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।। बिदा होते समय मां से आशीष ।।
(तर्ज-जब तुम्हीं चले प. देश) मां देदे शुभ आशीष, चढ़ा कर शीश , सुखी हो जाऊं ॥ अपना कर्तव्य निभाऊ ।।टेर॥ गोदी में स्वर्ग का सुख पायो, नहीं कभी भी गर्म हवा आयो । मां इस ममता को कैसे हाय भुलाऊँ ॥१॥ अपना सुख सारा वार दिया, प्राणों से बढ़कर प्यार किया। उपकार का बदला कैसे बोल चुकाऊँ ॥२॥ किस प्रेम से मुझे पढ़ाती थी, तु कितना लाड लडाती थी। मां बोल आज क्या बिदा दे रही जाऊँ ॥३॥ मा तेरी याद मझे जब आयेगी, . रो-रो हिचकी बंध जाएगी। प्यारे पीहर को छोड़ के कसे जाऊं ॥४॥ रूठी कौन मनावेगा मनुहार से कौन खिलावेगा। अपनी सुख-दुःख की बातें, किसे सुनाऊं ॥५॥ मां मुझको नहीं भुला देना, भैया को भेज कर बुला लेना। उत्तर देना जब पत्र तुझे भिजवाऊं ॥६॥ ऊंचा आदर्श दिखाऊंगी, जीवन में ज्योति जगाऊंगी। सुगहिणी बन कर सेवा सदा बजाऊं ॥७॥ केवलमुनि आशीर्वाद मिले, सद्गुण के सुन्दर पुष्प खिले । मैं दोनों कुल में यश सौरभ पैलाऊँ ॥८॥
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