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जठे पाठ पीताम्बर पलेटिया जी, महावीर जनमियाजी ॥१४॥ जठे धर्म पालणिये पोढावियाजी, जठे पोढाया माताजी रे पास, महावीर जनमियाजी ॥१५॥ जठे शकेन्द्र चली आवियाजी, वांका बालक ने लिया छे उठाय, मेरु शिखर पर जा धरयाजी ॥१६॥ जठे चौंसठ इन्द्र आवियाजी, जठे इन्द्राणियां गावे छे गीत, छप्पन कुमारियां आयी मिलीजी ॥१७॥ जठे रत्नां रा कलश जल भरयाजी, उठे बालक दिया नवाय, इन्द्र मन चिन्तवेजी ॥१८॥ मोटी तो धार जल तणीजी, ये तो देखी इन्द्र शंका लाय, बालक बे जावसीजी ॥२०॥ जठे प्रभुजी शंका निवारियाजी, मेरु पर्वत ने दियो रे धुजाय, इन्द्र मन हरषियाजी ॥२०॥ जठे चौंसठ इन्द्र पावें पड्याजी, स्वामी विनवां छे बे कर जोड़, गुनों माहको खमजोजी ॥२१॥ जठे महावीर नाम स्थापन करियोजी, लाया माताजी रे पास, पालनिये पोढावियाजी ॥२२॥ जठे दासी देवे बधावनाजी, सिद्धारथ राजा ने जाय, तीर्थकर जनमियाजी ॥२३॥ सोनारी झारी जल भरीजी, दासी ने दीनी नवाय, धन दीनो घणोजी ॥२४॥ जठे बंधिवान छुड़ावियाजी जठे दान दियो जलधार, तीर्थकर जनमियाजी ॥२५॥राजा दशोटन करावियाजी, कांई बुलाया सब परिवार, जीमन ने आवियाजी ॥२६॥
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