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नौसरीजी ॥७॥ हाथी के होदे पर बैठने जी, कलश गडयो प्रभु हाथी सुंजी, वरत्या है जय-जयकार के। कलश बधावन बायां नीसरोजी ॥८॥ इन कारण कुंभकार ने तिलक करेजी, पेचो तो देवे बंधाय के । कलश बधावन बायां नोसरीजी ॥९॥ नव खंडियो वेश घर लावियाजी, बना-बनी परणीजे जान के । कलश बधावन बायां नोसरीजी॥१०॥ भारी बधावनो तीसरो जी, इन मा मोटो छ ज्ञान के। भारी बधावन बायां नीसरीजी॥११॥ एक-एक लकड़ी जंगल रेवेजी, उनरी तो शोभा नहीं थाय के। भारी बधावन बायां नीसरी जी ॥१२॥ सगली लकडी एकटी होवेजी, उनरी तो जोभा घणी थाय के। भारी बधावन बायां नीसरीजी ॥१३॥ तोड सके नहीं कोई जी, नहीं लागे दुष्मन रो डाव के । भारी बधावन बायां नीसरीजी ॥१४॥ इम बना-बनी मिल रेवजोजी। सगली सिखावण मिल इम देवतीजी । भारी बधावन बायां नीसरीजी ॥१५॥ इन कारण तिलक कुंकु तणोजी, पेचो तो देवे बंधाय के । भारी बधावन बायां नीसरीजी ॥१६॥ खाती धर्म रो वीर छ जी, बना-बनी ने ज्ञान सीखावजो जी। भारी बधावन बांया नीसरीजी ॥१७॥ संप राखो बारी समो जी, कुटुम्ब ने लेयजो निभाय के। भारी बधावन बायां
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