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मांय,बायां तो मंगल गावतीजी कांई, बाजा तो शुभ बजाय पिताजी ने वेगा बुलावजो जी कांई, दशोटन देश कराय। लाडु पेडाने घेवर बफियांजी कांई, नाना विधि रा पकवान भोजन सगला जीमियाजी कांई, वस्त्र भूषण दिराय । बधाइयां बटी सारा शहर में जी कांई, बरतिया है जय-जयकार चिरंजीवो बालक-बालिका कांई, दिनो है शुभ आशिवाद ॥
॥ पीपरा मूल का गीत ।।
(तर्ज-- समुदां रे पेले अजमोजी बायो) महलां रे मांय तो पिलंग बिछायो, नरम बिछानो बिछावजो जी ॥ ऊठनो, बैठनो, चलनो, ने फिरनो, सात दिन तक न करोजी ॥ सेवा रे मायने पास में रेवणो, बालक ने माता सुख पावसीजी।। सुसराजी जाय बाजार के मांय, पीपरा मूल लायो उतावलोजी ॥ पीपरा मूल पियां थी सरदी मिट जावसी, अजमां थी वादी मिट जावसीजी ॥ सूंठ खायां सुंतन पित नहीं होवे, लोद ने गंद ठंडी करेजी॥ गाय ने भेंसरो धिरत जिमाय जो, ठंडा ने लूखा, बासी मत खावजोजी ।। खाटा खटाई ने चरका आचार, कुपथ्य खायां रोग उपजेजी॥ इसडी तो चीजां ए खायां सु ए बायां, तन में तो शक्ति
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