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________________ श्रावण री घास हरियो वर्ण मल्लिनाथजी रो सैयां हरियो सुवारी पांख । रातो तो रातो कांई करो सैंयां रातो कसुम्बा रो रंग, रातो वर्ण पद्मप्रभुजी रो सेयां रातो किरमिजी रो रंग ॥ कालो तो कालो कांई करो सैयां, कालो काजल रो रेख, कालो वर्ण अरिष्ठनेमीनाथजी रो सैयां कालो बादल रो रंग ॥ ॥ दीपक ॥ ( तर्ज-रंग भर दिवलो झिग रह्यो ) रंगभर दिवलो जल रह्यो, वह तो जल रह्यो वनिता रे मांय ॥१॥ नाभि राजा मेहन्दी मोलवे, माता मोरादेवी रे हाथ रंगाय ॥२॥ कुण मांड्या ओ मानेतन थारा हाथ, माहरा माड्या ओ देवांगणा हाथ ॥ रंग भर दिवलो जल रह्यो ॥३॥ रंगभर दिलो जल रह्यो, वह तो जल रह्यो हस्तिनापुर रे मांय ॥४॥ विश्वसेन राजा मेहन्दी मोलवे, माता अचलादेवी रे हाथ रंगाय ॥५।। कुण मांड्या ओ मानेतन थारा हाथ, माहरा मांड्या ओ देवांगणा हाथ ॥६॥ रंग भर दिक्लो जल रह्यो ॥ रंग भर दिवलो जल रह्यो, वह तो जल रह्यो, शोरिटा पुर रे माय । ७॥ समुद्रविजय राजा मेहन्दी मोलवे, माता सेवा देवीजी .43
SR No.006295
Book TitleSwarna Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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