसीयाजी ॥२५॥ सोई नर गावे सदा सुख पावे तो, गावन वालियां सदा सुख भोगवेजी ॥२६॥ सुनने वालिया सदा सुख भोगवे ॥ बेटारी माता सुख भोगवेजी ॥२७॥ इति ॥ ॥ हथनी ॥ (तर्ज-थे मन मोहो महावीर जी) हथनी चालाजी मलकती वनिता नगरी रे मांय जी। मैं थाने पूछू आदिनाथजी, कठे थाने रेवन रो वासजी ॥१॥ वनिता नगरी में जनमिया, अष्टापद में निर्वाणजी। कुंकु भरणी जी वागकी, केसर भरणी जी बाटकी ॥२॥ हथनी चाली जी मलकती हस्तिनापुर रे मांयजी। मैं थाने पूर्वी शान्तिनाथजी, कठे थाने रेवन रो वासजी ॥३॥ हस्तिनापुर में जनमिया, समेतशिखर में निर्वाणजी । कुंकु भरणीजी बाटकी, केसर भरणीजी बाटकी ॥४॥ हथनी चालीजी मलकती, सोरियापुर में मांयजी। मैं थाने पूछं नेमीनाथजी, कठे थाने रेवन रो 40 Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वासजी ॥५॥ शोरियापुर में जनमिया, गिरनार में निर्वाणजी । कुंकु भरणीजी बाटकी, केसर भरणीजी बाटकी ॥६॥ हथनी चालीजों मलकती, बणारसी नगरी रे मांयजी। मैं थाने पूछू पार्श्वनाथजी, कठे थाने रेवन रो वासजी ॥७॥ बणारस नगरी में जनमिया, समेतशिखर में निर्वाणजी। कुंकु भरणीजी वाटकी, केसर भरणी जी बाटकी ॥८॥ हथनी चालीजी मलकती, कुण्डलपुर रे मांय जी, मैं थाने पूर्वी महावीरमी कठे थाने रेवन रो वासजी ॥९॥ कुण्डलपुर में जनमिया, पावापुरी में निर्वाणजी। कुंकु भरणी जी बाटकी, केसर भरणीजी बाटकी ॥१०॥ ॥ तारो । (तर्ज : प्रभातिया रो तारो आंगण मोर मोती चुगेजी ) प्रभातिया रो तारो आंगण हंस मोती चुगेजी । जठे आदिनाथ जनमिया नाभि राजा रे बधावना जी। ये तो केवल पाया दुनिया में धर्म प्रकाशियाजी। अष्ठापद ऊपर आदिनाथजी मोक्ष सिधावियाजी ॥ प्रभातिया रो तारो आंगण हंस मोती चुगेजी । जठे शांतिनाथजी जनमिया विश्वसेन राजारे बधावनाजी ये तो केवल पाया दुनियाँ में शान्ति वरतावियाजी । Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समेतशिखर पर शान्तिनाथजी मोक्ष सिधावियाजी ॥ प्रभातिया रो तारो आंगण हंस मोती चुगेजी। जठे नेमीनाथजी जनमिया समुद्रविजयजी राजा रे बधावनाजी ये तो केवल पाया करुणा से पशुव छुडावियाजी। गिरनार पर नेमीनाथजी मोक्ष सिधावियाजी ॥ प्रभातिया रो तारो आंगण हंस मोती चुगेजी। जठे पार्श्वनाथ जनमिया, अश्वसेन राजा रे बधावनाजी ये तो केवल पाया अज्ञानी कमठ समझावियाजी । समेतशिखर पर पार्श्वनाथजी मोक्ष सिधावियाजी । प्रभातिया रो तारो आंगण हंस मोती चुगेजी। जठे महावीर स्वामी जनमिया सिद्धारथ राजा रे बधावना जी ये तो केवल पाया जिन शासन दिपादियाजी। पावापुरी में महावीर स्वामी मोक्ष सिधाधियाजी ॥ । सूरज ।। (तर्ज : धोलो तो धोलो काई करो संयां) धोलो तो धोलो कांई करो सैयां धोलो विणी रो कपास । धोला चन्दाप्रभु सोवता ए सैया धोलो सूरज रो प्रकाश पोलो तो पीलो काई करो सैयां पीलो सोना रो रंग । पीलो रंग आदिनाथजी रो सैयां पीलो हलदी रो रंग ॥ हरियो तो हरियो कांई करो सैयां हरियो 42 Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रावण री घास हरियो वर्ण मल्लिनाथजी रो सैयां हरियो सुवारी पांख । रातो तो रातो कांई करो सैंयां रातो कसुम्बा रो रंग, रातो वर्ण पद्मप्रभुजी रो सेयां रातो किरमिजी रो रंग ॥ कालो तो कालो कांई करो सैयां, कालो काजल रो रेख, कालो वर्ण अरिष्ठनेमीनाथजी रो सैयां कालो बादल रो रंग ॥ ॥ दीपक ॥ ( तर्ज-रंग भर दिवलो झिग रह्यो ) रंगभर दिवलो जल रह्यो, वह तो जल रह्यो वनिता रे मांय ॥१॥ नाभि राजा मेहन्दी मोलवे, माता मोरादेवी रे हाथ रंगाय ॥२॥ कुण मांड्या ओ मानेतन थारा हाथ, माहरा माड्या ओ देवांगणा हाथ ॥ रंग भर दिवलो जल रह्यो ॥३॥ रंगभर दिलो जल रह्यो, वह तो जल रह्यो हस्तिनापुर रे मांय ॥४॥ विश्वसेन राजा मेहन्दी मोलवे, माता अचलादेवी रे हाथ रंगाय ॥५।। कुण मांड्या ओ मानेतन थारा हाथ, माहरा मांड्या ओ देवांगणा हाथ ॥६॥ रंग भर दिक्लो जल रह्यो ॥ रंग भर दिवलो जल रह्यो, वह तो जल रह्यो, शोरिटा पुर रे माय । ७॥ समुद्रविजय राजा मेहन्दी मोलवे, माता सेवा देवीजी .43 Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रे हाथ रंगाय ॥८॥ कुण मांड्या ओ मानेतन थारा हाथ, माहरा मांड्या ओ देवांगण हाथ ॥९॥ रंग भर दिवलो जल रह्यो, वह तो जल रह्यो बणारसी रे माय ॥१०॥ अश्वसेन राजा मेहन्दी मोलवे, माता वामादेवीजी रे हाथ, रंगाय ॥११॥ कुण मांड्या ओ मानेतन थारा हाय, माहरा मांड्या ओ देवांगणा हाथ ॥१२॥ रंग भर दिवलो जल रह्यो, वह तो जल रह्यो कुण्ललपुर रे माय ॥१३॥ सिद्धारथ राजा मेहन्दी मोलवे, माता त्रिशला देवीजी रे हाथ रंगाय ॥१४॥ कुण मांड्पा ओ मानेतन थारा हाथ, माहरा मांड्या ओ देवांगणा हाथ ॥१५॥ इति ।। ॥ वीरा और चूंदडी ॥ (तर्ज : माथन मेमद लावजो रे बोरा) माथन मेमद लावजो रे वीरा, रखडी रतन जडाय जामन जाया, चुंदड लावजो ॥१॥ चुंदड-चूंदर काई करो ए बाई, मंगाय दूं दोयन चार जामन जायी, चूंदड मंगाय दूं॥२॥ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आजु तो बाजु साकिया ए वीरा, अध-बीच लिखियो चांद जामन जाया, चूंदड लावजो ॥३॥ भरिया पंचां में ओढावजो रे वीरा, देखेला सगला ही लोक जामन जाया, __चूंदड लावजो॥ कुण्डलपुर रे चौवटे ओढावजो रे वीरा, देखेला सगला ही लोक जामन जाया, चूंदड लावजो ॥ इसडी तो चंदडियां ओडावजो रे वीरा, देखेला देवर जेठ जामन जाया, चूंदड लावजो ॥ || बधावा व झालर ॥ (तर्ज : आज तो बधावो राजा नाभि रे दरबार) घणण-धणण घंटा बाजे देव करे उच्छाव रे । झणण-झणण झालर बाजे देवियां करे उच्छाव रे। आज तो बधावो राजा नाभि रे दरबार रे। मोरादेवीजी बेटो जायो ऋषभ कुमार रे। आज तो बधावो राजा नाभि रे दरबार रे। घणण-घणण घंटा बाजे देव करे उच्छाव रे। . Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ झणण-झणण झालर बाजे देवियां करे उच्छाव रे । आज तो बधाओ राजा विश्वसेन रे दरबार रे । अचलादेवीजी बेटो जायो शान्ति कुमार रे । आज तो बधावो राजा विश्वसेन रे दरबार रे । घणण- घणण घंटा बाजे देव करे उच्छाव रे । झणण-झणण झालर बाजे देवियां करे उच्छाव रे । आज तो बधावो राजा समुद्रविजयजी रे दरबार रे । सेवादेवीजी बेटो जायो अरिष्ठनेमी कुमार रे 1 आज तो बधावो राजा समुद्रविजयजी रे दरबार रे । घणण- घणण घंटा बाजे देव करे उच्छाव रे । झणण-झणण झालर बाजे देवियां करे उच्छाव रे । आज तो बधावो राजा अश्वसेन रे दरबार रे । वामादेवीजी बेटो जायो पार्श्व कुमार रे । आज तो बधावो राजा अश्वसेन रे दरबार रे । घण घणण घंटा बाजे देव करे उच्छाव रे । झणण-झणण झालर बाजे देवियां करे उच्छाव रे । आज तो बधावो राजा सिद्धारथ रे दरबार रे । त्रिशलादेवीजी बेटो जायो महावीर कुमार रे आज तो बधावो राजा सिद्धारथ रे दरबाद रे । घणण-घणण घंटा बाजे देव करे उच्छाव रे । झणण-झणण झालर बाजे देवियां करे उच्छाव रे । 46 Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आज तो बधावो वसुभूति के दरबार रे। पथ्वीदेवीजी बेटो जायो गौतम कुमार रे। आज तो बधावो वसुभति रे दरबार रे ॥ ॥ चौवीसी ।। (तर्ज---तपस्या री केशर गुल रह्यो) जिनजी पहला ऋषभनाथ वंदस्यां, जिनजी दूजा अजितनाथ चन्दस्यां, जिनजी तीजा संभवनाथ वंदस्यां, जिनजी चौथा अभिनन्दन वंदस्यां, जिनजी पांचमा सुमितनाथ वंदस्यां, जिनजी छछा पदमप्रभु देव के तपस्वारी के तर गलरह्यो वास करने वेला करूं, मारामा अठायारां चढता परिणाम अढाई देवो पदचाप, तपस्या री केसर गुल रह्यो । । वच्छ गजा की भावां ।। ।। नवकार मन्त्र की महिमा ।। (तर्ज- नवकुल राजाजी रो डोकरी) . नवकुल राजाजी री डीकरी, नवलादेवी वारी माताजी, पद्मकुमारी दीपती बाई, ताराचन्दजी है भाईजी ॥१॥ मथुरा नगरी का राजवी, दच्छ राजा 4 , Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वांरो नामोजी । बाग-बगीचा सोभता, वारे बगीचारो सुनो अधिकारोजी ॥२॥ काच कवलरी बावडी, लौंग डोडारो आ बाड़ो जी । सोना रूपारी घडलिया, रेशम केरी डोरो जी ॥३॥ मालीडो पानी सोंचवे, मालन पावे हे पानी जी । पावे है मरवा ने मोगरो, पावे चम्पेली रा गोड़ो जी ॥४॥ नवकुल राजा भेजिया, बाई फलडां चंठ लावोजी । ऊभा रेवो माहरा बाबोसा सजं मैं सोले सिनगारोजी ॥५॥ माथा में मेमंद सोवनो रखडी रो इदकारोजी, हिवडाने हासज सोवनो, गले ठिकावलरो हारोजी ॥६॥ कानां में कुण्डल सोवनो, जठणारो इदकारोजी । बांसिया बाजबंद बोरका, कंकण रो इदकारोजी ॥७॥ पगलयां ने पायर सोवना, गुगरा रो इदकारोजी । घुमे घुमालो घाघरो, ओढण दिकणीरो चीरोजी ॥८॥ सात सहेलयां रे झूलडे, पद्मावती बागां संचरियाजी। सोनारी छबोलयो हाथ में, गई वच्छ राजारी वाडीजी ।।९।। तोडया है आंबा ने आंबलि, तोड्या है दाडम दाखोजी । तोड्या है मरवा ने मोगरा, तोड्या है चंपेलोरा फूलोजी ॥१०॥ मालन आई कूकती, मालीडो गयो पुकारोजी । वच्छ राजाजी थारा बागां में, पद्मा कोनो बिगाडोजी ॥११॥ घडले असवार होयने, आया है बागां रे मायोजी 48 Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ढूंढ-ढूंढत सब ढूंढ़िया, लादा है पाना रे बीचोजी ॥१२॥ वेणी काटने बल पूछियो, बाई कीनाजी री धीवजी ॥ नवकुल राजा री डीकरी, नवला दे माहरो मायोजी वीरा ताराचन्दजी बेनोजी ||१३|| केस खापने बले पूछिया, थारा मारा सगपण होसीजी, रोवत जोवत घर गई, बाबोसा ले बुचकारियाजी ||१४|| कांई थारा माताजी मारिया के भोजाई घुरकायीजी । नहीं माहरा माताजी मारिया, नहीं भोजाई घुरकायीजी ॥ १५ ॥ गई थी वच्छ राजा री वाडिया, वे मारा काप्या है केसोजी केस कापने बले पूछियो, बाई थे कोनांजी री धीवजी ॥। १६ ।। नवकुल राजा री दीकरी, नवला दे माहरी माता जी । केस कापीने बले कह्यो, थारे-मारे सगपण होसीजी || १७|| रोबत जोवत घर गई, माताजी ले बुचकारियाजी । कांई थारा काको सा मारिया के वीराजी घुरकायाजी ||१८|| नहीं माहरा काकोसा मारिया, नहीं वीराजी घुरकायाजी, गई थी बच्छराजाजी री वाडिया, वे माहरा काप्या है केसोजी ||१९|| केस काटने बले पूछिया, बाई थे कोनासारी धोवो जी । नवकुल राजा री डीकरी, नवला दे माहरी मांजी ||२०|| केस कापीने बले कह्यो, थारी-मारी सगपण होसीजी, वेलक मानो सा पूछियो, बाई कि 1 49 Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कारणतू विलकायजी ॥२१॥ कांई थारो बाबोसा मारियो, के वीराजी घुरकायाजी। नहीं माहरा बाबो सा मारियो, नहीं वीराजी घुरकायाजी ॥२२॥ गई थी बच्छराजा री वाडिया, वे माहरा काप्या है केसोजी, केस कापी ने बले पूछियो, बाई थे कीना सारी धीवो जी ॥२३॥ नवकुल राजा री डीकरी, नवला दे माहरी मायजी। केस काप ने बले कह्यो, थारे-मारे सगपण होसीजी ॥२४॥ ताराचन्द वीरो पूछियो, बाई किन कारण थे विलकायजी कांई थाने माताजी मारियो, के भोजाई घुरकायाजी ॥२५॥ नहीं माहरा माताजी मारिया, नहीं भोजाई घुरकायाजी, गई थी बच्छराजा री वाडिला, वे मारा काप्या है केसोजी ॥२६॥ केस कापी ने बले पूछियो, बाई थे कीनांसा री धीवोजी नवकुल राजा री डीकरी,नवला दे गारी मांग्रजी ॥२७॥ केस कापी बले कह्यो, थारे-मारे सगपन होसी जी। ताराचन्दजी वीरो सा रोस में आयने कोदो है नाग तणो वेशो जी ॥२८॥ उठासुं नामज सांचरिया जाने वच्छराजा ने डसवांजी। उठासुं नागज सांचरिया आया है सीमा रे मायो जी ॥२९॥ सीमा सिवारिया ने पूछियो किणाजी रो कहीजे ये सीवोजी मारे बच्छराजारो कहीजे सीवोजी सीमा सुं फेर पधारिया द्वारोजी ॥३०॥ उठालं 50 Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागज सांरिया आया बागा रे मांये जी। बागवान माली ने पूछियो, कोणाजी रो कहीजे आ बागोजी ।३१।। मारे बच्छराजा रोकहीजे बागोजी बागासु फेर पधारिया द्वारोजी,उठासु नागज सांचरिया आया है। पिणपटरे ऊपर जी ॥३२॥ पिणगट पणियारियांने पूछियो कीणाजी रो कहीजे आ पिणगटजी, मारे वच्छ राजा रे कहीजे पिणगटसु फेर पधारिया द्वारोजी ॥३३॥ उठासु नागज सांचरिया आया है डोढियारे मायो जी, डोढिया में दरजी सी रह्या कोणाजी रे सीवीजे वस्त्रोजी ॥३४॥ मारे वच्छ राजा रे सिविजे अंगियाने पदमा रे नवलो वेशोजी। उठासं नाग सांचरिया आया है पोलीयारे मांयो जी ॥३५।। पोलीया में सोनी गड़ रह्यो, कोणाजी रो गडीजे गहनोजी, गडीजे वच्छ राजा रे मूंदडी ने पदमा रे नवसर हारोजी ॥३६॥ नागज नालिया में चढ़ रह्या आदे फूलां केरी बासोजी । नागज फूलां में लूटने आधा है लेडिया रे मांयोजी ॥३७॥ दूधज भरियो बाटको मांये भिश्ररी केरा रव्वा जी, दूध पीने तिरपत हुआ बेठा दलीचो डालो जी ॥३८॥ आवज जावज सब आया कीदो पदमा री सगाई जी। हाथ सोना रूपारा नारेल बगसाविया कीदी पदमारी सगाई जी ॥३९॥ इति ॥ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ वच्छ राजा की दूसरी ढाल ॥ (तर्ज--उठो माता नवलादेवीजी, सजो सिनंगार तो।) उठो माता नवलादेवी जी सजो सिनगारो तो पदमा ने दीनी मोटा रायने जी, बेनड ने दीनी मोटा राय ने जी ॥१॥ सुन-सुन रे जाया पूत सपूता तो विद्याधर री कवरी क्यू दीदी मानवी जी। धीवडली ओ क्यूं दीदी मोटा रावने जी ॥२॥ काढ़ कटारी ने माल ली धीवतो पूतडली क्यों जायी ओ माहरा कूखमें जी ॥३॥ सुनो-सुनो ए माहरी नगरी री नारियाँ थे तो कोई मत जीनजो ए धीवडजी ॥४॥थे हो माजी सा माहरा हिरणी राजा रा जायी तो पाछे पो संभालो थारा बापरो जी ॥५॥ जितरे ओ नवलादेवीजी माथोजी धोयो तो मातीडा सुं मांग भरावियाजी॥६॥चोखा कुंकरा रानी तिलक काढ़िया तो नेणां ओ काजल रेकरो जी॥७॥ जितरे जो नवलादेवी जी सजिया सिणंगारो तो बड़बेरो बंधावण माजी सा सांचरियाजी ॥८॥ जितरे वच्छराजाजी बडबेरोजी बांधीयो तो सरप पकडने गला में गालियो जी ॥९॥ जितरे ओ वच्छ राजाजी गुणिया नवकार तो सरप फूलारी माला होय गई जी ॥१०॥ जितरे ओ वच्छ राजाजी तोरण बांधियो तो सासुजी 52 Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओ टीकण पधारियाजी ॥। ११॥ चोखा कुंकूरा रानी तिलक कराया तो चावल रे वदले ओ बिच्छू छेडियोजी ||१२|| जितरे वच्छ राजाजी गुणिया नवकार तो बिचूडो मोतीडा रो तिलक होय गयो जी ॥१३॥ आला तो लीला बाबोसा बांस बढावो तो नव-खंडी वेश मंगावजोजी ||१४|| चारों ही दिशा बावोसा तणी ये बंधावो तो ऊपर रालो बाला चून्दडीजी ॥ १५॥ आला तो लीला बाबोसा धोब मंगावो तो खेजड़ मंगावो जूनो झाड़ रोजी ॥ १६ ॥ चारों ही दिशा बाबोसा खूंटीयां रोपावो तो तणी ए तणावो काचा सूतरी जी ॥१७॥ जऊ ने तिलारो बाबो सा होम करावो तो घिरत मंगावो गोरी गायरो जी ॥ १८ ॥ भणिया तो गुणियो बाबोसा पण्डित बुलावो तो, हरख हथलेवो बाई रो जुडावियोजी ।।१९।। इति ॥ ॥ वच्छ राजा की तीसरी ढाल || ( तर्ज-- पेलोडो मंगल वरतियो, टूटा बाबो सा है ।) पेलोडो मंगल वरतियो, टूटा बाबो सा है आपोजी, बाबोसा टूटा ने कांई देसी, हाथी केरो आ जोडोजी देसी गुडलारी आ जोडोजी ॥ १॥ दूजोडो मंगल वरतियो, टूटा काको सा है आपोजी काको सा टूटा कांई देसी, 53 Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देसी अन्न धन भण्डारोजी ॥२॥ तीजोडो मंगल वरतियो, टूटा मामोसा है आपो जी, मामो सा टूटा ने काई देसी, देसी मायरो पेरायो जी ॥३॥ चौथोडो मंगल वरतियो, टूटा नवलादेवी मायोजी माताजी टूटाने कांई देसी, देसी हिवडा रो हारोजी ॥४॥ पांचमो मंगल वरतियो, टूटा ताराचंद वीरो सा । वीरो सा टूटाने काई देसी, देसी पांच पचास रो दीवलो जी ॥५॥ पांच पचास रो दीवलो पदमा रे आंगण जिगसीजी पदम सरीखी बेनड कद मारे आंगण फिरसीजी । कद मारे आंगण रमसीजी ॥६॥इति॥ ॥ बच्छराजा की चौथी ढाल ॥ (तर्ज : गूंथ लायी मारी मालन सेवरीजी) आवोनी साला तू मत वाला देनी बेनड ने सीखडी, ले जा साँ ओ ले जासां थारी बेन गंथ लायी मारी मालन सेवरो जी ॥१॥ आवोनी साली तू चीर झाली देनी बेनड ने सीखडी ले जासां ओ ले जासां थारी बेन ओ गूंथ लायी मारी मालन सेवरोजी ॥२॥ आवोनी लाडी बैठोनी गाडी, देनी पीजणिये पाव जी आज रो वासो आपरा सहर में जी थारो परायो है देश गूंथ लायी माहरी मालन सेवरोजी ॥३॥ बाबोसा पहुँचाया आंगणिये जी 54 Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माताजी डोड्यारेमांय सहेलियां पहुँचाईघोखे तांईजी वीरा बाईरा ठेठो औ ठेठ गूंथ लायो मारी मालन सेवरोजी।४॥ धीवड़ पहुँचाई पाछा फिरिया, जी छूटी आंसूडा री धार. गंथ लायी माहरी मालन सेवरोजी ॥५॥ ए दिवर जेठाणियां ने वीनवू ए, कोई मत जीणजो धीव के ले गयो ए ले गयो कालजियो लूंय गूंथ लायी मारी मालन सेवरोजी ॥६।। नगरी लोकां ने वीन ए, कोई मत जीणजो धीव के ले गयो ले गयो कालजियो लंय ग्रंथ लायी मारी मालन सेवरोजी ॥७॥इति॥ ॥ ताग सूरज हथनी बधावा ॥ (तजं : ओ सुरंगों रंगो केवडो रे लाल) रातरा तारा ऊगियो रे लाल, ये तो दिन ऊगा सूरज रो उद्योत माहरालाल, हथनी चाली मलकती रे लाल, आ तो गई वनिता री पोल माहरा लाल, मोरादेवी नन्दन जनमिया रे लाल, आदेश्वर भगवान माहरा लाल, नाभि राजा रे बधावना रे लाल, ये तो अष्टापद मुगतियां गया माहरा लाल ॥१॥ रातरा तारा ऊगियो रे लाल, ये तो दिन ऊगा सूरजा रो उद्योत माहरा लाल, हथनी चाली मलकती रे लाल, आ तो गई हस्तिनापुर री पोल माहरा लाल, अचला 55 Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवी नन्दन जनमिया रे लाल, ये तो शांति भगवान माहरा लाल, विश्वसेन राजा रे बधावना रे लाल, ये तो समेतशिखरमुगतिया गया रे माहरा लाल ॥२॥ रातरा तारा ऊगियो रे लाल, ये तो दिन ऊगा सूरज रो उद्योत माहरा लाल, हथनी चाली मलकती रे लाल, आ तो गई शोरियापुर री पोल माहरा लाल, सेवादेवी नन्दन जनमिया रे लाल, अरिष्टनेमी भगवान माहरा लाल, समुद्रविजयजी रे बधावना रे लाल, ये तो गिरनार मुगतिया गया माहरा लाल ॥३॥ रातरा तारा ऊगियो रे लाल, ये तो दिन ऊगा सूरज रो उद्योत माहरा लाल हथनी चाली मलकती रे लाल, आ तो गई बाणारसी री पोल, माहरा लाल, वामदेवीजी नन्दन जनमिया, रे लाल, पार्श्वनाथ भगवान माहरा लाल, अश्वसेन राजा रे बधावना रे लाल, ये तो समेतशिखर मुगती गया माहरालाल ॥४॥ रातरा तारा ऊगियो रे लाल, ये तो दिन ऊगां सूरज रो उद्योत माहरा लाल, हथनी चाली मलकती रे लाल, आ तो गई कुण्डलपुर री पोल माहरा लाल, त्रिशालदेवी नन्दन जनमिया रे लाल महावीर भगवान माहरा लाल, सिद्धारथ राजा रे बधावना रे लाल, ये तो पावापुरी मुगती गया माह। लाल ॥५॥ 56 Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ दीपक मेहन्दी अन्डीयाने । माता मोरादेवीजीबैठरिसे अमर लाल, ये तो दिवालो बले जगमग रे लाल थे तो ओढो चंदड सुहावणी रे लाल ॥टेर।। ये तो हाथों में मेहन्दी राचती रे लाल, ये तो ओढण चीर चन्दडी रे लाल ॥१॥ ये तो जल भर झारी हाथ में रे लाल, ये तो जावे आदेश्वर रे पाप्त में रे लाल॥२॥ थे उठो उठो ऋषभकुमार मेरे लाल, थे तो करोनी दान्तनियां वेग सं रे लाल । ३। आ तो फीणा रोटी दहि पास मे रे लाल, थे तो करोनी कलेवो प्यार सं रे लाल ॥४॥ये तो सीरा ने पूडी लापसी रे लाल, ये तो लाडू पेडा नक्ती पास में रे लाल ॥५॥ ये तो करोनी जीमणियां आदेश्वर रे लाल, ये तो जीम छूटन ने चलु करयो रे लाल ॥६॥पचे त्याग्या है सारा संसार ने रे लाल, ये तो चैत्र वदी ने संयम आदरया रे लाल ॥७॥ ये तो धर्म घणा प्रकाशिया रे लाल, ये तो अष्टापद पर पहँच्या निर्वाण रे लाल ॥८॥ ॥वीरा ॥ ___ (तर्ज-रे जीवा विमल जिनेश्वर सेवीये) ओ वीरा ऊंची सी मेढ़ी ढलकती, ज्यांरा छ बजड़ किवाडजी मांहे, अंधारे बोलयो कूकडो ॥१॥ वे तो ननन्द भोजाई दोनूं पोढ़िया, वे तो सूता छे सुख भर 57 Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नीन्दजी मांहे, अंधारे बोल्यो कृकडो ॥२॥ भावज ओ कई पंछी बोलियो, ये तो बोल्यो छे ढलती रात ने मांहे अंधारे बोल्यो कुकडो ।।३॥ ये बाईसा ये थांका वर बोलिया, ये तो बोल्यो छे ढलती रात ने मांहे, अंधारे बोलयो कुकडो ॥४। हे वीरा पौ फाठी दिन ऊगियो, बहन पहुँची वीरा रे पास ओ वीरा, दे दो जामण जाया आगन्या ॥५॥ हां हे वाई कुण थाने मोसो बोलियो, कुण थारी लोपी है कार हे बाई, मत ले जामण जायी अगन्या ॥६॥ हां रे वीरा भावज मोसा बोलिया, भावज लोपी छे कार हे वीरा, दे दो जामण जाया आगन्या ॥७॥ हां हे बाई भावज पग री मोजडी, है बाई दिन परणु पचास हे बाई, मत ले जामण जायी अगन्या ॥८॥ हां ओ वीरा लावोनी ओगा पातरा, ओ वीरा लावोनी सूत्र रो ज्ञान हे वीरा, दे दो ज मण जाया अगन्या ॥९॥ हाँ हे बाई छाती भरीजे हिवडो हबके, माहरे नेणां में आंसू धार ये बाई, मत ले जामण जायी अगन्या ॥१०॥ हां ये बाई पांव उगाडा चालनो, ये बाई करनो उग्र विहार ये बाई, मत ले जामण जायी आगन्या ॥११॥ हां रे वीरा छाती ने डट कर राखजो, ओ वीरा हिवडे में धरजो धीर ओ वीरा, दे दो जामण जाया आगन्या ॥ हां ये बाई पांव उगाडा चालनो, ये Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करनो उग्र विहार ये बाई, मत ले जामण जायी आगल्या ॥१२॥ हां ये बाई घर-घर फिरनो थाने गोली, ये बाई करनो माथा रो लोच ये बाई, मत ले जाम अायी आनन्या ॥१३।। हां रे वीरा घर-घर फिर गोचरी, ओ वीरा करस्यां उग्र विहार हे वीरा दे दो जामण जाया आगन्धा ॥१४॥ हां ये बाई दोष बयालीस टालनो, लेनो है सूझतो आहार ये बाई, मती ले जामण जायी अगन्या ॥१५॥ हां रे वीरा दोष बयालीयस टालस्यां, ये वीरा लेस्या, सूझतो आहार रे वीरा, दे दो जामण जाया अगन्या ॥१६॥ हां ये बाई माहरी तो आज्ञा नहीं लगे, देवेला ससुरा जाया जेठ ये बाई, मती ले जामण जायी अगन्या ॥१७॥ हां रे वीरा ससुरा जाया जग में है नहीं, माहरे थे छो जामण जाया वीर रे भाई दे दो जामण जाया अगन्या ॥१८॥ हां ये बाई माता रे आपां दोय लाड़ला, एक वीरो दूजी बहिन रे बाई, मती ले जामण जायी अगन्या ॥१९॥ हां ओ मारासा कोई ये बेरावे ओगा पातरा, कोई बेरावे सूत्र ज्ञान ओ मारासा, मैं बहिराऊं मारी बहिन ने ॥२०॥ हां ओ मारासा कोई बेरावे लाडू डोवटा, कोई घेवर बहिराय ओ मारासा, मैं बहिराऊं मारी बहिन ने ॥२१॥ हां ओ मारासा तपस्या थोड़ी करावजो, भूखी 59 Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ री लीजो संभाल ओ मारासा, मैं महिराऊ मारी बहिन ने ॥२२॥ हां ओ मारासा बहन बहिराई पाछा फिरा, माहरे छूटी आंसू धार ओ मारासा, मैं बहिराऊ माहरी बहिन ने ॥२३॥ हां ओ माहरा सा दान, शील, तप, भावना, ओ मारासा कर्म खपाय मुक्ति गया, वरत्या छे मंगलाचार ओ मारासा, मैं बहिराऊं माहरी बहिन ने ॥२४॥ ॥ चौवीसी ॥ (तर्ज--जीओ तपसनजी थारी तपस्या री लेर) पहला ऋषभनाथ वंदस्या, दूजा अजितनाथ देव, जीओ तपसनजी थारी तपस्या री लेर, सुहावनी । गुरणी. के वन्ता में सुन्यो ए चेलयां सुं तपस्या न होय, वांरी तपस्या री चढ़ी रे निर्वाण । नोट-इसी प्रकार चौवीस तीर्थकारों का नाम लेना चाहिए। ॥ चौदह सपना ॥ (तर्ज--माता त्रिशलादेवीजी देख्या भला) रानी त्रिशलादेवीजी देख्या भलाचौदह सपना,माता त्रिशलादेवीजी देख्या भला चौदह सपना टेर। राय सिद्धारथ त्रिशलादेवी रानी रंगमहलमा में पोदया सजना 60 Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आधी रात पहर को तडको निद्रा में देख्या भला चौदह सपना ||१|| सपना देखी ने ततक्षण जागिया, धर्म जागरण कीधी सजना । ये सपना सुखदाई आया, अर्थ पूछने जाऊं सजना || २ || गजगमणी चाल सुं महलां सु उतरया, पिउजी के महलां आया सजना | पोढ़या जानी ने कंथ जगावां, मधुरी वाणी बोलया सजना ॥ ३॥ वाणी सुनी सिद्धारथ जाग्या, किस कारण तुम आया सजनी | भद्रासन बैठन को दीनो तो, सुखसाता तब पूछी सजना ||४|| राजा रानी सन्मुख बैठ्या, बात करे वे तन मन अपना । आधी रात पहर को तड़को, निद्रा में देख्या भला चोदह सपना || ५ || ये सपना शुभकारी आया, अर्थ पूछने आई सजना सन्मुख बैठी शंका मती राखो, बात करो तन मन अपना || ६ || पहला सपना में गयवर देख्या, दूजे में ऋषभ सुहावना । तीजे सपना में सिंहज देख्या, तो चौथे में लक्ष्मी देवता ॥७॥ पांचवे सपना में पंचवर्णो माला, छठे में चन्द्र अमी 1 जरे । सातवें सूरज, आठवें ध्वजा, नवमें कलश रत्ना जड़ियो ||८|| पदम सरोवर दसमां देख्या, क्षीर समुद्र स्वामी ग्यारहमां । देव विमानज बारहमां देख्या, रुणझुण घन्टा बाजन्ता ॥ ९ ॥ रत्नां री राशि तेरहवीं देखी, धूप शिखा स्वामी चौदहवां । सपना सुनी 61 Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धारथ बोलया, पुत्र तीर्थकर होसी सजनी ॥१०॥ हम कुल नन्दन तुम तिलक ललाटो, त्रिभुवन स्वामी होसी सजनी । ये सपना राजा सुन हर्षा तो, धर्म जागरण कीधी सजना ॥११॥ ये सपना मरुदेवी ने देख्या. तो नाभि राजा घर बधावना। ये सपना अचला देवी देख्या, विश्वसेन घर बधावना ॥१२॥ ये सपना सेवादेवी देख्या, समुद्रविजय राजा घर बधावना । ये सपना वामादेवी देख्या, अश्वसेन राजा घर बधावना । ये सपना त्रिशलादेवी देख्या, सिद्धारथ राजा घर वधावना ॥१३॥ ।। झालर, हथनी, तारा, दीपक, सूरज, बधावना ।। (तर्ज-बागां में बाजा जंगी ढोल) तारा तो चमके है रात, महलों में दिवलो जल रह्योजी, मोरादेवीजी जायो है पूत, देवांगणा उच्छव कोजी, सूरज ऊगियो तिणवार, नाभि राजा रे घर बधावाजी, मोच्छव मण्ड्यो तिणवार, हथनी सिनंगारिया जी, बैठा आदेश्वर भगवान, मंगल बाजा बाजताजी, झालर रे झणकार, दुनिया सगली जागतीजी, संयम लिया भगवान, तीरथ चार स्थापियाजी, प्रभुजी तो दियो उपदेश, जगलिया धर्म निवारियाजी, अष्टापद ऊपर भगवंत मोक्ष सिधारियाजी ॥१॥ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तारा तो चमके है रात, महलों में दिवलो जल रह्योजी, अचलादेवीजी जायो है पूत, देवियां उत्सव करेजी, सूरज ऊगियो तिनवार, विश्वसेन राजा रे घर बधावना जी, मोच्छ व मण्ड्यो तिनवार, हथनी सिगारियाजी बैठा शान्तिनाथ भगवान, मंगल बाजा बाजताजी, झालर रे झणकार दुनियां सगली जागतीजी संयम लिया भगवान, तीरथ चार स्थापियाजी। प्रभुजी तो दियो उपदेश, शांति वरतावियाजी । समेत शिखर पर्वत पर, मोक्ष सिधारियाजी ॥२॥ ___ तारा तो चमके है रात, महलों में दिवलो जल रह्योजी। सेवादेवीजी जायो है पूत, देवांगणा उत्सव करेजी । सूरज ऊगियो तिणवार, समुद्रविजयजी राजा रे घर बधावनाजी। मोच्छव मंड्यो रिणवार हथनी सिनगारियाजी। बैठा अरिष्टनेमी भगवान मंगल बाजा बाजताजी। झालर रे झणकार दुनियां सगली जागतीजी, प्रभुजी तो संयम आदरिया, तीरथ चार स्थापियाजी । प्रभजी तो दियो उपदेश, पशुव छुडावियाजी। गिरनार पर्वत पर, भगवंत मोक्ष सिधारियाजी ॥३॥ __ तारा तो चमके है रात, महलों में दिवलो जल रह्योजी, वामादेवी जायो है पूत, देवांगणा उत्सव करे जी सूरज ऊग्यो तिणवार, अश्वसेन राजा रे घर बधा 63 Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वनाजी । मोच्छव मंड्यो तिणवार, हथनी सिनगारिया जी। बैठा पाश्र्वनाथ भगवान, मंगल बाजा बाजताजी। झालर रे झणकार दुनियां सगली जागतीजी, प्रभुजी तो संयम आदरया, तीरथ चार स्थापियाजी । प्रभुजी तो दियो उपदेश, कमठ हटावियाजी, समेतशिखर पर्वत पर, मोक्ष सिणारियाजी ॥४॥ तारा तो चमके है रात, महलां में दिवलो जल रह्योजी । त्रिशलादेवीजी जायो है पूत देवांगणा उत्सव करेजी । सूरज ऊगियो तिणवार, सिद्धारथ राजा रे घर बधावनाजी । मोच्छव मंड्यो तिणवार, हथनी सिनगारियोजी । बैठा महावीर भगवान, मंगल बाजा बाजताजी । झालर रे झणकार दुनियां सगली जागतीजी । प्रभुजी तो संयम आदरया, तीरथ चार स्थापियाजी । प्रभुजी तो दियो उपदेश मेरु कंपावियाजी। पावापुरी में भगवंत, मोक्ष सिधारियाजी ॥५।।इति।। ॥ चून्दडी ॥ (तर्ज--रंगाओ नेमीश्वर चू-दडीजी) कीना जी तो बंधारो बुलावियोजी, कोना जी ये रंगरेजो बुलाय, रंगाओ नेमीश्वर चून्दडीजी ॥टेर।। समुद्रविजयजी बंधारो बुलाविजयाजी, उग्रसेनजी 64 Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रंगरेजो बुलाय । रंगाओ नेमीश्वर चून्दडीजी ॥१॥ पांच रुपया रो पोत मंगावजो जी, हाडोती हल्दी मंगाय । रंगाओ॥२॥ शोरिया पुर सुंबंधारो बुलावजो जी तो नानी-नानी बंदना बंधाय ॥३॥ कुण सा चुन्दड मोलवे जी, वे तो कुण सा खर्चेला दाम ॥४॥ उग्रसेन जी चुन्दड मोलवेजी, समद्रविजयजी खर्चेला दाम ॥५॥ नेमीश्वर ले घर आवियाजी, ओढ़ सती राजुल नार । रंगाओ ॥६॥ ओढ़ पहरने राजुल नोसर्याजी, आया है मथुरा रे बाग । रंगाओं ॥७॥ संजम राजुल आदर्योजी, पाया है केवल ज्ञान ॥८॥ चौपन, दीनो का आंतरा जी पिऊ पहले पहुंच्या निर्वाण, रंगाओ नेमीश्वर चून्दडोजी ॥९॥ 65 Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ मेहन्दी || (तर्ज-सेवरियो तो पेरे मारा बनडा हठ लियोजी) वनिता रे रावल गढ रे चौक, मरुदेवी हाथ मंडावियाजी | विनजो-विनजो केसर ने कपूर, मेहन्दी रा दोय डाबलाजी ॥१॥ हस्तिनापुर रे रावलगढ़ रे चौक, | अचलादेवीजी हाथ मंडावियाजी । विनजो-विनजो केसर ने कपूर, मेहन्दी रा दोय डाबलाजी ॥२॥ शोरियापुर रे रावलगढ़ रे चौक, सेवादेवीजी हाथ मंडावियाजी । विनजो- विनजो केसर ने कपूर, मेहन्दी रा दोय डाबलाजी ॥३॥ बणारस पुर रे रावलगढ़ रे चौक, वामादेवीजी हाथ मंडावियाजी । विनजो-विनजो केसर ने कपूर, मेहन्दी रा दोय डाबलाजी ॥४॥ कुण्डलपुर रे रावलगढ रे चौक, त्रिशलादेवीजी हाथ मंडावियाजी । 1 66 Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विनजो-विनजो केसर ने कपूर, __मेहन्दी रा दोय डाबलाजी ॥५॥ ! कलवा ॥ (सर्ज : गुणभर ओरी ने पोढ़िया है गोरी तो) माता त्रिशलादेवीजी बोले वर्द्धमान तो, बोले बर्द्धमान तो, कलेवो करो दिन ऊगियोजी ॥१॥ जल भर झारी हाथ रे मांय तो, दान्तण करोनी जाया वेग सुंजी ॥२॥ माखण रोटी लावो माहरी मांय तो, जलेबी ने दूध भर लावो माहरी माय तो, बाटकोजी ॥३॥ कलेवो तो कोनो माताजी रे हाथ तो, माताजी रे हाथ तो, भावजीरा हाथ सु जीमणोजी ॥४॥ लाड़ ने पेडा तो सरस जलेबी तो, सरस जलेबी तो, घेवरिया तो लावो चिनी खांडरोजी ॥५॥ दोपारी तो करावो माहरी सुदर्शना बहन तो, सुदर्शना बहन तो, गिरी ये गिदोला गूंद पाकरोजी ॥६॥ व्यालु कराओ महारा नाना ओ चेटक राजा, नाना ओ चेटक राजा, दाल चावल ने खिचडोजी ॥७॥ व्याल तो करने बैठा महल मांय तो बैठा महल मांय तो, दिन ऊगा परण घर आवियाजी॥८॥नंदिवर्धन से करे अरदास तो, करे अरदास तो आज्ञा देवो संजम आदरस्यांजी ॥९॥ नंदिवर्धन Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीरा तो दीक्षा उच्छव मंडाया तो, दीक्षा उच्छव मण्डाया तो, चौंसठ इन्द्र मिल आवियाजी ॥१०॥ संजम पालयो प्रभु कठिन आचार तो, कठिन आचार तो, कर्म खपाय हुआ केवलोजी ॥११॥ चार तो तीरथ स्थाप्या महावीर तो, पावापुरी में मुगते गयाजी ॥१२॥ ॥ चौवीसी ।। (तर्ज : झंडा ऊँचा रहे हमारा) धर्म सूर्य युग-युग के सारे, जय-जय-जय-तीर्थकर प्यारे ॥टेर।। ऋषभ-अजित-संभव-अभिनन्दन, __सुमति पदमप्रभु सुपार्श्व चन्दा, सुविधि शीतल शुभ सत्य सहारे ॥१॥ प्रभु श्रेयांस वासपूज्य घ्याये, विमल अनन्त धर्म गुण गाये ।। शान्ति अखण्ड शान्ति विस्तारे ॥२॥ कुन्थु, अर, मल्लि ब्रह्मचारी, मुनि सुव्रत नमि प्रभु अवतारी । अरिष्टनेमी है नाथ दुलारे ॥३॥ पारस प्रभु वर्द्धमान सुहाये, महावीर विख्यात कहाये । शासनपति श्रद्धेय हमारे ॥४॥ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ चौवीसी ॥ ( तर्ज : जय बोलो महावीर स्वामी की ) जय बोलो प्यारे जिनवर को उन विश्व पूज्य तीर्थकर की ॥टेर ॥ श्री ऋषभ अजित संभव स्वामी, अभिनन्दन जी अन्तरयामी, उस सुमति पदम परमेश्वर की ॥१॥ सुपार्श्व चन्दाप्रभु ध्याना श्री सुविधि शीतल को मनाना है, विमल अनन्त मल्लि मुनिसुव्रत व्रतकर की ॥३॥ है, श्रेयांस वासपूज्य प्रभुवर की ॥२॥ श्री धर्मं प्रभु, श्री शान्ति कुन्थु अरहनाथ विभु, नमि नेम पार्श्व जिनराया, महावीर का शासन सवाया है, कौशल्या कुमारी के हितकरकी ॥४॥ ॥ चौवीसी ॥ ( तर्ज़ : देख तेरे संसार की हालत ) सुबह शाम तुम आवो गावो, प्रभुजी के गुण गान जिनेश्वर चौवीसी भगवान ||टेर || पाप ताप संताप 69 Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिटाये, पाये पद निर्वाण ॥जि०॥ ऋषभ अजित संभव सुखकारी, अभिनन्दन सुमति दिलधारी॥ पदम, सुपारस, ममता मारी, चंदाप्रभु सब मोक्ष विहारी । जन्म मरण सब मेटे इनने, बन गये सिद्ध महान ॥१॥ सुविधि शीतल जैसे चन्दा, श्रेयांस वासपूज्य जिनन्दा ॥ विमल अनन्त धर्म मुनिन्दा, शान्ति प्रभु है अचलानन्दा ॥ भव भ्रमण का दुःख मिटाया, पा कर केवल ज्ञान ॥२॥ कुन्थु अर मल्लि जिन प्यारा, मुनि सुव्रत मनमोहनगारा ॥ नमि नेम पार्श्व सितारा, महावीर शासन सिरदारा । मोक्ष नगर में जाय विराजे, कर आत्म कल्याण ॥३॥ गणधर ग्यारह जगहित कारा, विहरमान है बीस प्यारा अनंत चौवीसी सुख में सारा, गुरुदेव शासन सिरदारा मालेगांव में हरिऋषि कहे, धरो प्रभु का ध्यान ॥४॥ || सपना ॥ राय सिद्धारथ घर पटराणी, नाम त्रिशला सुलक्षणीजी, राजभवन माहे पलंग पोढ़ता, चवदह सपना रानी देखियाजी ॥१॥ पहले ओ सपने में गयवर देख्यो, दूजो ऋषभ सुहावनो, तीजे सिंह सुलक्षणो देख्यो, चौथे लक्ष्मी देवताजी ॥२॥ पांचवें पंच वर्णी 70 Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फूलनी माला, छठे चन्द्र अमी झरेजी, सातवें सूरज, आठवीं ध्वजा, नव में कलश अमी भरयोजी ॥३॥ पद्म सरोवर दसवें देख्यो, क्षीर समुद्र देख्यो ग्यारहवांजी, देव विमान बारहवां देख्या, रुणझुण घन्टा बाजंताजी ॥४॥ रत्नांरी राशि तेरहवां देखी, अग्निशिखा देखी चौदहवींजी, चवदह सपना देखी रानीजी जागिया, राय समीपे पहुंचियाजी ॥५॥ सुनो ओ स्वामी मैं तो सपना जी देख्या, पाछली रात रलियावणीजी, राय सिद्धारथ पंडित तेड्या, कहो रे पंडित एहनोजी ॥६॥ हम. कुल मण्डन तुम कुल दीवो, जयवंता तीर्थकर जन्मसीजी, जे नर गावे ते सुख पावे, आनंद रंग बधावनाजी ॥७॥ || सपना ।। (तर्ज--माहरी रस सहेलडी आज आदेश्वर कोनो) माने सपना दीठा, अरज सुन लीजो माहरा बालमां ॥टेर।। पहले गयवर देखियासरे, दूजे ऋषभ सुलक्षण, तीजे सिंह सुलक्षणोसरे, चौथे लक्ष्मी देवजी ॥१॥ युगल माल फूल की सरे, छठे देखी चन्द । सातवें सूरज देखियासरे, आठवें ध्वजा पतंग ॥२॥ नवमें कलश रत्नां जडियोसरे, दसमें पद्म सरोवर । क्षीर समुद्र ग्यारहवांसरे, बारहवें देवविमानजी ॥३॥ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नांरी राशि तेरहवांसरे, अग्नि शिखा बहु तेज । सिद्धारथ राजा ने पूछतासरे, अर्थ दियो फरमायजी ॥४॥ ॥ बड़ा सपना ।। (तर्ज : सोमा रूपा रा दोव ओवरा चन्दन जडिया किवाड, उठे पोढ़या है बनी रा दादासा) अगर चन्दन का जी ओवरा ओ जी पाना फूलारी पटसाल सपना लाद्याजी ढलती रात काटेर॥ ऊँची सी मेडी ढल रहीजी, तो दिवलो बले मझार, सपना लाद्याजी ढलती रात का ॥१॥ जठे नाभि राजा पोढियाजी, ओ रानी जाय जगाय, सपना लाद्याजी ढलती रात का ॥२॥ पोढया जागो ओ नाभि राजाजी, ओ जी सपना रो अर्थ बताय, सपना लाद्याजी ढलती रात का ॥३॥ पहले सपने जी गयवर देखियाजी, ओ जी राज दरबार रे मांय, सपना लाद्याजी ढलती रात का ॥४॥ दूजे सपनेजी वृषभ देखियाजी, ओ जी गाय गवाडिया रे मांय, सपना लाद्याजी ढलती रात का ॥५॥ तीजे सपना में सिंहज देखियाजी ओ जी देख्या है साधु मुनिराज, सपना लाद्याजी ढलती रात का ॥६॥ चौथे सपने में लक्ष्मी देवताजी, ओ जी अन्न-धन भरया है भण्डार, सपना लाद्या जी ढलती रात का ॥७॥पांचवें Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सपने में माला देखियाजी, ओ जी पांच वर्ण का फल, सपना लाद्या जी ढलती रात का ॥८॥ छठठे सपने ओ चांद पंवासियांजी, ओ जी असंख्य तारा रे माय, सपना लाद्या जी ढलती रात का ॥९॥ सातवें सपने में सूरज देखियाजी, ओ जी सहस्र किरण रा राय, सपना लाद्या है ढलती रात का ॥१०॥ आठवें सपने में ध्वजा देखियाजी ओ जी चारों ही दिशा लहरया लेय, सपना लाद्या है ढलती रात का ॥११॥ नवमें सपने में कलश देखियाजी, ओ जी भरियाजी पूरापूर, सपना लाद्या है ढलती रात का ॥१२॥ दसमें सपने में पद्म सरोवर देखियाजी, ओ जी श्वेत कमल तंतसार, सपना लाद्या है ढलती रात का ॥१३॥ ग्यारहवें सपने क्षीर समुद्र देखियाजी, ओ जी, क्षीर को जैसो नीर, सपना लाद्या है ढलती रात का ॥१४।। बारहवें सपने में देवविमान देखियाजी, रुण-झुण घंटा बाजे, सपना लाद्या है ढलती रात का ॥१५॥ तेरहवें सपने में रत्नारी राशि देखिया जो, ओ जी रत्ना सुंभरया भण्डार, सपना लाद्या है ढलती रात का ॥१६॥ चौदह सपने में अग्निशिखा देखियाजी ओ जी दीपती है निधूम, सपना लाद्या है ढलती रात का ॥१७॥ पूत तीर्थकर जन्मसीजी, ओ जी हम कुल तुम आधार, सपना लाद्या जी ढलती रात का ॥१८॥ 73 Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नव दस मास पूरा थयाजी, ओ जी जन्मा छ पुन्यवंत पूत, सपना लाद्या है ढलती रात का ॥१९॥ चौसठ इन्द्र चली आवियाजी, ओ जी छप्पन दिशा कुमारी, सपना लाद्याजी ढलती रात का ॥२०॥ अशचि कर्म निवारनेजी, ओ जी गावे है मंगलाचार, सपना दीठा है ढलती रात का ॥२१॥ इसडा सपना अचलादेवी देखियाजी, ओ जी शान्तिनाथ री माय, सपना लाद्या जी ढलती रात का ॥२२॥ इसडा सपना सेवादेवीजी देखियाजी, ओ जी नेमीनाथ री माय, सपना लाद्या जी ढलती रात का ॥२३॥ इसडा सपना वामादेवी देखिया जी, ओ जी पार्श्वनाथ री माय, सपना लाद्याजी ढलती रात का॥१४॥ इसडा सपना त्रिशलादेवीजी देखियाजी ओ जी महावीर री माय, सपना लाद्याजी ढलती रात का ॥२५॥ ॥ मेहन्दी और चून्दडी ॥ (तर्ज : थारी थारी ओ बेइजी नार वही दूध ) थारी २ मोरादेवी कुख, रतन जडाव सुं जडी। थारी २ अचला देवी कूख, हीरा जडाव सुं जडी। जठे जनमिया है आदिनाथ देव, छप्पन करोड का धणी जठे जनमिया है शान्तिनाथ देव, छप्पन करोड का धणी, 74 Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मांरी बिदली लाल गुलाल, मोतीडा सु मांग भरी आपरी अंगिया है कसुमल रंग, गोटा जडाव सु जडी आपरी चून्दडी है लाल मजीठ तो नखामेहंप राच रही मां रे ओढन दिखनी चीर, तो नेणा सुरमा सार रही। माता बैठा है. गलीचा डाल, बहुबेटियां हाजर खड़ी। वे तो लुल लुल लागेलो पाय, अमर आशीश घणी । नोट : इसी तरह अन्य माताओं और तीर्थंकरों का नाम लेना चाहिए। ॥ बधाओ और चून्दडी ॥ (तर्ज-बधाओ जो मारो आवियो) मोतियां रा लूमक झूमका, कस्तूरी ओ राजा बंदरवाल बधावो जी माहरे आवियो॥टेर।। बांधु नाभि राजा रे ओवरे, बांधु विश्वसेन राजा रे ओवरे । ज्यां जाया ओ आदिनाथ देव, बधावोजी माहरे आवियो । ज्यां जाया ओ शान्तिनाथ देव बधावो जी माहरे आवियो ॥१॥ जाया रा हरष बधावना, संजम रे ओ प्रभु लाड ने कोढ़, बधावो जी माहरे आवियो॥२॥ चार रंगाओ चोखी चुन्दडी, परदेशन ओ आयी सुभद्रा ओढाय, बधावो जी माहरे आवियो ॥३॥ चार मंगाओ चोखा चूडला, परदेशन ओ आई बहिन पहराय, बधावो जी माहरे आवियो.॥४॥ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ चून्दडी ॥ (तर्ज- माता सीता की गोदी में डाली मूंदडी) ओढ़ो-ओढ़ोजी सुहागिन, पतिव्रता धर्म को चून्दडी जी टेर।। मल-मल विद्या की बनवाओ, रंगत बुद्धि को चढवाओ, गोखरु गोटा ज्ञान का लाओ, बून्टा सत्य शास्त्र अनुसार जगत में चमके चुन्दडीजी ॥१॥ सुरमा शीलवत का धारो, मिस्सी मीठा वचन उच्चारो, टीको पर उपकार की धारो, पति की सेवा करो हरबार, सुहाग की ओढ़ो चुन्दडीजी ॥२॥ थे तो ओढोनी चूंपा चतुराई की पहनो, बाजुबंद दया को पेरो; लाज रूपी नथ से सोहे चेहरो, झेलो झूठ कभी मत बोलो, जीव से प्यारी चून्दडीजी ॥३॥ खांच समता मन में लेवो, ससुरा का हुक्म उठावो, सच्चा दिल सुं पति ने चावो, दूसरी प्रेम और प्रीति की, एक घडवालो मून्दडीजी ॥४॥ हृदय हार ज्ञान का पहनो, माला धीरजता को गहनो, ठुस्सी मान बड़ा को कहनो, तिमणियो सास ससुर सेवा जान, प्रीत की ओढो चुन्दडीजी ॥५॥ Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ चून्दडी ॥ (तर्ज-नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे ) छोटी-मोती बहिनों पहनो, शील की चून्दडियां प्यारी-प्यारी चन्दडियां पर, रीझेंगे सावरिया ॥टेर।। शीश फूल टीका या किलीफ, होबडो के मान का, शास्त्र श्रवण साहित्य गीत का, एरिंग होवे कान का, समता रखना दुःख में भी, नहीं बरसाना बादरिया ॥१॥ पतिव्रता धर्म की बिदिया सोहे, लज्जा का जल आँख में, घर समाज ओ नीति रीति का, सुन्दर लोंग हो कान में, पान की लाली मीठी बोली, बोलो बन कोयलिया, ॥२॥ चतुराई का चोली पोलका, नेकलिस होवे ज्ञान का अच्छे स्वास्थ्य का भुजबन्द पहनो, घडी चुडियां दान की, बुरी नजर से कभी न देखो, नीची रखो नजरिया ॥३॥ सत्य धर्म का लहंगा पहनो, कर देना शुभ कर्म का, भक्ति रंग की महावर मेहन्दी, बिछिया अहिंसा धर्म का, अच्छी चाल की पहनो पग में, झुनक झुनक पार्यालया ॥४॥ यह चुन्दडी सुभद्रा ओढी, राजमती सीता सती, ओढी चन्दना, ओढी अंजना, कलावती-मैनावती, 'केवलमुनि' यश चम चम चमके, ओढ़ो रे सुन्दरियां ॥५॥ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ चून्दडी ॥ (तर्ज-मारो बालो भूखो छ प्रेम नो ए) - बहनों ओढ़ो शियलनी चन्दडीजी, ओढ्या लागे सुहावनी नार ॥ बहनो ॥टेर॥ प्रेम भक्ति नो कापडो मंगावजो रे, पछे धर्म को रंग लगाय ॥१॥ गुरू भक्ति नो गोटो लगावजो रे, पछे ज्ञान को गोकुल लगाय ॥२॥ पछे तपस्या रो फीता लगाव जो रे, दया दान का फूल जडाय ॥३॥ जम्बु स्वामीजी री आठों हो कामनिया रे, चुन्दड़ ओढ़ी है मन हुलसाय ॥४॥ वलि राम की प्यारी जानकी रे, दियो सुभद्राजी कलंक उतार ॥५॥ आदेश्वर जी रे दोनों डीकरिया रे, चुन्दड़ ओढ़ी है कर्म खपाय ॥६॥ वलि चन्दन बाला आदि सतियां हुई है, चून्दड ओढ़ी है मन हुलसाय ॥७॥ शान्तिदेवी ने हृदय में धार लो रे, मत करजो झगडा क्लेश ॥८॥ पूज्य अमोलक ऋषिजी फरमावियो रे, छोड दियो विषय कषाय ॥९॥ इति ॥ ॥साद का गीत ॥ (नर्ज-डूंगर ऊपर डूंगर रायनेम, जिन पर नींबु) समोसरण में विराजिया भगवंत, ओ जी गौतमस्वामो है पास, प्रश्न इम पूछिया भगवंत ॥१॥ गर्भ में Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीव, किम रेवे भगवंत । ओ जी उत्तर सुन भविक अचरज पाया है भगवंत ॥२॥ नीचो सिर ऊंचो, पग रेवे गौतम । ओ जी रक्त वीर्य को आहार लेवे, असुचि में रेवनो गौतम । ३॥ पुन्यवंत गर्भ में आवे तब, शुभ सपनो लेवे गौतम, ओ जी चवदे सपना देखे, तीर्थकर मायडी गौतम ।।४।। चक्रवर्ती री माता, चवदे सपनो देखे है गौतम । पण वह अस्पष्ट देखती, इम जानजो गौतम ॥५।। वासुदेव री माता, सात सपनो देखे हे गौतम । ओ जी बलदेव री माता, चार सपनो देखे हे गौतम ।।६।। माण्डलीक राजा री माता, एक सपनो देखे हे गौतम । ओ जी साधु री माता, एक सपनो देखे है गौतम ॥७॥ तीजे मास डोहलो, उपजे गौतम । ओ जो डोहला ऊपर फरकजे, पुन्य-अपुन्यवंत गौतम ।।८।। गर्भ तणी करे प्रति, पालन गौतम । ओ जी अनुकंपा दिल लाय ने, सुनो आगे है गौतम ॥९॥ खाटो, मीठो, चरको, परपरो गौतम । ओ जी खानो थोड़ो प्रमाण, बहुत नहीं खावनो गौतम ॥१०॥ ठंडो, ऊणो, लूखो, बासी, चोपड्यो गौतम, ओ जी लेनो अल्पज आहार, जिम गर्भ सुख पावे गौतम ॥११।। मीठी, मेठ, नहीं खावनो गौतम, ओ जी नहीं खाबनो कोयलो राख, गर्भपात होवे गौतम ॥१२॥ जतना सुं उठ, बैठनो गौतम । Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओ जी जतना सं चलनो धीमी चाल, जिम गर्भ सुख पावे गौतम ॥१३॥ नीची होई मेंदो नहीं काढ़नो गौतम । ओ जी चूला-चक्की को काम नहीं लेवनो, करनो धर्म क्रिया गौतम ॥१४॥ क्रोध, भय नहीं लावनों गौतम, ओ जी नहीं करनो झगडो टंटो, गर्भ क्रोधी होवे गौतम ॥१५॥ ब्रह्मचर्य नित, पालनो गौतम । ओ जी खिम्या करनो मन मांय, पुन्यवंत जन्मसी गौतम ॥१६॥ गर्भ का नियम बताविया गौतम, ओ जी दोष टालने चालसी, पुन्यवंत माता गौतम ॥१७॥ ॥ साद का गीत ॥ (तर्ज-पहलो मास उललियो राज भंवरती) पहलो मास जो लाग्यो ओ प्रीतमजी, मारे दूध शक्कर मन लाग्यो माराराज । आ तो साद भलेरी हे महारानी, थे नित को दूध पीवो माराराज ॥१॥ दूजो मास जो लाग्यो ओ प्रीतमजी, मारे दारे दान देवन मन लाग्यो माराराज । आ तो साद भलेरी हे महारानी थे नित को दान जो देवो माराराज ॥२॥ तीजो मास जो लाग्यो ओ प्रीतमजी, मारो शील पालन मन लाग्यो माराराज । आ तो साद भलेरी हे महारानी, थे नित को शील जो पालो माराराज ॥३।। चौथो मास जो 80 Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लाग्यो ओ प्रीतमजी, मारो तपस्या करन मन लाग्या माराराज । आ तो साद भलेरी हे महारानी, थे नित की नौकारसी करजो माराराज ॥४॥ पांचमो मास जो लाग्यो ओ सुसराजी, मारे सामायिक करन मन लाग्यो माराराज । आ तो साद भलेरी हे कुलबहु, थे नित करजो सामायिक माराराज ॥५॥ छट्ठो मास जो लाग्यो ओ सासुजी, मारो सूत्र सुनवां मन लाग्यो माराराज । आ तो साद भलेरी हे कुलबह, थे नित का सूत्र सुनजो माराराज ॥६॥ सातमो मास जो लाग्यो ओ पिताजी, मारो घेवरिया मन लाग्यो माराराज । आ तो साद भलेरी हे दीवडली मैं घेवरिया जिमाऊं माराराज ॥७॥ आठमो मास जो लाग्यो ओ वीराजी. मारो सीरा पूड़ी रा मन माय माराराज। आ तो साद भलेरी हे मारी बेनडी, मैं सीरा लापसी जिमाऊं माराराज ॥८॥ नवमो मास जो लाग्यो ओ माताजी, मारे अजमो संठ मन लाग्यो माराराज, आ तो साद भलेरी मारी दीवडली, थाने लाडू मैं जिमाऊं माराराज ॥९॥ अबे तो बालक जनमियो हे मारी मावडी, नवकार मंत्र सुनावो मारी माय । गुटकी ऐसी दीजे हे मारी मायडी, दुनियां में नाम कमावसी मारी माय ॥१०॥ इति।। : Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घुटकी का गीत (तज--अभी भूख से रोते-रोते लाल हमारा ) पांखों बाहर बालो आयो, माता बेन सुनावे यूँ । मारी कूख दिपाइजे रे बाला, मैं थने सखरी चूंटी हूँ। तेज कटारी नालो मोड्यो, नालो मोडत बोली में। दुष्मन की फौजों में जायजे, जय विजय कर आयजे तूं ॥१॥ पांखों बाहर बालो आयो, माता बेन सुनावे यूँ। महलां चढ़ने थाल बजावे, थाल बजावत बोली यू । चार खंट चौताला बीच में, नौपतडी बजवायजे तं ॥२॥ पांखों बाहर बालो आयो, माता बेन सुनावे यूं। कुआ पूजन घर से निकली, कलशां भरती बोली यं । चार खूट चौताला बीचमें, आरतडी करवायजे तूं ॥३॥ पांखों बाहर बालो आयो, माता वेन सुनावे यूं । गोदियां सूतो बालो चूंगे माता वचन सुनावे यूं । धोला दूध में कायरता को, कालो दाग न लगायजे तूं ॥४॥ पांखों बाहर बालो आयो, माता वेन सुनावे यं । सोने पालन बालो जले, जूले जुलावत बोली यूं । सारी पृथ्वी हिलायजे रे बाला, मैं थने जितरे जोला दूं ॥५॥ पांखों बाहर बालो आयो, माता वचन सुनावे यूं। शहर जोधाणा मायें आवे, दौलत राम सुनावे यं । माता शिक्षा ऐसी देवे, फिर वो बालक बिगडे क्यूं ॥६॥ 82 Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बच्चे के जन्म होने के बाद बोलने का गीत (तर्ज-तालो तो कुण खटकावियाजी काई रेण पाछलड़ी रात ।) बाई तो सूता नींद में जी कांई, प्रसूती वेदना प्रगटाय । उठो प्रीतमजी वेग सुं जी मारी, दाय माता ने बलाय । दाय माता तो आवियाजी कांई जनम्या है पुत्र-पुत्री जान तीक्षण छुरियाँ मंगायने जी कांई, चार अंगुल प्रमाण । नालो तो काटयो विवेक सुंजी कांई, बालक दुःख नहीं पाय सासुजी ने वेगा बुलावजो जी कांई, शाल बजायो तिणवार सुसराजी ने वेगा बुलावजो जी कांई, नवकार मंत्र सुनाय । घटको दिरावो गुड़ की जी कांई, शुभ वेलारे मांय । गंगा जल सं नवावियाजी कांई, पीलोजी पाट पलेट । पिताजीने वेगा बुलायजो जी काई, चन्द्र सूर्य दर्शन कराय। छ दिन धर्म जागना जागनाजी कांई, नारियां मंगलगाय। ग्यारहवें दिन अशुचि निवारवेजी कांई, नावण धोवण कराय नाई रो बेटो बुलावजोजी काई, आंगण साफ कराय । मोतियांरा चौक पुरावजोजी कांई, पगलियां देवो मंडाय कुंभार ने वेगा बुलावजोजी काई, कुंभ कलश लेने आय । खाती ने वेगा बुलावजोजी कांई, बैठन पाट जो लाय । पंडित ने वेगा बुलावजोजी काई, कंवरा रा नाम दिराय। पोलो तो ओढ़ पाट विराजियाजी कांई, बालक लीनो गोद Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मांय,बायां तो मंगल गावतीजी कांई, बाजा तो शुभ बजाय पिताजी ने वेगा बुलावजो जी कांई, दशोटन देश कराय। लाडु पेडाने घेवर बफियांजी कांई, नाना विधि रा पकवान भोजन सगला जीमियाजी कांई, वस्त्र भूषण दिराय । बधाइयां बटी सारा शहर में जी कांई, बरतिया है जय-जयकार चिरंजीवो बालक-बालिका कांई, दिनो है शुभ आशिवाद ॥ ॥ पीपरा मूल का गीत ।। (तर्ज-- समुदां रे पेले अजमोजी बायो) महलां रे मांय तो पिलंग बिछायो, नरम बिछानो बिछावजो जी ॥ ऊठनो, बैठनो, चलनो, ने फिरनो, सात दिन तक न करोजी ॥ सेवा रे मायने पास में रेवणो, बालक ने माता सुख पावसीजी।। सुसराजी जाय बाजार के मांय, पीपरा मूल लायो उतावलोजी ॥ पीपरा मूल पियां थी सरदी मिट जावसी, अजमां थी वादी मिट जावसीजी ॥ सूंठ खायां सुंतन पित नहीं होवे, लोद ने गंद ठंडी करेजी॥ गाय ने भेंसरो धिरत जिमाय जो, ठंडा ने लूखा, बासी मत खावजोजी ।। खाटा खटाई ने चरका आचार, कुपथ्य खायां रोग उपजेजी॥ इसडी तो चीजां ए खायां सु ए बायां, तन में तो शक्ति 84 Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घणी रेवेजी ॥ बालक ने दूध निर्मल जो आवे, पीयने ओ बालक सुखी होवेजी ॥ वीर तो निकलने धर्म दिपावे, कुल दिपावे, वस्त्र नरम पेरावजोजी ॥ गहनो तन पर नानाजी मत पेरायजो, मामाजी मत पेरायजो, बालक री हत्या हो जावसीजी ।। दाय माता सुं तो पालन करावो, सुख-सुखे बालक मोटो होवसीजी ॥ जलवां पूजने के समय बोलने का गीत ।। (तर्ज-बाडाजी विचलीजी पीपली ) मात पिताजी ए पीलो भेजियो, माथो गुंथावन शुभ दिन मारी बाई, पोलो तो ओढन, कलश्यो है हाथ में, मंगल गायन गावे मारी बाई, बाजा तो बाजे, बहुत सुहावना ।। आया है बागां रे मांय मारी बाई ॥ बागां में बावडी जो जल भरयो ॥ जिनरो है निर्मल नीर मारी बाई । कुवा पूजन जच्चारानी चालीया ॥ नीर की सीर ज्यूं दूध मारे आवजो ॥ बालूडो तो पीवेला पेट भर बाई। तन में तो साताजी बालक रे होवसी॥ झगल्या तो टोपी मामासा लावीया, पालनिया में बालक ने पोढाओ मारी बाई । झूला तो देयजो जिम धरती धुजावसी ।। शुभ दिन मांये तो झडुलो निकालजो ॥ कान बिन्दायजो शुभ दिन मारी बाई ॥ भोजन शुभ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिन बालक जिमावजी ।। शुभ दिन वानै चलालो मारी बाई ॥ देश में चालने धर्म दिपावसी ॥ आछा-आछा हालरिया बालक ने सुनावजो ॥ ऊंची-ऊंची बोली बालक ने सीखावजो ॥ गाल ने झगडा मत सिखावजो मारी बाई ॥ बालक सुधरे तो जमारो थारो सुधरसो ॥ बालक बिगडे तो हाण मारी बाई ॥ पांच वर्ष में भणवांने भेजजो ॥ दस वर्ष रा बालक ने बोडिंग माये राखजो ॥ बहत्तर कला तो पढाओ मारी बाई ॥ अठारह लिपी रो ज्ञान जो सीवावसी ।। सामायिकपडिक्कमणो भणावो मारी बाई ॥ अठारह वर्ष रो जी बालक घर आवनो ।। रेवेला बह्मचारी मांय मारी बाई ॥ धर्म जो दीपे ने कुल थारो दीपसी ।। दीपेला सब परिवार मारी बाई ॥ पंडितजी ने धन जो बहुलो देवजो ॥ देवो घणो सन्मान मारी बाई ॥ ॥ हालरियो । (तर्ज-जो आनन्द मंगल चावो तो मनाओ) पुत्र ने राग सुनावे हो माताजी हलरावे, बालक ने राग सुनावे हो माताजी हुलरावे ॥टेर॥ रतन जडत को पालनो, रेशम सेती बनियो, धन जननी थाने जनियो हो माता हलरावे ॥१॥ सोना की सांकल बांधी Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वा रेशम सेती सांधी, फिर अध बिच झूमर बांध्यो हो माताजी हुलरावे ॥२॥ कोई चक्री भंवरा लावे, कोई नत्य करी रिझावे, कोई घुघरिया घमकावे हो माताजी हुलरावे ॥३।। कोई गोदी ले बैठावे, कोई अंगुली पकड़ चलावे, कोई गुदगुल पाड़ हंसावे हो माताजी हुलरावे ॥४॥ कोई सिर पर टोपी मेले, कोई अधर हाथ सं झेले, जिऊ-जिऊं बालक खेले हो माताजी हुलरावे ॥५॥ कोई साडू-पेडा लावे, कोई सरस जलेबी लावे, कोई घेवरिया जिमावे हो माताजी हुलरावे ॥५॥ कोई चमक नींद से जागे, ने रिम-झिम करता भागे, वांरी सुरत सुहावनी लागे हो माताजी हुलारावे ॥७॥ हे सिद्धारथ कुल का चन्दा, माता त्रिशला देवी का नन्दा, ज्यांने सेवे सुर-नर वृन्दा हो माताजी हुलरावे ।।८।। खूबचन्दजी कहे जोइजो, यह रिद्धि को संजोगो, यह करणी का फल भोगों हो ॥९॥ इति ॥ ॥ सगाई के समय बोलने का गीत-घोडी ॥ ॥ तर्ज : थे तो मालाओ पेरो जराव री रे लाल ।। धोलो तो घोडो कमल ज्यूं रे लाल, वारे तिलक चमके लीलाड ओ लाल, थे तो माला ओ फेरो नवकार की रे लाल ॥१॥ ए तो ए कुणजी घोडी मोलवे रे 87 Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लाल, ए कुण जी खर्चेला दाम ओ लाल, थे माला ओ फेरो नवकार की रे लाल ॥२॥ ए तो पिताजी घोडी मोलवे रे लाल, ए तो काका जी खर्चेला दाम ओ लाल, थे तो माला ओ फेरो नवकार को रे लाल॥३॥ ए कुण जी घोड़ी सजावसी रे लाल, ए तो ए कुण जी बनडो सजावसी रे लाल, थे तो माला ओ फेरो नवकार की रे लाल ॥४॥ ए तो वीराजी घोडी सजावसी रे लाल, ए तो मामाजी बनडो सजाय ओ लाल, थे तो माला ओ फेरो नवकार की रे लाल ॥५॥ ए तो कसुंबल पेचो खादी तणो रे लाल, ए तो केसरिया जामो पेराय ओ लाल, थे तो मालाओ फेरो नवकार को रे लाल ॥६॥ ए तो बेनड़ करे आरती रे लाल, ए तो माताजी दूध पिलाय ओ लाल, थे तो मालाओ फेरो नवकार को रे लाल ॥७॥ ए तो काकीजी मंगल गावसी रे लाल, ए तो भावज बधावा गाय ओ लाल, थे तो माला ओ फेरो गवकार की रे लाल ॥८॥ ए तो बाजा तो बाजे सुहावनो रे लाल, ए तो गया सज्जन के द्वार ओ लाल, थे तो माला ओ फेरो नवकार की रे लाल ॥९॥ ए तो बेइजी बधावन आवीयारे लाल, ए तो ब्यानजी आरती लाविया ओ लाल, थे तो माला ओ फेरो नवकार की रे लाल ॥१०॥ बेइजी रे पंचरंग 88 Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोलियो रे लाल, ए तो ब्यानजी रे कसुम्बल वीर ओ लाल, थे तो माला ओ फेरो नवकार की रे लाल ॥११॥ रत्न सरीखी कन्या देवसां रे लाल, थाने देसां घणा धन माल ओ लाल, थे तो माला ओ फेरो नवकार को रे लाल ॥१२।। मारी कन्या ने सोरी राखजो रे लाल, थे तो मती करजो झगडो कलेश ओ लाल, थे तो माला ओ फेरो नवकार की रे लाल ॥१३॥ थाने खादी रो वेश देवशां रे लाल, थाने देसां गायां रा गोकुल ओ लाल, थे तो माला ओ फेरो नवकार की रे लाल ॥१४॥ ए तो परणन कॅवर घर आवीया रे लाल, आ तो कुलवती बहु सुजान ओ लाल, थे तो माला ओ फेरो नवकार की रे लाल ॥१५॥ ए तो कुल रो वंश बढ़ावसी रे लाल, ए तो शील वंती सुखमाल ओ लाल थे तो माला ओ फेरो नवकार की रे लाल ।।१६।। आ तो विनय करीने मीठा बोलसी रे लाल, आ तो सेवा करसी सब जान ओ लाल, थे तो माला ओ फेरो नवकार की रे लाल ॥१७॥ आ तो सामायिक पडिक्कमणो नित करसी रे लाल, वाने कभी मत दीजो अन्तराय ओ लाल, थे तो माला ओ फेरो नवकार की रे लाल ॥१८॥ वे तो दान देसी नित्य हाथ रे लाल, जठे होवेला जय-जयकार ओ लाल, थे तो माला ओ फेरो नवकार की रे लाल ॥१९॥ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ दूसरी घोडी ॥ (तर्ज-धूमे घोडी ने अजब बछे डी) घोडी पर बैठो बनडोजी सोवे, पिता-काकाजी इम बोले ओ ब्याई । घोडी पर बैठो बनडोजी बोले ॥१॥ घोडी पर बैठो बनडो घणो रे सुहावे, मारा तो कँवर डोरो बीटी मांगे ओ ब्याई । घोडी पर बैठो बनडोजी सोवे । २॥ डोरा ने बीटी मांसु बन नहीं आवे, कुंकु ने कन्या हाजर करसां ओ ब्याई । घोडी पर बैठो बनडोजी सोवे ॥३॥ डोरा बीटी नहीं तो मैं नहीं परणां, मारे तो धन री आश ओ ब्याई । घोडी पर बैठो बनडोजी सोवे ॥४॥ मांगन री आदत थाने कुण सिखाई, मक्तापन किम धारयो ओ ब्याई । घोडी पर बैठो बनडो जी सोवे । ५।। सूत्र ग्रंथ मांये बीटी नहीं चाली, नहीं देवे गुरु उपदेश ओ ब्याई । घोडी पर बैठो बनडोजी सोवे ॥६॥ लोभ दशा थाने अधिक जो लागी, किा थे धर्म गमावो ओ ब्याई । घोडी पर बैठो बनडोजी सोवे ॥७॥ साता तो बोटी साथे मंगावो, विश्वास नहीं मन मांही ओ ब्याई । घोडी पर बैठो बनडोजी सोवे ।।८। सातो तो सात रुपमा रो होवे, बीटी तो अंगुली में पेरावे ओ ब्याई । घोडी पर ।। Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बैठो बनडोजी सोवे ॥९॥ वो तो रिवाज ठेठ सुं आयो, अब किम ऊंधी चाल चलाई ओ ब्याई । घोडी पर बैठो बनडोजी सोवे ॥१०॥ बीस, पच्चीस, चालीस, एकावन, क्यों थे बेटा ने बेचो ओ ब्याई । घोडी पर बैठो बनडोजी सोवे ॥११॥ धर्म, समाज ने आप डुबावो, इस कुरीतां सुं हानि घणो होवे ओ ब्याई । घोडी पर बैठो बनडोजी सोवे ॥१२॥ कितनी तो कन्या विष खा जावे, कितनी तो पडे कुवा मांय ओ ब्याही । घोडी पर बैठो वनडोजी सोवे ॥१३॥ कन्या हत्या रे पाप सुं डरने, मति थे समाज बिगाडो ओ ब्याई । घोडी पर बैठो बनडोजी सोवे ॥१४।। दो दिन के वाहवाह रे कारण, खोटी गति में जावो ओ ब्याई । घोडी पर बैठो बनडोजी सोवे ॥१५॥ सूत्र में बात जो प्रभु जी भाखी, पुत्ररी बीटी नहीं चाली ओ ब्याई । घोडी पर बैठो बनडोजी सोवे ॥१६॥ पुत्री का पिता ने धन जो देनो, ए चालयो सूत्र माय ओ ब्याई । घोडी पर बैठो बनडोजी सोवे ॥१७॥ तेतलि प्रधान पोटिला ने परण्या, सूत्र ज्ञाता में देखो ओ ब्याई । घोडी पर बैठो बनडोजी सोवे ॥१८॥ बीटी लेनी सब छोड़ देवो, भलो होसी जग माही ओ ब्याही । घोडी पर बैठो बनडोजी सोवे ॥१९॥ रतन सरीखी कन्या, थाने जो देसा, देसां Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घणो सम्मान ओ ब्याई । घोडी पर बैठो बनडोजी सोवे ॥२०॥ गायांरा गोकुल थाने जो देसां, हाथ जोडी ने कन्यादान करसां ओ ब्याई । घोडी पर बैठो बनडोजी सोवे ॥२१॥ बोटी री चाल थे छोडो ब्याई, पुण्य तो थे ही कमावो ओ ब्याई । घोडी पर बैठो बनडोजी सोवे ||२२|| * बना (तर्ज-- सुनो श्रोताजी धर ध्यान कलियुग नाच करे ।) हाँ जी बना सात व्यसन का करो त्याग, छोटी सी उमर में । हाँ जी बनी कौन देवेला माने ज्ञान, छोटी सी उमर में || हाँ जी बना सतगुरु देवेला थाने ज्ञान, छोटी सी उमर में । हाँ जी बना सट्ठा जुआरा करदो त्याग, पाण्डव दुःख पाया || हाँ जी बना भांग गांजारी रो कर दो त्याग, दारु मत पीवो || हाँ जो बना परनारी का कर दो त्याग, रावण दुःख पाया | हाँ जी बना चोरी का कर दो त्याग, कलंक लागे कुल में ॥ हाँ जी बना वेश्यागमन का करो त्याग, इज्जत रहजासी ॥ हाँ जी बना अभक्ष्य का करो त्याग, छोटी सी उमर में । हाँ जी बना रात्रि भोजन का करो त्याग, छोटी सी उमर में । हाँ ए बनी आछो बतायो माने ज्ञान, हिरदां में 92 Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धरणे ॥ हाँ ए बनी पतिव्रता धर्म पाल, शील सुखदायो॥ हाँ ए बनी रेशम का करदो त्याग, हिंसा घणी इनमें । हाँ ए बनी फैशन का कर देवो त्याग, धर्म पालन ने ।। हाँ जी बना करो जिनजी रो ध्यान, सुख पानो भव-भव में ॥ ॐ बना * (तर्ज-छल्ला दांत केरी पिंड , आ रेशम बान बनी ।) सिंहासन पर पिताजी बैठा, कन्या आई अरज करे। पिताजी उन घरे देयजो, मैं सुख गांहे नित ही रहूँ॥ बाई स्वयंवर रचाओ, मन चाहे वर चुन लीजो ॥ सीता, द्रौपदी आदि सतियाँ, स्वयंवर में वर चुनती ॥ दास्यां का परिवार सुं जाती, अरिसा में मुखडो जोती। दास्यां गुणग्राम करती, वरमाला वर ने पेराती ॥ अबे पिताजी आछो घर देयजो, जिन घर में शान्ति रेवे ।। मारो धर्म निभाऊँ, समकित में सेंठी रे ॥ अज्ञानी रे घर मत दीजो, मैं नित की तो दुःख पास्य ॥ क्रोधी, मानी ने, लोभी, इनने मने मत देयजो ॥ परस्त्री, वेश्यागामी, जुआरी ने मत देयजो ॥ कायर, हीन, कुलारां, अनभणिया ने मत देयजो ॥ वाने कदि नहीं देवाँ शीलवंत वर जोस्याँ। 03 Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानी और बुद्धिवंत, ऐसा तो वर जोस्यां ॥ पिताजी सुखे रहसु, सामायिक पडिक्कमणो करस्यूँ ।। सेवा घणी करसुं, संघ में सुयश लेसुं ॥ बहुत दायजो पहुँचा देशां, धन की कमी नहीं राखां ॥ सूत्र मांहे चाल्यो, एक सौ चौरानब्वे बोल को दायजो॥ इन वक्त में लोभी, थोड़े के लिए दुःख देवे॥ ऐसी कुरीतां ने त्यागो, जो देवे सो प्रेम से लीजो ॥ विवाह प्रारम्भ होने के बाद बोलने का गीत ॥ विनायक ॥ (तर्ज- गढ़ रण के भवर सुं आवो विनायक ।) ये तो विचरत-विवरत शहर पधारया, अतारया ओ हरिया बाग में जी॥ ऊँचे तो पाट गौतम विराजिया, वर्धमान का शिण्य ओ जी ॥ भवि जीवाँ रे सुख कारणे जी, धर्मोपदेश फुरमावि-याजी ॥ पहलो तो वासो वसियो विनायक, ऋद्धि-सिद्धि रा भण्डार ओ जी ॥ दूजो तो वासो वसियो विनायक, लब्धि तणा भण्डार ओ जी ॥तीजो तो वासो वसियो विनायक, अन्न-धन रा भण्डार ओ जी ॥ चौथो वासो वसियो विनायक, बद्धि तणा दातार ओ जी ॥ पाँचमो वासो वसियो विनायक, जान तणा दातार ओ जी ॥ बाँसडलिया Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बल देवो विनायक, लाड़लडारा बाप ने जो ॥ ये तो जीबड़लिया जस देवो विनायक, लाड़लडीरी माय ने जी॥ ये तो गाय बजाय यश देवो विनायक, लाडलडीरी बेनने जी ॥ ये तो देव विनायक हिंसा नहीं करे, दया पाले सब जीवरीजी ॥ ये तो देव विनायक झूठ नहीं बोले, बोले ओ शब्द सुहावना जी ।। ये तो देव विनायक चोरी नहीं करे, दान तो देवे ऊँचा भावसुंजी ॥ ये तो देव विनायक शील जो पाले, पाले ओ खांडा री धार ज्यू जी ।। ये तो देव विनायक परिग्रह त्यागी, त्याग्या है सब संसार ने जी ।। ये तो देव विनायक रेशन नहीं पेरे, पेरे ओ खादी रा वस्त्र जी। ये तो देव विनायक षट् रस नहीं जीमे, जीमे ओ निरस आहार ने जी।' ये तो देवविनायक एकान्त नहीं बैठे, बैठे ओ परिषदा मांय ने जी ॥ देतो बाजाजी बाजे ने मंगल गावे, नगरी री नारियाँ मिल आवती जी ।। ये तो लाड़ लडारा कोड जो करसी, ज्यां वर्धमानजी रो गुण गावसीजी, गौतम रा गुण गावसीजी ।। इति।। ॥ हलदी। (तर्ज-मारी हलदी रो रंग सुरंग, निपने मालवा मारो हलदी रो रंग सुरंग, निपजे देश में ॥ मारी केशर रो रंग सुरंग, निपजे काशमीर में है ॥ आ तो Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयी बाजारां रे मांय, दुकाना में बेचता ॥ वारे पिता रे मन कोड़ केसर मोलवे, वारे काका रे मन कोड़ हलदी मोलवे ॥ वारी माताजी चतुर सुजान, केसर अंग चढ़े ॥ वारी काकीजी चतुर सुजान, हलदी अंग चढे ॥ पाउडर, स्नो, मत लगाइजो बेन, आरोग्यता नहीं रेवे ॥ चालो पुरानी चाल, आरोग्यता तन रेवे ॥ फैशन है सदा दुःखदाय सादगी से सुख पावो ॥ इति ॥ ॥ तेल लगाने का गीत ॥ (तर्ज-आवो आवो जोधाणा रा तेली जी ) आवो-आवो भरत-क्षेत्र रा तेलीजी, लावो तिलरा सरसों रो तेलजी ॥ मायें घालो मरवो ने मगतुली जी॥ मायें घालो केसर ने कस्तुरी जी ॥ वो ही तेल बनडा रे अंग चढ़सीजी, वो ही तेल बनडी रे अंग चढ़सीजी ॥ रुपया वांरे बाबोसा भरदेशीजी, लेखो वांरा वीरोसा करलेसीजी ॥ पहली तो व्यायाम करनोजी, बायां रे व्यायाम चक्की दूध मथनोजी ।। जिससे तन्दुरुस्ती बनी रहसीजी, मीलां रो तो तेल मत लेवोजी, घाणी रो तेल है सुखदायजी, शरीर में साता रहसीजी ॥ सहस्रपाक शतपाक तेल लगावजोजी, सुवागन नारी मिल मंगल गावसीजी ।। इति । 96 Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। उगटणा के समय बोलन का गात । (तर्ज --तू तो कर रायजादी उगटणो तूं तो कर रायजादा उगटगो, तू तो कर बनडी. बाई उगटणो ॥ ये तो गेहूँ ने गुज्जी रो अगटणो, सांये केसर कस्तुरी री बाल धणी ।। मामें चोलोरी कलियां री सुगंध घमी, हलदी रो रंग सुरंग घणो, ये तो पवनचक्की में मिलाय जो सती, उनरी शक्ति सब जल जावे करी । चक्की से उपयोग राखो करी. उनमें शक्ति ज्यादा रेने करी । चर्न रोग ने जिलारी नहीं आये करी, बनडा-बनी रे साता रे करो।। इति !! । स्नान के समय बोलने का गीत ।। ( तर्ज --- जठ नारो अन्त र लाडो दावसीजी ) बनडी तो बैठी बाजोट पेजी जठे माता पिता पधारिया जी ।। माताजी रे हाथ में कलश है ओ, ये तो अनछान्या पानी नहीं लाविया ॥ लेनडरा हाथ में कलश है ओ, ये ठंडा-ऊणा भेला करने नहीं लाविया ।। वनडी ने णावन करावता ओ, जठे वीरा जी ने भावज पधारिया ॥ स्नान करावे ये प्रेमसु ओ, भावज पगल्याये धोवता ॥ जठे मारी बहु परिवारी नावसी ओ, जठे Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावज तो आरतडी करे । कोमल वस्त्र लायने ओ, ये तो बनडी रो अंग जो पूछता। कुंकरा तिलक काकाजी करे ओ, मामा जी चावल चेडता ॥ सखियाँ तो मिल कर गावती ओ, ये तो कुंकुरा पगल्यां बाई चालिया ॥इति।। ॥ कांगसी-बाल सवांगने के वक्त बोलने का गीत ।। (तर्ज...- मारी हलदो गे रंग भुरग निपजे मालवा) बालक बनडी रा गज-गज केश, कुण सुलजावसी, बालक बनडी रा लम्बा-लम्बा केश, कुण सुलजाक्सी, रायजादी रा लम्बा-लम्बा केश, कुण सुलजावसी ॥ रायजादीरा गज-गज केश, कुण सुलजावसी ॥ बाटकडियां में तेल फुलेल, मरवारी कांगसी ।। बनडी री माता चतुर सुजान, वे सुलझावसी । बनडी रो भावज चतुर सुजान, वे सुलझावसी ॥ वे जुआँ-लिखां रा जतन कराय, हिंसा नहीं होवसी । मोतीडारी मांग भराय, कुंकरो तिलक है ॥ मेहन्दी हाथ पगां रे देय, रंग जो राचनी ॥ 98 Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ सवरा ।। (सर्ज--पनवाडी रा लम्बा तोखा शानडा) वनवाडी में खुल रह्या फूल, गूंथ लाय मारी मालन सेवरो॥ बाजार में बैठा बालक बनडा तो, सेवरया में चित्त गयो जी। मेलाँ माये बेठी बालक बनडी तो, सेवरिया में चित गयोजी ॥ परणिजू सा शीलवंती नार, के नहीं तर अखंड कवारो रहसं जी॥ परणिजू सा शीलवंता कुमार, के नहीं तर अखण्ड कुमारी रहसू जी ॥ कांई थाने बनडा सूतो सपनो आयो के, काँई थाने नेणा नोंद आयी जी ॥ नहीं माने पिताजी सूता सपना आया के, नहीं माने नेणां नींद आयी जी। परणावो माने शुभ मुहूर्त मायें के, शुभ दिन आज को जी । परणाई है बुद्धिवंती नार के, कुल मायें कलशचढावलीजी ॥ इति । । चून्दडी का गीत ॥ ( तर्ज... - मवागन बालक बनडो बारे जी आवो।) सवागण बालक बनडी मेला में बैठी, माताजी वचन सुनावे यूँ ॥ सवागण बालक बनडी सभा में आवो, ओढ़ो केसर कसुम्बल चुन्दडी ॥ मारे बाबोसा देखे 99 Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म़ारा काकोसा देखें, किसविध ओहूँ माता चुन्दडी ॥ थारा बाबोसा ए बाई लगन लिखावे, काकोसा चुड़लों मोलावसी, वीरोसा ए बाई चूँदडियां मोलवे, मामोसा मायरो पेरावसी ॥ बहनोई ए बाई बन्दोली कडावे, बेनड आरती करावसी || आज्ञा तो पालू माता चून्दड ओढ, अमर सवागण दिरावजो || ॐ वीरा ( तर्ज - जीरा रिमझिमतुं वेगा आवजो । ) स्वारथ का बहन ने भाई, बिन स्वारथ नही कोई जी । वीरा रिम झिमसुं वेगा आयजो ॥१॥ कर्म योग से बहन निर्धन थाव, धनवंतो वीरो नहीं आवेजी || वीरा रिमझिमसुं वेगा आवजो || २ || में बहन कदी नहीं जानूँ, इन विध वचन सुनावे जी || वीरा० ॥ ३ ॥ वाने चून्दड़ नहीं ओढावे, नहीं तिलक जाय करावे जो ॥ वीरा० ॥ ४ ॥ भाई निर्धन कभी हो जावे, तब बहन द्वारा नहीं जावेजी ॥ वीरा०||५|| नहीं जीरा घर बुलावे, नहीं तिलक भाई रे करती जी || वीरा० ॥ ६ ॥ धर्म का भाई बनावे, और धन-माल सब लेती जी || वीरा०७॥ एक माता उदर थी जाया, किम प्रेम भाव मिटायाजी || वीरा० ॥८॥ दाम की प्रीति करती पन आत्मा की 100 Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रीति त्यागीजी ।वीरा०॥९॥भाई थे आयजो भावज ने लायजो, सिरदार भतीजा साथे लाइजोजी॥वीरा०।१०।। वीरा पंचा में तिलक-कडायजो. बेनड ने चुन्दड ओढायजोजी ॥११॥ दुनियाँ में सुजस लेइजो, मातापिता रे नाम कमायजोजो ॥१२॥ वीरा पाँच पच्चीस साथे लाइजो, रोकडरी गरज घणेरीजी ॥१३॥इति।। ___ बधावो (तर्ज --ये मोतो समुदा में नीपजे ।) ये मोती समुद्रा में निपजे, ये मोती बाबोसा रे काने, बधावो मारे आवियो। भाग्य भलाजी मारा माता जी रा, अठे हुआ विवाह केरा ठाठ ॥ बधावो मारे आवियो ॥१॥ ये मोती समुद्रा में निपजे, ये मोती काकोसा रे काने, बधावो मारे आवियो । भाग्य भलाजी मारी काकीजी रा, देवेला पेरावनी पेराय, बधावो मारे आवियो ।।२॥ ये मोती समुद्रां में निपजे, ये मोती माताजी रे काने, बधावो मारे आवियो, भाग्य अलाजी मारी मामी सा रा, देशी है मायरो पेराय, बधावो मारे आवियो ॥३॥ ये मोती समुद्रां में निपजे, ये मोती वीराजी काने, बधावो मारे आवियो, भाग्य भलाजी भारी भावज सा रा, देशी है सेवरो 101 Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पैराय, बधावो मारे आवियो ॥४॥ ये मोती समुद्रा में निपजे, ये मोती भूराजी रे काने, बधावो मारे आवियो, भाग्य भलाजी मारी भुआ सा रा, देशी है आरतडी कराय, बधावो मारी आवियो ॥५॥ ये मोती समुद्रां में निपजे, ये मोती बोंद राजा रे काने, परण पधारया मारे आंगणे, होसी है मंगलाचार, बधावो मारे आवियो ॥६॥ ॥ बना। (तर्ज-घटाघर बणियो गिरदी कोट में ।) सरदार बनासा, खादी मंगवादो मारे वासते । उमराव बनासा, रे जी रंगवादो मारें वासते ॥टर।। खीनखाप ने वायल मलमल, रेशम दाय न आवे । परमट्टो डक जाली माने, बिलकुल नहीं सुहावे हो। झीणां पहरां लाज गमावां, हासल कांई पावाँ । जल्दी-जल्दी कपड़ा फाटे, घाटो घणो उठावाँ हो ॥२॥ अंगरेजी फैशन ने छोडी, ली अंगरेजी धार । टुकड़ी माने आप रंगादो, है लँगी तूं प्यारजी ॥३॥ देशी पहरां खरचो कमती, है आ सादी चाल । बदनकांत भारत रा इनसं, हो जावे खुशहात हो ॥४॥ 102 Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ बनी ने सिवामन ॥ (त- --- लहरियो पंचरंगो सणियो-लहरियो राजशाही ।) बनी » सीख मान लीजे, सासरिया में जाय सबारो मन तू हरलीजे ॥टेर।। जद तूं जावे सासरिया में, करजे सद् व्यवहार । परमेश्वर जू जाण पति ने, करजे पूरो प्यार ॥१॥ सासु सुसरा ने मायत गिनजे, लोजे सेवा धार । मीठा बोल बोलजे बाई, मत करजे तकरार ॥२॥ देवराणी, जेठानीजी री, लीजे बातां मान । आलस तनसुं दूर राखजे, होवेला सन्मान ॥३॥ पति जिमाया पछे जीमणो, लीजे ओ व्रत धार । वेगी उठे रोज सबेरे, वही सुलक्षणी नार ॥४॥ बगर काम पर सेरी पर घर, अठी-उठी मत जाय । एड़ो नेम धारजे बाई, हरख उमंग मन लाय ॥५॥ कजियो, चुगली, पर निन्दा ने, चोरी दीजे त्याग । द्वेप भाव ने दूरी कीजे, घर में अनुराग ॥६॥ हिल-मिल कर घर वालों साथे, संप राखजे मान । दीन दुखी पर करुणा कीजे, जो चावे कल्याण ॥७॥ नार पदमणी प्रीतमजी सं, बांधे गाढ़ी प्रीत । 'धीरज' धर शुभ गीत गावजे, पाल पुरानी रीत ॥८॥ 103 Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इस विध दी सीख बनी ने, मिल सारो परिवार । जाण फायदो इनM उण भी, लीवी हृदय धार ॥९॥ ।। सरदार बनासा ।। (तर्ज- घण्टा घर बनियो गिरदो कोट में।) सरदार बनासा, चरखो मंगवादो मारे वास्ते । उमराव बनासा, रई मंगवादो मारे वास्ते ॥टेर।। चरखा लादो धणी चाव है, देवो रुई पिजाय । झीणो-झोणो तार काढ सुं, हरख-हरख मन लाय ॥१॥ कात-कात ने कोकडियाँ कर, घरे बनासा थान । सादी-खादी बापरियाँ सुं, घणो बदेला मान ॥२॥ 'कंचक, साडी, और ओढणों, घाघर घेर दार । देशी पहरों खादी में तो, करसाँ देश उद्धार ॥३॥ खाणों देशी पीणों देशी, 'देशी मारो अंग । देशी चाल ढाल भी देशी, साचो देश रो रंग ॥४॥ धोती कोट कमीज दुपट्टा, सब खादी के धारो। चाले घणा खरच पिण कमती, होवे देश सुधारो ॥५॥ कान लगाकर सुनो बालमा, घणा फायदा इणमें। . धनी-निर्धनी दुःखिया सुखिया, सुख पावे सब इनमें ॥६॥ टेम मिले नहीं झगड़ा करणे, ईश्वर प्रेम बढ़ावे । तन आरोग्य दिल हो ताजा, दुःख के दिन कटजावे ॥७॥ 104 Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आलसियाँ को काम दिरावे, निरनिया ने धन । धनवानों रो मद घटावे, चरखा माने धन ॥८॥ 'धीरज' घर बतलावू साहन, जो लादोला चरखा । मुख संपत अमृत री घर में, हो जावेला बरखा ॥९। बना लज. मोटः धीरे धीरे का, डरावना चित !) सो पर बारी बार हजारी बलाता अरजी मुनजो जी। खादी लादो लंगी लाशे, रेजी लादोजी टेर।। खादी रो रंग-रंगीली, आजादी करनार । बरबादी मेटे भारतरी, सादी रेजी दार ॥१॥ साठ कोड रो कपड़ो पियाजी, परदेशां सं आवे । वरसा वरसी देश माँय सं, द्रव्य खींच ले जावे ॥२॥ चरबो री चरचा सुणतो तो, खले कान रा डाटा। गोहत्या रो पाप मोटको, लागे जिणसं घाटा ॥३॥ खादी मांये घणी सादगी, दूर करे अभिमान । हृदय धर लो आप बनासा, कम खरचा रो ज्ञान ॥४॥ रेशम री तो बात न पूछो, हिंसा रो है गेह । कोडां री हत्या भारी, किकर धारो देह ॥५॥ खरचो घटिया देश सुधरया, आप अनीति छूटे । आमदानी थोड़ी खरचो ज्यादा, माहें लूटे ॥६॥ 105 Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिना काम किया सुं बनासा, कूण जगत में पूछे । खाली बैठे वाने ऊँदी-ऊँदी, कुबुद्धियाँ सूझे ॥७॥ इण कारण सं चरखो माने, वेगो लाय दिराको । गप्पा झगड़ा मिटे घरों घर, अरजी मान लिरावो ॥८. झीणो-झीणो तार कातसाँ, गाय-गाय शभ गीत । 'धीरज' धरने चरखो कातो, बढ़े देश सं प्रीत ।।९। * बना (तर्ज-काली कमली वाले तुमको लालो प्रणाम ।) बनडी जोवे वाटां बनसा आवो सही, बैठी झांके हाटां बनसा आवो सही टेर।। पूरी करली आप पढ़ाई, लगी कमाई हुई सगाई, बाने बैठन वेगा बनाता आवो। सही ॥१॥ कसरत करते डील बनायो, चेहरा ऊपर नूर सवायो, जाऊँ बलिहारी वारी बनासा आवो सही ॥२॥ बनडी ईश्वर सं वर मांगे, गौर वरण वर नजर न लागे, कालो डोरो बांधो बनासा आवो सही ॥३॥ उमावाँ में बनड़ी गेली, आप कदी खबरों नहीं मेली, ऊबी काग उड़ावे बनासा आवो सही ॥४॥ बनडी ने 'श्रीनाथ' सुहावे, 'धीरज' धरने दिवस बितावे, मन री रलियाँ पू ण बनासा आवो सही ॥५॥ 106 Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ विनोद से गीत || (तर्ज-- अंबाजी पाका मरवण नींबू जी पाका । ) आडो तो खोल ए बनडी आडो तो खोल, बारे ऊभा है थारा सायबा, ऊंघाली बनडी आढो तो खोल ||| तू तो सूती है बनडी खूंटी ने ताण, सीयाँ मरे ॥टेर ॥ है थारे सायंबा, ऊंघाली बनडी आडो तो खोल ॥१॥ सरमाँ मरे ने सायना मूँडने बोले, जाणे सुसरो जी सुनसी बोली || २ || मोटा घरारा छोरा लाजजी राखे, बूम आंछे नहीं पाडे || ३ || कूंटो खटकायो बनडी तोय न जागी, चूल्यो उतारण मनमें ठाणी ||४|| खटको सुनन्तां गोरी झटके सुं जागी, आडो खोले ने सायबा भेटया || ५ || बनडी तो बोली मारो पहलो कसूर, सायबा मुलकाये माफी दीनी ॥ ६ ॥ 'धीरज' धरे ने धीरे बोल्या श्रीनाथ चूके है मोटा-मोटा लोग ॥७॥ इति ॥ ॥ बना ॥ ( तर्ज - साहब भले विराजोजी ) में तो खादी पहरांजी माने वनासा लादो खादी पहराजी मलमल वायल दाय न आवे, छींटा सुं मन फाटो । चले घणो ने खरचो थोडो, पहरां कपडो काठो ॥१॥ 107 Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहरे कपड़ो झीणो, जिनसु लाज शरम सब खोवे, र पुरुषां रे मूंडा लामी, फेडो दुरगत होवे ॥२॥ गायां री चर्बी लागे है, हिंसा रो नहीं पार । पसीनारी खरी कमाई, स्यूं सेलो थे बाहर ॥३॥ साल अरबरो साल बनाता, बरा-बसी आवे ॥ भारत में निकमाई फैले, धान न पूरो पावे ॥४॥ इन खरचां रे कारण बनासा, बाला बिछवा काडो। किन विध सं निकमाई मांहे, भर पेट रो खाडो ॥५।। चरखो लादो सूत कातसा, घरे बनासां खादी। देशी खासा देशी पहरां, करां देश आबादी ।।६।। द्रव्य बचासां, गायां बचासां, भलो देश रो करसां । अब तो ज्ञान दियो गाँधीजी, देश भलाई करसां ॥७॥ शुभ गीतां में 'बदनकांत' तो गूंथे एडा गीत । देश हमारो बालो लागे, गाढ़ी बाँधो प्रीत ॥८॥ ॥बना ॥ (तर्ज- जियो बना जाइजो-जाइजो सब ही देश पूरब मत जावजो जी मारा राज) जियो बना आयजो-आयजो बनडी रे देश चार दिन पावणा जी मारा राज ॥टेर। जियो बना बनडी जोवे वाट झरोखे ऊभी ताकतीजी मारा राज ॥१॥ जियो बनडा-बनडी उडावे काग, फरूखे डावी आँखडी 108 Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 जी मारा राज || २ || जियो बना आया आया साथीडो रे साथ डेरा हरिया बाग में जो मारा राज ॥३॥ जियो बना जिमणिया तैयार, सालाजी चालया तेडवाजी मारा राज ||४|| जिमो बना ऐंठे न नाँखे लगार, नाणे साल बापरो जी माराराज || ५ || जियो बना दाय न फाटा आय, सुणे शुभ गीत ने जी मारा राज || ६ || जियो बना खेले न चोपड दाव, पोथ्यां पढे ज्ञान रो जी मारा राज ॥७॥ जियो बना पिये नहीं अंग्रेजी चाय, अरोगे कडिया दूध ने जो मारा राज | ८ || जियो बना 'धीरज' धर्म सुं प्रेम, बड़ो 'श्रीनाथ' ने मास राज ॥९॥ ॥ बना ॥ (तर्ज बना सडक सडक हुंय आइजो, अंजन सुं अलगा रहीजो की मारी रेल ने डिगावोला ) बना अमेरिका थे जाइजो, अकल री बातां थे लाडजो जो, मारा देश ने सिखावोला कांईजी ॥१ बना लंदन होता आइजो, देश प्रेम री बातां लाइजो जो, मारा देश ने जगावोला कांइजी ||२|| बना पेरिस होता आयजो, सफ़ाई री बातां लावजो जी, मारा देश ने सुधारोला कांइजी ||३|| 109 Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बना जर्मन होता आवजो, विज्ञान केरी बातां लावजो जी, मारा देश ने चलावोला कांइजी ॥४॥ बना जेनेवा होतः आवजो, विश्व शान्ति री बातां लावजो जी, गंगा प्रेम बहावोला कांइजी ॥५॥ बना जापान तो थे जावजो, हुन्नर री बातां लावजो जी, मारा देश ने बतावोला कांइजी ॥६॥ बना 'धीरज' धरता आवजो, श्रीनाथ न सुख पहचावजो जी, सेवा देश री बजावोला कांइजी ॥७॥ || बना ॥ (तर्ज-आंबाजी पाक्या मरवण नीबू जो दाक्या) मंडे तो बोलो बनासा मंडे तो बोलो, खोलो रसना ने अमृत घोलो, बनासा मांसु मंडे तो बोलो ॥टेर॥ थे तो दाडम ने में तो दाख बनासा, एकण क्यारी में भेला ऊग्या ॥ बनासा मांसुं मूंडे । थे तो राजा ने तो राणी बनासा, एकण चवरी में भेला परप्या । बनासा मांसं मूंडे तो बोलो ॥२॥ थे तो शक्ति ने में तो रूप बनासा ॥ एकण गाड़ी में भोला जोत्या ।।३।। 110 Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ये तो मोती ने में तो लाल बनासा, एकण नथडी में भेला ओप्या ॥४॥ थे तो बाज ने में तो लूम्ब बनासा । एकण डोरा में भेला बांध्या ॥५॥ थे तो चावल ने में तो दाल बनासा । एकण भांणां, में तो भेला पुरस्या ॥६॥ थे तो ज्योति ने में तो दिवलो बनासा । एकण पडवा में भेला प्रगट्या ॥७॥ 'धीरज' धरने इतरे मुलक्या 'श्रीनाथ' । बोलया सायबा ने हिवडा हुलस्या ॥८॥ । बूढो बनडो॥ (तर्ज-ओ ताराचन्दजी नीव गमारण वेरण आई हांजी ऊनो जो पानी सर-सर वाणी मोतीडे) क्यों बूढा बनडा, धोलां में धूल नकाई ॥टेर॥ हां जो आखां तो ऊंडी हाले है मूंडी, हुंडी बटाई कीनी भंडीरा ॥क्यों॥१॥ हां जी देखे जी बाला, जाने तन ज्वाला, केश रंगाया झूठा कालारा ॥२॥ हाँ जी लकडा ये जाणे, पडिया मसाणे, मन में विचार न आणेरा॥३॥ हां जी बनी तो ठोठी, पोती सुं छोटी, देखत लागे नग खोटी रा ॥४॥ हां जो दुखाँ री घाटी, रीतां सुं नाटी Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कण पढ़ाई ऊंदी पाटीरा ॥५॥ हां जी मिनक जाली करे दलाली, बेटी बेचन रीता चाली रा ॥६॥ हां जी आया जी पंच, कियो प्रपंच, बातां बनाई कोरी टंचरा ॥७॥ हां जी लाडूजी खावे, देश डुबावे, विधवा री गिनती बढावे रा ॥८॥ हां जी छोरी डुबोई, विधवा जो होई, बात न पूछे उणरी कोई रा ॥९॥ हां जी साची जो बात, कही श्रीनाथ, पाप पंचों रे सारो माथरा ॥१०॥ इति ।। लडकी की पुकार (तर्ज : मेरे बाप ने मुझको दाल पगे परणाया) मेरे बाप ने रे मुझको बड़े से परणाया। सद सखियां मेरी करे मसखरी, दापोती काही ॥१॥ मैं टाबर रमणे सं राजी, घर में चैन न पाऊं। ओ बलियो बारे जावे, मैं भी किरणी वाहूँ ।।२।। बारे निकली पडदा मांसू, सानी बूढो आयो। पाई हामशाने पाछो लेग्यो, घर में यूं बरडायो ॥३॥ धोल रहे धूल पडे हैं, जो तूं बाहर जावे । लोग हँसे न मोसो बोले, सासू सहो न जावे ॥४॥ उमर मेरी मोटी हो गई, जोडी विन नहीं भावे। सुख मारे श्रीनाथ करेला, धीरज धर हरखावे ॥५॥ 112 Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ बना ॥ (देसी : सारी-सारी रात तेरी याद सताये) सुन-सुन बनी तेरी शादी रचायी, शादी रचायी तेरी व्याह रचाया रे ॥ सुन-सुन बनी तेरी शादी रचायो । टेर ॥ पिताजी ने गोद खिलाया, माताजी ने दूध पिलाया, प्रीत पुरानी अब तो हुई परायी ॥१॥ मामाजी ने मायरो भराया, मामाजी ने चून्दडी ओढाई प्रीत पुरानी अब तो हुई परायी ॥२॥ बहनोई सा ने बंदोली कढाई, बेनडजी ने तुफा उतारे, प्रीत पुरानी अब तो हुई परायी । सुन-सुन बनी तेरी शादी रचायो ॥३॥ फुफाजी ने बरात कढाई, भुवाजी ने आरती सजायी, प्रीत पुरानी अब तो हुई रे परायी । सुन-सुन बनी तेरी शादी रचायी ।।४॥ || बना ॥ (तर्ज-जरा सामने तो आओ छलिये) जरा सुनो ए मेरी लाड़ली, जब जाओगी तुम ससुराल में, सासु ननन्दों का कहना मानना, यही तेरे जीवन का सार है ॥टेर॥ सासु जब तुम्हे काम बतावे, उसे कभी न तुम टालो, छोटे देवर जी को भाई समझ कर, लिखना-पढ़ना तुम सिखाओ। विनयवती हम 113 Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहलावोगी, जब राखोगी लाज तुम आंख में ॥१॥ जेठानी जो बड़ी है तुमसे, उससे कभी न तुम लडना। देवरानी को बहन समझ कर, उससे कभी न जोर करना । सुशीला लज्जावती कहलावोगी, जब-जब राखोगी लाज तुम आँख में ॥२॥ सामायिक पडिक्कमणो आदि, धर्म क्रिया को मति भूलना, परलोक जाते जीव साथे, धर्मकरणी एक चलता है, यश कीति पाओगी जग में, जब राखोगी लाज तुम आंख में ॥इति।। || गणधर ॥ ॥ विनायक ।। मारा रिद्धि-सिद्धि रा दातार विनायक गौतम प्यारे रे ।।टेर। वसुभूति ना नन्दनजी का, पृथ्वीदेवी जाया रे । वीरप्रभु ना शिष्य पाटवी, कंचनवर्णी काया रे । जिन धर्म दुलारा रे ॥१॥ ज्ञान खजाना पूर्ण भरिया, विघ्न मिटावन हारा रे । दल, जंगल, दुश्मन मद गाले, टाले भय जो सारा रे, भक्तजनों की रखवारा ॥२॥ कलियुग में निर्धन राजादि, जपिया मंगल माल रे। चिन्तामणि सम चिन्ता चूरे, काटे कर्म का जाला रे। दयाल है दातार रे ॥३॥ आवो विनायक 114 Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काज सुधारो, में हूँ भक्त तुम्हारा रे, गादी नीचे रख दो जो अवगुण है मारा रे। प्यारा प्रभु हार हियारा रे ।।४॥ आप सरीखा देव जगत में और नजर नहीं आया रे । बुद्धमल राय प्रसादे, मुनि मिश्रीमल गायर रे, दीजो वर जय-जय कार रे॥१५॥ इति ।। । विरद बडी का गीत ॥ (सर्ज-ऐसी बिरदयां में बधाने लेस्यों वर्द्ध मान स्वामी जिन शासन शृंगारो, सोलह मासा रो एक सोनयो जानो, एक दिन मायें एक कोड आठ लाखो, इसडो तो दान दियो वर्द्धमानो, उन दिनां . सु आ वृद्ध बढी कहलायो, बना-बनी दान-हाथ भर-भर दोजो। धर्म, जात, समाज रो भलो थे कीजो, उदार भावना विवाह वाला मन राखो। कंजूसपना सब त्याग करावो, ऐसी-ऐसी विरदयां माता ले जो बधाई, शद्ध सोना सुं बधाई ने लीजो, उजला मोतियां सु बधाय ने लीजो। खादी रा कपडा सुं बधाय ने लीजो, केसरिया कसुम्बल सुं बधायने लीजो । दान दिरावेला लाडलडारा बाबोसा, हर्ष मनावेला लाडलडीरा माता। जय विजय होयजो बर्द्धमान जिनन्द ।। 115 Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || नेतो ॥ (विरद बड़ी पर निमन्त्रण) (तर्ज- थाने निवतूं थाने निवतूं पिताजी रा पूत ) थाने निवतं, थाने निवतूं, पिताजी रा पूत हो, वीरासा पधारो मारी विरदडोजी || आछी विरयां, भली विरदद्यां आवनो रो जोग हो, परिवार ने लेने पधारजो जी || भले आसां, भले आसां, दिन दस चार हो, ये तो मायरो पेराय जस लेवजोजी ॥ थाने निवतं, थाने निवतूं बहनोइयां रोसाथे हो, फुफाजी पधारो मारी विरदडोजी || आछो विरदयां, भली विरदयां, आवनो रो जोग हो । मैं तो आयने बंदोली कढावसां जी ॥ जनता सुं जीमो, मौन कर जोमो, ऐंटो मत नाखो हो । इनमें दोष घणो लागतो जी ॥ ऐंटो नहीं नाखां, मीठो खावां, थाली खोल पीवसां जी ॥ || लक्ष्मी का गीत || (तर्ज- चाले लक्ष्मी जिन घर जावां जिन घर ) लक्ष्मी चंचल स्थिर नहीं रेवे, रिद्धि-सिद्धि नहीं आवे || पुन्यवंत घर लक्ष्मीजी आवे, रिद्धि-सिद्धि रा भण्डार रे || लक्ष्मी पायने दान जो दीजो, दुःखी जीवां रो करुणा लावजो ॥ दान तो दोजो ने नाम बढायजो, ब्याव में सुजस लीजो || बना-बनी रे हाथ पिताजी, 116 Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घणो जो दान दिरावजो जी॥ गुल बटायजो ने साधर्मों ने साता उपजाय जो, संघ री सेवा करावजो ॥ मातापिता तो बहु हरषावे, बना-बनी रे मंगल गावता ।। ॥ चाक-कलश-बारी और उकरडी का गीत ॥ || चाक मूंदना का गीत ॥ ( तर्ज-रंगाय दो नेमीश्वर बून्दडजी ) बायां तो सब मिल चालतीजी, सजिया है सोले सिनंगार तो । चाक पूजन ने बायां सांचरीजी ॥१॥ चाक पूजन ने बायां चालतीजी, गावे है मंगल गान के । चाक पूजन ने बायां नीसरीजी ॥२॥ चाक री पूजा वे इम करेजी, इनरा थे जानो है भाव के । चाक पूजन ने बायां नीसरीजी ॥३॥ रथ ने दोई चक्र कह्याजी, जदी तो चालेला रथ तो, एक चक्र सुं रथ नहीं चाले जी। चाक पूजन ने बायां नीसरीजी ।।४।। इन विध गृहस्थ आश्रम रूपी रथ ने जी, स्त्री पुरुष रूपी चक्र कह्याजी । चाक पूजन ने बायां नीसरीजी ॥५॥ बनाबनी री जोडी सरीखी मिलेजी, तो ही गृहस्थाश्रम रूपी रथ चालसी जी, नहीं तर दुःख ये पावसी जी। चाक पूजन ने बायां नीसरीजी ॥६॥ ऋषभदेव प्रथम स्थापियाजी, प्रजापति कुंभकार जात के। कलश बधावन बायां 117 Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नौसरीजी ॥७॥ हाथी के होदे पर बैठने जी, कलश गडयो प्रभु हाथी सुंजी, वरत्या है जय-जयकार के। कलश बधावन बायां नीसरोजी ॥८॥ इन कारण कुंभकार ने तिलक करेजी, पेचो तो देवे बंधाय के । कलश बधावन बायां नोसरीजी ॥९॥ नव खंडियो वेश घर लावियाजी, बना-बनी परणीजे जान के । कलश बधावन बायां नोसरीजी॥१०॥ भारी बधावनो तीसरो जी, इन मा मोटो छ ज्ञान के। भारी बधावन बायां नीसरीजी॥११॥ एक-एक लकड़ी जंगल रेवेजी, उनरी तो शोभा नहीं थाय के। भारी बधावन बायां नीसरी जी ॥१२॥ सगली लकडी एकटी होवेजी, उनरी तो जोभा घणी थाय के। भारी बधावन बायां नीसरीजी ॥१३॥ तोड सके नहीं कोई जी, नहीं लागे दुष्मन रो डाव के । भारी बधावन बायां नीसरीजी ॥१४॥ इम बना-बनी मिल रेवजोजी। सगली सिखावण मिल इम देवतीजी । भारी बधावन बायां नीसरीजी ॥१५॥ इन कारण तिलक कुंकु तणोजी, पेचो तो देवे बंधाय के । भारी बधावन बायां नीसरीजी ॥१६॥ खाती धर्म रो वीर छ जी, बना-बनी ने ज्ञान सीखावजो जी। भारी बधावन बांया नीसरीजी ॥१७॥ संप राखो बारी समो जी, कुटुम्ब ने लेयजो निभाय के। भारी बधावन बायां 118 Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नीसरीजी ॥१८॥ शोभा तो थानी होसी घणीजी, पावोला रिद्धि-सिद्धि अपार के। भारी बधावन बायां नीसरीजी ॥१९॥ उकरडी पूजन चौथो कह्योजी, इन मायें गुण अपार के । उकरडी पूजन बायां नीसरीजी ॥२०॥ कचरा तो डाले इन मायने जी, कमल ऊगे इन मांय के । उकरडी पूजन बायां नीसरीजी ॥२१॥ हार गाड बायां आवती जी, बना-बनी लावे छे काढ़ के । उकरडी पूजन बायां नीसरीजी ॥२२॥ उकरडी ज्यू थे बन जावजोजी, समता राखो मन मायके । उकरडी पूजन बायां नीसरी जी ॥२३॥ हार ज्यू हृदय में बैठसोजी, कमल सुगंध ज्यं यश फैलसीजी । उकरडी पूजन बायां नीसरीजी ॥२४॥ ऐसी सिखावण सगली देवतीजी, बना-बनी लेवे हृदय धार के। उकरडी पूजन बायां नीसरी जी ॥५॥ _ विनायक (तर्ज-जब तुम्हीं चले परदेश) माता पृथ्वी के नन्द, करो आनन्द, सदा सुख पावो . जो गौतम गणपति ध्यावो टेर।। जय-जय गणेश, जय गण नायक, जय-जय गणधर जय शिवदायक, लाखों नर-नारी देव-देवी गुण गावे जो गौतम गणपति ध्यावो ॥१॥ . .. . 19 Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुर्भाग्य मिटे, दारिद्र नशे, सोभाग्य बढ़े संपत्ति विलसे, नपुर रणकाती राणी लक्ष्मी आवे ॥२॥ हे विघ्न-विनाशक जगनामी, लब्धि संपन्न निधि स्वामी, आशा तरू में नव-नव पल्लव प्रगटावे॥३॥ दुर्मतिवारक संकट हरता, शरणागत की पालनकर्ता शत्रु भी मित्र बन सादर शीश नमावे ॥४॥ केवलमुनि मंगलाचार. कहे, दे ऋद्धि-सिद्धि भण्डार भरे, मकरंद गंध सा दिगदि गंध यश छावे ॥५॥ ॥ बाजोट ॥ (तर्ज- समुदां रे पेले चन्दनयारो रूखो ।) शहरां रे मांहि ने खाती रो दुकान, खाती री दुकान,गड लायारे खाती बाजोटियो जी, गड़ लाय रे खाती थांभ तोरण जी ॥१॥ चन्दनियाँ रे पाटा पर बना-बनी बैठे, पंडित बुलावो भणिया गुणियाजी ॥२॥ नवकार सुनावो ने मंगलिक सुनावे, जीवन में, मंगल वरतजो जी ॥३॥ चारों दिशा मांय तणी ए तणाओ, ऊपर रालो आ चुन्दडी जी ॥४॥ 120 Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ थांभ का गीत ॥ (तर्ज-रंगायजो नेमीश्वर चुम्दगी को ।) पेलो तो थांभ रतना जडियोजी, ऊपर कलश सुजान के ॥ थांभ सुहावनोमी ॥१॥ चार तीर माहें रेवमोजी, थांभ जैसो मजबूत के ॥थांभ सुहावनोजी॥२॥ डिगाया डिगजो मतीजी, धर्मसेवा में भरपूर के ॥ थांभ सुहावनोजी ॥३॥ कंकण बंधन शुभ कह्यो, जी डोरो है लाल सुरंग के ॥ यांभ सुहावनोजी ॥४॥ तोडिया तो टूटे नहीं जी, इम राखजो प्रेम की प्रीत तो ॥ थांभ सुहावनोजी ॥५॥ लाख री बोंठी लक्ष राखजोजी, संसार कुटुम्ब रे मांय के ॥ शांभ सुहावनोमी ॥६॥ लोढारी बीठी ज्यूं मजबूत रहियोजी, तो निभेला संसार के ॥ थांभ सुहावनोजी ॥७॥ दोइ बातां में नहीं सेठी रहोजी, होवेला कौडी सम इज्जत ॥ थांभ सुहावनोजी ॥८॥ बना-बनी शिक्षा हृदय धारजो जी, कांकण डोरा रो यही उपदेश के ॥ थांभ सुहावनोजी ॥९॥ ॥ तेल चढाते वक्त गाने का गीत ॥ (तर्ज-पन्नालालजी पूछे बालमिया, थारे चून्दड़ चीगट किम रे हुई। ) पिताजी पूछे माताजी ने, थारे चंदड चीगट किम रे हुई । बालक बनडा ने तेल चढावतडा॥ 121 Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बोंदराजा ने तेल चढावतडा ॥ मारे चुन्दड चीगट इम रे हुई । ये तो तेल चढाय जस लेयजो खरी, आ तो तेल री महिमा जगमें खरी, तेल उघाडो मति रखजो खरी जीवां री रक्षा करजो खरी, बना-बनडी रा आनन्द मनावो खरी॥ ॥ लगदड का गीत ॥ (तर्ज-लगदड लो जो ।) लगदड लो मारा बालक बना लगदडलोजी, जिम थे लखपति होइजोजी ॥१॥ धाना लो मारा अन्तरलाडा धाना लो जी, जिम थे धनवंता होइजो जी ॥२॥ जीरो लो मारा अन्तर लाडा जीरो लोजी, जिम थे चिरंजीव रहिजो ॥३॥ दान देवो अन्तरलाडी दान देवोजी, जिम थे दानेश्वरी होयजोजी ॥४॥ तप करो अन्तरलाडा तप करो, तपस्वी थे होयजोजी ॥५॥ शिक्षा लेवो अन्तरलाडा शिक्षा लेवो, जिम थे जगमें शीलवंता होयजोजी ॥६॥ 122 Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सांजी का गीत-संध्या के समय बोलने का गीत ॥ (तर्ज-कपूरा रा लिया पय सार के ।) कपूर सरिखो ये तो ऊजलोजी, सांझ समय रे मांय के, सभी सांझ दियो बलेजी ॥ परणीजे सा पिताजी रा पूत के, जहाँ घर मंगल वरतियाजी ॥ परणीजे सा काकाजी री धीव, जहाँ घर हर्ष बधावनाजी ॥ दीवा सरिखा होयजो बौंद राजा तो, कुल में अंधारो मेटजोजी ॥ दीवा ज्यूं दीपो कुल मांय के, जय-जयकार करावजोजी ॥ ॥ वारणा ॥ (तर्ज-जी माने मेलां चढंता ।) .. जी माने मेलां चढंता, कांकरो कुण राल्योजी राज, जी उज्जवल दंति रा बनासा, गाडो हेत लगायोजी राज ॥१॥ जी माने भोजन करता ऐंटो मति नाकजो जी राज, जी उज्जवल दंति रा बनासा, गाडो हेत लगायो जी राज ॥२॥ जी माने पाणी पीवंता, अनछान्यो मति पायजो जी राज, जी उज्जवल दंति रा बनासा, गाडो हेत लगायो जी राज ॥३॥ जी माने कपडा पेरन्ता खादी रातो पेरायमोजी राज, जी उज्जवल दंति रा बनासा गाडो हेत लगायो जी राज ॥४॥ जी माने 123 Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विनय करता सेवा धर्म सिखावोजी राज, जी माने रेशम रा त्याग करायजो जो राज, जी उज्जवल दंति रा बनासा, गाडी त लगायो जी राज ॥५॥ || झाला || (तर्ज - झाला क्ष ला कांई करो जी । ) -- झाला झाला कांई करो जीवो राज बनासा, झाला परणन रात ॥ १ ॥ शुभ मोरत में परणजो जीवी राज बनासा, मनमें गुणो नवकार ||२|| धर्म सरिखो मित्र नहीं ओं राज बनासा, सदा राखो तुम पास ॥ ३॥ बनडी ने दुःख मत देवजो जीओ राज बनासा, मत सिनगार है जीओ बनडी कु मीठी-मीठी बोली लड़जो कोई वार ॥ ४ ॥ राज बनास, तार देवे संसार ॥ ५ ॥ राखजो जी ओ राज बनसा, मीठी देवो जिमाय ||६|| परनारी मत निरखजो जोओ राज बनासा, शोभा होसी संसार ||७|| ॥ पेमो ॥ || विनोदिक गीत || ( तर्ज - अरे पेमा दिवर जिठाणियां ) अरे पेमा दिवर जिठाणियां दिवर जिठाणियां, भेली जो रेसां, भेली जो रेसां, अरे पेमा इम रेसा अरे 124 Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पेमा इम रेसां॥१॥ अरे पेमा दिवर जिठाणिवां, दिवर जिठाणियाँ, झगडो न करसां, झगड़ो न करसा अरे पेमा मिल रेसां, अरे पेमा मिल रेसा ॥२॥ अरे पेमा दिवर जिठाणियां, घट्टी जो पीसां, घट्टी जो पीसां, अरे पेमा इम पीसा, अरे पेमा इम पीसां, अरे पेमा मिशन को आटो नहीं खासां ॥३॥ अरे पेमा दिवर जिठाणियां, दिवर जिठाणियां, बिलोनोजी करसां, बिलोनोजी करसां, डालडारे घी नहीं खासां, अरे पेमा नहीं खासां ॥४॥ अरे पेमा दिवर जिठाणिया, दिवर-जिठाणियां, धान जो चुगसां, धान जो चुगसां, अरे पेमा लट्टां इल्लियां तावडे नहीं डालां, अरे पेमा नहीं डाला ।।५॥ अरे पेमा दिवर-जिठाणियां २ माथो जी धोवां, माथो जी धोवां, जवां-लिखां नहीं मारां, अरे पेमा नहीं मारां ॥६॥ अरे पेमा दिवर-जिठाणियां, दिवर-जिठाणियां, खादी जो पेरां, रेशम नहीं पेरां, अरे पेमा नहीं पेरां ॥७॥ अरे पेमा दिवर जिठाणियां, दिधर-जिठाणियां पानी जो लावाँ, अनछान्या नहीं लावां, अनछान्या नहीं लावां, जीवां री जतन करसां, अरे पेमा जीवां री जतन करसां ॥८॥ अरे पेमा दिवर-जिठाणियां, विवरजिठाणियां भोजन करसां, भोजन करसां, ऐंठो नहीं नाकां, अरे पेमा नहीं नाका ॥९॥ अरे पेमा दिवर 125 Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिठाणियां, दिवर-जिठाणियां, संप में रेसा, संप में रेसां, हिल-मिल रेसां, हिल-मिल रेसां, आनन्द करसां, अरे पेमा आनन्द करसां ॥१०॥ ॥ नाच का गीत ॥ (तर्ज- रुणझुणियो ले) ढोल ऊपर मत नाचजो सारा बाईजी, कांई जिन थी जावे लाज हो भोजाई जी टेर। मोटी जात भारत तणी मारा बाईजी, कांई मुलकों में प्रसिद्ध हो भोजाई जी ॥१॥ खानदान. कुल आपनो मारा बाईजी, कांई दुनियां करे बखाण हो भोजाईजी ।।२।। ढोल बजे मैदान में मारा बाईजी, कांई रण के बाजे थाल हो भोजाई जी ॥३॥ छत्तीस कौम देखन मिले मारा बाई जी, कांई निरखे थारो नाच हो भोजाई जी ॥४॥ पेट उघडसी नाचतां मारा बाईजी, कांई झाला देतां हाथ हो भोजाईजी ॥५॥ घेरदार घूमे घाघरो मारा बाईजी, कांई कमर लचका खाय हो भोजाईजी ॥६॥ ढोली करे थांरी मसकरी, मारा बाईजी कांई डाको देवे चकाय हो भोजाई जी॥७॥ नाचन थाने कोई केवे मारा बाईजी, कोई आवे रीस अपार हो भोजाईजी॥८॥चवडे नाचो ढोल पर मारा बाईनी, नहीं आवे लाज लगार हो भोजाई जी ॥९॥ पहली पातरियां नाचती मारा बाई 126 Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जी, उन जागा नाचो आप हो भोजाई जो ॥१०॥ पुरुष देखे परवारिया मारा बाईजी, कांई व्यभिचारी रुलिवार हो भोजाई जी ||११|| ये भोला समझो नहीं मारा बाईजी, क्युं चबड़े नाचो आप हो भोजाई जी || १२ || पैसा री कीमत करे मारा बाईजी, कांई देवे दलालों रे हाथ हो भोजाईजी || १३ || भणिया-गुणिया हो नहीं मारा बाईजी, थे जागो धोलो दूध हो भोजाई जी || १४ || पिप जहर भरयो इण नाच में मारा बाईजी, ।। है खरी-खरी आ बात हो भोजाईजी || १५|| सीख हमारी मानजो मारा बाईजी, कांई लेलो, सोगन आज हो भोजाईजी ||१६|| नाच कला तिरिया तणी मारा बाईजी, जो राखणी चाहो आप हो भोजाई जी ।। १७ ।। पति परमेश्वर आगले मारा बाईजी, कांई नाचो भक्ति सेत हो भोजाई जी || १८ || 'श्रीनाथ' अब ढोल पर मत नाचोजी, कांई शुभगीतां री ओर चित्त ने राचो जी ।। १९ ।। || आरती ॥ ( तर्ज - तूं तो कई बाई भुआ आरती ) बन्दोली आई बाबासा री पोल, जटे ऊंटा तो पाट बंठनोजी ॥ जठे बैठे जठे बैठे बाबासा रा पूत, थे तो करो बाई भुआ आरतीजी ।। यानी आरती में रुपया 127 Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांच पचास, मोरां तो डाली डेढ़ सौ जी ।। बाई देसां ए सहस्र पचास, जामन री जायो बेनडी जी ॥ बाई मिलसी ए माने सब परिवार, जामन-जायी न मिलेजी॥ वीरा आंसू वीरा आंसू ओ भतीजा-भतीजी रे व्याव, मैं तो हरष-हरष करसुं आरतीजी॥ बहन भाई, बहन भाई राखजो प्रेम, दुनियां में ओ सुजस लेवजोजी ॥ ।। माया स्थापने का गीत ।। तर्ज --बैठो माया, बैठो माया ये गुल धान्या) माया तो भाता री प्रीति कहलावे, बना-बनी रो जीवन सफल बनावे ॥ बना-बनी रो जीवन उत्तम बनावे ॥१॥ पिताजी तो माया री जुगत बतावे, माता जी तो लुल-लुल पाय जो लागे ॥२॥ आठ प्रवचन दया माता र जानो, दया धर्म सुं जीव सुख पावे ॥३॥ बना-बनी दया माता रे चरणे शीश नमावे, गुण तो गावे न आनन्द पावे ॥४॥ धत धारा ज्यं धैर्यवंत होइजो, ने धर्म दिपायजो ॥५॥ ॥ विरथाल का गीत ।। (तर्ज-बो माया उठो माया ये गुल धान्यां) चार बायां मिल थाल परोसे, बना-बनी ने भोजन करावे, विरथाल नाम जगमें कहलावे ॥१॥ ऐंटों मती 128 Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाकजो, जतना सं खावो । भेला करीने घर में मत राखजो, लीलन फुलन सुं कर्म बंधावे ॥२॥ दान देई ने सुजस लोजो, थाल भर-भर साधर्मी ने दीजो ॥३॥ अनाथ दुखीयाने साता उपजाइयजो शुभ करणी सं बना-बनी सुख पावे ॥४॥ विरथाल का यह भाव सुनायो, जय-जयकार आनन्द वरतावो ॥५॥ । माहेग रो गीत ।। (र्ज -- जीयो बना जाइजो जाइजो सब ही देश पूरब मत जावजोजी) जियो वीरा घर में नागर बेल • आंगण आंवो मोरियो जी वेगा आव ।।टेर।। जियो वीरा घर मांहे विरद है दोय, कागद लिख मेलियाजी वेगा आव ।।११ जियो वीरा थांरो घर समद्रां पार, उडाऊं ऊबी काग ने जी वेगा आव ॥२॥ जियो वीरा क्यूं करी इतरी जेज, देवर मोसा बोलसीजी वेगा आव ॥३॥ जियो वीरा मिलसी सघलो साथ, जामण जायो कद मिलेजी वेगा आव ॥४॥ जियो वीरा पानी गई रे तालाब, पाल चढ़ झांकती जी वेगा आव ।।५।। 129 Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जियो वीरा झीणी-झीणी उडेरे गुलाल, घोड़े चढ़ आवियाजी वेगा आव ॥६॥ जियो वीरा सोना रो सूरज आज, लारे भावज लावियाजी वेगा आव ॥७॥ जियो वीरा डेरा हरिया बाग, दिराया कंथ खंत सुं जी वेगा आव ॥८॥ जियो वोरा जितरी घर री रीत, माहेरा उतरो मांडजोजी वेगा आव ॥९॥ जियो वीरा लियां दियां राजी ड्रम, में तो भूखा मोहराजी वेगा आव ॥१०॥ जियो वीरा एकज मारी मांग, खादी-सादी लावजो जी वेगा आव ॥११॥ जियो वीरा इन अवसर पर आय, दिपावो मारा विरदनेजी वेगा आव ॥१२॥ जियो वीरा आरी आ आशीश, अमर मोलयो चून्दडी जी वेगा आव ॥१३॥ जियो वीरा धीरज' धर श्रीनाथ, बखाण्यो थारो माहेरो जी वेगा आव ॥१४।। 130 Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ माहेरा रो गीत ॥ (तर्ज - बरसो मारा काला बादल बरसो ।) बरसो पिताजी रा भईसा आवेला थांरी जी ।। खोलो तिजोरिया ने पेटियाँ काढो रुपैयाजी ।। पंचां में तिलक कढाओ चुन्दडी ओढावजोजी ।। देवो मन्ने सोना ने चाँदी, हीरा ने पन्नाजी।। मोती माणक ने पन्ना, गेहणा ने कापड़ा जी ।। सासु सुसराजी ने देयजो, देवर जेठाणियाँ ने जी ।। ननंद ननदोई ने दीजो, श्री संघ साधर्मो ने जी ।। देवो मोरा ने रूपिया, जल ज्यूं बरसजोजी ।। एक मालारा जाया, अन्तर मत राखजोजी ।। दुनिया में सुजस लेयजोजी, दान खूब देयजोजी ।। धन्य थांनी माता जाया पुत्र गुणवंता जी ।। बरसो मारा काला बादल बरसो सवैयाजी ।। ॥ नकाशी का गीत ॥ त ----केसरियो लुल-लुल सामो जोवे ।) बनडा ने मामाजी कोजलियो पेरावे, शद्ध तो खादी रा कपड़ा पेरावे ।। केसरिया पेचो माथे बंधावे, कसुम्बल जामो तन पर पेरावे ॥ बनडा रे बाबासा मोड़ बंधावे, पेले मुकुट अब मोड जी जानो ॥ बनडा 131 Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रा काकासा जान सजावे, जान सजावे न सुजस लेवे ॥ बनडा रा बहनोई घोडी सिनगारे, घोडी सिनगारे न मारग रोके ॥ बनडा री माताजी तिलक करावे, तिलक करावे ने दूध पिलावे ॥ दूध पीने जायजो रे जाया, परणीज ने वेगा आयजो ॥ बनडा रे काकीसा चावल चेडे, चावल चेडे ने हिम्मत बँधावे ॥ बनडा री बेनड आरती करे, आरती तो करे ने वीरा ने बधावे ॥ बनडा रा वीरो सा बाजा मंगावे, बाजा मंगावे ने हर्ष मनावे ॥ केसरियो लुल-लुल सामो जोवे, जान मारे सब परिवार साथ में आवे, साथ में आवे न सुजस लेवे ॥ । तोरण पर बीन्द जब आते है तब गाने का गीत ॥ (तर्ज---कमली वाले ने ।) घोडे पर बैठी बहन सयानी, लण उतारे बनडे रो ॥ बलिहारी जाती भाई री, बहु मोद बढ़यो है मनडे रो ॥टेर। शुभ मुहूर्त में मंगलकारी, तैयारी सारी कर डारी । वेलासर वर घोडी निकल्यो, मुख नर बढयो है बनडे रो ॥१॥ निशान चले नौबत घुरे, अंग्रेजी बाजा बाज रहे। कोतल घोडों री लेण बनी, घणो ठाठ सज्यो है बनडे रो ॥२॥ है हूँस हूसोला बड़ 132 Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्यां, बण ठण ने आगे चाल रया ॥ सिगनार सजी सब जानणियां, मिल साथ कियो है बनडे रो ॥३॥ सरपेच कलंगी तुर्रा धज, मोती री लूंबक झूम गयी। झिलमिल-झिलमिल गहणा पलके, चलके तन सुन्दर बनडे रो ॥४॥ श्रीनाथ को बनडी धीरज से, गोखे से बैठी झांक रही। बनडी ने निरखण चुपके सं, ललचाय रयो चित्त बनडे रो ॥५॥ ॥ सभेला रो गीत ॥ (तर्ज - संभे ले री वेला मारी बनडी पोल परी उघ डेरे ।) उठो मारी बालक बनडी, कोलियो तो पेरो। धोला तो कपड़ा ए बनड़ी, शुद्ध खादी रा॥१॥ इसडा तो कोजलियो बनडी, मामी सा पेरावे । मामी सा पेरावे बनडी, मामो सा हर्षावे ॥२॥ उठो मारी बालक बनडी, चुडलोजी पेरो। इसडो तो चुडलो थारी माताजी पेरावे ॥ माताजी पेरावे ने पिताजी हरषावे ।। ३॥ उठो मारी बालक बनडी, बिछिया जो पेरो। . इसडा तो बिछिया थारी भोजाई पेरावे ॥ भोजाई जी पेरावे भाई रे मन भावे ॥४॥ 133 Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उठो मारा माताजी सजो सिनगार । बधावण री वेला माता, होय जो तैयार ॥५॥ कलश तो लीधो माता, बायां रे परिवार । तिलक तो कोनो ने चावल चेड्या ॥६॥ बनडा ने देखने हर्ष मनावे ।। उठो मारा पिताजी मिलनी करावो ॥७॥ हृदय सुं हृदय मिलायने मिलजो । ब्याई-ब्याई में अन्तर मत रखजो ॥८॥ प्रेम का झरणा तो आप बेवायजो । केसर कुंकुरा तिलक करायजो ॥९॥ अन्तर गुलाब जल छांटना नकायजो । गुलाल तो तन पर कोई मत डालो ॥१०॥ ऊंदी तो रीत आ जल्दी मिटाओ । शुभ वेला मांही आछी न लागे. ॥११॥ मेहलां रे माहि · बालक बनडी बैठी । "बनडा री वाट बालक बनडी जोती ॥१२॥ तोरण ऊपर बनडोजी आवे। बनडी तो देखने अति हरषावे ॥१३॥ 134 Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। बनडारा बधामणा ॥ (बींद तोरण पर आवे जद बोलने का गीत) (तर्ज--जिनमन का डंका आलम में बजवा दिया) देखण ने चालो मिल करके, तोरण पे बनडो आयो है, तोरण पै बनडो आयो है, साथिडो ने संग लायो है । १।। आ अबलक घोडी नीचे है, जिण रे पग नेवर बाजे हैं । बनडा री शोभा छाजे है । तोरण।।२॥ संग ढोल नगारा लाया है, सखिया ने मंगल गाया है। देखत मन हर्ष सवाया है ।तोरण।।२॥ वेवाईजी री हुशियारी है, जान बनाई हद भारी, स्वागत री करलो तैयारी ॥ तोरण॥३॥ ओ बनडो मनमें मलके है, तुरों सिर ऊपर झिलके है । कांई नूर लिलाडे पलके है ॥४॥ चुपके छिपके उठ धाई है, चढ़ बनी गोखडे आई है बनडे पर आख जमाई है ॥तोरण।।५।। श्रीनाथ ने धीरज धारी है. बनडी भी गई निहारी है। अब पूंखण की तैयारी है ॥६॥ ॥ जानियां का गीत ॥ (तर्ज--काणा कोड्या जानियां लाया देड) शाना दाना जानी लाया, शोभा घणी जानकी पिताजी ने साथे लाया, सत्य जयकार की ॥१।। काका 135 Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जी ने साथ लाया, दान दिरावसी । वीराजी ने साथ लाया, होसी मंगल कारजी ॥२॥ रातारा मत जीमो जान्या, शोभा नहीं आपकी। दिनरा तो जीमो, शोभा होसी आपकी ॥३॥ तोरण की रीत चालो नेमिनाथ भगवान थी। अभयदान तो देवो ब्याई, जीव दया है मोट की ॥४॥ अभयदान तोरण पर देवो, रक्षा करो पशु पक्षी की, पशु पक्षी रक्षा करने, नाम बढाओ महावीर की ॥ ॥ जान का स्वागत ।। (तजं - - सज्जन आया मारे आंगण) सज्जन आया मारे आंगणे, बहुत दिनासु वाट जोवता रे। कद आसी सज्जन जान, सज्जन मारे आज आनन्द बधावना रे ॥१॥ सज्जन आया मारे आंगणे रे, ऊँचा तो पाट बिठाय ॥२॥ वस्त्र माला पेराव सां रे, कुंकुरा तिलक लिलाड ।। ३॥ रतन सरीखी कन्या देवसां रे, कन्या घणी सुखमाल ॥४। मैं जान्या जिम जानजो रे, कन्या ने सोरी राखजो, मारी छे प्राण आधार ॥५॥ आपरे खोलां में देवसां रे, राखजो प्राण समान ॥६॥ 136 Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ पणं का गीत || ( तर्ज पूँखणियाँ पूखताए लादो ए नवसर हार ) पूँखण चालो सखियां मिलने, बनडो ऊबो द्वार || १ || गुदलक सावा साजणा, कांई करिये न जेज लगार ||२|| बनडो ऊबो वाट है जोवे, वेगी हो तैयार || ३ || चंदडी ओढो नाक में बाली, पहरो नवसर हार ||४|| कुंकु चावल सामग्री सुं, भरो रुपारो थाल ॥५॥ . झिलमिल आरती हाथ में लेवो, जलदी चालो बार ॥ ६ ॥ मूसल हांसली जूडो तीर, पूंखणिया तैयार ॥७॥ पूँखण वाली चतुर स्यानी, बाबासा घर नार ॥ ८॥ तिलक करता चावल चेडत तणिक न लागे वार, समझण नाक मरोडला नाहीं, रीत करे आ गँवार || १०|| पूँखे जतनसुं पदमणी है, नाके छींके हुशियार || ११|| धीरज धर सासुजी लावे, वाने तो श्रीनाथ ॥ १२ ॥ ॥ ग्वणं का गीत || ( तर्ज - तोरण आय दडकिया जी गज कामनियाँ | ) तोरण बीन्दराजा पधारियाजी बधावना, कांई सासुजी देवे उपदेश बनाजी तिलक इम काढेजी बधावना || कुंकु जिम प्रीति राखजो बधावना, कांई चावल जिम उज्जवल भाव राखोजी बधावना | दही 137 Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिमावे ठंडो रेवजो बधावना, काई गल जिम मीठी जबान राखजो बधावना ।। नाक लेॐ बेटी देऊँजी काई बधावना थे राखो नाक री लाज काजल इम घालेजी बधावना ।। मर्यादा में जो तुम न रेवोजी बधावना, कांई कुल में कलंग लग जाय कंवर सा बधावना ॥ मर्यादा में चालजो बधावना, काई झिलमिल आरती सं बधाय ले जाऊँ परणासंबधावना ॥ मोत्यां ज्यूं मंगा घणोजी बधावना कांई हिवडा रे हार कुल दिपावजो बधावना । दही मथने से मक्खन निकलेजी कांई बधावना, कांई नरम-गरम खजो भाव होवे जसकीति बधावना ॥ तोरण बीन्द सराविया बधावना, कांई सारे बन्धु सब परिवार आनन्द तरताविया बधावना ॥ । हथलेवा और चंवरी का गीत ॥ (तर्ज---माया आपा मगल गाया भआ बाई रो नेग चुकाओ।) पंडितजी हथलेवो जुडावोजी । भुआजी हाथे मेंहदी रखावोजी चेडा बांधी ने चवरयां में जावेजी। मेंहदी रंग ज्यूं प्रेम बढाओजी । चरियां में चँवर दुलावोजी । जुबाडा बैलां रे गर्दन पर रेवेजी गाडी रो भार सगलो उठावेजी । जिम गृहस्थ रा भार उठावोजी । जोडी जुगत सुं हिल-मिल चालोजी । 138 Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चारो दिशा में खूटिया रुपावोजी । ज्ञान, दर्शन, चारित्र तप कहलावेजी । काचा-ताणा ज्यूं संसार है काचोजी । चवदहवाँ स्वप्न अग्नि री साक्षी देवेजी। पति-पत्नी विश्वासघात मत करजोजी । करो तो अग्नि ज्यं दुःख पासोजी । पंडित ने पास बैठावोजी । मंत्र नवकार लोगस्स सुनावोजी । शान्तिनाथ का स्तोत्र सुनावोजी । भक्तामर का श्लोक सुनावोजी । मंगलिक उत्तम श्रेष्ठ सुनावोजी । चार कलश माता-पिता लेने आवेजी। अगर, चन्दन, केसर ने कुंकुजी। आरती करने धन देवोजी। मामाजी आयने सेवरो दिरावेजी, वीराजी आयने सेवरो पेरावेजी । सात वचन बनी ने बना देवेजी । सात वचन बना ने बनी देवेजी, आगे तो ए फेरा फिरावेजी॥ ॥ चंवरी में पंडितजी वर-वधु को हित शिक्षण देना। नवा नगर सुं पंडित आयो, सियल सुभषण साथे लायो ॥१॥ गुणवंती गौरी ने देखकर, नीति रो मारग दिखायो ॥२॥ सत्य धर्म ने साचो पालो, ऐडो चोखो ज्ञान करायो, पती धर्म री पाति बांधी, समता रो सिर पेच लगायो चतुराई री चंपों पहरी, विनय धर्म री वाली लायो नित्य नियम रो दे तिमणियाँ, हिम्मत रो 139 Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गलहार धरायो ज्ञान ध्यान रा दिया गोखरू, गजरो शुभगुण रो पहरायो गुण रूपी गहना पहराई, मुणवंती रो नाम दिपायो सत्य शीलरा गीत गायने, मंगल में मंगल वरतायो लाज सहित संचरजो बहिनो, यूँ कह पंडित नगर सिधायो शुभ गीतां सु स्नेह सवायो, धीरजमल श्रीनाथ लगायो । ॥ पती से सात वचनों की माँग ।। (तर्ज - जब तुम्हों चले परदेश लगा कर ठेस । ) ले हाथ में मेरा हाथ, वचन दे सात, गृहिणी बनाना जीवन भर मुझे निभाना ॥टेर।। आज्ञा नहीं सिर्फ सलाह लेना, जो काम करो सो कह देना गृहस्थी को नया ऐसे पार लगाना ॥१॥ गलती हो तो शिक्षा देना, एकान्त में चाहे सो कहना। ननंद सखियों के आगे, न आँख दिखाना ॥२॥ मैं तुम पर ही दावा रखती, औरों से मांग नहीं सकती आवश्यक वस्तु मेरी सारी लाना ॥३॥ सुख दुःख या रोग राग रंग में, रखना सब समय मुझे ___ संगमें। छोड़ना हाथ मन अध बीच छे दिखाना ॥४॥ गैरों से प्रीति लगाना मत, परनारी के घर जाना मत । दुई को छोड़ कर प्रेम रंग वर्षाना ॥५॥ गंगा यमुना का मेल चले, इस मेल में जीवन खेल चले केवल कहे कर्तव्य पालनकर सुखपाना ॥६॥ 140 Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * पत्नी से सात वचन लेना ( तर्ज - जब तुम्ही चले परदेश लगा कर ठेस ) देता हूँ वचन मैं सात, रखूंगा साथ, कहा सो माना, पर तुम ये वचन निभाना । टेर ।। जो आज्ञा दूं पूरी करना, बिन हुक्म एक पग नहीं धरना । मत सुनी अनसुनी करके जिया जलाना ॥१॥ सहयोगिनी सहधर्मिणी रहना, जीवन में संग-संग बहना, मैं जाऊँ पूर्व तो तुम मत पश्चिम जाना || २ || मानस के अनावृत द्वार रहे, प्रीत की कल निर्झरणा बहे । दो तन एक मन होना न कुछ भी छिपाना ||३|| चाहे वह सुर हो सुरपति हो, चाहे नरपति या रतिपति हो । पर पुरुष समझना भाई न नैन मिलाना ॥४॥ जो मांगेगी दूंगा मैं वह सभी, तुमको यह ध्यान रहे फिर भी, जो मिलजावे उस ही में काम चलाना ॥५॥ संपत्ति विपत्ति की कडियों में, दुःख की यह सुख की घडियों में, तुम साथ छोड़ कर पीहर भाग न जाना ॥ ६ ॥ करुणा सेवा लज्जा गहने, वह धन्य हुई जिसने पहने । तुम दिव्य देवी बन केवल कहे यश पाना ||७|| 141 Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || फेग खाने का गीत ॥ (तर्ज--पहले तो केरे बनडी बाबासा की बेटी ।) पेले तो फेरे बनडी अरिहंत जी ने नमजो। दूजे तो फेरे बनडी सिद्ध जी ने नमजो। तीजे तो फेरे बनडी साह जी ने नमजो। चौथे तो फेरे बनडी दया धर्म ने नमजो। माता-पिता काका वीराजी ने बुलावो । मामाजी मामीजी सगला ही आवो । बनडी रो तो हथलेवो बेगो छुडावो। गायां रा गोकुल धन बहुत देयजो । पंडित ने दक्षिणा पूरी जो देयजो । बींद राजा को डेरे पर पहुँचाने के लिए जाते वक्त बोलने का गीत (तर्ज-आलो-लीलो मरवो ने नवा छाजां छायो ।) आलो लीलो मरवो ने नवा छाजां छायो, अपना हो शशीकला बाई जिस घर देशां ॥ राय उमरावाँ री होड़ मती करजो, थानी जोडी रो वर देखने दीनां ॥ सोलह वर्ष मारी बनडी रही ब्रह्मचारिणी, इनसुं वर मिलिया सुखकारी ॥ बीस वर्ष मारा बनडा रया 142 Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्मचारी, इन कारण मिलिया शीलवंती नारी ॥ सुख मायें रहजो ने जीवन बितायजो, हिलमिल प्रेम बहुत बढ़ायजोजी ।। ॥ बधावा ॥ (तर्ज-- कसुम्बल वीरा बधावना ।) ये तो ऊँची-ऊँची मेढी सोवन्ति, ओ तो दिवलो बले रे मजालो ॥ करसुं मंगल बधावना ॥१॥ जठे पन्नालालजी पोढ़िया, वांरी संदन ढोले वायरोजी ।। करसं मंगल बधावना ॥२॥ यह तो ढोल ढलन्ता इम कह्यो, थाने किम सुख आयी नीन्दोजी ॥३॥ बाई मंजु परणाई मेली सासरे, माने इण सुख आयी माने नीन्दोजी ॥ करसुं मंगल बधावना ॥४॥ । कँवर कलेवा और संघ पूजन का गीत ॥ (तर्ज---थारो माया रो दूंबालो ओ बोन्दराजा ।) ___सासु सुसराजी घणा हरषाया ओ बीन्दराजा। कलेवो मेल्यो जीमण काज ॥ लाडु ने पेडा सरस जलेबी । घेरिया है चार ।। कपड़ा ने गेणा माणक मोती, पेरो तन पर धार ।। संघरी सेवा करनी बोंद राजा, संघ चार प्रकार जान ॥ साधु-साध्वी ने श्रावक 143 Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्राविका, ये चारों ही उत्तम जान ॥ साधु संता ने वन्दना जो करनो, ज्ञान सीखो बारम्बार ॥ चौदह प्रकार का दान जो देनो, ओ श्रावक रो आचार ॥ श्रावक-श्राविका साधर्मी भाई, यारी सेवा उत्तम जान ॥ आहार-पानी, वस्त्र दान जो देनो, श्री संघ में सुयश थाय ।। गोत्र तीर्थकर बांधे बोंदराजा, चार तीरथ सेवा जान ।। कृष्ण श्रेणिक नी परे तीर्थकर गोत्र बंधाय ॥ श्री संघ री सेवा पुन्यवंत करसी, वरतेला मंगलाचार ॥ . धडीन्दो (तर्ज - छाती धड़के डरपो मत ।) मारे अठासु आयो रे धडीन्दो, सगां रो दिल हर्षे-हर्षे भल । हां रे हर्षे भल, में तो शुभ गीत गासां बार-बार गासां ॥टेर॥ फलाण चन्दजी वाली निजपति प्यारी, थारा सुं मैं बात करसुं ।।१।। अमुकरामजी वाली लायी सुपारी, पति आज्ञा में रहे नारी ॥२॥ फलाणमलजी वाली पंखी डोले, सारां सुं मीठी बोले॥३॥ ॥ भोजन के समय ब्यायजी को गाने का गीत ॥ (तर्ज--सांमली भीत विजोरा मां, या, ओरारी भीत, झेलू बीजोरा ले) लारली रात ब्यायजी आया, आया सरवर री पाल । लावो वेवायां ने ।।टेर॥ 144 Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोना रो भल सूरज ऊगियो, आया वेवाई द्वार । लावो वेवायां ने ॥ १ ॥ मैं थाने पूछ वेवाई जी, थारे न कितरो साथ । लावो वेवायां ने ॥२॥ दो काकारा दो मामारा, चारो ही बेटा थाय । - लावो वेवायां ने ॥ ३ ॥ नोहरा माहे डेरा दिरावो, करसां हो सार संभाल । लावो वेवायां ने ॥ ४ ॥ दांतण देय संपाडा सारूं, पाणी ऊनो तैयार । लावो वेवायां ने ॥५॥ गादी ढाल बिछावो पाटो, मेलो रूपारो थाल । __ लावो वेवायां ने ॥ ६ ॥ मगद चूरमो खाजा पुरसां, जिनमें है वेशी खाण्ड लावो वेवायां ने ॥ ७ ॥ घणा दिनां सुं आप पधारया, पूर्वी मैं केवो बात । ___ लावो वेवायां ने ॥ ८ ॥ कांई आपरो हुक्म हबालो, कांई विणज व्यापार । लावो वेवायां ने ॥ ९ ॥ सुणो-सुणो फलाणचन्दजी सा थांरी, चोखी है कुल रीत, लावो वेवायां ने ॥ १० ॥ सगा वाला सुं हेत सवायो, देखत हरख अपार । लावो वेवायां ने ॥ ११ ॥ 145 Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • थोडी देवा घणीज मानो, लेवो थें करने कोड । लावो वेवायां ने || १२ || वन आवे है फूल पांखडी, मानो थे चौसर हार ॥ लावो वेवायां ने ॥१३॥ करो नहीं थे थूक फजीता, राखो सोधो व्यवहार । लावो वेवायां ने ॥ १४ ॥ Q मारा बाईसा सुखी सासरे, पावे बेटी ज्यूं प्यार । लावो वेवायां ने ॥ १५ ॥ दौड़-दौड़ ने दोरी वगत में, आवो पालो कुल रीत, लाको वेवायां ने ॥ १६ ॥ एक ओलम्बो देऊ आपने खटकियो है मारे चित लावो वेवायां ने ॥१७॥ वेवाणजी ने क्यों नहीं लाया, मासुं कांई वारे रीस, लावो वेवायां ने ॥ १८ ॥ अबके आइजो जरूर लाइजो, मानो श्रीनाथ री सीख । लावो वेवायां ने ॥१९॥ || वायों रा बखाण || (तर्ज- बांस बढाओ नगरी रा चार, घाघरियो घूमेला ।) थारा कुल रा हो करां बखाण, वेवायां सुणो सा ||टेर ॥ थे तो आया हो वरसां सुं आज वेवायां सुणो सा ॥ १ ॥ 146 Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माने गावण रो है घणो कोड, वेवायां सुणो मा ।।२।। धीरा गरवा हो गणवन्ता आप, वेवायां सुणो सा ।। घणा गुणी हो शूरा कुलवान, वेवायां सुणो सा ॥४॥ रात्रि भोजन हो नही करो लगार, वेवायां सुणो सा ।।५।। भक्षाभक्ष रो हो राखो विचार, वेवायां मुणो सा ॥६॥ थारे कुल री आ हो मोटी रीत, वेवायां सुणो सा ।।७।। नहीं खावो हो मोसर रो माल, वेवायां सुणो मा ।।८।। बेटी बेचण री नहीं थारे रीत, बेवायां सुणो सा ।।९।। डोरो मांगण री भी नहीं है रीत, वेवायां सुणो सा ॥१०॥ करो टाबर रो नहीं वेगो ब्याव, वेवायां सुनो सा ॥११॥ बूढा-ठाडा रो, नहीं चावो व्याव, वेवायां सुनो सा ॥१२।। थारे घर में हो गावे शुभगीत, वेवायां सुनो सा ॥१३॥ विद्या पढ़ने में पूरा प्रवीण, वेवायां सुनो सा ॥१४॥ मुलकों-मुलकों में हो, विणज व्यापार, वेबायां सुनोसा।१५। स्वागत करसां हो, गा गीत रसाल, वेवायां सुनो सा ।१६।। मारे आइजो हो, थे बारम्बार, वेवायां सुनो सा ।।१७।। मारे बाईसा ने हो लीजो निभाय, वेवायां सुनो सा ॥१८॥ गावे हरषे हो सुणे श्रीनाथ, वेवायां सुनो सा ॥१९॥ 147 Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || वेवायां ने सीखामण || (तर्ज- थांरी-थांरी हो वेवायां नार-दूध दही बेचन ने चाली, जेलूं बेच न जाणे गँवार फिर गई सगारी गली । ) थरीथांरी ओ वेवायों नार सीख साची पूछन ने चाली। पूछे- पूछे हो मन धरी कोड रीत कांई कुलरीभली ।।टेर।। थांरो-थांरी हो कुल मरजाद बताय देऊ बात मैं खरी । सुणो-सुणो हो ध्यान लगाय, होवेला थांरे मन में रली ॥१॥ थांरो थांरो हो देश विख्यात छाप जिनरी मुल्कों में पड़ी, थांरी थांरी हो उत्तम जात - एकताई न्यात में बडी ॥२॥ मोटो मोटो हो घर में संप रोंझ रही लिछमी घणी । सोरो-सोरो हो सारो परिवार - रीत भांत उत्तम बणी ॥ ३॥ मारा वेाईसा चतुरसुजान, न्याय बैठा हाटां में करे । पूछे- पूछे हो सिखामण लोग - पाशों वारो राज में परे ||४|| करे करे हो न्याति में सुधार खोटी रीतां ने दूर करे । जाति न्याति में हो मोटा पंच खंच नहीं खोटी करे ॥५॥ रीति नीति हो विणज व्यापार परदेशां में प्रख्यात घणो खर्चे खर्चे हो धरम रे काम लेवो लावो लक्षमी तणो ॥ ६ ॥ खावे खावे न मौसर माल व्याव अनमेल न करे । मांगे मांगे न डोरो आप कन्या बेच थैली न भरे ||७|| ऐडी-ऐडी धीरज कुल रीत हियो मारे देखने ठरे । नहीं गावे हो फाटा गीत शुभगीतां सुं प्यार है घरे ॥८॥ 1 148 Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || वेवायी का गीत ॥ ( तजं - थांनी थांनी ओ बेईजी थांती नार) थांनी थांनी ओ बेईजी दही दूध रो दान देवे । सामा मिलिया शान्तिलालजी कुमार, हाथ माहें ज्ञान रो पोथी । सुनो सुनो ओ ब्यायनजी बात, रातरा थे जीमो मती । सुनो सुनो ओ ब्यायनजी बात, कंद मूल थे खावो मती । इनमें लागे हैं पाप अपार, कर्म જે बंधे चिकना करो || सुनो सुनो व्यायनजी बात, पापड़ रातरा थे बटजो मती ।। और आरम्भ-सारम्भ रा काम, रातरा थे करजो मती । इनमें हिंसा होवे अपार मच्छर, डांस, जीव मरे करी ॥ सुनो सुनो ब्यायनजी बात, गंधा गीत गायजो मती । इनमें शोभा नहीं लिगार, अनर्थादण्ड पाप होवे करी । सुनो सुनो व्यायनजी बात, बाई ने सोरी राखजो करो | मैं तो दीनी खोला माहे डाल, आप रे तो पुत्री लाड़की ॥ सुनी-सुनी ओ बेईसा थारी बात, आज दिन धार ली करी ॥ मने शिक्षण दोनो आप, भव भव भलो होइजो करी ॥ आप शीलवंत कुमार, मारो जीवन सुधारयो करी ।। 149 Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ बेइर्जी का गीत ॥ (तर्ज ....-आवो बेईजी डोडी-डोडी निजरासं) आवो बेईजी शुभ निजर थी थे जोवो, हां ओ बुद्धिवालिका, हां ओ विनयवालिका, पाप निजर थी मत जोवो ॥टेर॥ हां ओ बेईजी रातरा भोजन थे मत करजो ॥ हाँ ओ बेईजी एंटो थे मती नाखजो ॥ हां ओ बेईजी मूंगा मोलारी चीजां है । हां ओ बेईजी कोड़ियां घणी मरजासी ॥ हां ओ बेईजी होली रा फाग मत खेलजो ॥ हां ओ बेईजी घर में पाप अपार मानजो । हां ओ बेईजी जवा सट्टा मत खेलजो॥ हो ओ बेईजी पर-नारी सामो मत देखो ॥ हां ओ बेईजी जावेला दुर्गति माय ।। ॥ भोजन री तैयारी ॥ पांतिया लावो रे पांतिया लावो । पांतिया मैला वे तो धोवाडे ने पांतिया लावो ॥१॥ पाटिया लावो रे पाटिया लावो । पाटिया भागा वे तो संधावे ने पाटिया लावो ॥२॥ लियां लावो रे थालियां लावो। यालियां ऐठी वे तो मंजावे ने थालियां लावो ॥३॥ 150 Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाकियां लावो रे बाटकियां लावो । बाटकियां गमी वे तो सोधावे ने बाटकियां लावो ॥४॥ कलशियां लावो रे कलशियां लावो । वे तो झेलावे ने कलशिया लावो ॥५॥ कलशियां फूटा पुरसणिया लावो रे पुरसणिया लावो । पुरसनिया भूखा वे तो जिमाडे ने पुरसणियां लाओ ॥६॥ भोजनिया लावो रे भोजनिया लावो । भोजनिया ठंडा वे तो ऊना करने भोजनिया लावो ॥७॥ दीवटिया लावो रे दीवटिया लावो । दीवटिया बुझिया वे तो सलगावे ने दीवटिया लावो ॥ ८॥१ पान बीडा लावो रे पान बीडा लावो । पान थारा कोरा वे तो लगावे ने पान बीडा लावो ॥९॥ गीतडा गावो रे गीतडा गावो । गीता नहीं आवे तो शुभगीतां री पोथियां सूं गीतडा गावो ॥ १०॥ ॥ जुवा जुवी का गीत || ( तर्क - जुदा रमे जुबी रमे बनडर ने बनडी ) सुनजो बना-बनी सीख सुखदाई । जुवा रमण री चाल है खोटी ॥ जुवा तो रमिया पाण्डव भाई, द्रौपदी ने हारी वनवास में फिरिया ।। नलराजा तो 151 Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राज्य ने हराया। कई कष्ट वनवास दुःख उठाया। जुबा तो वासुदेव ने कंस जो खेलया। देवकी रे छ: ही जो पुत्र ने मारया ॥ इम तो जुवा थी बहु दुःख पाया । इम जाणी ने जुवा मत रमजो । खोटी चाला कुटुम्ब सिखावे । इन थी बना-बनी दुःख जों पावे ॥ सब मिलने जुवा मति खेलायजो ॥ बेटा-बेटी बिगडे ने कलंक लगावे । प्रेम थी बैठाय ने शुभगीत सुनायजों। ठौरां मुट्ठी बना-बनी मत रमाईजों ॥ पतिव्रता नारी पति ने नहीं मारे, मारे तो अपना धर्म गमावे मारे तो चुडियां बद जावे । अपशकुन जो व्याव में थावे ॥ सदाचारी पुरुष नारी ने नहीं मारे, नारी ने मारे तो इज्जत गमावे ॥ ॥ कंकण डोरा खोलने का गीत ॥ (तर्ज-इन डोर ले सात गांठ लाड-लडासु) इन डोर ले सात गांठ लाड-लडीसं न खुलेजी। इन डोर ले सात गांठ लाड-लडासुं न खुलेजी ॥ थाना मात-पिता दीनो जन्म ज्ञान नहीं देवियोजी, अब वनजो चतुर सुजान डोरला खोलजोजी ॥ थाना मात-पिता बुद्धिवान ज्ञान सिखावियोजी ॥ ए तो जीमो अमत भोजन जाण जल अनछान्यो मत बापरोजी ॥ए। 152 Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गांठ समो संसार, जुगती सुं निभावजोजी ॥ लेयजो कुटम्ब सं यश, सबने निभायजोजी ॥ डोर लो शुभ स्थान थांभ बंधावजोजी ॥ ॥ पेरावणी का गीत ॥ (तर्ज-मारे आंगण जेवंतडी रो रूखो मारा पिऊजी) मारे आंगण जेवंतडी रो रूखो मारा पिऊजी, सज्जन रे जांगण ऐलचीजी ॥ राजकँवर रो माथों तो गुंथायो मारा पिऊजी, सोलह शंगार सजावियाजी ॥ राजकवर सारे कालजिया री कोरो मारा पिऊजी, दूध पाय मोटी करीजी ॥ हस्ति मायला मोटा हस्ति देवो मारा पिऊजी, राजकवर मत देवजोजी ॥ घुडला मांयला आछा घुडला देवो मारा पिऊजी, राजकँवर मत देवजोजी ॥ गोकुल मायली आछी गायां देवो मार पिऊजी, राजकवर मत देवजोजी ॥ गेणा मायला आछा गेणा देवो मारा पिऊजी, राजकँवर मत देवजोजी ॥ कपडा मायला आछा कपडा देवो मारा पिऊजी, राजकवर मत देवजोजी॥हारया-हारया राजा ने राणा मारी मरवण, इण विध अपन हारियाजी ॥ जीत्या-जीत्या सज्जन रो परिवारो मारी मरवण आ ए तो हारिया जी ॥ 153 Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || विदाई का गीत || (तर्ज-ओ आम्बाजी पाकां आंबली ) ओ कोपरा तो रुपिया बरसाविया ॥ ओ आया द्वार के पास । ओ थली रे नमन करे । ओ इतना दिन रमी घर मांय || ओ सीवा छोडी चालियाजी । ओ में थाने पूछां मारा मंजु बाई || ओ इतरो पिताजी सुं हेत छोड़ने बाई सीद चालया ॥ ओ आया परदेशी कँवर सा ।। ओ लेग्या सहेल्यां सुं टाल || ओ कँवरा बाई सीद चालया ।। ओ पतिव्रता धर्म थे पालजो || ओ रयजो पति आज्ञा के सांय । ओ पति आज्ञा रे विरुद्ध मत चालजो || ओ सासु सुसरारी आज्ञा पालजो । ओ वे ही है मांयने बाप सेवा उनकी करजो || ओ देवर जेठ ने भाई जिम जानजो जो || ओ ननंदल बेन समान हिल-मिल सब में रेवोजी || ओ संसार में सुजस लेवजो ।। ओ माता-पिता रा नाम जो दिपाय कॅवरबाई सुख में रजो || ओ साधु संतरा दर्शन थे करजो || ओ सामायिक पfsarमणो करजो नित जाण, प्रेम माहे रेवजो । ओ पुत्री पहुँचायन पाछा फिरिया । ओ छूटी आंसूडा से वार श्रावणियो बरसियो || 154 Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ बनी ने सिखामण ॥ (तर्ज-लहरियो पंचरंगो बणियो-लहरियो राजाशाही बणियो) बनी तू सीख मान लीजे, सातरिया में जाय सबा रो मन तूं हरलीजे।।टेर। जदतूं जावे सालरिया में, करजे सद्व्यवहार । परमेश्वर जू जाण पति ने, करजे पूरो प्यार ॥१॥ सास ससुर ने मायत गिणजे, लीजे सेवा धार । मीठा बोल बोलजे बाई, मत करजे तकरार ।। बनी ॥२॥ देराणी जेठानीजी री लीजे बातां मान । आलस तन सुं दूर राखजे, होवेला सन्मान ॥३॥ पति जिमायां पछे जीमणो, लीजे ओ व्रत धार । वेगी ऊठे रोज सबेरे, वही सुलक्षणी नार ॥४॥ वगर काम पर सेरी पर धर अठी उठी मत जाय । ऐडो नेम धारजे बाई, हरख उमंग मन लाय ॥५॥ कजियो चगली पर निन्दा ने, चोरी दीजे त्याग । द्वेष भाव ने दूरो कीजे, धर मन में अनुराग ॥६॥ हिलमिल कर घर वालों साथे, संप राखजे मान । दीन दुःखी पर करुणा कीजे,जो चाने कल्याण ॥७॥ नार पदमणी प्रीतमजीसुं, बांधे गाड़ी प्रीत । 'धीरज' घर शुभ गीत गावजे, पाल पुराणी रोत ॥८॥ इण विध दी सीख बनी ने, मिल सारो परिवार । जान फायदो इणसुं उनभी, लीवी हिरदे धार ॥९॥ 155. Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ बना ने सीख ॥ (तर्ज-सावण लागो भादवी सखी, वरसण लागो मेह) बनी तूं सासरे, सुख सेती जाइजे है । घणी तूं गुणवंती, कुल देश दिपाइजे हैं ॥टेर॥ सुन्दर साडी शीलरी बनी, लीजे अंग पर धार । चटक मटक मत चालजे बनी, तज दे नैन विकार ॥१॥ बाबा सा री लाडली बनी, काका सा सुं नेह । पीहर वालो त्यागनेजी बनी, जाय रही पति गेह ॥२॥ ओल थारी आवसी बनी, कर आवण रो कोल । था बिन सूनी लागसी बनी, बाबा सा री पोल ॥३॥ बात एकान्त न कीजिए बनी, भले हो बाप के भ्रात । पर नर सं मत बोलजे बनी, हंस-हंस काढ़ी दांत ॥४॥ दुपहरे नहीं लावजे पानी, पणघट धोजे न पाँव । वाजतो गहणो पहरतां बनी, होवेला बदनाम ।।५।। कजियो तजियो सुं होवे बनी, सासरिये बहुमान । सास ससुर पति पूजणे रो, धरजे हृदय ध्यान ॥६॥ सीख सखीरी मानजे सखरी, सेवा श्रीनाथ की धार । आनंद मंगल होवसी बनी, पूज्यो पद भरतार ॥७॥ 156 Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || बिदाई का गीत ॥ (तर्ज-जाओ-जाओ ए मेरे साधु ) जाओ जाओ ए प्यारी बेटी, रहो खुशी के साथ ॥टेर।। चौदह वर्षों घर आंगण में, खेली धम मचाई। आज लाडली एक पलक में, तू हो गई पराई ॥१॥ सभी तरह की सही मुसीबत, पाली और पढ़ाई। दूर हृदय से होती है तू आज हृदय को जायी ॥२॥ लड़ी रूठली जिद्द भी करली, यहां तो खट गई मैना। वह है देश विराना, वहाँ पर चतुराई से रहना ॥३॥ आज बिदा करने में तुझको, हृदय फटा जाता है । मत रोओ हे मेरी बेटी, जग का ऐसा ही नाता ॥४॥ भोली सूरत मीठी बातें, याद करी रो लँगी। मुन्नी बिटिया राजा कहकर, अब किससे बोलूँगी ।।५।। सास ससुर और पतिदेव की, सेवा खूब बजाना। ननंद देवरानी जेठानी से, झगड़ा नहीं मचाना ॥६॥ गृहचन्द्रिका, गृहलक्ष्मी, बन प्रकाश फैलाना । केवलमुनि धर्म जिनवर को, भूल कभी न जाना ॥७॥ 157 Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ बिदाई का गीत ॥ (तर्ज-जब तुम्हीं चले परदेश) मां बाप का छोड़ दुलार, भाई का प्यार । लाडली जाओ, अपना घर स्वर्ग बनाओ ॥टेर॥ जो दुःखता आता रोना है, घर से जा रहा खिलौना है । मेरी बिटिया मत रोओ, चुप हो जाओ ॥१॥ कन्या परधन कहलाती है, ससुराल एक दिन जाती है। आनन्द निकेतन की कोकिल बन जाओ ॥२॥ जिनना ही दूर स्वजन जाता, स्नेह सूत्र भी उतना बढ़ जाता । राजा बेटी पीहर की, याद भुलाओ ॥३॥ सबसे अच्छा व्यवहार रहे, सन्मान रहे, . सत्कार रहे । जो शिक्षा देवे प्रेम से, शीश चढाओ ॥४॥ प्रतिदिन नवकार मंत्र पढना । इसपे ही दृढ़ निश्चय करना । प्रभु भजन किये बिन, कभी न भोजन खाओ ॥५॥ मत करना अपनी मनमानी, बनकर रहना घर की • रानी। पति सेवा में सीता मैना बन जाओ ॥६॥ सखियों से ननंद. जेठाणी से, सासु से या देवराणी से, मत करो लडाई, चुगली कभी न खाओ ॥७॥ जाति का मान बढ़ा करके, स्वदेश की आन बचा करके। भारत माता की वीर पुत्री कहलावो ॥८॥ नन्दन सुहाग का खिला रहे, चन्दा से मंगल मिला रहे । केवलमुनि फूलो-फलो शान्ति सुख पावो ॥९॥ इति ॥ 158 Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। बिदा होते समय मां से आशीष ।। (तर्ज-जब तुम्हीं चले प. देश) मां देदे शुभ आशीष, चढ़ा कर शीश , सुखी हो जाऊं ॥ अपना कर्तव्य निभाऊ ।।टेर॥ गोदी में स्वर्ग का सुख पायो, नहीं कभी भी गर्म हवा आयो । मां इस ममता को कैसे हाय भुलाऊँ ॥१॥ अपना सुख सारा वार दिया, प्राणों से बढ़कर प्यार किया। उपकार का बदला कैसे बोल चुकाऊँ ॥२॥ किस प्रेम से मुझे पढ़ाती थी, तु कितना लाड लडाती थी। मां बोल आज क्या बिदा दे रही जाऊँ ॥३॥ मा तेरी याद मझे जब आयेगी, . रो-रो हिचकी बंध जाएगी। प्यारे पीहर को छोड़ के कसे जाऊं ॥४॥ रूठी कौन मनावेगा मनुहार से कौन खिलावेगा। अपनी सुख-दुःख की बातें, किसे सुनाऊं ॥५॥ मां मुझको नहीं भुला देना, भैया को भेज कर बुला लेना। उत्तर देना जब पत्र तुझे भिजवाऊं ॥६॥ ऊंचा आदर्श दिखाऊंगी, जीवन में ज्योति जगाऊंगी। सुगहिणी बन कर सेवा सदा बजाऊं ॥७॥ केवलमुनि आशीर्वाद मिले, सद्गुण के सुन्दर पुष्प खिले । मैं दोनों कुल में यश सौरभ पैलाऊँ ॥८॥ 159 Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || बीन्द बीन्दनी को बधाने का गीत || (तर्ज-- टोडरमल चालो बधावने ) बना परण ने बनी साथै लायो, माताजी ने हर्ष घणो हुवोजी || मोतियां री बाली ने हाथ में कलश, लेने बधावन आवियाजी ॥ तिलक जो काढ़या ने चावल चेडवा, आरतडी तो करे घणा प्रेम सं जी ॥ मंगल गावे न बाजाजी बाजे तो, कुल बहु ओ वंश बढ़ावसीजी || पिताजी पुण्यवंता ने माताजी पुन्यवंती कँवर पुन्यवंतो परण पत्रारियाजी ॥ बहन बहनोई मारग रोके, आधी पांति माने देवोजी || पांति थाने देसां ने प्रेम बढ़ातां, ननन्दल ने बेण ज्यूं राखतां जी ॥ || थाली सरकाने का गीत । (तज -- ज्यूँ कडकासी ने ज्यूँ बड़कासो कुल बहु ) || होमो झूठलीजी ॥! कँवर परणन ने घर मा आया, हाथ में तलवार लीनीजी । सात तो थाली मारग रखदी कँवर तो आगे सरकावेजी । लारे कुलबहु विनयवंती धीरे-धीरे उठावे जी । जतना सुं लेने सासुजी रे खोला माहें रखतीजी । आपको घर को काम में करसुं, आप कदी नहीं करसो जी । शांति में रयजो शुभ आशीर्वाद दीजो, विनय की परीक्षा बतायीजी । 160 Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ धी गुल में हाथ धलाते समय गाने का गीत ॥ (तर्ज- तूं तो ओ घर ओ वर मांगे ए) ये तो सासुजी ने वेगा बुलाये ए, घृत गुल का भण्डार भोलाए ए। ये तो सुसराजी ने वेगा बुलाए । भण्डार की कुंजियां दिराए ए। पति राज ने वेगा बुलाये ए। ये तो धन रासी दिराए ए। बहने घर की बडेरी बनाए ए। कुल देवी समान मनाए ए। सासु ससुरा की सेवा कराए ए। ये तो जग माहे सुजस पाये ए। । राती जोगा प्रारम्भ होने के पहले गाने का गीत ।। ॥ शांतिनाथ भगवान का स्तवन ।। (तर्ज ---अगर वीर स्वामी हमें स बचाता तो भारत) में तो शांति ही शांति चाऊँ सदा. नित्य मंगलमय गुण गाऊँ सदा ॥टर।। अचलाजी के नन्दन विश्व के प्यारे, शान्ति दुलारे थे हिंद सितारे, जिन शान्ती ही शान्ती वरताई सदा ॥१॥ नव लक्ष जो जाप जपे तेरा कोई, सुख शान्ति रहे उस घर में सदा ही। दुःख मारी बिमारी न आवे कदा ॥२॥ 161 Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैसे नाम गरुड़ का जो लेवे कोई, काटा सर्प का जहर उतारे सही। तैसे शान्ती के नाम से पाप अदा ॥३॥ शान्ती नाम का अमृत प्याला सदा। जो पीवे पिलावे अमूल्य सुधा। पावे स्वर्गरु मोक्ष भला सर्वदा ॥४॥ अनुभव के ही साथ कहे सबसे, पूज्य गुरु अमोलक यूं तुम से। होवे शान्ती ही शान्ती गावो सदा ॥५॥ ॥ राती जोगा रो गीत ।। (तर्ज-सोना री डांडी राजा रूपा रा चेडा) आदिनाथ भगवान अरिहंत कहलावे, आठ कर्म तोडी मुगते सिधाया जी। उनरी शासन की माता चक्रेश्वरी कहलावे। रक्षा करे श्री संघ की जी। पिताजी मनाने और माता जी हर्षावे । चक्रेश्वरी तो विपदा निवारती जी। माथा ऊपर मुकुट कानां कुण्डल, हिवडे तो नवसर हार । नवकार का ध्यान जो प्राणी करसीजी। उनका तो कष्ठ-दुःख दूर होसीजी ॥ 162 Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ राती जोगा रा गीत ॥ तिज--सती माता कटोडा रा बाजाए माता बाजिया) दया माता जतन करोनी छः ही कायरा ॥टेर ।। दया माता शान्तिनाथ प्रभु सोलमा ।। दया माता जतन करोनी छः ही कायरा ॥१॥ दया माता शान्ती वरतायी सारा देश में । दया माता जतन करोनी छः ही कायरा ॥२॥ दया माला मृगी रो रोग मिटाया। दया माता जतन करोनी छः ही कायरा ॥३॥ दया माता निर्वाणी देवी शासनदेवी रखवाली ॥ दया माता जतन करोनी छः ही कायरा ॥४॥ दया माता ध्यान करेला शान्तिनाथ को ॥ दया माता जतन करोनी छः ही कायरा ॥५॥ या माता मारे काष्ठ विघ्न दूर होवे ।। दया माता जता करोनी छः ही कायरा || दया भाला मंगल वरते थारा नाम से ।। दया माता जतन करोनी छः ही कायरा ॥७॥ दश माता शान्तीनाथ जी री करेला कोई जाप ॥ दया माता जतन करोनी छः ही कायरा ॥८॥ निर्वाणी माता संघ माहे शान्ती वरतावजो ।। दया माता जतन करोनी छः ही कायरा ॥९॥ दया माता ऋद्धि-सिद्धि सँ भरजो भण्डार । दया माता जतन करोनी छः ही कायरा ॥१०॥ दया माता आनन्द वरतावजो सारा देश में । दया माता जतन करोनी छः ही कायरा ॥११॥ 163 Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ राती जोगा रा गीत ॥ (तजं.--थे मारी सेडल माता सेरी नगरी मोगा तो) रिष्टनेमी भगवान को शासन तूं रखवाली तो, अम्बा माता कृपा दृष्ठि राखजो ए मांय ॥१॥ नेमीश्वर ने पशुव छुडाया तोरण ऊपर जाय ने तो, इन विध साता वरतावजो ए मांय ॥२॥ पार्श्वनाथ भगवान शासन की देवी जानो तो, पद्मावती रक्षा करी भगवान को ए मांय ॥३॥ जलता तो नाग ने नागनी बचाया तो, नवकार को शरणो प्रभु सुनाविया ए मांय ॥४॥ इण शरणा रा उत्तम फल पाया तो, धरणेन्द्र पद्मावती प्रगट हुवा ए मांय ॥५॥ वैरी ने दुष्मन दुख ने दरिद्र, माम लिया सुं दूरा होवे ए माय ॥६॥ पार्श्वनाथ भगवान कमठ हटाया तो, अज्ञानी रो मद सब. गालियो ए माय ॥७॥ आनन्द बरतावजो ने सुख साता देयजो, माम लिया सं विपदा टले ए माय ॥८॥ 164 Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ राती जोगा रा गीत ॥ (तर्ज-भेरू कटोडे हो पारी थापना) चौवीस तीर्थकरां का शासन का देवता, ये तो चौवीस यक्ष जान हो । जिनशासन की सेवा में करे, जिन देश क्षेत्र के मांय हो । देवता तो चार जात का, भुवनपात, वाणव्यंतर, वैमानिक हो । पूर्व भव में तप संजम पालियो, केइ दीदो सुपात्र दान हो । इन प्रभावे देवता हुआ, ये तो करे जिन शासन री सेव हो। ये तो यक्ष राज कहलावे, ये तो वरतावे जय-जयकार हो। ये तो विघ्न सदा दूरी करे, सुख संपत्ति से भर देवे भण्डार । ये तो गावतडा सुख ऊपजे, ये तो सुनियारो परम कलयाण हो । चौवीस तीर्थकरा का जो ध्यान करसी, चौवीस तो यक्ष करसी सहाय हो । ॥ कंकण डोरा खोलने का गीत ॥ (सई-जुवा खेले जुवी खेले बनडा ने बनडी) जुवा-जुवी मत खेलो बनडा ने बनडी । कांकण होरो जयना सुं खोलो। कोरडा रमणा कदी मत करजो दुनिया में मारनो कौन बतायो । पति नारी पर हाथ नहीं उठावे । पुरुष नारी पर हाथ नहीं चलाये । इन 165 Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रीता ने कोई मत करजो । खोटी तो रोत दुनिया में बाजे । कुल माहें कलंक पूरोजी लागे। बना-बनी ने नमस्कार सिखायजो। पगां लगन रो रोत है आछी। बहुजी ने घणो धन जो दीजो। सासु सुसरा रे पगां पडजो। विनय तो करजो ने धर्म बढायजो । गुरुगुरानी का दर्शन करजो । मंगलिक सुनजो ने समकित धारो। ऐसी तो जाता उनने दिरायजो। जीव दया माहें दान जो दीजो। इन थी जीवन सुख माहें जावे। || बैटिका ॥ ( तर्ज-लका रो सोना मंगायजोजी ) वीरा आया बाई ने लेबन ने जी। हर्ष हृदय नहीं मांय । टीका रा बधाबना ।। टेर। पाटा पर भाई बहन बैठिया जी । आरती करे ननंदल आय, तिलक काढे कंकूराजी। पीट थापे बहनोई आयनेजी, धिनधीन थारोजी कुल, दिपायो मारा वंशनेजी ॥ मोटामोटा खाजा लावियाजी खिमिया है मोटी चीज, घर में शान्ती वरतावजो जी ॥ लापसडी मीठी खाय ने, मीठा रहो जग मांय, सुजस थारो फेलसीजी ॥ व्यावरा गीत पूरण हुवा जी, सब नगरी में करयो नमस्कार, भूल चूक होवे करी, लीजो आप सुधार, बहनने भाई ले गयो जी। ॥विवाह का गीत समाप्तम् ।। 166 Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ दिन रा भोजन करते वक्त गाना ।। ॥ जमाई का गीत ॥ (तर्ज --आनन्द का ढंका आलम में बजवा दिया) आओ सखियां मंगल गावां, घर आज जमाई आया है, शुभ गीतों रा रसिया बनने, संग साथिडो ने लाया है ॥टेर॥ हीरा भी हलका याँ सामी, मोती भी हलका यां सामी । सोना, रूपा, सुं भी नामी, घर आज जमाई आया है ॥१॥ चांदा ज्यं निर्मल चलके है, सूरज ज्यूं ज्योति भलके है। आमें ज्युं विजली भलके है, घर आज जमाई आया है ॥२॥ लाडू सुं अधिका बाला हो, मीठा अमृत रा प्याला हो । मारे हिवडे री माला हो, घर आज जमाई आया है ॥३॥ कोमलता कमलों सी प्यारी, चंचलता तितली से न्यारी। मीठास रा पूरा अधिकारी, घर आज जमाई आया है ॥४॥ बल विद्या धन का धारी हो, जग सा भारी उपकारी हो । 'धीरज' श्री रा व्यापारी हो घर आज जमाई आया है ॥५॥ 167. Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( तर्ज 168 ॥ दिनरा गाने का गीत || || जमाइजी रो स्वागत ॥ - बांस बडाओ हो बगडीरा चार घाघर घूमेला । ) कंदोई बुलावो हो नगरी रा चार -- जमाई जीमेला ॥टेर ॥ मत लाजो हो परदेशी खाण्ड -- जमाई जीमेला ॥१॥ देशी शक्कर हो मैदा घृत सार --- जमाई जीमेला ॥२॥ नहीं द्विदल हो नहीं बासी साग -- जमाई जीमेला ॥३॥ मोरो लापसी हो खाजा तैयार -- जमाई जीमेला ||४|| साला सहेल्याँ हो करे मनुहार -- जमाई जीमेला ॥५॥ ऐंठो नहीं नाखेहो जाणे घर रो माल -- जमाई जीमेला | ६ || पान सुपारी हो देस इलायची लूंग - - जमाई जीमेला ॥७॥ इणविध गासां हों जमाइयों ने गीत- जमाई जीमेला ॥८॥ साथ आया हो वैवायांरो साथ -- जमाई जीमेला ॥९॥ ज्यांरी करसांहो घणी सारसंभाल -- जमाई जीमेल । । १० । मारा बाईजीने हो देसां चंदडी हार -- जमाई जीमेला | ११ ॥ नणदोईजीने हो देसां पंचरंगी पाग -- जमाई जीमेला ॥ १२ ॥ नारेल देसां हो वेवायां रे हाथ -- जमाई जीमेला ॥ १३॥ पहुँचावाजासांहो मिल सारो साथ -- जमाई जीमेला | १४ || अरजी करसांहो फिर आइजो आप -- जमाई जीमेला । १५ । सुणसी श्रीनाथ हो ऐसा शुभगीत--जमाई जीमेला ॥ १६ ॥ Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ दिनरा जमाई भोजन करते वक्त गाने का गीत ।। ___॥ जमाई जी का गीत | (तर्ज--धोया-धोया याल परूसीया भात बे।) घणा दिनां से वाट जोवती आया जमाई आज बे आनन्द मंगल उत्सव मारे नणदोयों रे काज बे ॥टेर॥ आवो-आवो सखी सहेल्याँ मिल कर गावो गीत बे। जमायाँरा लाड़ करांला आ पुरानी रीत बे ॥१॥ गीदी बिछावो पाटो ढालो, लोटो भरो गिलास बे । थाल कटोरा भरके भोजन, बैठ जीमारो पास बे ॥२॥ मीठो जीमो मीठा बोलो, मीठी करजो बात बे। सीधा आवो सीधा जावो, घरे बितावो रात बे । ३।। कांई तो थे विणज करो अरु कांई करो व्यापार बे। कितरी थारे आमद खरचो कितरो है महावार बे ॥४॥ परधन माटी जेडो जाणो परनारी गिनजो मात बे। छेह किणी ने दीजो मती थे पहले पकड्यो हाथ बे ॥५॥ फैशन सूं थे दूर रहजो, मती लोपजो कार बे। भांग तमाखू मती अरोगो फेंको चिलम सिगरेट बे॥६॥ सट्टो छोड़ो लाटरी छोड़ो दोनों ही जुगार बे। मात पितारो कहनो मानो, शिक्षा लीजो धार बे ॥७॥ कपड़ा री थे राखो सफाई देव गुरु सं प्रीत बे। 'श्रीनाय' जब आओ सासरे सुण लोजो शुभगीत बे ॥८॥ 169 Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ रातरा गाने का गीत ।। ॥ जमाईजी रा गुण ॥ (तर्ज-हरियाडे जीरो नोपजे ।) जमाईजी भले ही पधारिया मारा फलिया हो मनोरथ आज टेर।। सामी मेलं करूँ आरती कांई बधाऊँ हो फुलडो रे हार ॥ जमाईजी भले ही पधारिया मारा फलिया हो मनोरथ आज ॥१॥ रांधू लचपची लापसी कांई जीमाऊँ हो घणी मनुहार ॥२॥ न्याय नीति कर शोभता मीठी वाणी हो पाले सदाचार ॥३॥ फैशन रो खरचो नहीं नशो हो नहीं खोटी रौल ॥४॥ धर्भ नेम पाले सदा भल पाले हो माइतारी आण ॥५॥ गुण-गरवा धीरा घणा देशी पहरे ओ चाले सादी चाल ॥६॥ रातरा भोजन नहीं करे नहीं नाखे हो ऐंठो मूंगो माल ॥७॥ बासी ये भोजन नहीं करे, भक्षाभक्ष हो जाणे गुणवान ॥८॥ पत्निवत धर्म पालता सोरो राखे हो सब परिवार ॥९॥ आगत स्वागत आपरो करसां हो मन हरख अपार ॥१०॥ शुभगीत नित गाबसा लाड़ कोंड हो करसां मनुहार ॥११॥ श्रीनाथ सुणसी सदा चोका लागे जमायां रा गीत ॥१२॥ ॥४ ॥ 170 Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ रातरा गाने का गीत ॥ ॥ जमाईजी रा बखान ॥ (तर्ज-श्री पाल की ।) आवो जमाई पांवणां गुणवंताजी, हम घर करो पवित्र हो जयवंताजी ॥टेर। घणां दिनां से आविया जमाईजी, कब की मैं जोऊँ वाट हो नणदोईजी ॥१॥ पहरण काठा कापडा जमाईजी, . कांई केसर तिलक लिलाट होनणदोईजी।२। चाल चंप गज गामिणी जमाईजी, कांई मधुरी वाणी रसाल हो नणदोइजी।३॥ पढिया गुणिया नसिधा जमाईजी, कांई धरम करम बड वीर हो नणदोईजी।४। मारा बाईजी लाडला जमाईजी, पतिव्रत धर्म प्रतिपाल हो नणदोईजी ॥५॥ आप पत्निवत पालजो जमाईजी, कांई बढ़सी चौगुणी प्रीत हो नणदोईजी।६।। हलका शब्द मत बोलजो जमाईजी, कांई रूठों ने लीजो मनाय हो नणदोईजी।७। 171 Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिन दस रहजो पविणां जमाईजी, कांई आइजो बारम्बार हो नणदोईजी ॥८॥ 'शुभगीत भल गावजो जमाईजी, कांई 'श्रीनाथ' सुख पाय हो नणदोईजी ॥९॥ ॥ रातारा गाने का गीत जमाई का गीत ॥ (तर्ज-पनीहारी ए लो) आया जमाई पांवणां गुणवंताजी, करूँ घणी मनुहार वारुंजी ॥ शूरवीर धीरज घणी गुणवंताजी, ___राजकँवर अनुहार वारूँजी ॥टेर। शुभ लक्षण कर शोभता गुणवंताजी, सागर सम गंभीर वारुंजी ॥१॥ . खानदान उच्च आपरो गुणवंता जी, पालो कुल आचार वारूँजी ॥२॥ रात्रि भोजन नहीं करे गुणवंताजी, भक्ष अभक्ष विचार वारूँजी ॥३॥ बासी बिदल जीमे नहीं गुणवंताजी। ऐंठो न नाखे लगार वारूँजी ॥४॥ मौसर में जीमे नहीं गुणवंताजी, और न जिमावे आप वारूँजी ॥५॥ 172 Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कन्या विक्रय जहां पर होवे गुणवंताजी, जीमे न जावे द्वार वारूँजी ॥६॥ बूढा रे तो ब्याव में गुणवंताजी, ___ करे घणो प्रतिवाद वारूँजी ॥७॥ फाटा गीत नहीं सांभले गुणवंताजी, . न देवे दूजा ने गाल वारूँजी ॥८॥ ज्ञान हुन्नर को घरे-घरे गुणवंताजी ये तो करे घणो प्रचार वारूँजी ॥९॥ बाईजी मारा समझना गुणवंताजी, वे थांरो बँटावे हाथ वारूँजी ॥१०॥ आनन्द सुं स्वागत करूं गुणवन्ताजी मैं गाऊँ गीत रसाल वारुंजी ॥११॥ पुरसणवाली पदमणी गुणवंताजी, थे जीमो राजकुमार वारूँजी ॥१२॥ साली सहेलियाँ सामने गुणवंताजी, . ऊभा करे अरदास वारूँजी ॥१३॥ दिन दस रहजो पावणा नणदोईजी, फेर आजो बारम्बार वारूँजी ॥१४॥ 'श्रीनाथ' शुभगीत ने गुणवंताजी, सुणजो श्रीफल बेचाय ॥१५॥ 173 Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ रात के समय गाने का गीत ॥ ॥ मारा राजकँवर नणदोईसा ॥ (तर्ज-मारा सूरज किरण नणदोईसा थे फाग खेलवा आईजोसा) मारा राजकँवर नणदोईसा सासरिय वेगा आईजोसा ॥टेर। सासरिये वेगा आइजो-शुभ गीतां री पोथियां लाइजो ॥ मारा राज कँवर ॥१॥ सिर पंचरंग पेचो सोहे-मारो निरख-निरख मन मोहे ॥ मारा राजकवर ॥२। थारे तिलक लिलाडे भलके-मूंडो सूरज ज्यूं चिलके ॥ मारा ॥३॥ फैशन रो खरचो छोडियो-थे प्रेम देश सुं जोड्यो । मारा ॥४।। नहीं नशा पता सुं राजी, थारी महिमा घर-घर गाजी ॥५॥ थारी चाल चूंप गजवाली, है वाणी मधुर रसाली मारा राजकँवर ।। ॥६॥ नही करो मसकरी खोटी, कुल रीत आपरी मोटी ॥ राजकबर १७॥ ये मगद चूरमो खाजा, थे जीमो ताजा-ताजा ॥ मारा राज कंवर ॥८॥ थे धर्म करण में शरा, पत्नि व्रता पालक पूरा ॥ मारा ॥९॥ क्यूं आप एकला आया, नहीं वेवायों ने लाया ॥ मारा राजकवर ॥१०॥ करूं आगत स्वागत थांरी, आ अरजी सुनजो मारी ॥११॥ मारा राजकवर ॥ है कोर कालजा केरी, मारा बाईसा थांरी चेरी ॥१२॥ 174 Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारा बाईसा भोला सेणा, नहीं मांगे थांसू रोणा, ॥ मारा राजकंवर ॥१३॥ खादी तूं प्रेम बढ़ायजो, मारे बाईसा रे रेजी लाइजो ॥ मारा राजकँवर ।।१४॥ शुभ गीत गायलो लावो, धीरज धर सुणता जावो ॥ मारा राजकंवर ॥१५॥ . ॥ जमाइजी रे परिवार रो बखाण ॥ (तर्ज-आकडारी डाल ऊपर कागलो झबूकेरे हां के हां ओ राज) नींबडारी डाल ऊपर काग बैठो बोल रे, हां के हां ओ राज । जमायां री खबरों लायो काग रूडो बोल रे हां के हां ओ राज ॥टेर। बाईसा ने खबरों देवो नणदोई सा आया रे ॥१॥ इतरे में देवरजी बोलया, बहनोई सा आया रे ॥२॥ घणा दिनां सुं वाट जोवती, आप पधारया आज रे ॥३॥ सुणो-सुणो फलाणचन्दजी सा थारी, मा बाप री जात रे ॥४॥ शहर सादडी मुलकों चावो, जठे विराजो आपरे ॥५॥ बाप आपरे गढ़ रा राजा, शूरवीर सरदार रे ॥६॥ माय आपरी रंभा राणी, रतनो री भंडार रे॥७॥ हिलमिल ने भेला रेवो, भायां रे परिवार रे ॥८॥ बहनों थारी चतुर सयानी, शुभ गीता सुं प्यार रे ॥९॥ कुल दीपक हो आप जमाई, गरवा ने दातार रे ॥१०॥ मां 175 Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बापरो केणो मानो, आज्ञा सिर पर धार रे ॥१॥ काठा कपडा पहरण थारे, फैशन सुं नहीं प्यार रे ॥१२॥ भणिया गुणिया हो घणा ने, नव सिधा हुश्यार रे ॥१३॥ मारा बाईसा लाडला ने, सेजां रा सिनगार रे ॥१४॥ खानदान कुल आपरो है, सब गुण रो भंडार रे ॥१५॥ धीरज धरने सुनजो सारा, शुभ गीतां रा सार रे ॥१६॥ ॥ दिनरा जमाई भोजन करते समय बोलने का गीत ।। (तर्ज-बोल्यो रे बोलयो) बोलयो रे बोलयो गीतां रे खातर बोलयो, ज्ञानवाली रा । घणो फूटरो बोलयो विद्यावाली रा। समय देखने बोलयो अवसर वाली रा। हां रेहूँ। मारे देशरो सेवक यूं । शुभगीत सुनाऊँ हूँ। ॥ बेटी को माता की सिखामण ॥ (तर्ज--- गोपीचन लडका) यूं कहवे माता, सोख सुणाऊँ बेटी सांभलो ।।टेर।। मुश्किल घणी कमाई बाई, पुरुष कमावे लावे। अण पढ़ियोडी नार होय सो, ऊँदो खर्च बढावे रे ॥१॥ चतुर सयाणी समझण तिरिया, घर रो लेखो राखे । आवक सुंखरचो कर कमती, सुखरो मेवो चाखे रे ॥२॥ 176 Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवक सुं जावक हो ज्यादा, घाटो नीव जमावे । पैसा हित पल्ला खेंचीजे, हाट हवेली, जावे रे ॥३॥ जिण मौसम में निपजे चीजां, उण मौसम में लेणी। लारा सुं लेवण में पड़सी, दणी कीमत देनी रे ॥४॥ बँदां-बँदां ताल भरीजे, कण-कण करता कोठी । । पंसे-पैसे पूंजी होवे, बात समझ आ मोटी रे ॥५॥ समझण नार समझ कर खरचे, वरचे चोखी लोग। . जगमें यश फैलायजे धीरज, सभी तरह से योग रे ॥ ६ ॥ | बधावा ।। . (तकं-कोरी तो कुडली ओ राज) मंगल गीतां रो आज गावो बधावो । गावो-गावो बाबा सा री पोल रंग रसिया राज गावो बधावो ॥ ।। टेर ।। पहलो बधावो राज विद्या रो आयो, आयोआयो गुरांसा रे द्वार गुण रसिया राज गावो बधावो ॥१॥ दूजो बधाओ राज ज्ञान रो आयो, आयो-आयो ज्ञानीजी रे द्वार चित्त रसिया राज गावो बधावो ॥२॥ तीजो बधाओ राज धर्म रो आयो, आयो-आयो साधजी रे द्वार दिल रसिया राज गावो बधाओ ॥३॥ चौथो बधावो राज विनय रो आयो, आयो-आयो सुसराजी रे द्वार सुख रसिया राज गावो बधावो ॥४॥ पंचम 177 Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बधावो राज 'धोराज' रो आयो, आयो-आयो ज्ञान भंडार श्रीनाथ राज गावो बधावो ॥५॥ होली का गीत । (राग-फाग) ऐसा खेलजो रे फाग सदा सुख पाओ ।।टेरा धरम का बाग खुली, रामकित को सरदा, विरती कोयल नाद करो भविका ॥१॥ कुमति होलीका ने दीजो मंगलाय ने, कर्मा की धूल उड़ावो भविका ।।२।। समता सरोवर, स्नान करो सुगणा, पाप को मैल पखालो भविका ॥३॥ धीरज को धोतियो थे, पेरो घणा प्रेस सं । जयणा को जामो पेरो भविका ॥४॥ परमार्थ को पागडी, उपयोग रो उपर नो, शील को सिर पेच थे बांधो भविका ॥५॥ क्षमा रूपी छोगो मेलो, धाटो बांधो सांच को । तप रूपी तुरों झुकावो भविका ॥६॥ करुणा का कुण्डल चोकसी का चौकडा, भक्ति की भमर कडी पेरो भविका ॥७॥ दसविध धरम को, हार हिये पेरजो। दान-मान कडा हाथ पेरो भविका ॥८॥ वैयावच्य बीटी दस, अंगुली में पेरजो, क्रिया के कन्दोरो थे पेरो भविका ॥९॥ भावरूपी मांग 178 Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ को थे घोट-घोट पोवो, संतोष की शक्कर मिलाओ भविका ॥१०॥ धर्म कुटुम्ब संग, सुमति सुहागन, हिलमिल गेर खूब खेलो भविका ॥११॥ सज्झाय का ढर्फ लेवो, झांझलो भजन को, प्रभु गुण गान खूब गावो अविका ॥१२॥ लोभ रूपी इलोजी, महानिर्लज जग में, जिनको थे खूब तरसावो भविका ॥१३॥ जिनवाणी पानी, वैराग्य रंग घोलजो, उपदेश की पिचकारी भर मारो भविका ॥१४॥ शुक्ल लेश्या की झोली, गुलाल शुभ ध्यान को, भर-भर मुट्ठी उडावो भविका ॥१५॥ संवर की सूकडी ने, गोठ करो ज्ञान की, गेर चारों तीरथ काडो भविका ॥१६॥ तेरह क्रिया की थे नानणो करजो, दया की दुकान मांड बैठो भाविका ॥१७॥ ऐसो भाग रमो, साल-दरसाल थे, सिद्धपुर पाटन में बसो भविका ॥१८॥ भारी करम जाके, दाय नहीं आवसी, हलुकर्मो सो हरषावे भविका ॥१९॥ जो नहीं मानसो तो, आगे पछतावसो, सतगुरु ज्ञान बतावे भविका ॥२०॥ उगनीस सौ सैंतीस, फागण वदी में, बीज बुधवार आयो भविका ॥२१॥ तिलोक ऋषी कहे मिरज गांव में, धरम को फाग सरायो भविका ॥२॥ 179 Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ होली का गीत ॥ ___ (तर्ज-धूसो बाजे रे) होली खेलो रे-बाल सब मिलकरके ॥टेर॥ गाल न बोलो, कीच न ढोलो। मिल करके मण्डल खोलो। हो ॥१॥ पत्र पढो अरु खबर सुनाओ। शुभ गीतों को मिल गाओ । हो ॥२॥ सत पुरुषों को संगती कीजे । व्यसन त्याग सुयश लोजे । हो ॥३|| नाच बजाय प्रभु गुण गावो । वसंत ऋतु को लो लावो । हो ॥४॥ बाल करें गुरु ज्ञान की भक्ति । बदनकांत यह शुभ युक्ति । हो ।५।। ॥ गंदा गीत ॥ (तर्ज-धूंसो बाजे रे ) मती गावो रे गीत फाटा कोई, मती गावो रे ॥टेर। फाटा-फाटा गीत रूलियारों ने भावे, . दूजां ने नहीं दाय आवे । मती गावो रे ॥१॥ फाटा गायाँ दूनी आफत, राज अपडले ने डंडे ॥२॥ co 180 Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ टाबर गावे देश डुबावे, संस्कार खोटा होवे ॥३॥ असर पडे कानून रो कमती, पिण गीतां रो तो ज्यादा ॥४॥ दुरगुण इणसुं छांने उपजे, लारां सुं चवडे आवे ॥५॥ व्यभिचार री चाह बढावे, छोडो थे बद । गीतां ने मत गावो रे गीत फाटा कोई ॥६॥ ब्रह्मचर्य रो नियम टूटे, जिणसुं , बल बुद्धि खूटे ॥७॥ चौखा गीत बनाओ गाओ, खोटा ने मत अपनावो ॥८॥ शुभ गीतां सु होय सुधारो, बद गीतां रो उठाओ धारो ॥९॥ मिस मेयो यूं दाग लगावे, भारत में फाटा गावे ॥१०॥ शुभ गायन श्रीनाथ सुनोओ, जो थे सुख साचो चाहो ॥११॥ 181 Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ शीतला माता ॥ ॥ झुठा बहम || ( तर्ज - गोपीचन्द लड़का ले ले फकीरी तज दे राज ) टाबर ने ठारो, धाने मनाऊँ माता शीतला || टेर || धुगधुगती सिगडी माथे पर, उलवाणे पग आऊँ । ओछू रुपियो सवा रोकडो, डावा हाथ सुं खाऊजी ||१|| गेला गूंगा बावलास में, चूक्या गेले घालो । आई आफत आपरे सरे थे, किरपा करने टालोजी ॥२॥ ठंडी बासी घाट राबडी, भीख मांग ला खाऊं । खण लेऊं मांचे सूत्रण रो, झट दर्शन ने आऊँजी ॥३॥ अंधी सरदा मांय लोग यूं रोग बढाता जावे । योग्य मान नहीं करे दवाई, खता हाथ सुं खावेजी ||४|| श्री नाथ इण तरह बहम है, झूठा घर-घर चाल्या । माता है वह रक्षा कर दे, क्यूं टाबरिया बाल्याजी ॥५॥ ॥ शीतला माता का स्तवन ॥ (तर्ज--माता के दरबार चंपो बहुत फलियो मारी मांय ) दया माता के दरबार ज्ञान का फूल खुल्या मारी मांय, ये कुण जी सीखे ज्ञान, ए कुण जी धारे मारी मांय ॥ गौतम स्वामीजी सीखेजी ज्ञान, श्री संघ धारण करे मारी मांय ॥ धारयो सीखयो ज्ञान, मुगती मांय ले जावे मारी मांय ॥ 182 Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ आदर्श शीतला माता ॥ (तर्ज-थे मारी सेडल माता सेरां नगरा जोगा तो) थे मारी दया माता तीन लोक पूजिजो तो, छः काया री रक्षा मैं नित करां ए मांय ॥१॥ थे मारी दया माता झूठ नहीं बोलो तो, सत्य वचन सुखकारीया ए माय ॥२॥ थे सारी दया माता चोरी नहीं करे तो, पर धन तो थे पर हरयो ए मांय ॥३॥ थे मारी दया माता ब्रह्मचर्य पालो तो, उत्तम तप हो कह्यो ए मांय ॥४॥ थे मारी दया माता परिग्रह नहीं राखो तो, ममता मोह निवारियो ए मांय ॥५॥ थे मारी दया माता रात्री भोजन नहीं करो तो, लेप मात्र नहीं राखती ए मांय ॥६॥ .... आ तो है जिन मारग री आ माता तो, इनने सेवयां सुख उपजे ए मांय ॥७॥ दया माता बालक ने नहीं मारे तो, रक्षा करे सारा देश की ए मांय ॥८॥ माता होय बालक ने मारे तो, वो माता नहीं कहलावती ए मांय ॥९॥ 183 Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आ तो चेचक रोग तन मांय उपजे तो, माता ने दोष किम देवता ए मांय ॥१०॥ दवाई देय ने चिकित्सा करावो तो, ततकाल रोग मिट जावती ए मांय ॥११॥ आछा तो कपडा ने गेणा पेर ने जाओ तो, कादा कीचड भर घर आवसो ए मांय ॥१२॥ दही चढावे ने करबो चढावे ने, कुत्ता पड-पड चाटता ए मांय ॥१३॥ माथे तो धार लगाय ने दौडे तो, देवी री अशातना इम होवे रे मांय ॥१४॥ दया पालो ने नवकार सुनाओ तो, बालक ने साता ऊपजे ए मांय ।।१५।। मिथ्या भरम मन मांय काढो तो, जिन धर्म री सेवा थे ए मांय ॥१६॥ शासन देवता साता जो करसी तो, दया माता री जय बोलजो मांय ॥१७॥ ॥शीतला देवी का स्तवन ॥ (तर्ज-वीरा माहरा गंज थकी उतरो) पूजो जिनवाणी माता शीतला शीतल चित्त करो भावेजी। संसार दाबानल उपशमे, भविजन सुन उलसावेजो ॥ 184 Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूजो ॥१॥ चतुराई चूलो थापजो, कर्म इंधन करो भावेजी । तप अग्नि धकावजो, काया कडाई चढ़ावेजी ॥ २ ॥ करुणा रस घृत पूरजो, निर्ममता कर मेंदोजी, क्षमा रूप खाजा करो, सुगुण गुंजा उमेदोजी ॥३॥ परमारथ पूडी करो, पुण्य-पाप खीचड जाणोजी । संतोष रूप करो लापसी, समता शक्कर बखाणोजी ॥४॥ धर्म मोदना मोदक करो, जयणा जलेबी बनावोजी । प्रीत रूप पेडा करो, प्रेम का घेवर बनावोजी ॥५॥ दया का दूध ओटावजो, दान को दही जमावोजी । सुबुद्धि रूपी बरफी भली, उपयोग का ओला बनावोजी || ६ || बडा करो विज्ञान का, गुलगुला गुप्ति रसालोजी, भावना रूप भुजिया करो, हेतु दृष्टांत मसालोजी ॥७॥ गुरु सेवा रूपी सेवां करो, तत्व को तेवन ठवोजी । भज पकोड़ी चरपरी, सुकथा कचोरी सरावोजी ॥८॥ चौकसी चौखा आणीजी, रूप रुच रायतो करीजोजी, घाट राब करबो करो, हिरदे हांडी में धरजोजी ||९|| स्नान करो उपशम जले, पाप को मैल पखालोजी | शील शृंगार सजोसरे, कषाय अग्नि को टालोजी ॥१०॥ सुगुरु केन कलसां विषे, ज्ञान का जल भर लेवोजी । मेंदी अहो अनुमोदना, सुमती सुपारी ठावोजी ॥११॥ स्थिर परिणाम थाली करो, विवेक बाटको जाणोजी 185 Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विजयपिंगाणी, बनावजो, सत्य को कुंकुम घोलाणोजी ॥१२॥ अक्षय गुण आखा चढाइये, प्रश्न का पान विचारोजी। कोति फूल शुभवासना, ध्यान की धूप उदारोजी ॥१३॥ शुक्ल लेश्या को रुई करो, नेम नैवैद्य लीजोजी, आवत रज परिटालवां, त्याग को गहणो ढांकोजोजी ॥१४॥ परमेष्टी गुण शुद्ध दाखियां, गावजो गीत रसालोजी । पूजा करो इस शाश्वती, सकल कर्म होय टालोजी ॥१५॥ धर्म पुत्र चोखो रहे, रिद्दि-सिद्धि बहु थावेजी। शिवरमणी वरे शाश्वती, दुःख कदी नहीं आवेजी ॥१६।। उन्नीस सौ अड़तीस शीतला दिने, कीनी थी यह सज्झायोजी, देश दक्षिण के मांय ने, तिलोक ऋषि फुरमावेजी ॥ पूजो ॥१७॥ ॥ लड़कियां गुड़लियो फेरने का गीत ।। ( तर्ज-गुड़लिया रे बांध्यो सूत गुड़लियो धूमेलाजी घूमेला ) सहेलयां रो मिल गयो साथ, कलश लेवेलाजी लेवेला ॥१॥ वे लीनो अपने हाथ, भरतजी रे घर आवेलाजी-आवेला ॥२॥ ये ऊभी आंगण मांय, आदर देवेलाजी, देवेला ॥३॥ गलिछो देवी बिछाय सहेलियां बैठेलाजी, बैठेला ॥४॥ सुभद्राजी आओ पात, रुपैया देवेलाजी, देवेला ॥५॥ वाने दूध तो देय पिलाय, शुभ 186 Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गीत सुनावेलाजी, सुनावेला ॥६॥ वे पडिक्कमणो देवे सुनाय, बैठने सुनोलाजी-सुनोला ॥७॥ वाने स्कूल देवो खुलाय, विद्यावंती होवेलाजी होवेला ॥८॥ थाने कुल री शोभा बढ़ाय, धर्म दिपावेलाजी दिपावेला ॥९॥ ॥गिनगोर ॥ (तर्ज-- शान्तीलालजी रे सात बेटा बाई ए) आदिनाथजी रे सौ बेटा बाई ए ब्राह्मी, सौवां री बधाई मांगा बाई ए सुन्दरी, आदेश्वरजी चौंसठ कला सिखाई बाई ए ब्राह्मी, बहोत्तर कला का ज्ञान बताया बाई ए ब्राझी, ब्राह्मी सुन्दरी ज्यं माने ज्ञान सिखाइजो सुनो ओ पिताजी, सामायिक पडिक्कमणो पच्चीस बोल सिखायजो सुणो ओ पिताजी, नवतत्व रा भेद बतायजो सुनो ओ पिताजी, स्थानक जावां दर्शन करतां गुरुका ओ पिताजी, व्याख्यान सुनने बुद्धिवंत होसं ओ पिताजी, गुरुजी ऐसा ज्ञान सुनाया सुनो ए बायां ।। फैशन को तो त्याग दीजो सुनजो ए बायां सादो सूदो जीवन राखो गुणवंती ए बायां, सिनेमा नाटक देखन मत जाइजो शीलवंती ए बायां, लोकां में अपजस होसी जीवन बिगड़ जासी ए बायां, गंदा गीत कदी मत गायजो बाजरां मत हंसजो ए बायां, सीख मानो तो थे सुख पासो नहीं तर अपजस पासो ए बायां ॥ 187 Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ गिनगोर ॥ (तर्ज-हां ए मारो गवरल माथन मेमद लावसां) हां ए मारी शासन जिनधर्म की रक्षा पाल ए, पुन्य गोरो ने पाप सांवलो ॥१॥ हां ए मारी शासन धर्म दोय प्रकार ए, साधु श्रावक नो जाणी ए ॥२॥ हां ए मारी शासन, विनय धर्म मूल ज णी ए, दया रे मुकुट सुहावनो ॥३॥ हां ए मारी शासन नव रत्न नव सर हार ए, करुणा रा कुण्डल शोभता ॥४॥ हां ए मारी शासन व्रत रा रतन जडाय ए, नथनी जतना री शोभती ॥५॥ हां ए मारी शासन, सत्य धर्म बाजु बंध ए, चुडलो तो सोवे सेवा धर्म को ॥६॥ हां ए मारी शासन, वैयावच्च की मूंदडी ए, किरिया कंदोरो दोपतो ॥७॥ हां ए मारी शासन, जतना रा बाजे थारा घघरा ए, शान्ती वरतायजो सारा तीर्थ में ॥८॥ हां ए मारी शासन ऐसी गिनगोर थे पूजसो ए, होवेला परम कल्याण है ॥९॥॥इति॥ ॥ गोबर थे मत बीणजो मारा बाइजी ॥ ॥ श्रावण के तीज के दिन गाने का गीत ॥ __ (तर्ज-आठ कुआ नव बावडी पणिहारी रे लो) गोबर थे मत बीणजो मारा बाईजी, मारा बाई जी । कांई जिणसु जावे लाज भोजाई जी ॥टेर। उत्तम 188 Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुल है आपरो मारा बाईजी, मारा बाईजी । मत करजो हलको काम भोजाईजी ॥१॥ ओडीले थे हाथ में मारा बाईजी, मारा बाईजी। क्यों जावो जल्दी बार भोजाईजी ॥२॥ थां लारे फिरता फिरे मारा बाईजी, मारा बाईजी। कोई व्यभिचारी रूलियार भोजाईजी ॥३॥ गोवर कीड़ा कलबले मारा बाईजी, मारा बाईजी । कांई गोंडोला हो जाय भोजाईजी ॥४॥ बिच्छु विण में नोपजे मारा बाईजी, मारा बाईजी। कांई रात वगत खा जाय भोजाईजी ॥५॥ गोबर सुं गेणो घसे मारा बाईजी, मारा बाईजी। कदी कदी गम जाय भोजाईजी ।।६।। गाबा बिगडे ऊजला मा० बा०, कांई आवे मँडो बास हो भो.॥७॥ इज्जत इनसुं कम होवे मा० बा०, क्युं होवे जग बदनाम भो० ॥८॥ गा करे पाडो करे मा० बा०, लो टोगड़ियों रो नाम भो० ॥९॥ लाज शरम ऊंची धरी मा० बा०, थे नाटो पोठा देख भो० ॥१०॥ एक पोठा रे कारणे मा० बा०, थे खावो गाल हजार भो० ॥११॥ लडवा में कमती नहीं मा०, बा०, थे राखो नम्बर वन भो० ॥१२॥ चूडारी चटको करे मा० बा०, दे रांड रंडोंचां गाल भो० ॥१३॥ चंपारी पोशाल में मा० बा०, कांई सीखो खोटा लंछ भो० ॥१४।। काम छोड़ने घर तणो मा० बा०, कांई गप्पों 189 Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ में प्रवीण भो० ॥१५॥ मैं भोली समझी नहीं मा० बा०, मैं जाऊं देखा देखा भो० ॥१६। दमडी गोबर करणे मा० बा०, नहीं खोसू नंगी टेम भो० ॥१७॥ घर में चरखो काता मा० बा०, गाने 'धीरज' सँ गीत भो० ॥१८॥ ॥ श्रावण के तीज ।। । पति-पत्नि का संवाद ।। (तर्ज-हंस-हंस पूछू बात ढोला ) में थाने पूछों बात ढोला क्यूं तो थे मुलकाया हो माने देखने हो राज । कांई थे पूछो बात मरवण, रीत न मानो तो कहदं साची बातने हो नार ॥टेर॥ बेगा वतावो बात बाला धीरज तो आ जाय ओमारा जीवने हो राज ॥१॥ पेरण झीणा कापडा गोरी, देख हंसे संसार ओ थारा डीलने हो नार ॥ कांई ॥२॥ खादी मंगादो आप ढोला, तो तज देऊ झीणा निर्लज देशने हो राज ॥ में ॥३॥ हाथ में हाथी हाड गौरी, डील दुखावण थारो है चूडो सूगलो हे नार ॥काई॥४॥ हलको करदूं हाथ ढोला, लाख टकारी लादो चमकती चूडियां हो राज ॥ में ॥५॥ गणो गधारो भार गौरी, हाथ हथकडी ने बेडी पग में मैल है ओ नार । कांई 190 Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ६ ॥ दोरी वगत में काम आवे, टाबरिया पेरे तो दोसे फूटरा ओ राज || में ॥ ७ ॥ पूंजी घटे चौरी बढ़े गौरी, टाबरिया पेरे तो मारया जावसी ए नार ॥ कांई ||८|| सहजे छोडूं भार साहब, करसूं अब सिनगार पतिव्रता धर्म रो हो राज || में ॥ ९ ॥ टावर मैला दुबला गौरी, साखी ने मछरिया काटे सूगला हो नार ॥ कांई ॥ ||१०|| रोज नावसुं टाबरों ने, गाबा तो पहरासुं वाने ऊजला हो राज || में ॥। ११॥ अम्बल क्यूं दो टाबरों ने, नशा सुं मरजासे टावर मोकला हो नार ॥ कांई ॥ ||२१|| दूध पिलासुं टेम्पर ढोला, अम्मल तो देवन री है सोगन आज सूं ओ राज ॥ १३॥ धीरज मन हरख्यो घणो गौरी मारी सगली सीख थे हिरदे धार ली हो नार ॥ १४॥ || गौरी रा साहिबा | (तर्ज- मन मोहन साधुजी थुनि ) राज । गौरी रा साहिबा परदेशां बसिया ओ पधारो बालमा शुभ गीतां रा रसिया हो । टेर ॥ कागज लिख भेज्या घणा रे, एकण की नहीं पहुँच के तो वे पहुँच्या नहीं रे, के घर को नहीं सोच ॥ १ ॥ थां लारे मैं छोडिया रे, बाला माय बाप | देय दिलासा कागजां रो, छोड़ गया घर आप ||२|| 191 Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओलू थारी आ रही, चित्त न पावे चैन । आँसूडा टपकारतां रे, थाका मारा नैन ॥३॥ बिजलियां चमके घणी रे, गरज रह्यो घनघोर । पिऊ परदेशां जा बस्या रे, प्यारी सुं मुख मोड ॥४॥ ताल तलैया भर गया रे, बोले दादुर मोर । पपैया प्यू-प्यू करे रे, नेक न भावे शोर ॥५॥ खोटा खरचा कारणे रे, बैठो बिछवा आप । किरियावर किम काम का रे, धान मिले अठे धाप ॥६॥ फैशन खरचो पूरवां रे, छोड़ चलया घर नार, फैशन ऊपर बिजली रे, क्यों न पड़े करतार ॥७॥ अंग्रेजी में धार लो रे, अंग्रेजी तज साज । कल पाओ घर आवता रे, कलपाओ मत राज ॥८॥ गाती जाती वाट में, बालम मिलिया आय । सोना रा सूरज ऊगियो रे, धीरज मन हरषाव ॥९॥ ॥ पत्नी का पति से कहना ॥ (तर्ज- सरीता कहाँ भूल आए प्यारे ननदया) अपने दिल री बातां पियाजी सुं पूछ रही, साचीसाची बातां पियाजी सुं पूछ रही ।।टेर। साची बात सुनाऊं साहब जो थे हुकम दिरावो। भूल चूक हो जावे स्वामी खामी माफ करावो ॥१॥ में तो बालो 192 Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पीहर छोड्यो लारे आप रे आई । आप कदी भी दिल री बातों खोल नहीं दरसाई ॥२॥ पांच वरष परण्यो ने हो गया कदई दाय नहीं आई। बात-बात में रूठ आप तो राती आंख दिखाई ॥३॥ मारो रंग सांवलो थाने निशदिन लागे खारो । आ तो बात हाथ कुदरत रे मारो नहीं हो सारो ॥४॥ साथीडो ने साथ लेय ने गोठ गूंगरी जावो । उठे बुलावे पातरियों ने जिनरो मरम बतावो ॥५॥ हुकम उठाने वाली नारी घर री लागे खारी। पर नारी हरनारी धन री किन विध लागे प्यारी ॥६॥ बारे पग पड़ गयो आपरो मारा सुं नहीं छानो श्री नाथ पछताणो पड़सी धीरज धर नहीं मानो ॥७॥ ॥ पति-पत्नी का संवाद ।। (तर्ज-आठ कुआ नव बावडी पणिहारी रे लो) आयी सावन री तीज ओ मारा प्रीतमजी, मारा प्रीतमजी हिडोलो देवो गलाय साहबजी ॥१॥ हिंडोलो पर मत बैठजे गुणवंतीजी, गुणवंतीजी, वायु काया री हिंसा थाय बुद्धिवंतीजी॥२॥ नीचे पडे तो तल ने लागे गुणवंतीजी, गुणवंतीजी हाथ तो पैर टूट जाय बुद्धिवंती जी ॥३॥ लम्पटी पुरुष देखे घणागुणवंतीजी, गुणवंतीजी, 193 Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . . नहीं यह कुलवंती री रीत बुद्धिवंतीजी ॥४॥ तीज तिवार मती करो गुणवंतीजी, गुणवंतीजी । अनदंड हिसा थाय बुद्धिवंतीजी ॥५॥ लिलोत्री छेदो मती गुणवंतीजी । मती जीमो रात्री के मांय बुद्धिवंतीजी ॥६॥ व्रत महावीर बारह कह्या गुणवंतीजी, गुणवंतीजी, दूजा व्रत मती जाण बुद्धिवंतीजी ॥७॥ उपवास, एकासणा थे करो गुणवंतीजी, गुणवंतीजी, आयम्बिल तप लेवो धार बुद्धिवंतीजी ।।८॥ ए व्रत थे नित करो गुणवंतीजी गुणवंतीजी, जासो मुगती मझार बुद्धिवंतीजी ॥९॥ मिथ्या पर्व अभी नहीं करूँ मारा प्रीतमजी, प्रीतमजी, सम्यक्त्व व्रत सुखकार साहबजी ॥१०॥ फाटी गाली मत गावजो गुणवंतीजी, गुणवंतीजी । लागे दोष अपार बुद्धिवंतीजी ॥११॥ ढूंटया कभी मत काढजो गुणवंतीजी, गुणवंतोजी । नकल करो मती कोय बुद्धिवंतीजी ॥१२॥ गेर कभी मत खेलजो गुणवंतीजी, गुणवंतीजी । पाप लागे अपार बुद्धिवंतीजी ॥१३॥ पर पुरुषां के तन पर गुणवंतीजी, गुणवंतीजी। मत डालो कोई नीर बुद्धिवंतीजी ॥१४॥ शील व्रत में दोष लागे गुणवंतीजी, गुणवंतीजी। केई बिगड़या लोग बुद्धिवंतीजी ॥१५॥ पतला कपडा मत पेरजो गुणवंतीजी, गुणवंतीजी, जो दीसे सारे अंग बुद्धिवंतीजी 194 Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१६॥ घणा पुरुष बिगडे घणा गुणवंतीजी, गुणवंती जी। मत करो ऐसा सिनंगार बुद्धिवंतीजी ॥१७॥ सादी-सूदी रेवसुं मारा प्रीतमजी, मारा प्रीतमजी । पालुं मैं शुद्ध आचार बुद्धिवंतीजी ॥१८॥ जुवा-सट्टा मत खेलजो मारा प्रीतमजी, मारा प्रीतमजी। दुनिया में इज्जत नहीं थाय साहबजी ॥१९॥ भांग तमाखू मत पीवजो मारा प्रीतमजी, मारा प्रीतमजी । इनसं रोग हो जाय मारा साहबजी ॥२०॥ देवालिया कह बतलावसी मारा प्रीतमजी मारा प्रीतमजी । माने आसी लाज मारा साहबजी ॥२१॥ परनारी माता गिनो मारा प्रीतमजी, मारा प्रीतमजी । करो पर नारी का त्याग मारा साहबजी ॥२२॥ इज्जत बढने धन रेने मारा प्रीतमजी मारा प्रीतमजी कुल में लागे न दाग मारा साहबजी ॥२३॥ करजो सिर पर मत करो मारा प्रीतमजी, मारा प्रीतमजी । उलटा व्यापार दुःखदाय मारा साहबजी ॥२४॥ होली रो गीत मत गावजों मारा प्रीतमजी मारा प्रीतमजी, मती खेलो होली रो फाग मारा साहबजी ॥२५॥ सत पुरुषां रा काम नहीं मारा प्रीतमजी, मारा प्रीतमजी । यह रूलियारां काम मारा साहबजी ॥२६॥ माता-पिता री सेवा करो मारा प्रीतमजी, मारा प्रीतमजी, गुरुजीरा सुनो व्याख्यान 195 Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारा साहबजी ||२७|| एक सामायिक नित करो मारा प्रीतमजी, मारा प्रीतमजी, मारा प्रीतमजी सुघर जावेला जमार मारा साहबजी ||२८|| ओ शिक्षण दिल धार लो मारा प्रीतमजी, मारा प्रीतमजी । सुधर जावेला जमार मारा साहबजी ||२९|| शुभ गीतां रा पुस्तक बाचजो मारा प्रीतमजी, मारा प्रीतमजी । सायरवरजी देवे उपदेश मारा साहबजी ॥ ३० ॥ ॥ बहन भाई को समझाती है || ( तर्ज - छोटी मोटी सुइयों रे, जाली का मेरा ) छोटे मोटे भाइयो रे सुनो ये मेरी अर्ज को ॥टेर || एक दुःख पाया तुमने, फैशन के राज में, हाँ फैशन के राज में । आमदनी से खरचा बढ़ाया सर पर चढाया कर्ज को ॥ १ ॥ एक दुःख पाया तुमने, फूट के राज हां फूट के राज में । आपस में कर तकरार, कराया अपने को || २ || एक दुःख पाया तुमने अंधी श्रद्धा के राज में । जन्तर मन्तर कराय, बढाया अपने सरज को ॥ ३॥ एक दुःख पाया तुमने, जुए के राज में धोखे से गये ललचाय, भुलाया अपने फर्ज को ||४|| एक दुःख पाया तुमने, पंचों के राज में । रूढी के जाल फँसाय, करावे अपनी राज को ||५|| अब सुख पाओ शुभ, गीतों के राज में । हराकर श्रीनाथ, सुनाओ मोठी तर्ज को ॥६॥ 1 196 Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ नशेबाज || (तर्ज सीता माता की गोद में हनुमत डारी) खोलो नशेबाज की पोल सभा के सामने जी ॥टेर ॥ पहले खोवे घर की लाज, कहलावे है नशेबाज । वर्णन सुन लो उनका आज, सारा बिगड़ गया है समाज नशे के कारणे जी ॥१॥ देखो लाल आँख का रंग, समझो पी ली उसने भंग, जिसके घर वाले है तंग, बिगड़ा सदाचार का ढंग नशे के कारणेजी ॥२॥ आयी ऐसी आखा-तीज, वो गई निर्धनता का बीज, अम्मल महंगी खारी चीज, पूँजी सभी गई है छीज नशे के कारणेजी ॥३॥पी कर आये खूब शराब, पड़ गये नाली बीच जनाब, कुत्ता कर गया मुँह पेशाब । समझे चरका आया ख्वाब नशे के कारणे जी ॥४॥ गाँजा चरस और कोकेन, सुलफा पी कर खोये नैन, रोते ऋण कारण दिन रेन । गाकर समझाता श्रीनाथ नशे के कारणेजी ॥५॥ ॥ बहनों को शिक्षा ॥ (तर्ज-तुम तो भले विराजोजी) बहनो बेगी चेतो ए; साची आ सीखामण ॥ बहनो ॥टेर।। मूरखता में रहनां बहना, बिगड़ गया सब कार अब तो थारी हुई जरूरत, हो जाओ तैयार ॥१॥ 197 Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विनय छोड़ सासू ननदां सुं, घणी मचाई राड़ । धरम करम री बातां भूलो, गाकर फाड़ कुफाड़ ||२|| मंतर डोरा मादलिया कर, बाबाजी ठग जावे । भेम घाल पाखंडी थांने, अपने जाल फसावे ॥३॥ डाकणियां चूडेला केरो, झूठो घाले भेम । थे भोली डर जावो विरथा, तोड धरम रो नेम ||४|| मिनख पुराणा चवडे कहवे, थांने पगरी जूती । ओ अपमान सहकर बहनों, कब तक रहोला सूती ॥५॥ थे भणियोडी नहीं होवण सुं, ऐडी होवे बात । ज्ञानवान गुणवंती होयने, खरी बतावो जात ||६|| आंधी सरदा मांहे रहता, गया घणा दिन बीत । अब तो शुभ गीतां री पोथ्यां, पढ़ मेटो कुरीत ॥७॥ लाज धरम मर्यादा रख कर सुरीतां लो धार । इणसुं थांरो मान बढेला, और बचेला मार ॥८॥ भणी-गुणी बहनां रे नेडा, लुच्चा कदी न आवे । वे धीरज धारण कर मनमें, पति प्रेम उर लावे ||९|| * चरखा (तर्ज- जोधाणा ने पाली बीच में लांबी सडकों घाली रे ।) हां रे मांडो अरटियो, सीखामण साची रे ॥टेर || पाछो मांडो अरटियो, क्यूं खूंटी माथे धरियो रे । अरटियो तो देश रो, उपकार करियो रे ॥१॥ 198 Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाला बैठा मानवियों ने, ऊंदा काम सूजे रे। कामरा करता ज्यां ने लोग बुझे रे ॥२॥ काठा गाबा पेरे ज्यां रे, घर में लाभ होवे रे । जीणा कपड़ा पेरंता तो पूंजी खोवे रे ॥३॥ गायां रे चरबी री पण जिण रे मांय लागे रे । पाप रो तो लेखो जिण रो, होसी आगे रे ॥४॥ सात महीना करसा सारा बैठा निकम्मा रेवे रे । साठ क्रोड रो घाटो वरसा वरसी सहवे रे ॥५॥ धीरज धारो देश सुधारो, अंगरेजी ने धारो रे । बालो लागे अरटियो आँखों रे तारा रे ॥६॥ ॥ चोखी रीतां ॥ (तर्ज-लाल केश्या थारे मारे कदरी परीत रे ।) पिऊजी मारा चोखी-चोखी रीतां रो परचार रे, वेगो करोनी भारत देश में ॥टेर। पिऊजी मारा छोटा-छोटा टाबरां रा विवाह रे, किकर करे है मायत हाथ सुं ॥१॥ पिऊजी मारा काची-काची कूपलियाँ ने तोडतां, फल पावण री आशा क्यों करे ॥२॥ पिऊजी मारा हंसे-हंसे सब संसार रे, मानो परणाया ठूला दलियो॥३॥ पिऊजी मारा करे करे पोतां री आश रे । काचा वीर्य सुं काई काम है ॥४॥ पिऊजी मारा बूढा 199 Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बूढा डोकरां रा व्याव रे, लोभी मायत भरे थैलियां ॥५॥ पिऊजी मारा छोटी-छोटी छोरियाँ डुबाय रे। बूढा मरियां सुं विधवा हो रही ॥६॥ पिऊजी मारा छानेछाने गर्भ गिराय रे, भ्रूण हत्या रा पाप मोट का ॥७॥ पिऊजी मारा डुबे-डूबे जिणसं देश वे, सांच कहूँ तो शरमां मरूं ॥८॥ पिऊजी मारा देखे-देख पातरियाँ रा नाच रे, जिणसुं बिगाडो हुओ देश रो॥९॥ पिऊजी मारा फैले-फैले घणो व्यभिचार रे । रोग तो इतरा के गिनती नहीं ॥१०॥ पिऊजी मारा रोवे-रोवे नार रुलियार रे, गरमी ने सुजाक ज्यों रे हो गई ॥११॥ पिऊजी मारा फाटा-फाटा फागण रा गीत रे । भंडा घणा है लाल केशिया ॥१२॥ पिऊजी मारा बिगडेबिगडे छोटा बाल रे, सीखे लुगाईयां खोटा लंछ ने ॥१३॥ पिऊजी मारा कहतां-कहतां छाती घबराय रे, सारा दोषां री गिनती नहीं हुए ॥१४॥ पिऊजी मारा चेतोचेतो भारत डूबो जाय रे, अभे सोया सुं भूडी लागसी ॥१५॥ पिऊजी मारा खोटा-खोटा पंच करे न्याय रे, पोल उघाडो वारी पलक में ॥१६॥ पिऊजी मारा सुनो-सुनो सारा शुभ गीत रे, दस मंगादो मारा भाग ए ॥१७॥ पिऊजी मारा मिले-मिले जोधाणां रे मांय, जैन ऐतिहासिक ज्ञान भण्डार में ॥१८॥ पिऊजी 200 Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारा धन-धन धीरज आपने, गीत सुधारक सांचा देश रा ॥१९॥ ॥ वेश्या निषेध ॥ (तर्ज-मोटर होले-होले हाक ड्राइवर मेरा मन) में थने बार-बार समझाऊं बालम पातर रे मत जाय । वेश्या रे मत जाय थाने लेवेला विलमाय ॥टेर।। खानदान अति उत्तम थारों, चालो चोखो चाल । पातरियां रे परवश पडियां, होवेला बे हाल ॥१॥ मोंडी लागे कुल रे माथे, लोग आंगली काढे। . बडेरां रो बट्टो लागे, जाताँ रास्ते आडे ॥२॥ प्रीत करे धनवान पुरुष सुं, झूठो प्रेम दिखाय । माल उतारे मुलक-मुलक ने, चूंट-छूट ने खाय ॥३॥ पैसा जद नहीं पास रहे तद, सांमी भी नहीं भाले। तोतावाली आंख पलटने, जूता मार निकाले ॥४॥ कंचन काया माटी होवे, लागे खोटा रोग । गरमी ने सुजाक हुवां सुं, हंसे देख के लोग ।।५।। भोला मिनख भरम में पड़ने, पहले देखे नाच । नेणारा टमकारा सेती, फंसे कहूँ मैं साच ॥६॥ कूण-कूण सारंगी पूछे, तबला दे धिक्कार । हाथ काढ पातर बतलावे, सांभलो सरदार ॥७॥ 201 Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पति रहे पातरियां मांहि, पत्नि मदन सतावे । जोबन झिलती कामणियां ने, कीकर 'धीरज' आवे ॥८॥ ॥ दारूडे की चाट । (तर्ज-मारे छल भवर रो कांगसियो पणिहारी) मारा प्राणनाथ ने समजाऊँ दारूडो छोडो जी ॥टेर।। दारूडो मारूजी छोडो, भूडो भुंडो बासे रे ॥१॥ सडियोडा महूडा सुं होवे, कीकर पीयो जावे रे ॥२॥ दारूडो पिया सुं कालो मिनख तुरंत हो जावे रे ॥३।। तांगी खातो होवे नागो, खाली में पड़ जावे रे ॥४॥ आय कूतरो मुंडा मांहे, सूंघ मूत कर जाये रे ॥५॥ अकल भ्रष्ट होने से पागल, चरको स्वाद बतावे रे ।।६।। माय बहु बहनों बेटी ने, एक नजर थी भाले रे ।।७।। बल बुद्धि ने रूप डील रो, पीतां प्राण गमावे जी ॥८॥ दिन भर दोरी करो मजूरी, घर पैसा नहीं लावोजी ॥९॥ धूजे टाबर नागा. रेवे, पूरो धान न पावे जी ॥१०॥ पैसारो पेशाब लेयने, ठेके में पी आवो जी ॥११॥ खोटा खत में दसखत करदो, लारा सुं पछतावोजी ॥१२॥ नशा रे परवश पडियां सं, होवे खून खराबीजी ॥१३॥ जो थे चावो देश सुधारो, मारी विनंती मानोजी ॥१४॥ धीरज धर समझाऊँ बालम, मानो सोगन ले लोजी॥१५॥ 202 Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ करजा ॥ (तर्ज-कमलीवाले) करजे के कारण कोडों को, भारत में नींद न आती है । करना नहीं काम सुहाता है, रोटी नहीं पूरी भाती है ॥टेर॥ करजे कर जेवर बनवाते, वश होकर के नर-नारी के ॥ उन लोगों के घर में आफत, नित बिना बुलाये जाती है ॥१॥ बिन काम का सौदा करजे से, आसानी से मिल जाता है । फिर ब्याज का पैसा बढ़ने से, दूनी लागत लग जाती है ॥२॥ बिन रोकड़ पैसे चार जगह, नहीं देख सके वे मन चाही। रद्दी चीजें महंगी कीमत से, उनके सिर चिप जाती है ॥३॥ देखा-देखी करते खरचा, चरचा जब चलती ब्याहों की, क्या कमती खरचा करने से, कहीं नाक किसी की जाती है ॥४॥ आमद कमती खरचा ज्यादा, क्योंकि नहीं बजट जमाते है । जब लेनेवाला आता है, दिखता वह उनको घाती है ॥५॥ करजे का कितना कष्ट महा क्या कलम विचारी कह सकती यह भुक्त भोगी ही जानत है, जिनकी दाझीयां छाती है ॥६॥ करजे को जड से काटन की, मैं युक्ति सरल बताता हूँ । पहले छोटे सब करजों को, देने से आफत जाती है ॥७॥ फिर बड़ें करजे वालों को कुछ, तुम मूल सहित देते 203 Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाओ श्रीनाथ फिर नया कर्ज न लो, तो पारगती हो. जाती है ॥८॥ ॥ खोटी रीत निषेध ॥ (तर्ज-बुरा गीत मत गावजो यांने वरजूला) खोटी रीतां राखतां, थाने वरजूंला । जो गावोला 'शुभगीत' कदी नहीं वरनँला ॥टेर।। बेटी-बेटा बेचंता थांने वरजूंला । कांई जिनसू लागे लंछ ॥१॥ बूढ़ा ठाडा व्यावतां थांने वरजूंला।। कांई जिनसू विधवा होय ॥२॥ मौसर नुक्ता जीमतां थांने वरजूंला । ___ काई काम कूतरा जोग ॥३॥ भोजन ऐंठो नाखतां थाने वरजंला । ___ काई होता विरथा हाण ॥४॥ पातरियां नचावतां थांने वरजूंला । कांई जिससू बिगडे देश ॥५॥ फाटा गीत सुनावतां थांने वरजूंला। कांई निर्लज होवे लोग ॥६॥ भांग तमाखू पीवतां थाने वरजूंला । ___ कांई होवे रोग अपार ॥७॥ 204 Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोरट झगडा ले जाता थाने वरजूंला । __ कांई मुंडा कहसी लोग ॥८॥ शोर फटाका छोडतां थाने वरजूंला । __ कांई जिणसू लागे लाय ॥९॥ खरच अणूतो करतां थांने वरजूला। कांई करजो जिणसं होय ॥१०॥ झीणा कपडा पहरतां थांने वरजूंला। कांई जिण थी जावे लाज ॥११॥ नाटक थेटर देखता थांने वरजंला । ___ कांई जिणसू हाण अपार ॥१२॥ मोटा मगता पालतां थांने वरजूंला । ___कांई सुंड मुसडा होय ॥१३॥ भोजन करतां रातरा थांने वरजूंला। ___ कांई होवे पाप अमाप ॥१४॥ घी खिचडियाँ खावतां थांने वरजूंला। __ कांई जाकर कांण मुकाण ॥१५॥ टाबर नहीं भणवतां यांने वरजूंला। काई रह जावे वे ठोठ ॥१६॥ 205 Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंतर डोरा करावतां थांने वरजूंला । काई जूठो फैले भेम ॥१७॥ रोत सुधारो देश री नहीं वरजूंला । कांई गा करके शुभ गीत कदी नहीं वरजूला ॥१८॥ आज्ञा पति री पालतां नहीं वरजूला । कांई पूजोला श्रीनाथ कदी नहीं वरजूंला ॥१९॥ ॥ संथारा का स्तवन ॥ (तर्ज-भाव धरी नित्य पालजो।) संथारो प्यारो घणो, रत्न चितामणि जेम हो । भवियन । पांचवी गतिना पामणा, हीरा जड़िया हेम हो . भवियन ॥१॥ कायर रो काम छे नहीं, सूरा सन्मुख थाय हो भवियन । पंडित मरण प्रताप से, जन्म-मरण मिट जाय हो भवियन ॥२॥ आहार-पानी आदरे नहीं, नहीं करे मुख से हाय हो भवियन, तन-धन ममता त्यागने, जीव राशि खमाय हो भवियन ॥३॥ करो विशुद्ध आलोचना, लगा दो मुगती सुं ध्यान हो भवियन । ऐसी देवो मुझ ने वीरता, हो जावे परम कल्याण हो 206 Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भवियन ॥४॥ सूरी रो जाया हो तो सूरमा, करे ऐसो काम हो भवियन, समण हजारीमल इम कहे, फिर नहीं आवे गर्भवास हो भवियन ॥५॥ ॥ पूज्य गुरुदेव श्री अमोलक ऋषिजी महाराज ॥ ॥ साहब का गुणगान ॥ (तर्ज-कमली वाले को ।) सुयश जग में छाय रहा, पूज्य अमोलक ऋषिजी स्वामी का। दुनियां में गुण गाय रहा, - पूज्य अमोलक ऋषिजी स्वामी का ॥१॥ लघु वय में दीक्षा ले करके, किया बोध बत्तीसी सूत्रों का। . प्रसिद्ध हुआ जग बीच रहा, . पूज्य अमोलक ऋषिजी स्वामी का ।।२।। ऋषि सम्प्रदाय में शोभित हो। जिम तारागण में निशिमणी हो । बीज कला ज्यूं यश फैल रहा। पूज्य अमोलक ऋषिजी स्वामी का ॥३॥ 207 Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन मोहन मूरत आप तणी, हो बालब्रह्मचारी स्वामी । और चेहरा दमक-दमक करता, पूज्य अमोलक ऋषिजी स्वामी का ॥४॥ कर करके गमन भमण्डल में, खूब धर्म उद्योत किया । गुण युक्त नाम है इस जहाँ में, पूज्य अमोलक ऋषिजी स्वामी का॥५॥ है जैन . धर्म के विचक्षण । . श्रोता सब ध्यान लगा सुनलो । मैं आशीर्वाद चाहती हूँ। पूज्य अमोलक ऋषिजी स्वामी का॥६॥ 208 Page #214 -------------------------------------------------------------------------- _