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॥ बनी ने सिखामण ॥ (तर्ज-लहरियो पंचरंगो बणियो-लहरियो राजाशाही बणियो)
बनी तू सीख मान लीजे, सातरिया में जाय सबा रो मन तूं हरलीजे।।टेर। जदतूं जावे सालरिया में, करजे सद्व्यवहार । परमेश्वर जू जाण पति ने, करजे पूरो प्यार ॥१॥ सास ससुर ने मायत गिणजे, लीजे सेवा धार । मीठा बोल बोलजे बाई, मत करजे तकरार ।। बनी ॥२॥ देराणी जेठानीजी री लीजे बातां मान । आलस तन सुं दूर राखजे, होवेला सन्मान ॥३॥ पति जिमायां पछे जीमणो, लीजे ओ व्रत धार । वेगी ऊठे रोज सबेरे, वही सुलक्षणी नार ॥४॥ वगर काम पर सेरी पर धर अठी उठी मत जाय । ऐडो नेम धारजे बाई, हरख उमंग मन लाय ॥५॥ कजियो चगली पर निन्दा ने, चोरी दीजे त्याग । द्वेष भाव ने दूरो कीजे, धर मन में अनुराग ॥६॥ हिलमिल कर घर वालों साथे, संप राखजे मान । दीन दुःखी पर करुणा कीजे,जो चाने कल्याण ॥७॥ नार पदमणी प्रीतमजीसुं, बांधे गाड़ी प्रीत । 'धीरज' घर शुभ गीत गावजे, पाल पुराणी रोत ॥८॥ इण विध दी सीख बनी ने, मिल सारो परिवार । जान फायदो इणसुं उनभी, लीवी हिरदे धार ॥९॥
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