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सिद्धारथ राजा तो चलये, करायो तो,
सोना री झारी ओ वारां हाथ में जी ॥२४॥ सिद्धारथ राजा तो दान दिरायो तो,
सोना री मेहरा ओ बकसीयाजी ॥२५॥ सोई नर गावे सदा सुख पावे तो,
गावन वालियां सदा सुख भोगवेजी ॥२६॥ सुनने वालिया सदा सुख भोगवे ॥
बेटारी माता सुख भोगवेजी ॥२७॥ इति ॥
॥ हथनी ॥ (तर्ज-थे मन मोहो महावीर जी) हथनी चालाजी मलकती वनिता नगरी रे मांय जी। मैं थाने पूछू आदिनाथजी, कठे थाने रेवन रो वासजी ॥१॥ वनिता नगरी में जनमिया, अष्टापद में निर्वाणजी। कुंकु भरणी जी वागकी, केसर भरणी जी बाटकी ॥२॥ हथनी चाली जी मलकती हस्तिनापुर रे मांयजी। मैं थाने पूर्वी शान्तिनाथजी, कठे थाने रेवन रो वासजी ॥३॥ हस्तिनापुर में जनमिया, समेतशिखर में निर्वाणजी । कुंकु भरणीजी बाटकी, केसर भरणीजी बाटकी ॥४॥ हथनी चालीजी मलकती, सोरियापुर में मांयजी। मैं थाने पूछं नेमीनाथजी, कठे थाने रेवन रो
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