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॥ चून्दडी ॥ (तर्ज-नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे ) छोटी-मोती बहिनों पहनो, शील की चून्दडियां प्यारी-प्यारी चन्दडियां पर, रीझेंगे सावरिया ॥टेर।। शीश फूल टीका या किलीफ, होबडो के मान का, शास्त्र श्रवण साहित्य गीत का, एरिंग होवे कान का, समता रखना दुःख में भी, नहीं बरसाना बादरिया ॥१॥ पतिव्रता धर्म की बिदिया सोहे, लज्जा का जल आँख में, घर समाज ओ नीति रीति का, सुन्दर लोंग हो कान में, पान की लाली मीठी बोली, बोलो बन कोयलिया, ॥२॥ चतुराई का चोली पोलका, नेकलिस होवे ज्ञान का अच्छे स्वास्थ्य का भुजबन्द पहनो, घडी चुडियां दान की, बुरी नजर से कभी न देखो, नीची रखो नजरिया ॥३॥ सत्य धर्म का लहंगा पहनो, कर देना शुभ कर्म का, भक्ति रंग की महावर मेहन्दी, बिछिया अहिंसा धर्म का, अच्छी चाल की पहनो पग में, झुनक झुनक पार्यालया ॥४॥ यह चुन्दडी सुभद्रा ओढी, राजमती सीता सती, ओढी चन्दना, ओढी अंजना, कलावती-मैनावती, 'केवलमुनि' यश चम चम चमके, ओढ़ो रे सुन्दरियां ॥५॥