SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राज्य ने हराया। कई कष्ट वनवास दुःख उठाया। जुबा तो वासुदेव ने कंस जो खेलया। देवकी रे छ: ही जो पुत्र ने मारया ॥ इम तो जुवा थी बहु दुःख पाया । इम जाणी ने जुवा मत रमजो । खोटी चाला कुटुम्ब सिखावे । इन थी बना-बनी दुःख जों पावे ॥ सब मिलने जुवा मति खेलायजो ॥ बेटा-बेटी बिगडे ने कलंक लगावे । प्रेम थी बैठाय ने शुभगीत सुनायजों। ठौरां मुट्ठी बना-बनी मत रमाईजों ॥ पतिव्रता नारी पति ने नहीं मारे, मारे तो अपना धर्म गमावे मारे तो चुडियां बद जावे । अपशकुन जो व्याव में थावे ॥ सदाचारी पुरुष नारी ने नहीं मारे, नारी ने मारे तो इज्जत गमावे ॥ ॥ कंकण डोरा खोलने का गीत ॥ (तर्ज-इन डोर ले सात गांठ लाड-लडासु) इन डोर ले सात गांठ लाड-लडीसं न खुलेजी। इन डोर ले सात गांठ लाड-लडासुं न खुलेजी ॥ थाना मात-पिता दीनो जन्म ज्ञान नहीं देवियोजी, अब वनजो चतुर सुजान डोरला खोलजोजी ॥ थाना मात-पिता बुद्धिवान ज्ञान सिखावियोजी ॥ ए तो जीमो अमत भोजन जाण जल अनछान्यो मत बापरोजी ॥ए। 152
SR No.006295
Book TitleSwarna Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy