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धरणे ॥ हाँ ए बनी पतिव्रता धर्म पाल, शील सुखदायो॥ हाँ ए बनी रेशम का करदो त्याग, हिंसा घणी इनमें । हाँ ए बनी फैशन का कर देवो त्याग, धर्म पालन ने ।। हाँ जी बना करो जिनजी रो ध्यान, सुख पानो भव-भव में ॥
ॐ बना * (तर्ज-छल्ला दांत केरी पिंड , आ रेशम बान बनी ।)
सिंहासन पर पिताजी बैठा, कन्या आई अरज करे। पिताजी उन घरे देयजो, मैं सुख गांहे नित ही रहूँ॥ बाई स्वयंवर रचाओ, मन चाहे वर चुन लीजो ॥ सीता, द्रौपदी आदि सतियाँ, स्वयंवर में वर चुनती ॥ दास्यां का परिवार सुं जाती, अरिसा में मुखडो जोती। दास्यां गुणग्राम करती, वरमाला वर ने पेराती ॥ अबे पिताजी आछो घर देयजो, जिन घर में शान्ति रेवे ।। मारो धर्म निभाऊँ, समकित में सेंठी रे ॥ अज्ञानी रे घर मत दीजो, मैं नित की तो दुःख पास्य ॥ क्रोधी, मानी ने, लोभी, इनने मने मत देयजो ॥ परस्त्री, वेश्यागामी, जुआरी ने मत देयजो ॥ कायर, हीन, कुलारां, अनभणिया ने मत देयजो ॥ वाने कदि नहीं देवाँ शीलवंत वर जोस्याँ।
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