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वनाजी । मोच्छव मंड्यो तिणवार, हथनी सिनगारिया जी। बैठा पाश्र्वनाथ भगवान, मंगल बाजा बाजताजी। झालर रे झणकार दुनियां सगली जागतीजी, प्रभुजी तो संयम आदरया, तीरथ चार स्थापियाजी । प्रभुजी तो दियो उपदेश, कमठ हटावियाजी, समेतशिखर पर्वत पर, मोक्ष सिणारियाजी ॥४॥
तारा तो चमके है रात, महलां में दिवलो जल रह्योजी । त्रिशलादेवीजी जायो है पूत देवांगणा उत्सव करेजी । सूरज ऊगियो तिणवार, सिद्धारथ राजा रे घर बधावनाजी । मोच्छव मंड्यो तिणवार, हथनी सिनगारियोजी । बैठा महावीर भगवान, मंगल बाजा बाजताजी । झालर रे झणकार दुनियां सगली जागतीजी । प्रभुजी तो संयम आदरया, तीरथ चार स्थापियाजी । प्रभुजी तो दियो उपदेश मेरु कंपावियाजी। पावापुरी में भगवंत, मोक्ष सिधारियाजी ॥५।।इति।।
॥ चून्दडी ॥ (तर्ज--रंगाओ नेमीश्वर चू-दडीजी) कीना जी तो बंधारो बुलावियोजी, कोना जी ये रंगरेजो बुलाय, रंगाओ नेमीश्वर चून्दडीजी ॥टेर।। समुद्रविजयजी बंधारो बुलाविजयाजी, उग्रसेनजी
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