________________
री लीजो संभाल ओ मारासा, मैं महिराऊ मारी बहिन ने ॥२२॥ हां ओ मारासा बहन बहिराई पाछा फिरा, माहरे छूटी आंसू धार ओ मारासा, मैं बहिराऊ माहरी बहिन ने ॥२३॥ हां ओ माहरा सा दान, शील, तप, भावना, ओ मारासा कर्म खपाय मुक्ति गया, वरत्या छे मंगलाचार ओ मारासा, मैं बहिराऊं माहरी बहिन ने ॥२४॥
॥ चौवीसी ॥ (तर्ज--जीओ तपसनजी थारी तपस्या री लेर) पहला ऋषभनाथ वंदस्या, दूजा अजितनाथ देव, जीओ तपसनजी थारी तपस्या री लेर, सुहावनी । गुरणी. के वन्ता में सुन्यो ए चेलयां सुं तपस्या न होय, वांरी तपस्या री चढ़ी रे निर्वाण ।
नोट-इसी प्रकार चौवीस तीर्थकारों का नाम लेना चाहिए।
॥ चौदह सपना ॥ (तर्ज--माता त्रिशलादेवीजी देख्या भला) रानी त्रिशलादेवीजी देख्या भलाचौदह सपना,माता त्रिशलादेवीजी देख्या भला चौदह सपना टेर। राय सिद्धारथ त्रिशलादेवी रानी रंगमहलमा में पोदया सजना
60