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पहरे कपड़ो झीणो, जिनसु लाज शरम सब खोवे,
र पुरुषां रे मूंडा लामी, फेडो दुरगत होवे ॥२॥ गायां री चर्बी लागे है, हिंसा रो नहीं पार । पसीनारी खरी कमाई, स्यूं सेलो थे बाहर ॥३॥ साल अरबरो साल बनाता, बरा-बसी आवे ॥ भारत में निकमाई फैले, धान न पूरो पावे ॥४॥ इन खरचां रे कारण बनासा, बाला बिछवा काडो। किन विध सं निकमाई मांहे, भर पेट रो खाडो ॥५।। चरखो लादो सूत कातसा, घरे बनासां खादी। देशी खासा देशी पहरां, करां देश आबादी ।।६।। द्रव्य बचासां, गायां बचासां, भलो देश रो करसां । अब तो ज्ञान दियो गाँधीजी, देश भलाई करसां ॥७॥ शुभ गीतां में 'बदनकांत' तो गूंथे एडा गीत । देश हमारो बालो लागे, गाढ़ी बाँधो प्रीत ॥८॥
॥बना ॥ (तर्ज- जियो बना जाइजो-जाइजो सब ही देश पूरब मत जावजो जी
मारा राज) जियो बना आयजो-आयजो बनडी रे देश चार दिन पावणा जी मारा राज ॥टेर। जियो बना बनडी जोवे वाट झरोखे ऊभी ताकतीजी मारा राज ॥१॥ जियो बनडा-बनडी उडावे काग, फरूखे डावी आँखडी
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