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घणो जो दान दिरावजो जी॥ गुल बटायजो ने साधर्मों ने साता उपजाय जो, संघ री सेवा करावजो ॥ मातापिता तो बहु हरषावे, बना-बनी रे मंगल गावता ।।
॥ चाक-कलश-बारी और उकरडी का गीत ॥
|| चाक मूंदना का गीत ॥
( तर्ज-रंगाय दो नेमीश्वर बून्दडजी ) बायां तो सब मिल चालतीजी, सजिया है सोले सिनंगार तो । चाक पूजन ने बायां सांचरीजी ॥१॥ चाक पूजन ने बायां चालतीजी, गावे है मंगल गान के । चाक पूजन ने बायां नीसरीजी ॥२॥ चाक री पूजा वे इम करेजी, इनरा थे जानो है भाव के । चाक पूजन ने बायां नीसरीजी ॥३॥ रथ ने दोई चक्र कह्याजी, जदी तो चालेला रथ तो, एक चक्र सुं रथ नहीं चाले जी। चाक पूजन ने बायां नीसरीजी ।।४।। इन विध गृहस्थ आश्रम रूपी रथ ने जी, स्त्री पुरुष रूपी चक्र कह्याजी । चाक पूजन ने बायां नीसरीजी ॥५॥ बनाबनी री जोडी सरीखी मिलेजी, तो ही गृहस्थाश्रम रूपी रथ चालसी जी, नहीं तर दुःख ये पावसी जी। चाक पूजन ने बायां नीसरीजी ॥६॥ ऋषभदेव प्रथम स्थापियाजी, प्रजापति कुंभकार जात के। कलश बधावन बायां
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