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जीमने सगला राजी हुआजी, राजा दीना सब सिर पाव, गेहणा दीन। शोभता जी ॥२७॥ भद्रासन बैठावियाजी, ये तो मोतियां रा चौक पुरावियाजी, जठे कुंभ कलश ले आवियाजी ॥२८॥ गुण निष्पन्न नाम जो स्थापियाजी, ये तो नाम दियो वर्धमान, तीर्थकर जनमियाजी ॥२९॥ मैं तो अरिहंतरा गण गावस्यां जी, मैं तो गावस्यां चेत्र के मांही, तेरस ने वधावना जी ॥३०॥
॥चौथी ढाल ॥ (तर्ज : गज सायना रानी थे दोठा जी) कुण्डलपुर नगर सुहावनोजी, वीर लीनो संजम भार, मिगसर वद ग्यारसजी ॥१॥ तपस्या तो कोनी आकरोजी, करम करया चकचर, परिसा घणा सह्याजी ॥२॥ वैशाख सुदी दशमी दिनेजी, पाया है केवल ज्ञान, चार तीर्थ स्थापियाजी ॥३॥ साधु-साध्वी-श्रावकश्राविका जी, धर्म रा दोय प्रकार, प्रभुजी प्रकाशिया जी ॥४॥ पावापुरी में पधारियाजी, कार्तिक वद अम्मावस्याजी जठे वीर पहुँच्या निर्वाण इन्द्र उत्सव नियोजी ॥५॥ जठे गोलम स्वामी केवल पामियाजी, जठे सुधर्मा पाट विराज, जम्बु परशन पूछियाजी॥६॥ जठे गावतला सुख उपजेजी, वारो सुनियांरो पातक जाय, आनन्द बधावनाजी इति!
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