________________
॥ चून्दडी ॥ (तर्ज- माता सीता की गोदी में डाली मूंदडी)
ओढ़ो-ओढ़ोजी सुहागिन, पतिव्रता धर्म को चून्दडी जी टेर।। मल-मल विद्या की बनवाओ, रंगत बुद्धि को चढवाओ, गोखरु गोटा ज्ञान का लाओ, बून्टा सत्य शास्त्र अनुसार जगत में चमके चुन्दडीजी ॥१॥ सुरमा शीलवत का धारो, मिस्सी मीठा वचन उच्चारो, टीको पर उपकार की धारो, पति की सेवा करो हरबार, सुहाग की ओढ़ो चुन्दडीजी ॥२॥ थे तो ओढोनी चूंपा चतुराई की पहनो, बाजुबंद दया को पेरो; लाज रूपी नथ से सोहे चेहरो, झेलो झूठ कभी मत बोलो, जीव से प्यारी चून्दडीजी ॥३॥ खांच समता मन में लेवो, ससुरा का हुक्म उठावो, सच्चा दिल सुं पति ने चावो, दूसरी प्रेम और प्रीति की, एक घडवालो मून्दडीजी ॥४॥ हृदय हार ज्ञान का पहनो, माला धीरजता को गहनो, ठुस्सी मान बड़ा को कहनो, तिमणियो सास ससुर सेवा जान, प्रीत की ओढो चुन्दडीजी ॥५॥