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________________ || नेतो ॥ (विरद बड़ी पर निमन्त्रण) (तर्ज- थाने निवतूं थाने निवतूं पिताजी रा पूत ) थाने निवतं, थाने निवतूं, पिताजी रा पूत हो, वीरासा पधारो मारी विरदडोजी || आछी विरयां, भली विरदद्यां आवनो रो जोग हो, परिवार ने लेने पधारजो जी || भले आसां, भले आसां, दिन दस चार हो, ये तो मायरो पेराय जस लेवजोजी ॥ थाने निवतं, थाने निवतूं बहनोइयां रोसाथे हो, फुफाजी पधारो मारी विरदडोजी || आछो विरदयां, भली विरदयां, आवनो रो जोग हो । मैं तो आयने बंदोली कढावसां जी ॥ जनता सुं जीमो, मौन कर जोमो, ऐंटो मत नाखो हो । इनमें दोष घणो लागतो जी ॥ ऐंटो नहीं नाखां, मीठो खावां, थाली खोल पीवसां जी ॥ || लक्ष्मी का गीत || (तर्ज- चाले लक्ष्मी जिन घर जावां जिन घर ) लक्ष्मी चंचल स्थिर नहीं रेवे, रिद्धि-सिद्धि नहीं आवे || पुन्यवंत घर लक्ष्मीजी आवे, रिद्धि-सिद्धि रा भण्डार रे || लक्ष्मी पायने दान जो दीजो, दुःखी जीवां रो करुणा लावजो ॥ दान तो दोजो ने नाम बढायजो, ब्याव में सुजस लीजो || बना-बनी रे हाथ पिताजी, 116
SR No.006295
Book TitleSwarna Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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