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कण पढ़ाई ऊंदी पाटीरा ॥५॥ हां जी मिनक जाली करे दलाली, बेटी बेचन रीता चाली रा ॥६॥ हां जी आया जी पंच, कियो प्रपंच, बातां बनाई कोरी टंचरा ॥७॥ हां जी लाडूजी खावे, देश डुबावे, विधवा री गिनती बढावे रा ॥८॥ हां जी छोरी डुबोई, विधवा जो होई, बात न पूछे उणरी कोई रा ॥९॥ हां जी साची जो बात, कही श्रीनाथ, पाप पंचों रे सारो माथरा ॥१०॥ इति ।।
लडकी की पुकार (तर्ज : मेरे बाप ने मुझको दाल पगे परणाया) मेरे बाप ने रे मुझको बड़े से परणाया। सद सखियां मेरी करे मसखरी, दापोती काही ॥१॥ मैं टाबर रमणे सं राजी, घर में चैन न पाऊं। ओ बलियो बारे जावे, मैं भी किरणी वाहूँ ।।२।। बारे निकली पडदा मांसू, सानी बूढो आयो। पाई हामशाने पाछो लेग्यो, घर में यूं बरडायो ॥३॥ धोल रहे धूल पडे हैं, जो तूं बाहर जावे । लोग हँसे न मोसो बोले, सासू सहो न जावे ॥४॥ उमर मेरी मोटी हो गई, जोडी विन नहीं भावे। सुख मारे श्रीनाथ करेला, धीरज धर हरखावे ॥५॥
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