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सपना तेरहमो भलाय विराजे ॥१५॥ चौदह सपना अग्नि जो देखी, धूम्र रहित शोभे ओ स्वामी ॥१६॥ पोड्या राणी जाग्या ओ स्वामी, आया राजाजी रे पास ॥१७॥ भद्रासन बैठाय ओ स्वामी, सपना रो अर्थ बतायो ॥१८॥
|| दुसरी ढाल । (तर्ज : गज सायना रानी थे दोडाजी) जठे राजाजी पंडित ने तेडावियागी, जठे पंडित आया ततकाल । बोले अमृत वाणियाजी ॥१॥ मलकता मंगल रानी थे दीठाजी, थारे होसी जी मंगला चार, बधाओ घर गावसीजी ॥२॥ गजवर सपना रानी थे दीठाजी, थारे पुत्र होसीजी गजवंत, गजवर ऊपर सोवसीजी ॥३॥ वृषभ सपना रानी थे दीठाजी, थारे पुत्र होसीजी रक्षावन्त, घणी रक्षा पालसीजी ॥४॥ सिंह सपना रानी थे दीठाजी, थारे पुत्र होसीजी बलवंत, मेरु कंपावसीजी ॥५।। लक्ष्मी रो सपना रानी थे दीठाजी, थारे अन्नधन भरया रे भण्डार । दूनी रिद्धी होवसीजी ॥६॥ पंच वर्ण री माला रानी थे दीठाजी, थारे पुत्र होसीजी शील सुजान, पांचों इन्द्रियां वश करसीजी ॥७॥ अमिय झरंता चन्द्र रानी थे दीठाजी,
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