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॥ बना ने सीख ॥ (तर्ज-सावण लागो भादवी सखी, वरसण लागो मेह)
बनी तूं सासरे, सुख सेती जाइजे है । घणी तूं गुणवंती,
कुल देश दिपाइजे हैं ॥टेर॥ सुन्दर साडी शीलरी बनी, लीजे अंग पर धार । चटक मटक मत चालजे बनी, तज दे नैन विकार ॥१॥ बाबा सा री लाडली बनी, काका सा सुं नेह । पीहर वालो त्यागनेजी बनी, जाय रही पति गेह ॥२॥ ओल थारी आवसी बनी, कर आवण रो कोल । था बिन सूनी लागसी बनी, बाबा सा री पोल ॥३॥ बात एकान्त न कीजिए बनी, भले हो बाप के भ्रात । पर नर सं मत बोलजे बनी, हंस-हंस काढ़ी दांत ॥४॥ दुपहरे नहीं लावजे पानी, पणघट धोजे न पाँव । वाजतो गहणो पहरतां बनी, होवेला बदनाम ।।५।। कजियो तजियो सुं होवे बनी, सासरिये बहुमान । सास ससुर पति पूजणे रो, धरजे हृदय ध्यान ॥६॥ सीख सखीरी मानजे सखरी, सेवा श्रीनाथ की धार । आनंद मंगल होवसी बनी, पूज्यो पद भरतार ॥७॥
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