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________________ दुर्भाग्य मिटे, दारिद्र नशे, सोभाग्य बढ़े संपत्ति विलसे, नपुर रणकाती राणी लक्ष्मी आवे ॥२॥ हे विघ्न-विनाशक जगनामी, लब्धि संपन्न निधि स्वामी, आशा तरू में नव-नव पल्लव प्रगटावे॥३॥ दुर्मतिवारक संकट हरता, शरणागत की पालनकर्ता शत्रु भी मित्र बन सादर शीश नमावे ॥४॥ केवलमुनि मंगलाचार. कहे, दे ऋद्धि-सिद्धि भण्डार भरे, मकरंद गंध सा दिगदि गंध यश छावे ॥५॥ ॥ बाजोट ॥ (तर्ज- समुदां रे पेले चन्दनयारो रूखो ।) शहरां रे मांहि ने खाती रो दुकान, खाती री दुकान,गड लायारे खाती बाजोटियो जी, गड़ लाय रे खाती थांभ तोरण जी ॥१॥ चन्दनियाँ रे पाटा पर बना-बनी बैठे, पंडित बुलावो भणिया गुणियाजी ॥२॥ नवकार सुनावो ने मंगलिक सुनावे, जीवन में, मंगल वरतजो जी ॥३॥ चारों दिशा मांय तणी ए तणाओ, ऊपर रालो आ चुन्दडी जी ॥४॥ 120
SR No.006295
Book TitleSwarna Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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