SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ राती जोगा रा गीत ॥ (तर्ज-भेरू कटोडे हो पारी थापना) चौवीस तीर्थकरां का शासन का देवता, ये तो चौवीस यक्ष जान हो । जिनशासन की सेवा में करे, जिन देश क्षेत्र के मांय हो । देवता तो चार जात का, भुवनपात, वाणव्यंतर, वैमानिक हो । पूर्व भव में तप संजम पालियो, केइ दीदो सुपात्र दान हो । इन प्रभावे देवता हुआ, ये तो करे जिन शासन री सेव हो। ये तो यक्ष राज कहलावे, ये तो वरतावे जय-जयकार हो। ये तो विघ्न सदा दूरी करे, सुख संपत्ति से भर देवे भण्डार । ये तो गावतडा सुख ऊपजे, ये तो सुनियारो परम कलयाण हो । चौवीस तीर्थकरा का जो ध्यान करसी, चौवीस तो यक्ष करसी सहाय हो । ॥ कंकण डोरा खोलने का गीत ॥ (सई-जुवा खेले जुवी खेले बनडा ने बनडी) जुवा-जुवी मत खेलो बनडा ने बनडी । कांकण होरो जयना सुं खोलो। कोरडा रमणा कदी मत करजो दुनिया में मारनो कौन बतायो । पति नारी पर हाथ नहीं उठावे । पुरुष नारी पर हाथ नहीं चलाये । इन 165
SR No.006295
Book TitleSwarna Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy