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॥ करजा ॥
(तर्ज-कमलीवाले) करजे के कारण कोडों को, भारत में नींद न आती है । करना नहीं काम सुहाता है, रोटी नहीं पूरी भाती है ॥टेर॥ करजे कर जेवर बनवाते, वश होकर के नर-नारी के ॥ उन लोगों के घर में आफत, नित बिना बुलाये जाती है ॥१॥ बिन काम का सौदा करजे से, आसानी से मिल जाता है । फिर ब्याज का पैसा बढ़ने से, दूनी लागत लग जाती है ॥२॥ बिन रोकड़ पैसे चार जगह, नहीं देख सके वे मन चाही। रद्दी चीजें महंगी कीमत से, उनके सिर चिप जाती है ॥३॥ देखा-देखी करते खरचा, चरचा जब चलती ब्याहों की, क्या कमती खरचा करने से, कहीं नाक किसी की जाती है ॥४॥ आमद कमती खरचा ज्यादा, क्योंकि नहीं बजट जमाते है । जब लेनेवाला आता है, दिखता वह उनको घाती है ॥५॥ करजे का कितना कष्ट महा क्या कलम विचारी कह सकती यह भुक्त भोगी ही जानत है, जिनकी दाझीयां छाती है ॥६॥ करजे को जड से काटन की, मैं युक्ति सरल बताता हूँ । पहले छोटे सब करजों को, देने से आफत जाती है ॥७॥ फिर बड़ें करजे वालों को कुछ, तुम मूल सहित देते
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