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________________ जान्यां, बण ठण ने आगे चाल रया ॥ सिगनार सजी सब जानणियां, मिल साथ कियो है बनडे रो ॥३॥ सरपेच कलंगी तुर्रा धज, मोती री लूंबक झूम गयी। झिलमिल-झिलमिल गहणा पलके, चलके तन सुन्दर बनडे रो ॥४॥ श्रीनाथ को बनडी धीरज से, गोखे से बैठी झांक रही। बनडी ने निरखण चुपके सं, ललचाय रयो चित्त बनडे रो ॥५॥ ॥ सभेला रो गीत ॥ (तर्ज - संभे ले री वेला मारी बनडी पोल परी उघ डेरे ।) उठो मारी बालक बनडी, कोलियो तो पेरो। धोला तो कपड़ा ए बनड़ी, शुद्ध खादी रा॥१॥ इसडा तो कोजलियो बनडी, मामी सा पेरावे । मामी सा पेरावे बनडी, मामो सा हर्षावे ॥२॥ उठो मारी बालक बनडी, चुडलोजी पेरो। इसडो तो चुडलो थारी माताजी पेरावे ॥ माताजी पेरावे ने पिताजी हरषावे ।। ३॥ उठो मारी बालक बनडी, बिछिया जो पेरो। . इसडा तो बिछिया थारी भोजाई पेरावे ॥ भोजाई जी पेरावे भाई रे मन भावे ॥४॥ 133
SR No.006295
Book TitleSwarna Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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