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________________ लाग्यो ओ प्रीतमजी, मारो तपस्या करन मन लाग्या माराराज । आ तो साद भलेरी हे महारानी, थे नित की नौकारसी करजो माराराज ॥४॥ पांचमो मास जो लाग्यो ओ सुसराजी, मारे सामायिक करन मन लाग्यो माराराज । आ तो साद भलेरी हे कुलबहु, थे नित करजो सामायिक माराराज ॥५॥ छट्ठो मास जो लाग्यो ओ सासुजी, मारो सूत्र सुनवां मन लाग्यो माराराज । आ तो साद भलेरी हे कुलबह, थे नित का सूत्र सुनजो माराराज ॥६॥ सातमो मास जो लाग्यो ओ पिताजी, मारो घेवरिया मन लाग्यो माराराज । आ तो साद भलेरी हे दीवडली मैं घेवरिया जिमाऊं माराराज ॥७॥ आठमो मास जो लाग्यो ओ वीराजी. मारो सीरा पूड़ी रा मन माय माराराज। आ तो साद भलेरी हे मारी बेनडी, मैं सीरा लापसी जिमाऊं माराराज ॥८॥ नवमो मास जो लाग्यो ओ माताजी, मारे अजमो संठ मन लाग्यो माराराज, आ तो साद भलेरी मारी दीवडली, थाने लाडू मैं जिमाऊं माराराज ॥९॥ अबे तो बालक जनमियो हे मारी मावडी, नवकार मंत्र सुनावो मारी माय । गुटकी ऐसी दीजे हे मारी मायडी, दुनियां में नाम कमावसी मारी माय ॥१०॥ इति।। :
SR No.006295
Book TitleSwarna Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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