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सेवादेवीजी जायो है पूत, तीन लोक रा राजवी जी ॥ समुद्रविजयजी पूछे है बात, किन वेला जनमियाजी ॥ जनम्या है आधी जी रात, मोच्छव मंडावियोजी ॥ बणारसी के महल के मांय, सभी सांज दियो बलेजी ॥ वामादेवीजी जायो है पूत, तीन लोक रा राजवी जी ॥ अश्वसेन पूछे है बात, किन वेला जनमियाजी || जनम्या है आधी जी रात, मोच्छव मंडावियोजी || कुण्डलपुर के महल के मांय, सभी सांज दियो बलेजी || त्रिशलादेवीजी जायो है पूल, तीन लोक रा राजवीजी || सिद्धारथ राजा पूछे है बात, किन वेला जनमियाजी ॥ जनम्या है आधी जी रात, मोच्छव मंडावियोजी || गोवर-ग्राम के महल के मांय, सभी सांज दियो बलेजी ॥ पृथ्वीदेवीजी जायो है पूत, अंगूठे अमी झरेजी ॥ वसुभूति पूछे है बात के, किन वेला जनमियाजी || जनम्या है आधी जी रात, मोच्छ मंडावियोजी ।
॥ सूरज ॥
(तर्ज :-- आज शदर में रत्ना रो सूरज ऊगियों)
आज वनिता में रत्नों से सूरज ऊगियो, अगो माता मोरादेवीजी रो कुल में तीर्थकर, रंग रो बधाओ माहरे नाभि राजाजी से आवियो, कीर्ति तो पसरी तीन
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