SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रीता ने कोई मत करजो । खोटी तो रोत दुनिया में बाजे । कुल माहें कलंक पूरोजी लागे। बना-बनी ने नमस्कार सिखायजो। पगां लगन रो रोत है आछी। बहुजी ने घणो धन जो दीजो। सासु सुसरा रे पगां पडजो। विनय तो करजो ने धर्म बढायजो । गुरुगुरानी का दर्शन करजो । मंगलिक सुनजो ने समकित धारो। ऐसी तो जाता उनने दिरायजो। जीव दया माहें दान जो दीजो। इन थी जीवन सुख माहें जावे। || बैटिका ॥ ( तर्ज-लका रो सोना मंगायजोजी ) वीरा आया बाई ने लेबन ने जी। हर्ष हृदय नहीं मांय । टीका रा बधाबना ।। टेर। पाटा पर भाई बहन बैठिया जी । आरती करे ननंदल आय, तिलक काढे कंकूराजी। पीट थापे बहनोई आयनेजी, धिनधीन थारोजी कुल, दिपायो मारा वंशनेजी ॥ मोटामोटा खाजा लावियाजी खिमिया है मोटी चीज, घर में शान्ती वरतावजो जी ॥ लापसडी मीठी खाय ने, मीठा रहो जग मांय, सुजस थारो फेलसीजी ॥ व्यावरा गीत पूरण हुवा जी, सब नगरी में करयो नमस्कार, भूल चूक होवे करी, लीजो आप सुधार, बहनने भाई ले गयो जी। ॥विवाह का गीत समाप्तम् ।। 166
SR No.006295
Book TitleSwarna Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy