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THE FREE INDOLOGICAL
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-The TFIC Team.
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VIVASSISTARAMATKAndEW.
श्रीसम्यक्त्व मूल बार व्रतनी टीप.
हिंदुस्थानी भाषामां
पंमित श्री उद्योतसागरगणिविरचित.
, द्वितीयावृत्ति
तेनुं
गुर्जरभाषामां भाषांतर करीने
समस्त सम्यकदृष्टि शुद्ध श्रद्धायुक्त मुज्ञजनोने
भणवा वांचवाने योग्य जाणी.
शाण जीमसिंह माणकें
श्री मुंबाख्य पुरीमध्ये
निर्णयसागराभिध मुद्रायंत्रमा मुद्रित करावी छे.
संवत् १९५४.
सने १८९७.
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अनुक्रमणिका.
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विषय. मंगलाचरणना दोहा. .... .... .... .... ....
सम्यक्त्वव्रतस्वरूपं. प्रथम सम्यक्त्वखरूपं. ... व्यवहारथी शुद्ध देवतत्व श्रीअरिहंतजीनुं लक्षण. अढार दोषनां नाम, श्रीअरिहंतजीना चार निदेपा. निश्चयश्री शुद्ध देवतत्वनुं लक्षण,
.... .... व्यवहारथी शुद्ध गुरुतत्वनुं लक्षण. निश्चयथी शुझगुरुतत्व लक्षण, व्यवहार शुद्धधर्मर्नु लदाण. निश्चयगुरूधर्मर्नु लदाण. मिथ्यात्व लक्षण, अनेक नेदसहित. निश्चयसम्यक्त्वनुं स्वरूप. निश्चयधर्मनुं स्वरूप. .... .... देराशरनी सहोटी दश आशातनानां नाम. सम्यक्त्वानी करणीनु स्वरूप. .... .... .... .... सम्यक्त्वव्रतना पांच अतिचारनुं स्वरूप, बबिमिनां नाम तथा स्वरूप. .... .... चार श्रागारनुं स्वरूप. .... .... ....
प्रथम स्थूल प्राणातिपातविरमणव्रत स्वरूपं. अव्य अने नावथी स्वरूप. आकुटी, दर्प, प्रमाद ने कल्पहिंसातुं स्वरूप. .... श्रावकने सवा विश्वानी दयानुं स्वरूप.
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विषय. प्राणातिपातविरमणव्रतना पांच अतिचार. .... .... २७
द्वितीय स्थूल मृषावादविरमणव्रतवरूपं, अव्य अने नावथी स्वरूप, .... .... .... .... कन्याविकादिक पांच मोटका जूठना स्वरूप, मृषावादविरमणव्रतना पांच अतिचार.
तृतीय स्थूल अदत्तादान विरमणव्रतवरूपं. अव्य श्रने नावथी स्वरूपं. .... चार प्रकारनां अदत्तनुं स्वरूप. अदत्तादान विरमणव्रतना पांच अतिचार.
चतुर्थ स्थलब्रह्मचर्यव्रतस्वरूपं. अव्य अने नावथी स्वरूप. .... .... परदरागमनविरमणव्रत तथा स्वदारासंतोषव्रतस्वरूपं, ब्रह्मचर्यव्रतना पांच अतिचार. .... .... .... .... Hए
पंचम स्थूलपरिग्रहपरिमाणव्रतस्वरूपं अव्य अने नावधीस्वरूप. ..
... .... .. चौद अध्यंतरग्रंथिनां नाम. .... .. नव प्रकारना वाह्य परिग्रहन नेदसहित विस्तारें वर्णन.. नव प्रकारना परिग्रहनी बूट राखवा संबंधि विचार. परिग्रहपरिमाणवतना पांच अतिचार.
.... षष्ठ दिशिपरिमाणगुणवतस्वरूपंनिश्चयव्यवहारथी दिशिव्रतनुं स्वरूप. .... दिशिपरिमाणना नेद. .... .... .... .... दिशिपरिमाणव्रतना पांच अतिचार. ....
सप्तम नोगोपनोगविरमणनतस्वरूपं, निश्चयव्यवहारथी लोगोपनोगतुं स्वरूप, .... वावीश अनक्ष्य वस्तुनां नाम. .... .... ....
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विषय.
(३)
बत्री अनंतकायनी जातिनां नाम.
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७३
अनंतकायनां लक्षण. चौद नियम, प्रत्येक दिवसें धारवा, तेनां नाम तथा स्वरूप. ७४
८१
१
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पंदर कर्मादाननुं स्वरूप, सविस्तर पणे. पंदर कर्मादान रखवानी विगत.
जोगोपनोग विरमणव्रतना पांच प्रतिचार. अष्टम अर्थ
विरमणव्रतस्वरूपं.
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२००
सप्रयोजनार्थमना चार प्रकारनुं स्वरूप. प्रथम निष्टसंयोग ने बीजुं इष्ट वियोग श्रार्त्तध्याननुं लक्षण, एए त्रीजुं रोगनिदान श्रार्त्तध्याननुं लक्षण. चोथुं अशोच आर्त्तध्याननुं लक्षण. पेहेलु हिंसानंद रौद्रध्याननुं लक्षण. बीजुं मृषानंद रौद्रध्याननुं लक्षण.
२०१
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२०४
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त्रीजुं चौर्यानंद रौद्रध्याननुं लक्षण. चोथुं संरक्षणानंद रौद्रध्याननुं लक्षण. यहीं सुधी प्रथम प ध्यान अनर्थ दमना यार्त्तध्यान ने रौद्रध्यान, ए बे जेद बे. ते प्रतिदो सहित का.
.... १०८
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वीजुं पापकर्मोपदेश अनर्थदंमनुं लक्षण. त्रीजुं हिंसप्रदान अनर्थदंमनुं लक्षण. चोथुं प्रमादाचरित अनर्थदंमनुं लक्षण. अर्थ विरमणव्रतना पांच प्रतिचारनुं स्वरूप.
नवम सामायकनामक प्रथम शिक्षाव्रतस्वरूपं सामायकमा लागता बार कायना, दश मनना ने दश वच ना. ए रीतें वधा मली वत्रीशं दोषनां नाम तथा लक्षण. सासवा पांच विचारतं aau
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पृष्ठ.
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विषय.
पृष्ट,
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१५२
दशम देशावगाशिक द्वितीय शिदावतस्वरूपं, ए देशावगाशिक व्रतना पांच अतिचा. .... .... .... १३१
एकादश पौषधोपवासरूप तृतीय शिदाव्रतस्वरूपं. १३५ देशथकी तथा सर्वथकी पोसहनुं स्वरूप, आहारादिक चार प्रकारना पोसह लदाण, पोसहनो प्रनाव तथा फल. .... .... .... .... १३७ पोसहव्रतना पांच अतिचार. ... .... .... १३॥ पोसहमा अढार दोषनो त्याग करवो, तेनां नाम. .... १४०
द्वादश अतिथिसंविनागनामक चतुर्थ शिक्षाव्रतस्वरूपं. १४१ अतिथिर्नु लक्षण, .... .... ....
१५२ जैनमार्गीदातारना पांच गुणनां नाम. .... .... .... आहार आपतां श्रावकथी थता शोल दोषनां नाम. १४७ साधुश्री थता शोल दोपनां नाम. .... .... .... .... १४ए दश ग्रहणदोषनां नाम. .... .... .
१५६ आहार करति वखत मंसदीना पांच दोषनां नास. .... १५ए अतिथिसंविनागवतना पांच अतिचार. श्री संलेषणाव्रतातिचार खरूपं. .
१६५ अव्यसंलेषणा अने चारसंलेषणातुं खरूप, संलेषणा व्रतना पांचं अतिचार.
.... १६७ झानाचारना आठ अतिचार.
१६ए दर्शनाचारना आठ अतिचार. चारित्राचारना आप अतिचार.
१७ए तपाचारना वार अतिचार. वीर्याचारना त्रण अतिचार
रए ग्रंथसमातिना दोहा.
.... रए४
.... १६१
.... १६५
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१७२
१२
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॥श्री गौतम गुरु न्योनमः ॥
अथ श्री श्रावकना बार व्रतनी टीप प्रारभ्यते.
॥ दोहरा ॥ सदा सिद्ध नगवानके, चरण नमुं चित लाय%; श्रुतदेवीपुनी समरिये, पूजुं ताके पाय. ॥ १ ॥ करूं सुगम भाषा सही, बारह व्रत विस्तार; निन्न निन्न नेदे करी, नव्य जीव जपगार. ॥५॥ 'पंचाणु व्रत प्रथमते, तीन गुण व्रत जाण; शिक्षा व्रत चारु मिती, बारह व्रत जु वखाण ॥३॥ शास्त्र सुगुरु उपदेश सुनि, धारे व्रत शुज चाल; ता घरि जश सुख संपदा, होवे मंगल माल. ॥४॥ बुध उद्योत सागर गणी, अपनी मति अनुसार
विधिश्रावकके व्रततणी, पीपलि निरधार. ॥५॥ त्यां प्रथम सम्यक्त्वरूप विखे.ते समकितना बेनेदबे, एक व्यवहार समकित अने बीजो निश्चय समकित. अंहीसम्यक्त्व शब्दनुं अर्थ लखेडे (तत्वार्थ श्रद्धानं सम्यक्त्वं ) तत्व एटले जे यथार्थ खरूप विज्ञान पूर्वक श्रद्धा तेने सम्यक्त कहीए, ते तत्व त्रण प्रकारचें . एक देव तत्व, बीजुं गुरु तत्व, त्रीजुं धर्म तत्व, अने वली ए त्रणे तत्वनी सदहणा एटले जे साची प्रतित तेना बेनेदजे. एक व्यवहारथी अने बीजी निश्चयथी तेमां प्रथम व्य वहारथी शुद्ध देव तत्वनी सदहणा देखाडे बे.
'एमां देवतो श्री अरिहंतजी जेमना अढारे दोष दय पाम्या जे. ते अढार दोषना नाम नीचे प्रमाणे . .
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(२) प्रथम अज्ञान दोष, बीजो क्रोध दोष, त्रीजो मान दोष,चोथो मा यादोष, पांचमोलोन दोष,बकोअविरति दोष, सातमो हास्य दोष श्रामो रति दोष, नवमो अरति दोष, दशमो जय दोष, अगीबार मो शोक दोष, बारमो मुगळा दोष, तेरमो निंदा दोष, चउदमो काम दोष, पन्नरमो अंतराय दोष, सोलमो मोह दोष, सत्तरमो मि थ्यात्व दोष तथा अढारमो निझा दोष. ए अढार दोष जेना मटी ग या बे, अने ए अढार दोषनो नाश थवाथी अढार गुण प्रगट थ यावे, जेमने रत्नत्रयी जे ज्ञान दर्शन चारित्र ते दायक नावे थ ईने, जेमने अनंत चतुष्टयी संपूर्ण प्रगटी, जेनाथी घनघाती कर्म नी सत्ता विघटी बे, जे जिन चारे निकायना देवताउँने अने चो सठे देवेंज तथा नरेंज जे चक्रवर्त्यादिक तेने पूजनीक , तथा जे चोत्रीश अतिशयेकरी युक्त,अने पांत्रीश गुण युक्त वाणीवडे देश नादेडे, जेमना श्राप महाप्रातीहार्य शोलायुक्त सदा विराजे, त था जेमनी एवी प्रज्जुता जगत्रयातिशयरूप, बल, ऐश्वर्य, शकि, सिकि, बुद्धि, जाति तथा कुलादि नावे उत्कृष्ट. तो पण मददोष नो जेमने स्पर्श नथी वली जे अगिलाण पणे यथार्थ अने निर्दो ष एवी सकल जगत जीवने उपकारी देशना देने, वली ज्यां श्री अरिहंतजी विचरे त्यां फरती सवासो योजनमां इति उपनव नि वर्ते, ते इति उपजव सात प्रकारना. पहेलो वर्षानी अतिवृष्टि, बीजो अनावृष्टि, त्रीजो जंदर प्रमुख जीवादिकनी वहुज उत्पत्ती थाय, चोथो पतंग पक्षी तोता तीड प्रमुख घणा थाय, पांचमो मरकी जेनाथी वमनादिक विकारेकरी घणा मनुष्यादिक मरण पामे, छो स्वचक्र ते पोताना देशसंबंधी राजाउनुं सैन्य विग्रह करे अने सातमो परचक्र एटले अन्यदेशनुं श्रावेलु कटक युद्ध हेतुए परस्पर लढाश्थी विग्रह उपञ्व करे. ए प्रमाणेनी साते इति जे मना आगमने करी नाश पामेठे एवा श्रीश्ररिहंतजी. वलीकृत
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(३)
कृत्य थयाथी जेमने कोई साधननी न्यूनता रही नथी; जे मनी निर्विकारी शान्त मुखा जोवाथी काम, क्रोध, लोज अने मोहादिक अनादिना दोष मटे, अंतरमा संवरनी शैली प्रगटे, जेना वचन सांजलतांज अनादिनी मिथ्या चम नूल मटे जे श्रीअरिहंतजी चारे निदेपे सकल जीवने हितकारी जे.
चार निदेपा ते आ प्रमाणे. प्रथममान निदेपोएटले श्रीअरिहंतजीनाम जाणवू. जेम नमो अरिहंताणं एटबुं नाम मात्र आराधवाश्री अनंतजीवमुक्ति पाम्या. - बीजो स्थापना निदेपो एटले जे श्रीअरिहंतजी सकल दोषना चिन्होए रहित, निरुपम, सहज सुनग,समचतुरस्त्र संस्थानीय एवं जे पद्मासन काउस्सग मुखाते जिन बिंब तेने श्रीअरिहंतजीनो स्थापना निदेपो कहिए. ते निःकामी लोकोत्तर स्थापनारूप जिन मुखानां दर्शने करी सेवा अर्चाए करी अनंत जीव मुक्ति पाम्या.
त्रीजो अव्य निक्षेपो ते आवीरीते के, जेणे जिन पद निकाच त्त कमु, पण पाम्यानथी, अने आगल जिनेश्वर थशे एवो जे जीव तेने अव्य अरिहंत कहिए. एना नावी गुणतुं नूत काले उपचार करीने वंदन, नमन, स्मरण, पूजन अने स्तवन करतां पण अनेक जीव मुक्ति पाम्या. __ चोथो नाव निक्षेपो एटले आप जगत उकरण समर्थ, चवन जन्मादि कल्याणक महोत्सव पूर्वक उत्तम कुलमां अवतार पामी ने, नोग कर्म सीम उदय अव्यापक रीते जोग विघ्न मटाडीने लोकांतिक देवकृत संकेत अवसरे वरसीदान सवा पहोरसुधी नि त्ये देश करीने, संयम ग्रहीने सम्यक्झान क्रियावडे चारे घनघाती कर्म क्षय करीने केवल ज्ञान पामे, ए वखत चलीताशन, चोसठे इंड सपरिवार आवी करीने अष्ट महाप्रातिहार्य युक्त समवसरण बनावे अहींयां रत्नमय सिंहासन उपर बेसीने निरवद्य देशनावडे
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( ४ )
व्य जीवने प्रतिबोध करी चतुर्विध, संघनी स्थापना करीने तीर्थप्र वर्त्तावे. सकल जीवने देशनावडे अनुग्रह करे. एवा जे समोसरणमां विराजमान श्री सीमंधरादि विहरमान परमेश्वर तेने नाव अरिहंत कहिए, एमना चर्णार्विदनी शेवाथी पण अनंत जीव मुक्ति पाम्या.
एवा जे श्री अरिहंत देवाधिदेव, महा गोप, महा माहण, महा निर्यामक, महा सार्थवाह, महावैद्य इत्यादि बिरूदधारी, सकल स मकेति जीवना प्राणाधारक, सकल मुनि मनमोहन एवा जे श्री जिनेश्वर रिहंत देव तेमने हुं देवकरी सरदहुं, एमनी सेवा करूँ, एमनी आज्ञा शिरधरुं, इतिश्री व्यवहार शुद्ध देवतत्व समाप्त. हवे निश्चय देव तत्व कहे.
शुद्धात्म स्वरूप वस्तुगते वस्तुरूप प्रतीतिवडे शुद्ध तत्व श्रद्धा प्रगटे, ते निश्चय देव तत्ववे. एटले वरण, गंध, रस, स्पर्श, शब्द, रूप, क्रियादिथी रहित, शरीरथी जिन्न, योगथी जिन्न, प्रतिप्रिय, अविनाशी, अनुपाधी, अवंधी, अक्केशी, अमूर्ति, शुद्ध चैतन्य, ज्ञा न, दर्शन, चारित्रादि अनंतगुण जाजन, सच्चिदानंद स्वरूपी एवं मारुं श्रात्मतत्वबे, एम जे जाणवुं तेने निश्वें देवतत्व कहे.
हवे वीजा गुरुतत्वमां प्रथम व्यवहारथी शुद्ध गुरु कहे. जे पांच समिते समिता, त्रण गुप्टेकरी गुप्ता, समतात्मरमणे रमतां, पंचेंद्रिय दमता, अनेक डुःकर परीसह उपसर्ग सर्व द माथी खसता, अनेक स्तुति निंदा सांजलवानुं तजीने समतारूप शुभ ध्यानाशिवडे कर्मरूपी काटने वालता, अनादि परचित विजाव परिणतिने वमता, जेने नहिं माया नहिं ममता, प्रतिक्षणे गुरु चर्णाविंदे नमता, प्रतिक्षणे नव नव संयम स्थाने चढता, प्रति कणे ज्ञान दर्शनादि गुण पर्याये वधता, पोतपोतानी शक्ति प्रमा ऐ नवीन नवीन तप क्रिया करतां प्रतिदिन श्रात्मवीर्योल्लासयुक्त ज्ञान कियाजास वडे लब्धि प्रमुख गुणे वर्त्तता, पंचांगी प्रमाण शु
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फस्याहादथी अनुसरीने शुरू चारित्राचार पालनरूप प्रवहणे क रीने संसार समुष तरता, सकल आशंसा दोष त्यागी एक मुक्ति पद साध्य मन धरता, त्रिकरण शुझें एक विध श्रीजिनाज्ञानां प्रति पालक, विविध धर्मना प्रकाशक, त्रिविध रत्नत्रयीनाधारक, चतुर्वि ध कषायना जीपक, पंचविध शुजनावनाये युक्त थका पांच महान तना धुरंधर धोरी, बविध बकायना परम रदक, सप्तविध जय स्थानथी रहित, अष्टविध मदस्थानकना जीपक, नवविध ब्रह्मगु तिना धारक, दशविध यतिधर्म प्रतिपालवामां सावधान, एकाद शांग सूत्रना अर्थ विस्तारे पठन करवामां रसिक, इत्यादि उत्तरो त्तर अगणित गुण गणालंकृत गात्र, परम पात्र, परमोपकारी, अ ष्टादश सहस्रशीलांगरथधारी,नव कोटी विशुद्धप्रत्याख्यानचारी, अनियत नव कल्पविहारि, सडतालीश दोषरहित शुद्धाहार था हारी, जेनी परीक्षा कसोटीए कस्या जात्यवंत सोनानी परे अ धिक अधिक गुणना रंगधारी, शत्रु मित्र समचित्तदृष्टि, जे कुखि पू रक संबलथी नहीं अधिक वित्त, परमगुणी, परमदयाल, जगतबंधु, जगहितकारी, जारंग पंखीनी पेरे अप्रमत्तचारी, पृथ्वीनी पेरे सर्व सहन करनारा, मधुकरीवृत्तिनीपेरे मुधाजीवी,आकाशनीपेरे निरा धार, गतप्रतिबंधी,अंतरमा अने बाह्यमां, सुतातेमजागतां, दिवश मां तेम रात्रीमां, एकाकीमां तेम महोटी परखदामां जेमने एकजप वृत्तिबे. एवा मुनिराज नविक जीवोने संसारसमुजतारवाने जेमना चरण वडसफरी वहाण समान स्वपरोपकारी, एवा जना वख तमां पण पंदर कर्म नूमिमां सर्व मलीने बे हजार कोडी साधु व तें. तेमने हुं गुरुतत्व करी सर्दहुं, एमनी आज्ञा मारं, एमने पर मपात्र बुझिए पडिलाजु, एमनी क्रियानी अनुमोदना करूं,एवाशुद्ध साधु मारा गुरुत्व. इति व्यवहार शुक गुरुतत्व समाप्त.
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हवे निश्चयथी गुरुतत्व कहे. निश्चय गुरुतत्व ते शुद्धात्म विज्ञान पूर्वक जे. जे हेयोपादेय उपयोगयुक्त परिहार प्रवृत्तिज्ञान तेने निश्चे गुरुतत्व कहीए.
हवे त्रीजा धर्मतत्वमा प्रथम व्यवहार धर्म कहे. श्रीअरिहंत देवाधिदेव तीर्थकर परमेश्वर समवसरणमां बेसी करीने बार पर्पदानी वचमां श्रीगणधर पदधारीने त्रीपदी दानपू र्वक द्वादशांगीनी रचना करी, त्यां यथार्थ अर्थना कर्ता श्रीअरि हंतजी अने ते अर्थानुयायी सूत्रना कर्ता श्रीगणधर तेने आगम कहिए ते आगममांप्रकाश्या जे नावसकल जीवोने हितकारी दुर्ग ति पडतां जीवने राखे तेने धर्म कहिए ते धर्म स्वरूपना बे नेद ने एक शुद्ध व्यवहार धर्म, बीजो शुद्ध निश्चय धर्म, त्यां प्रथम व्यवहार धर्म ते श्रीजिनागामोक्त शुद्ध दया स्वरूप विज्ञान पूर्वक जे धर्म प्रवृत्तिनु करवं तेने कहिए बैए.
- अहिंयां वली दयानु स्वरूप लखीए बैए. दयाना आठ प्रकार . अव्यदया, नावदया, स्वदया, परदया, स्वरूपदया, अनुवंधदया, व्यवहारदया तथा निश्चयदया. हवे अ नुक्रमे ए आठे प्रकारनी दयानुं संदेप वर्णन करीये ठीये. - प्रथम अव्य दया एटले जयण पूर्वक प्रवृत्तिए करी जे जीवर दा करवी ते जैनमार्गिनो कुलधर्म. एने अव्यदया कहिए.
वीजी नाव दया एटले वीजा जीवने गुण प्राप्तिनी बुद्धे तथा मुर्गतिनो पतनोझारण अंतर अनुकंपावुद्धि सहित उपदेशादिक करवो तेने नाव दया कहिए.
त्रीजी खदया एटले आपणो आत्मा अनादि कालनो मिथ्या त्व अशुद्ध उपयोगी अशुद्ध श्रझान पूर्वक अशुरू प्रवतिए क रीने कपायादिक नाव शस्त्रयी प्रतिसमये ज्ञानादिक गुणघात रूप नाव प्राण हणाय; एवं श्री जिनवचनना उपकारे जाणी करीने
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खसत्ताजे परसत्ता प्रवृत्ति परिहाररूप,शुकोपयोगधारी, विषयक षायथी दूर रहे. शुजाशुज उदये अव्यापक रहे.अहींयां चेतना व रूप सन्मुखले. तेने सुख दुःखनी प्राप्ति ते कर्मोदयिक डे, पण मन मां हर्ष विषाद नरहे, प्रतिक्षण कर्मबंधनी चिंता रहे ते स्वदया. ए खदया वालो जीव पोतानी चेतना समारवाने जिन पूजा, तीर्थ यात्रा, रथ यात्रा, प्रमुख शुनाश्रव प्रवृत्ति करीने जिनगुण गान ब हुमान पूर्वक पोतानी चेतन तत्वावलंबी करे, पुजलावलंबी पj मटाडे, जोके ए शुनावमां बाहेरथी जोतां तो हिंसाबे, पण ए नि मित्तथी अनादिनी विनाव चाल मटे, गुणी जे श्री अरिहंतादिक तेना बहुमाने करीने आत्मा गुणग्राही थाय, अने न्यारे गुण ग्राही थाय त्यारे ते ज्ञानी पण थाय, ते माटे सर्व साधकोने ए खदया ते परम साधन . साधु पण नवकल्पी विहार करे, उपदेशापे, चर्चा करे, पूंजन प्रमार्जन करे ते स्वदयानी पुष्टिने वास्ते करे, अहींयां योगनी चपलताए करीने आश्रव थाय खरो, पण चेतना स्वरूपानुयायी रहे, जिनाज्ञापले, कषाय स्थान मंद पडे, जलकता मटे, यथा बंदी पणुं मटे, धर्म प्रवृत्ति चढे तेथी स्वदया निमित्त जे शुजाश्रव तेने साधु पण पोतानी दशा माफक आदरे. ___ चोथी परदया ते ए के, बए कायना जीवोनी रक्षा करवी जे का रणे सर्व जीव जीव्युं चहायने, सुखना अर्थी सर्व बे, जेम आपणो जीव दुःखथी मरेले तेम सर्व जीव फुःखथी नय पामेले; एवं जा. रणीने जीवनी दया करे तेने परदया कहीए. वली ज्यां खदयाचे त्यां परदया नियमा बे; अने ज्यां परदयाचे त्यां वदयानी जजना जे. __ पांचमी स्वरूपदया ते ए के था लोक तथा परलोकना पुमलीक सुखनी आशामां तथा देखा देखीयें करीने जीव रक्षा करे तेने व रूपदया कहीए. आ दयावडे करीने तरत तो पुमलीक सुख पामेडे
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पण पड़ी मेडकाना चूर्णनी पेरे संसार वधे आ स्वरूप दया विषे देखवामां दयाबे पण नावथी हिंसाने.
बही अनुवंध दया एटले श्रावक बहु आम्बर करीने मुनि वं दनने माटे जाय, उपकार बुद्धिवडे बीजा जीवोने आक्रोश ताड नादिक करीने शिक्षा आपे, सुमार्गे लावे कुमार्ग तजावे आमां उपरथी जोतां हिंसा. पण आगल पोताना अने पारका जीवने लान थाय तेथी अनुबंध, फल दयाने पामे. साधु तथा आचार्य पण पोताना शिष्य शिष्यणिने सारणा, वायणा, चोयणा तथा पडिचोयणादिक करे शासनना प्रत्यनीकने पोतानी लब्धिए करी शिक्षा आपे कदापि पंचेंडि जीवने पण शुद्ध मार्गे प्रवर्त्ताववाने अर्थे शिदा करे, शासन स्थिर करे, ते अनुबंध दया कहिए.
सातमी व्यवहार दया एटले विधि मार्गानुयायी जयणा पा ले, कम वेस नकरे, जुले नहिं ते व्यवहार दया कहिए.
आवमी निश्चय दया एटले शुद्ध साध्य उपयोगमा एकी ना व अन्नदोपयोग होय, साध्य नावमां एकता ज्ञान तेने निश्चय दया कहीए ए दया गुण गणे चढावे तेणे करी उत्कृष्ट.
इत्यादिक अनेक प्रकार दया स्वरूप विज्ञान पूर्वक सूत्र, नियुक्ति जाण्य, चूर्णि अने वृत्ति ए पंचांगी संमत्त प्रत्यदादि प्रमाण पूर्वक नैगमादिक नय शैली पूर्वक नामादि निक्षेप रचना पूर्वक स्यादस्ति नास्तिप्रमुख सप्तनंगी स्वरूप रूप, यथार्थ विज्ञान पूर्वक ज्ञान कि या, तथा निश्चय व्यवहार, तथा अव्यार्थिक, पर्यायार्थिक इत्या दिक उन्नय जावमा यथावसरे अर्पितानर्पित नय निपुणताथी मु ख्य गौणनावे, उन्नय नय सम्मत एवी शुरुस्याहाद शैली विज्ञान पूर्वक श्री सिद्धांतोक्त दान, शील, तप, जावना, रूप शुन प्रवर्ति प्रवर्तन तेने व्यवहारथी शुद्ध धर्म कहीए.
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. हवे शुद्ध निश्चय धर्म कहेजे. शुझ निश्चय धर्म ते आत्मानी आत्मता जाणे, वस्तु खन्नाव उलखे, जे आत्म अव्य ते शुद्ध चैतन्यतारूप असंख्यात प्रदेशी अमूर्त लोक प्रमाण, सर्व पुलथी जिन्न, अखंग, अलिप्त, अनंत ज्ञान दर्शन चारित्र सुख वीर्य अव्याबाधादि अनंत गुणमयी, स्व गुण नोगी, अविनाशी, अनुपाधी, अविकारी एवो मारो आत्म अव्य खन्नाव तेज उपादेय, एनाथी जे विलक्षण परपुजलादिक ते मारुं नथी, हुं तेनो नथी, ते पुजल जे वर्ण, गंध, रस फरसरूप ते ना पांच विकार.शब्द,रूप, रस, गंध, स्पर्श, ए पांचेना उत्तरन्नेद अनेकडे ए शब्दादि एकेक नेद वर्णादि चार चार नेद लश् रह्या बे.आ लोकाकाशमां जे अजवाबुंडे तथा अंधारुबे, शब्द जे उ ठेने, सर्व रूपी वस्तुनो परायो पडे, रत्नादिकनी कांति पडेले, शित पडे, बाया पडे, धूम्र पडे, ताप पडे, नानाप्रकारना रूप, रंग, संस्थानना घाटनो नमुनो दीठामां आवे तथा नाना प्रकारना रूप, रंग, संस्थाननी सुगंध तथा दुर्गंध आवेडे,नानाप कारना रसनी मका बे, सर्व संसारी जीवोनी देह, नाषा, मननी कल्पना तथा प्राणना दश नेद , तथा पर्याप्तिनाउन्नेद, हास्य, रति, अरति, लय, शोक, उगंबा. खुशबख्ती, उदासी, कदाग्रह, हठ, लढार, कषाय, क्रोधादिक चार, साता, असाता, उंचपएं, नीचपणुं, निझा, विकथा, सर्व पुन्य प्रकृति, सर्व पाप प्रकृति, रीज, मोज; खीज, खेद ब, वेश्या; लाजालान, यश, अपयश, मूर्खपणुं, चतुरता, स्त्री, पुरुष, अने नपुंसक वेद, कामचेष्टा, गति, जाति इत्यादिक जे आठ कर्मना विपाकले.ते सर्व जीवने अनुजव सिने.
बीजा पण सुमपुजल जे इंजियोथी अगोचर परमाणु आदि लश्ने अनेक नेदना अग्रहित एवा बुटापुजल .ए पुजलनासंयोग श्री चारे गतिमां जीव जटके बे, ए पुजलनो संग तेज संसारखे.
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(१०) एना संयोगथी जीवना अनंत ज्ञान दर्शन चारित्रादिक अनंत गुण वगडे, एवीजेपुजल अव्यनी रचनाते मारो स्वन्नाव नथी, ए पुज लमारीजातीनथी,ए पुजलथी मारोसंबंधनश्री ए पुजल मारेत्या गवा योग्य पण दरवा योग्यनथी. तथा जे धर्मास्तिकाय अव्य ते पण जीवनें तथा पुजलने गति सहायकारीने,अने अधर्मास्तिकाय अव्य तेजीव पुजलने स्थितिसहायकारी,आकाशव्य सर्वनुं जा जन अवगाहना दाश्ने; कालजव्य नवपुरातनकारी वर्तनालक्षण वंत;एम एचारजव्यजेतेमारेझेयरूपडे एनाथी पण माझं स्वरूप न्यारं. तथा वीजापण संसारी जीव जे बे, ते पण पोत पोताना खन्नाव सत्ताना धणीने. ए पण मारा ज्ञेयरूप.ए सर्वनाथी हुंन्या रोएं. ए मारा संगी नहीं तेम हुँ एमनो संगी नहीं. हुं मारी व नावसत्तानो धणी बु. मारो स्वन्नाव सम्यग् ज्ञान दर्शन चारि त्रादि रूप, अवन्ने अगंधे, अरसे, अफासे, चेयणगुणे, अनंत अ व्यावाध, अनंत दान, अनंत लान, अनंत जोग, उपनोग, अनं त वीर्यादिक, अनंत गुण खरूपले. तेमनी श्रद्धा नासन पूर्वक गुणावादिकरूप चिदानंदनघन मारो खन्नावले. एवोमाहरो पूर्णा नंद खन्नाव तेने प्रकट करवाने व्यवहार नयथी, सर्व शुद्ध व्य वहार जे ते निमित्त मात्र. पण मुख्य तो सारा खनावमांजर मण कर, तेज शुद्ध साधन. तेज धर्म . तथाचोक्तं श्रीउत्तरा ध्ययनसूत्रे ॥ वgसहावो धम्मो ॥ इत्यादि विज्ञानपूर्वक चेतन प्रवृत्ति तेने निश्चय धर्म कहीए. ॥ इति धर्म तत्वं समाप्तम्, एत्रणे तत्वनीज़े श्रद्धा निश्चल परिणति रूप प्रतित तेने सम्यक्त्व कहीए.॥यमुक्तं सिद्धांते। निस्संकं पावयणं ॥जंजिणेहिं पवेहियं । तंतहा मेवसचं। एसमछे सेसे अणके॥इत्यादि ते कारणे तत्वार्थ स दहणा तेपण सम्यक्त कहीए. अने एनाश्री विपरीत वासना एटले तत्वार्थ अश्रकान अप्रतीत, अतत्वार्थ श्रद्धान ते मिथ्यात्व कहीए,
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- ए मिथ्यात्वना मूल चार जेद बे. तेमां प्रथम परूपणा मिथ्या त्व एटले जिनवाणीथी विपरीत प्ररुपे, बीजं प्रवर्तन मिथ्यात्व एटले मीथ्यात्वनीज करणी करे ते जाणवू, त्रीशुं परिणाम मि थ्यात्व एटले मनमां, परिणाममां विपरीत कदाग्रह रहे, शुधार्थ सरदहे नहीं. चोथु प्रदेश मिथ्यात्व एटले सत्तागत जे मिथ्यात्व मोहनीना कर्मदल , तेने प्रदेश मिथ्यात्व कहीए ए कर्म दल विपाकमां आवे त्यारे परिणाम मिथ्यात्व होय, अने ज्यां सुधी तेदलीक सत्तामा पड्यां रहे त्यारे तो जीवने समकेत पण थाय,
हवे ए चारे मिथ्यात्वना उत्तरत्नेद एकवीश ते लखे बे. १ प्रथम तो जिनप्रणीत जे शुरु निरवद्य धर्म तेने अधर्म कहे.
बीजो हिंसाप्रवृत्तिप्रमुखश्राश्रवमयीअशुद्धअधर्मतेनेधर्मकहे. ३ त्रीजो संवरजाव सेवनरूप जे मार्ग तेने जन्मार्ग कहे. ४ चोथो विषयादि सेवनरूप जे उन्मार्ग तेने मार्ग कहे. ५ पांचमो सत्तावीश गुणेकरी विराजमान, काष्टना नावसमान, तरण तारण समर्थ एवा जे साधु तेने असाधु कहे.
६ बहो आरंज परिग्रह, विषय कषाये जरेलो, लोज मन्न, कुवा सना दायी, लोढाना तथा पाषाणना नाव समान, एवो जे अन्य लिंगी तथा कुलिंगी असाधु होय तेने सुसाधु कहे. पण एम न विचारे के जे पोते दोश थकी जरेलो ते बीजाने केवीरीते निर्दो षिकरशे? जेम पोते दारिद्धी बतां बीजाने धनपती क्यांथी करशे?
सातमो एकेजियादिक जे जीवो तेने अजीव करी माने.
आठमो काष्ट सुवर्णादिक अजीव पदार्थ तेने जीवकरी माने. ए नवमो मूर्तिवंत एवा जे रूपी पदार्थ तेने अरूपी कहे जेवी . रीते स्पर्शवान वायुने अरूपी कहे, पण ते जो अरूपी तो तेमा स्पर्श केम ? एवं विचार करे नहीं. १७ दशमो अरूपी पदार्थ ने रूपी कहे.जेवी रीते मुक्तिमा तेजनो
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(१२) गोलो माने पण एम न विचारे के जे अरूपी चीज ने तेनुं तेज केम नजरमां आवे? एवो विचार न करे. ए दश नेद कह्या.
तथा पांच वीजां मूल नेदबे ते लखेडे. . १ जे पोतानी मतिमां आव्यं ते साचं बीजं सर्व जंतं पण प रीदा करवानी श्वा राखे नही शुद्धा शुद्धनी खोल करे नही ते प्रथम अनियहिक नामे मिथ्यात्व जाणवो.
२ सर्व धर्म सारा सर्व दर्शन जलांजे सर्व कोने वंदना करि ए पण कोश्नी निंदा करिए नही. एणे अमृत अने विष ए वन्ने समान गण्या ते वीजो अननिग्रहिक नामे मिथ्यात्व जाणवो.
३ जे जाणी बुजीने जुतुं वोले, पहेला पोताना अझानपणा थ की कांच जूलपडे विपरीत प्ररुपणा करे तेवारे को शुद्ध मार्गानु सारी जीव तेने कहे के पा तमे सिद्धांत विरोछ बोलोगे तमेनू लोगे एवं सांचले तेवारे तेने हह आवे तेथी कुमति कदाग्रह कु युक्ति करीने पोतानुं वचन राखवानी अपेक्षा करे पोते जुगे पडे तोपण नमाने ए पुरुष विराधक बहु जव ब्रमण करनारो जाणवो ए बीजो अनिनिवेश नामे मिथ्यात्व जाणवो.
४ जे जिनवाणीमा संशय राखे एने पोताना अज्ञान दोष थ की सिद्धांतना गहनार्थमा खवर पडे नही त्यारे मगमगतो थको रहे जे ए केम हशे ए संशयिक नामे मिथ्यात्व जाणवो.
५ जे अजाण पणाने लीधे कांश समजे नही ते अनाजोगिक मिथ्यात्व अथवा एकेंजियादिक जीवोने अनादि कालनो लागोर ह्योठे ते पण अनानोगिक मिथ्यात्व जाणवो. ए वका मतीने पू वैला दश नेद साये मेलवता पंदर नेद मिथ्यात्वना थया.
हवे वीजा बन्नेद लखेटे. एक लौकीक देव, वीजो लौकीक गु रू, त्रीजो लौमीकपर्व, चोथो लोकोत्तरदेव, पांचमो लोकोत्तरगुरु, श्रने को लोकोत्तरपर्व. ए ठ नेद ववरीने कहे.
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१ जे देव राग द्वेष थकी नरेला,एक उपर मेहेरबान थाय ने, एकनो विनाश करे तथा स्त्रीया दिकना विलाशमां मग्न रहे, अनेक जातना हथीयारो हाथमां धारण करेलांबे, पोतानी प्रश्नु तमां कां न्यूनता नथी, हाथमा माला धारण करेने, सावद्यनोग पंचेंजिय वधादिकनी चाहना करे एवा देवोने माने, पूजे, अने तेमना कहेला मार्ग यज्ञ याग अनेक प्रवृत्ति हिंसामयी करे, तेने प्रथम लौकीक देवगत मिथ्यात्व कहिए. एना अनेक नेद ते मि थ्यात्व सत्तरी प्रमुख ग्रंथो थकी विस्तारे जाणवा.
जे अढार पापस्थानकथी जरेलांजे, नवविध परिग्रहधारी, गृहस्थाश्रमी, एवा बता गुरुनाम धरावे ते जाणवा. तथा बीजा कुलिंगी जे नव नव प्रकारना नेष बनावीने आमंबर करे, बाह्य प रिग्रह त्याग करे, पण अत्यंतर ग्रंथी बोडी नथी, अनादिनी नूल मटी नथी, शुद्ध साध्यनी उलखाण श्रश्नथी, एवाने गुरु करी मा ने, तेनो बहुमान करे, एवाने शुद्धदान आपे, तेमां परमपात्र बु कि धरे, ते बीजो लौकीक गुरुगत मिथ्यात्व जाणवो.
३ था लोके पुजनिक सुखनी श्वाथी अनेक मिथ्यात्व क पित लौकीकपर्व दिवश जेवांके दिवासो, रक्षाबंधन, गणेशचोथ, नागपंचमी, सोमप्रदोष, सोमवती, बुझाष्टमी, होली, दशेरा, प्र मुख शतपर्वने लाजदायी जाणीने श्रझायेंकरी आराधे, अव्य व्यय करे,कुपात्रने दान आपे,तेत्रीजो लौकीक पर्वगत मिथ्यात्व जाणवो.
४ देव श्रीअरिहंत धर्मनाागर, विश्वोपकारसागर, परमेश्वर, परमपूज्य, सकलदोषरहित, शुभ निरंजन, तेनी स्थापनाजे मूर्तिसा. धिष्ठायक प्रतिमां तेने आलौकिक पुजनिक सुखनी श्वा धारणकरी माने के माहरु कार्य थशे तो महोटी पूजा करीश, बत्रादिक चडा वीश, दीवाकरीश,रात्रिजागरण करीश, एवीरीते श्रीवीतरागनीमा नता करे अहीं चिंतामणीना दातार पाशेथी काचना कटकानी
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(१४) सांगणी करवी तेकांश युक्त नथी पण जेने कर्मोदयनी प्रतीत न श्री ते व्यर्थ नूला नटके पुण्योदय विना कां पण थतु नथी व्यर्थ निरंजन देवने पुजतिक सुखनी आशा धारण करी माने ते चोथो लोकोत्तर देवगत मिथ्यात्व जाणवो. __जे साधु वेशधारी, निर्गुणी, जिनवचन उबापक, पोता
नी मतिकल्पनायें करी अर्थनी देशनाना प्ररूपक, सूत्रार्थना सं ताडनार, एवा उत्सूत्र नाषण करनारा लिंगी तेमने गुरु बुद्धि ये करी वहुमान करे तथा जे सुसाधु, सद्गुणी, तपस्वी, सदाचारी, बहक्रियावंत होय तेने आलोकना सुखनी चाहनाधरीने बहुमान करे अने एम विचारेजे एवागुणीनी अत्यंत सेवा करीशुं तो एम नी मेहेरवानी थकी धन शछि पामीशु एवी इंजिय सुखनी श्या धा रण करीने तेमने माने ते पांचमो लोकोत्तर गुरुगत मिथ्यात्व.
६ कल्याणीकादिक पर्व दिवशे पुत्रादिकनी वांगनाए करीने श्र रिहंत देवतुं आराधन करे ते हो लोकोत्तर पर्वगत मिथ्यात्व. ___ एप्रमाणे सर्वमतीने मिथ्यात्वना एकवीश नेद थया तेने हुँ परिहरं परंतु एमां देवतत्वमा एटलो आगार के जे कुलनी परंपरा चाली आवी एवी जे गोत्रज कुलदेवतादिकनी पूजा, अने दीप पूजा प्रमुख विवाहादिक करणीने विपे जे करवी पडे तेनी ज यणाये परंतु तेने शुल करणी जाणु नही.
अने गुरुतत्वमा कुगुरु जे अन्यलिंगी ब्राहमणादिकठे जे वि वाहादिक जोडावे पराणावे तेना अधिकारी जेमनी परंपरानी वृत्ति लागेली ते आवीने आसिरवाद आपे तेवारे तेमने लौकीक व्यवहारने अर्थे प्रणाम करवू पडे, कांजचित्त श्राप, पडे. तथा को मिथ्यात्वी राजवर्गीने घेर गया थकां त्यां तेमना गुरु श्रावे तेवा रे ते राजवर्गी पोताना गुरुतुं वहुमान प्रणामादिक करे तेवारे तेनी आदवयी आपणने पण सलाम प्रमुख बहुमान करवू पड़े. तथा
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(१५)
जेणे नामा लेखादिक अंक विद्या प्रमुख याजीविका चलाववानो हु नर शिखाव्य होय एवो उस्ताद ब्राह्मणादिक होय तेनुं बहुमान करवुं पडे, जक्ति करवी पडे, अन्न वस्त्रादिक घ्यापवुं पडे, तेनुं आगार बे, उचित व्यवहार जाणी ए सर्व करूं पण धर्म बुद्धियें नकरुं.
तथा मिथ्यात्वीना कोइक लौकीक वार तेवार यावे तेवारे ते नावादिक कारणे ते कां द्रव्यादिक मांगवा घ्यावे तथा ते मि थ्यात्वी कूप सरोवरादिकनुं खनन करवानी जे लौकी करीतीबे तेने धर्म बुद्धि करी माने तोतेवाकार्योंने पर्थे कां द्रव्यादिक मांगवा ने यावे वारें शासननी निंदा मटाडवानी बुद्धि धारण करीने द्रव्यादिक पुं पण तेमां सुकृतनी बुद्धि धारण करूंनही.
बीजा पण कोइ कुलिंगी ने कोइ ला दाक्षिणता जय प्रमुख कारणने बीधे बहुमान करवुं पडे, अथवा दान यापवुं पडे, ते के वल लोक व्यवहार तथा शासननी हीलना मटाडवाने था द्वेष मटाडवाने अर्थे लोकचाल करूं पण तेमां धर्म बुद्धिध रुं नही. अने ते खरच संसार खाते लखुं.
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तथा स्वलिंगी हिनाचारी केवल वेषधारी नेखधारी होय तेने शा सननी निंदा मटावाने कार्ये तथा तेमनो खेद मटाडवाने अर्थ प्रणा मादिक बहुमान करुं तथा कुल परंपरागत वृत्ति जाणीने अन्न वस्त्रा दिक या केमके जिनमार्गनो लिंगी तथा दर्शनी पण याचना करे नही एप एक गुणबे तो त्यां ए गुण आागलकरीने यापवो.
तथा तेवा हीनाचारीमां पण जे शुद्ध प्ररुपकडे अने जेणे पणने जणवा सुवानुं उपकार कीधुंबे, जेणे आपणने सुबुद्धि पीछे, पण मूल मटाडीबे, तो तेवाने ए आप उपकारी एवी बुद्धि धारण करीने वंदन नमन सन्मानसन्मुख गमन प्रमु ख मनमा हर्ष धारण करीने करूं, माहारी शक्ति प्रमाणे सेवा क रुं, मोहोटा उपकारी - धर्माचार्य करी मानु, पण तेने सुसाधु शुद्ध
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गुरु तत्व करी सर्दहुँ नहि मात्र उपकारी सरद हुँ. एरीते मिथ्या त्वनुं त्याग करुं शुछ समकेतने धारण करु.इति व्यवहारसम्यक्त्व.
हवे निश्चय सम्यक्त्व लिखेने. निश्चय सम्यक्त्वतेजे पूर्वे निश्चय देव, गुरु अने धर्म तत्वमा लखेढुंबे ते तत्वनी विचारणा करतां निष्पन्न स्वरूप संग्रह स त्ताग्राही नय गवेषतां, निश्चय देव ते ए आपणो आत्माजले त था निश्चय गुरुपण आपणो आत्माज ने जे कारण माटे स्वरू पोपयोगीजीव ते पोतानी आत्माने सन्मार्गी करे नावाश्रवनुं त्या ग करावे एमाटे आत्मा एज गुरु तत्वले.
तथा निश्चय धर्म पण आपणो आत्माज जे कारण माटे धर्म जे वस्तु स्वन्नाव तेने जे पामे ते धर्मि कदेवाय. एटले धर्म जे तत्व रमणता पोताना स्वरूपमां लीनता नयमार्गे जे जेटली वखत जेमां अन्नदोपयोगी होय तेने तेटली वखत तमयीज क हिए, जेम पुरुषने स्त्रीनी आशक्ते करी लीनता उपयोग स्त्रीनोज थाय, तेने शुझनय स्त्रीज कहे माटे स्वधर्मे अन्नेदोपयोगी आ त्माज धर्मरूप कहिए. अने वस्तुगते शुद्ध स्वरूप रमणता ते स्व गुणवे अने स्वगुण तेधर्म तेमाटे धर्मपण आत्माज . एटले शुरू सम्यक्त्व श्रघागुण ते निश्चयथी देवदर्शन एटले निश्चय देवने, तथा सम्यक् शुद्धात्म विज्ञान ते निश्चय गुरुबे, तथा तत्व रमणता, आत्मस्वरूपे मग्नता, ते निश्चय धर्मवे.
जे कारण माटे जेम देवदर्शन थकी अशुन मटे, मंगलीक थायवे, ग्रह पीडा मटेठे, मनकामना सिकि थायठे तेम अंही सम्यक्त्व पामवाथकी मिथ्यात्व अने अनंतानुवंधिरूप परम अशुज मटे अने अपुनर्वधकरूप श्रझान प्राप्तिरूप मंगलीक थायरो तथा कुमति कदाग्रहरूप ग्रह पीडा टलेले अने सकाम निर्जरारूपमन कामना सिद्धि थायठे माटे शुङसम्यक्त्वदर्शन प्राप्ति ते देवळे.
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(9)
तथा जेम गुरु मलवा थकी मूल मटेबे, हितबतावे, रहस्या पामे. तेम हीं श्रात्मविज्ञाने करी पण विविध परजाव मण "रूप मूल मटी जायबे, तथा तत्वरमण रूप परम हितने पामेबे, निश्चय समता सहेज उदाशीनतानो जे रहस्य तेने जाणवा ने तो ज्ञान तेज गुरुबे.
तथा जेम धर्मनी संगत थकी दुर्गतिमां पडे नहीं, दिवसेंदिव सें अधिक सौनाग्यनी वृद्धि थाय, तेम तत्वरमणरूप धर्म थकी पण परजाव धसंणरूप कुगतिमां पडेनही, दिवसें दिवसें असंख्य 'गुण निर्जरा थाय तेथी अनेक गुण प्रगटरूप सौभाग्य पामे, माटे जे स्वरूपोपयोग तेज धर्म जाणवो इति निश्चयसम्यक्त्व संपूर्णम्.:
'हवे ए सम्यक्त्वनी जे करणी बे ते लिखेबे नित्यप्रत्ये बी जोगवायें ने बती शक्ते वाट घाटविना श्री जिनप्रतिमां जुहारुं, परंतु जो प्रतिमांनुं योग नमले तो पूर्व दशा सन्मुख श्री वहेर मान प्रजुने सन्मुख उपयोग राखीने चैत्यवंदन करूं, रोगादिक कारणे नयाय तेनो आगारबे.
श्रीदेराशरनी दश सातना मोहोटी ते नकरुं ते दश आ सातना नाम कहे. देरासरमां तंबोल पान फल प्रमुख नखावा, पाणी नपीवुं, जोजन न करयुं, पगरखा प्रमुख चैत्यनी अंदर न लइ जवा, मैथुन सेवयुं नही, चैत्यमां शयन नकर, थुकवुं न ही, लघुनीत नकरवी, वडीनीत नकरवी, जुगटु रमवुं नही ए दश सातना श्री जिन मंदिरमां नकरुं. ने बीजीपण चोरासी यासातना जे वे तेने टालवानी मनमां चाहना राखुं के जे थकी मोहोटी चैत्यनी सातना मने नलागे.
मासप्रत्यें अमुक सेर प्रमुख फूल चडावुं, मासप्रत्यें अमुक प्र मा पूर्वक फलादिक चडावुं, मासप्रत्यें घृतादिक अमुक सेर प्रमुख चडावुं वर्ष प्रत्यें अंगणा पांच अथवा दश चडावु,
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(१७)
वर्षमध्ये केसर, चंदन, बरास जीमसेनी प्रमुख प्रनु पूजानिमित्ते जाइए तेमा माहारी शक्ति प्रमाणे अव्य खरचुं, देरासर निमित्ते वर्षप्रत्ये धूप अगरबती कर्पूर प्रमुख अमुक रकमनुं चडावं, वर्ष प्रत्ये अमुक अष्टप्रकारी पूजा तथा सत्तर प्रकारी पूजा करूं करावं. __वर्पप्रत्ये साधारण अव्य अमुक रकम सुधी खरचं, वर्षप्रत्ये झा न हेतुए ज्ञान सामग्रीमां अमुकाव्य खरचं, दिनप्रत्ये नवकरवाली दश अथवा पंदर आत्महिते गुणु, नगुणाएतो पागल पागल गुणीने पूरण करूं, परंतु रोगादिक कारणे नगुणाए तो तेनी जयणाले.
दिनप्रत्यें बती समर्थाश्ए प्रनाते नवकारसी अने संध्याका ले पुविहार पञ्चखाण करूं, परंतु वाटघाटमांअथवा रोगादिक का रणे नथाय तो तेनो आगार. वर्षप्रत्ये सामीवत्सल एटले अ मुक संख्या साधर्मिकोनी जमाईं. एवीरीते समकेतपालुं.
ए समतना पांच अतीचार जे ते टाटुं ते लिखेले.
१ पहेलु संकायतिचार तें श्रीजिनवचनना गंजीर गहननाव सांजलीने पोताना मनमां संका संदेह धारण करे जे श्रा केमह शे मने वरावर बेसतो नथी एवो मनमा मगमगाट रहे.
२ वीजो आकांदातिचार ते जे को अन्यमती पाखंमीनी क टक्रिया देखीने कांश्चमत्कार जुए तथा आलोकमां पण पूर्वज न्मना अज्ञान कष्ट क्रियाना फल थकी अन्य मतिने घणोज सुखी दोलतवान देखीने मनमां विचार करे के अन्यमतिउँनो धर्म पण सारुंडे एमनु ज्ञान धर्म सहु सारुले एपण धर्म करेठे एवी चाह ना धरे ते श्राकांदा नामे वीजो अतिचार जाणवो.
३ त्रीजो वितिगिठानामे अतिचार कहे जेको पोताना पूर्व कृत पापोदय ने लीधे दुःख पामे तेवारे एवं विचार करे के जे धर्म करिए बेए तेनुं फल शुं जाणीए क्यारे पामीशुं एटलुं फल थशे के न याय तेकरतां तो जे धर्म नथी करता ते घणाज सुखी देखा
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( १७ )
श्रमे तो जेम जेम धर्म करणी करिए बैए तेम तेम दुःखी vaar धर्म तो शुंजाणी ये क्यारे फलशे किंवा नहीज फलशे एवी विचारणा करे तथा साधुना मलमलीन शरीर छाने वस्त्र देखीने डु गठा करे जे शुं या कांश्ज नही श्रवा गंदा दालमां रहेतुं सारूं नए बापडा शुं तरशे एजो फाशु पाणी थकी स्नान करे तो तेथी कयोव्रत जंग थायबे ? एवी डुगछा करे ते त्री जो अतिचार जाणवो.
४ चोथो मिथ्याविनी प्रशंसानुं श्रतिचार कहे . एटले मिथ्या त्विर्जना गुरु जे ब्राह्मण तापसा दिकबे तेनी प्रशंसा करे ते श्रावीरीते केए-मोहोटा तपस्वी बे, महापुरुषबे, मोहोटा पंमितबे, एना ब रोब कोई नथी एमनी शुं वात करिए एवी एवी तेमनी प्रभु ता वखाणे ने कहे जे एतो पोतानुं अवतार सफल करेबे, तथा कोक मिथ्यात्वी व्रत याग यज्ञ करे त्यारे तेनी घणीज खुसाम तीने खातर अत्यंत तारीफ करीने कढेके माहाराज तमे रुडुं कार्य किधुं तमे तो तमारो जन्म कृतार्थ करोबो इत्यादिक क हे पण समकेतनो चोथो श्रतिचार जाणवो.
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५ हवे पांचमो प्रतिपरिचयनामा अतिचार कहेबे जे मिथ्या त्विसाथे घणोज परिचय राखवो एकत्र जोजन संवास करवो, अत्यंत प्रीति वधारवी ते पांचमो अतिचारले. केमके एवं अत्यंत परिचय करया थकी पण कोइ दिवसे मन बिगडे, चित्त चलित थाय, पाप लागे तेमाटे परिचय न करवो ए पांचे अतिचार जा एवा पण यादवा नही. एरीते व हिंदी तथा चार आगार सहित सम्यक्त्व पालुं तेमां प्रथम व छिंदीना नाम कहे.
१ प्रथम (राया जियोगेणं) एटले कोइ राजा नगरादिकनो मा लक होय ते बलात्कारे कांइ विरुद्ध कार्य करावे ते कर पडे तो तेथकी माहारो सम्यक्त्व जांगे नही.
2 बीजी ( गया जियोगेणं) एटले जाति ज्ञाति अथवा पंच
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( २० )
एटले लोकनो समुदाय तेमना हठने लीधे कांइ विरुद्धाचरण करवुं पडे तेथी माहारूं सम्यक्त्व जांगे नही.
३ त्रीजी ( वला जियोगेणं) एटले बलवंत चोर म्लेच्छादिक ने वश पथके ते लोको बलात्कारे कांइ विरुद्ध कार्य करावे ते करवुं पडे तेथी माहारूं सम्यक्त्व जांगे नही.
४ चोथी ( देवा नियोगेणं) एटले क्षेत्रपाल माता व्यंतर विं कासी ने पितरादिक प्रमुख तेमना श्रवेश थकी जीव परव शथ जाय तेवारे कां विरुद्ध कार्य थ जाय तेथी माहारूं स म्यक्त्व जांगे नही अथवा देवता मरणांत कष्टमां पाडे अत्यंत कृष्ट आपे तेथी चेतना सिथिल पणे कायर थाय तेवारे दंग जरण न्याये कां विरुद्ध करवुं पडे तेथी माहारुं सम्यक्त्व जांगे नही.
५ पांचमी ( गुरुनिग्गदेणं ) गुरु एटले माता पिता उस्ताद प्रमुख तथा पूज्य इत्यादिक महोटाना केवा थकी कांइ विरुद्धवात कुचाल कार्य करवो पडे तो तेथी महारो सम्यक्त्व नांगे नहीं.
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६ बही (वित्तिकंता रेणं) वृत्ति एटले पुर्निमां श्राजीविका निमित्ते कोइरीते पेट जराइनो धंधो उद्यम नमले घणीज आपदा पडे तेवारे कां विरुद्धाचरण करवो पडे तेथी सम्यक्त्वने दूषण लागे परंतु माँ जीविका चलाववा निमित्ते पुर्जिमां कां श्र नाचार करूं तो तेथी माहारुं सम्यक्त्व नजांगे ए व त्रिंमी कही. हवे चार श्रागार लिखेटे.
१ प्रथम (अन्नाजोगेणं) एटले कोइ कार्य अजाण पणे उपयोग दीधाविना कांइ एकनो वीजो थ जाय परंतु जेवारे यादगरीमां उपयोग यावी जाय तेवारे तेज वखत श्रागारने पाले परंतु दूषण नलगाडे ते प्रथम आगार जाणवो.
२ बीजो ( सहस्सागारेणं) एटले सहसात्प्रकारे एका एकी जापेठे परंतु उपयोगनी चपलता थकी अथवा नित्य बहुल
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(१) ज्यास थकी जाणते जाणते पण कांश विरुक थ जाय तो तेथी माहारी प्रतिज्ञा जंग नथाय. ए बीजो आगार जाणवो.
३ त्रीजो ( महत्तरागारेणं) एटले कोश् कार्य विशेष थकी लाजालाननी शैली थकी ( महत्तर के) महोटा गुणवंतनी था। झा थकी कांश कमवेश करवो पडे ते त्रीजो आगार जाणवो. __४ चोथो (सवसमाहिवत्तियागारेणं ) एटले सर्व समाधि व्य त्यय अंही को महोटा सन्निपातादिक रोगनी विक्रिया थकी ज त्पन्न थयुं जे ग्रथिल पणु तेने लीधे बेशुद्ध थर जाय एवी श्र वस्था प्राप्त थयेथी कांश विरुग्छता करवी पडे तेथी पण माहारी सम्यक्त्वनी प्रतिज्ञा जंग नयाय ए चोथो आगार जाणवो.
एब हिंमी अने चार श्रागार सहित समकित पावू अंहीं दिवसनो नियम दिवसमां नकरी शकुं तो बीजे दिवसे करी पो होचाटुं अने महीनानु नियम बीजा महीनामां करी पोहोचाईं तथा वर्षतुं नियम बीजा वर्षमा करी पोहोचाडं एरीते जेवीरीते पोतामां पालवानी शक्ति होय तेवीरीते बूट राखवी. ___ ए हिंमीने चार आगार जेम अहीं समकेत व्रतमां लख्याने तेज नियमनी रीतें यथायोग्य शैली प्रमाणे अंहीं लखवा थकीश्रा गल पण बीजा सर्व बारे व्रतोमां समजी लेवां फरी एकेका व्रतमां नहीं लखीशु बधामां अंहीथीज धारणा करवी अंही सर्व प्रति झार्नु रहस्य लिख्युंजे अंहीं सम्यक्त्व मार्गना कथननी गाथा नी चे लखियेंए गाथा ॥ अरिहंतो महदेवो, जावजीवंसु साहुणो गुरुणो ॥ जिणपन्नत्तत्तं, श्य सम्मत्तं मए गहियं ॥१॥ - इतिश्री स्याहाद शैली पूर्वक सम्यक्त्व अंगीकार
करवानो विधि तेनी पीविकासमाप्त थर.
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___ २५ प्रथम स्थूल प्राणातिपात विरमणबत. ___ हवे आग्रंथमा केहेवाना बार ब्रतोना नाम कहे.
प्रथम प्राणातिपातविरमणव्रत, बीजो मृषावाद विरमणव्रत, त्रीजो श्रदत्तादान विरमणव्रत, चोथो ब्रह्मचर्यव्रत, पांचमो स्थूल परिग्रह परिमाणव्रत, बो दिग् परिमाणव्रत, सातमो जोगोपनो ग परिमाणव्रत, आठमो अनर्थदंग विरमणव्रत, नवमो सामा यकवत, दशमो देशावगासिकवत, अगीश्ररमो पौषधोपवाशरूप व्रत अने बारमो अतिविसं विजागवत ए बार व्रतना नाम जाणवा. ॥अथ प्रथम स्थूलप्राणातिपात विरमणव्रत प्रारंनः॥
ए प्रथम शूलप्राणातिपात विरमण व्रत तेना बेनेदजे, तेमां एक अव्य प्राणातिपात वीजो नाव प्राणातिपात त्यां अव्यप्राणा तिपात विरमण व्रत ते एके परजीवने पोता सरखो जाणीने ज यणा पाले. एना दश अव्य प्राणोनी रक्षा करे, उगारे. ए अव्य प्राणातिपात विरमण व्रत कहीए, एमां व्यवहार दयाबे, श्रने नावप्राणातिपात विरमण व्रतते आपणो जीव कर्मने वश पड्यो थको मुख पामेठे. श्रापणा नाव प्राण जे ज्ञान दर्शनादिक तेनुं मिथ्यात्व कषायादिक अशुभ प्रवर्तनरूप शस्त्रथीप्रतिक्षणे घात थायवे, प्रतिक्षणे हणायचे. ते आपणा जीवने कर्म रूप शत्रुथी बोडाववानी फिकर करीने तेनो उपाय जे श्रात्मगुण रमणता तेने धारण करे, परनाव रमणता वारे, शुद्धोपयोगे वर्ते, उदये श्रव्यापक रहे. एक स्वनाथ मगनता तेज समस्त कर्म रिपुने उछेद वा अमोघ शस्त्र. एटले सर्व परजाव श्टता निवारीने. स्वरूप सन्मुख उपयोगते नाव प्राणातिपात्त विरमण व्रत कही ए. अने निश्चय दयापण एज. __ अंहींयां थूल प्राणातिपात विरमणव्रत ते थूल एटले जे मो टा नजरमां थावे, फरे, पडे, एटले त्रसजीव एमने संकल्प करी
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प्रथम स्थूल प्राणातिपात विरमणबत. ने नहणुं. ए हनन क्रियापण चार प्रकारनी. एक श्राकुट्टी करी ने हणवु बीजुं दप्पे करीने हणवू ५ त्रीजुं प्रमादे करीने हण, अने. चोथो कल्पे करीने हण, ए चारेना अर्थ लखेडे. .
१. प्रथम अकुट्टी एटले जे निषेधिवस्तु तेनुंज फरी उत्साह थकी सेवन करे जेम आखो सराई वस्तुनो फल तेनो जडथो न करवो जे निलोत्री मोकली राखी होय तोपण तेनुं नडयो करीने खा वूनही बतां तेनी चाहना धरीने जडथो करे ते आकुहि दोष,
२ दर्पाकुहि एटले उबक पणाथी उन्मत्तपणे मान अने गर्व धरीने दोड करे ने तेथी हिंसा थाय तेने दर्पयाहि हिंसा कहीए, जेम गाडी, वहेल घोडा प्रमुखने परस्पर एकेकथी श्र निमान धरीने दोडावे ए आकुट्टी दर्प हननक्रिया जाणवी.
३ त्रीजी श्राकुहि प्रमाद एटले काम जोगने विषे तीव्र अनि लाषथी जे हिंसा करे, तेम कामो द्दीपन करवा माटे त्रसादिजी वनी हिंसा करीने पट्टी, गोली, माजम प्रमुख बनावे ते आकुहि प्रमाद हनन क्रिया जाणवी.
४ चोथी कल्प हिंसा एटले पोताना घरकामने सारं रंधनादि क करे तेने जाणवी. अहींयां श्रावकने प्रथम हिंसा तो बीलकु ले नज करवी जोइए. जोरती करे तो पण जयणाथी करे ते . माटे अंहींयां संकल्प करीश्राकुट्टी तथा दर्प करी त्रसजीवने न हणुं. ए चीटी जाती एने मारूं एवो संकटप करीने जीवने हणे हणावे एने श्राकुट्टी संकल्प कहीए: ___ एवो संकल्प करीने निरापराधी जीवने कारण विना न हएं,नह णावू कारणे, आरंने, रंधनादि गृहस्थ करणी करतां तथा पुत्रादि कना शरीरे जीवोत्पत्ति थर होय तेना औषधादि कारणे करवू पडे तेनी जयणाले. घोडा, बलद प्रमुखने चाबकादिक मारवापडे तेनो आगार, तथा पेटमा करमीया,गंमोल पगमांनारु अथवा हरस,श
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प्रथम स्थूल प्राणातिपात विरमणव्रत.
रीरमां चम्म श्रने जुं प्रमुख उपजे, तथा मित्रादिक अथवा बीजाख जनादिकना शरीरने विषे उपजे तेनो उपचार करवानी जयणा. जे कारणे साधुने तो सूक्ष्म ने बादर ए बने जातीना जीवनी, त्र स ने थावर बने नेदना जीवनी नवकोटि विशुद्ध पञ्चखाणथी हिंसानो त्याग. एकारणे साधुने वीश विश्वानी दयाबे, अने गृ हस्थने सवा व श्वानी दयावे. ते केवीरीते तेनो विवरो लखीए बैए.
॥ गाहा ॥ जीवा सुदुमाथूला । संकप्पारंभानवेडु विहा । सा are reaराहा । साविरकाचैव निरविरका ॥ १ ॥ अर्थ - जग तमां जीवना वे नेद कह्यावे. एक थावर, बीजा त्रस, तेमां थावरना वली सूक्ष्म, वादर ए वे जेदबे, तेमां पण सूक्ष्मनी हिंसा नथी कार ए अति सूक्ष्म जीवना शरीरने बाह्य शस्त्रनो घाव लागतो नथी, तेमने स्वकाय एटले पोतानी जातीना जीवोथी घात पातळे. पण वा दर नथी एमाटे श्रींयां सूक्ष्म शब्दथी पण जाणवुंके यावर जीव, पृ थ्वी, पाणी, अग्नि, वायु, वनस्पतिरूप बादर ए पांचे यावर तेमने सूक्ष्म कहीए. ने थूल एटले वेंडि, डि, चौरेंद्रि, पंचेंद्रिरूप जा एवा ए जीवना मूल नेद वे बे तेमां सर्व जीव श्राव्या. ते सर्वनी .त्रिकरण शुद्ध साधु रक्षा करे बे. तेमाटे वीशविश्वानी दया, सुनिनेठे.
पण श्रावकथी तो पांच थावरनी दया पली शकाय नही. सचि त श्राहारादि कारणथी अवश्य हिंसा थायडे. माटे दश विश्वागया दश रह्या. एटले एक त्रस जीवनी दया राखवाना दश विश्वा रह्या तेना पण वली वे नेदवे. एक संकल्प. वीजो आरंज तेमां श्रारंने करीने जे त्रस जीवनी हिंसा थ जाय ते ठोडी न जा य तेमाटे वे हिंसामां एक संकल्प हिंसानो त्याग ने आरंज हिं सानी तो जाणावे, एम गणतां फरी दशमांथी श्रधा गया एटले पांच विश्वा रह्या, एटले संकल्प करी त्रस जीव नहएं. एमां पण जीवना वे भेदवे. एक सापराधी जीव ने वीजा निरपराधी जीव
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प्रथम स्थूल प्राणातिपात विरमणव्रत. २५ जे. तेमां जे निरपराधी जीवने तेमने न हणुं, अने सापराध जी वने हणवानी तो जयणा बे. जेथी करी सापराधीनी दया, श्राव कथी सदा सर्वरीतेंथी पले नहीं.
जेम के घरमां चोर पेग बे. ते आपणी चीज ल जाते मास्या कूट्या विना बोडे नहीं. वली बीजुं दृष्टांत एके आपणी स्त्री साथै कोश्अन्य पुरुषनेअनाचार सेवतांदेखियें तो तेने तस्दी दीधा विना ते बूटे नहीं. ए प्रमाणे सापराधी कहीएं. बीजुंपण क्यारेक रा जानी आज्ञाथी युबमांगया थका संग्राम करवोपडे, त्यारे त्यांा गलथी शस्त्रादिक चलावियें नहीं.सामो शत्रु प्रथम शस्त्रनो मारो करे,त्यार पठी आपणे करीएं. ए माटे सापराधीनो संकल्प पण न बूटे. त्यारें बाकी रहेला पांच वशामांधी पण अडधा गया, बाकी अढी वशा रह्या. एटले संकल्पीने"निरपराधी जीवने न मारु” एट बुंज फकत रह्यु. एमा पण वली बेन्नेद बे.एक सापेक्ष अने बीजो निरपेद, तेमां सापेक्ष निरपराधी जीवनी दया,श्रावकथी पले नहीं तेनुं कारण शुं? ते कहे. श्रावक पोतें घोडा, घोडी, वेल, बलद, रथमां, गाडीमां, के इत्यादि बीजा वाहनोपर बेसे बे. त्यारे घोडा प्रमुख बलद विगेरेने चाबका के बारलगावे , पण विचारतो नयी के, घोडाएं के वलदें शो अपराध कस्यो ? एमनी पीठ उपर तोचढी बेगे.एजीवनाशरीरसामर्थ्यनी तोकांश्खबर नहीं.जे आजीव, बलवान् बेके पुर्बल . पोते उपर चढी बेगे थे, ने वली तेने गा ल प्रमुख दश्ने मारे ! पण एतो निरपराधीज बे. वली थापणा . अंगमां तथा आपणां पुत्र, पुत्री, नाती, गोत्री, आदिकना मस्तक मां अथवा कानमां कीडा पड्या बे, अथवा आपणाज मोढामां के, दाढमां के दांतमां, के जडबामां कीडा पड्या , तेवारें ते मनेमारवानाजपायें करीने कीडानी जग्याएं ओषध लगाडवू पडे,प ण एजीवोएं शो अपराध कस्यो बे ? एतो पोतानी योनि उत्पत्ति
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प्रथम स्थूल प्राणातिपात विरमणव्रत.
स्थान पामीने कर्मने अधीन श्रावीने हीयां उपजे बे, पण क्यारें कशी दुष्टताथी उपजता नथी, तो ए अपराधी नथी. ते कारण माटे निरपराधी जीवनी पण हिंसा, कारणे करीने श्रावक थी तजी जाय नहीं. वली बाग बगीचामां गया थका फूल, फ ल, पांडा, गुठा प्रमुखने तोडवा सारु चोट देवी, अथवा फल, फू ल, तोडी लेवां; ते माटे अढी वशामांची अधो गयो त्यारें सवा वशानी दया रही. एटली सवा वशानी दया शुद्ध श्रावक ने बे. ए टले सजीव संकल्पी ने निरपराधी ने कारण विना हणुं नहीं. एवी प्रतिज्ञा य. ए प्रतिज्ञा ज्यारें शुद्ध रहे. त्यारें ते श्रावक व्रती कहेवाय. ज्यां लगी पोतानी शक्ती पहोचे त्यां लगी ठगाइ न करे, छाने निर्ध्वसपणे न रहे. रखेने कोइ जीवनी विराधना थाय ! एवो उपयोग न बांके, तथा घरमा आरंज कारणे ला कडाना गाडी प्रमुख लावे, ते सारां लाकडां होय, सडेलां होय नहीं, ते लाकडां घणा दिवस रहे तो पण तेमां जीव न पडे एवां पाकां, अनेकां होय तेवां लावे. तेपण ज्यारें रसोइनुं काम पडे त्या पूंजी करी, अने फाटक जूटक करीने वाले तथा घी, तेल, मीतुं, तथा श्रथाणा प्रमुख रसजरी चीजनां वाशण, ज तनथी राखे, मोढुं वांधी करीने राखे, उघाडुं राखे नहीं. वली चुला उपर ने पाणी राखवाना ठेकाणा उपर चंदरवा वांधे, तथा अनाज खावाने लावे ते पण शुद्ध, अने नवुं लावे. अथवा वर्पनी उपरनुं अनाज लावे, पण ते सडेलुं होय नहीं. कोइ सजीव नजरमां न श्रावतो होय तेवुं लावे. पाणी गालवानुं ग रणुं पण जाडुं मजबूत जोड़ने राखे. एक प्रहर वीत्यो के पा णी गाती नाखे. वली वर्षातुमां बहुजीवनी उत्पत्ति थाय, तेथी ते तुम गाडी, रथ, घोडानी खारी न करे. कारणके, ज्यां रथनुं के गाडीनुं चक्र फरे, त्यां असंख्य जीवनी घात थाय. वली
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प्रथम स्थूल प्राणातिपात विरमणव्रत. हरिकाय बढुबीज त्रसकाययुक्त पूर्वक जेमां अति आरंज हो य, एवी हरिकाय प्रमुख लावे नहीं. खाटला प्रमुखमां जीव होय, ते माटे खाटला प्रमुखने तडकामां नाखे नहीं. सडेलो दा णो तडकामां नाखे नहीं. एवं पाणी अनाजना संसर्गवायूँ मोरी मां नाखे नहीं. काचुं दूध, मग तथा मरथी विदल खाय नहीं, फागण वदिथी आरंजिने आठ महिना पर्यंत शाक, पत्र, नाजी, प्रमुख खाय नहीं. मीठगश्नो काल पूर्ण थया पबी मीगश्पण खाय नहीं. मणशील चवितरस, तथा वाशी अन्न अनदय मधु प्रमुख, विषप्रमुख आदर करी खाय नहीं, घरमा बुहारणी पण शण प्रमु ख घांसनी अने ते पण कोमल राखे, कारण के कठोर राखवाथी जीवनी हाणी थायजे. माटे कोमल राखे. बे चार जण मली, एक थालमां नेलां नोजन करे, स्नानादिक बहु पाणीथी न करे, जे
ढुं प्रयोजन होय तेटर्बुज पाणी वापरे. तडकामां, मेदानमां, अथवा मोरीनी जगायें चोकी उपर बेसिने नहाय. न्हावा, पा णी वासणमां लश्ने बुटुं बुटुं ढोले. ज्यां सुधी निरारंजी व्या पार मले, त्यां सुधी खर कठोर कर्मादिक बहु आरंजी व्यापार न करे. कोश्नो हक मांगे नहीं. घरमां एग, अन्ननुं धोवण बे घडी उपरांत राखे नहीं. पूजन प्रमार्जन करत्या विना कशी पण क्रिया करे नहीं. मोठी मोरीमा पाणी चलावे नहीं. दीवाबत्ती प्रसुख लगाडे,ते पण यत्नवडे करी जीवरदा थाय तेवीरीतें करे. जे आ बखोरा प्रमुख वासणथी पाणी पीधुं होय, तेमां मोढानी लाल पड़ी होय, अथवा वलगी होय, ते कारणे ते पात्र पाणीमां बोलीने फरीजरे नहीं. पाणी नरवानुं पात्र दांगीवायूँ होय, तेना वडे आबखोरो के लोटो नरे. इत्यादि व्यवहार शुद्ध उपयोगें प्रवर्ते. एवा श्रावकोने सवा वशानी दया पूरी कहीजे. ए प्रमाणे . प्रथम व्रत शुकडे, तेना पांच अतिचार. ते हवे लखीयें बैयें.
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२७ प्रथम स्थूल प्राणातिपात विरमणबत. १प्रथम वधनामा अतिचार. ते एके,क्रोध करीने पोताना बल वड़े निर्दयपणे गाय,घोडा,प्रमुखने मारे,चलावे,ते पहेलो अतिचार.
२ वीजो बंध अतिचार.ते ए के, गाय बलद, वाबरडांप्रमुख जी वोने गाढ बंधनश्री बांधे,ते आकरा बंधनथी जीव अतिपुःख पामे, नीचं माथु राखे. विचारां, अवोलानी जेम मनमां कल्पे. कदापि ए जानवरोने गाढवंधने करी बांध्यां बे; एटलामां अग्निजय थयो, त्यारे ते उतावले बूटी शके नहीं. तेथी ए जीवनी विराधना यश जाय. ते वास्ते गाढवंधन पण अतिचार. वास्ते जानवरने ढीला बंधनथी वांधे. अने कोश् गुन्हेगार मनुष्यने पण निर्दय तथा नि पट गाढ वंधथी बांधे तो त्यांपण वीजा बंधअतिचारनुं दूषण लागे.
३ त्रीजो बविजेद अतिचार, ते ए के, बलद प्रमुखना कान ने दावे नाथ घाले, खासी करे, पुरुषत्वप'मटाडे. वीजुं पण वेदन नेदन करे, करावे. ते त्रीजो बविद अतिचार जाणवो. ४ चोथो अतिजारारोपण अतिचारले. ते ए के, जे बलद प्रमुख उपर जेटलो वोजो अनुमान प्रमाणे नरवानी रीती होय, तेना करतां वधारे नरे तो, अतिनारारोपण अतिचारनो दोष लागे. श्रावकने तो बकडा वलद प्रमुख जे नारथी नरे,ते हमेशां नरवानी जेटली चाल होय, तेना करतां पण पांच शेर दश शेर उडोनार नर वो, तो व्रत शुद्ध रहे. एमां पण जानवरनी चालवानी शक्ति एटली नथी तो विवेकथी चलावे. नार उगे करे, जानवर निर्वल होय तो तेना खावा पीवानी तथा घांस, दाणा, पाणीनी खवरले, तथा लेव रावे,परंतु एवून विचारे के,लोक सर्व जेप्रमाणे नार नाखे तोश्रा पणे पण तेटलो नार एना पर नाखीये. ते व्यवहार शुद्धबे, एमां का इहरकत नश्री. एवून विचारे, व्रती होय तो ते वीजो वलद करे ए व्यवहार,ए प्रमाणे चोथो अतिनारारोपण अतिचार जाणवो.
५ पांचमो अतिचार जात पाणीनो विवेद करे. ते ए केवल
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द्वितीय स्थूल मृषावाद विरमणबत. ए द, घोडानी मरजी माफक खाएं बंध करे, हमेशना खाणामांथी कांडं, करे,अथवा असुर करीने आपे, वखत वटावीने आपे. त्यारे ते अतिचार लागे.वली कोश्मनुष्यनी वृत्ति तथा आजीविका बंध करवी, ते पण एमां श्रावी गयु. अने श्रावक तो दास, दासी, चाकर, ढोर प्रमुख पोतानी पाबल जेमनी आजीविका बांधी हो य, तेमनी खबर लश्ने पनी पोतें नोजनादिक करे. तो व्रत शुकर हे. ए पांचमो नातपाणी विछेदनो अतिचार जाणवो. ए पांचे थ तिचार श्रावकने जाणवा, पण आदरवा नहीं॥
शत छादशव्रतविवरणे प्रथमस्थूलप्राणातिपातविरमणव्रते पं मित श्री उद्योतसागरगणिनाकृतजाषा संपूर्णा ॥१॥
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॥ अथ ॥ ॥क्तिीयस्थूलमृषावादविरमणव्रत प्रारंनः॥
॥ दोहा॥ अरिहंतादिक समरिके, त्रिकरण शुध चित्त लाय;
पुतिय व्रत विवरण लिखू, मृषावाद जिम जाय ॥१॥ हवे स्थूल मृषावाद व्रत एटले, स्थूल कहीयें मोटुं, अने मृषा वाद एटले जुलु बोलवू, तेनुं विरमण कहेतां त्याग करवू, तेने स्थू लमृषावाद विरमण व्रत कहियें. एटले घणुं जुवं बोलवाथी जगत् मां अप्रीति वधे,अपयश थाय,धर्मनी निंदा थाय.माटे कोश्जीवने कुःख थाय,हानी पहोचे,एवं जुतुं न बोले. पोताना मतलबनी वात अनेक तरेहथी बनावी बनावीने अनेक गुणी वधती कहे,अने गेर मतलवनी वात होय ते अनेक गुणी उंबी करीने कहे; पण जेवं होय तेवुज न कहे. एवा पुर्गुणनो जे त्याग करवो,तेने स्थूल मृषा वाद विरमणव्रत कहियें.एनाबेनेदले.एकलव्य मृषावाद,अने बी.
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३० द्वितीय स्थूल मृषावाद विरमणव्रत. . जो जाव मृषावाद. तेमां अव्यमृषावाद एटले जाणतां अजाणतां विपरीत कहे, जुवं कहेते अव्य मृषावाद, वीजो नावमृषावाद ए टले सर्व परजाव पुजलादिकने आत्मत्वबुछियें करीने पोतानां जा णे, पोतानां कहे, रागद्वेषयुक्त कृष्णादिक अशुद्धलेश्याथी आगम विरुक वोले,आगमार्थ बुपावे.उत्सूत्र प्ररुपे,कुयुक्ति लगाडे, ते नाव मृषावाद कहिये.ए वृषावाद जाणतां बतांज थाय. आ व्रत सर्वत्र तमां मोटुं. जो पालवामां अतिशुक उपयोगी थाय, त्यारे ज शुभ रहे, अने व्रत पले. जे कारणे बीजांव्रत अव्यलेश विषयी ते देखाडे.एकमात्र जीवनीज शुद्ध जेलखाणथी जीवदयापले.त था परनिष्ठागत पुजल पर्याय, एटले पोतानी निष्ठानी वस्तुथी बीजी कोजे त्रणमात्र प्रमुख चीज ते परनिष्ठा कहेवाय . ते तेना मालेकनादीधा विनान लहे,एटले अदत्तव्रतपले.तथा मात्र स्त्रीना संयोगनो त्याग, मन वचन कायाथी करे, एटले ब्रह्मचर्य व्रत पले. त था धन धान्यादिक नवविध परिग्रह त्याग करे,मूळ न धरे,एटले परिग्रह विरमण व्रत पले. एम एक एक अव्य देशथकी जेलखाण थ वाथी चारें व्रत पले. अने जे मृषावाद विरमण व्रततेतो ज्यारें पटव्यनी अव्यगुण पर्यायथी, जव्य क्षेत्र काल जावथी,अोलखा ण थाय. एवो तीव्र केहतां जोरावर उपयोगी थाय. त्यारे शुद्ध पाले, तो तो ठीक, नहीं तो एकपर्याय मात्र विरुक वोलवायीव्रत नंग थाय. ए माटे साधु पण प्रायें वह नापा वोले नहीं. तथा साधु पण प्राणातिपातत्रतादिक चार महानतमा अन्यतर नांगे, त्यारें एक चारित्र गुणनो नंग थाय, पण ज्ञानदर्शननी नजना, अने तेथी आगली गति वगडे, अने ज्यारें मृपावाद बत नांगे त्यारे रत्नत्रयी समूलीज जाय, दुर्गतिमां रोले अने अनंत संसारी थाय सुर्खनवोधी थाय. ए माटे ए व्रतने शुद्धरीतें पालवाने अर्थ ठए व्यनी समज वरावर जोश्य, सावधानपणुं राखq जोश्ये.
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द्वितीय स्थूल मृषावाद विरमणव्रत. ३१ तथा आ जगत्मां अव्य असत्यना त्यागी तो बए दर्शनमा जोएं बैयें. पण नाव असत्यनो त्याग तो एक श्रीजिनागमरुचि शुरू झावंत पुरुषनेज थाय. बीजाने नहीं थाय. त्यां स्थूलमृ षावाद त्याग व्रतनां पांच मोटां जुट जे. ते व्रती श्रावकें अवश्य बांगवां जोएं. ते पांच जुट हवे लखियें बैयें.
१ प्रथम कन्यालीक एटले आपणा मेलापीनी कन्या बे. तेनी सगाश्थती होय, त्यारें कन्याना ग्राहक पूजे के कन्या केवी? तो पोताना मेलापीनी प्रीतिएं करीने ते कन्यामां जे दोष होय, ते दु. पावे.गुण होय, न होय,तोपण जुतुं वधारीने कहे के, ए कन्या निर्दो ष जे.एवी सारा कुलनी अने सारां लक्षणनी मलवी मुश्केल .आ तो सादात् पार्वती ने. एवं रागथी कहे. अने जो कांश परस्पर देषनाव होय तो, जोके ते कन्या निर्दोष अने सुलक्षणवंती हो य तोपण कहे के, ए कन्या कुलक्षणी . नगरां पगलांनी जे. ब हु बोलकणी ने वढकणी . एवा एना पुर्गुण, ए बोडीना पाडोशी लोक कहे ते अमे सांजव्या . एनाथी जे संबंध करशे, ते पस्ता शे. एवी रीतें अबता दोष कहे, पण श्रावक जेव्रतधारी बेतेने तो कोश्नी सगा सादी आरंजना जुठ कामने माटे जुएं बोलकुंपण यु क्त नथी. जे कारण माटे स्त्री जरतारनो संबंध कराववो ते संसा रभ्रमण बीज, वाववानुं जे. एम करतांय आपणो संबंधी बे, घरनी वात बे, दाक्षिण्यताश्री पण बुटाइशकाय नहीं, एवं होय तो पण श्र ति जुतुं अशुछ न बोले.अने गुण होय ते कहे. वली कहे के, ना! तमे तमारी मेलें पोतानी खातरजमाकरीयो.कारणके जन्मसुधी नो संबंध मे. एम केहेबुं, ए व्यवहारले. वली को चाकर राखतो होय, तथा जे कोश्नाग, पांती के, व्यापारनुं खातुंनासु कोश्नीसा थे जोडाववा मेलववानुंचाह्य,त्यारेंते पण को एक आवीने पुढे के, ए केवो ? सारो के नगरो डे.त्यारेंव्रती श्रावक होय, ते तोराग
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३२ द्वितीय स्थूल मृपावाद विरमणबत. वेषनी वात न करे. तेथी त्यां पण कन्यालीकनी परें कम वेश न वोले, पण गुण होय ते कहे अने वली कहे के, ना ! मनुष्यना मनोगत नावमां कोण माहितगार ? तमे शाहाणागे. पोते पो तानी तजवीज करी व्यो. ए प्रमाणे कन्यालीक जुट जाणवू.
२ वीजु मोटुं जुठ गवालीक बे. ते केले. जेम कोई रीतें को एक मलतीया दोसदार स्नेही माणसनी गाय वेचाती होय, त्यारे तेनो स्नेही पुरुष लेनार धणीने कहे के, श्रा गायनेखुशीथी . ल्यो. आ गाय घणुं दूध देनारी, सुलदणी , लात प्रमुख दूजती वखतें चलावती नथी,आ गायनी मानी पण अमने खबर बे. ते पण बहु दूध देती हती. एवी वातो कहीने ते मित्रनी गायने वेचावी आपे. अने ते गाय तो घणा अपलक्षणवाली , तथा थोडा दूध नी देवा वाली बे, अने दोहोती वखत लात प्रमुखनी मारनारी, इत्यादिक दोषनी नरेली बे. पण त्यां जे वती श्रावक होय, ते तो राग द्वेषथी ते दोषने निर्दोष बे एम कहे नहीं, परंतु यथार्थ जा षा वोले. एमां सहु चोपगां जानवर हाथी, घोडा, सूतर, वलद, गाय, नेपनो एवो विवरो जाणी लेवो. प्रथम तो ए हाड विक्रय कराववोज योग्य नथी, तेम करतां कदापि स्नेह संबंध होय ने तेने लीधे वोल पड़े, तो आपणा व्रतने दोष न लागे एवं वचन बोलवू. ए रीतें ए गवालीक जुठ त्याग कर जोशएं.
३त्रीजो मृषावाद, नूम्यालिक. ते एके, जमीनने लगतुं जुवं वोलवू ते एवी रीते के जमीन कोश्नी होय ने आपस आ पसमां कहे के आ जमीन मारीने, एवो बुझिप्रपंच करीने ते जमीन आपणी उरावे अथवा वीजा को वे जण जमीन वास्ते लडता होय, त्यां राग वेपनी परणतिथी युक्ति कुयुक्ति करीने ते जमीन पोताना रागी मलतीयानी ठरावे, अने देषीने जुगे उरावे. एम होय कोश्नी, ने अपावे कोश्ने. जग्यातो को वी
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द्वितीय स्थूल मृषावाद विरमण बत. ३३ जानीज होय तो कहे के,आतो अमुक धणीनी जग्या के ए पण महोटो मृषावाद जे. प्रथम तो व्रती श्रावकने जमीनना कजी यानी वातमां पडवुज नहीं. केम के, जमीननो कजी महोटा उत्पात आरंजनी खाण बे. तोपण कदापि आपणो तेनाथी कांश संबंध मे, ने तेथी ए वातमां पड्या विना बुटको न थतो होय तो जेवू होय तेवु यथार्थ कहीएं. पण जू कहीएं नहीं. पेहेलांश्रीज एकांतमां आपणा मलतीया संबंधीने समजावीएं के, नाइ! ए वा तमा हुं नहीं बोर्बु, माटे मने ए वातमां वच्चें नाखशो नहीं. एवी रीतें करतां पण कोइपंच मलीने आपणी पर ए कजीयाना उरावनी वात नाखे, तो ते वखतें चतुराश्थी पदेलां तो नज बोले; अने ए q कहेके, माराथी तो बीजा महोटा महोटा पंच बे. ते पंच मली जे ठराव करशे ते खरो.वली बीजा पण माह्याघणाले. इत्यादिकवि नय वचन कही गनो मानो बेसे,पोतानाव्रतनो जय राखे अनेकदा चित् ए वातनो ठराव करवा बधा मली तेने बहुज आग्रह करे त्यारें कहे के, मने वारे वारें शुं कहोडो ? हुं तो ए जमीननी वातमां पूरो माहितगार पण. नथी, एवं कहे, पण नूमिसंबंधी जूलु कदापि न बोले. एमां घर, हवेती, बाग, बगीचा विगेरे सर्व जमीन संबंधी नी वात आवी गश्. कोश् एमानुं कां खरीदतुं होय, त्यारें ते सारु के नगलंबे. ते न कहे. धन धान्यादिक परिग्रहनो मृषा वाद पण एमांज आवी गयो. ए त्रीजुं जूतुं नूम्यालिक डे. तेनो व्रती श्रावक होय, तेणे त्याग करवो.
४ चोथो थापण मोसो,व्रतधारी श्रावकें न करवो.जे कोअना मत अव्य, नूषणादिक वस्तु, जलो गृहस्थ जाणी सादी राख्या वि ना मूकी गयो होय, ते केटलाएक दिवस वीत्या पली ते धणी मा गवाने श्रावशे त्यारें हुं नहीं श्रापुं. एवो कांश बुद्धिप्रपंच करी तेने पंचमां जूगे ठेरावीश! ए ज्यारेंमागशे त्यारेंडं एवं कहीश के, अ
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३० द्वितीय स्थूल मृषावाद विरमण व्रत. मारी पासें तमो थापण की गया ते संबंधीनो को मारा हाथ नोलखेलो दस्तावेज ? अथवा कोश्सादीले? बीजाजेकोश्थाप ण कोश्ने घेर मूके बे,तेनी पासेंथी लखावी करीने राखे बे. एबुंकही तेने दवावी पाडवानी युक्ति रचे, ने विचारे के हुँ नगरमा मात वर वं. ने एतो आव्यो गयो परदेशी जे. एनी कोण पद खेंचशे ! मारी मरजी तोडीने एनी तरफ कोण बोलशे! एवी अव्यनी चीज शा वास्ते बोडीएं!! अने हुँ मारीश्रकलथी वधाने जवाव आपीश. कोश्ना पण दाव पेचमा हुँ नहीं श्रावीश. एवा कुविचारमा पडे.एट लमा पेलो थापण मूकनारावीने मागे के ना! मारो माल श्रापो. ते वखतें तेने गुस्सो करीने कहे के ना!माल केवो? अने तमे कोने सोंप्यो ? आते गुंबोलोगे वारु श्राते कांठीक कदेवाय? अमें तम ने उलखता पण नथी,के तमे कोणगे?नोलपणमाकोश्ने त्यां मूक्यो होय तो त्यां तेनी तजवीज करो. अमे तो परिचय उलखाण विना कोश्नी थापण राखता पण नथी. तेमां तमे तोवली परदेशी बो,तो तमारीचीज शा वास्ते राखियें? एटती तेनीवात सांजलीने थापण मूकवा वालो कहे के,अरे साहेव ! हुं देवावालो,ने तमे लेवावाला. आपण वंने जीवता वैएं.कांघणां वरस पण थयां नथी. चार पांच मास थयां तमारा पासें चीज मूकी. तो एटली थोडी मुदतमां तमे आवा शाहुकार थश्ने, आम जीवती माखी गलवा जेवी वात करोगे ते वात सारी नथी. जूठा ऊगडामां सारं नथी. एम करतां वनेने कजी थयो, ने वढवा लाग्या. शाहुकार, पोताना नाश्वं धोने कहके,श्रादगाखोर गले पमुने कोश्समजावो.पठी कहेशे कह्यु नहीं. नहिंतो वहु दिवस याद करशे, एवी तस्दी पामशे. त्यार पठी समजरो, आज पठी कोश् साथें जूठो ऊगडो न करे,ते माटे एने स मजावो. नहीं तो पठी फोजदारीमा मोकली दीयो, अमारी पासें थीसहऽव्य के चीजगणीने लेवा करतांएटलुकहेवाथीजोसमजी
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ने पोताने घेर जाय तो सारूं; माराथी जूठो कजी नहीं करे ! एवा जोरावरीनां वचन तेने संजलावे. दवे बापडो थापण मूकवावालो विचारे के, हवे हुं शुं करूं ! अरे हुं क्यां ! ने क्यां या सहु लोक !!! ब धाए एनी मरजी प्रमाणे बोलेवे . हुं एकलो परदेशी माटे एनाथी पहो ची शकीश नहीं. एम विचारी ते बोलो य रहे. एवी दुर्बुद्धि करी
पोतें साचो था, ने आगला साचाने जूगे ठेरावे; अने पारको माल हजम करी जाय. ए थापण उलवी राखवानुं महा पाप बे.
लोकमां कदापि पापना उदयथी कोइ दिवस वेचतां, के कोइ ठेका मूकता जाहेरथाय तो राजा तरफथी महोटो दंग पडे, लोको मां अपयश याय, प्रतीति वधे, साख जाय, अने परजवे, कूडां कलंक चढे, दुर्गतिमांपडे, द्रारिद्रभाव कदी पण न मटे, जिनेश्वर जाषित धर्म पण उदय न श्रावे. ए माटे व्रती श्रावक होय, ते पर 'नी थापण अथवा हरको अनामत वस्तु कोइ मूकी जाय, ते सर्वथा dलवे नहीं. शास्त्रमां तो कोश्नी अनामत चीज राखवीज नहिं. एवी बे, ते तां कदापि मूलजांगे दाक्षिण संबंधी जोगजोगें रा
खवी पडे तो जाइबंधनी के कोइ बीजानी सादी लखावीने तथा तोल, मुल्य करावीने राखवी. कदापि घणा दिवस ते चीज आपणे घेर रहे, तो तेने उंढी वधती न कहेवाय. अथवा आपण चेतना पण बगडे नहीं. कदाचित् पोताना मरण पढी पुत्रादिकनी पण बुद्धि बगडे नहीं. ते माटे लखत साक्षी करावीने खत करीने राखे के तेथी तेने पाठी आपवानी जरूर पडे, अने मनमां बीक रहे. धणी मागे त्यारें खुशी थइने थापण मूकेली चीज हो य ते पाढी पे. एमां सहु वातनांबिद्रो जाणी लेवां. कपट व्रत्ति, विश्वासघात, ए सहु व्रती श्रावकें थापण मोसो न करवो.
५ पांचमो मृषवाद जूठी साक्षी. ए व्रती श्रावक होय, ते क दी न पूरे. तेनो विस्तार लखीएं ढैयें. कूडी साझी तेने कही एं के,
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___३६ द्वितीय स्थूल मृषावाद विरमण व्रत.
वेजणा कजी करवा लाग्या, तेमां कोण साचो ने कोण जूठगे ! तथा कोनो वांक ! हवे जे साचो बे ने जेनो वांक नथी, तेनापर नगरवासी लोकोनो वेष बे. ते पुरुषोयें पोताना दिलमा धारी रा ख्यु होय के क्यारे पण अमे अवसर पामीने एने उपर जबरज स्ती करशं. ए वातनो अवसर जोश्ने साचाने लगाववान वल वांधे, ते एम के द्वेषपोषणने माटे पोते कजीयानी अंदर तत्पर थाय अने मातवर थश् लोकोने कहे के, ए वातथी हुँ माहित गार . एनी सादी हुँ पूरीश. कदापि राजधारमां कोई काम पडशे, अने मारी सादीनी जरूर हशे तो त्यां पण हुं सादी पूरीश, एनी खातरदारी सादी सर्वरीतेंथी मारीपासेथी लेजो. एवीरीतें जूगनो पद करे. उपर प्रमाणेनी वात करीने जूठी सादी पूरे. प ण कूडी सादीनु महापाप .श्रा नवमां पण जूठगे पडे तो श्रा वर जाय, राजदरवारमा खवर पडे के, आ जूगे माणस जे. शेरेरमा जेनी तेनी साथें जगडो कस्वा करे . एवं जाण थतां नी साथै धन धान्य सर्व राजा खूटी जाय. जूठी सादीवालो मार खाय. अने परनवमां तो एवां पापें करी ए फुःखथी पण वली बहुज दुःख लोगवे, दुर्गतिनो साथी थाय, पगले पगले अणचिंतवीआप . दाभावीने प्राप्त थाय, एमाटेश्रावकने सर्वथा जूठी सादी कोश्नी पूरवी योग्य नथी. ए पांच तो महोटां जूठने. जेश्रावक नाम धरावे तेणे ए पांचे जून त्याग करवां. तथा वीजुं पण जे वोलवाथी राज जय उपजे, दंम जरवो पडे. जीन, कान, नाक, हाथ श्रादिक अंग जे बोलवायी वेदाय. एवी नापा वोलवी नहीं. एवी रीतें वीजें मृपावाद विरमण व्रतली, ठे.एमां आजीविका निमित्तं पोता ना परिणामनी कच्चाश्यी कोइरीतं नवं वोलवू पडे, तो तेनो श्रा गार . अहीयां क्रोध,मान, माया, लोन, राग, हेप, रति,अरति, क्रीडा, लजा, विकथा, जय, हास्य इत्यादिक जूवं, बोलवानां का
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द्वितीय स्थूल मृषावाद विरमण व्रत. ३७ रणो . अहीं हास्यादि वात विनोदमां तथा कोइ निमित्तें क षायादिकने परिणम्यो, आत्मा मूढ चेतनामा रह्यो थको कांश बालपंपाल बोलाय. तेनी जयणा, तथा कोश् चाडीयो प्रमुख छ ष्ट मनुष्य, निष्कारण बहु दुःख देतो होय, को रीतें दुःख देतो रहे नहीं, त्यारे ते सापराधीने शिदा देवराववानेसारु कां डं वत्तुं बोलवू पडे; तेनो आगार जे. एटले संकल्प करीने विना प्रयोजन निरपराधे हास्यादि कारण विना निरपेद जूतुं न बोलु. वली पांच महोटां जूठमां पण स्वसंबंधी कन्यालीक, गवालीक, नू म्यालीकमां न चालतां जूठं बोलतुं पडे, तेनो आगार जे. एना पांच अतिचार . ते जाणवाने लखेडे. । प्रथम सहसात्कार अतिचार बे. ते एके, कोश्ने एका एक
अण विचाऱ्या कहे, अयुक्त कलंक चढावे. जेमके, तुं चोर बे, व्य निचारी बे, जूगे बे, इत्यादि विना तपास कस्ये कहे, ते पहेलो अतिचार बे. श्रावकने तो साक्षात् कांश विरुवात जोश होय तो पण प्राणांत सुधी ते जाहेर न करवी. वली न कहे तो जू बोलवानो दोष लागे, त्यारे विचारे जे ए वात कवाथी महोटं पाप लागशे. एम विरुद्ध वातने जाहेर करतां कांश दोषादिक उपजे, अने तेथी श्रावकने अतिचार लागे. माटे ए विरुवात बे. तेथी पोतानी मे जाहेरमा आवशे पण पोतें कहे नहीं,
बीजो रहस्यनाषण अतिचार. ते एके, कोबे जण पोताना घरनी सुख दुःखनी वात करेले, ते जोश्ने तेमने कहे के, खब रदार रहेजो! तमे बन्ने मलीने राजधार विरुधनी वात करोगे पण तमे महोटो तमासो देखशो, आगल विचार करवो पडशे,माटेंश्रा ज पठी एवी वात न करशो, एवं कहीने ते बन्नेने पुःख उपजावे. वीजुं पण स्त्रीजननी, मित्रनी, पोताना मेलापीनी तथा बीजा पण कोश्नी बानी वात अथवा कांश एबनी वात, श्रापणे जाणीनेते वात
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३७ द्वितीय स्थूल मृषावाद विरमण व्रत. लोकोनी आगल प्रकाशे, ने तेनी चरचा चलाव्या करे. पनी रहेते रहेते ते वात, राजहार जश् पहोचे. त्यारें राजदंगनो नय उपजे, कांश्चें कांश थर जाय. ते रहस्यनाषण अतिचार जाणवो. ___३ त्रीजो दारमंत्रनेद अतिचार. ते एके, आपणी स्त्री तथा ना प्रमुख घरनां माणस तथा आपणो मित्र के कोश हितेलु ते मनाथी को नूलचूकथी अथवा नादानबुद्धिथी कांश गनी विरुद्ध वात थ गश् अने पनी पस्तावो करी ते दोष तेणे बां डी दीधो होय, ते वहु दिवस वित्या पली को प्रसंगोपात ते गश् गुजरी वातने फरी प्रकाश करीने केहे; त्यारे ते लाजनो मायो आपघात करी जीव काढे. ने तेथी आपणने पण मोटी एव लागें, बहु वेदना तथा पुःख थाय, लौकीकमां अपयशनी वृद्धि थाय, ए दारमंत्रनेद त्रीजो अतिचार जाणवो.
४ चोथो मृषाउपदेश अतिचार . तें एके, पोतें मापणवालो थवानेसारु पापोपदेश जे मंत्र, यंत्र, जडी, बुट्टी, बतावे. ने कहे के, फलाणी बुट्टीतुं मूल कहाढो. ते अमुक बुट्टीना रसमां मेलवीने आटली चीज वाटो. तेनी गोली करीने खाऊ. तेथी वह लोगशक्ति थशे. वली आ मंत्रनो जाप करो, मद्य मांसनी आहुति आपो, जे श्री करी देवता प्रसन्न थाच, वली जेनीचाहना करो तेनी प्राप्ति थ शे.वली कहे के,सांजलो! अमुक जानवरना लोहीथीअमुक औषधि नां पांदडा पर यंत्र लखीएं,घुअडना पग साथें वांधीएं तो शत्रु ना गीजाय अथवा मरण पामे. वीजें कहे के, जनावरना इंझाना रस श्री पारा प्रमुखनो खरल करो.अनेपठीतेपाराने अग्निमां राखरां. शोल प्रहरनी अनिएं करी पारो सिहाथशे.एवा उपदेशनोदेनारो थाय. वली कहे के, हुं कामशास्त्रमा महा निपुण हुँ, तमोने चोरा शी जोगासननो विधि शिखवाड़े,ते तमे शीखो. एथी करी विविध प्रकारनी रतीविलास क्रिया ने वहुवार वीर्य वृद्धि रहेशे. काम जा
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द्वितीय स्थूल मृषावाद विरमण व्रत. ३ गशे, कामदेवना वासानुंस्थानक जाणशो.तो तमारोजीव बहु खुशी मां रदेशे.अंधारा पदमां तथा अजवालीया पदमां स्त्रीने कामनो वासो जूदे जूदे ठेकाणे रदे.तिथि तिथिनो विवरोजे.ते बधुं तमने बतावीश, इत्यादि बहु पापोपदेश करे. बीजां पण औषधादिकनां शास्त्र बतावे, नणावे अथवा कोश्ने पुःखमां नाखवाना उपाय वतावे. एना प्रतिपदी होय तेने पण कुबुद्धि बतावे, शीखवाडे, तथा विषयकषाय जागे, एवी नवी वात उगवे, ते पापोपदे शकथन चोथो अतिचार जाणवो. ___५ हवे पांचमो कूटलेखन अतिचारले. ते एके, कोश्नो जूगे लेख लखे, नामामां जूलु लखे, उंडगे वधारे अदर लखे, प्रथम लिखित अकर बरी प्रमुखना प्रयोगें करी बेकी नाखे, पर वाना उपर जूठी मोहोरकरे, खोटुं खत बनावे, तेमां रुशनाश्ना नेद पण सहु श्राव्या. ए पांचमो कूटलेखन अतिचार जाणवो.
अहींयां आजीविका निमित्तं चित्तजढताना योगथी श्राडतिया प्रमुख व्यापारमा अधिक लाननी प्राप्तिथी कां धारणा प्रमाणे उदुं वत्तु लखवानो आगार पण एने मूलमां तोटो आवे, ए बुं न करवं. वली बीजुंपण आजीविका निमित्ते उडं वत्तु मर्यादा धिक धारणा प्रमाणे लखवानो आगार. ए पांचे अतिचार मृषावा द उपदेशनाबे. आ पांचे अतिचार महापुर्गतिना सहायकले. ते माटे ए अतिचारने जाणवा पण आदरवा नहीं..
॥इति श्रीछादशव्रतविवरणे द्वितीयस्थूलमृषावादविरमणव्रते पंमितश्रीउद्योतसागरगणिना कृतनाषा संपूर्णा ॥२॥
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___ तृतीय स्थूल अदत्तादान विरमण व्रत.
॥ अथ ॥ ॥ तृतीयस्थूलअदत्तादानविरमणव्रत प्रारंनः ॥
॥ दोहा॥ सजुरु पदपंकज नमी, कहिशुं विवरण शुद्ध;
तृतीय अदत्तादान व्रत, न कहं शास्त्र विरुद्ध ॥१॥ हवेस्थूल अदत्तादानविरमण लखीएं बैयें.प्रथमस्थूल जे महोटी चोरी जे संकल्प करीने देवाल फोडी खातर पाडे, अथवा मार्गा दिकें मुसाफरना अव्यने लूटवानी श्वा थते एम के, आ ए काकी . बीजो कोइ एनी साथें वे नहीं. त्यारें जाणी जोश्ने को इ नवो प्रपंच करी, एनुं अव्य होय ते लश्लेएं अथवा वलात्का रें करीने पारकी चीज लेवी तथा नजर चूकावीने कोश्नी चीज उ गवी लेवी तथा आपणे घेर को अनामत चीज मूकी गयो हो य ने ते ज्यारें पानी मागे त्यारें नामुकर जq तथा खलं जवाही र प्रमुख लश्ने घरमां मूक. अने पाबु ते मागे त्यारे खोटुं श्राप बु, तथा वीजा कोएं हीरा मोती वेचवाने आप्यां होय, तेमाथी नंगनो फेरफार करीसारुं नंग होय, ते पोते लश लिये,अने जेठी कि म्मतनुं नंगहोय,ते तेमां मेलवी आपे.ए सहु अदत्तादाननो दोष क हीए.जे कारण क्यारेपण तेनी जाण पडे,प्रगट थाय,त्यारे राज दंग देवो पडे, अपयश थाय, अप्रतीति उपजे, ए माटे स्थूलअद त्तादानने जे त्यागे, ते अदत्तविरमणव्रत , ते अदत्तव्रतना वेने द. ते कळे. एक अव्यअदत्तव्रत, वीजुं नावअदत्तत्रत.
१७व्यअदत्तविरमण एटले पारकी चीज पूर्वोक्त प्रकारेंगएली पडेली, विसरी गएली लीये नहीं. तेऽव्यप्रदत्तविरमणबत जाणवं.
२ तथा जे पर पुशलजव्य, तेनी चीज वर्ण गंध रसादिक रचना रूप त्रेवीशविषय तथा श्राठे कर्मनी वर्गणा ते पण पराश् चीज
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तृतीय स्थूल अदत्तादान विरमण व्रत.. ४१ बे. ते वस्तुगतें जीवने अग्राह्य जे. एनी जे वांछा उदयिक ना । वमा धसण, ते नावअदत्त ग्रहण जाणवू. तेने श्रीजिनागमोक्त तत्व सांजलीने, पुजलानंदी पणुं मटाडे, शुद्ध उपयोगें दिलथी उदय अव्यापक रहे. निर्जराना बहुल परिणाम ते नावअदत्तवि रमणव्रत कहीये. जेटली जेटली कर्म प्रकृति देतेनो बंध मट्यो. ए टयूँ नावअदत्तविरमणव्रत कहीये. त्यां सामान्य अदत्तना चार ने दळे ते कहे. १ प्रथम स्वामियदत्त, २ बीजो जीवअदत्त,३त्री जो तीर्थंकरअदत्त, अने ४ चोथो गुरुयदत्त. १ तेमां प्रथम कोश्नी चीज थाप्या विना लिये, ते स्वामिश्रदत्त. २ बीजुंजे सचित्त बीज फलादि गुला प्रमुख तोडे, अथवा डे दे, नेदे, ते जीवअदत्त कहीएं. जे कारणे फलना जीवोएं एवी कां आज्ञा दीधी नथी के; अमोने तमे बेदन नेदन करो. ते हे तुएं ए जीवश्रदत्तनो बीजो नेद जाणवो.
३त्रीजो श्रीतीर्थंकर देवें जे चीजनो निषेध कह्योले. ते चीज ने ग्रहण करे. जेम के, साधुने आधाकर्मी आहार निषेध कह्यो बे..श्रावकने अनदय वस्तु निषेध कही बे; तेने आचरे त्यारे ते तीर्थंकर अदत्त केहेवाय. ए त्रीजो नेद तीर्थंकरअदत्तनो जाणवो.
४ चोथो गुरुदत्त. ते एके, कोश् साधु, आगमोक्त शुद्ध व्य वहारपूर्वक निर्दूषण आहार लावीने पड़ी तेने गुरुनी आज्ञा वि ना खाय, ते गुरुदत्त कहिएं. ___ए चारे अदत्त, संपूर्ण रीतें तो साधुथी तज्या जाय, श्रने गृह स्थथी तो कांश अंशे तज्या जाय. अहींयां श्रावकने चारे अदत्त मां खामियदत्तना त्यागनी मुख्यता . ए माटे पराश् चीज पू वोक्त उपाय करीने न लेजं. जे चीज लेवाश्री चोर नाम ठरे, रा जदंग उपजे, एब लागे, मादे एवी चीज न लेलं पण सूदम त ण काष्ठ प्रमुख, जेनी को बहु मना न करे, ते चीज खेलं ते
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४२ तृतीय स्थूल अदत्तादान विरमण व्रत. नी जयणा, कोश्नी चीज पडेली पासुं तो ज्यां सुधी परिणाम टके, त्यां सुधी लेलं नहीं. कदापि बहु मूल्यवान् चीज जोश्ने परि णाम शिथिल थाय, त्यारे ते जीज लेलं. पठी लेश्ने केटला एक दिवस, पोता पासें राखं. एटलामां जो ते चीजनो धणी तो था य, तो तेने आयुं अने धणी बतो न थाय, तो धर्मस्थानकमांत था धर्मना काममा खरचं. एम पण परिणाम न रहे, तो तेमां थी अर्ध नाग धर्म स्थानकमां खरचं, अने अर्ध हुं पोते रा.
वली पोतानी जमीन खोदतां अव्यनो लंडार निकटयो, तो तेने लेवानो आगार बे. एमाथी पण अर्ध अथवा चोथो हिस्सो धर्म कलं. पठी पण जेवी धारणा ?
तथा पारकी जमीनमांथी अव्य निकले, त्यारे पण ज्यां सुधी परिणाम टके, त्यां सुधी ते अव्य ले नहीं. अने परिणाम शि थिल होय तो, अधुं हुं राचु ने अर्धं धर्ममां खरचं.
तथा कोइ वारस विनानो माणस कोई चीज अनामत मूकी गयो होय, पनी ते देशांतर गयो त्यां मरण पाम्यो त्यारे तेनी चीज पंचमां, लला अने सारा रुचिवाला मनुष्य आगल जाहेर करीने जे पंच कहे, ते कसै; कदापि देश कालनी विषमताथी जाहेर करतां उ लटुं लफरूं लागे. ते एम के, उष्टराजादिक होय तो ते लोचना मा स्वा थका कहे के तारे घेर, मरनारें घणुं अव्य मूक्युं ? तुंतो पो तानी शाहुकारी जाहेर करवाने थोडं देखाडे , एवी उपाधि जागे, ते माटे कोश्ने न कहुं तो पण ते अव्य, धर्मस्थानकें खरचं. ते खरच तां ते धन आपणुं पोतार्नु केहेवू पडे, तेनी जयणा.
तथा घरचोरी एटले घरमांनी सर्व चीजना मालिक तो पोताना पिता, अथवा माता. एमने पुण्या विना वस्त्र अव्यादिक लेवू, तेनी जयणा. वली जेनी साथै महोवत होय, जे संबंधी होय, जेने घेर जवा श्राववानो,खावा खवराववानो व्यवहार होय, ते
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तृतीय स्थूल अदत्तादान विरमण व्रत. .. ५३ ने घेर गये थके कशं पुबया विना फल पान प्रमुख लेवं; तेनो
आगारजे. परंतु तेनो जीव कचवातो होय तो न लेवु. ___ तथा कोश्नी चाकरी करतां व्यापारमा कांइ कसुर करीने अव्य मेलववानी जयणा. ए रीतें त्रीजुं व्रत पाले, ते व्यवहार शुद्ध अदत्तादान विरमणव्रत जाणवू. अने निश्चयथी तो जेटलो.
आत्मानो अबंधक परिणाम थयो, गुणस्थाननी वृद्धि थक्ष, अने बंधविछेद थयो, ते निश्चय अदत्तविरमणव्रत कहीएं. एना पांच अति चार बे, ते कहे .
१ प्रथम "तेनादड" अतिचार कहे. स्तेनाहत् त्यां स्तेन एटले चोर, तेणे आहृत् एटले हरण करी लीधेली एवी जे चोरीने कां चीज,तेने स्तेनाहृत्कहियें. एटले चोरें चोरेती चीजने खरीद करवी. कारण के, चोरीनीचीज सोंधी मले, तेजोश्यात्मालोजमा पड्यो थको ते वखतें विचारे के मोरे तो पारकी चीजहाथमांलेवी नहीं. पण आतो चोर पोतें चोरी लाव्यो बे. ते लेवामां मने शो दोषने ? एवी मूढ विचारणाथी ले, पण एम न विचारे के, आ आ शुद्ध अव्ये करीने मारी चेतना बगडशे. वली कदाचित् को वख तें जाहेरमां आवे. त्यारेते पकडाय. त्यारे राजवाला पूजे के, शेहे रमां जेमनी चीज गश् होय ते सर्व लोक, चबुतरें आवी बतावो.ते वखतें चोरने तस्दी आपे. त्यारे ते चोर जेनुं तेनुं नाम तथा पत्तो बतावे के, अमुक जग्याएं चीज राखीने, किंवा अमुक जग्याएं वेची. एम करवाथी सर्व जग्याएंथी चीज जाहेरमा श्रावी. शाहुकारोएं पण सोंधी जोश्ने लीधी हती, ते पण सहु पकडवामां आव्या. त्यारे तेमने पण उलटो दंग पके, ने वली जे चीज चोरपा सेंथी लीधी हती, ते पण जाय, पोतें खराब थाय, लोको वात करे के आलोक, चोरोने पैशा प्रथम दे ने चोरी करावे, एवी वात जला गृहस्थने सांनलवी पडे. माटे ए धंधो केम करीएं ? वली लौ
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४४ तृतीय स्थूल अदत्तादान विरमण व्रत. किकमां अपयश वधे,ते तो आ नवनुं दुःख, अने परजवर्नु दुःख जोएं तो चोरीनो माल संगरनाराउ पुर्गतिने लोगववा वाला ज. परंतु अहीं कदापि अजाण पणे एटले चोरीनो माल . एम न जाण्यु होय ने लीधो होय, तो तेनो आगार. परीक्षा विना बहु मूली वस्तु थोडामा मले, तो तेनो आगार . तथा परंपरायें आवी तेनो आगार. पण एने जूठी साची कल्पना दे खाडीने तेनी पासेंथी लेवी. ए पेहेलो अतिचार जाणवो.
२ वीजो तस्कर प्रयोग अतिचार, एटले जे चोरने चोरी कर वानी प्रेरणा करे के, तमे आज काल नकामां बेशी रह्यानो प ण उद्यम कस्या विना शुं खाशो ? आ पेटने तो रोज नरवू जोश एं ? ते माटे घरमां बेठे तो कांश नहीं थशे. अमे तमारा मोहोब तीया छैएं. ते माटे कहीए बैएं. बीजो पण अमुक, फलाणे ठेका णे गयो हतो, ते थोडा दिवसमा चार पैशा सारी रीते लाव्यो; माटे तमे पण रोजगार सर था. तेथी माथा परनुं करज पण उ. तरशे. नहीं तो आगल तमने फरी करनें कोण रूपैया देशे? दी धा लीधाथी सहुनुं काम चालेने, माटे ना ! धंधो करो. अमारु पण तमारी उपर लेणुं बे; ते पण श्रापो. कारण के वहु दिवस थया . नहीं तो पांच सात वीजा पण आपीयें, परंतु शुं करीएं ? जे तमने आवा हाले देखीए बैएं. तेथी वहुज खीज आवेठे, श्रा वा वलदार ठो, पण सर्वदा कमाया विना एमज निन्नाव केम थ शे? ते माटे व्यापार रोजगारमा तमने नफो न होय तो, कोश्नी नोकरी करो. हथीयार लश् शीपागीरी करो. तमारी पासें हथी यार हाजर न होय तो जेटला जोश्य तेटला अमारी पासेंथी लश् जार्ज, पण रोजगारसर थाढ. एवी एवी खोटी प्रेरणा करे. ते प्रयोग कहीएं. चोरने प्रेरणा करे, संवल आपे, लोढानां शस्त्रादि क श्रधिकरण श्रापे. तेने तत्वजष्टिएं देखतां चोर तुल्य कहीएं.
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तृतीय स्थूल अदत्तादान विरमण व्रत. ४५ जे कारणे नीतिशास्त्रादिकमां चोरना सात प्रकार कह्या . ते एके, प्रथम चोर जे आप चोरी करे १, बीजो चोरनी पासें रहे २, त्रीजो चोरनी साथें आलोच करे ३, चोथो चोरना नेदमां माहितगार थाय ४, पांचमो चोर साथें व्यापार सहीयारो राखे ५, बहो चोरने अन्नपाणी आपे ६, सातमो चोरने घरमा राखे उ, ए सातेने चोर कहेवा. हवे अहीयां अदत्तनो त्यागी होय, ते विचारे के मारे पोताने तो पराश् चीज लेवार्नु पच्चखाण , पण बीजो को लश् आवे, तो ते चीज लेवामां मने शो दोष ने ? ए माटे प्रयोगअतिचारव्रत पण श्रावक न धरे. कारण के ते सापेदले. ए माटे ए प्रयोगअतिचार बीजो जाणवो. २
३ त्रीजो “तप्पडिरूव" अतिचार. ते एके, कोश् सारी वस्तुमा तेना सरखी मलती बीजी हलकी चीज मेलवीने वेचे, ते तत्प्रति रूप कहियें. जेम केशरमां केशरना जेवो तार, अने एवाज रंगने मलतुं एवं को अव्य लावीने कत्रिम करी वेचे, वली महा प्रमुख ने मथीने घृतमा मेलवी वेचे, एटले जे चीज तेना सरखी बीजी चीज बनावीने मूलजव्य शुद्ध होय तेमां मेलवीने वेचे तथा बना • वटनी कस्तुरी करीने वेचे, गुंदर प्रमुखनो बांधो करी तेने हींगमां मेलवीने वेचे. तथा जे यवादि सुगंधिक अव्य थायजे, ते कर्पूरसाथै मेलवीने वेचे. अफीणनो जोडो करी वेचे, तथा जूनां वस्त्रने रंगावीने नवाने ठेकाणे नवाने नावे वेचे. रुने पाणीमां नीजवी वजनदार करीने वेचे. सूतती प्रमुखनी पिं मिमां अंदर महोटा गाला घालीने उपरथी सुतलीने जीजवी करी लपेटीने वेचे. लोकमां सारी जोश्ने वधारे मूल श्रावे, तो य पण विचार नहीं के, हुं खोटो व्यापार करूंबु. पाणीमां बुध ए क करीने उधना नावें वेचे. गहुं प्रमुख दाणामां जुसो, कांकरी, अने चूनो प्रमुख मेलवीने वेचे. ए सहु प्रतिरूप कहीएं. अहीं
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तृतीय स्थूल अदत्तादान विरणम व्रत. यां श्रापणी चीज व्यापारनी होय, तेने परिकर्म करी वेचवानो आगारले. एत्रीजो अतिचार जाणवो.
४ चोथो विरुद्धगमन अतिचार. लखीए बैंएं. ते एके, आ पणा गामना राजाएं फरमाव्यु के, फलाणे गाम जशो नहीं. ते गामनी चीज लेवी नहीं. तेमनी साथै व्यापार,खातुं,लेणुं,देणुं,कांश पण करवू नहीं. एवो सरकारनो हुकमजे. केमके, सरकारना कोश मुद्दाश्गुनेगारजे, ते त्यां जश्कोनुं शरण लश्ने रह्याने. माटे त्यां थी तेमने को दिवस पकडी मंगाववानो.त्यां सुधी ते गामवाला को सरकारनी चीज वेचवा आवे, ते लेशो नहीं. ए प्रमाणे राजा एं हुकम कस्योबे. हवे आ माणस तो लोनने वश पड्यो, ते गाम मां जश्ने सोंघी वस्तु जाणीने बानो मानोज त्यांथी लश् आवे । अने पोताना गाममां बानी मानी लावी वेचे. एवामां को चुग लीखोर ते वात जाणे अने राजाने जाहेर करे के अमुक माणस, आपणा गाममां परराज्यनी चीज, त्यहांथी लावे. ने अहीं वेचे के. अथवा राजसंबंधी कां बानी वात विगत होय, ते करे. त्यारें ते कष्टमां पडे. दाणचोरी पण एमां अवी गश्. ए माटे एविरुझग । मनअतिचार थाय. अहीयां दाणचोरी तो सर्वथा तजवी. कदा. पि लोनने वश पड्यो थको न रही शके, तो वर्ष प्रत्ये प्रमाण करी राखे, तथा श्रावक होय, ते चोथा विरुधगमन बतनो आगार राखे. ____५ पांचमो कूड तोल तथा कूडां माप करण अतिचार कहे.ते एके, लेवानां तोल माप जूदा राखे, अने देवानां तोल माप पण जूदा राखे. एवी रीतें गज पण लेवानो जूदो राखे अने देवानो प ण जूदो राखे, कोश् देशमां अनाज नरवानुं पण मापळे त्यां पाली माणुं प्रमुख, लेवानुं जूहुँ राखे अने देवानुं माप उतुं, ते पण जुई राखे. वली त्राजवानी मांमीमां अंतरकोण राखे. मापमां पण एवी दगलबाजी करे. जरती वखत पालीने मगावीने आपे,
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चतुर्थ स्थूल ब्रह्मचर्य व्रत. बेवानी वखतें माथा सुधी संपूर्ण दाणो जरीने लिये. वली वस्त्र ले, त्यारे पण गज अथवा हाथ सरकावीने ले, तथा आपे. तेवारें अतिचार लागे. ए पांचे अतिचार, जे विरति श्रावक होय, ते जाणे, पण ते अतिचार लागे. एम जाणी दरे नहीं. __ अहीं आजीविकाने माटें वर्तमान लोक व्यवहारनी रीतिएं उलूं वधतुं देवा लेवानी मने जयणा. अजाण पणे को खोटां तोल माप थर जाय, तेनो अतिचार नहीं. विरति व्रतनीने. ते प्र माणे पालीश. अधिक लोजने वश पडीने नहीं करीश. या पांचे अतिचार, अदत्तादानविरमणव्रतना जाणवा.
इति श्रीछादशवत विवरणे पंमितश्री उद्योतसागरगणिना कृत तृतीयस्थूल अदत्तादानविरमणव्रतनाषा समाप्ता ॥३॥
॥अथ ॥ ॥ चतुर्थस्थूलब्रह्मचर्यव्रत प्रारंनः॥
॥ दोहा॥ आयकर कारकूँ, मंगलरूप मनाय%; चोथे व्रतके नेद सब, नाषा करूं बनाय ॥१॥ चोथू ब्रह्मचर्यव्रत. एटले मैथुननो त्याग करवो. त्यां मैथुनत्या गना बेनेद.एक अव्यमैथुन त्याग, अने वीजो जावमैथुन त्याग.
१ अव्यमैथुन एटले परस्त्रीनो तथा परपुरुषनो परस्पर संगम जाणवो. त्यां पुरुषं परस्त्रीनो त्याग करवो. अने स्त्रीएं पण परपुरुष नो त्याग करवो. रतिक्रीडा तथा कामसेवन करे, ते अव्यमैथुन क हियें. तेने जे पुरुष, तथा स्त्री, त्याग करे. तेने व्यब्रह्मचारी तथा व्यवहारब्रह्मचारी कहीएं.
२ बीजो नावमैथुनरूप. ते एके, चेतनरूप पुरुषने विषया - जिलाष परपरणति रूप, तथा तृक्षा ममतारूप इत्यादि निश्चय
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चतुर्थ स्थूल ब्रह्मचर्य व्रत. परस्त्रीने तेनी साथे जे मल, तेने रीक मोज आपवी, तेनी साथें वांछित विलास करवो, ते नावमैथुन जाणवो. एने जिनवाणी ना उपदेशे तथा जे सशुरु हितशिदानो उपदेश करे. त्यारें पो तें परपुजलादिकने उलखी, जातिहीन जाणी, आगामिक कालें एने महाकुःखदायी जाणी, पूर्वे गतकालें अनेक मरणांत दुःख परंपरा एनाथी पाम्यो, ए माटे मने ए विजाति स्त्री तजवानुं क युंके, माहारे तो मारी खजाति, परमन्नक्त, उत्तम, सुकुलीन शमता रूप सुंदरीनो संग करवो सारोले. विनावपरणतिरूप परस्त्रीएं मारी सर्व विजूति खेंची लीधी. हवे सशुरुनी सहायताथी ए छ ष्ट परिणाम स्त्रीसाथै हुँ लाग्यो ढुं. तेने थोडे थोडे निग्रह करूं. त्य जवानो नाव आदरं, के जे थकी महारी शमता सुंदरी,शुझखना व घटरूप घरमां आवी रहे, तो घरनुं तेज वधे. एवी समजण पा मीने परपरणतिमांथी ममता बोडे, उदय कर्म व्यापे नहीं. शु छ चेतनानो संगी थर रहे. शुद्ध परिणामथी दूर न रहे. ते नाव मैथुनत्यागी कहीएं.
अहींयां अव्यमैथुन त्यागी तो षट दर्शन मांहे मले पण ना वमैथुन त्यागीतो श्री जिनदर्शननेत्यांज श्री जिनवाणी सांज लतां ज्ञानन्नेद, जेना हृदयमा प्रवर्त्तायो, ते सहज उदास उ पायथी नावमैथुननो त्याग करे. ते वीजा दर्शनोमां न मले.
अहींयां स्थूल परस्त्रीगमनबत. ते एके परस्त्रीनो त्याग कस्यो, परपुरुषनी परणेली तथा पारकानी राखेली जे स्त्री होय, तेनी साथें अनाचार सेवन न करूं. एवो पचरकाण करे, तेने परदार गमनविरमणव्रत कहीएं. वीजु जे खदार केहेतां पोतानी स्त्री, ते नाथी संतोप धरु. एवं जे व्रत धरे, तेने खदारसंतोपत्रत कही एं. त्यां देवसंबंधी देवांगना, तथा तिर्यंच संबंधी स्त्रीजाति, त था मनुप्य संबंधी स्त्रीजाति, एनाथी मैथुनसेवा निषेध. एकेकी
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चतुर्थ स्थूल ब्रह्मचर्य व्रत, ४ए विधिना नाग करीने, एटले कायायें करी परस्त्री साथे सोश्मां दो रो परोववो, ए न्यायें संयोग करवानो निषेध अनेमने, तथा वचनें श्रने खप्नमां लोग थाय, तेनी जयणा.सहज स्पर्श करवानी जयणा. वर्तमान स्त्री टालिने बीजी स्त्रीसाथें विवाह न करवो, तथा दिवसें ब्रह्मचर्य पावू, न पलेतो प्रमाण राय, नववाड पालवानो खप क 5. स्त्रीजनने पण एवी रीतें परपुरुषनो त्याग जाणवो. हवे एव्र तना पांच अतिचारले, ते लखीयें बैएं.
प्रथम अपरिग्रहीतागमनअतिचार. ते एके, नहीं परणेली स्त्री, जे कुमारी तथा विधवा स्त्री,तेने अपरिगृहीता स्त्री कहीएं. जे कारणे को एनो स्वामी केहेवातो नथी. ए कोश्नी स्त्री के वाती नथी. तेने जोश, कोश मूढमति विषयानिलाषी थ. नमक नावथी विचारे के, में तो परस्त्रीनो त्याग कस्यो अने था तो को इनी स्त्री कदेवाती नथी माटे एनी साथै मेलाप करवाथी मने झुं दोष बे? एवं विचारीने ते कुमारीनी साथे के विधवानी साथे जोग विलास करे. एज प्रमाणे व्रतधारी स्त्रीने पण परपुरुषनो त्यागले. ते पण अपरिगृहीत पुरुष कुंवारो होय अथवा जेनी स्त्री परलो क पहोंची होय तेनी साथे पूर्वोक्त न्याय मनमां धरीने संग क रे, तो ते स्त्रीने पण प्रथम आतिचारना दोष लागे.
२ बीजो श्वरपरिगृहीतागमन अतिचार. ते इत्वर केहेतां थोडो काल जाणवो. एटले मास, उमासनी मर्यादा करीने वे श्यादिकने खरची थापी पोतानी श्रास्नाव स्त्री करीने राखे. श्र हीयां को अज्ञान पणाथी एम विचारे के, मारे तो पर स्त्रीनो त्यागबे. पण आने तो में महारी करीने राखीने, तो एमां मने शुं दूषण ? एम जाणी करीने अज्ञान पणे ते वेश्याने सेवे, तो तेने बीजो आतिचार लागे. एवी रीतें श्राविकाने पण बीजो अतिचार लागे. ते एम के, बे शोक्यो होय तेमां शोक्यनो वा
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चतुर्थ स्थूल ब्रह्मचर्य व्रत. रो धणी पासे जवानो होय ते दिवसें जरतार ने पोते सेवे, ने मनमां विचारे के, पोताना खामीने सेवतां शुं दूषण ? मारे तो परपुरुषनो त्याग बे. पण एम न विचारे के, आ दिवसें तो ए शोक्य नोजरतार .मारोतोा दिवस धणीपासे जवानोवारो नथी. तेम उतां पण बल करीने खामीने सेवे,तोतेस्त्रीने बीजोअतिचार लागे,
३त्रीजोअनंगक्रीडाअतिचार.एटले अनंगकहेता कंदर्प, तेने जागृत करवासारु आलिंगन, चुंवन, नख प्रमुख अथवा नेत्रना हाव, नाव, कटादादिक हास्य प्रमुख पछामिश्करी विगेरे पर स्त्री साथे करे. दिलमा एम विचारे के मेंतो सोश्मांदोरो परोववा नो लोग त्याग कस्यो बे. परस्पर एक शय्यामां सुश्ने नोग कर वानो मारे त्याग बीजानुं तो में व्रत लीधुं नथी पण ते, कामांध थवाथी एम न विचारे के, चेतना तो बन्नेमां वगडे एनाथी पण व्रत वेहेढुंज नांगेने, मन चले. तथा पोतानी स्त्री साथे चोराशी आसने करी काम जागृत करे. नोगविलास करे. तिथि प्रमाणे कामनिवासनी जग्यायें हाथनो स्पर्श करे. अंगमईनादि करीने काम प्रगट करे. अथवा परम अनिलाष थये थके, पोतानी स्त्री हाजर न होय तो न चालते कार्य हस्तकर्म करे, स्त्री पण कामव्याकुल थये थके पोताना अंगुगथी सुखवासीया प्रमुख करे, अथवा स्त्री स्त्री मदीने, अधिकरणथी गुह्य स्थाने संचारण करे, अनें पोतानी श्छा संतुष्ट करे, त्यारे पण तेने अतिचार ला गे, ते माटें श्रावकने ज्या त्यां कामसंज्ञा घटाडवानी चाहना क रवी जोएं. जेम लोजी माणस पोताना व्यापार धंधामा मग्न हो य एटलामा नूख लागे, तोपण सह्या करे. धंधाना वचमां नूख ने गणकारे नहीं. एम करतां पण ज्यारे नूखथी रह्यं न जाय,त्यारे त्यांथी उठी करीने उतावलें उतावलें रसोश्नी जग्यामां जे रसोइ हाजर होय, ते खा लिये, पण सुखादनीके कुखादनी कां पण
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चतुर्थ स्थूल ब्रह्मचर्य व्रत: तजवीज न करे, फरी पण त्यांथी उठीने पोताना धंधामां-वलगे. तेवी रीतें समकेती, देशव्रत धारी पुरुष, परलोकना सापेक्ष धंधामां मन रहे.एवामां कामसंज्ञा उदय थश्, त्यारें अंतरजाव लाज म र्यादा पुगंगादिकने अनुसरतां ते कामसंज्ञाने गणतीमां न गणे. एम करतां अतिवेदोदय थाय,त्यारे व्याकुल थाय तो तत्काल उ तावलथी कंदर्परोग निवारण करीने, फरी पोताना खकार्यमां प्रव ते तो ते व्रती, कामसंज्ञा वधारवानी श्छा शा माटें राखे? शुक श्रद्धावंत श्रावक तो मैथुनसेवानी जग्याने जेवु कांफरुखार्नु होय, तेवु करी जाणे.अने कहे के ए मलीन जग्याजे, तेनी श्छा ते वडि नीतिनी वेलाशिवाय बीजे वखतें न रहे. तेवी रीतें मैथुन पण नि षेध . दोषनुं स्थानक .याप्रमाणे त्रीजो अतिचार जाणवो.
४ चोथो पर विवाहकरण अतिचार. ते ए के, जे पोताना संताननो अथवा परजातिनो अथवा अपणी नात जातमा पोता नुं माहापण जणाववाने अर्थे आगल थश्ने विवाह करी आपे. को वस्तु वानुं अथवा अव्यादिकनी सहायता करे, अथवा प्रेरणा दिक करीने कोश्नी पासेंथी अपावे. तेणे करी ते विषयी प्राणी ने स्त्रीनो लाज थयो त्यारे ते पुरुषतो तेनुं सारूं कहे. बीजाउँने कहे के फलाणाने त्यां फलाणे माझं घर वसाव्यु.जो एवा हता,तो श्रा विवाह थयो.नहीं तो मारा शा हाल थात? एवी रीतनी अ
जननामोढाथीपोतानी प्रशंसा सांजलीने बहुजखुशी थजाय. तेने जोश्ने बीजा पण जेजे विवाहना अर्थी होय, ते आवीने ते नी खुशामद करे, स्तुति करे,ने कहेके, आप साहेव जेवा परोप कारी थोडाज नजरे आवे? एवां वखाणनां वचन सांजलीने तेने कहेके,कांश काम काज होय, तो मने कहेजो. सजन सम्मत करजो.अमारो तमारो एक वास्तो बे.एवी रीतें विवाहादिकनो सजनसंबंध, संसारमा जग्याए जग्याएं कराववो, ए अनर्थनुं वी
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चतुर्थ स्थूल ब्रह्मचर्य व्रत. ज वाववा जेवू दे. तेवू करवाथी व्रत शुद्ध न रहे. श्रने काम श्र धिकरण वधारतां संसार वधे. श्रावकने तो पोताना घरमां पण को एवं कार्य कर होय,तो ते बीजाने नलावीने पोते न्यारो ने न्यारो रहे.तो जे व्रती थश्ने परायो विवाह जोडावे, तेने चोथो अतिचार लागे. अहींयां पोताना घरसंबंधी तथा जेनाथी बूटा य एम नथी, एवा संबंधीनो विवाह करवानी जयणा, ते पण प रिमाण राखी लेवु. एमज स्त्री पण पारका विवाहमां मोड प्रमुख वांधे, ने पागल थश्ने कुलधर्म वजावे. त्यारें अतिचार दोष लागे. __५ पांचमो तीव्रानुरागअतिचार. ते एके जे कोश, स्त्रीउपर ती व अभिलाष धरे. पारकी स्त्रीने जोश्ने मनमां वहुज चाहना करे. ते स्त्री विना क्षणमात्र पण रही शके नहीं. हरतां, फरतां, जीव, तेनामांज वलग्यो रहे. तथा देहमा काम वधारवाने तथा संजोग सामर्थ्य करवाने माटे अफीण,माजम, नांग,अने बीजी पण धातु हरताल, पाराप्रमुख पट्टी,बंधेजनी गोली शोधे. इत्यादि तीवकाम रागथी करे; त्यारे ते पांचमो अतिचार लागे.अने स्त्री पण काम वृ कि करवानी अनेक योजना करे.जेम के योनिसंकोचन औषध,मांयां फलक,शीश,त्रिफलां,लोदर इत्यादिक अंगमांगोली करीने संचरावे अत्यंत उद्धं वेष जोवे.वहु हावनावादिक विषय लालसाकरे,त्यारें तेने पांचमोअतिचारलागे.ए पांचे अतिचार जाएं,पण आदरुनहीं.. अहीं स्वदारसंतोषव्रत वालाने ठेवटना त्रण अतिचार बे.अने श्राग लनावे अतिचार ते तेनेअनाचार .तथा परदारविरमणव्रतवाला ने तो ए पांचे अतिचार टे.स्त्रीने पण एज प्रमाणे अतिचार लागे.
॥ इति श्रीद्वादशवत विवरणे चतुर्थ स्थूलब्रह्मचर्यव्रत पंमित श्री उद्योतसागरगणिना कृतनापा संपूर्णा ॥४॥
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पंचम स्थूल परिग्रह परिमाण व्रत. . ५३
॥ अथ ॥ ॥पंचमस्थूल परिग्रहपरिमाणव्रत प्रारंनः॥
॥दोहा॥ सुमति दश् श्रीशारदा, ताके पद पणमेव ;
पंचम परिग्रह व्रत तणी, नाषा करुं शुन्नेव ॥१॥ हवे पंचम स्थूलपरिग्रह परिमाणवत,विगतवार सहित करीने लखी एं जैएं.परिग्रह एटलेजेसमस्त पणे बीजांडव्य नानाप्रकारनांग्रहण करवां, ते परिग्रह जाणवो. तेना बे नेदजे. एक बाह्यप्रव्य परिग्रह अधिकरणरूप, ते नवविध परिग्रह जे. बीजो नाव परिग्रह. ते ए के, चौद अन्यंतर ग्रंथिरूप जे परजाव- ग्रहण, समस्त आत्मप्र . देशथी सकषाय पणे बंध, ते नावपरिग्रह जाणवो. शास्त्रमा मूळ मुख्यवृत्तितेनेजाव परिग्रह केले.तेमांचौदग्रंथिनांनाम.तेकहीयें बैयें. १ हास्य, रति,३ अरति, ४ जय,५ शोक,६उगंबा, क्रोध,
मान, ए माया, १० लोन, ११ स्त्रीवेद, १२ पुरुषवेद, १३ नपुं सकवेद, १४ मिथ्यात्व, ए प्रमाणे चौद अभ्यंतर ग्रंथिजे.
अहींयां संसारी जीवने केवल अविरतिना बलथी हा श्रा काश समान अनंत अपरिमितले. ए अविरतिना उदयथी श्छा, 'अने श्याथी कर्म बंधमां पड्यो थको जीव, चारे गतिमां नटकेले. एमां कोअविराधकजीव,पुण्य प्रकृतिनाउदयथी मनुष्य जवादिक सर्व सामग्री जोग पाम्यो, अने सशुरुनी संगति पाम्यो. जेथी करी श्रीजिनवाणी सांजली त्यारें चेतना जागृत थ, चेतना सुधरी, त्यारे ते जीव, विचार करे के अहो! हुं समस्त परतावथी न्यारो,श्र बंधी, अबेद्य, अजेद्य, श्रदाह्यधर्मी एवो तो श्छावश पड्यो, सम स्त बेदन, नेदन, परिजमणादि कुःखनो जोगी, परधर्मी थयो;तोह
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५५ पंचम स्थूल परिग्रह परिमाण बत. वे इंसमस्त परजावन मूल जे श्ला, तेने दूर करुं, एवी चेतना यश त्यारें समस्त परजाव त्यागरूप चारित्र आदरे अने जेने बहुज र सिक अविरतिपणाना वलथी समस्त परिग्रह मूळ एका एक बूटे नहीं. तथा दोषथी पण मरे, त्यारे ते लघुमार्ग जे देशविरति पणुं तेादरे.श्या परिमाण व्रत धरे.तेश्या परिमाण व्रत नव प्रकारेने.
१ तेमां प्रथम धनश्यापरिमाण. ते धन, चार प्रकारनुं जाण Q. तेमां प्रथम गणिम धन कहीए. ते एके जे वस्तु नंग गणीने वे चाय. ए श्रीफल प्रमुख जाणवां. २ वीजुं धरिम धन. ते ए के जे वस्तु, तोलथी वेचाय. ए गोल, साकर, करियाणा प्रमुख. ३ त्री नुं मविधन. ते एके जे मापथी वेचाय, जेम दूध घृतादिक. ४ चोथु परिवेद्य धन, ते एके, जे परिदायें वेचाय जेम सोनु, रू', जवाहीर अने वस्त्रादिक, नाणांप्रमुख परीक्षायें वेचाय.ए चारे धन कहीये. तेनुं जे परिमाण करवं, ते धन परिमाण व्रत जाणवू.
२ वीजुं धान्य परिग्रह, ते चोवीश जातिनुंबे, ते लखीएं एं, १ शालि, २ गहुँ, ३ जुवार, ४ वाजरी, ५ जव, ६ मग, मठ, G अडद, ए बूट, १० वोडा, ११ मटर, जवनी साथें थायठे ते. १२ अरदड एटले तुवर, १३ किसारी, १४ कोडा, १५ कांग, १६ चणी, १७ वाल, २७ मेथी, २ए कलथी, २० मसूर, २१ तल, २२ मंमवो, २३ कूरी, २४ वंटी. ए चोवीश धान्यनी जाति व्यवहार मां सदा खावा लायकडे ते लेवां. वीजां पण १ धाणा, २ नोंडी, ३ सुवा, ४ अजमो, ५ जीरे, एपण धान्यनी जातिमांवे ते औ पधादिकमां को प्रकारे काम आवेने, वली वीजां पण धान्य. जे वांके, १ सामो, २ मणकी, ३ नूरट, ४ चेकरिया, आ धान्य मार वाड देशमां प्रसिद्ध.वीजुंपण चिरिया,मोठ,अडकधान,खडधान, जे वाव्या विना जगे अने जे काल ःकालमांखावा लायक. ए सर्व जातिनां अनाजनुं जे परिमाण, ते धान्यपरिमाणवत कहीएं.
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पंचम स्थूल परिग्रह परिमाण व्रत. ५५ ३त्रीजु क्षेत्रपरिग्रह व्रत. क्षेत्र एटले खूसी नूमी,अथवा वा ववानी तथा बगीचो करवाती जग्या. तेना त्रण नेद बे. एक एवी 'जातिनी के, जेमां वरसादना पाणीथी धान्य नीपजे. एक जमीन एवीके, जेमांकुवाना पाणीथी धान्य नीपजे अने एक जमीन एवी के, जेमां वरसादना पाणीथी पण धान्य नीपजे. अने कुयाना पा णीथी पण धान्य नीपजे, तेनुं परिमाण ते क्षेत्र परिमाण व्रत.
४ चौथु वास्तुपरिमाणवत. एटले जे घर, हवेली. पुकान प्रमु ख, तेना त्रण नेदले. तेमा ए खातवास्तुक ते नोयरां प्रमुख, बीजो जति वास्तुक ते ए के जोय,तहखानु,ए विना उंची एक मालनी,बे मालनी, त्रण मालनी. एम यावत् सात मालनी हवेली जाणवी.एनुं जे परिमाण राखे, ते त्रीजो नेद खातोधित वास्तुक. ते ए के, नोयरां, तहखाना,कूवा,टांकां, एसौ हवेलीनी अंदर होय, तेने खातोद्रित कहिएं. तेनुं जे प्रमाण राखे,ते वास्तुकपरिमाणव्रत. ____५ पांचमुं रूप्यपरिग्रहपरिमाण व्रत. ते ए के, शिका विना काचा रूपानो तोल, तेनुं परिमाण करी राखे,ते रूप्यपरिमाण व्रत. ६ बहुं सुवर्णपरिग्रह परिमाण व्रत.ते एके रूपानी जेम अघड, शीका विनाना सोनाना तोलन परिमाण करी राखे, ते सुवर्ण परिमाण व्रत.
सातमुं कुपदपरिग्रह परिमाणवत. ते ए के, कुपद केहेतां 'त्रांबु, पीतल, रांग कांसुं सीसुं, नरत लोढुं, ए सौ धातुना वास णनां परिमाणनो तोल करीने राखे, ते कुपद परिमाण व्रत जाणवू. ज्याउमुंमुपदपरिमाण व्रत. ते ए एके,मूल्यापीने वेचातां लीधे लां, दास,दासी,तेपद कहिए.पण चाकर गुमास्ता प्रमुख ए वर्गमा गणाय नहीं. एनुं जे परिमाण करी राखे, ते उपदपरिमाण व्रत.
ए नवमुं चोपद परिग्रह परिमाण व्रत. ते ए के गाय, जेष,घो डा, बलद, सूतर, बकरी, गामरी प्रमुख चोपगा जीव तेमने केट ला राखवां तेनी गणतीतुं परिमाण करी राखे, ते चोपद परिग्रह
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५६ पंचम स्थूल परिग्रह परिमाण व्रत. परिमाणवत जाणवू. हवे पोतानी श्छा प्रमाणे केटलो परिग्रह राखवो, तेनो विवरो लखीयें बैंएं. १प्रथम धन परिमाणमां रूपं,सोनु, अण घड्यु, तथा घड्यु,अटलु राखं त्यार पठी रोकडा रूपैया असरफी तथा जवाहीर प्रमुख श्र टला अमुक हद्द पर्यंत राखवानी तो जयणा ने परंतु प्रमाण उप रांत पुण्ययोगथी वधे तो धर्म प्रीतिएं करीने धर्मस्थानकमांखरचं.
२ धान्य प्रमाणमां एम के, वर्षमां आटला मण धान्य राख वानी जयणा. तेनो विवरो कहे. आटला मण घर आश्रित खर चसारु तथा आटला मण बाहार वीजा कोश प्रकारना खरच माहें वापरवामां आवे, तेनी जयणाले. उपरांत नहीं. अने व्या पारनी विगत तो सातमां गुण ब्रतमां लखवामा आवशे. ___३ क्षेत्रपरिमाणमां श्राटला विघा जमीन राखवानी मने ज यणा. उपरांत नहीं. क्षेत्र, वाडी, वाग, बगीचा प्रमुखनी जमीन संबंधी पण सर्व एमांज श्राव्यु.
४ वास्तु परिमाणमां खडकीबंधघर अमुक हद्द सुधी राखवां. तेनी जयणा. तथा बूटी कुकान, तथा तवेला, आटला गोखानां, तथा आटती वखार. वली जो पुण्यना उदयश्री लक्ष्मी वधे तो हाथी प्रमुख वांधवानां स्थल राखवानी जयणा. तथा परदेश सं वंधी व्यापारनी पुकानो अमुक हद्द सुधीराखवानी जयणा. तथा आटलां घर नाडे देवानी जयणा, आटला नाडे राखेला घरने सम राववानी जयणा. तथा कुटुंवसंबंधिना घरोना आदेश उपदेशनीज यणा.तथा पोताना संबंधी परदेश गया होय; तो तेना घर प्रमुख स मराववानी जयणा. कोइस्नेही गुमास्तो अथवा चाकर परदेशगयो होय, त्यारे तेना घरने समारवानी जयणा. तथा आजीविका हेतुयें कोश्नी चाकरी करवी पडे,त्यारे ते धणी घर अथवा हवेली कराव वार्नु काम सोपं त्यारे ते काम करवा तथा कराववानो आगार वे.
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पंचम स्थूल परिग्रह परिमाण व्रत. ए७ , ५ रूप्प परिमाणमां रू' आटला शेर अथवा आटला मण पर्यं त राखवानी जयणा.अने जवाहिरने तो धनपरिमाणमां गणे,जे. ए सह पोतानी निष्ठाना घरमां घरनी अजनाशजे.
६ सुवर्ण परिमाणमां सोनू, आटला तोल सुधी प्रमाण करी राखq. अने ए सोनुं, रू', जवाहिर प्रमुखना व्यापार आश्रि तो सातमा व्रतमां लखीशुं.
कुपद परिमाणमांत्रांबु, पितल, रांग, लोढुं, कांसु तथा जर त.ए सर्व मलीने धातुनां वासण आटला शेर अथवा आटला मण पर्यंत राखवानी.जयणा अथवा बीजा कोई जातना घडेला घाट आटला तोल प्रमाणे राखवानी जयणा, उपरांत निषेधले.
दुपद परिमाणमां दास, दासी वेचातां लेवां, तेव्रत माफकरा खवानी जयणा. उपरांत राखवानो निषेध. तथा गुमास्ता के चाकर प्रमुख राखवानी तो जयणा. ए चोपद परिमाणमां गाय, नेष, वत्स सहित, तथा सांढ सहित अमुक संख्या प्रमाणे करी राखवानी यजणा, वली तेमनी जेउलाद वधे, ते राखवानी जयणा, घोडा, घोडी, जलाद सहित एटलां रा खवानी जयणा. बलद एटला राखवानी जयणा. बकरी लाद सहि त एटली राखवानी जयणा. सूतरी एटली राखवानी जयणा. हा श्री एक, चार, दश अथवा अमुक संख्या सुधी राखवा, तेनी जय णा, ए शिवाय वीजा पण कोजातनां चोपद जनावरो पोताना लोग निमित्तें अमुक संख्या सुधी घरमा राखवानी जयणा. उपरांत को लेणामां अथवा को बीजी रीतीएं शिरपाव, नजराणा प्रमुख वदीश दाखलाव्याहोय,तेने राखवांनो आगार.बीजानो निषेध. एम वीजां पण घरवखरीनां एटले घरमां वपरातां राठपी मोटां अथवा बोटां तथा वस्त्र प्रमुख ए सहु अधिकरण सर्व मलीने आट ला शेकडा रूपैयानां अथवा आटला हजार रूपैयानां राखवानी
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५७ पंचम स्थूल परिग्रह परिमाण व्रत, जयणा, उपरांत निषेध, वर्षमां श्राटला मण घृतनी जयणा. वर्ष प्रत्ये तेल मण आटलानी जयणाः वर्ष प्रत्यें परचुरण करियाणां मण आटलांघरखरच सारु राखवानी जयणा, एटले घरमांत्राटद्धं राखीश तेनुं प्रमाण करी राखे, तेनी जयणा, उपरांत निषेध. व प प्रत्यें आटला मण खूण एटले मी राखवानी जयणा. उपरांत निषेध, वर्ष प्रत्ये गोल, मिशरी, खांस, चीनी साकर विगेरे आटला . मण घरखरच सारु राखवानी जयणा, उपरांत निषेध. ___एवी रीतें बीजी पण कोश्चीज, घरसंबंधी वापरवा सारु आट ली हद्द पर्यंत राखवानी जयणा. ए सहु एवीरीतें पांचमा व्रत मां घर संबंधी ज्याने अने व्यापार संबधी तो सातमा व्रतमांक हेवीवे. हवे ए श्वापरिमाण ब्रतना पांच अतिचार, ते लखेडे.
१ तेमां प्रथम धनपरिमाणातिकम अतिचारले. ते ज्यारें धन, श्वापरिमाणथी वधारे थाय त्यारे लोन संशाथी मनमां मनसुवा करे के आ पांच हजार तो नोकराना जमे करीएं, केमके बोकरो पण महोटो थयो एने पण जोश्शे, अने एने आपq, ते पण मने योग्यवे. एवा कुविकल्प करीने दीकराना पांच हजार रूपैया जूदा करी राखे; अने वली अनाज चावल प्रमुख श्याप्रमाणे तो घरमां तैय्यार पड्यु तोपण फरीबीजुंअधिक, जरी राखवामांलानजाणे, त्यारे धान्यनो शोदो करी राखे, अने जेनी साथें तेधान्यनो शोदो कस्यो होय, तेने कहे के ए अनाज अमे लीधुंबे, ते तमे तमारा घरमां हमणां राखो, अमारे जेम जोश्शे तेम अमे लेता जश्शुं. एवी रीते ठराव करीने जेम जेम घरमां धान्य जोएं, तेम तेम ते धान्य तेनी पासेंथी लावे अने पोताना अज्ञानथी मनमा एम जाणे जे मारे तो श्चापरिमाथी अधिक धान्य, घरमा राखवानो त्याग वे, अने ए धान्यतो वीजाना घरमा रह्यं ; एमां मने झुं दूपण ठे? एवा मनमा कुविचार करे. अथवा पूर्व नियम लेवा वखतनो
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___पंचम स्थूल परिग्रह परिमाण व्रत. . ५ए काचो मण मरिमाण करी राख्यो अने देशांतर गये थके त्यां पाका मणनी चाल होय, तो पण ते मणने काचा मण परमाणे गणी राखे. एवा जे कुविचार करे, ते प्रथम अतिचारले. ____५ बीजो क्षेत्रप्रमाणातिक्रम अतिचार. ते ए के जे, वास्तु परिमाण राख्यु होय, तेनाथी वधारे वास्तु थाय, त्यारें बेहु घर नी वच्चेनी दिवाल होय ते तोडी पाडे; अने ते बे घरनुं एक महोटुं घर करे. क्षेत्र, बगीचा, वाडी प्रमुख तोडी नाखीने महो टो बगीचो करे. तेमज क्षेत्र पण महोटुं करे; अने मनमा एम विचारे के में जे परिमाण राख्यु बे, ते तो अखंग बे. जे कारण माटे गणती तो एक अथवा बेनी राखी हती, ते गणती प्रमा णे तो बराबर राख्यु ने अने महोटुं करवामां शो दोष ? गण ती तो तेटलीने तेटलीज . एम जे करे, ते बीजो अतिचार.
३त्रीजो रूपुं अने सुवर्णप्रमाणातिक्रम अतिचार. ते एम के, श्छा परिमाणथी ज्यारें वधारे थाय, त्यारें पोतानी स्त्रीनां घरेणां प्रमुख नारे तोलनां बनावे, अथवा तेउनी निष्ठायें करीने राखे. कोश् नाजन एटले वासण प्रमुख सोना रूपानां होय, ते पण तोलमा जारे घडावीने राखे, ते त्रीजो अतिचार. ४ चोथो कुपदपरिमाणातिक्रम अतिचार.ते एमके, त्रांबु, पीतल अने कांसाप्रमुखनांजाजन,अथवा बीजांराबरचीलांजे गणतीमां प्रथम राख्यां होय अने ज्यारें संपदा मली, त्यारें यद्यपि ते नाजन, गणतीमां तो प्रतिज्ञापरिमाणनी संख्यानांज राखे, पण तोलमां बमणा त्रमणा शेरनां बनावे. अने मनमा एम धारणा धारे के, मारु व्रत तो अखंग.नाजननी गणती तो में जांगी नथी !! अथवा व्रत लेती वखते काचो तोल राख्यो , अने कोश्पर देशांतर गये थके त्यां पाका तोलनो व्यवहार . हवे पोताना अशानदोषथी विचा रे के, काचा पाकानी शी चर्चा ? अमारे तो सर्व जणशनो संम
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षष्ट दिशि परिमाण व्रत. त, शेर अथवा मणना प्रमाणथी बे. अमे कांश शेर वधाख्यो नथी. अथवा अमारी खातरदारीने माटे पण कोएं बनाव्यो नथी. श्र मारे तो शेरथी प्रतिझाडे. काचा पाकानो श्रमे कांश हिशाव राख ता नश्री, एबुं करे, ते चोथो अतिचार जाणवो. ___५ पांचमो छिपद चतुष्पदपरिमाणातिकम अतिचार. ते एम के दास, दासी, घोडा, गायो, वलद अने बीजां पण चोपद प्रमुख जनावरो पोताना प्रमाणथी अधिक थयां जाणे, त्यारे तेउने वेची नाखे अथवा गर्नग्रहण विलंवथी करावे, गणतीमा तेमांना वेचे, त्यारें गर्नग्रहण करावे अथवा नाइके पुत्रनी निष्ठायें करीने राखे, एटले पोताना परिमाण माफक कदेवामा राखे. एवी कुटिलता पोतानी अज्ञानताएं करे, ते प्राणीने पांचमो अतिचार लागे. ए पांचे अतिचार जाणवा, पण आदरवा नहीं. पण अहींयां क्षेत्र, वास्तु, चतुष्पदादिक, कोइ मागणा लेणामां आवे, ते ज्यां सुधी वेचाय नहीं त्यां सुधी अधिक राखवां पडे, तेनो आगार.. ॥ इति श्री द्वादशव्रतविवरणे पंचम स्थूलपरिग्रहपरिमाणवते पंमित श्री उद्योतसागरगणिना कृतनाषा संपूर्णा ॥ ५॥ एटले पांच अणुव्रत थयां ; हवे त्रण गुणव्रत लखेटे
॥अथ ॥ ॥षष्ठदिशिपरिमाणवत प्रारंनः॥
॥दोहा॥ प्रणमुं गणधर पदकमल, गौतम लब्धिनिधान ;
अब गुणवत विवरण कहुँ, पष्ठम दिशिपरिमान ॥१॥ हवे त्रण, गुणव्रत कहे, ते पहुं. सातमुं अने थाउमुं. एत्र णने गुणव्रत कहीये. तेमा छा व्रतमध्ये दिशिनो विचार कहीशु, , ए माटें ए वतनुं नाम दिकपरिमाण व्रत, ते लखे. जे कारण
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षष्ठ दिशि परिमाण व्रत. माटे पूर्व जे पंचाएं व्रत कह्यां, तेने ए गुणकारी. ए त्रण व्रत थी पंचाणुं व्रतनी पुष्टि थायडे एमाटे गुणव्रत कहेवाय बे. ते केवी रीतें ? तोके ज्यारें दिशिपरिमाण कऱ्या, त्यारें दिशिनियम क्षेत्रथी बाहेर जे जीव रहे, तेमने अजयदान दी, तो पहेलुं प्रा णातिपात व्रत, तेनी पुष्टि थर. तथा ए देवगत जीवोथी जूवं बोलवानो त्याग थयो, एटले बीजुं मृषावाद व्रत, तेनी पण पुष्टि थ. तथा ते देवनी चीज, दीधा विना लेवानो त्याग थयो, एट ले त्रीजुं व्रत जे अदत्तादान, तेनी पुष्टि थर. तथा ते क्षेत्रगत स्त्री थी काम नोगानिलाष मट्यो, एटले चोथा ब्रह्मचर्य व्रतनी पुष्टि थर, तथा ते देत्रगत वस्तुना क्रय विक्रयना निषेधथी परिग्रह मूळ कमी थइ,एमाटे पाचमा परिग्रहपरिमाण व्रत्तनी पुष्टि थ.तथा ते देवना व्यापार संबंधी अढार पापस्थानकनो त्याग थयो. ते माटे ए व्रत, पांचे व्रतने गुणकारी बे. तेकारणमाटे एने गुण व्रत कले. त्यां दिक्परिमाण ते चारे दिशि, तथा चार विदिशि अने ऊर्ध्व तथा अधोदिक्परिमाण व्रत बे. ते दिक्परिमाणव्रतना वे नेद बे. एक व्यवहारथी, अने बीजो निश्चयथी.
१ तेमां एक व्यवहारथी दिकूपरिमाण. ते स्वकायाएं दिशिएं . तथा विदिशियें जावानो अने माणस मोकलवानो तथा व्या पार प्रमुख करवानी श्छा तेनुं परिमाण करीने राखे, ते व्यवहार दिपरिमाण व्रत.
२ तथा बीजु निश्चयथी दिक्परिमाणवत. ते जे गतिगम न ते सर्वकर्मनो धर्म . कर्मवशे पडयो जीव, चारे गतिमाहे नटके .परानुयायी चेतना थश्त्यारे जीव, परस्वनावने अनुसर तो थियो, तेथी गतिघ्रमण करे,पण जीव तो शुद्ध चैतन्यरूप अ गतिस्वजाववान् तथा स्थिर निश्चल स्वत्नाववान्जे; एवं श्रीजिन - वाणीना उपकारथी जाण्युं त्यारे चेतना, शुद्धस्वरूपानुयायी थ
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षष्ठ दिशि परिमाण व्रत. व त्यारें पोतार्नु अगति स्वरूप जाणीने सर्वदेवथी उदास रहे, एटले सर्वदेत्रसाथे अप्रतिबंधक नावें वरते; ते निश्चयदि शिव्रत.
१ अहींयां दश दिशिपरिमाणना बे नेद ..एक जलवटनो, अने वीजो स्थलवटनो. त्यां प्रथम जलमार्ग एटले वहाणमां वेशी जदूं अने स्थलमार्ग एटले खुशकीने मार्गे जर्बु ते.तेमांजल मार्गे अमुक दिशियें फलाणावंदर सुधी जवू,एम राखे.कारण के जलमार्गनी कोशगणती संख्यामां न आवे, तेथी बंदरनो नियम करी राखे. तेमां पण पवन तथा मेघ गांधी प्रमुखना तोफानमां वहाण क्यहां क्यहां ले जश्नाखे,अने वली अजाण पणे नूल चूकथी अधिकवतासथी गणती,जे बंदरनी हती तेथी दूर वीजा वंदरमां लश् जश्ने नाखे. तो तेनो आगार बे..
२ तथा वीजो स्थलमार्ग.ते स्थलमार्गे आपणे पोतें जे देवें व्रत उचास्यां होय त्यहांथी चारे दिशि, चारे विदिशि सुधी योजन, गाज,कोश प्रमुख.एम जेटलुं जवानुं परिमाण कझुबे,तेटती हद सु धीअमने जवानी जयणा .तेमां पण चोर अथवा को म्लेहादि कना बंधनमां पडवाथी ते धारेला नियमथी अधिकगाज,कोश उ पर ले जाय तो, तेनी पण जयणा. कारण के परवश पडयाथी नियम उपरांत जवानुं थर जाय, तो तेनो दोष नथी. तथा ऊर्ध्व दिशिएं वारकोशजवानी जयणा.अधोदिशिएं आप कोश सुधी जा वानी जयणा. तेमां पण उंचुं चढीने नीचे उतरवार्नुथाय, ते गणती मां नहीं, तथा नियमदेवथी बाहेरनु कोश्क उलखाणवालानुं पत्र श्रावे,ते वांचवानो तथा फरी तेनो उत्तर लखवानो श्रागार. पण पोतानी तरफथी विना कारणे पत्रादिक न ल. परदेशनी विकथा सांजलवानो आगार.को लेदेणादिक महोटा प्रयोजने आजीविकाना जयथी हक्क लेवाने अथे श्रादमी प्रमुख तगादो क रखामाटे मोकलवोपडे,तेनोमनेागार.बली दिशितया विदिशितुं
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षष्ठ दिशि परिमाण व्रत. परिमाण, पांचशे पांचशे कोश प्रमुख जेटलु राख्युंजे. हवे श्रागल कोपापनाउदयथी तथाराजजयथी अथवाआजीविकाना नयथी जे गाम अथवा नगरमा वसता हता, ते नगरथी शो बशें कोश दू र जश् रहेई पडे; तो पण पूर्वदेत्र परिमाण जे राख्युं हतुं, तेज राखे, अने तेटलीज हदमां जश् रहे, पण ते परिमाणथी दूर जq नहीं.आगलथी जे पोताना निवासना गामथी आगार, राखी ली धो होय, त्याथी शो अथवा बशो कोश दूर ज पोतानो निवा स नवो करयोजे, तो पण पूर्वे जे पांचशे कोशनी गणती जे गा मथी राखी हती तेज राखे पण बोडे नहीं.जे पूर्व प्रतिज्ञा करी होय तेज पाले. एवी विगतें करीबईव्रत . ए बहा व्रतना पांच अतिचार बे, ते लखियें बैयें.
१ तेमा प्रथम, ऊर्ध्वदिप्रमाणातिक्रम अतिचार. ते एम के, अनाजोगथी बेसुरतिने तीधे तथा को पण बीजा कारणथीप्र माण करतां विशेष गमन करे, त्यारे तेने प्रथम अतिचार लागे,
२ एवीज रीतें बीजो अधो दिशिप्रमाण पूर्वरीतें अतिक्रमे, त्यारे तेने बीजो अतिचार लागे.
३ तेमज तिईि चारे दिशिविदिशिप्रमाणातिक्रम अतिचार बे. ते ज्यारें अनाजोगादिकें करी एना प्रमाणने अतिक्रमे, त्यारेंते त्रीजो अतिचार जाणवो. अहीयां अनानोगें पोतें दिशिप्रमाणा तिकम करे अथवा नियमनो नंग थशे, एवा नयथी गुमास्ता प्रमुखने मोकले, त्यारें त्रीजो अतिचार जाणवो.
४ हवे चोथो अतिचार. ते एमके, जे एक दिशियें शो योज न परिमाण राख्युंजे, अने एक दिशिएं पचाश योजन परिमाण राख्यं. तेमा कदाचित् को दिशियें दोढशो योजन जवान का म पडे, त्यारें पचाश योजन बीजी दिशिएं जवाना परिमाणना हता, ते जे दिशिएं जवू पडे, ते दिशिना योजन, परिमाणमां नेल
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सप्तम जोगोपजोग विरमण व्रत.
वी लेने ज्ञानेकरी एवं विचारे के, शो योजन पूर्व दिशिना मोकला राख्या हता, तेमां पचाश कोश दक्षिण दिशिना हता ते, मां श्रजं गणी लेडं. एटले दोढशोनी गणती थइ. अने ज ने दिवसें दक्षिण दिशि तरफ नहीं जाऊं, मात्र एकज दिशे जश्श. एमां मारुं व्रत पण नहीं जांगशे. एवा कुविकल्प करे, पण एक दिशिएं जवानुं काम पडवाथी त्यहांनुं त्यहां काम करे नहीं. जेटलो जे दिशिएं जवा श्राववनो नियम राख्यो होय, तेवीज प्रतिज्ञा न पाले, पण पोताना कार्यनी गरज पड्याथी उलट पालट करे अने एवी कुविकल्पना करे, ते वारें तेने चोथो प्रतिचार लागे.
५ पांचमो स्मृतिांतर्ध्याना तिचारते. ते एमके, दिक्परिमाण करी नेटला एक दिवस वीत्या पढी ते विसरी जायके, में तो अमुक दिशिएं जवानुं शो योजन परिमाण राख्युं हतुं, अथवा ए अमुक दिशिनुं लुं राख्यं हतुं. एवा विस्मयमां जीव पडे ने तेणे करी दिशिपरिमाणमा ते कमवेश करे, अधिक न्यून करे अथवा नि यम लइने कागल प्रमुखमां लखी राख्युं न होय अथवा बुद्धि विलास मंद पणे थयो, तेणे करी घणा दिवस वीत्या पठी चित्तनी चमत्ववृत्ति थइ जाय, त्यारें परिमाणनी वधारे के थोडी गणती करे. तेथी पांचमो अतिचार लागे. ए पांचे अतिचार जाणवा, पण आदरवा नहीं.
॥ इतिश्री द्वादशवत विवरणे राष्ट दिशिपरिमाणगुणत्रते पंक्ति श्री उद्योतसागरगणिना कृतनाया संपूर्णा ॥ ६ ॥
॥ अथ ॥
॥ सप्तम भोगोपभोगविरमणव्रत प्रारंभाः ॥ ॥ दोहा ॥
;
व सप्तमकी विधि रचों, पाले जविजन लोग यह है गुणव्रत दूसरा, नामे जोगोपोग ॥ १ ॥
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सप्तम जोगोपजोग विरमण व्रत.
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ed जोगोपोग गुणत बीजुंबे, जे कारणे, ए व्रत यादवा थकी सचित्त चीजनुं खावानुं बोडे, अथवा परिमाण करी राखे. तथा जेमां घणोज प्रारंभ होय तेवो व्यापार न करे, एटले जेमां बहु हिंसादिक अवश्य करवां पडे, एवा व्यापारनो त्याग करे, अ
aerat परित्याग करे. एटला नियम, या व्रतमा सीधा जाय बे. ते माटे ए व्रत, पहेलां पांचे व्रतने सफल करनारंबे ने ए माटे ने गुणत कहीयें. हवे ए व्रतनी शैली सर्व लखेटे, तेमां गोपोगनतना वे दबे . एक व्यवहारथी, ने बीजो निश्चयथी,
१ तेमां प्रथम व्यवहारथी ते लक्ष्य नक्ष्यनी समजण पामीने तथा बीजी आश्रव संवरनी समजण पामीने, खानपानादिक जे इंद्रियसुखनां कारणबे, तेमां शक्ति प्रमाणे बहु आरंभ त्यागी ने
पारंजी थाय. ते व्यवहारजोगोपजोग विरमण व्रत कहीयें. २ तथा बीजो निश्चयथी, ते एमके, जे श्री जिनवाणी सांजली वस्तुतत्वनुं स्वरूप पामीने विचारे, जे जगत्मां परवस्तु लेइने खावी, ते हराम कहीएं. जे पारकी चीज खाय, ते हरामखोर कवाय. ते माटे जे नेकीवाला लोको बे, ते पोताना हक्कने लखे अने ते रीतें चाले. पण पारकी चीज ग्रहण करवा माटे खप्नमां पण इछा न राखे. एम हुं पण शुद्धचैतन्य नाव धारी, अने पर म सत्पुरुषनी जाति थइने, जे वस्तु सडे, पडे, ने जती पण रहे; एवा पर पुलना पर्याय बे, जगत्नी जे जूठ बे तेवा पदार्थों नो जोग मने हरामबे. परवस्तुनो जोग करवायी यश नथी, ने सामर्थ्य पण नथी, एवं विचारी परजावनो परित्याग करूं, तेणे करी स्वगुणवृद्धि थाय, एवी समजण पामीने पोताना श्रात्माने जगाडीने स्वरूपानंदी करे, चेतन विलास अनुमवे. ते निश्चय जो गोपजोग विरमणव्रत कहीयें. अथवा जोग शब्दनो अर्थ वली लखेडे.
सातमा व्रतना बे नेदवे. एक जोग, अने बीजो उपजोग,
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सप्तम जोगोपजोग विरमण व्रत.
ते कर्म व्यापारादि क्रियारूप एम बे, त्यां जोगना वली वे नेद बे. एक उपजोग, अने बीजो परिजोग, तेमां जे चीज एकज वार जोगमां आवे . जेम आहार, पुष्प ने विलेपनादिक, ते उप a. ने परिजोग एटले जे वारंवार जोगमां यावे ते, जेम जवन, वस्त्र, स्त्रीप्रमुख तथा कर्मथी एमबे एना नेद घणाबे, ते यगल ल खशुं, वे एक, ए जोगोपभोग ते जोजन वस्त्र स्त्रीयादिकथी तथा बीजो, कर्म व्यापार क्रियाथी. तेमां प्रथम जोजनादिकथी कहे.
त्यहां श्रावकने उत्सर्गमार्गे निरवद्य आहार लेवो, तेनी शक्ति न होय तो सचित्त वस्तुनुं परिहारी थनुं, कदापि ते पण न थाय तो स चित्त वस्तुनुं परिमाण करी लेबुं. अने बावीश अजदय, वत्रीश अनं तकाय प्रमुख दुर्गतिना हेतु जाणी, अवश्य त्याग करवा. एमां पण. पूरी शक्ति न होय तो, पोताना मंदवीर्यनो पश्चात्ताप करीने परि माण करीले. तेमां प्रथम वावीश अजक्ष्यनां नाम लखेडे.
१ वडनी पीपु, २ पीपलानी पीपु, पारस पींपलीनी पीपु, तथा ३. ल ए पण पीपलनी जातिविशेषठे, ४ जंवरनी, पीपु, ५ अने कालुंबरनी पीपु, ए पांचे वृनां फल अनदय बे, ए पांचे फलमां मरकी सरखा मरकी जीव बे. आकारथी ते जीव, सर्व सरखा थाय
·
. ए माटे ए पांचे फल अजय बे. वली ६ मध, मदिरा, Ե मांस ने ए माखण, ए चार वस्तु जेवो ए वस्तुनो रंगठे तेवाज रंगना तेमां निरंतर असंख्य जीवो उपजे ठे वली ए चारे वस्तु महा विगयठे. ए क्षण करवायी घणोज विगाड करे, का मादिक दोषोने वधारे. प्रथम तो ए वस्तु हिंसा कस्या विना यती नयी ने पठी पण चेतनाने बगाडे, ए माटे ए वस्तु जयते. वली पुराणादिक वैभवमार्गमां तथा कुराणादिक म्लेवशास्त्रमां पण मदिरा, मधु, मांसना घणा दोष कह्याठे, ए माटे ए चीजो तो, स्वपरदर्शनमां पण त्याग करवानी कहीवे. वली जांग प्रमुख ले
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सप्तम जोगोपोग विरमण व्रत.
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वाथी ते चेतनाने बिगाडे, माटे एने पण अजय वस्तुमां गणवी. मां पण शरदी रहेबे, ते कारणे एनाथी त्रसकाय जीवोनी घणी उत्पत्ति था, माटे एनो पण त्याग करवो.
१० तथा हिमना कांकरा एटले बरफ, ते पण अजय. कारण के, एमां कायना असंख्य जीवबे. खाधाथी ते चेतनाने मंद करे. शरदी करे. वली ए चीज खावानी कांइ जरुर पण नथी. ए बहु रंजक तां स्वादिष्ट पण नथी. ए बलादिकनी वृद्धिकारक पण नथी, ने वली श्री सर्वज्ञ परमेश्वरें पण प्रतिषेध करो. एमां प्रसंगदोष तथा संगदोष घणाबे, ए माटे ए पण अजय,
११ तथा विष जे फीए प्रमुख चीज. ते अजय बे. जे कार श्रीणादिक विषवस्तु खावाथी पेटना जे कृमि गंगोला दिक जीवढे ते सहु मरी जाय, वली चेतना मुंजाय ने ए चीजनी खा वानी देव पडी, ते बूटे नहीं. महोताद एटले मिजाज वधे. वख तें वखत जो ए विषवस्तु, खावा माटे न मले तो घणो क्रोध उप जे; शरीर शिथिल थाय. वली अमली माणसने व्रत करवानुं डु कर था, ने सारो स्वभाव होय ते बदलाइने नवारो थाय. ज्यारें अमल करे, त्यारे एक रंग होय, अने फरी उतरे त्यारें वली कां जर तरदेनो मिजाज थाय. छाने स्ववशपणुं बोडीने, परवश पडवुं थाथ. वली ए चीज खावामां पण बहुज बेस्वादवे. तथा फादि विषवस्तुने खावावालो, ज्यहां वढी नीति ने लघुनी ति करे, ते त्रमां त्रस तथा स्थावर जीवनी हिंसा थाय. ज्यां सु धी पेशाबनी शरदी जाय, त्यां सुधी पृथ्वीकाय प्रसुखना जीव एना गंध मरी जाय. ए माटें ए पण अजक्ष्यमां गणायडे. सोमल, वच . नाग, हरताल प्रमुख जे विषचीज ते पण एमांज गणवामां यावे. १२ वली जे मेघना करा एटले रोयडा, ते काचो गर्न मेघनो ग ले, तेना कराना कटका पृथ्वी उपर गलेबे, तेपण अशुद्ध द्रव्यंबे,
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सप्तम नोगोपनोग विरमण व्रत. एमां पण वरफना जेवो महा दोष. जिनआज्ञा विरुकने, ए माटे ए करा पण अनदयजे.
१३ तथा खडी माटी, पृथ्वीमा वहुजातिनी थायजे, ते अन यजे. कारण ए माटीमां पण असंख्य जीव. वली ए चीज खा वाथी पेटमा घणा जीवोनी उत्पत्ति थाय, तेमज पांमुरोग, आम वात, कवजीयत, पित्त, पथरि प्रमुख घणा रोग थाय, घणी मा टी खाय, तेना मुखनो चेहेरो पीलो थर जाय,मुखनी सुरखी ए टले तेजी जती रहे, को जातनी माटीमां मिंक प्रमुख जीव नी योनि, त्यां शरदी पामीने जीव सूक्ष्म उपजता होय एवामां तें माटी नक्षण करे तो पंचेंजिय जीवनी पण हिंसा थ जाय. माटी खावातुं जिनाझा विरुधबे, ए माटे ए अन्नदय.
१४ तथा रात्रिनोजन तो प्रत्यद दोषनिधान, अने आ लोक तथा परलोकने विषे ए दुःख हेतुबेरात्रीना चारे आहार श्र नदय, जे कारण माटे रात्रीनोजनमां जेवो आहार होय, तेवा रंगना तेमां तमस्काय जीवो उपजे.वली आश्रित जीव संपातिम तेमां घणा आवी मले.रात्रीनोजन करवायी तेमां कांश नेलसेल होय, तेनी खवर न पडे तथा प्रसंगदोप पण घणा लागे केमके जो रात्रीयें नोजन करवानी टेव होय तो, नित्य रात्रे रसोश करवी पडे, त्यहां अग्निना योगें जीवोनो संहार थाय,श्रावकना कुलनो श्राचार पले नहीं, सूक्ष्म त्रस जीवो नजरें न आवे अने जो नजरें आवे तो पण यत्न न थाय. वली रसोश् करतां जे अग्नि वले त्य हां पासेंनी उत तथा दीवाल प्रमुखमा आश्रित जीवो रात्रीने वि पे जे बहु वेग होय,ते सर्व तापना योगें व्याकुल थवाथी अनिमां ज पडे तथा पतंग प्रमुख जीवो चक्षु इंडियना विपयें व्याकुल धश्ने अग्निमां ऊंपापात करी वती मरे. उत के उपरमां रात्रीने विपे सर्प, घरोली करोलीया, मटर प्रमुख घणा जीव वसता हो
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सप्तम जोगोपनोग विरमण व्रत. य, एवामां ताप लागे तेणे करी ते सर्यादिक जीवो व्याकुल थर मुखमांथी गरल नाखे, ते गरल कदापि नोजनमां पडे अने ते नोजन अजाणतां खाधामां आवे एटले आत्मानो घात थाय. व ली जे जोजन, दिवसें रांधी करीने राखी मूक्युं होय, ते पण रा त्रे न खावं, कारण एमां पण चीटी प्रमुख जीव चढे; तेनी ख बर रात्रीमां न पडे. ते जीववायूँ जोजन खावामां आवे त्यारें बु छिनो नाश थाय, एवं शास्त्र मध्ये पण कडं " मेघां पिपीलिका . हंति" ए माटे रात्रीयें नोजन कर, निषेध कडं बे. वली वासण मेलतां पण रात्री को जीवनी रदा पले नहीं. वली रात्रीयें नोजन करवावाला, परनवें उलूक, मंजार, मूषक, सर्प, वागु ल, चामाचेडीया प्रमुखनो नव पामे. धर्म पुर्खन पामे, अने पो ते रात्रीनोजन करे तो तेना पुत्र पौत्रादिक पण एज ढंगें पडे. ते पण तेवीज कुचालचालें चाले. एथी अशुफ परंपरा चाली जाय. अने जो पोतें प्रथमथीज सारी चालें चाले तो, एटले रात्रीनोजन न करे तो, पाबला पण सुचालें चाले. रात्रीनोजन मां प्रत्यद जीवहिंसाडे ते जोश्ने अन्यदर्शनीना जल वीजल श्रा गल धर्म पाम्या हता, ए जिनाझा विरुद्ध रात्रीनोजन . ने मु नि पण पंचमहानततुल्य बहुं रात्रीनोजन त्याग व्रत उचरावे . ए माटे रात्रीनोजन सर्वथा त्याज्य ने अने अजयने.
१५ तथा बहुबीज ते जेसा गर्न थोडो अने बीज घणां होय ते तुछफल कहीयें. रींगणु, वनस्पतिजाति विशेष, पटोल, खसख स, पंयोटा प्रमुख ए फलोमा जेटलां बीज तेटला जीवो . जे म नवटांक नर तिलमां, तेरशें जीवो तो खसखसमां तो एना थी केटलाएक गुणा वत्ता होय. ए माटे खावं थोडं ने जीवधात . घणोज थाय, एनाथी कां उदरवृत्ति तो थाय नहीं, तेमज रींगणा 'प्रमुख बहु बीजवाली चीज, खाय तो ते पित्तादिक रोगनी देतुने.
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go सप्तम नोगोपन्नोग विरमण व्रत. वली एवी चीजो खावी ते जिनाझा विरुफ. एमाटे अनदयने.
१६ तेमज आचार एटले बोला- अथाणुं जे नातनातनुं थाय बेजेमके,आंववेतीनु,पामलनु,लीबुनु,केरीतुं,केरडार्नु,किरमदानु,
आंवलीनु, काकडी प्रमुखनुं अने आईं नीली हलदर, जमी कंद, ग रमर इत्यादिनु अथाएं अथवा रातुं त्रण दिवस उपरांत अन्नदय वे. ए सर्व अथाणां तुबजे, त्रस जीवोनी खाण. वीला प्रमुख तो प्रथमथीज अनय बे, तो तेनुं फरी अथा' तो थायज केम? वि प तो हतुं ने पली वली तेमां फेर मेलवीने तेने वधालुं एटले तेनुं केवुज झुं? चोथे दिवसे एमां नियमा वेंजिय जीव उपजे, अने जो एवे हाथे स्पर्श करे तो पंचेंजिय जीव पण उपजे. अ न्यदर्शनीर्जना शास्त्रमा पण अथाएं, नरकछारतुल्य गण्युं. ए माटे ए पण सर्वथा अनदय.
१७ तथा विदल जे घोलवडा ते अन्नयने, जे कारणे ते वडां दालनां थाय. ते विदल धान्य जे कला, बूट, बोडा, मग, मठ, तु वर प्रमुखनां थाय. ए वडां ज्यारे काचुं गोरस जे दहिं महो, एमां नाखे त्यारे ते खावां अनदय. जे कारण माटे विदलमा दहिं म घानासंयोग मात्र तत्काल वेंजिय जीव उपजे. माटे जे कोश्चीज वि दलनी होय, ते महानी साथे मले तो ते अन्नयने. जे अनाजनी नीरस दाल होय, अने जेमां चीकणास न होय ते विदल जाणवु. पण राइ अने शरशव प्रमुख तेमांनी जे दाल दोय तेमां विदल दोष नथी. कारण, तेमां चीकणाश. अहींयां बाश प्रमुख गर म करी विदलमा मेलवे, तो दोप नथी. तथा बुध पण जो जर्नु न कयुं होय तो विदलनी चीज साथै खावु अयुक्तठे. कारण, तेमां वेंडिय जीवनी उत्पत्ति थाय. ए माटे विदलने काचा गो रसनी साथें खावं ते अन्नदयवे.
१७ तथा बंगण जाति अनदय. कारणके, वेंगणमां बढ़ती
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सप्तम जोगोपनोग विरमण व्रत. जो. तथा एना बीजमां सूदम त्रस जीव रहे. वली एवेंगण काम । संज्ञाने वधारे. निखाने वधारे.मति धीगी करे. ए अव्य,अति अशु कजे. एवेंगणनी जाति सर्व पण एवीज अनदय जाणवी, बीजी लीलोतरी प्रमुख तो सुकी करीने पण खावानी आझाले. अने ए ने तो सुकां करी खावानो पण निषेध. ए माटे ए अनयचे.
रए तथा अजाएयुं फल, ते पण अन्नदय. जे कारण माटे अजाण्यं फल. तेनी तरेह, गुण, दोषनी मालम नथी. तो ते केम खाधुं जाय ? कदाचित् विषफल होय, तो आत्मघात थाय. व्यग्र चेतना थाय, ए माटे अजाण्युं फल अनदय.
२० तथा तुलफल एटले वनबोर, जेने चणीबोर कहेले. ते तथा पीलूडां, पीचू प्रमुख तथा अत्यंत कोमल फल, फली, ते पण अन्नदयजे. जे कारणे एवी जीज घणी खाए तो पण तेणें करी तृप्ति थाय नहीं. वली पडीथी घणा दोषो लागे अने जे फल खाश्ने तेनी गोटली ज्यां नाखे, ते जग्यायें ते गोटलीमां संमूर्बिम पंचेंजिय जीव असंख्य उपजे. वती घणां तुझफल जे खाय, तेने सद्य एटले थोडाज वखतमा रोगोत्पत्ति थाय ए मा टे एवा तुब फलफलादि अजयडे.
१ तथा चवितरस पण अजय. जे चीजनो काल पूरो थ यो, स्वाद बदल्यो,तेनी मर्यादा पूर्ण थश्ते चवितरस कहीये. कोयु, सड्यु अन्न, बीजुं वासी रोटली, सीरो, कचोरी, तरकारी, खिचडी, वडा, नरम पूरी इत्यादिक अनेक रसोश, जेमां पाणीनी सरसार ही होय, ते चीज वच्चे एकरात व्यतीत थये वाशी थर एटले ते अजयजे. तथा मिग वर्षाकालमां सारी उत्तम प्रकारनी बेश ब नी होय तो, उत्कृष्ट पंदर दिवस सुधी नदयबे, पनी अजयने. अने जो तेनो वर्ण, गंध, सीताबी बदला ग तो काल परि माण पहेलां पण अनदय. तथा उसकालमा मिगश्नो का
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सप्तम जोगोपलोग विरमण व्रत. ल वीश दिवसनोले उपरांत अनदय. तथा शीतकालमां एक मास काल उपरांत अन्नदय. तथा दहि, शोल पहोर पड़ी अन दयचे. पण एकरात वीतेली जदय जाणवी. तेमज महानो काल पण ए प्रमाणेज जाणवो.ए रीतें जेटलो जेटलो जे जे वस्तुनो काल शास्त्रमा कह्यो, तेटलो तेटलो काल पूरो थया पली, ते चीज च वितरस थाय; ए माटे अजय, जे माटे चलित थाय, त्यारें असं ख्य वेंडिय जीव तेमां उपजेजे.ए माटे ए चवितरसनो त्याग कह्यो.
तथा वत्रीश अनंतकाय पण अजयने. जे कारणे, सोनी अणी उपर जेटलुं कंद मूल रहे, एटलामां पण अनंत जीवो बे. ते सहु सूदम, बादर, पृथ्वी, पाणी, अग्नि, वायु, ए सूक्ष्म बाद रना नेदें करी आठ प्रकार थया अने नवमुं. प्रत्येक वनस्पति ए नव जातिना सर्व जीवोथी पण अनंत गुणा जीव, सोश्ना अग्रमा गमां कंदनी जेटली जग्याने तेटली जग्यामांएटलांजीवो.एमाटे सर्व अनंतकाय अजय ॥२२॥इति वावीश अनय विवरणं॥
हवे वत्रीश अनंतकायनी जाति लखेटे. १ जे नूमिमध्ये कंद थाय, एवी सह कंदजाति, अनंतकाय जाणवी. सूरण कंद तेज मीकंद केवायजे, ३ वज्रकंद, ४ लीली हलदर, ५ नीलु आई कंद, ६ लीलो कचूरो, ७ सतावरी वेली औषधि, विराली लता विशेष सोफाली, ए कुआर, १० थोहरी कंद जे सीज तथा लंका सीजनी जाति ११ गिलो एटले गुलवेल, १२ लसण, १३ वंस करेला एटले वंस संबंधीनी कारेली, १४ गाजर, १५ लूणी एटले साजी वृक्ष, १६ लोढीपद्मनीकंद, १७ गरमर कबदेशमां प्रसिक, १७ किसलय कोमल पांदडां जे नवां उगतां सर्व गुडानां पांदडां, तथा सर्व वनस्पतिना जे जगती वखतना अंकूर होय, ए सहश्र नंत काय, एटले सर्व वनस्पतिनां जगतां पांदडां, यने जगता अंकूर, प्रथम अनंतकाय होय, पठी ज्यारें महोटां थाय,त्यारे कोई
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सप्तम जोगोपजोग विरमण व्रत.
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प्रत्येक वनस्पति थाने को अनंत कायपणे पण रहे, १७ खीरसूयाकंद कसेरु अनंतकाय, २० थेग ते येगीनी जाजी, मो थनी जाति, २१ हरिमोथ, एटले लीली मोथ, २२ लूंवृदनी बा ल, २३ खिलोडा कंद विशेष, जेने टींगोरुं कहेबे, २४ अमृतवेली, २५ मूलानी पाड प्रसिद्धबे, २६ भूमिरुहा ते भूमिफोडा कहीएं, बनाकर देशभाषाएं सापनुं बेसवुं, २७ वत्रूलानी जाजी, २० व verr प्रसिद्ध विदल धान्य, जेने अंकूर श्राव्या होय ते, २० सुर वल्ली जे रोहिमां महोटी सीम जेवी थायबे, ३० पलंकानी माजी शाक विशेष, ३१ कोमल वली ज्यां सुधी मांदे बीज संक्रमे न हृीं, त्यां सुधी अनंतकाय जाणवी, ३२ श्रालुकंद ते रतालु, पिंकालु विशेष ए प्रमाणे वत्रीश अनंत काय जातिनां सामान्य नाम ते कां ने विशेष नाम तो अनेकडे. ते एम जे, कोइ वनस्पति तो पंचांग अनंत कायबे, कोई वनस्पतिनां मूल अनंत काय, कोइ वनस्पतिनां पत्र अनंत कायबे, कोनां फूल अनंत काय, कोश्नी बाल अनंत काय, कोनुं काष्ठ अनंत काय, एम कोइनुं एक अंग अनंत काय, कोइनां वे अंग अनंत का बे, कोनां त्रण अंग अनंत काय, कोनां चार अंग अनंत कायबे, कोनां पांचे अंग अनंत काय.
हवे अनंतकायनां लक्षण लखेबे. जेणे करी अनंत काय जेल खाई जाय, ते लखेडे. जे वनस्पतिनां पत्र, फल, फूल प्रमुखनी शिरा एटले नस ते मालम न पडे गुप्त होय, जेना संधिनी मा लम न पडे, जेनी गांठ पण गुप्त होय, जे जांगी थकी बरोबर जांगे, जे बेद्या पढी फरी उगे, जेमां पांदडां महोटां गुज सरखां होय, सचिक होय ने मां घणां फल, पांदडां प्रमुख कोमल होय, ते सर्व लक्षण, अनंत कायनांबे. ए वत्रीश अनंत कायनां नाम कह्यां. अहींयां अक्ष्यवस्तु मां अफी, जांग प्रमुखनो जो प्रथमथी
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सप्तम जोगोपनोग विरमण व्रत. खावानो चाल होय, जेना विना चाले नहीं, ते खावा बूट राखे, तेनी जयणा. रात्रीनोजन. मासमध्ये चार अथवा पांच अथवा दश, तिथिना दिवस टाले. अथवा जेवी शक्ति होय, ते प्रमाणे राखे के एटला दिवसें रात्रीयें आहार करवानी जयणा. उपरांत निषेध. वीजा दिवसोएं त्रिविहार, विहार करुं अथवा चोविहार करुं अने वीजी पण अनय वस्तु, जे उशड वेशडमां को दिवसें स्वावामां आवे, तेनी जयणा. अने वत्रीश अनंतकाय निषेध करे, परंतु रोगादिक कारणे औषधमां लेवानी जयणा तथा अजाण पणे को अव्यमां नयां थकां आवे तेनी जयणा ने.
हवे चउद नियमनुं विवरण लखे ॥ गाथा ॥ सचित्त दव विगइ, वाणह तंबोल व कुसुमेसु ॥ वाहण सयण विलेवण, वं नं दिसि न्हाण जत्तेसु ॥१॥
अर्थः-श्रावकें यावत् जीव, पंचाणुं व्रतमांश्वा परिमाणमां को श्रागली अनेक तरेहनी कर्मपरिणतिनी संजावनायें करीने,पोता ना निर्वाह समर्थनो उदय अति उस्तर विचारीने घणी वस्तुनु परिमाण राख्यु होय,तेमांथी फरी नित्यनो श्राश्रव निवारणने माटे संदेप करवाने अर्थं चौद नियमनी दिनप्रत्ये धारणा राखे,ते कहेने,
र त्यहां प्रथम सचित्त परिमाणमां मुख्यवृत्तिथी तो श्रावकने सचित्तनो त्यागकरवो जोएं,जे कारण माटे अचित्त वस्तुना आहा रमां चार गुणले. प्रथम तो प्रासुक जलादिक पीधाथी वीजा सर्व सचित्तनो त्याग थयो. ज्यां सुधी अचित्त थयो नथी, त्यां सुधी मुखमां प्रदेप न करे, वीजो गुण ए के रसनेंजियनुं जीतq थयु. गमे तेवो वाद सचित्त वस्तुमां होय,तो पण खाय नहीं.केटलीक चीज तो रांध्या विनानी पण स्वादिष्ट लागे. परंतु सचित्तत्यागें करी, ते सर्वनो त्याग थयो. त्रीजो गुण ए के अचित्त जलादिक पीधे थके कामचेष्टानी शांति थाय. घडी घडी उपयोगमां जीव
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सप्तम लोगोपनोग विरमण प्रत. 5५ रहे के, रखे सचित्त वस्तु खावामां आवी जाय.चोथो गुण ए के, जेटलुं जलादि अव्य अचित्त कडे होय, तेनाथी जेटलाजीवोनी वि राधना यश, तेटली बंधकलावें चेतना थर एटलामांज चेतना रही, पण वली प्रतिक्षणे ते वस्तुमा असंख्य अनंत जीवोनी उत्पत्ति थाय, तेउनाथी विरोधिजाव मटयो. इत्यादिक बीजा प ण घणा गुणजे; माटे ते केटला लखियें?
जे अचित्त करवामां बकायनी विराधना थायडे, ए माटे एक ज कायनी विराधना सारी.एम कही ने जे सचित्तनो त्याग नहीं करे,ते जिनशासननु रहस्य नथी पाम्यो. जे सचित्त परिहारमा आत्मदमनता, उत्सुक्य निवारणता अने मंदविषयकषायपरि गति प्रमुख अनेक गुण थाय बे, ते नथी जाण्या एटर्बुज नहीं, परंतु जेणे करी खदया घणी थाय ते गुण तेणे न जाण्या; ए माटे सचित्तत्यागमां घणो लाज बे. एवं आगममां घणुं सूक्ष्म र हस्य बे. ते कोइ पण बमस्थ जीवथी आगमनो पार पामवो बह मुश्केल .जो हव बोडी करीने बहु बुछिनो खरच करे, तो कांश क रहस्य पामे, ए माटे बाहेर अल्पमतिनी कुयुक्ति सांजलीने मुंजावु नहीं. जैनशैली अति गंजीर ए माटे मुख्यपणे सर्व सचि त्तपरिहारीज थ;अने तेम नहीं बनी शके तो सचित्तनुं परिमाण करीलेQ के,आटलास चित्तनीमने बूट.इति सचित्त नियमप्रथमः
२ बीजो अव्यनियम. तेमां धातुमय शिलाकापात्र प्रमुख तथा पोतानी अंगुलि प्रमुख विना जे मुखमां खाए, तेने अव्य क हीएं. “परिणामांतरापन्नं अव्यमुच्यते” ए लक्षण अव्यमुंबे. त्य हां खीचडी,मोदक, वडां अने पापड प्रमुख वस्तु,घणां अव्य नि ष्पन्न तो पण परिणामांतरथी एक अव्य कहीये.घणां अव्य वि ना एक अव्य निष्पन्न.तो पण घनी रोटली, तथा बाटी, घुघ री, पोली, ढोकलां प्रमुख ए सर्व, जिन्न अव्य कहीएं. जे कारण
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६ सप्तम लोगोपनोग विरमण व्रत. माटे नामांतर, स्वादांतर अने रूपांतर तथा परिणामांतरथी व्यांतर थायजे. अथवा अहींयां को आचार्य, बीजी रीते पण अव्य विवदा कहेले; परंतु वहु वृद्धपरंपरासंमत एहज बे ए मा टे जव्यपरिमाण राखे के, आटलां अव्य, आजना दिवसमां हुं खाश्श. ए अव्य नियम बीजो जाणवो.
३ त्रीजो विगयनियम. तेमां दश विगयजे, तेमां चार महा विगय डे, एक मधु, १ मांस, २ मांखण, ३ मदिरा, ४ ए चारनो तो वावीश अन्नदयमा त्याग कस्योज ने बाकी न विगय : ते जदय. दूध, १ दहीं, २ घृत, ३ तेल, ४ गोल, ५ अने सर्व मि ष्ठ पकवान, ६ ए बए विगयमांथी एक, बे,त्रण बोडे बीजानी जयणा राखे, एना निविआता, पांच पांच जातिना एक एक विगयना कह्यावे. ज्यारें विगय त्याग कस्या, त्यारे ते नीविधाता पण त्याग करवा जोश्य, अने जो न ठोडया जाय तो, तेज व खत धारीले के मने विगयनोज त्याग पण नीवियतानी जयणा . इति विगय नियम तृतीयः ।
४ चोथो उपानह नियम, एटले जोडानो नियम. पगरखांनी जाति एटले जूती, खडाज, मोजा, बूट प्रमुख, ए जीवहिंसानां महो टां अधिकरणले. त्यां श्रावकने जिनपूजादिक कारणविना खडा ज पहेरवां नहीं अने जोडा विना तो चालवाने समर्थ नथी; ए माटे एनुं परिमाण करी लेवु के,भाजन दिवसमां आटला जूती ना जोडा पहेरीश, वीजानी जूती पगमा पहेलं नहीं, अ ने नूले चूक्ये वीजानी जूती पगमां पडे, तो तेनी जयणा. ए उपानह नियम चोथो. __५ हवे पांचमो तंवोल नियम. ते चोथो जे स्वादिम नामें आ हारते ते जाणवो. पान, सोपारी, लविंग, एलची, तज, तमा सपत्र, सीतल, चिणिकवाव, जायफल, जावंत्री, पीपलीमूल.
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सप्तम लोगोपनोग विरमण व्रत.
अने पीपर प्रमुख करिया' जेनाथी मुखशुद्धि थाय, पण उदर पूर्ण न थाय, ते चीज स्वादिम आहारविशेष तंबोल कहीये. ए नुं परिमाण करी लेवु के, आजना दिवसमा पाटलां तंबोल, मु खवास, ते शेर अथवा अईशेर, मारे खावां. एवी रीतें परिमाण राखे, अथवा संख्यायें राखे जे, बाटली चीज तंबोलमांखावी, ए पांचमो तंबोल नियम. ____६ बहो वस्त्रनियम. ते स्त्री पुरुषना पांचे अंगोनां जे वस्त्र, ते वेष कदेवाय. एनी संख्या राखे जे आजना दिवसमां एटला वेष मारे पहेरवा अने आटनां बूटां वस्त्र वापरवां. जे कारण माटे रात्रीएं पहेरवानुं तथा स्नानादिक करती वखत पहेरवानुं वस्त्र वेषमां गण्डे जाय नहीं. ए माटे ते वस्त्रने जूदां राखे, अ थवा वेष न गणे तो समुच्चय वस्त्रनी संख्या राखे के, आजना दिवसमां आटली संख्यायें मारे वस्त्र वापरवां. बीजां नहीं अ ने नेल संजेल पणे अजाणथी बदलाइने पहेरवामां आवे, तेनी जयणा. ए बहो वस्त्र नियम. उहवे सातमो पुष्पजोगनियम कदे.ते एमके, मस्तकमां राख वा लायक, गलामा पहेरवा लायक फूल तथा फूलनी शय्या, फूल ना तकीश्रा, फूलना पंखा, फूलना चंदरवा, अने जाली प्रमुख जे जे चीज नोगमां आवे. फूलनी बडी, फूलना सेहेरा, फूलनी कलंगी, फूलना तोरा इत्यादिक. अने फूलनी जातिमा जे सुगंधि फूल चो गमां आवे, तेनी आटती जव्यगणतिमां श्वापरिमाणे बूट राखे, तथा एटलां फूल, नाकें करी वास लेवानी धारणा प्रमाणे बूट रा खे. तथा आटली जातिनां देहना नोगमा लेवां मोकलां राखे, ते ना तोलनी गणती राखे, एवो नियम, उपयोग राखीने करे. जेट लुं पले, तेटर्बु तोल, वजन, गणती, जाति,व्यापार प्रमुख जेवी पो तानी शक्ति होय, तेवी रीतें राखे, ए पुष्पनियम सातमो. .
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सप्तम नोगोपनोग विरमण व्रत. ____ हवे श्राठमो वाहन नियम. ते रथ, गाडी, गज, घोडा, पा लखी, उंट, वलद, नावप्रमुख. जे उपर वेशीने ज्यां जर्बु होय त्यां जवाय, ते वाहन कहेवाय. ते वाहन सर्व त्रण जातनां बे, ए क तरतां, वीजां फरतां अने त्रीजां वरतां, एनी संख्या परिमा ण करी राखी ले. ए नियममां कोश खेडवो, क्षेत्र समारवं, चक मोल तथा हिंमोले चढवू, शेरडी प्रमुखना चक्रमां वेसवं, ए स हु श्रावे. ए माटे तेनी संख्यापरिमाण राखी लेवू के, आटली संख्यानां वाहन उपर आजना दिवसमां महारे चढवू. ए वाह न नियम आठमो. ___ए नवमो शयननियम. ते एम के, शय्यानो नियम राखे. शेज, खाट, ते न्हानी मोटी तखत, इत्यादि लाकडाना तथा तखता, चोकी तथा नूमिउपर तूलनी तथा रूनी तरेली सुखशय्या, एट लानुं परिमाण राखे. जे आजना दिवसमां मने आटलानो नोग करवो. एवो नियम राखे,आटला आज दिवसेंमहारे विगनां, उप रनां अने पलंग पोस प्रमुख अने श्रासन खुरशी उपरवीबाववानां, चोकीनां, पहाप्रमुखना.ए सर्व न्हाना महोटानो सर्व उपयोग धा रीने परिमाण करी राख, अने नूला चूक्यानी जयणा राखे, एवी रीतें शक्ति प्रमाणे परिमाण राखी ले. ए शयन नियम नवमो.
१० हवे दशमो विलेपननियम. ते एमके, नोगने अर्थे श्राट लो केसर, आटबुं चंदन, आटलो चूचो,अत्तर, जवादिक, तेल फू लेल, कमरी, कस्तूरी, अबीर, अरगजा प्रमुख जे जे अंगने लगा ववानुं तेल के अत्तर, ए सर्वनां नाम धारीने गुलावर्नु अत्तर अथवा अंबरनु, फितननुं खसखसर्नु इत्यादिकना अत्तरनी संख्या करीने परिमाण राखे, अथवा उबटणा पण सह एमांज आवे. ते सहु श्राजना दिवसमां आटला तोलतुं सारे जोश्शे एटलुं राखी ले. एथी वधारेनो नियम. वीजा पण विलेपननो सहु तोल परि
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सप्तम जोगोपनोग विरमण व्रत. माण राखे. अहींयां पूजादिक धर्मकरणी करतां हाथ प्रमुखने विषे धूपधाएं के अगरबत्ती लेवी पडे ते. तथा पोतानां अंग के मस्तकें तिलक करवु पडे तथा परमेश्वरना अंगें तिलक प्रमुख क रवां पडे, तेनाथी महारो नियम न जांगे, एम नियसमां करेली धारणाथी धर्मने माटे जे कांश विशेष अधिकरण जोश्ये तेथीनि यमनंग थाय नहीं. ए विलेपननियम दशमो.
११ अगीआरमो ब्रह्मचर्य नियम. ते एमके, श्रावकने दिवसें अ ब्रह्मसेवा तो प्रायें निषेधले. अने रात्रीनी जयणाने. अथवा परि माण करे के, आजनी रात्रीमा बाटली वार अब्रह्मचर्यनी ज यणा. अहींयां स्त्री साथै हास्य, विनोद अने आलिंगनादिक, ते सर्वमाहे मैथुनक्रिया लागे, ए माटे जेवी शक्ति तेवा नांगा राखे. कोश् श्रावकनें रात्री चतुर्विधाहार करवानो त्याग होय अथवा रात्रीएं एकांतध्यान करवानो चाल होय, जप जापनी रुचि तेने घणी होय. ते मनमा एम जाणे के, रात्री विषयसेवा करी अशुद्ध थश्ने जप केम करूं ? वली विषयरूप रोगनी लगन लागीबे, ते पण परिणामने बगाडे, ए माटे दिवसने विषे विषय विकल्प मटाडीने पनी शुद्ध थश्ने रात्रीयें निश्चिंत पणे स्वस्थ चित्ते जप करूं. एवी बुद्धिथी दिवसने विषे विषय. सेवे, रात्री न सेवे ए माटे कोने दिवसमां निषेध अने रात्रीनी जयणा, कोश्ने दिवसनी जयणा अने रात्री निषेध, अने कोइने रात्री तथा दिवस ए बनेनी जयणा, पण गणती राखे के, रात्री दिवस मलीने आटली वार स्त्रीसंगें नोगसेवा करवी, ते पण पोतानी जेवी शक्ति होय, ते प्रमाणे नियम राखे. इति ब्रह्मचर्य नियम एकादश, .
१२ बारमो दिसि के दिशिनो नियम. ते दशे दिशियें जवा श्राववानुं परिमाण. ते जेवी शक्ति अने जेतुं प्रयोजन, ते प्रमाणे राखे. अहींयां आदेश, उपदेश, आदमी मोकलवा, कागलनुंवा
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सप्तम जोगोपनोग विरमण व्रत. चवू, लखवं. ए सर्व एमां आवे. माटे जेतुं पले, तेवु राखे. इति दिशि नियम द्वादश.
१३ तेरमी स्नाननियम. ते एमके दिवसमां तैलादिक अन्यंग पूर्वक स्नान करवु तथा अन्यंग कस्या विना स्नान करवू, तेनुं परिमाण राखे जे दिवसमां आटली वार स्नान करीश.अहिंया देवपूजा निमित्ते अधिक स्नान कर पडे, तो पण नियमनंग थतो नथी. एवी रीतें सर्वव्रतमध्ये धर्महेतुयें जे कमवेश कर, पडे, तो तेनाथी नियमनंग नथी. इति त्रयोदश स्नाननियमः ___१४ चौदामो नात पाणीनो नियम. ते एमके, चारे आहारमा स्वादिमनुं तो तंबोलना नियममां परिमाण राख्युंडे अने बाकी त्रण थाहार रह्या, तेमां प्रथम खादिममां मीठा मिष्ट मेवा अ थवा मिष्टान्न, पान, मोदकादिक. अशनमांनात, रोटली, कचोरी, शीरो, तेनुं परिमाण प्रमुख राखे के, दिवसमां आटला शेरनी जयणा. अहींयां घरमां घणो परिवार होय, तेउने माटे अशना दिक घणुं करवं करवाईं पडे, तेनो गृहस्थने बूटको नयी ए मा टे एनी जयणा राखे तथा पारके घेर, जाति प्रमुख संवंधे जम वा माटे जर्बु पके, त्यहां तो केटलाक मण नात प्रमुखनी रसोश वनावी होय, पण नियम धारीने एनो दोष नथी, जे कारण मा टेनियम धारीएं तो स्वनिप्टाएं खावानुं परिमाण कमुके; अने घ रसंबंधी झाति संबंधीयी बूटातुं नथी; ए माटे पोतें खावानुं परि माण करी राखे के, आटला तोलश्री वधारे खावू नहीं. एटबुं प ले. अने जो परिणाम दृढ करीने सर्व संबंध गेमीने स्वनिष्टा परि माणथी अधिक पचन पाचनमां न जमे, तो ते बहुज सारं; पण सर्व गृहस्थथी एवं पले नहीं. ए माटे यथाशक्तिएं परिमाण राखे तथा त्रीजुं पानआहारपरिमाण राखे के, दिवसमां आटला कलश, पाणीना वावलं. यहींयां पण घणा परिवार वा ।
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सप्तम जोगोपनोग विरसण व्रत. र लाने पाणीनुं प्रमाण ते खनिष्टनोगनिमित्त जूईं राख, समुदा यना नेल संन्नेलनी बूट नथी, एमाटे ते जूडं राखे तो बहु सारुं. शति जात पाणी नियम चतुर्दश. __ अहीया जे को अधिक जाववंत साधक होय ते सचित्तादि परिमाणमां तथा अव्यपरिमाणमां जूदां जूदां नाम लेश लेश्ने राखे तेने महोटी निर्जरा थाय, अने अशक्तने तो सामान्य क रबुबे. ॥ इति चतुर्दश नियमाः समाप्ताः॥ हवे पंदर कर्मादान, खरूप लखे ले. कर्मादान एटले जे व्यापार करतां गाढां पापकर्मोनुं बंधन थाय, एवं व्यापारकर्म ते पापक र्म, तेनुं श्रादान एटले ग्रहण जे व्यापारमां तेने कर्मादान क हीएं. अहींयां संसारमा पाप तो सर्वे व्यापारमां थायबे, तोपण बी जासर्व व्यापारथी ए पंदरे कर्मादान व्यापारमा घणुं पाप अने म दिन परिणाम पणुं. ए व्यापार करी पापनी परंपरा बहु चाले,ए माटे श्रावकने ए अवश्य त्याज्य.कदापि एकर्मादान व्यापारमांज
पोतानी आजीविका लागी होय ने तेथी करी तेन बूटे तो परिमा __ण करी बेवु ॥ हवे ए पंदर कर्मादान-जूउंजूडं विवरण कहे जे॥
प्रथम इंगालकर्म. ते लाकडां बाली कोयला करीने वेचे अ ने तेणे करी पोतानी आजीविका उपजावे, ते इंगालकर्म. तथा को तरेहनी नही करे, इंट नीपजावे, कुंजार कर्म, लोहार क में, सोनार कर्म, अंगारा कर्म, बंगडीकार, सीसकार, कलाल, न ठियारो, जाडजुजो, हलवा, धातुगालक प्रमुख जेटला अनि वडे व्यापार थायडे, ते कंगालकर्म. ए व्यापारमा घणा दोषडे, जे कारणे अग्नि, सर्वशस्त्रमा मुख्य शस्त्र. चार दिशि, विदिशि, ऊर्ध्व, अधो, ए सर्व स्थडे बकायना जीवने अवश्य हणे ए मा टे ए कर्म, अनाचरणीय . इति इंगालकर्म प्रथमं..
२ बीजुं वनकर्म. ते एमके, बेद्यां अणद्यां वन वेचे, बगिचा
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___ सप्तम जोगोपनोग विरमण व्रत. नां फल, पत्र वेचे, पत्र, फूल, फल, कंद, मूल, तृण, काष्ठ, लक डी, वांसादिक व्यापार तथा लीली वनस्पति हरिवीज वस्तुनो जे व्यापार, ते पण सर्व वनकर्म जाणवु तथा खेती कृषीनो व्यापार करवो, ए सर्व वनकर्म आजीविका निमित्तें कर तथा खेमुतने आगलथी पैशा आपीने पड़ी धान्य नीपजे तेवारे ते धान्यमां वधतुं ले, ते पण वनकर्म तथा धान्य दलावे, खंभावे, नरडावे, ए पण एनाज व्यापार, ए वनकर्म व्यापारथी, ते वनस्पतिना जीव अने वनस्पति आश्रित वनना त्रसजीवनी अवश्य विराधना थाय, ए माटे वनकर्म अनाचरणीय बे. इति वनकर्म.
३त्रीजु शाडीकर्म. ते शकट एटले महोटां गामां, वहेल तथा असवारीनो रथ, श्का गाडी एटले बोटी गाडी तथा नाव जाति अथवा वजरा, पलवार,महिलगिरी,उलाक,जमतीया प्रमुख, तथा हलदंताल, चरखा, घाणी प्रमुख. एनां नानां महोटा अंग धोंस रां चक्की एटले घंटी प्रमुख. उखली, मुशली ए सर्व नवां बनावी ने वेचे तथा उपर रही वेचावे, ते सर्व शकटकर्म. ए महा हिंसा तुं कारणबे, अनाचरणीय. इति शाडीकर्म.
४ चोथुनाडीकर्म. ते गाडी, वेल, पोठीयो, उंट, पाडो, गझो, वेसर, घोडो, नाव, रथ, सुखपाल, मोली प्रमुख पोते राखे अने वीजाने नाडे आपे, वीजानो जार वोज, ते कहे त्यां पहोचाडी
आपे तथा घर, उकान, वस्त्र, वखार प्रमुख पोतानी होय, ते पार काने नाडे आपे तथा सार्थवाहनो व्यापार, हुंमा नाडानो व्या पार, ए सर्व नाडीकर्ममां आव्यु. जे पोतानी चीजनुं नाउँलश्ने पोतानी चीज वीजाने सोपे, ते पण नाडीकर्म जाणवू. एमां वल द, घोमा प्रमुख जीवने ताडनादिक महापुःख उपजे अने चलाव
तां थकां मार्गमांत्रसादि जीवोनी हिंसा अवश्य थाय, ए माटे - ए नाडीकर्म थनाचरणीयठे. इति जामीकर्म,
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सप्तम जोगोपनोग विरमण व्रत. __५ पांचमुं फोडीकर्म. ते कूप खोदाववो तथा तलाव खोदावg, होद वावडी खोदाववी तथा नीक खोदाववी इत्यादिक. तथा हल खेडन करवू, संगत्रास पासे पर फोडाववा, हीरा रत्ननी खाण खोदाववी तथा तेने रगडाववां, बीजपडाववां परब कराववी, घाट कढाववा,तरसावबु,जोयरांतहखानानुंबनावq,तथा जव धान्य बुंट प्रमुखनी दाल कराववी. शालिमाथी चावल कढाववा इत्यादि व्या पार सर्व फोडीकर्ममां आवे तथा इंगालकर्ममां पण आवे. ए पृ थ्वी विदारवामां पृथ्वीकाय अने त्रसकायना जीवोनी हिंसा थाय बे. अने बीजा जीवोनो पण अंगघात थाय बे. किलामणादि बहु उपजे तेथी पाप लागे ए माटे ए कर्म त्याज्य, ए पांचे कुकर्म , महा हिंसामय बे, ए माटे डोडवां. हवे पांच कुवाणिज्य लखेडे.
१ तेमा प्रथम दंतकुवाणिज्य. ते हाथीना दांत, उलूना नख, जीन, कलेजुं तथा पंखीनां रोम तथा पंखालिंगि प्रमुखनां अने गायना पुछनां चमर तथा हरणनां शिंगडां तथा गेमाप्रमुखनां शिंगडां, तथा शंख, कोमा, कोमी, कस्तुरी, जबादि, मोती, वा धनुं चामडु, वाघनी मूबना केश, सावरनां शिंगडां, कचकडं, किरमजदाणा, रेशम, उन, तांत, नमूंम प्रमुख जे त्रस जीवनां अंग तथा उपांग, ए सर्वनो व्यापार दंतवाणिज्यमां आवे. ए वाणिज्यमां ज्यारें अंग लेवाने आगरमां जाय, त्यारे ते कुछ जिल्लादिक लोक, तत्काल हस्ती, गेंमा, मृग प्रमुख जीवोनी हिंसा करवामां प्रवर्ते अने महा पाप अनर्थ करे. वली पोतानो परिणाम पण त्यां गये थके मलिन प्रवर्ते. लोनना हेतुयें व्याध लोकोने कदापि एवं कहे, पडे के, अमारे वास्ते घणा सारा नारे अने मोहोटी दांत जो तमे आणी श्रापशो तो वली वधारे मूल्य पामशो. त्यारे ते व्याध लोको एना कहेवा उपरथी वधारे हिंसा कर्म करे, एवी रीतें . सर्व अव्यमां जाणी .
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न्।
सप्तम नोगोपनोग विरमण व्रत. __ लेवु. ए माटे ए सर्व चीज, व्यापारी पासेंथी लेवी पण श्राग
रमां जश्न लेवी. ते माटे आजीविका करवा सारु तो ए कुवा ‘णिज्य तजवं. एक हस्ती मरे, त्यारें मात्र बे दांत मले, एक
गाय मरे, त्यारें मात्र एक पुब मले. ए प्रमाणे सर्व चीजमा विचारी ले. इति दंतकुवाणिज्यं प्रथमं.
बीजं लाखकुवाणिज्य. ते लाख, धाउडी,गली महडा, साजी खार, साबू, मनशील, लोह, सोहागो, पडवास, कसुबो, कपिला, तूरी. ए सर्व खारनी जाति, एउनो जे व्यापार, ते लाखवाणिज्य कहेवाय. ते लाखमां प्रथम त्रस जीवोना समूह विना माली उ पजे नहीं. पडी पण ज्यारें रंग काढे, त्यारे अन्न देश्ने सडावे बे, त्यां पण तेमां त्रस जीवो उपजे बे. महापुर्गध रुधिरना जेवो ज्रम उपजे. धाउडीमां पण त्रस जीवोनो आश्रय . एमां कुंथुश्रा घणा रहे. वली ए मदिरानुं अंग. गली पण प्रथम सडावे, त्यहां त्रस जीव उपजे, तेउनी ज्यारें हिंसा करे, त्यारें गली उप जे. पठी पण गलीना कुंगमां त्रस जीवोनी घणी हिंसा थाय. केव ल गलीनां वस्त्र पहेरे तेमां पण त्रस जीवो जू, तीख प्रमुख उपजे. एमाटे ए ज्यहां त्यहां हिंसानां हेतुने तथा हरताल मनशिला दिकनी वासनाथी घणाज माखी प्रमुख त्रसजीव मरे. हरताल, मनशिलने वाटतां जो जतन राखे नहीं तो तेनी वासनाथी त्रस जीवो मरे. तूरी, उस, पडवास प्रमुख पण ज्यहां ज्यहां जे जे काममां आवे, त्यां त्यां पण घणा जीवोनो घात थाय. एमां आगल पाउल त्रस जीवोनी हिंसा थायजे. एमाटे ए वस्तु त्या ज्यो. इति लाखकुवाणिज्यं,
३त्रीजु रसकुवाणिज्य. ते मध, मदिरा, मांखण, मांस, ए चारे महाविगयनो जे व्यापार, तथा उध, दही, घी, तेल, गोल, खां म प्रमुख रसवाती जे नरम चीजो तेनो जे व्यापार, ते रस
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सप्तम नोगोपनोग विरमण व्रत. ज्य वाणिज्य कदेवाय.अहींयां रसवाणिज्यमांचारमहाविगयजे.ते तो . सदा अशफजे.जे माटे सदा ते वस्तु त्रसजीवोयें करी संयुक्त थायजे.आगल पाउल हिंसा घणी. तथा दहीं, बुध, घृतादिक स चिकण रसवाली चीजो मध्ये ज्यहां ए चीजोथी नरेलां पात्रो पण खुट्खां रहे, तो त्यां पण नहाना मोटा जीवो आवी पडे; ते जीव, को पण जीवे नहीं. बे दिवस उपरांत दहीमां असंख्यात जीवो त्पत्ति थायले. तैल घृतादिकना गंधथी घणाज कीडी प्रमुख जीव आवे अने जे श्रावे ते तरतज तेमां लपटाश्जाय, ते बचे नहीं.वली ज्यां घृत तैलादिकनां नाजन एटले पात्र रहेतां होय, तेजमीनची कणी अने मलिन अ रहे. त्यां फरनारा त्रस जीवो होय, ते लप टाइ रहे. तिलनो व्यापार ज्यां होय अथवा ज्यां तल, टीसी, काब रा प्रमुखद् सदा पीलाव, थातुं होय, त्यां ज्यारे फागण मास उप रांत मास थाय त्यारें अवश्य तिलादिकमां त्रस जीवो घणाज उ पजे. त्यारे ते जीवसंयुक्त तल पील्या जाय. ते वारे ते जीवोप ण ते तलनी सार्थेज पीला जाय. तेलनो दीवो करे, त्यां पण अनेक त्रस जीवोनो घात थाय. एम आगल पाबल घणी जीव हिंसा थाय. तथा गोल, चीनी मिश्री प्रमुखमां पण मिष्टताना योगें करी मांखी, कीडी, मंकोडा प्रमुख घणा जीव आवे ते माटे तेनो संहार थ जाय तथा सादी चीनी चोमासामां अनदय थाय. जे कारण माटे निदात्र लागे, त्यारथी सादी चीनीमां असंख्य जीवोनी उत्पत्ति थायजे.ए माटे चार मासतो अशुद्धले.अने ज्या रें व्यापार थाय, त्यारें तो एथी बहु त्रसजीवोनी हिंसा थाय. ते मज मीण पण घणा जीवोनो घात थया विना नीपजे नहीं. अ ने पनी पण बहु हिंसानुं कारण. ए वस्तुनो मीणवती तथा रं गारा प्रमुखना काममा अधिकार होय माटे तेनुं अधिकरण कार्य. तथा मुरब्बो, पाक, रोगान, अत्तर भने अर्क प्रमुखनो
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सप्तम जोगोपोग विरमण व्रत.
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व्यापार पण सर्व मां श्रावे. केटला एक रसवाणिज्यमा इंगोल कर्म, यंत्रपीलनकर्म, विषकर्म छाने रसवाणिज्य एटलानो दोष, ए कर्ममा लागे. ए माटे रसवाणिज्य निषिद्ध इति रसकुवाणिज्यं. ४ हवे चोथुं केशकुवाणिज्य ते द्विपद मनुष्य दास, दासी, गुलाम, एंजी विकाने कारणे लेइने खदेश परदेशमां वेचे, तथा गाय, ष, घोडा, उंट, हाथी, वलद, बकरी, पाडा, गया. तथा पंखी मां वाज, कुकडा, कुंही, बहिरि, सिकरा, लालमेनां, मरघां, तोता, मोर, सारस, सुरख, तेतर, ए पंचेंद्रिय पंखी जीवोने या जीविका निमित्तें ले अथवा वेचे; ते केशवाणिज्य कड़ेवाय. ए केशवाणिज्यमां दास, दासी, तिर्यंच प्रमुख जीवने तो प्रथम स्थानकुटुंबनो वियोग पडे ने जे लेइ करीने वीजाने थापे, त्यां तेने नित्य परवश रहेवुं पडे, पोताना मननी इछा कांइ सरे नहीं. वली तिर्यंच जीवतो कां मुखथी वोले पण नहीं, के मने दुःखवे किंवा सुखते. ते कोने कहे ? जन्मपर्यंत वीचारां वं धनमां रहे, मनमां घणां कल्पे, घणी भूख, तृषा सहन करे, ते उपरांत वली जे माणस वेचातुं ले, ते निरपराधें मारे, जार नरे, ए रीतें वहु वंधनादिक अनेक दुःख पामे, पंखी पण पांजरामां पडे, अने मनमां घणुं दुःख माने. वली शकरा, बाज, शिवरी, ए तो महा हिंसानां हेतुठे. एउथी तो नित्य परमांस विना रधुं जा य नहीं. ए माटे केशवाणिज्य पण, जे धर्मरुचि श्रावकडे ते श्रा वने तो त्याज्य इति केशकुवाणिज्यं.
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५ पांचमुं विषकुवाणिज्य. ते सोमल, वठनाग, अफीए, म नशिल, हरताल, गांजो, जांग. चडस, तंबाकु प्रमुख तथा हथी यार ते धनुप, तरवार, कटारी, वरठी, तोमर, फरशी, कुहाडा, कोदाली, तुरी, पेस, कवज, वंडुक, ढाल, गोली, दारु, वक्तर, पा खर, जिलम, टोप प्रमुख जेना वलथी संग्राममां मनुष्य, मजबूत था
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सप्तम जोगोपजोग विरमण व्रत. G य, तथा हल,मुशल,उखल, कोश, कोदाली,दंताली,करवत,दावडा, दात्रा, बीनी, नाल, गोला, हवाइ, कुहुक, शतघ्नी प्रमुख सर्व हिं सानां श्रधिकरणले. एऊनो जे व्यापार, ते विषवाणिज्य कहेवाय. अहींयां शिष्य प्रश्न करेले के, अमल प्रमुख विषने तो विष क युं पण धनुष्यादिक हथीयारने विष केम कहोबो? ते वारें गुरु क देने के सांजल,तुं तत्व नथी पाम्यो.जे विषथी काम थायडे, ते एनाथी पण थायजे. विर्षे करी मरता प्राणीने तो कोश् माणस, तेनुं विष उतारी पण शके, परंतु शस्त्रनो मास्यो तो कोई बचे प ण नहीं. तथा ज्यारें हथीयार ले, त्यारे तेना विषरूप परिणाम थाय, जेम जेम जलद शस्त्र होय, तेम तेम खुश थश्ने तारीफ करी मूल्य लश्ने वेचे, तेथी श्रागलानो परिणाम पण बगडे.एमा टे हथीयारने पण विषरूप कहीए.ए विषवाणिज्यमां वबनागडे, ते तो एकेंजियादिकथी मामीने पंचेंजिय पर्यंत जीवोनो घात करे. सोमल तो वली एथी पण वधारे घात करनारोजे.जे सोमल खाय, ते घणुं कष्ट पामे,मरीने फुर्गतिमां जाय. विष खाइने जे गतिमां उपजे, त्यां पण विषरूप थाय.जोक्रोधथी विष खाय, तो मरीने सर्प थाय, कां वीबी थाय, अथवा फेरीजीवोमां उपजे.ए माटे तेनुं फल पण विषरूप थाय बे. तथा विषवस्तुना गंधथी जीवनो नाश थाय. हरताल अने मनशिल ए पाणीमां वाट्यां होय, ते उपर आवीने माखी बेसे,तो ते संताप पामीने तत्काल मरे,अफीण पण ज्यारें खाय, त्यारें आत्मघात करे.अमलीना शरीरनुं मल मूत्र पडे, त्यां त्रस अने स्थावर जीवो हणाय.खानारनी चेतना मुंजाय, तेथी
ान थयो थको मरीने उर्गतिमांजाय तथा नांग प्रमुख पण चे तनाने मुंजावे.रात्रीजोजनादिक अविरति पणुं वधारे,अब्रह्मचर्य घ ए॒ करे,तेथी ते सत्यपणुं वधारे,व्रतनी दृढता जति रहे, कषायनी वृद्धि करे,तुछ पणुं आवे, निजा वधारे, मतिनी अज्ञानता करे,सा
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सप्तम लोगोपजोग विरमण व्रत. री तवीयतने बदलावे, निरुद्यमी श्राय, परनिंदा अने वाचालपणुं वधारे, मुखथी गमे तेम वचन बोलतो आधु पाईं न जुए, चित्त व्रम थयेलानी पेठे अवस्था थाय, तेना आश्रित बहु जीवने हणावे. इत्यादि अफीण खाधाथी आलोकें दुःख अने परलोकने विषे गह न पुर्गतिमां पडे, ए माटे विष कहीए. तथा सर्व हथीयार तो प्र गट पापना हेतु .ए माटे विषवाणिज्य निषिक.इति विषकुवाणि ज्यत्याज्यस्वरूपं ॥ एटले पांच कुवाणिज्य थयां.ए सर्व मली दश श्रयां.हवे पांच सामान्य कर्म कहे.
१ तेमां प्रथम यंत्रपीलनकर्म. ते घाणी, शेरडी पीलवानो शी चूडो, चरखा, चरखी, लीसा, उखल, मुशल, कंगव, सावरणी, वेगडीयंत्र, सराण, जलयंत्र, पातालयंत्र आकाशयंत्र, मोनिकायं त्र प्रमुख यंत्रजाति, शतनीयंत्र प्रमुख जे जे काष्ठ, पाषाण, लो ह, वस्त्रादि अनेक अनेक अंगमेलापथी जे जीवघातकारक प दार्थ होय ते यंत्रपीलनकर्म कहियें, ए यंत्रपीलनकर्ममां घ णो आरंजने, घाणीयंत्रमां तिलादिमिश्रित जे त्रस जीवो होय, तेनो घात थाय, एवीज रीतें रहपीलनकर्मयंत्रमा पण अनेक जीवघात . एम जे जे यंत्र, ते मुकरर करीने जीवघातना हेतु बे, एमाटे श्राजीविकाहेतुयें यंत्रपीलनकर्म निषिक.
२ वीजें निलंग्न कर्म बे. ते एमके, वलदनुं नाक विंधावे, घोडाने माग देवरावे, गाय, वलदना कान कपावे, शिंगडां बेदावे, पुट वेदावे, उंटनी पीठ उपर लदावे, गाल नासिका प्रमुखने विं धन करावे, बलद घोडाने खासी करावे, माम देवरावे, खोज क रे, करावे तथा कोटवाली खिजमत लेश्ने नवो कर वेसाडे. जा रोलेश्ने श्राकरो कर वेसाडे, चोरधाडमांवासीनी पेरें दोडा दोडी करे, मनमा एम जाणे के मारू नाम जगत्मा प्रसिद्ध थाय; ए माटे निर्दय शस्त्र चलावे.इत्यादिकनो रसिक थजे नरसां कार्य
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सप्तम जोगोपंजोग विरमण व्रत. होय, ते, करे तेने निलंबन कर्म कहीयें. ए निलंबन कर्ममां घ ___णा पंचेंजियोने कदर्थना थाय; घात थाय, ओपणा परिणामम
ध्ये अतिनिर्दय पणुं थाय. अने एथी करी, उर्गति प्राप्त थाय, ए माटे ए निलंबन कर्म अति निषिकले.
३त्रीजुं दावाग्निदान कर्म. ते केटलाएक जीव मिथ्यात्व अने अज्ञानना जोरथी विपर्यास कहे के, था वन घणुं मोहोटुं थ ३ गयुंडे, निन्दादिक लोको पुःख पामता हशे; ए माटे ए वनने दव लगाडी दश्यतो बधुं वन बलीने साफ थजाय,अने एथी महा धर्म थशे. फरी नवी कुंपल निकलशे, ते वृदो ज्यारें फलशे त्यारें लोको तेनां फल फूल खाशे, एथी धर्म थशे. एवो उपदेश दे तथा देवरावे. वली वनमां दव लगाडवाथी धरती माताने बोजो उतरशे, ते जग्या खाली थशे, त्यारे तेमांधान्य निपजशे, खेती नवी निपज शे अने लोको सुखी थशे. वली जूनांतृण, काष्ठ, बली जशे अने नवां तृण रस नस्यां थशे, तो एने गाय,वाउरडां सहु सुखश्री चरशे. वली बलेली नूमिमध्ये धान्य पण सारुं नीपजशे. एवी रीतें मूढ पुरुष, पोतानी मातबरी देखाडे. लोजनी लगनथी पापकर्म करतो शंकापामे नहीं.वनी चोर चखार निबनोएमां वास,ए सौनो जय मटी जशे. एवी न्यायरीतीथी वनमां दव लगावे, वनकटी करावे तथा आजीविका निमित्तै महोटां महोटां गहन वन, जेमां आवq जवू पुष्कर पड़े, ते माटे पण वनने अभिसंस्कार करे, त्यारें त्रसजीवो वाघ, रीब, चित्ता, गेंमा ए सर्व जागी जाय. पोताना . स्थानथी बूटे, सादिक जुजपरिसप्प, वली कीडी, मंकोडी प्र मुख तो सर्व हणाय. एवं मनमां न आवे के, वनने अग्निसंस्कार करतां, ए जीवो हणायानुं पातक श्रापणने चढशे? तेम तो क हेज नहीं पण कहे के, वनमां दव दीधाथी सुखें हरवं, फरवू त था श्रावईं जq थशे. रस्तो सारो थशे. पण एवी हिंसा निश्चयें
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सप्तम जोगोपजोग विरमण व्रत.
केशेर, पांच शेर, अधमरा अथवा मण पर्यंत सर्व धान्य शेकावकुं प डे, तेंलुं बूट राखे. निकर्मनी चीज लेवा देवामां यावे, तेने निकर्म कराववुं पडे, तेनो आगार तेने वेचवानो यागार. वीजुं सर्व निषिद्धबे. कंसारा, वंगरा तथा लोहार प्रमुख पासेंथी घर संबंधी वाशण कुशण प्रमुख करावे, तेनो श्रागार. लता, दाक्षि एय, कुटुंबादि कार्ये सहाय श्रपवानी, आदेशादिक देवानी जयणा.
२ तथा वनकर्ममां घरसंबंधी बलद, घोडा, गौ, उंट प्र मुखने वास्ते घांस प्रमुख राखवां तथा मंगाववानी जयणा. पो ताना वगीचाने माटे उत्तर प्रत्युत्तर देवानो आगार.
३ शाडी कर्म मध्ये नाव, गाडी, बकडा, वेल, रथ, बलद डो घरना होय तेने सुधारवा पडे, तेनो अगार. निकामां शकटादि क होय, तेने वेचवानो आगार, लहेणामां आव्यां होय तेने राखे अथवा वेचे, तेनो आगार.
४ चोथुं नाडी कर्म. तेमां पोतानां घर, हाट, नाव, गाडी, हरेक वाहन प्रमुखने जाडे देवानी जयणा. तेनो पण श्रगार.
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५ फोमी कर्ममां पोताना घरसंबंधी कूर्ज, जोंयरुं, टांकुं, ताजखा नुं प्रमुख कराववानो श्रागार घरनी खाल कराववानो यागार तथा घर कराववानो श्रागार तथा जवाहीरनो व्यापार, घरसंबंधी नंग, घाट घुटने माटें तोडावनुं, फोडावयुं तथा मोती विधाववां, तथा घरने माटे पचरनी खाण कढाववी, तेपचरनो घाट घडाववो पडे, तेनी जयणा. लका, दाक्षिण्यें, साहाय्य करवुं पडे तेनी जयणा. घर खरचमां फोडीकर्म जे जे आवे, तेनो आगार.
६ बघा दंतवाणिज्यमां घरखरचने विषे पोताना जोगना अधि करणमा लेवा मंगाववानो आगार आगल व्यापारनी विगतमां जे परिमाण करी छूट राख्युं होय, तेनी जयणा. लेणा देणामां यावे, तेनी सरजरा करवानो आगार,
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सप्तम जोगोपनोग विरमण व्रत. जयणा तथा घरखरचमां जे जंत्रपीलन आवे, तेनी जयणा.तथा पोताना अंगना जोगादिक निमित्तै अत्तर चूा प्रमुखना यंत्र,त था रोगादिक कारणे कोर औषध करवानो यंत्र करवो, कराववो पडे, तेनी जयणा. लजा दाक्षिण्यें तथा फरमाशें नहीं बूटतां जे करवो पडे, तेनो आगार. शति यंत्रपीलनकर्म.
१२ बारमुं निलंबनकर्म. तेनो व्यापार करवो निषिक.पण कोश राजादि, आग्रह करीने अधिकार श्रापे,तेमांजे निलंबन कर्मश्रावे, तेनो आगार. तथा घरसंबंधी पशु बालकादिकने करवू पडे, तेनो श्रागार. लहेणामां श्रावे तेनी तजवीज करवी पडे, तेनी जयणा. - १३ तेरमुं दवदानकर्म. तेनो निषेधजबे, पण रस्ता वच्चे एटले मार्गे जतां को ठेकाणे रहे, थाय, त्यां रसोश प्रमुख करतां वायुना प्रयोगें करी यत्न करतां पण अग्नि, वनमां पसरी जाय, ते ने उलववानी शक्ति नथी तो मारुं व्रत एथीन नांगे. ए अग्नि उलववानी शक्ति होय, तो हुं ते अग्निने शांत करवामां आलस करीश नहीं. वली घरखरचमां को रीतें दवदान कार्य करवू प डे, तेनी जयणा. इति दवदानकर्म..
१४ चौदमुं शोषणकर्म. तेमां सरोवर, अह, तलाव प्रमुख जलाशयोने शोषाववानो निषेध, परंतु घरप्रमुखना कूवाने सुधार वा गलाववानो श्रागार, टांकुं धोवानो श्रागार. नदीमांवीरडो कर वो पडे, तेनो श्रागार. बीजा पण घरसंबंधी कार्यमा जे महोदामां रहेता होएं, तेमांना उचित पंचनी सरासरीयें कूवाने निमित्तें कांश खरच देवो पडे, पाणी सारं पीवा माटे आगलना कूवाने शो पावीने नवो करवो पडे, तेमांतेना खरच निमित्तें पंचनी सरासरीएं कांश खरच आप, पमे, तेनो आगार. इति चौदमुं शोषणकर्म.
१५ पंदरमुं असतीपोषणकर्म. तेमां घर परिवार संबंधी न बूटे, तेनी जयणा.पण चाह धरीने, तेनुं पोषणकर्म न करूं.प
रहेता होना आगार. बाजा धोवानो धागा
॥ उचित संबंधी कार्यवारडोकर
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सप्तम लोगोपनोग विरमण व्रत. ___ सातमुं लाखवाणिज्यकर्म तेमां पण दंतवाणिज्यनी परें जा ___णवू. घरखरचने माटे को कार्य पडवाथी लेवु वेचवू पडे, तेनो
आगार. इति सातमुं लाखवाणिज्यकर्म. ___ आठमा रसकुवाणिज्यमां घरखरच संबंधी जे परिमाण क री राख्यु होय, तेनो आगार, व्यापार संबंधी जे राख्यु होय,तेनी जयणा. लहेणामां आवे तेने वेचवानी जयणा. लजा दाक्षिण्यथी केफरमासथी सरजरा करवी पडे, तेनी जयणा तथाआपणी तैय्या र चीज को सारा माणसे मागी तो यथायोग्य ते वस्तुनुं मूल्य लेश्ने देवी पडे, तेनो आगार, इति रसवाणिज्य श्रापमुं.
ए नवमुं केशवाणिज्यकर्म. मूल आजीविका हेतुयें आदर करी व्यापार करवानो निषेध, घरसंबंधी पशु वेचवानो आगार. लदे णामां आवे, तेने राखवा वेचवानो आगार. घरमां पुत्रादिकना उपरोधे करी तोता, मेनांप्रमुखने लेवां पडे तेनो आगार.पोताना जोगनिमित्तें घोडा प्रमुख वेचीने, बीजां लेवां पडे, तेनो आगार. कोश् संसारीने स्नेहथी उचित घोडा प्रमुख खरीद करी देवानो आगार. राजादिकने प्रसन्न करवा माटे को जातिनांचतुष्पद वे चातां लेश्ने नजराणो करवानो आगार. फरमासे करी केशवाणि ज्यनी न चालतां सरजरा करवी पडे, तेनो आगार. ए केशवाणिज्य.
१० दशमुं विषवाणिज्य, ते ए के, जे जे आगल व्यापारमा रांख्यां होय, तेनो आगार. तथा घर खरचमां जे विषचीज औ पधमां आवे तेनो आगार. तथा पोतानी मोजने माटे घरवख रीमा जे जे शस्त्र लेवामां आवे, तेने राखवानो आगार. वली ते कराववां, समरावां तथा मंगाववां पडे, तेनो आगार. लहेणामां आवे, तेनी जयणा. इति दशमुं विषवाणिज्य,
११ अग्यारभु यंत्रपीलनकर्म. तेमा आगल जे जे व्यापारने अथ राख्यावे ते व्यापारमा जे जे यंत्र पीलन क्रिया श्रावे, तेनी
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.सप्तम लोगोपन्नोंग विरमण व्रत.
रिग्रहपरिमाणमां पशु राख्यांने, तेजने पोषण करवानो आगार. तथा म्लेबादिक राजानी साथै व्यापार आजीविका अर्थे, पोतानी गरजने माटें आहारादिकें पोषण करवू पडे, तेनो आगार, पण पोतानी इलाथी बूट नथी, तथा पोताना उदयिक जावथी मट्यु जे पाप कुटुंब, तेउनु जरण पोषण करवानो आगार; पण एथी करी हुँ महारो अवतार सफल थयो, एम जाणुं नहीं. तथा लहे णामां आवे तेनुं प्रतिपालन पोषण करवू पडे, तेनो आगार. दया बुछियें श्वानादिकने पोषवानो आगार. एवी रीतें पंदरे कर्मादान दोष तर्जु. ए पंदर कर्मादानमा जे जे चीज घरसबंधे, दाक्षिण्यता संबंधे, इत्यादि न चालतां लहेणा प्रमुखमां आवे, ते कारण तेमां जे कर्मादान क्रिया करवी पडे तेनी जयणा. अहींयां जे कर्मादान राख्यांबे, एमां एकेक कर्मादानमां बीजां बे, त्रण, चार, कर्मादान जलतां आवे, तेनी जयणा. इति पंदर कर्मादान राखवानी विगत. हवे ए सातमा व्रतना पांच अतिचार लखे. सचित्तेति
र त्यां प्रथम सचित्त बाहारनामा अतिचार . ते मूल नांगे तो श्रावकने सचित्तत्याम नियम होय. कदापि तेम नहीं तो, सचि त्तनी संख्या करी राखे. त्यहां सर्व सचित्तनो परिहार करे अथ वा सचित्तपरिमाणवंत थाय, वली को अनानोग दोषथी स चित्त आहार करे, तथा अपरिणतोदक तो त्रण उकाला पाणी उपर आवे, त्यारे शुद्ध पाणी थयु. तेमां एक, बे उकालानुं पा णी अपरिणतोदक कहेवाय. ते पाणी अचित्त थयुं, एवं जाणी ने पीए तथा सचित्तने फासु करतां कहीं काचुं रही जाय, एने पण अचित्तबुद्धिथी खाए. श्रावकने तो सचित्त चीज अचित करवाने अछी तरेहथी शस्त्र लागे, त्यार पठी अंतर्मुहर्त वीत्या के. खाए. त्यां अचित्तबुद्धिथी सचित्तने खाय, अथवा अना नोगादिकें खाय, तो ते प्रथमातिचार, सचित्ताहारनामा जाणवो.
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सप्तम जोगोपनोग विरमण व्रत. बीजो सचित्तप्रतिबंध अतिचार. ते जेने सचित्त नियम बे, ते तरतनो उखाडेलो एवो जे खेरनी गांठनो गुंदर प्रमुख ते ने खाय. ते त्यहां गुंदर तो अचित्त डे पण सचित्तनो स्पर्श ला ग्यो हतो, ते दूषणले. तथा पाकी केरीना समुदायने चूसे, रायण बोर, समुच्चय सहित मुखमां मेहेले, अने मनमां उपयोग एवो श्राणे के में तो ए फल पाकुं चूगुं. ए अचित्त थयु एमां शो दोष बे ? पण एवो उपयोग न जाणेके ए फलनी अंदर, गोटती स चित्तबे. ए माटें सचित्त त्यागी होय, ते एवी चीज अचित्त बुद्धि एं खाय; त्यारे तेने बीजो अतिचार लागे.
३ त्रीजो अपक्काहारातिचार ते श्रचालित आटो प्रमुख तेणे अग्निसंस्कार न कस्यो होय ने काचो बाटो फाके. जे कारण माटे श्री सिद्धांतमां आटो, दल्या पनी केटला एक दिवस, सचि त्तमिश्र रहे, पडी अचित्त थाय, एवं लख्युंजे. श्रावण नावा मां श्राटो, दट्या पड़ी पांच चिवस सुधीश्रण बाण्यो सचित्त मिश्र रहे, आश्विन मासमां चार दिवस सचित्त मिश्र रहे. कार्तिक, मा गशीर्ष अने पौष महीनामांत्रण दिवस, सचित्त मिश्र रहे. मा हा अने फागण महीनामां पांच प्रहर, सचित्त मिश्र रहे. चैत्र वैशाखमां चार पहोर सुधी, सचित्त मिश्र रहे; परी अचित्त थाय. ज्येष्ठ आषाढमां आटो, त्रण पहोर सचित्त मिश्र रहे; प बी अचित्त थाय. ए माटे काचो आटो अण नगण्यो अचित्तनी बुझिएं खाय, तो तेने त्रीजो अतिचार लागे,
४ चोथो पुष्पक्कादारातिचार. ते कांश काचो, काश् पाको ए वो, जेम सर्व जातिना उला, पोंक उंची, जुवारनो पोंक इत्यादिक सर्वजातिना लीला पोंक वीजथी नरेला ते अग्नि संस्कारमा केट ला एक दाणा अचित्त थाय, केटला एक दाणा सचित्त रहे अनेते
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अष्टम अर्थ
विरमण व्रत.
ने चित्त बुद्धिथी जाणे, केमके मिसंस्कार थयो त्यारें चित्त थ या; एवं जाणी खाय, तो तेने चोथ्रो पुष्पक्वाहारा तिचार लागे.
५ पांचमो तुौषधिनदणा तिचारबे, ते तुछ एटले असार, जेना खावाथी कांइ तृप्ति न थाय छाने आरंज तो घणोज थाय. जेम बोडा प्रमुखनी प्रति घणी असार बीमी, जे बोडानी अंदर था बे, एना खावाथी कांइ आत्मानी कुधा प्रबल जांगे नहीं अने प्रसंगदोष लागे. वली कोमल वनस्पतिमां कोइ रीतेंथी अनंतका यी शंका रहे. रसगृद्धिपणुं वधे. कोमल फल फली प्रमुखने
חם
चित्त करीने खावानो व्यवहार पण नथी. ए माटे बोडा प्रमुख नी कोमल फली खायाने मनमां जाणे के, बोडानी फली तो मारे खावी योग्य. एवं जाणी करीने खाय; पण एम न जाणे के galषधि दोष लागेबे. इति पांचमो अतिचार. ए पांच अतिचार जाणवा, पण यादवा नहीं.
इति श्री द्वादशत्रत विवरणे सप्तम जोगोपभोग विरमणनामा द्वि तीयगुणत्रते पंक्ति श्री उद्योतसागरगणिना कृतभाषा संपूर्णा ॥ ७ ॥
॥ अथ ॥
॥ अष्टम अनर्थदं विरमणव्रत प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥
द्वादश व्रतकी टीपमें, कढ़े सात निरधार; नर्थ का, नेद लिखुं सुविचार ॥ १ ॥ १ प्रथम अर्थदंग. एटले जे सप्रयोजन धन धान्य क्षेत्रादिक नव विध परिग्रह संबंधि दानि वृद्धिरूप जे कारण माटे धनवृ द्धिनिमित्त, संसारी जीवनें घणां पापनां कारण सेववां पडे, तेवारें साधुं जू बोल्या विना रहेवातुं नथी. पापोपकरण मेलववां पडे बे, मनसुबा करवा जोश्यें अनेक विकल्परूप श्रार्त्तध्यान कर
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अष्टम अनर्थदंम विरमण व्रत. पडे; जे कारणे धनादि परिग्रह, श्राजीविका हेतुयें. ए माटे धनवृद्धि निमित्तें जे जे आश्रवसेवन करवू पडे, ते सप्रयोजन , ते कारण माटे ए अर्थदंगजे.
वीजें एमज ज्यारें धनहानि थाय, त्यारे पण एवं कारण पामीने गृहस्थने ते धनहानि निवारवाने अर्थे अनेक निकल्प करवा पडे, पापनां स्थानक सेववां पडे, ते पण अर्थदंग, जे का रण माटे संसार संबंधी सुखनुं मूलकारण व्यवहारें तो धनज; ए माटे एने वास्ते आत्मा दंमाय, ते अर्थदंम्बे. ___३ तथा त्रीजु पोतानां वजन कुटुंब परिवारादिकने वास्ते तथा
आवरुना योगें जे जे अवश्य, पापस्थानक सेववां पडे, ते पण अर्थ दंड, जे माटे ज्यांसुधी प्रवल कषाय निवाडे नथी, त्यांसुधी खजनादि पाश बूटे नहीं. संसारमा इंजियसुखनां पुष्टहेतु ए ख जनज, व्यवहारमा हेतु कवाय. आपणा सुखें सुखी, अने आपणा पुःखें फुःखी. एमाटे ए ने सारु पापस्थानक सेवे, ते पण एक अर्थदंगने. जे माटे संसारी जीव, पुजलविलासी, पुजला नं दीने. ते प्रवल अविरतिकषायोदयथी एजने बोडी शकतो नथी.
४ अने चोथु पंचनोगना आसेवनथी केटली एक वेला इंडि यो तृप्त रहे. आत्मा प्रमुदित रहे, ते पण अर्थदंम. ए चार प्रयोजनमां को पण प्रयोजन होय नहीं, अने जे पापवृत्ति करे, ते अनर्थदंग कहेवाय, कारण विना फोकट ज्यहां ज्यहां आत्मा दमाय, तेथी जे जे दुष्कर्मनी वृद्धि थाय, ते अनर्थदंग कदेवा य, एना चार नेदरे, ते लखे.
प्रथम अपध्यान अनर्थदंग, २ वीजो पापोपदेश अनर्थदंग. ३ त्रीजो हिंसाप्रदान अनर्थदंग.४ अने चोथो प्रमादाचरित अन र्थदंग, तेमां अपध्यान अनर्थदंगना वे नेद वे. १ एक आर्तध्या न. ५ वीजो रौअध्यान. त्यां वतीप्रथम आर्तध्यानना चार नेदरे.
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अष्टम अनर्थदंग विरमण व्रत. तेमांप्रथम अनिष्टसंयोगार्तध्यान, बीजो इष्टवियोगार्तध्यान. ३ त्रीजो रोगनिदानार्तध्यान.४ अने चोथो अग्रशोचनार्तध्यान. १ तेमांइंजियसुखने विनकारि अनिष्ट शब्दादिक तेऊना संयोगनी त्रणे काल चिंता रहे के,रखे मने ए अनिष्ट शब्दादिक मते ? आ मने नवविध परिग्रह जे मल्याबे, ते नो रखे वियोग पडे ? अथ वा इष्ट एटले वाहालां माता, पिता, स्त्री, पुत्र अने मित्र प्रमुख नुं विदेशगमन अथवा मरण थाय, तेणे करी घणी चिंता करे, खाय पीए नहीं. वियोगनां कुःखें करी आत्मघात करवानी चिंतव ना करे, आदरे,श्राखो दिवस गुस्तामां रहे, तथा घरमांआ कपुत बे, ए नाश, बेदिल, ए बापर्नु दिल मारा पर नथी, श्रा स्त्री न गरी मली , ए स्त्री माराथी बेदिली करे बे, एनो कशो उपा य पामुं तो ठीक. एमज स्त्री विचारे के, मारी शोक्य मने जूंनी मली, जर्त्तारने जोलवे , को दिवस जरिने माराथी जूदा करावशे, ए माटे एनो का उपाय पामुं तो सारु थ जाय. सेव क होय ते एवं विचारे के खामिना महोढा आगल फलाणो महा रो कुश्मन चढ्यो , ते मारो नाश करशे, मारी राह रीति देते गमावी देशे, स्वामिने कांश मारूंसाचुं जूतुं कदेतो हशे, मारी चा करीबोडावशे, त्यारे हुँ शुं करीश? एनो का उपाय पामु तो सारं . एना निग्रहने माटे कोई यंत्र, मंत्र, कामण,मोहन, वशीकरण शोधे. कोश साचुं अथवा जूवं तेनुं विज ताके,तेने अन्तुं आल दे, लोकोना मुख आगल तेनुं बुरुं बोले. वली ते पूडतो फरे के, एनो निग्रह करवावालो को ? तेवामां को धूर्त जटिल प्रमुख बो ली उठे के, फलाणा त्रस जीवनो घात करीने बलिदान कर, तो श त्रुनिग्रह होय. ते सांजली ते मूढ, ते जीवघात पण करे अने ते पुरुषतुं मरण वांजे; पण मूढ एम न विचारे के, जे पोताना शुझमाग अने साचे दिखें सेवा करशे, तो तेने कोण काढी मे
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१०० अष्टम अनर्थदंम विरमण व्रत. लशे ? पुण्योदय ज्यां सुधी, त्यां सुधी को बुरुं करीशके नहीं. ए प्रमाणे जूठी आर्ति विचारे.इत्यादिक सर्व संबंधे संसारी जीव,श्र नर्थं दंगाय. तथा आगलथी पोतानी आतुरतायें अशुन्न कारण मल्या विना प्रथमज मनमा कुविकल्प करे, जे कुश्मनना कुलमध्ये फलाणो सामर्थ्यवान् पेदा थयो, ते मने दुःख देशे; एमाटे राज्य शारादिकें एनी आवरु जाय,अने दंग पामे तो सारुं थाय. जोए घणी तस्दी पामे,तो ए गाम बोडी करीने जागी जाय: एर्नु जो को बिउ पामुं तो फलाणाने कहुं अने ते राजदरवारमा जाहेर करे, एटले पोतानी मेले दुःख पामशे. एवी विचारणा ते मूढ करे, अने ते जेने वेरी गणतो होय, तेना दिलमां तो कांश पण होय नहीं; परंतु ए अज्ञानी एवा अनर्थमां पडे.
वली बीजं पण ते मूढ विचारे के, ए क्षेत्रमा चोर घणा थया बे. एउंने हाकेम, गनी फोज राखीने ए चोरो ज्यारें एना दावमां आवे त्यारे सर्वनो निग्रह करे, तो सारं थाय. पण ते चोरोनो तो ज्यां लगी पूर्वपुण्योदय प्रवलने, त्यांसुधी एजनुं कांपण वगडे नहीं; परंतु ते कुविकल्पवालो जे चिंतवे तो तेने चोर मारवानी आर्तध्याननी हिंसाक्रिया बेठी. वली को अमुक मातवर थयो ते, ए आपणी वरोवरी करशे, अमाराथी आगल पग धरशे, ए माटे ए हरामजादानो एवो उपाय करवो के, एने फरी उपर आ ववाने दाद फरियाद लागे नहीं. इत्यादिक अनर्थोने वेगे वेगे विचारे, पण ते मूर्ख मनमां एवी विचारणा न विचारे, के, मारे को शुं थवा ? एनो पापोदय थशे, त्यारे पोतानी मेलें होण हार हशे, ते सटवानुं नथी; तो शा माटे ए विचार ? इत्यादिक अपध्यानात अनर्थदंग वे. विना मतलव एवी रीतें पापजाल पोतें वांधे, ए अनिष्ट संयोग अने इष्टवियोग वे आर्तध्याननानेद कह्या. ३ तथा त्रीजो रोगनिदानातध्यान.जे रखे मारा शरीरमां कदा
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श्रष्टम अनर्थदंम विरमण व्रत. पि कोई वखत रोग थाय ? सर्वरोग माराथी दूर रहे तो सारूं? एवं विचारीने कोश्ने पूजे के फलाणो रोग केम करी थाय ? त्यारे ते कहे के, फलाणी चीज खाय तो उतावलें रोग थायडे,अने फलाणी अनदय वस्तु खाय, तो कदापि पण रोग थाय नहीं.त्यारें ते अजदयादिक खाए, वली ते बीजाने बतावे. तथा ज्यारे शरीर मां रोग उत्पन्न थाय,त्यारें घणी हाय हाय करे, घणो आरंज करे, घj अव्य खरचे, अने विलाप करे के हाय हाय, आमारो रोग क्यारें जशे !!! वली ते पलें पलें अने घडी घडीयें ज्योतिषीने पूजे के, मारी दिनदशा केवीले ? श्रा रोगनी व्यथा क्यारें मटशे? वली वैद्यने पूजेके, हे महाराज ! मारा दिलमां महोटी शंका. तमाराथी कांश कर्त्तव्य बार्नु नथी. मारा उपर कोश्यें जाकयुंह शे? फलाणो माणस मारा उपर खुनस राखेडे. तेणे मारा उपर को
पा कांजामु कराव्यु हशे, ते केवी रीतें जशे. कराव्युं होय तो हवे तमे साजो करो. एवी रीतें नवी नवी शंका धरे अने रोग जवा माटे कुलविरुफ धर्म आचरे, अजय खावाने तैय्यार थाय अने अकरणीय करवाने पण लागे. एना मनसुबामां सदाय एम रहे. ने जे जे रोगबेदननी चीज जडी, बुटी, औषधि, यंत्र, मंत्र, जतारो, जाडो, हजराय. ए सर्वनी चाहना राखे के ए चीज कोश वखत मारा काममां श्रावशे. नजरमा राखे के ए सर्व मारा काम नी. एने आपणी पासें अमलमा राखी होय तो सारं, फरी एवी चीज हाथ नहीं चढशे, एवं जाणीने ते जडी बुट्टी सर्व एकठी करवा लागे, ए सर्व रोगनिदानार्तध्यान..
४ तथा चोथो अग्रशोचार्तध्यान, जे आगला कालनीचिंता करे के, आगली शालमांआ विवाहनुं काम करीशु, एवी तरेहथी विवादना उडव सरनजाम करीशु, तथा फलाणा साथै कजियो ' थाशे त्यारें आवी वातोश्री अने आवा जुवापथी एने इरावीशुं.
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अष्टम अनर्थदंग विरमण व्रत. एवी रीतें काम करीशुं तथा ए मेहेल, हवेली एवी तो बनावी शुंके, तेने देखी करीने सर्व अचंबो पामे, तथा फलाणा पुरुषे क्षेत्र वगीचो बनाव्योने, तेवो हुँ पण वनावीश. अने ते एवो वनावीश के, बीजा सर्वना बगीचा एना आगल नाकार थश् जाय, अने सर्व कुश्मननी बाती बले एवो बनावीश.
तथा वली या शोदो जे श्रापणे कस्योडे, ते आगल जतां ज्यारे घणो मोघो नाव थशे, त्यारें अमें पोताने मोढे माग्यु मूल्य लेश्युं, बीजा कोश्नी पासें ए माल नहीं मलशे, तो पो तेंज गरजना मास्या लश् जशे, एवां वचन, आर्तध्यानथी बोले, अने विचारे के, एटला पैशानो हाथ मारी लेश्शु. हवे शी फि कर ले ! एवी रीतें दिलमा आगलथी मलकाय, __ तथा श्रा चीज नवी बे, कोश्नी पासें नथी. माटे कोई सारा शि रदार,राजा, पादशाहने ठेकाणे देखाडीशुतोते पण एने देखी,चा हना करीने लेशे, मने पण मान आपशे, प्यार करशे, उपर शिरपाव मलशे,श्रापणुं पण काम थश्श्रावशे, पैशा मोढे माग्या लेश्शु,अने तेणे करी सारी सारी मोज मारिशें,अने लोको सर्व जोरदेशे.एवा एना मनोरथ प्रमाणे कांश थयुं तो ये नहीं,अने ते पहेलांज मनमां महामन थरहे, खोटां कर्म,आगलथी वांधे.आगलथी झुंजाणी ये के शुं थशे ? चीजमां नफो मलशे के नहीं मले ? अथवा ते चीज,कांश खोवा जशे के रेहेशे? एवी तो खवर रहेती पण नथी, अने वातो करवा थकी कर्म तो साचां वांधे. ए पण आतध्यान,
अथवा महारा घरमां अनाज संग्रह घणो ठे, अने आगला व पनां चिन्ह मागं देखाय दे. अने ज्योतिपवाला पण एम कहे के आगढुं वर्प बहु निषिद्ध, ए माटे जो चार दाणा कोराखशे तो चार पेशा सारी पेठे मलशे, माटें अवश्य पुष्काल पडशे, तो पण वेचीश नहीं, तो धान्यमा त्रगणो चोगणो नको मलशे, तो पण नहीं
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अष्टम अनर्थदंम विरमण व्रत. १०३ वेचु. एम जतां जतां धान्यनो नाव अमारा मनमानतो थशे, त्यां
रेश्राउ गणो नफो, अने ते उपर वली व्याज खाश्शु, त्या वेच . वानी वात काढशुं. ते वखत पैशा घणा मलशे, त्यारे फरी वली
दूर देशांतरथी बीजुं अनाज मगावगुं, तेमां बीजा घणा पैशा मल शे. ए प्रमाणे अव्य वधशे, लाखो रुपैय्यानी मोज करशु, पली वली कोश् अनेक तरेहना व्यापार करशुं, आपणी नजरमां सर्व व्यापार बे, सर्व व्यापारनी आपणने माहिती , को व्यापारमां उगायें नहीं,कोश्शेदेरमा शाहुकार साथै साटुंशोदो लगावशु,कोश्जग्या ये आपणो गुमास्तो रदेशे, त्यांनी हुंमी श्रमारा उपर लखी मोक लशे, अने वली त्यहांथी हुंमी विगेरे श्रमो मगावी लेगुं. अथवा कोरबंदरथी आपणने गम पडे तेवी चीज मंगावी लेश्शु, तेमां पण चार पैशा मलता जशे. अने कोश् वर्षमा चार पांच रकमो सारीश्रा वशे तो लदाधिपति, कोटिध्वज नाम काढीने उजा रहीशु.तेवारें आपणुं पण नाम सर्वोपरि सर्वशिरोमणि थशे. सर्वरीतें आपण ने आसान थर जशे, आपण कोश्ने पण खातरमां नहीं लावशुं. एवामां को ठेकाणे सगाई सादीनो पण जोग बनी जाय, तो घणुंज सारं. पनी घर, बार, हवेली, अहीयांज फरी बनावशु, अने बोकरां, बैय्यां सर्वनो योग मली जाय, मनना मनोरथ सर्वे फले.त्यारें मुश्मननीबाती उपरसाहेबी करी मगदलीशु,त्यारें हैडं उरशे.ए शत्रु पण दीन थरदेशे, एम वली राज्यदरबारमां पण प्रख्यात थश्शुं. त्यारे आपणा प्रिय मित्रोने उंचे अधिकारें चढा वशुं, मुद्दाने काढी मेलावशुं. एटले जेम जेम आपणो जापतो थशे, एम एम मननी श्या प्रमाणे सर्व करीशुं. जोग विलास सर्व करशु. अने जो अहींयां अमारी सादी थर तो घणीज खु शवखती करीने को समय स्त्रीयादिक पोताना जीवथी गुस्लो करी बेसशे, तो ते समयें तेने मनावरां, सारी सारी रीतें वस्त्र
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ष्ट
विरमण व्रत.
जरीयान विगेरे सारी सारी वस्तु पशुं त्यारें ते राजी थशे, इत्यादिक मन कल्पना जूठी साची बांधे, छाने घणां कर्म उपा जें. ते माटे ए र्त्तध्यान बोडीने जो धर्मनी करणी करे तो सारी ने गले काले या जवने विषे धन, समृद्धि, यश, प्रतिष्ठा, मान, मरतवो चाहे, परजवने विषे देवत्व, इंद्रत्व प दवी चाहे, ते अग्रशोच श्रार्त्तध्यान कहीयें.
हवे रौद्रध्यानना चार भेद लखे बे. तेमां पहेलो हिंसानंदरौद्र, बी जो मृषानंदरौड, त्री जो चौर्यानंदरौद्र ने चोथो संरक्षणानंदरौद्र.
·
१ तेमां प्रथम हिंसानंदरौद्र. ते त्रस, स्थावरजीवोनी हिंसा क रीने पोताना दिलमां हर्ष करे, घणा श्ररंजनी चीज जे घर, हवे ली, वगीचा प्रमुख, ते बनावे. पढी तेनी तारिफ, लोकोना मुखेंथी सांजले, नेमनमां बहुज खुशी थायके, जू ! में पोतानी खबर दारीथी के काम कहीने कराव्युं वे ! के जे कामनी सर्व लोको तारिफ करे बे. अमरा जेवी अक्कलनो फेलावो थोडाज जोनो हशे. मारा पैशा जे खरचाया, ते सर्व सफल थया. तथा रसोइ, खावा प्रमुखनी चीज बनावे, तेमां बहुजातिनो मशालो, तथा जदय वस्तु साथै प्रजक्ष्य वस्तु मेलवी अनेक अग्निसंस्कार देश ने खादिष्ट वस्तु वनावे. पढी सर्वने बोलावी करीने नात, जात, मिजमान प्रमुखने जमाडे, त्यारें ते रसिया लोक, जोजन करी करीने रसोइनी तारिफ करे, अने यदेके घ्यावी बनेली वस्तु घणी वार खाधी हशे, पण नाइजी ! प्राजनी मजा तो उरजवे, याज नीमजानी शुं तारीफ करियें ? जेटला मशाला दीधाबे, तेनी खुश वो घणी प्यारी लागे े. एवी एवी वहु तारीफ सांजले, तेथी मनमा खुशी थाय. अने विचारेके फलाणे माणसें, मिजमानी क री हती, तेनी निंदा थायवे ने मे केवुं जोजन कराव्युं ? जेणे करी, सर्व श्रमारी तारीफ करेठे. फरी वली वो श्रवसर पामी
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अष्टम अनर्थदंम विरमण व्रत. शुं तो वली एनाश्री पण घणी सारी रसोश्वनावीशु,तथाराजजोज नअनदय चीजनी नकल बनावीने, तेनोआशय धरीनेखाय खवरा वे, ज्यारे रसिया लोको जमणने वखाणे, त्यारे जाणेके सर्व सफल थयु अने पोताना मनमा खुशी थाय. जुवो! हुं केवी चीज बनाएं डं ? मारा जेवो कोश्होंशवालो तथा जोगी जन नश्री.अथवा राज विग्रह युद्धादिकनी वात सांजलीने खुशी थाय, अने विचारे के ए राजायें सारं कडं, राजा महोटो शमसेर बाहादूरडे. बागलं पण एना बाप, दादा, पादशाहीमा महोटा प्रख्यात हता अने शिपाश गीरीमा घणा मजबूत हता, तेना वंशनो एजे. एना वडवाउँथे.आ जग्यायें फतेह मेलवी, किलो पण खाली कराव्यो, बड़ा अक्कल ब हादूर हता.महोटा मोहोटा संग्रामोमां कुश्मनोने जेर कस्या हता, सर्वनां पोताने चरणे शिर नमावी करी, चोतरफपोताना अमलनो डंको वगडाव्यो हतो, हमणां पण सर्व जुवान एवाज, एऊनी ज्यहां ज्यहां चोकी,त्यहां त्यहारस्तामांपडी चीजने कोश्पण जपाडतोन थी;तो बीजुंझुकहीयें? फलाणो सुलट, एकज चोटमां सिंहने मारी ने पोते एकलो निर्जय थ तेने उन्नो चीरी नाखेडे, बीजाथी एवं शुं थशे? एम कहीने शाबाश, शाबाश कहे, तथा कुश्मनने आप दा अथवा मूवो सांजलीने बहुज खुशी थाए, सीरणी वांदे,मुख म रोडे, मूळे हाथ फेरवे, हाथना पोहोचा मसले, अने महोढेथी कहेके, ए हरामखोर अमारा पुण्यथी मरी गयो, एवां एवां कूडां कर्म बांधे; पण एवी खबर न राखेके, तुं कोण मारवा वा लो? एनी जवस्थिति आवीने पूरी थश, एना उदयमां इती ते
जोगवी, एक दिवस, तमे पण एज रस्तो पकडशो, एनो जूगे गर्व , करवो तेमां कांश सारं नथी,अने तुं मारनारो हतो, तो आटला दिवस शुं काम ढील करी? माटे एवीजे व्यर्थ विचारणा करवी, ते हिंसानंदरौअध्यान कहीएं, ए सर्व मतलब विना कर्म बांधवूने;
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१०६ अष्टम अनर्थदंम विरमण व्रत. · वीजें मृषानंदरौनध्यान कहेले. ते एमके, जू वोलीने हर्ष पामे, अने मनमा विचारेके में केवी केवी वात बनावीने कही के जे वात, सर्व लोकोयें कबूल करी?मारं कपट कोएं पण न जाण्युं. वीजा कोने एवी कला आवडे नहीं. एटला महोटा महोटा छ कल वाला सर्वे मख्या हता पण को बोली शक्या नहीं. में सर्व सवाल जूवाव कस्या. वोलवामां तो घणी करामत. बोलवु ए तो कांश कामज आवेडे, आ वखतें अमें नहीं होत, तो खवर पडत? ए सर्वेनीशी गति थात? एवी रीतें मनमा फूलाय. वली पोताना पुश्मनने माथे जूतुं तहोमत मेले, अने ते दुःख पामे, त्यारें पोतें हरखायके में एने केवो जेर कस्यो बे? तथा पोताना फरजंदसंबंधी प्रमुखनी आगल वातो वनावी बनावीने कहेके, अरे मूर्खा! तमे शुंकरशो? अमे केवां केवा फेल कस्यां ? पण ते कोश्ने मालमज नथी. पोतानुं फेल कोइ जाणे, त्यारे अकल शानी? तथा दरवारमा जश्ने, चुगली करतां राजानो स्वार्थ करे अने मनमां हरखेके, में राजाने केवो वश कस्यो? एवा एवा मनमा कुविकल्प करे. इत्यादिक मृपानंदरौऽध्यान कहीये.
३त्रीजु चौर्यानंदरोऽध्यान. ते एमके, नरक जीवोनी साथ कूड कपटनी वातो वनावीने घणा मूल्यनी चीज ठेक थोडामूल्यमां ले, तथा पारकुं अव्य, व्यवहारथी अधिक ले, तथा चोरी करीने को इनी गुमास्तीमां जूतुं साचुं नामुं मांनी दे,अने पैशा खा जाय. कपट कला वनावीने शेठने प्रसन्न करी, पठी मनमा हर्प पामे के, अमारी केवी कला आटदुं अव्य पण खाधुं अने शेउने पण राजी राख्या. मारुं के महापणठे?
तथा व्यापार करे, तेमां जूग जूग सोगन खांश्ने अने मीवं बोली करीने वीजाने प्रतीति करावीने अधिक मूल्यनी वस्तु, थोडा मूल्यमा ले अने थोडा मूल्यनी वस्तु अधिक मूल्यमां वेचे, तोलमां
३ बीजू चौया बनावीने घणा कले,तथा
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अष्टम अनर्थदंम विरमण व्रत. १०७ उापे,अने वधारे ले, तेथी पोताना घरनां संबंधीथी वधारे क माय त्यारें मनमां हर्ष पामे अने घरमां फूलाय के, मारा घरमां ए ना प्रमुख, ते सर्व नकाराजे. कोश्मां को वातनी सलुका नथी, तो व्यापारनी कला क्याथी आवशे ? व्यापार करवो तो बहु मुश्केल, अने मोहोटी अक्कलनुं काम. अमे न होत तो ए सर्वनीशी गति थात ? जूठ ! आ चीजना शोदामां तमे केटलो न फो दीधो ? अने तेज चीज अमे वेची, तो सर्वनी हजूर बाट लो नफो लीधो. ए अक्कलनु काम. हमारी कलाने तमे नहीं पामो, एम पोताना जीव साधे फूले.
वली राजद्वारमा पोतें जातो होय तो त्यहां साचां जूगं फेल बनावीने लोकोने कर देखाडीने राज्यमा पैशा लेवरावे, अने पोते पण वच्चेथी कांई लश्ने सुखेंथी खाई जाय. चार वातो सारी तरेहथी बनावे. कोश्ने त्या विद्यानुं फेल बनावीने, इंग्रजाल प्रमुख चमत्कार बतावीने विश्वासघात करी, तेनी पासेंथी पैशा ले, अने मुखथी कहेके, अमे तमारुं अव्य फोकट गमावनार नथी. तमे अमारी तरफनी खातर जमा राखजो, एवी रीतें कही ने पारकुं अव्य, खा जाय अने वली खरचावे, अने लोकोमा महोटो विछान् कहेवाय, अने मनमां जाणेके जुर्ड ! मारा जे वो कोण अक्कलवान् बीजो हशे, के आवी रीतें पारकुं अव्य खा य ? लोकमां पण हुं सर्व ठेकाणे विख्यातबु,महाराज जेवा प्रख्यात तो मारा पिता पण न हता. हुँ बालपणामांथीज कसा करीने लावूडं. एवी खोटी कुगतिनी सहायता बांधे, अने फेल करे...
क्यारेक औषध, जडी, बुट्टी प्रसुख यहा तछा कंश्कथी लावीने तेनी लोकोना सुख आगल घणी तारीफ करे, के हुँ आजे औषध बना , ते रसायन. ए औषध, खानारने वह गुण करवा वा तुं . में ए औषध उपर घणो पैशो खरच्यो. एना उपर रात
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(០ច अष्टम अनर्थदंग विरमण व्रत. दिवस घणीज मेहेनत थश्वे. ए औषध, हुं तमनेज आपुं बु, तमे अमारा बो माटे आपुबु. वली तमने दररोज खरच पडे बे, तो जे औषधनी तमे तारीफ करता हता तेज औषधि आज हुं तसने श्रापुंडं. तेनी तमारे अमोने एक दमडी पण आपवी पडशे नहीं, मात्र मोवतने खातर आवं तमोने गरमी रहे, ते माटे ते गरमीने मटाडवाने आज, मने यादगिरी श्रावी. तेथी में तमने औषध आप्युबे. ते सांजलीने ते औषध लेनार कहे के, मारीउपर आप साहेवें महोटी महेरबानी करी. तमे अमारी खबर न व्यो, तो वीजु कोण लेशे ? एवी तजवी जश्री वातो बनावीने पैशा लीए, महोटी लायकी बतावीने, आगलानी पासेंथी पैशा लेख्ने खुशी थq. इत्यादिक खराब वि कल्पना करवी, ते पण चौर्यानंदरौद्ध कहीएं.
४ हवे चोथो संरक्षणानंदरौष कहेजे. संरक्षणानंदरोड, एटले परिग्रह, धन, धान्य, घणुंज वधारे. वली अधिक वधारवानी छा करे, पाप कुटुंवतुं पोषण करवाने माटे परिग्रह वधारवानी वे हद्द कुबुद्धि विचारे. अने तेवां कर्म पण आदरे. लोकविरुवादि कनी अपेदान करे. एम करतां वली को प्राचीन पुण्यें करीपाप परिग्रह पामे, अने घणुं अव्य मले, त्यारें मनमां घणो हर्प पामे अने कहे के, जुर्ड! या सर्व में एक जीवें पेदा कझुंडे, एवो मारा जेवो कोण हुशीआर थशे ? अने मारा जेटली दोलत कोण मे लवशे ? एवा अहंकारें करी, मग्न रहे. अने तेज परिग्रहमा पो ताना मननी वृत्ति लागी रहे. रखे ए परिग्रहने कांश नुकशान थाय ? एवी रात दिवस चिंता करे, अने अव्यने घणा यत्नथी जा लवी राखे, ताला प्रमुखनी खवरदारी राखे, रात्रे सुखें करीने सू ए नहीं, सगा पुत्रनो पण विश्वास करे नहीं. अने पुत्रादिकने क देके, तमारामां शं अक्कल ? तमारी वुझिजती रहीछे कारण
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अष्टम अनर्थदंग विरमण व्रत. १०ए के, तमे निरुद्यमी बो, माटे अक्कलवाला था. अमारी पढें तमे क्यारे पण कमाशो? तमे तो धनने बगाडवा वालाबो. अमे ज्यारें नहीं होश्शु, त्यारे कोण जाणे पाउल तमारा शा हाल थशे ? तमारा लक्षण तो हमणांथीज जाहेर दीगमां श्रावे, जे तमोने थागल जतां मोहोटी आपदा पडशे. कमाववानी युक्तितो कोश्मा पण नथी, तो आ पेट, केम जरशो ? अरे मूर्खायो !!! धन कमा वq तो महा मुश्केल. कमाई करीने सलुकाश्थी एकतुं राखq. ते तो वती घ[ज मुश्केल . हमणां तमे सारी रीतें जूठेके, हुं धन कमायो अने कमालं पणडं. आज सुधी लोकोमा प्रतीत, आबरु अने व्यवहार राखता आव्या बैयें, ते अमारी खबरदा री जाणवी. अने दुश्मनोने पण जेर करीने पग नीचें राख्या जे. मारा बतां को दावो मुद्दो पण काढनार नथी. तमारा जेवा होत, तो धन कमावq तो दूर रडं, परंतु ते उश्मनो तमने खावा पण देत नहीं, एवा पुश्मनो लागी रह्याने, ए माटे अमारी अक्कल शीखो, के जेणे करी तमारं जर्बु थाय, ए प्रमाणे परिय हमां चेतना लागी रहे, तेने संरक्षणानुबंधिरौअध्यान कहे. ए सर्व अपध्यानाचरित अनर्थदंग कहेवायजे.
एटले प्रथम अपध्यान अनर्थ दंग. तेना पूर्वे बेनेद कह्या, ते मां एक अर्तध्यान, अने बीजो रौजध्यान, ए बेज ध्यानना नेद, विस्तारथी कह्या. हवे बीजो पापकर्मोपदेश अनर्थ दंम लखेडे.
बीजो पापकर्मोपदेश अनर्थनम. ते हरेक वखतें कोश्ने घर संबंधीने लजा दाक्षिण्यता विना पापोपदेश करे,ते एम के तमारा घरमांवाबरडां महोटां थयां ते धमारे देखवामां आज आव्यां, ते माटे तमने कहीयें बैये के,तेजने हवे समारो के जेम ए वाडरडांसुध रे. तो पड़ी गाडी, हल विगेरे सर्वस्थानमा सारी रीतें जोतरी शकशो, नहीं तो तेर्जना शरीरनुं बल वधशे. तेथी गायने जो
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११० अष्टम अनर्थदंग विरमण व्रत. ने उन्मत्त थशे, ने लोकोने मारशे, ए माटे एने पलोटो, श्रने उतावलथी खासी करावो, पोताना मालने शा माटे बगाडो बो ? हमणां एने नहीं पलोटो तो, पनी ए जूतमां जूपशे नहीं. अने फेरवशो तो चमक मटी जशे. नाथ्या विना तो चालेज नहीं, ते माटे नाथवो तो पहेलोज जोश्ये. एवो पापोपदेश करे. वली कहे के, आ घोडीनो वबेरो महोटो थर जायचे. हवे एने फेरणीथी एटलेदोरीथी फेरववो जोये जेथी करी ए वजेरो,सारी चाल शीखे एने चोकडं, लगाम चढावो. हवे एना जपर काउडो विगेरे साज सांड्या करो.बांध्युने वांध्युं राखवाथी जानवर खराब थर जायजे.
तथा वली एम कहे के, वरसादना दिवस आव्याने माटे आपणा खेत्रमांथी गांठ, गुठ, घांस, खाडा विगेरे होय, ते कपावी नाखीने सुधारोके जेथी करी जमीन साफ थाय, अने वरसादk पाणी खेत्रमांज जरी जाय. पाणीएं पचीने जमीन तर थाय तो तेमां धान्य सारं नीपजे, वली वरसाद पण आव्यो, माटे घरनी मरामत करावो. ए घर जाजरं यश् गजुबे, माटे फरी बंधावो. आ वखतो. अने हंमणां मशालो मजुरी सो शस्ता थयांबे. हवे मूलथी नवी हवेली वनावो. ए वावत तमोने खवर न होय, तो मने पूबी लेजो. अमें जे मनसुवाथी कसु एवी तजवीजथी तमे पण वनावशो तो सर्व को जोश्ने आश्चर्य पामशे. एवो उपदेश देश्ने खोटां कर्म वांधे; तथा फरी वली एवं कहेके, नाइजी ! त मारी दीकरी तो घणी महोटी थश्. एनी फिकरमा तमे वो के नहीं? हवे विवाह करवा योग्य अश्वे. ए माटे तमारी पासे कोश न होयतो, मारी पासेंथी लियो, पण वीजा कोनुं करज करशो नहीं. जो करजें काढवा होय तो मने कहेजो, एटले मारी मात वरीथी तमोने कोश्नी पासेंथी अपावीश; परंतु तमारे था काम
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अष्टम अनर्थदंग विरमण व्रत. . १११ करवु जोएं. ए धर्मर्नु काम, माटे एमां ढील करो नहीं. एवी रीतें संसारने वधारनारो उपदेश करे.
वली कहे के, हे नाजी ! बगीचो समरावो, को ठेकाणे जमीन सखत होय, तो त्यां आग लगाडो.एमां जंगलनी पवें घांस कुशनो घणो वधारो थयो, ते कपावी नाखीने ए जग्यायेंज बाली ना खो एटले ते जमीन साफ थशे. एवी रीतें कहे.
वली वीजी प्रेरणा करे के, फलाणो माणस, तमारी साथें छ इमना करे. तेने जेर करवानो हमणा तमारो वखत. राजद रबारमा तमारे तो वग बे. ए माटे को ठेकाणे को पेचमां वेश्ने फसावी नखावो. आपणुं चालतुं होय, त्यारें तो उश्मनने जेर करवानो उपाय कस्या विना रहीएं नहीं; मारी तो एवी अक्कल. श्रावो अवसर तमें फरी क्यारें पामशो ? पोताना चालता चलण मां सारं नगरं करवामां न आव्युं, तो जींदगीनुं फलशं? ते मा टे दुश्मननो नाश करी, तेने नाबुद करवो, तेज सारुं. ए तो त मारी बदगो लोकोनी आगल घणीज करे, एक बे वखत तो में पण सांजली हती. ते माटे तमे मूर्ख लेखाउँडो, ते पुश्मन शी र उपर चढतो जायजे. एटली पण तमोने कालजी नथी. पुश्मन ने तो उगतोज जड मूलथी कापी नाखवो, लोकोनी एवी कहे वत के, " करतेसेंती कीजीयें, अथवा हणताने दणियें, एमां पाप दोष न गणीयें” एवो एवो उपदेश आपे.
वती बीजाने एवी रीतें कहेके आटलो वधो दिवस चढ्यो तो पण हजी रसोश्नी तो कां वातज नथी. उठो जश्ने रसोश्नी कांश तजवीज करो ! चोको प्रमुख देवरावो, स्नान करी रसोई कस्या पली, सर्व काम थायजे. अमे तो उठतां वेत, महोटा परो ढीयामां रसोश करी खायें तो पड़ी थमने का काम काज सुजे. इत्यादिक उपदेश आपे, प्रयोजन विना जूतुं साचुं कहे, तेमां
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अष्टम अनर्थदम विरमण व्रत. शुं फायदो ? उलटुं एवं करीने पोताना आत्माने बंधन करवू. ए वीजो पापोपदेश अनर्थदंग कह्यो.
३ हवे त्रीजो हिंसाप्रदान अनर्थदंग कहे. पोताना संबंधी ने दाक्षिण्यताथी तथा कोइ पण गरज विना हरकोश्ने कहे, के, केम रसोश करता नथी? अनि न होयतो अमारे घेरथी अग्नि लेजार्ज.वली ज्यारें जोश्ये, त्यारें घेरथी सुखें अग्नि लइ जजो. अ मारेत्यां तो ज्यारेजोश्ये त्यारें अग्नि रहेज ,माटें सुखेंथी लश्जा. वली एवो उपदेश करेके, अग्नि देवानुं तो महोटुं पुण्य, वली कहे के, आज वजारमा तरकारी एटले शाक नाजी घणुंज आव्युंडे, ते जलदी ले आवो, एक बे दिवस चाले एटलु ले श्रावो, पबी फलाणी तरकारीने तो चाकुयें करी, आपणे हाथे बोलीने सारीब नावगुं; पड़ी तेमां हिंग, हलदर, विगेरे मशालो, सर्व नाखीने रांध शं, तो पनी खावानी वखतें तेनी मजा पामशो; त्यारें कदेशो के, शाबाश. वली आगल पण तमे निरंतर एज तरकारी खा शो, जे खावानी चीज , ते सारी रीतें वनावीने खाश्ये, कारण के को जुए तो पण कदेके, ए घणा चतुर पुरुषो. एवी रीतें कोश्ना पुन्या विना कहे तथा माग्या विना अग्नि प्रमुख आपे, अधिकरण क्रियानी अक्कल शिखवाडे, ते पण अनर्थदंग. __ तथा वीजा यंत्र. जेवा के घंटी, खारणी, सांवेलु, गाडी, रथ, वाहाण, चरखो, चरखी, घाणी, सूडी, दाव, बूरी, चीपीया, कात र, पावडो, तरवार, खंती, कुहाडो, फरशी, बीजा पण सर्व हथी यार नाना मोहोटा जेटला होय. ते तरवार, वंदूक, कटारी, कवा ए प्रमुख तथा वली वीजां अधिकरणमां सावरणी, पावडी, पं खो, घांसनी टट्टी, जीड, आदि दश्ने तथा बीजां मंत्र, साप वींठी उतारवानो तथा तीड वर्षादना दिवसमा क्षेत्र खायवे, ते मनी माढ मंत्रथी उतारे तथा खिलावणी करे, तथा माकिनी,
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अष्टम अनर्थदंम विरमण व्रत.. ११३ - व्यंतर, चूडेल, नूतडी प्रमुख. नूत, प्रेत, कोड, व्यंतर, ग्रहीत
एटले एउथी पीडाताने बोडाववाना काडा प्रमुख उपचारो करा ववा, तथा धूणाववां, खेलाववां, शीशामा उतारवां तथा मा रण, मोहन, मुखबंधन करवानां, तानां, तुनां, जामु प्रमुखना करवां, तथा काष्ट कपावीने नवां उखल, मुशल, चक्की, मांची, खाट, चोकी, अने खडाउ प्रमुख जे थकी जीवहिंसा थाय, एवां अधिकरण बनावे. बीजा पण जे थकी हिंसा थाय, एवां सर्व उपाय एमां जाणी लेवां. तथा मूलगर्न एटले गर्नादि थवानी जडी, उषधि, यंत्र, मंत्र प्रमुख करे, करावे तथा कोश् स्त्रीने कुकर्म थकी गर्भ रह्यो होय, तो ते स्त्रीने ते गर्भपात थवाना उषध प्रमुख करी खवरावे, अथवा कोश् शातन, पातनना इलाज योनि प्रमुखमां बत्ती अथवा गोली चढावीने गर्भपात करे, अथवा बीजानी पासे करावे तथा मोदन वशीकरणनी जडी, बुट्टी, तो डावे, होम करावे, त्यां बलि प्रमुख जीवनो थापे, अथवा थ पावे, तथा बीजा पण उषध करवानां पत्र, मूल, कंद, फूल, फल प्रमुखनो हुन्नर शीखवाने तेने जमीनमांथी तोडाववां, को उपा य करीने खोदी कढाववां, कोश्क चीजने पीलावीने तेनो रस कढा ववो, ते पण अधिकरण क्रिया अनर्थदंग जाणवो,
तथा बीजी रसायननी क्रिया करवाने श्राप प्रहर, शोल प्रहर सुधी अग्नि आपे, ए रीतें हरताल, पारो, सोमल, त्रांबू, रू', सोनु, तथा लोहने मारवानो हुन्नर करे, करावे, बीजाने बतावे. ए रसायन करवानो विधि, ए पण सर्वअधिकरण पापोपदेशनां बे. तथा बीजी तेल क्रिया, ते अनेक जडियोना रस काढे, अथ वा अनदयादिक कोई चीज उकलता तेलमां नाखे, अग्नि निचें आपी बे, तेनी तो गणती पण न राखे. एवा आरंज करे. नारायणी तेल, लादयादिक तेल, विषगर्नतेल, तथा शतपात
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१२४ अष्टम अनर्थदंग विरमण व्रत. सहस्रपातादिक तेल प्रमुख, तेनुं करावq तथा बीजां जे जे जडी, बुटीथी औषधक्रिया, जामुक्रिया, वशीकरण करावयूँ अथवा वि रोधकरण, उच्चाटन, श्रागीयो, कतरीयो, रगतीयो, प्रमुख तथा वीरोने चलाव, इत्यादिक क्रियामां पोतें कुशलबे, तेवारें कोश ने संबंध विना दाक्षिण्यताथी पोतानी सिकाइ देखाडवाने अर्थे अथवा पोतानी बाबु, बुजरगी वधारवाने अर्थ लौकिकमां यशनी वृद्धि थाय एवा कारणे तथा महोटाश्नो फांको राखवानुं विचा री ते मूढ पुरुष, धर्मसंज्ञाथी मंत्रादिक प्रयुंजे, मंत्रादिक पोतें करे, अथवा वीजो को तेनी सेवना करे, तेने शिखवाडे अने हिंसानी परंपरा वधारे, परंतु ए वझां, कृत्यो, परंपरायें पापवंधन करवाना उ पायरूप.तथा बीजुं पण घणा थारंज रूप विविध प्रकारनी जडी, हुट्टी मंगावीने तेनुं तेल काढी,घरमा राखे.अने वली लोकोने कहे के, अमारा घरमां एटली चीज हाजर, जेने जोश्ये, ते सुखेंथी मं गावी लेजो, अमें तो लोकोने आसन थवाने अर्थे बनावी, एवी पोतानी प्रज्जुतावधारवी तथा वली वीजुं कहेके, फलाणा माणसजी! आज काल तमे फिकरवान् केम रहोबो ? अमारी पासें श्रावजो जे कहेशो, ते तमारी फिकर, अमे मटाडी आपीशुं. तमारं कार्य करी आप\.अमेा अमुक चीज, राखीते वझी परोपकारने श्र" र्थेज राखीठे, एवी वातो करे, पण ते मूर्ख एवं न विचारेके एथी महोटो अनर्थ श्राशे. पोतानी तुछ बुझिना प्रमाणथी सर्व पापयोग करी आपे, त्यारे आगलाऊना पुण्ययोगें करी धारेलुं कार्य थाय, तेवार ते वखाण करीने कके तमारी शुं तारीफ करिये ! तमे तो महोटा परोपरकारी ठगे, लायक माणस ठो. परलोक सुधारो बगे, तमारा जेवो वीजो कोइ पण या शेहरने विपे अमारी न जरमां आवतो नथी. तमारा जेवो कोण थशे. तमें तो रत्नरूप ठो, वही वातोथी आप दयाना सागरो, सर्वलोक, पठवाडेथी
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अष्टम अनर्थदंम विरमण व्रत. ११५ तमोने धन्य धन्य कहेजे. ते वारें एवीरीतनी पोतानी तारीफ सां नलीने पोतें घणोज खुशबखत थाय. अने मनमां फूलायने जा
के महारी बछाने चाहना रहे. फरी एवी पोतानी घणी ता रीफ सांजलीने आगल करतां वधारे अधिकरण मेलववानो उद्य म करे, वली बीजाने पण अधिकरण पोतें आगल थश्ने बनावी अपावे. पुनियांमां आरंजक्रियानी उस्तादी श्रापे, लोकोने कहेके को शिष्यने महारी विद्या बझी शीखवाईं, हवे हुं वृद्ध थयो ढुं भाटे आ क्रिया, सर्व शीखो, ए हुन्नर रूडोडे, एमां कमाइ पण . बे, अने बहुज शोजा, यश, कीर्ति बे, जीवदया पण पले. वली अमारं, पण नाम कायम रहेशे. तमें लोकोमा कहेशो के, अमुक माणस पासें थी अमे ए विद्या पाम्या बैये. तेथी महारो पण लोको मां यश वधशे. वली ए क्रिया शिखीने कोश्नी उपर उपकार करशो, तो तेने आराम थशे, तेथी तमारुं पण नाम थशे. एवी वातो करे, पण ए समयक्रिया पाप रूपजे, तेनी खबर अज्ञानना प्रबलथी तेने रदेती नथी. इत्यादिकने हिंसा प्रदान अनर्थदंग कहिये.
४ चोथो प्रमादअनर्थदंग कहे. ते एमके, उता सामर्थ्य अ ने बता योगें जयणा करे नहीं. चालतां चाले. तेटलामां खाली गडबड करे, कारण विना पाप लगाडे, ए केवल, पोतानी अज्ञान ताथी तथा धितांश पणाथी लागे, जेम घणी जातिनां तेलमर्दन करावीने उपर उवटणा, पीठी अने सुगंध अव्य निष्पन्नथी तेलनी चीकणाश मटाडे, ते पीठीमां कडवी, तीखी, घणी गरम चीज आ वे तेथी अंगुठणा करावीने, पजी जीवोयें करी परिपूर्ण एवी जूमि होय, ते जग्या उपर बेसीने स्नान प्रमुख करे, त्यहां ते पीठीना पाणीनो रेलो चाले, तेथी करी त्यां जे जीवो होय, ते कडवा रसना गंधथी विनाश पामे, तथा ज्यां थोडा पाणीनुं काम होय, त्यां घणुं पाणी रेडे. अहींयां तजवीज करी शुद्ध नूमि जोश
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१९६ अष्टम अनर्थदंग विरमण व्रत. करीने स्नान मऊन करे, तो दया पले.प्रमाददोषथी धर्मनी को किया गडबडनरी करे तथा कौतुक, नाटक, पेषणा प्रमुख, पोते जोवाने जाय अने वीजाने साथें ले जश्ने देखाडे, त्यारे ते दो डा दोडीथी चालता आवे, तेणे करी घणा जीवनी विराधना था य. त्यां जर तमासो जुए; खुशी थाय, बीजाऊनी पासे तारीफ करे. पोतानो पालोक परलोकनां साधननो जे व्यापार, जप पूजादिकनो उगरेलो वखत पण थर जाय, तेथी ते काम पण वगडे. फरी ते, घणा तमासा जोश ने घेर आवीने परिजनोनी श्रागल वर्णन करे. तेणे करी पोतें चीकणां कर्म बांधे, बीजाना पण परिणाम बगाडे तथा कोसती,सत करवाने माटे काम लेवा चाले, अथवा कोश् चोरने मारवा माटे ले जता होय, त्यहां जोवा माटे दोडे. जोवा उन्नो रहे, त्यां एना मनमा ए परिणाम रहेके हवे ए चोरने क्यारें मारशे ? अने सती एनी मढुलीमांक्यारें पेस शे? अग्निमां केम बेसशे? वली ते शिवाय बीजुं पण मिथ्यात्वीनी अनुमोदना, तारीफ करे, चोर मारे, त्यां चोरना पापनी निंदा करे. त्यहां चीकणां कर्म वांधे, फरी फरी ज्यारे ते वात काढे, त्यारें तारीफ करे, ते वखते पण चीकणां कर्म वांधे. एम केटला ' एक वखत वारं वार कर्म वांधे. तथा काम शास्त्र जे कोकशास्त्रा दिक तेनो घणो परिचय करे. चोराशी जोगासन शीखे तथा वीजाने शिखवाडे. पडवादिकथी मामीने पूर्णिमा तिथि सुधी शुदि तथा वदिमां चढतो उतरतो कामदेवनो वास तेने पोतें धारे, अने वीजाने धरावे.नखशिखनां वर्णनादिवालां शास्त्रने नणे अने नणा वे तथा जावनेद अंग उपांगने वतावे. वली नदीने तट, जलकी डा करवाने जाय. वीजाने वोलावे. ते नदीमां ज्यां सुधी पोतानो परसेवो मेल धोवाइने ते मेल- पाणी चाले, त्यां सुधी सर्व जल जीव जे सूक्ष्म होय, तेऊनो नाश थाय. वली होशें करीने पोतानी
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अष्टम अनर्थदम विरमण व्रत. कामसंज्ञा वधारवाना हेतुएं केफी वस्तु जे माऊम, गोली, चूर्ण प्रमुखजे, ते खाय, वली पंचेंजियवधोत्पन्न एवी, मलमनी पट्टी ल गाडे, बंधेजनुं औषध करे. बीजाउने शिखवाडे, तथा जे वचने करी पोताने तथा पारकाने कामसंज्ञा वधे,अने चेतना बगडे,एवां वच न बोले, बीजा पासें बोलावे, तथा हाथना, मुखना, नेत्रना, अने व्रकुटीना चाला करे,जे चाला देखीने बीजाने इस आवे. वती कोश्नी मश्करी पोतें करें, बीजा कने करावे, तथा अत्यंत मर्मनां वचन बोले.
१ तथा राजकथा, ते राजानी दोलत वखाणे, राजानी ल ढाइ वखाणे के एवीरीतें फोज चढी अने एवी रीते लढा थ. ते श्रमे पण उन्ना रहीने दीठीजे. एवी रीतें मनसुबो करी ने पुश्मनने जेर कस्या.ए महोटो शमसेर बाहादूर कदेवाय जे. वती राजाना जाग्यने वखाणे. कहेके ए राजानी बराबरी कोण करे? आजे तो,ए बीजो इंजतुल्य.अने राजाना काम नोग,व खाणे ने कहे के,आटला शेर अत्तर तो नित्यनोगमां आवेडे,व ली राजाना अंगबलनुं वखाण करे.
२ तथा काम काज विना देशकथा तजत जे इंजियसुख जे खान पानादिक,तेने वखाणे,अथवा वखोडे. ते सांजलीने बीजाउनी प ण चेतना तेवा विषयो उपर राचे.पोताने आरंजनी अनुमोदना थाय, तेथी ते देत्रविपाकी कर्म बंधाय.
३ तथा स्त्रीकथा जे स्त्रीनुं रूप, रंग, चतुराश, तेना बदफेलनी निपुणता, तथा शुकबहोत्तेरीनां दृष्टांत संजलावे,जारी विजारीक री जाणे. ते महोटो चतुर केदेवाय, ते वातो सांजलीने कश्क पु रुषतुं परिणाम बगडे, स्त्री सांजलीने फेल शीखे, पोताने विषय कर्म जूदी जूदी नातिनां बंधाय. ४ तथा नक्तकथा जे खावू पीवुअशनादिक चारे प्रकारना श्रा
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विरमण व्रत.
हारनी कथा कहे, वखाणे, तथा वखोडे, कोइ रसवतीना संस्कारनी वात तरेह तरेहनी करीने तेने वखाणे, ते रसवती बीजाने शिखवा डे. अनेकदेके फलाणी रसोइ, फलाणी तरकारी या रीतें वना वीयें तो ते एवी स्वादिष्ट थायके देवता पण पोतें वीने यारो गे, परमेश्वरने पण तेनो जोग चढे, एवी वनेबे, अहींयां निष्क लंकने पण कलंक लगाडे. वली एणे करी गाढ, मिथ्यात्वनुं पो पण याय. केटला एक जीव, ते सांजलीने एवा आरंभमां प्रवर्त्ते. तथा एक दिवस बहु श्रारंभ करीने खाधुं, ते फरी फरी याद करी ने वखाणे, त्या वारंवार चीकणां कर्म बांधे. ए चार विकथा क स्वाथी लाज, मर्यादा, नीति तथा धर्म ने गंभीरतानी हानि करे, एथी लवाड कड़ेवाय. वली ए चार विकथा न करे, तो तेथी कां पोतानुं काम बगडे नहीं, ने कांइ इंद्रियसुखमां पण हा नि न थाय, केवल नकामुं चीकणुं कर्मबंधन थाय. ए प्रमाद श्री थाय. ए कुचाल जो मटाडीदे तो मटे, ए रीतें कामकाज विना फोकट आत्मा कावे, ए प्रमादाचरित अनर्थदन कहीयें. हवे एतना पांच प्रतिचारबे, ते लखेटे.
१ प्रथम कंदर्प कुचेष्टा अतिचार. ते एमके मुख विकार, चकु टी विकार, नेत्रविकार अने हाथनी संज्ञा वतावे, पगना विकारनी कुचेष्टा करे, अने ए चेष्टा करतां थकां वीजाने हसतुं श्रावे. कोइ ने कषाय उपजे, तेथी क्यांनी क्यां चाली जाए, ए कारणे पोता नी लघुता था, धर्मनी निंदा थाय, एवी कुचेष्टा करे, तेने प्र थम अतिचार जाणवो.
२ वीजो मौखर्य प्रतिचार. मुखथी अतिशय वाचाल पणुं करे, एटले संबंध वचन वोले; जेणे करी वीजानी एव प्रगट श्राय, ने से कष्टमां पडे. वली पोतानी लघुता थाय, वैर वधे, विद्या
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अष्टम अनर्थदंम विरमण व्रत. ११॥ इ, लबाड, चुगलिजे, इत्यादिक नाम पडे. लोकमां लाज गमाडे. एवी रीतें घणुं वधीने बोलवं, ते बीजो अतिचार. ३त्रीजो जोगाधिक आरंज अतिचार.ते एमके जोग, उपनोगमां, स्नान, पान,आहार,धोवन, विलेपन, इत्यादिक शौचता प्रमुख श्रा रंजनी क्रियाउँने,ते पोताना खप करतां वधारे करे. नकामो आरंज करे,एणेकरीअव्यनोव्ययथाय.घणोशकधरे, तेत्रीजोअतिचार.
४ चोथो काममर्मकथन अतिचार. ते एमके, कामनां मर्म बोले जेना बोलवाथी पोतानी तथा बीजानी चेतना काम क्रोध मय थर जाय. एवं बे तरेहन बोलवू तथा विदरनी वात कुहा, साखी, रेखता, फुलणा, कवित्त, परजीया, श्लोकमां शृं गाररसनी कथा कहेवी. ते चोथो अतिचार.
५ पांचमो अधिकरणदोष अतिचार कहे. ते एमके पोताना काम काज करतां अधिक अधिकरण मेलवीने तैय्यार करी राखे. सर्व अंगोपांग मेलवीने सुधारीने राखे. ते अधिकरण कहीये. जे णे करी हिंसादिक पापस्थाननी पुष्टता थाय एवा रथ, उखल, सुशल, घण, चकी, बरी, तरवार, कटारी, बंदूक, कमान, तीर, त रकस, ढाल बरठी, सूडी, बिनी, फरशी, पावडो, कोदाल, केची, आरा,सांडसी, दांती, कोदालीप्रमुख हथीयारपोताने जरूर जोश्य तेथी सर्व वधारे बनावे. अने ते हथियार, विना संबंधे अने मा ग्या विना दाक्षिण्यताथी बीजाने चाहीने आपे. ए पांचमो अ धिकरण दोषनो अतिचार. ए आठमा व्रतना पांच अतिचार जा णवा. पण आदरवा नहीं, समजु श्रावकले, तेतो त्याग करे. ए एमने महोटो लान. .
इति श्री द्वादशवत विवरणे अष्टमअनर्थदमविरमणनामा तृती यगुणवते पंमित श्रीउद्योतसागरगणिनाकृतनाषा संपूर्णा ॥७॥
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नवम सामायिक व्रत.
॥ अथ ॥ ॥ नवम सामायकनामक प्रथमशिदा व्रत प्रारंनः॥
॥ दोहा॥ अव चो शिक्षा व्रत कहुँ, नवम सामायिक नाम; दोष वतीसे गंमि करि, वैठे एकंत धाम ॥१॥ कादश कायांके प्रथम, पुनि दश वचन प्रमान; मनके दश दोष जु मिली, सब बत्तीस सुजान ॥२॥ एवी रीतें बॉ, सातमुं, अने श्रापमुं ए त्रण गुण ब्रतो कह्यां. हवे पूर्वोक्त आठे व्रतने अने आत्मगुणने पुष्टिकारक, अविरति विषय कषायमां तदात्मन्नावें मल्यो, अनादि अशुद्धता जे विनाव परिणामनी देव ते मटाडवाने,अने यात्मिक गुणानुनव करवाने, सहजस्वरूप रसास्वादनी मजा पामवाने,नवमुं सामायिक करण रूप पहेलुं शिक्षा व्रत लखेडे,
त्यहां सामायिक ते जघन्य वे घडी प्रमाण, ते श्रातरौन ध्याननी परिणति रूप क्रिया ते अशुन सावध व्यापार कहीएं; तेनो त्याग करीने अत्माने समता परिणाममा राखे, ते सामा यिक कहीयें.अथवा सम प्राय सामायिक एटले सम के० सम्यक प्रकारे रत्नत्रयी जे ज्ञान, दर्शन अने चारित्र रूप सहज रूप उदासीनवृत्ति मुक्तिनो मार्ग, ते सम कहीएं. तेनो जे आय के लाल थाय जेने विषे तेने सामायिक कहीयें. ए सामायिक व्रत,वे घडीनी मुनिना नावनी वानकी अथवा निशानी.अने अनादि कालना संसार परित्रमण थकी विश्राम करवानो रूडो उपायने. हवे जे साधक होय, ते वे घडी स्वरूप सन्मुख चेतना करीने अने सहज स्वरूपनी चाहना धरीने अने सकलसावध त्रिकरणयोगें तजीने सामायिक करे. ते वत्रीश दोष टालीने करे त्यारें शुद्ध थाय. तेमा प्रथम कायाएं करी वार दोप थायवे, ते वतावे.
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. नवम सामायिक व्रत. - प्रथम दोष.सामायिक करती वखतें पग पर पग चढावीने उंचे श्रासने पलांठी वालीने बेसे, ते माहात्म्य पर्यायथकी विनय गुणनी वृद्धिनी हानि करे, अथवा वस्त्रवडे जानु एटले गोठण बांधी करी बेसे,ते प्रथम दोष,माटे जेणे करी विनयगुण रहे, उझता न जणाय,अजयणा न होय, एवा आसनें बेसे.
बीजो चलासनदोष.ते आसनने स्थिर न राखे,वारंवार श्रा गल पाबल चलायमान करे, पोतें चपलता घणी करे, मूलमार्ग तो एवो के,श्रावक एकज श्रासने बेसीने सामायिक पूरुं करे, श्रमगपणे रहे, कदापि रोग निर्बलतादिक कारणे एकासने टक्यु न जाय ने फेरव पडे, तो उपयोगसंयुक्त जयणापूर्वक उठी उठीने चरवलाथी पुंजन प्रमार्जन करीने आसन फेरावे. पण एम कीधा विना चपलता राखे, तो बीजो चलासनदोष लागे,
३ त्रीजो चलदृष्टिदोष, ते सामायिक लेश्ने पनी दृष्टिने ना सिका उपर राखे,अने मनमां शुम श्रुतोपयोग राखे, मौन पणे ध्यान करे. तथा जे सामायिकवंतने शास्त्रच्यास करवो होय, तो जयणायुक्त थश्मुहपत्ति मुखें बांधीने पुस्तक उपरदृष्टि राखीने जणे तथा सांजले. तथा सामायिकमां काउसग्ग करवो होय,तो चार अंगुल आगल अने साडात्रण अंगुल पबवाडे एटली बन्ने पगनी वच मांमोकलाश रहे,एवी योगमुजायेंजनोरहे, बन्ने बाहुप्रलंबितरा खे अने दृष्टिने नासिका उपर राखे,अथवा जमणा पगना अंगुग उ पर राखे,ए शुद्ध सामायिकनी शैली.ते शैलीने बोडी करीने चपल पणे चारे दिशायें चकित मृगनी परें नेत्रो फेरवे, ते त्रीजो दोष.
४ चोथो सावधक्रियादोष. तेमां कायायें करी कांक साव यक्रिया करे, अथवा सावधक्रियानी संझा करे, ते चोथो दोष,
५ पांचमो आलंबनदोष, ते जे सामायिकमां दिवालप्रमुख नो आशरो बोडीने निरवष्टंन एकासने वेसवू, एवी रीत ते रीत
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नवम सामायिक व्रत.
त्यागीने दिवाल अथवा थांजलाने पीठ लगाडीने वेसे, अथवा वीजा कोइ पदार्थनो शरो लइ बेसे, तो आलंबननामें पांचमो दोष लागे, कारण के, पुंज्या विनानी दिवाल उपर घणा जीवोनो विश्रामने, त्यहां पीठ लगाडतां घणा जीवोनी विराधना थाय, तथा निद्रादि प्रमाद वधे, ए माटे आलंबन नामें ए पांचमो दोष. ६ आकुंचन प्रसारणदोष. ते एमके सामायिक लेने कामो कारण विना हाथ पग संकोचे, अथवा लांबा करे, अने सामायिकमां तो पुष्ट कारण विना हालवुं चालवुं कां कर्तुं नथी. जरुरथी लाचार यये थके, चरवला प्रमुखथी पुंजन प्रमार्जन · करी हाथ पग हलावे. मनमां आकुंचन स्थिति न सहवानो खेद धरे. एवी शैली विना नकामा हाथ, पग, हलावे, तो बहो दोष लागे.
७ सातमो आलस्यदोष, ते एमके, सामायिकने विषे गें आलस मोडे, टाचका फोडे, करडका करे, कम्मर वांकी करे. ए प्र माणे प्रमादनी बहुलताथी व्रतमां खेद उत्पन्न याय; त्यारें श रीरमां रतिaाव जागे, ते वखत आलस मोडीने सुहाम णो उठे, ए सातमो दोष.
श्रमो मोटनदोष. ते सामायिकमां अंगुलि प्रमुखने वांकी करीने करडका काढे, ए पण प्रमादनी प्रबलताथी थाय. ए आठ मो दोषठे हो, सातमो अने आठमो, ए ऋण दोष, निद्राप्रमा दनी उपाधिथी थाय ने दर्शनावर्णी कर्मना उदययी थायवे. नवमो मलस्यदोष, ते सामायिक लेश्ने अंगमां खस थए ली होय, तेने बलूरे, मूल जांगें तो सामायिक लीधा पढी खसप्रमुख नी उपाधि थइ तो समजवुं के, चेतना ठीक पणे रही नहीं, विक रूप थत्रा लाग्या. ए प्रमाणे शुभ श्रालंवनमां चेतना स्थिर रहे नहीं, त्यारे लाचार थने चरवला प्रमुखणी जयणा पूर्वक पुंजन प्रमार्जन करीने मनमां पोतानुं खण मन न रधुं तेनो पश्चा
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नवम सामायिक य. . त्ताप करतां, महा पुरुषनी धीरजता मनमा चावतां, धीमे धीमे खसने वचूरे, एवी शैली. तेम न करे, तो नवमो दोष लागे.
१० दशमो विमासणदोष. ते सामायिकमां अंग वीमासण क रावे, एटले हाथनो टेको दे,गले हाथ देश्ने बेसे, ते दशमो दोष.
११ अगीयारमो निजादोष. ते सामायिक लेश्ने निझा करें. ते सर्व घनघाति कर्मनी प्रकृतिने ते सामायिकने निष्फल करे.
१२ बारमो दोष एके, सामायिकमा टाढ प्रमुखना प्रबलश्री पोताना समस्त अंगें सारी पेठे वस्त्र उढे.
ए बारे दोष, सामायिकमां कायाथकी उत्पन्न थाय बे, ते त जवा. हवे वचनना दश दोष बे. ते कहेजे.
१ प्रथम कुत्सित बोलनो दोष, ते एम के, सामायिक वेश्ने कुवचन , बोले. जला उत्तम पुरुषने कुवाक्य बोलवां लायकज नथी. तेम बतां जे वचन सांजली कोश्ने लजा, नय, कषायादिक उपजे, तेवां वचन बोले, ते कुवचनदोष कहीये. ए प्रथम दोष.
बीजो सहसात्कारदोष. ते सामायिक लीधा पनी जे वचन बोले, ते आगल पाउल उपयोग दीधा विना बोले तथा अवि चामु बोले, अने जेम मनमां आवे तेम कहे, ते बीजो दोष.
३ त्रीजो असदारोपणदोष. ते सामायिकमां कोश्नी उपर खोटुं तोहमत आपे, नकस्यांने कहुं कहे, ते त्रीजो दोष.
४चोथो निरपेक्षवाक्यदोष. ते सामायिक लेश शास्त्रनी अपे क्षा विना पोताना बंदें बोले. जैनमार्गीने तो निरंतर सापेक्ष वच नज बोलतुं जोएं, निरपेक्ष वचन न बोलवू; तेम उतां सामायिक लश्ने पोताने नावे तेम बोले. ते चोथो दोष.
५पांचमो संदेपदोष. ते सामायिकमां सूत्रपाठे वचन संक्षेप करी बोले, अदर पागदि हीन करीने कहे, यथार्थ कहे नहीं.
६ बहो कलहकर्मदोष. ते सामायिकमांसाधर्मीसाथे क्लेश करे.
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नवम सामायिक व्रतं. अने सामायिकमां तो कोई मिथ्यामति गाल पण दे, अथवा उपसर्ग करे, कुवचन कहे, तो पण तेनी साथे कलह न करवो शुद्ध जैनमार्गी तो विना सामायिकें पण कोश्तेना उपर कुवचननी प्रेरणा करे, तो पण तेनी साथें कलह न करे, जेमतेम करी क लहने समाववानी चिंता करे, तो ते साधक, सामायिकमां सा धर्मीनी साथे क्लेश केम करे ? अर्थात् नज करवो जोश्ये, अने जो करे, तो हो दोष लागे. ____सातमो विकथादोष. ते सामायिक लेश्ने राज्यादिक विगेरे नी चारे विकथा करे, सामायिकमां तो सिसाय अने ध्याननी मु ख्यता कही, कदापि ते न करे तो बेगे बेठो धर्मकथा करे अथ , वा महापुरुषनां चरित्र अथवा तीर्थादिकनो महिमा कहे,पण जेवी तेवी कर्मवंधनी विकथा न करे, जो करे तो सातमो दोष लागे.
आठमो हास्यदोष कह्यो .ते एमके सामायिक लेने बी जानी मश्करी करे नहीं. कारणके, हास्यरूप मोहनीना उदय थी हास्यरसवडे आ लोकमां कोश्नी मश्करी करे, ते लघुताने पामे, वली लोकमां पण कदेवतने के "अनर्थनुं मूल हांसी, अने रोगर्नु मूल खांसी" वली परलोकमां तो, ते हास्यरसकर्मउदय आ वे त्यारे ते कर्म, रुदन करतां पण बूटे नहीं. ते कारण माटे साध के, सहेज मश्करी पण कोश्नी करवी नहिं, त्यारें सामायिक लेश्ने कोश्नी मश्करी करायज केम ? जो करे, तो ए दोप लागे. नीति शास्त्रमा पण उत्तम पुरुषने हास्य कर, निषेध्यु , माटे ए हास्यदोष त्याग करवो. ___ए नवमो अशुद्धपाउदोप. ते जे सामायिक लेश्ने सामायिकना सूत्रादिक उच्चार करे तेमां मुखथी संपदाहीन, अथवा हृस्व : . : रने ठेकाणे दीर्घ वोलावे, दीर्घने ठेकाणे हृख
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नवम सामायिक व्रतं. काणे मात्राहीन, अधिक उच्चरे. एम अशुद्ध पाउनो उच्चार करे, यहा तछा सूत्रादर कहे. ते नवमो अशुद्धपाउदोष.
१० दशमो दोष, मुणमुण बोले, एटले जे सामायिक लेश्ने उतावलें पाउनो उच्चार करे, स्पष्ट प्रकट श्रदरन उच्चारे. पदनुं गा थार्नु, ठेका' कांश मालम पडे नहीं, मुख थकी अक्षर कांश ठीक पडे नहीं, कोश जाणे माखी बण बणाट करे ? एम गडबड क रीने पाठ पूरी करें, ते दशमो दोष जाणवो. ए दश दोष वचनना जाणवा. हवे मनना दश दोष कहेडे.
१ प्रथम अविवेकदोष. ते सामायिक लेश्ने, सर्व क्रिया करे पण मनमा विवेक नहीं, एटले सामायिक शुं चीजले. विवेक सहित सामायिक करीने कोण तस्या जे ? एनाथी शुं फल ? ए कोनुं सा धन ? एमां कोण परसाध्य ? व्यवहार सामायिक कयुं ? अने निश्चय सामायिक कयुं ? समायिकनी शुं शैली ? एवा विवेक विना जे सामायिक करे, ते अविवेकनामा प्रथम दोष.
बीजो यशवांगदोष. ते सामायिक करीने यश एटले की तिनी ना करे, सामायिक तो निर्जरानुं हेतुबे,अने शिवपदतुंमु ख्य साधन जे. ते सामायिक करीने यश श्छे, ते बीजो दोष.
३त्रीजो धनवांबा दोष. ते सामायिक करतां धनादिकनी ३ छा करे के आ सामायिक कस्याथी मने धन मलजो. अथवा सा मायिक करतां मनमा विचारे के, कोइ एक जव्य प्राणी, धर्म जा णीने अथवा सामायिकना प्रसादें मने धन आपे. ए त्रीजो दोष,
४ चोथो गर्वदोष. ते सामायिक लेश्ने मनमा गर्व आणे के, हुं धर्मने जाणनारो बुं. वली जाणे के, अहो ! हुं केवं सामायिक करंबु ? बीजा मूर्ख लोको सामायिक करवामां शुं समजे ? हुं तो संसारी कामकाजमा पड्योढुं, तोपण सामायिक करुंडं, एटलें महा रा जेवं सामायिक वीजो कोण करी शके ? वीजा तो बझा विचारा
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नवम सामायिकवतं.
पेट जरवावालावे, वत्रीश दूषण टालीने शुद्ध सामायिक तो हुंज करुंतु, एवो गर्व करे. ते चोथो दोष.
५ पांचमो जयदोष. एटले जय पामतो थको सामायिक करे, ते एमके, लोकमां हुं मुख्य श्रावक कहेवानं तुं, माटे जो हुं सा मायिक नहीं करूं, तो लोक कहेशेके श्रावककुलमां उपज्यानुं फल शुं ? एवी सहु कोइ मारी निंदा करशे. वली लोक कहेशे के जू ! फलाणो वो वृद्ध थयो बे, तो पण कां धर्मनी नि ष्ठा तेना मनमां आवतीज नथी. बीजुं तो सर्व रयुं, पण दररोज एक सामायिक करयुं, तो ते पण करी शकतो नथी. एवं ते शुं बे ? नाम तो महोटुं धरावेढे, पोसह पडिकमणां करवानी तो हालज वखत बे, ते पण नथी करतो, एवो लोक ठबको देशे, माटे मनमां सामायिक करवानो जाव नहीं, पण अपवादजयथी सामायिक करे, ते पांचमो नयदोष.
६ as निदानदोष. ते सामायिक करीने, धनादिकनुं अथवा वीजी कोइ पोतानी इक्षित वस्तुनुं नियाणुं करे के, या सामायि कनुं फल होय, तो या लोकमां घणुं धन पामु, परलोकमां पण दे वतानां सुख पामु, एवो आशय राखीने करे, ते कोडीने को डनी चीजने हारेठे, सामायिकनुं फल महोटुंबे, तेम बतां निया कस्याथी ते वेची नाख्युं, एवं करे ते बहो दोष.
७ सातमो संशयदोष. ते एमके जे सामायिक करे, पण संशय मटे नहीं, संशय जखुं ते सामायिक करे, पण तेने तत्वनी प्रतीति नहीं मानतां एम विचारे के कोण जाणे सामायिकनुं शुं फल मल शे ? करीयें यें तो खरा, पण आगल उपर एनुं फल यशे के नहीं ? एवो संशय धरीने करे, ते सातमो दोष.
मो कपायदोष. ते एमके कपाय जतुं सामायिक करे. अथवा कोने साथै रोष वर्त्तेते तेथी तेने जवाब देवो नथी, तो
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नवम सामायिक व्रतं. .
१२७ तेटला वास्ते सामायिक करी बेसे. एवीरीतें कषाय नझुं सामायिक करे, तेमां शुं फल मले ? सामायिकमां तो पूर्वे जे कषाय कस्यो होय, तेनो पण परित्याग करे; एवं रहस्य तेम बतां जो ते क षाय सहित सामायिक करे, तो तेने आठमो दोष लागे. ___ए नवमो अविनयदोष. ते एमके, विनय रहित थको सामा यिक करे. विनय ते गुरुनो अथवा थापनाचार्य प्रमुखनो जाण वो. जैनशैलीमां तो सर्वधर्मनी करणी, विनय विना नथी. धर्मर्नु मूल पण विनयबे, विनयें करीने बहुमाननी पुष्टताथी अगणित फल थायबे, थोडी घणी धर्मकरणी करे, त्यहां पण जो विनय, बहुमान अति घणुं होय, तो एथी करी ते महाव्रत जेवं फल पामे. ए माटे सामायिकमां तो विनयसहाय सामायिक सफल बे. ते विनय जे न करे, ते नवमो दोष.
१० दशमो अबहुमानदोष. ते एमके, बहुमान रहित सामा यिक करे, पण नक्तिनावथी न करे. सामायिक उपर तो घj बहुमानराखQजोश्ये जेमकोश्युःखी जीव,रोग,शोक,दुःख,दरिख तामां पची रह्यो थको महा पुःख जोगवे, एटलामा कोश् कृपावंत महोटो उपकारी सुजन होय, तेने जोतांवेत तेना उपर दया जप जे. त्यारे ते दरिद्धीने पोताना घरमा लावीने औषधादिक करीस वपुःख मटाडे, धनादिक आपी दरिखता मटाडे, बीजी पण सर्व रीतें सहायता करे, ए प्रमाणे पोतानी बराबर करी बेसाडे, त्यारें ते दरिद्धीने ते उपकारी पुरुष उपर केवु बहुमान अने केवी नक्ति रहे ? मनमां विचारे के ए उपकारी उपर मारां प्राण पण कुर वान . हवे ए तो एक था लोकना पुजनिक सुखनो उपकारी बे, तेनी उपर एटबुं बहुमान रहे , त्यारें सामायिक, तो आ लोक अने परलोकने विषे पुलिक तथा मोद, ए उन्नय सुखनुं दाता के अने बाह्यान्यंतर पुःख, मटाडवावालुं ने, ए माटे
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नवम सामायिक व्रतं. ते सामायिक उपर तो एना करतां पण महोटुं बहुमान श्रने अधिक नक्ति राखवी जोश्य.तेप्रमाणे न करे,तोदशमो दोष लागे.
एवी रीतें मनना दश दोष, तेम वचनना दश, अने कायाना वार, ए सर्व मलीने बत्रीशदोष थाय.ते ने टालीनेजे शुद्धसामायि क करे, ते सुखनुं कारण कहीयें. बत्रीश दोष रहीत एक सामायि कनुं फल श्री जैनागममां व्यवहारथी तो आ प्रमाणे कडंबे, जे वाणुं करोड, उंगणशाउ लाख, पचीश हजार, नवशे पचीश, एट ला पट्योपम अने वली एक पट्योपमना नव नाग करवा, तेमांना आठ नाग उपर एटला पल्योपम देवतानुं आयुष्य बांधे, अने नर कगति कापे, ए माटे श्रावकने प्रतिदिन सामायिक करवू, जेणे क री जन्म सफल थाय. ए व्यवहारशुक सामायिकनुं फल अने निश्चय शुकोपयोगथी सामायिकर्नु फल, अनंत गणुंडे, एटले ते यावत् सिकिस्थानकें पहोचाडे. ए माटे सामायिक बे, ते एकांत उ पादेय . ते सामायिकना पांच अतिचार बे, ते कहे.
१ प्रथम कायःप्रणिधान अतिचार. ते एमके, पोताना श रीरना अवयव जे हाथ पग प्रमुख, ते अणपुंजे, अण प्रमार्जे हलावे. नीतने पीउ लगाडीने बेसे, निझा प्रमुख करे, ते कायपुत्र णिधाननामे प्रथम अतिचार.
२ वीजो मनछुप्रणिधान अतिचार. ते एमके, मनमा कुव्या पार चिंतन. ते क्रोध, लोन, मोह, अनिमान, ईर्षा,असूया प्रमु ख दोपसहित कार्यव्यासंगासक्तसंचमचित्तसहित सामायिक क रे, ते मनःप्रणिधान नामे चीजो अतिचार.
३ त्रीजो वचनःप्रणिधान अतिचार. ते एमके, सामायिक मां सावध वचन वोले, अथवा पद अदरादिक अशुद्ध वोले, ते उच्चारतां थकां सूत्रनी स्पष्टता मालम पडे नहीं अने अशुद्ध सू त्र उच्चारे, अर्थनी पण मालम पडे नहीं.. अतिशय चपलपणा
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दशम देशावगाशिक प्रत. १२ ये गडबडथी कही जाये; ते वचनःप्रणिधान त्रीजो अतिचार.
चोथो अनवस्थादोषरूप अतिचार.ते एम के, सामायिक जे वखतें करवु जोश्ये, ते वखते करे नहीं; अने करे तो यहा तछा करे, श्रथवा हपथी पाले श्रथवा उतावलथी पाले, आदर विना करे, स्वेवायें क्रिया करे, ते अनवस्थादोषरूप चोथो अतिचार. ___५ पांचमो स्मृतिविहीन अतिचार. ते एमके, सामायिक लेश ने जूली जाय. क्रियादिकमां ब्रांति पडे. सामायिकदंमक सूत्र उच्चायां के नथी उच्चास्यां ? अथवा पाट्युं के, नथी पादयु ? एवी ज्रांति, प्रवल प्रमादना उदयथी थाय. सर्व साधन- मूल तो स्प ष्ट यादगिरिजे. जागृतनो उपयोग ते तो विसरी गयो, त्यारे सा मायिकना फलमां बट्टो लागे. ए विस्मृतिरूप पांचमो अतिचारले.
इति श्री बादशवतविवरणे नवम सामायिकनामा प्रथम शिक्षा व्रतकथने पंमित श्री उद्योतसागरगणिना कृतलाषा संपूर्णा ॥ए॥
॥अथ ॥ ॥श्री दशम देशावगाशिकनामा वितीय ॥ ॥शिदाव्रत प्रारंनः॥
॥दोहा॥ श्रीपारस पदकमलयुग, वंदू बडे उमेद
देशावगाशिक दशम व्रत, तिसका कहौं सुन्नेद ॥१॥ हवे देशावगाशिक एटले देशावगाहीनो तो, उहाव्रतमांराख्युंजे दिशिपरिमाण,तेतोयावजीवन क.ते दिशिक्षेत्र घणांबे, ते उनुं कांश नित्य काम पडतुंनथी,एमाटे दिनदिन प्रत्ये तेमा संक्षेप करे, के बाजना दिवसमां दश कोश, वा पन्नर कोश, वा पांच कोश · अथवा नगरना दरवाजासुधी,अथवा कोश,अर्डकोश, बागवगी
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दशम देशावगाशिक व्रत. चा सुधीनी जग्यानी दिशि राखे.अथवा अमुक घरनी हद्द सुधी त्यादिक हद्दपर्यंत जवु श्रावq उपरांत जावानो नियम करे. एबुं करवू, ते देशावगाशिक व्रत.ए बहाव्रतनुंज विशेष, तेतो याव जीव संवंधनो नियम कस्यो अने एतो चोमासु,वीश दिवस, दश दिवस, पांच दिवस, अहोरात्री, अथवा दिवस सुधी अथवा प्रहर अथवा मुहूर्त सुधी, पण. एटला व्रतमा पूर्वे बहु क्षेत्र रह्यां हतां तेनो दोष अहीं संदेप कस्यो. क्रिया उतारी, एटले दिग् व्रतर्नु देशावगाशिक नित्य प्रत्ये परिमित क्षेत्रगमननुं परिमाण राखे जे, हुं कायायें करी फलाणे गाम, फलाणी जग्यायें, देवलें, दरगाहें अथवा देवीना गामें, अथवा कोश् वीजी जग्यायें जश्श. ते उपरांत जवानो मने निषेध बे. एमां जे दिग्वती प्राणीने देश परदेशनो व्यापार, ते व्रती एम कहेके, मारे कायायें करीअमु क क्षेत्रथी उपरांत जवानो निषेधले. पण दूर संबंधनो कागल प्र मुख लखवो ने वांचवो ते अथवा कोश् माणसने मोकलुं ते मने माफ तथा ते देश संबंधी वात प्रमुख सांजलवी पण माफले अने जेने दूरनो व्यापार नथी, ते तो परिमाण उपरांतनी हद्दनो आवे लो कागल पण वांचे नहीं, कोश्ने कागल लखीने मोकले पण नहीं.अनेजो चित्तनी प्रकृति संकल्प विकल्पमां न होय तो ते दूर देशनी वातो पण सांचले नहीं अने वात करे पण नहीं. परंतु जो एवी रीतें न रही शकाय तो व्रतना नांगामां बूट राखे अने जा णतां थकां परिमाणमा दोष लगाडे नहीं. ए देशावगाशिक नि त्यत्रत करे, ते सदा सर्वदा सवारना पहोरमां चौद नियमनी याद गिरीमा सर्व संजारीने राखे, वली पण एने संदेपीने रात्री संबंधी
जृदां राखे, अने जे अहोरात्रनां करे, ते सवारना पहोरमांज याद • करे. एवी रीतें गुरुपासेंथी विधिसहित व्रत धास्यां होय, तेम पा ले. ए देशावगाशिक व्रतना पांच अतिचार . तेनां नाम लखेटे.
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दशम देशावगाशिक व्रत. १ पेहेलो श्राणवण प्रयोगातिचार. ते नियमनी नूमिका बाहे रनी कोई चीज होय,तेनी गरज पडे, त्या विचारे के मारे तो नि यम उपरांत नूमियें जावु नयी अने जीवनी चाहना तो ते चीज मांज लागी रही.त्यारें कांश पोतानी बुद्धि उपार्जे अने ते नूमि नणी जनारा कोश्ने देखीने कदेके हे नाइजी ! फलाणी जग्या सुधी जाशो तो अमारुं पण कांश काम, ते पण तमे करता श्राव जो.ते सांजली ते माणस कहेके हाजी, हुं जश.ते समय ते व्रती कहेके,त्यारें तो अमुक चीज मारे माटे जरूर लेता आवजो त्यारे ते तरफ जनाराने ते जणश, तेनी महोबतें करी लाववी जोश्य.एवी रीतें ते चीज, नियमबाहेरनी नूमिथी मंगावीले अने पोताना शाणपणाथी ते व्रती विचारे के, मे मारं व्रत पण राख्यु, अने मारे कामें जे चीज जोश्ती हती, ते पण आवशे, अने एतो पो ताने कामे जाय तेनाथी हुं महारं पण काम करावं बुं, एनो बोजो मारा माथा पर नथी.एवी रीतें बुछिनु श्रझानपणुं करे,पण एम न विचारे के, एथी करी उलटो तोटो थाय जे.केम के,जेकार णे देशावगाशिक व्रत जे कलुबे,तेमांतोजातां श्रावतां हिंसाप्रमु ख दोष बहुज लागे.ते दोषनी क्रिया मटाडवा माटे कलुजे.अने जेवारें बीजा माणस पासें नियम क्षेत्रथी बाहेरनी चीज मंगा वे, ते वारे ते आजाण्यो पुरुष, अजयणा करतो जश्ने ते चीज लश् आवे, तेनाथी तो पोतेंज जश्ने लश्यावे तो सारूं? कार णके पोतें तो धर्मरुचियुक्त, तो तेथी जयणाथी जवाय, ते नाथी हिंसा केम थाय ? अने ते अज्ञानी तो अनेक हिंसादि दोष लगावीने ते चीज लावे, फरी तेनी पाप क्रियानी अनुमोदना क री जाय. जु! फलाणो अमुक क्षेत्रे गयो हतो तेथी सारं थयु अमारुं पण काम थयु. ए माटे व्रतधारी थश्ने एवा कपटव्रत. नो नांगो न करे,व्रतधारी तो गुरुनी आज्ञायें अने शास्त्रनी रीतें
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दशम देशावगाशिक व्रत. जे कयु होय,तेज करे,ते माटे नियम लेश्ने बाहेरथी बीजानी पा सें कोश् चीज मंगावे, ते आणवणप्रयोग प्रथमातिचार जाणवो.
बीजो पेसवणप्रयोग अतिचार. ते एमके जे नियमनूमि काथी वाहेर कोई चीज मोकलवी होय. त्यारें पहेलाथी मन सुबो करे के श्रा चीज तो मारे जरुर मोकलवी बेपली नियमनूमि कानी बाहेर कोश्श्रादमी जतो होय,तेनी साथें ते चीज मोकले ने मनमा खुशी थायके माहं व्रत पण अखंग रह्यु, हुं पण नियम नूमिकानी बाहेर गयो नहीं, अने में मारुं कार्य पण साध्यु. एवी रीतें करे, तेने तेमां उलटो तोटो पडे,अने वली एम करवा थी तेने बीजो पेसवणप्रयोग अतिचारदोष लागे. ए माटे जे स मजु श्रावक होय, ते अतिचार न लगावे.
३ त्रीजो सदाए॒वाय अतिचारजे, ते कहे. शब्दानुपात अति चार.ते एके, पोताना नियमदेवनी बाहेर कोश पुरुष जतो होय, तेनी साथे को काम नियमक्षेत्रनी बाहेरनुं होय त्यारें व्रती श्रा वक विचारे के माराथी त्यां सुधी जवाय एमतो नथी; माटे तेने नाम देने वोलावीश, तो मारा व्रतनें दाग लागशे. एवी शंका थी फरूखे श्रथवा अगाशीनी बत उपर जश्ने उनो रहे, के, जेम मार्गे जता श्रावता सर्व लोकोने ए जुए,अने मार्गे जता श्रवता सर्व लोको, एने पण देखे.ते वखत एवी रीतें उन्नो रहीने मार्गे जतायावतानें देखे,त्यारेंतेव्रती खुंखारोकरे,अथवानाकमांदोरो घालीने अथवा तमाकु लेश्नाकमां सुंधीने ऊंचा सादें करीबीक करे, तेवारें मार्गे चालतो माणस, खांसी बींक प्रमुखनो शब्द सां जलीने उपरनी तरफ जुए, एटले ते वन्नेनो दृष्टिमेलाप थाय. त्यारे पठी ते त्यां चलावीने आवे, एवी रीतें मेलाप करे, तेवारें ते वन्ने जणा पोताना कामसंबंधी एकांत वातचित्त करीने व्रती श्रावक, मार्गे हालवावालाने विदाय करे; त्यार पनी ते व्रती
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दशम देशावगा शिक व्रत.
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पोताना मनमां श्रज्ञानना विलास करे के, जू ! में कोइ उत्पा तनी बुद्धि रची तो तेथी करी मारुं व्रत पण में निर्मलताथी राख्युं,
बीजाने बोलावीने जे कार्य करयुं, दतुं ते कार्य संबंधी पण वातचित्त करी लीधी. एवी रीतें मूढ, अज्ञानी, क्रियानी मूलवणी करे, तेने त्री जो शब्दानुपाति अतिचारदोष लागे. ए माटे समजु शुद्धतीने अने बुद्धिमान् य, ते अतिचार न लगावे.
४ चोथो रूपानुपाति अतिचार कडे. ते एमके कोइ व्रतीएं पोताना घरना यांगणा सुधी क्षेत्र मोकलुं राख्युं, अने बाकी बी जुं बधुं त्याग कस्युं. हवे एवामां कोइ पोताना कामनो माणस घरना गणानी पासेना रस्तायें चाल्यो जायते, तेने व्रतीयें घर अंदरनी खडकीना रस्तायें अथवा जाली प्रमुखमांथी जोयो; त्या व्रती विचारे के, ए माणस साथै मारे जरूरनुं कामबे; ने ए माणसनुं घरतो श्रींथी घणुं दूरबे; त्यहां सुधी तो माराथी जवाय नहीं. कारण के, जो जाउंतो व्रतभूमि परिमाण उलं ध्यानो दोष लागे. वली अहीं पण एने बोलावुं तो व्रतमां खोंच लागे ए माटे एवं करूं के जेम ए उलटो मने बोलाववाने पोतें ज चाल्यो आवे. एवो अज्ञाननो मनसुबो धारीने पोतें पोताना घरमाथी नीकलीने दरवाजा उपर श्रावी उजो रहे. ते माणस पण चाल्यो चाल्यो त्यां श्रागल श्रावीने नीकले एटले ते बन्ने नी नजर एक थइ तेवारें ते चाली जनारो माणस पोतेज, व्रतीने बोलावे ने परस्पर मली जूहार विगेरे करीने पढी ते व्रतीयें जे वात, पोताना मतलबनी चिंतवी इती, ते करी बीधी. त्यार पढी पेलो माणस, पोताने ठेकाणे गयो अने व्रती पण घरमां आव्यो; अने मनमां श्रज्ञानपणे विचार करवा लाग्योके, में महारा शाणपणे करीने मारा व्रतने पण खोट न लगाडी, अने मारुं कार्य पण साध्युं. एवी में बुद्धि करी, पण एवं न विचारे
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दशम देशावगाशिक व्रत.
के एमां अज्ञानपणुंने. जे जाणीबूजीने पोतानुं कार्य चतुरताथी करे, तो तेने चोथो रूपानुपाति अतिचार लागे, ___५ पांचमो पुलप्रदेप अतिचार कहे.पुजलप्रदेपथतिचारते नियमना देवनी वाहेर कोइ पुरुष, पोताना कामने माटे जतो होय, त्यारे तेने जो व्रती अझान दोषथी खोटी माया केलववा ने तत्पर थयो, जे हुँ ए जता माणसने साद करी बोलावी ललं, अथवा हुं तेनी सामो जश्ने उनो रहुं तो महारा व्रतने दूषण लागे. माटे साद कस्या विना अथवा एनी सामु जवा विना को बीजीक लायें करी एने बोलावं. के जेथकी ए पोतें आवी महारी पागल उनो रहे. एवो विचार करीने आवनार पुरुष उपर कांकरी फेंके समस्या करे; कपडानो बेडो बतावे. त्यारे ते कांकरी ते माणस ना देहने लागे एटले ते पण पाएं फरीने तेनी सामुं जुए. त्यारे बती माणसनी अने तेनी दृष्टि एक थाय तेथी ते पोतेंज चाल्यो श्रावे, पबीते व्रती मोहोबतथीपोतानुं कार्य करी तेने विदाय करे, त्यारे विचार करे के, में केवी बुद्धि वापरी? जेम लौकिक मौनि वोलता नथी अने संज्ञा चेष्टा करीने कार्य करे , तेम में पण बुद्धि बलथी मारुं व्रत राख्युं अने कार्य पण कस्खु, एवी अज्ञानक्रिया ते पांचमो पुजलप्रक्षेप अतिचार जाणवो. माटे समजु व्रती होय, ते एवी अज्ञानपणानी वात जो न करे, तो ते महोटा लाजना हेतुने पामे. अहींयां पहेला वे अतिचार अज्ञानताथी थाय, अने पाउला त्रण अतिचार, कपटपणे थायरेते माटे ए अतिचारन आदरवा. ए वीजुं शिदावत थयु.अहीं बहा व्रतना नेदथी दशमुं व्रत संदेप के. ए थकी कहेवामां एवं जाणी लेवू के जेम ए व्रतमां संदेप ने. तेम परिग्रहादिक सर्ववतमां संदेप थायठे. इति तत्वं. इति श्रीद्वादशवतविवरणेदशमदेशावगाशिकनामाहितीय शिक्षा व्रतकथने पंमित श्री उद्योतसागरगणिना कृतनाया संपूर्णा ॥१०॥
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एकादश पौषधोपवास व्रत. १३५
॥ अथ ॥ ॥श्री एकादश पौषधोपवासनामा तृतीय ॥
॥शिदाव्रत प्रारंनः॥
॥ दोहा॥ अब अग्यारम व्रत लि, नाम पोसह उपवास;
जो विधिसहित करे व्रती, तो पामे उदास ॥१॥ - तिहां पोसह व्रतना चार नेद,ते लखे .तेमा प्रथम श्राहार पोसह, बीजुं शरीरसत्कारपोसह, त्रीजु अब्रह्मपोसह, अने चो शुं श्रव्यापारपोसह. ए चारें पोसहना प्रत्येकें बे बेनेदले. एक देशथकी पोसह अने बीजं सर्वथकी पोसह.
१ तेमां प्रथम आहारपोसह. ते देशथी जे त्रिविहार उपवा स करीने पोसह करे, अथवा आयंबिल पोसह करे, अथवा त्रि विहार एकाशना करी पोसह करे. ए त्रणे प्रकारनां पोसह करे, ते देशथी पोसह कवाय तेनी शैली कहे. पोसह लीधा पहेला पोताना घरमां कही राखे जे हुं पोसह करीश ने आयंबिल थ थवा एकाशणुं करीश. ते माटे जोजन कालें हुं हार करवाने आवीश; अथवा तमे पोसहशालामां आहार लेश् श्रावजो, एवं कहीने पडी पोसह लीए, त्यां पोसह लीधा परी जेवारें मध्यान्ह ना देववंदन करी रहे, तेवार पळी चरवलो, मुहपत्ति अने पॉमj, ए त्रणे उपकरण, साथे लेश पडी उँढीने साधुनी रीतें उपयोगी रदेतो थको मार्गमां जयणा सहित चाल्यो जाय. अने नोजन स्थानकें जश्ने शरियावही पडिकमे,गमणागमण आलोवे,अने प बी पोंबणुं बीगवीने बेशीने आहारनुं पात्र पडिलेहे. पनी पोताने लेवा योग्य जे आहार,ते लीये अने ते लेश्ने साधुनी रीतें अग्रह थको श्राहार करे, मुखथी आहारनुं वखाण न करे, श्राहारने
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१३६ एकादश पौषधोपवास व्रत. वखोडे पण नहीं, श्रादारनी जून, गीरावे नहीं, श्राहार करी रह्या पढी गरम पाणीथी आहारतुं वाशण धोश्ने ते पाणी पी जाय. पली पात्रने शुक करीने नितारी पाणी प्रमुख सूका जवा देश, ते पात्र कोरं करीने पाबु श्रापे. त्यार पड़ी फरी उपयोगी थको पूर्व नी पेरें पौषधशालामा पूर्व स्थानके जश् बेसे. मार्गमां कोई जता श्रावतानी साथै वात करे नहीं. ए प्रमाणे खस्थानकमां भावीने शरियावही पडिकमे, चैत्यवंदन करी धर्म क्रियामां प्रवते. अथ वा जो कोई संबंधी तथा सेवक सामो आहार, पोसहशालामा लावे, तो पण पूर्वोक्त रीते थाहार करीने पात्र कोरां करी तेने पागं श्रापे, अने पड़ी धर्मक्रियामां प्रवत्तें. जो त्रिविहार उपवास होय तो एकबुं पाणीज मात्र पूर्वनी पेरें जश्ने लश् श्रावे, एवी रीतें श्राहारपोसह करे, तेने देशथी पोसह कहीएं अने चौविहार उपवास करी पोसह करे, तो तेने सर्वथी पोसह कहीये.
२ वीजुं शरीरसत्कारपोसह. ते सर्वथा शरीरनो सत्कार एट ले धोवन, धावन, तैलमईन, वस्त्रानरणादि शृंगार प्रमुखथी को
रीतें शरीरनी शुश्रूषा न करे, साधुनी पेरें अपरिकर्मित थको रहे, ते सर्वथी शरीरसत्कार पोसह कहीए. तथा देशथी शरीर सत्कार पोसह ते पोसहमा हाथ पग प्रमुखनी शुश्रूषा करवानी बूट राखे, ते देशयी शरीर सत्कारपोसह कहीयें.
३ त्रीजु अब्रह्मचर्य पोसह. ते जे त्रिकरण शुळे पोसहमां न ह्मचर्य पाले, ते सर्वथी ब्रह्मचर्य पोसह जाणवू अने जे मन, वचन श्रने दृष्टि प्रमुखनी बूट राखे अथवा परिमाण राखे, ते देशथी ब्रह्मचर्य पोसह जाणवू.
४ चोथु सर्वसावद्यव्यापार त्याग करे ते सर्वधी थव्यापार पोस इ कहीये, अने जो एकादि अने जो एकादि वस्तुनी अथवा जघरा यवाश्रादेशादिकनी तूट राखे, ते देशथकीथव्यापार पोसहकहीये.
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एकादश पौषधोपवास व्रतं - ए प्रमाणे चार प्रकारनां पोसह बे. ते दरेकना बेबे नेदले. ते प्रथम ज्यारें आगम विहारी गुरु विद्यमान हता, त्यारे ते नव्य जीव श्रावको पण शुरु उपयोगी घणा पापनीरु हता; श्रने ते पोतें जे जे प्रतिज्ञा करता हता, तेवीज शुद्ध पालता हता, तेवीज रीतें उपयोगमा राखीने चालता, पण विस्मृति कर ता न हता, तथा तेमां कमवेश करता न हता अने गुरु पण अंतिशय ज्ञानना प्रनावथी योग्यता जाणी लेता हता के आ देश थकी पोसह करवा लायकज, अथवा सर्वथकी पोसह करवा लायक. वली बद्मस्थ नावथी कदापि कमवेश थ जाय तो ते तरत जाणीने विचारता के मारी प्रतिज्ञामां आटली खोंच लागी पाटर्बु अविरति पणुं लाग्यु. एबुं जाणीने तेनी तरत आलोय णा लेता, अने पडिकमतां पण महोटी नूल न पडवा देता. अ ने हमणां तो एवा उपयोगी जीव नथी. काल दोषना प्रजावधी वक्र जडबे, ए माटे पूर्वाचार्यायें उपकारने अर्थ लानालाजनी तुल्यता विचारीने या मुजब जीतव्यवहार बांध्यो. तेमां प्रथम जे श्राहारपोसहजे, तेना बे नेद कीधा. ते आहारपोसह दे शथी पण करे अने सर्वथी पण करे. एम जेवी पोतानी शक्ति होय ते प्रमाणे करे. अने बाकीनां जे त्रण पोसहजे, ते तो स वथीज करे. देशथकी तो थायज नहीं, ए व्यवहारशैली वांधी. एवी रीतें वर्तमान कालें पोसहनी प्रवृत्तिजे. हवे पोसहनो प्रनाव आगममा जे कह्यो, ते लखेडे.
जे, पापना समूह तेणे करीनारयुक्त थयेला एवा बहुसावद्यव्या पारी गृहस्थने आरंजनो बोजो उतारवाने पोसह, ते विश्रामनुंस्था नकले. विश्राम करतां अल्प बोजो थाय, जेम चार उपाडनारो पोताना मस्तक उपर मोहोटी गांसडी उपाडी बे, चार कोश चा ले एवामां को विश्राम स्थानक आवे, त्यारे ते प्रसन्न श्रश्ने
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एकादश पौषधोपवास व्रत.
वोजो उतारे, जे माटे शीतल बाया विश्रामनुं स्थानक होय तथा घडिवार जलाशय होय त्यां वेसें, त्यारें श्रानंद याय, थाक मटे, शरीर हलवुं थाय, फरी बोजो उपाडीने चालतो थाय. ए प्रमाणे वे, चार विश्राम लेतो थको सुखें धारेले ठेकाणे पहोची जाय, तेम श्रावकें पण दररोज सावद्य व्यापारनो बोजो घणो उपाड्यो ठे. अने तेवो महोटो जारे बोजो उपाडीने चालेठे, ते ज्यारें पांखी प्रमुख पर्वना दिवस यावे, त्यारें प्रसन्न इने घरनो जे सावध कर्मरूप वोजो, तेने उतारी घरमांज राखीने विश्रामरूप क्षेत्र पौ षध शालामां जश्ने वेसें, ने पोसह धारे त्यारें, सावद्यरूप बो जानो परिश्रम एटले थाक उतरी जाय. ने जावना उपदेशरूप शीतल पवन थकी विषयकषायरूप गरमी, विकल्प पशीनो मटी जाय, आत्मा शीतल थाय ने जिनशासनरूप कल्पतरुनी बा यामां वेसीने पोताना स्वरूपचिंतवनरूप जलें करीने घणा का नुं पाप धोइ नाखे. आत्माने ज्ञान, दर्शन अने चारित्ररूप जा वोजनथी पोषे. ए प्रमाणे वचमां वचमां पोसह करण रूप वि श्राम लेतो को आराधकजावना स्थानकै जइ पहोचे. अहींयां
दिवसें अथवा पंदरे दिवसें पोसह करे, तो पण फल एक पोसहनुं एटलुं युंढे. शास्त्रमध्ये एक पोसहनुं फल कयुंठे, ते जाणवुं, जे प्रभुनी आज्ञापूर्वक एक अहोरात्री पोसह करे, ते जीव वे हजारने सातशे कोडी तथा ते उपर सीत्तोतेर कोडी सी तोतेर लाख, सीत्तोतेर हजार, सातरों ने सीत्तोतेर एटला पल्योप म तथा एक पल्योपमना नव जाग करीयें तेवा सात जाग उपर एटलुं देवतानुं श्रप्य वांधे; अने एटलीज नरकगतिथी वटे, हो ! एक पोसह कस्याथी जीव, एटलो लान उपार्जे ? तेना कसंख्यानी स्थापना (29999999999 3 ) एटलुं फल, एक शुद्ध व्यवहारपोसहनुंवे . अने वली जो व्यवहारपोसद क
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१३॥
एकादश पौषधोपवास व्रत. रतां थकां चेतनाने निश्चयपोसहनी लीनता लागी,तो ते पोसह ना फलप्रातिनुं तो परिमाण पण न थाय,तेनो अगणित लान. यावत् रत्नत्रयी दायकनावें थर जाय.त्रणे लोकना नव्य जीवने पूजनीय थाय.ए माटे पोसहजे, ते गृहस्थने अवश्य करवूज.ए पो सहजे, ते कर्मरूपी जावरोगर्नु औषध. माटे गृहस्थ पर्व दिवस आवे त्यारें जरुर पोसह करवू. हवे एव्रतना पांच अतिचार लखेडे.
१ प्रथम अप्पडिले हिय, कुप्पडिले हिल, सिसासंथारक अति चार.ते जे स्थानकने विषे पोसह संथारो करे,ते नूमिनी तथा सं थारानी पडिलेहणा करे नहीं.एटले संथारानीजम्या पोतानीआंखे थी सारी पेठे निगाह करीने जूए नहीं अनेकदापिजूए तो प्रमाद श्री कां दीठी काश् न दीवी, एवी रीतें जूए, ते पहेलो अतिचार.
बीजो अप्पमसिय, कुप्पमसिय, सिसासंथारक अतिचार. ते एम के,ते संथारो,रजोहरण प्रमुखथी पुंजे नहीं.कदापि पुंजे, तो जेवो तेवो गडबडथी संथारो पुंजे, पण वस्त्रांचलें दंमाशणथी पुंजे नहीं,अने को जीवनी रक्षा करे नहीं. ते बीजो अतिचार. जे प्रमाणे श्री जैनशासननी शैली एवी बे, ते प्रमाणे मार्गी जीव क्रिया करे, ते आवी रीतेंके प्रथम तो हरेक क्रियामांदृष्टिपडिलेहण करे.सारी रीतें सर्व स्थडे चीज ने निगाह करी जोश्ने पनी पुंज णा प्रमुखथी पुंजे, पडी ते वस्तु वापरे, एवो तो सहेज दाल ने. त्यारें पोसहादिक क्रियामां तो निपट उपयोग धरीने पडिलेहणा प्रमुख करवी जोश्ये. अने एवी रीतें जयणाथी जो न करे, तो तेने बीजो अतिचार लागे,
३ त्रीजो अप्पडिले हिस, कुप्पडिले हिय, उच्चारपासवण जूमि अतिचार. ते एमके लघुनीति अथवा वमीनीति परवानी नूमिने सारी रीतें दृष्टियें करी अवलोकन न करे,अने अवलोक
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एकादश पौशधोपवास व्रत. न करे, तो जेम तेम काम चलावी दे. जीवयत्न कीधा वीना लघु नीति प्रमुखनी परग्वणा करे, ते त्रीजो अतिचार.
चोथोअप्पमधिय, कुप्पमधिय, उच्चार पासवण नूमि अति चार. ते मात्रानी, तथा पोसहशालनी नूमि अप्रमार्जित देखीने न पुंजे.अने पुंजे तो यहातहा करीने काम करे. एम वडीनीति, लधुनीति प्रमुख यत्नथी परग्वे नहीं; ते चोथो अतिचार.
५पांचमोपोसहविधि विचरीए अतिचार.ते आहार त्याग पो सह कीधे, कुधादि परिसह जागे,त्यारें पारणुं करवानी चिंता करे, के प्रनातें फलाणी रसोश अथवा फलाणी चीजनो अहार करशुं तथा एम चिंतवे जे अमुक काम सवारें करवू , ते त्यां जश्श अने तेनी उपर तागादो करीश.तथा प्रजातमांपोसह पालीने पनी सारी रीतें तेलमर्दन करावीने खुब गरम पाणीथी स्नान करीश.तथा श्र मुक पोशाक पहेरीश,अने कुलस्त्रीनी साथें खूब तरेहथी श्रावीरी तनो नोगविलास करीश. एवं सावध चिंतवे,तथा संध्यासमये स्थं मिलशोधन न करेपोसहमा विकथा करे, निझाकरेअनेनीचेंलखेला अढार दोयोने टाले नहीं. ते अढार दोषोनां नाम लखीएं बैयें, १ पोसहमां व्रती विनाना वीजा श्रावक आणेलुं पाणी न पी. २ पोसह निमित्ते सरस आहार लेवो नहीं. ३ पोसेह करवाना आगल दिवसें उतर पारणामां विविध
प्रकार संयोग मेलवीने आहार करवो नहीं. ४पोसह अथवा पोसह निमित्तागले दिवसें देह विनूषण न करवू. ५ पोसह निमित्तें वस्त्रादिक धोवरावां नहीं. ६ पोसह निमित्तें आपण घडावीने पहेरवां नहीं, वस्त्र लेवां
नहीं, अंगें घरेणां पहेरवां नहीं.स्त्रीने पण नथ तथा कंकण प्रमुख जे सोनाग्यना कुशल चिन्हवे, ते पहेरवां परंतु ते वि ना पोसहमां वीजां नवां घरेणां घडावीने स्त्रीयें पहेरवां नहीं,
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छादश अतिथिसंविनाग व्रत.
१४१ ७ पोसह निमित्त, वस्त्र रंगावीने पहेरवां नहीं. ७ पोसहमां शरीरथी मेल प्रमुख उतारवो नहीं, ए पोसदमां शयन करवू नहीं. निझा करवी नहीं. १० पोसहमा सारी वा नगरी स्त्री सबंधी कथा करवी नहीं. ११ पोसहमा आहारने सारो नगरो कहेवो नहीं. १२ पोसहमां सारीवानगरीराजकथातथायुद्ध कथाकरवी नहीं. १३ पोसहमां अमुक देश श्रावो रूडोडे अथवा अमुक देशघ्रमो
बे, एवां देशकथानां वचन, बोलवां नहीं. १४ पोसदमां पुंज्या विना नूमिए लघुनीति अथवा वडीनीति परत
वीनहीं,अने परठवेतोपोताथीवोसिरावे.इरियावही पडिकमे, १५ पोसदमां बीजानी निंदा करवी नहीं. १६ पोसहमा स्त्री, पिता, माता, पुत्र. नाश विगेरे सर्व संबंधी
साथै वार्तालाप करवो नहीं. १७ पोसहमां चोरनी कथा न करवी. १७ पोसहमा स्त्रीनां अंगोपांग दृष्टि लगावीने जोवां नहीं. ___ ए अढार दोष पोसहना. ते त्याग करीने पोसह करे, ते शुद्ध पोसह कहीये. तेथी जो विपरीत करे, तो पांचमो अतिचार लागे, इति श्रीद्वादशव्रतविवरणे एकादश पौषधोपवासरूप तृतीय शिक्षा व्रते पंमित श्रीउद्योतसागरगणिना कृतनाषा संपूर्णा ॥ ११॥
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अथ ॥ श्री बादश अतिथिसंविनागनामा चतुर्थ ॥
शिदाबत प्रारंनः॥
॥दोहा॥ अब बारम व्रत हे "अतिथि, संविनाग” यह नाम: कडं दोष आहारके, पुनि अतिचार हे ताम ॥ १॥
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१४२ द्वादश अतिथिसं विनाग व्रत.
हवे अतिथि एटले जेने लौकिक पर्वोत्सवादिक दिवसोनुं प्र योजन नथी, ते अतिथि कहीये. एटले लोक व्यवहारमा जे संसा र वृछिनी हेतु तिथि, तेदेवार, विवाहादिलग्नतिथि इत्यादिक सर्व जेणे ठोडी दीधां.सर्वे दिवसोमां जेनी धर्माराधनकरवानी एक निष्ठावे.तेने अतिथि कहीयें. अथवा जेम अतिथि एटले प्राद्ध णो, मिजमान माणस कोने घेर आवे, ते कांश तिथि तेदेवार नो दिवस जोश्जे न आवे, गमे ते दिवसें पंथी चाल्यो आवे. ते ने कां तिथिके तेहेवारनुं प्रयोजन नहीं, अणचिंतव्यो आवीने उनो रहे; तेम साधु पण निमंत्रणादि कीधा विना जोजन कालें आवी हाजर थाय. प्रायें साधु अमथो तो गुरु आज्ञा विना गृह स्थने घेर कदापि जाय नहीं, अने लोजन कालें मधुकर एटले चमरनी वृत्ति करे, निमंत्रण विना गृहस्थने घेर विचरता जाय. ते पण गृहस्थने अकलामण न उपजावे. एवी रीतें आहार लिये, ते अतिथि जिनाज्ञाकारी शुद्ध साधु तेनो जे संविनाग क रे. एटलें न्यायोपार्जित शुद्ध व्यवहारें कमाएवं जे व्यादिक ते मांथी पोताना उदर चरणने माटे उत्तम कुलाचार पूर्वक जे शु छ निर्दोष आहार नीपजाव्यो अने ते पण पूर्वकर्म पश्चात्कर्मा दि दोष रहित होय, एवो शुभ अने निर्दोष आहार ते वहुमान सहित नाग्ययोगें गृहने विपे साधु आव्या थका अतिहर्पवंत थ यो थको आहार आपे, अने ते पण दानना पांच गुणें करी युक्त दातारनी शुद्धता धरी आपे. ते दानना पांच गुणनां नाम लखे.
१ प्रथम जे जेनमार्गी दातार. ते शुद्ध पात्रनी प्राप्ति पामीने प्रथम पोताता घरना आंगणाने विपे मुनिनां दर्शन मात्र थयां अने तेणे करी घणा दिवसनी अंतरंगनी चाहनाना उदासथी श्रानंदनांबांसु आवे,जेवी रीते कोआपणो प्रिय अने परम हित कारीप्राणप्रिय एवो ववन्न सङन दूर देशांतरें गयो होय, तेने कदी
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छादश अतिथिसंविजाग व्रत. १४३ पण मनश्री विसारतो नथी; मनमा एज वांडा लागी रहे के ते श्रापणने क्यारें मलशे ? एवी चाहना राखतां राखतां घणो काल वीत्या पठी लांबी मुदतें को वखत ते सजन अणचिंतव्यो एका एक श्रावी उनो रहे, त्यारेतेपरम वहनने जोश्ने अंतरंग रागनी धारा जरासथी आंखमांथी हर्षनां आंसु पडे. ते शीतल होय जे कारणे वियोगना आंसु गरम होयडे अने हर्षना आंसु शीतल होय. तेम श्रावक पण साधुने आवतो देखी करी प्रशस्त रा गजक्तिना जरासे उठे; अने मनमां विचारे के अहो ! आज हुँ महोटो नाग्यशाली के जे अनादिनो नूख्यो, खजव्य संबलरहित, नाव दरिछे पीडित, शानलोचन रहित अंधनावें पीड्यो, अपारसंसारचक्रमां पड्यो नटकतो हतो, एवो जे हुँ, ते बहु अकथनीय दुःख पामतो अने कशी गणतीमा नहीं हतो, एवो महाकुःखी मने जोश्ने आ महारा मोहोटा हितकारी मुनि राजे महोटो करूणानाव धारण करी मारा उपर महोटी मेहेर बानी कीधी. जे प्रथम तो मने ज्ञानांजनशलाका फेरवीने मा रां सम्यकज्ञान लोचन खोली दीधां अने ए मुनियें त्रण तत्वसे वारूप आजीविकानो व्यापार शीखवाड्यो, तथा मुजने रत्नत्रयी धारणरूप नियमा करी दीधी. एवीरीतें महारोअनादिनो दरिद्र नाव मूकाव्यो, मने सारा आदमीनी गणतीमा आण्यो. एवा नि कारण अने गरज विना महोटा उपकारी महामुनिराज ते मारा घर आंगणाने विषे श्राव्या, ए नावनानी पुष्टिथी, प्रशस्तरागना नाव उदासथी हर्षानंदनां आंसु श्रावे, ते दाननो पहेलो गुण.
२ बीजो जेम संसारी जीवने अत्यंत इष्ट वस्तुनो संयोग पा मवाथी रोमावलि उनी थाय, तेम महोटी नक्तिना प्रजावथी मु निने जोश्ने ते श्रावकनी सर्व रोमावति उबसित थाय, अने हृदयमां हर्ष समाय नहीं, ते दाननो वीजो गुण.
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___छादश अतिथिसंविजाग व्रत. ३त्रीजो मुनिने देखीने मुनिप्रत्ये बहुमान उत्पन्न थाय. जेम कोश् संसारी सामान्य गरीब गृहस्थने घेर राजा पोतें चालीश्रावे त्यारे ते गृहस्थ, ते राजाने केवं मान आपे ? अर्थात् घणुंज मान आपे, मनमां घणोज आश्चर्यमय थर उमेद नस्यो हर्ष नस्यो थाय. अने मनमां विचारेके अहो ! आज महारे घरे महा राज आव्या, माटे घरमां को सारी अने नवा जेवी चीज होय ते हुँ एमने नेट करुं, फरी फरी एवा महोटा लोको मारे घेर क्या थी आवे ? आवो संयोग फरी क्यारें मलवानो ? आ उर्लन यो ग तो मारा महोटा नाग्योदयथी मटयो. एवो विचार करी घर मां जे सर्व करतां सारी अने नवाश्नी चीज होय, ते राजाने नेट करवा माटे काढे, वती विचारेके आ महारा घरनी चीजने महा राज कबूल करे, तो महारां महोटां नाग्य हुं मानु, एवा उदा सथी ते गृहस्थ, राजाने पोतानी वस्तु नेट करे, तेम श्रावक पण साधुने पोताने घेर व्या देखीने ते प्रत्ये घणुं वहुमान करे. अने विचारे के एवा निस्पृहीमां शिरोमणि, जगबंधु, जगत् हि तकारी, जगात्सल, निष्कामी, आत्मानंदी, आत्मारामी, करुणा निधि, परमोपकारी, परमपात्र, करुणासागर, संसारजलधिन करण, परमउपकार करवामां दद, क्रोधादिकषायनदक, पोतें तरेला, परने तारनारा, एवा महामुनिराज चालीने महारे घेर श्राव्या, तो आज महारां महोटा नाग्य जाणवां, आज रूडो सुवि हाण थयो, आज महारे प्रांगणे कामधेनु, कल्पवृक्ष, चित्रावेली अने चिंतामणि ए अणचिंति चाली आवी अने आज महारी जा गृत दशा सफल थश्. एवो हर्पनखो ससंन्रम होतो थको ते मुनि नी सन्मुख जाय अने त्रिकरण शुद्ध प्रणाम करीने कहे के देखा मि! दीनदयालुजी! पधारीयें. महारा घरनुं आंगणुं पावन करिये. एवं वहु मान दर करीने घरमां पधरावे, पठी मनमा विचारे के,
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द्वादश श्रतिथिसंविजाग व्रत.
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हो ! महारां अतुल जाग्यनो उदय थयो होय तो आज या साधु महारां श्राहार पाणीनो अनुग्रह करे जे कारण माटे साधुजीने या हार लेवामां महोटी तजवीजबे. आहारनी गवेषणा करे, शुद्ध निर्दो पनी प्रतीति यावे, त्यारे तो साधु आहार ले. ए कारण माटे रखे कोइ दोष माराथी उपजे ? एवो विचार करी त्रिकरण योगें बहुशुद्ध, मान यो उपयोगी यको विधिपूर्वक याहार लावे, अने मीगं व चनोथी ते साधुनी विनति करे के हे खामिजी ! हे गुरुजी ! या शु द्ध निर्दोषी आहारबे, ए माटे हे कृपानिधान ! मुज सेवक उ पर परम शुभ दृष्टिनो पसाय करी सपात्रकर पसारीयें. महारो निस्तार करीयें. एवां मीगं ने परम नक्तिवंत वचनोयें विनति करतो थको आहार पे, त्यारें ते मुनिराज, ते योग्य आहार जाणीने ले, ने श्रावक पण जेटली दानलायक निर्दोष वस्तु होय, तेज सर्ववस्तुनी निमंत्रणा करे. एवा विधियें करी दान
पीने फरी ते मुनिप्रत्यें हाथ जोडी, नीचो नमी, पृथ्वीपर मस्त क लगावीने नमस्कार करे. पढी वली मीगं वचनोयें विनति क रे के स्वामि ! कृपानिधान ! मुज गरीबनी एक विनतिबे, ते सां जली लेइयें. सेवक उपर मोहोटी कृपा करी मने महोटो कस्यो, मारी पर महोटो उपकार कस्यो, आज महारुं घर पावन थयुं. उत्कृ ष्ट जाग्योदय विना मुनिना चरणकमलनी रज घरमां क्यांथी पडे ? ( गुणिपदकजधूलरजकंचन सेवहुं मूल मेरा ) आजनो दिवस सफल थयो. फरी पण हे स्वामिजी ! अशन, पान, खादिम, खादि म, औषध, द्वेषज, वस्त्र, पात्र, सिझा, संथारकादि प्रयोजन उप जे, त्यारें सेवक उपर कृपा करी अवश्य अनुग्रह करवोजी, स्वामि जी ! आप तो महोटा मुनिराजढो, गुणवान्बो, निस्पृहीतो. आपने कोइ चीजनी कमती नथी, कोइ वातनो प्रतिबंध नथी, वायुनी पेरें प्रतिबंधो. तो पण हे करुणानिधान ! मुज सेवक उपर
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संविजाग व्रत.
अर्थात् घणुंज द नस्यो हर्ष
१४६ छादश अतिथिसंवि कृपा करीने फरी अनुग्रह करवो. ए प्रमाणेहमान उत्पन्न थाय. जेम नी हवसुधी ते मुनिश्रेष्ठने पहोचाडवा जाय. राजा पति चालीश्रावे
४ चोथो गुण एके, त्यांथी ते मुनिने वंदना घेर आवी, नोजन करे. पण तेने मनमां हर्ष समार रो मुनिना आगमनरूप लाग्योदय थयो, तेणे करी हारे घरे महा थको विचारे के आज को माहारे नली वात थ गवाज होय होटो को लाल थयो. कारण, जे मुनिराज निस्टही तयार क्यां रहित, गतप्रतिबंधी, सहजउदासी निरीह, एवाने में विनतिन यो धी एटले तरत महारे घेर आव्या. वती में जे आहार आप्यो, त पण सर्व लीधो. वचमां को अंतरायरूप विघ्न न थयु. एथी करी महारो को सारो वखत प्रगट्यो जणायडे, फरी आवो योग क्यारें मले ? अने जो मले, तो जाणुं जे महारे अतुल्य पुण्यनो प्रसाद थयो. एवी अनुमोदना वारंवार करे. ___५ पांचमो गुण, ए जे जेम कोश्मंदनाग्यवान् पुरुष, व्यापार क रतां करतां थोडं कमाय, तेने कोश्क दिवसें एकज शोदामां लद अव्यनी प्राप्ति थाय, त्यारे ते फरी व्यापारनी अनुमोदना केवी चा ही चाहीने करे ? तेवी रीतें एना करतां पण अधिक दाननी चाह ना समकेती जीव राखे. ए पांचे गुणोयें युक्त दान आपई, ते शु अ दान कदेवाय, ए शुकदानथी अतिथिसं विनागवत थाय. ___ अहींयां श्रावके साधुने दोष रहित आहार आपवो, अ
ने साधुयें पण दोपरहित आहार लेवो. त्यां दोपनी विचा रणा करतां प्रथम शोल दोष श्रावकथी लागे. अने शोल दोष साधुश्री लागे, तथा दश दोप साधु अने श्रावक वन्नेथकी उपजे, ए प्रकारे वझा मली वेंतालीश दोपनो त्याग करीने सा धु आहार लीये, ते वेतालीश दोपमाथी प्रथम श्रावकथी शो ल दोप लागे, ते लखे ठे.
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छादश श अतिथिसंविनाग व्रत. १४७ अहो ! महारांअतुल्याकर्मी दोष. ते साधुने वास्ते बकायनो आरंज महाराहार पानीपजावे, ते आधाकर्मी दोष, हार लेवामा म उद्देशिकदोष. ते जेवारें रसोइ करवा मांझे, तेवारें षनी प्रतीति करनारने कहेके, रसोइ घणी करजो. कारणके,साधु - कोश् दोषश्रावशे, तेमने सारी रीतें श्रापर्यं. जो रसोई घरमा पुष्कल मान जस्तो कोश्ने देवाय. कदापि रसोश कमती होय, तो देवाय न चनो त्यारें साधुने शुं अपाय ? ए माटे रसोश वधती करजो, एवी कति साधुनुं नाम लेनी वधारे रसोश करावे, ते उद्देशिकदोष. '३त्रीजो पूतिकर्मदोष. ते श्राधाकर्मी प्रमुख हर कोई दोषे दूषित एवो अशुझादार होय,ते शुझाहारनी साथै नेलवे,तेपूतिकर्मदोष.
४ चोथो मिश्रजातिदोष. ते घरमां कह्या करे के, रसोश उ तावलें बनावो. वखत योजे माटे जो वेलासर रसोश बनावो, तो कांश आपण जमीयें अने कांश साधुने पण आपीयें. ए माटे ताकीदथी रांधो. एम कही कहीने जे आहार बनाव्यो, ते मिश्र जाति दोषे दूषित आहार जाणवो.
५ पांचमो थापनादोष. ते जे गृहस्थ, नोजन वखतें एमक हे जे आज आ रसोश्मांथी आटलो आहार वाशणमां जूदो काढी राखो. ते जेवारें साधु श्रावशे, त्यारें देवो पडशे, एवी रीते व्यवहार करीने आप, ते पांचमो थापनादोष.
६ बहो पाहुडीदोष. ते साधुने आव्या जाणी चीज वस्तु आ गल पाउल खडनड करे, धकाधकीमा सावध क्रिया करीने सा धु आगल लावीने आहार थापे, ते पाहुडीदोष.
सातमो प्राकृतदोष. ते साधुने श्राव्यो जाणीने जो घरमां अंधारं होय, तो तेने मटाडवानो प्रयत्न करे, खडकी,जाती, वारी, वारणां, ए सर्वने तरत उघाडी नाखीने अजवावं करे, मनमां
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१४७ द्वादश अतिथिसंविनाग व्रत. जाणे जे अंधारं हशे तो साधु आहार लेशे नहीं. एम करी आ हार आपे. ते प्राकृतदोष,
आठमो कीतदोष. जे साधुने आव्यो जाणी करी बजार मांथी मूल्य आपी करी आहार वेचातो लावी साधुने आपे, ते कीतदोष, ___ए नवमो प्रामित्यदोष. ते कोश्यूँ उधार उडीनुं लेने आपे, करज करीने आपे, ते प्रामित्यदोष.
१० दशमो परावर्त्तितदोष ते साधु आव्या जाणी मनमां वि चारे जे, महारा घरमां तो नीरस आहार; ते साधुने केम दी धो जाय ? वास्ते पडोशी अथवा संबंधीने घेर, ते नीरस आहार आपीने तेने वदले साधुने सारु सारो सरस आहार थोडो लावे, ते साधुने आपे, ए दोष, नक्तिथी अथवा अनिमानथी अथवा लोकलाजथी थाय. एटले लोकोमा वात चर्चा थाय, जे आवो मा तवर गृहस्थ थश्ने एवो आहार साधुने आपेडे, अथवा को नीर स आहार देतां थकां पाडोशी जोशे, तो आपणी निंदा करशे, ने कहेशे के ए एवो आहार साधुने आपेठे! एमाटे लोकला जश्री सारो आहार लावीने आये, ते दशमो परावर्तित दोष.
११ अगीयारमो अन्याहृतदोष. ते पोताना घरमा जे आहार वनेलो होय, ते नरकपणाथी आहारने सामो लश् साधुने स्था नकें जश्ने आपे, ते अन्याहृतदोप.
१२ वारमो जन्निन्नदोप, ते कोठीमा तथा संजीरा प्रमुखमा चीज राखेती होय,ते चीजनो याहार, ते कोठी संजीरा प्रमुखनु तालुं उघाडीने तेमांथी आपे, ते जन्मिन्नदोप.
१३ तेरमो मालाहृत दोप. ते आहारने मेडी माल उपर, अ थवा ठीका जपर, अथवा उत उपर, अथवा वीजा कोइ स्थानक उपर उचो राखेलो होय, ते निसरणी प्रमुख मांमीने त्यां पहोची
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बादश अतिथिसंविज्ञाग व्रत. २४ए ने पढ़ी उतारी लावे. अथवा नोयरामां नीचे उतरी तेमांथी आहार लावे, ते आहार, साधुने थापे, ते मालाहतदोष.
१४ चौदमो आबिद्यदोष. ते ए के पारकाना हाथमा जे ची ज होय,ते तेनी कनेथी बीनवी लेश्ने साधुने थपे,ते आबिद्य दोष..
१५ पंदरमो अनिस्सृष्ठ दोष. ते एके घणा माणसोनी कोश साधारण चीज, वेंची लीधा विनानी होय, तेमांथी उपाडीने साधुने आपे, ते अनिसृष्टदोष,
१६ शोलमो अध्यवपूरकदोष. ते कलकलता पाणीमां बीजें पाणी पूरे, अथवा जात प्रमुख चूला उपर चडेलांडे, तेमां बी जा चोखा नाखे, एम तैय्यार थता आहारमा बीजी पूरणी करे, अने मनमां विचारे के आज गाममां साधु घणा आव्याने, ते मांथी हरकोर पण आहार लेवा माटे आपणे घेर आवी चडशे, ए माटे रसोश्मा घणी पूरणी करी रसोश वधारे कराविये, एवं क रीने पनी ते आहार साधुने आपे, ते अध्यवपूरकदोष. ए शोल दोष, श्रावकथी साधुने लागे जे. एमां केटलाएक दोष अजाण पणे लागे, केटलाएक नक्तिथी लागे, केटलाएक दृष्टिरागथी ला गे अने केटलाएक अनिमानथी लागे. ए शोल दोष टाली तजवीज करीने श्रावक, शुद्ध आहार साधुने आपे अने साधु पण त्यारें निषित आहार जाणीने ले.
हवे साधुथी शोल दोष उपजे, ते कने. १ प्रथम धात्रीदोष. जेम धात्री उदरपूर्णार्थे गृहस्थना वाल कने रमाडे, तेम साधु पण गृहस्थना वालकने रमाडे, तरेह तरेहनां वचनोयें करी बोलावे, चपटी वगाडी रीजवे, तरेह तरेहनां चाटु क वचन बोली करीने बालकने, हसावे, घणो प्यारा देखाडे. तेवू जोश्ने ते बालकनां माता पितादिक जाणे के साधुजी अ मारा बोकरा उपर वहु देत करे. तेणे. करी ते वालकना नि
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१५० कादश अतिथिसंविनाग व्रत. मित्ते ते साधु उपर दृष्टिरागनो उदासी थाय, तेवारें साधुने आहार आपे. ते आहार साधु ले, त्यारें धात्रीदोष लागे.
२ वीजो दूतीदोष. ते जे साधु विचरवा गया थका श्रावक .श्राविकाने कासीदनी पेठे परगामना समाचार अथवा कागल
आणीने आपे पीयरनी हकीकत लावीने वहने कहे. वली वहन मुखने बीजी मुखचातुरी बनावीने कहे के, तमारी माताजी सुख चेनमांजे, अने तमारा नाश्जी पण साजा ताजावे. बीजा पण सर्व कुटुंबीयो कुशल देम . वली कके फलाणानुं सगपण थडे, फलाणाने डोकरो थयो, ते तमोने अमुक चीज मोकलशे, तेमणे अमुक चीज तमारी पासेंथी मंगावी. इत्यादिक संदेशा कही करीगृहस्थने राग जपजावी आहार ले.अहींयां को गृहस्थें धर्मसंबंधी संवरवृद्धि कारणरूप संदेशो कह्यो होय, तेपण निदा अवसरें न कहे, बीजे अवसरें कहे पण संसार संबंधी संदेशो तो कदापि कालें कहेज नहीं, एवी रीतें गोचरी जायने संदेशा कहीने निदा लियें, ते वीजो दूतिकर्मदोष.
३त्रीजो निमित्तदोष. ते गोचरी गये थके गृहस्थने, निमित वतावे, गृहगोचर, शुनदशा, अशुनदशा बतादे, तमोने आटला दिवसनी पीडा, तमोने वारमो वा आग्मो शनि, एवं कहे; तथा आटला वर्षनी तमोने पनोती, माटे अमुक दान आपजो, जाप करावजो, एथी करी सुख थशे. आगल घणा सारा ग्रह आ वशे; त्यारें घणुं सुखचेन पामशो. तमारा दिलमा अमुक वातनी चिंता. एवी मनमानी वातो कहे, तेथी ते गृहस्थ खुशी थाय, चमत्कार पामे अने सारो आहार आये, ते साधु लीए, तेवारें तेने निमित्तदोष लागे.
४ चोथो आजीविकादोप. ते वहोरवा गये थके त्यां गृहस्थ नी पासें पोतानी जाति झाति जाहेर करे ने कहेके, शेठजी! तमे
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छादश अतिथिसं विनाग व्रत. १५१ श्रमने नथी उलखता ? अमे फलाणा शाहना बोकरा, फलाणा ना नत्रीजा, फलाणो अमारो नाइ थायजे, तमारी साथे पण श्र मारे संसारनो नातो. तमे अमने उलखता हशो के नहीं लिखता हो? पण अमे तो सर्व जाणीयें बैयें. एक अहारार्थ एटला संबंध प्रगट करे,ते वारे ते गृहस्थने संबंध संबंधी राग उपजे.तेणेकरी ते . खुशीश्री आहार आपे, ते आहार साधु लीये,ते आजीविकादोष,
५ पांचमो वणीमगदोष. ते जे आहारने अर्थ साधु दीन पj बोले के, आज संसारमा सर्व स्वार्थी, परमार्थी को नथी. तो अमारी खबर कोण ले? तमारा जेवो कोश धर्मरुचि, धर्मिष्ट, उपकारी अने उदारचित्तवान् होय, ते जाणे, बीजो कोण जा णे? अमे तो निराधार, निरालंबनवृत्तिवाला बैयें. अमारो को वालो सगो नथी. आ नगरमां तो एक तमारुंज घर धर्मात्माजे, जे आटली पण खर खबर तमे लीयो बो. तमे अमारी तजवीज राखवावालाबो. तमे तो साधुना मा बापडो तमेबो, तो अमारो आटलो पण निर्वाह थायजे. इत्यादि दीनतानां वचन निर्वाहने अर्थे कहे, त्यारे ते गृहस्थने कांश अनुकंपा अने कांश अनिमान तथा कांश राग उपजे, तेवारें आहार घणो आपे, ते साधु लीए, तो पांचमो वणीमगदोष लागे.
६ हो तिगंडादोष. ते आहारने अर्थे गृहस्थने घेर गये थ के गृहस्थनी नाडी जूए, रोगना आदान, निदान प्रमुख कहे,ौ षध, गोली, चूर्ण, काथ प्रमुख बतावे, रोगनुं मूल कारण कहे के फलाणी चीज खावाथी व्याधि उत्पन्न थयो; ते माटे जो गोली खातो आ, रसनी गोली ते खाऊ, नहीं तो चार पांच दि वस औषधिनो क्वाथ कूटावीने खूब तरेहथी उकालो करावी पीठ, एवं गृहस्थ सांजले, त्यारे खुशी थाय; अने मनमां जाणे जे ए साधु सर्वरीतें खबरदार जे. एने बीजुं कां आपशुं तो
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१५२ द्वादश अतिथिसंविनाग व्रत. ए लेशे नहीं. माटे खूब तरेहथी शाहार तो आप्या करो? एवं वि चारी घरमां स्त्रीया दिकने पण ते साधुने सारी रीतें आहार था पवानुं कही राखे, एवी रीतें गृहस्थने रागवान् करीने आहार लेवो, तेथी हो तिगंगदोष साधुने लागे.
सातमो क्रोधमिदोष, ते जे आहारने अर्थे साधुजन कोश गृहस्थने घेर जाय अने ते गृहस्थ तो महाकृपण, एवं साधु ये जाण्यं. बती जोगवाश्ये पण ते गृहस्थने कृपणतायें करी साधु ने आहार आपवानी सामर्थाश् नथी; तेथी ते मुखथी नाकारो के रे. ते समयें साधु क्रोध करीने एवी शापनी लाषा बोलेके बतीश क्तियें पण साधुने आहार आपवानी ना कहोगे तो तमारे घेर लक्ष्मी नहींज रहेशे. जे जे ते पण नष्ट थर जशे. या नवविध परिग्रहनी जे जे वस्तु , तेनी सत्ता रहेशे नहीं. एवा श्रा शयथी वोले, त्यारे ते गृहस्थ शापना जयथी एम जाणे क, ए साधु, तपस्वी, माटे तपश्चर्याना वलथी आईं कहेतो हशे. शुं जाणीयें एना कह्या प्रमाणे थइ जाय तो? माटे थोडाने माटे शुं करवा एवं करीएं ? एम विचारीने साधुने आहार देवानी समर्थाश् करीने आहार आपे, एवो क्रोध करी साधु आहार ले, ते क्रोधमिदोष, अथवा साधुने आहार आपवा माटे घरमा कोश् तरेहनो कषाय करवो कराववो पडे, ते पण दोष एमांज लेवो.
आठमो मानमिदोष. ते जे साधु, गृहस्थने घेर आहार देवाने माटे जाय, त्यारे गृहस्थने जोड्ने तेनुं महोटुं मान तथा सत्कार करे, तेनी शझिने जोश्ने कदेके तमे महोटा धर्मात्मा अने झद्धिमान् गृहस्थो. अथवा पोतार्नु अनिमान देखाडवा सा रु एवी रीतें कहेके, अमे पण को दिवस आवा हता, अमारा घ रमां श्राद्धं अव्य हतुं हुं आटला गामनोखावंद इतो,अमुक वका
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छादश अतिथिसंविनाग व्रत. . १५३ सिरदार अमारी सेवा करता हता,श्रावी लक्ष्मीनो लहावो लेता थका,खाता पीता हता,सर्व जग्यायें हुकम चलावता हताअथवा श्रमारोव्यापार हजारो कोशसुधीचालतोहतो. प्रत्येक गाममांस मारीपुकानहती,लक्ष्मीनीसंख्यानहती, हजारो रुपैय्यानी तोकांश गणती पण नहीं राखता हता.जग्या जग्यानी दुकाननांगुमास्ता त था नलामणीया हता. दुकानोना जवाब,खत पत्र विगेरे श्रावताह ता. देश परदेशमां कोण अमने नहीं जाणता हता? अर्थात् सर्व उलखता हता.हवे तो अमे साधु थथा, बीजाने घेर आहार लेवाने अर्थे नीकट्या बीयें, त्यारे हवे पाडलनी वात शुं याद करीयें? ए q ते साधुनुं कहे साजले, त्यारे ते गृहस्थलोक पण जाणे के "आ साधुपण असल महोटा घरनो बे, एवडी बड़ी संपत्ति को डीने नावधी साधु थयो देखाय;ए माटे एने जलीरीतें विवेक पूर्वक आहार आपो, एमां महोटो नफोडे." एवो बुझिनो प्रपंच करी आगली गृहस्थावस्थानी संपत्तिनां वखाण करीने आहार लेवो, ते मानपिंसदोष. तथा साधुनी पासेंथी गृहस्थ मान पामे. ते एवि रीतें के ते गृहस्थ, साधुनी पासें आये थके महोटी प र्षदाने विषे तेने साधु जंचे सादें हाथनी संज्ञा करी बतावे के अहींयां ावी बेसो. एवं मान आपे, त्यारे गृहस्थ जाणे के आटला लोकोनी वचमां अमोने आदर सन्मान आप्यु;माटे ए साधु सर्व तजवीज वालावे. महोटी लादनाबे. एवं जाणी ते गृहस्थ, ज्यारे ते साधु घेर वहोरवा आवे त्यारें आहार आपे, अने ते साधु ले, त्यारे तेने मानमिदोष लागे.
ए नवमो मायापिंमदोष, ते जे आहारने आर्थे साधु, गृहस्थ ने घेर गये थके को कूड कपट करी रूपपरावर्तनादिक कला क ' रीने आषाढनूति साधुनी पेरें माया प्रपंच करे अथवा वाजी गरनी पेरें तंत्रख्याल देखाडीने चमत्कार उपजावे. तेथी करी
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९५४ द्वादश अतिथिसंविजाग व्रत. लोको आग्रह करें के, श्रा साधु तो करामतनुं घरजने; ए सर्ववि द्या जाणे .एवं जाणीने ते साधुने घणा सन्मानथी आहारादि क आपे. तथा वली कहे के हे स्वामीजी! तमोने जे जोश्ये, ते तमे वीजु पण कांश व्यो. एवी रीतें मायाप्रपंच विद्याने फोरवीने साधु आहार ले,ते मायापिंगदोष कहियें.
१० दशमो लोनपिंगदोष.ते जे साधु थाहारार्थे गृहस्थने घेर जाय अने त्यां को उदार अने प्रबल दाननो दातार जोश ने ते साधु तेना पासेंथी पोताना खप करतां वधारे थाहार लीए; तेथी ते लोजपिंमदोष साधुने लागे.
११ अगीयारमो पुवपनासंस्तवदोष. ते श्राहारने अर्थे साधु गृहस्थने घेर जाय अने त्यां अहार ले, ते पहेलांज गृहस्थनी स्तवना करे के अहो! आगल पण अमोयें घणा वखत आ घर मांथी घणो सारो अने स्वादिष्ट अशनादि चारे प्रकारनो श्राहार वहोस्यो.एवं को न हशे के जे था गाममां आवीने श्रा घर मां न श्राव्युं हशे.या घर, सदाथी एवुज धर्मात्मा.श्रा घर का
आज कालनुं शुं ? वली एनां माता पिता पण एवांज सुधर्मा त्मा हता.जे को अन्यागत साधु श्रावे, ते ने खुशी थश्ने श्रा हार देतां हतां.एमनी नक्तिनी तारिफ केटनी करीयें ? सर्व जग्या यें आ घरनी यश प्रतिष्ठा प्रसिझने. एमना पूर्वजोनी एवी, नक्ति सहित करणी हती तो श्रा पण एमनाज पुत्र. एमनी पण ते करतां सवार नक्ति, एमना वंशमां महोटा कुलदीपक थगया, तेमनां नाम हजी सुधी चाल्यां आवेते. एवी एवी स्तुति करीने संनलावे, अथवा आहार लीधा पठी ते गृहस्थाना महोढा उपर स्तुति करे के शेठजी! तमे घणा लायक गृहस्थगे,साधुजन विषे नक्तिमान् गे,तमारा जेवो वीजो को दाता नथी.आ गाममा ह मेशां तमारं घर साधुने श्रादार थापवामां धोरी .तमे श्री जि
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छादश अतिथिसंविनाग व्रतं. १५५ नशासनमा गजेंडो. स्थंनो, दीपक बो, अमारां माता पिता बो, तमे अवसरना जाणगे, परीक्षावंत बो, अने चला जुंमानेस वैने उलखो बो. जे गाम जायें बैयें, ते गाममां तमारं यश व्याप्त थ रझुंडे. इत्यादिक रीतियें करीने साधु थाहार ले, त्या, पुवपछासंस्तवदोष लागे.
१२ बारमो विद्यार्पिदोष. ते आहारने अर्थे साधु गोचरी जतां पहेलां अन्नपूर्णा देवीनुं श्राराधन करे, जेनी प्रसन्नताथी ज्यां जाय, त्यां घणो अने सारो आहार मले. एवीरीतें देवतानी प्रसन्नताथी सदा गृहस्थना घरथी थाहार लावे, ते विद्यापिनदोष,
१५ तेरमो मंत्रपिंमदोष, ते थाहारना निमित्तें गृहस्थने कामण, मोहन, वशीकरण अने उच्चाटन प्रमुख प्रयोग करे; तथा मुखबंधनादि कोश्यंत्र प्रयोग करी थापे,अथवा गृहस्थने शीखावे, हस्तकला करे, अथवा कोश तंत्रविधिथी जूटु देखावा मात्र कांश करे, एम मंत्रादि फोरवी चमत्कार देखाडीने थाहा र लावे, ते मंत्रमिदोष.
१४ चौदमो चूर्णमिदोष. ते श्राहारने अर्थे साधु, गृहस्थने घेर जाय, त्यां ते गृहस्थने अनेक जातिनां औषध, चूर्ण, मेलावी आपे, अथवा ते चूर्णनां विधि, रीति, क्रिया, कर्तव्यता, सहु करी आपे, त्यारे ते गृहस्थ, ते साधु उपर रागी थश्ने जाणे जे अमारी साथे गुरुजी कोश्वातनो अंतर राखता नथी, माटे ए रूडा साधुळे.ए प्रमाणे रागी थश्ने आहार थापे, ते साधु ले. ए वात पूर्वे तिगंगदोषमां कहीजे; पण अहिंयां एटद्वं विशेष जे जे साधु पो ताने हाथे औषध, चूर्णादिक सिद्ध करी आपे, ते चूर्णपिंमदोष.
१५ पंदरमो योगपिंगदोष. ते जे साधु आहारार्थे पादले पादिक करी, कोइ महोटो चमत्कार देखाडी लोकोने खानुकूल करी आहार ले, ते योगपिंमदोष, अहींयां पूर्वे मंत्रादि योग
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द्वादश श्रतिथिसंविजाग व्रत.
दोष कह्या, ते तो सर्व मुद्रमंत्र, पण मां तो महोटो चम त्कार करे, माटे जूदो नेद थयो.
१६ शोलमो सूलकर्मदोष. ते साधु आहारने अर्थे गृहस्थने पुत्रीयो जोने, गर्ज रहेवानुं औषध बतावे, अथवा पोतें ते औषध वनावी पे. अथवा कोइ नाचरणी स्त्री होय, ते प पुरुष साथै कुकर्म कीधुं होय ने तेथी ते गर्भवती थर होय, पढी ते गर्भपात करवा माटे, साधुने श्राव्यो जाणीने तेनी पासें प्रवीने पोतानुं शल्य मटाडवा माटे गरीब थने ते साधु ागल दीन जाप करे ने कहे के है खामिजी ! मुज हत्यारीनो उपकार करो.
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पाप माराथी थयुंबे, ते उपकार करीने टालशो तो जीवीश, नहीं तो मारे सरवुं पडशे. एवां वारंवार दीनवचन सांजलीने सा धुने करुणा उपजे. त्यारें गर्जना शातन पातन प्रयोग प्रमुखनां औषध वत्ती प्रमुख होय, ते बतावी आपे, तेणे करी ते स्त्री खुशी थने सारो प्रहार आणीने आपे अथवा मूलबंधन जे गर्न स्थिरीकरण प्रयोग करे अथवा शांतिकर्म करे. एवी क्रिया क रीने आहार ले, ते मूलकर्मदोष. ए कर्म, साधुयें अवश्य नज करवुं. ए कर्मने महादुःखदाय जाणीने जरुर त्यागवुं. ए शोल उत्पादन दोष साधुथी थाय; अने पूर्व जे शोल दोष का ते श्रावकथी थाय. तेने उमदोष कहीयें. ए प्रमाणे ए वत्रीशे दोष टालीने आहार ले, ते एषणाशुद्ध कहीयें. अन्यथा अनेषणा कहियें. हवे दश ग्रहणदोष कहेठे.
१ प्रथम शंकितदोष ते आहारमां को उगमादि दोपनी शंका यावे तो आत्मार्थी साधु, ते आहार न लीए. जो लीये, तो शंकितदोष लागे.
२ वीज प्रतिदोप. ते जे नदयादिक योग्य वस्तु ते सचित्त अथवा चित्त होय तेनाथी हाथ खरड्या होय तेवे हाथे
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द्वादश अतिथिसंविनाग व्रतं. -१५७ अथवा अयोग्य अव्यथी नाजन खरड्यु होय, एवा नाजनथी आहारादिक आपे, साधु ले, त्यारें म्रक्षितदोष लागे,
३त्रीजो निक्षिप्तदोष. ते जे माटी, पाणी प्रमुख हरेक स चित्त वस्तुनो स्पर्श करीने अथवा परस्पर संघट्ट थवाथी अचि त्त थाय, एवो आहार ले, ते त्रीजो निक्षिप्तदोष.
चोयो पिहितदोषः ते एके, १ सचित्त वस्तु अचित्त वस्तु यें ढांकी होय, २ सचित्त वस्तु सचित्त वस्तुयें ढांकी होय, ३ अचित्तवस्तु सचित्त वस्तुयें ढांकी होय, ४ अने अचित्त वस्तु, अचित्तवस्तुयें ढांकी होय. ए चार नांगामां चोथो नांगो शु कडे अने बाकीना त्रण नांगा अशुकले, एमाटे ए त्रण नांगे
आहार ले, त्यारे पिहितदोष लागे. ___पांचमो संहृदोष. ते जे आहार आपवाना वाशणमां अ योग्य वस्तु नरी होय, ते वस्तु बीजा वाशणमां नाखीने पी तेज वाशणश्री आहार आपे, ते पांचमो संढदोष.
६बको दायकदोष. ते जे नपुंसक, बालक, अतिवृक्ष, आंध लो, पांगलो, कंपवायुथी जेनो देह कंपतो होय ते, जेना पगमां शंखला, बेडी प्रमुख जडी होय ते, धान्यने खांमतो होय ते, धा न्यने दलतो होय ते, धान्यने नुसतो होय ते, चरखा चरखी फेर वतो होय ते, कपास लोढतो होय ते, कपासने कालामांथी बूटो पाडतो होय, वलोणुं वलोवतो होय, जमतो होय, उकायना
आरंजनुं कार्य करतो होय, सात मास उपरांत गर्भवती स्त्री होय, बालकने धवरावती स्त्री होय, अने जे स्त्रीनुं बालक रडतुं होय, तेने पडतुं मूकीने. ए उपर कहेली क्रियामांनी हरको क्रिया करतां जे दातार आहार आपे, तेवा योगनो आहार साधु न लीये; अने जो ले, तो दायकदोष लागे.
सातमो जन्मिश्रदोष. ते योग्य आहारने अयोग्य थाहा
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१५० द्वादश अतिथिसंविन्नाग व्रतं. रसायें मिश्र करीने आपे,अने ते साधु ले, त्यारें जन्मिश्रदोष लागे. ___आग्मो अपरिणतदोष. ते आहारना वर्ण, गंध अने रस, ते का परिणामांतर अश्गयां होय; कांश न थ गयां होय, वली पूर्ण संस्कार थयो नथी, अने कांश काचो कांश पाको, एवो आहार थयो होय, ते वखत साधु ते गृहस्थने घेर आहार लेवा आवे,त्यारेंतेने ते आपे अथवा ते गृहस्थ दाताना घरमांनां माणसो माहेला कोश्कने आहार आपवानी रुचि थवे अने कोश्कने आ पवानो नाव नथी, त्यारे जेने आपवानी रुचि थइ होय, ते दान
आपे, तेवारें वीजाना दिलमां खेद उपजे. एवा बेज गृहस्थने अप रिणत कहीयें. एवो आहार साधु ले, त्यारेंअपरिणतदोषलागे.
ए नवमो लिप्तदोष. ते जे घरथी साधु आहार ले, ते आहार आपनार दातारना हाथ ते वखतें खरड्या होय, ते दान देवा माटे ते वखते ते दातार, पोताना हाथ सचित्त पाणी प्रमुखथी धोश्ने पठी आहार वहोरावे अथवा वहोराव्या पली हाथ धोश नाखे त्यारे तेने, साधुनिमित्त पश्चात् कर्मनो आरंज लाग्यो. एवो आहार साधु ले, त्यारें लिप्तमिदोष लागे.
१० दशमो बर्दितदोष. ते जे साधुने आहार आपनारो माणस वे ते अन्न, नात, घृत, रस, दही, मगे, तथा रसवती शाक,नाजी, मांमा प्रमुख नूमि उपर वेरतो तथा ढोलतो थको आहार आपे, एटले थोडो नूमि उपर वेराय, थोडो वाशणमां रहे, तेवो आहार आपे अने ते साधु ले, त्यारें बर्दितदोप लागे. ए दश दोय जे ग्र हणना कह्या, ते साधु अने श्रावक बेहुना मलवाथी थायडे, अने पूर्वना वत्रीश.एकंदर वेतालीश दोप लागे.ए वेंतालीश दोप रहित आहार साधु लेश्याव्या पठी गुरुसमीपेंश्रावीने गोचरी आलोवे. श्रावतां, जतां तथा आहार लेतां जे जे क्रिया थइ होय ते, तथा जे जे उत्तर प्रत्युत्तर थया होय ते, सर्व याद करीने गुरुने कहे, त्यारे
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द्वादश श्रतिथिसंविजाग व्रतं.
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ते गुरु हारने निर्दोष जाणी आज्ञा आपे पढी गुरुजी तथा स्थविर, तथा बीजा जे साधु होय, तेमने निमंत्रणा करे, अने सर्वने कहे के हे साधुजी ! तमे पण आहार वावरो. त्यारें ते साधु आहार करवाने बेसे, त्यां आहार करती वखत पांच दोष लागे. ते पांच दोषनां नाम लखे बे.
१ प्रथम संयोजनादोष. ते थाहार करतां साधु वादार्थे द्रव्य द्रव्यांतरथी मेलावी करीने खाय. जेम तरकारीमां लूण, मरीच, ख टाइ प्रमुख मेलावे, सारी चीजमां मीतुं मेलावे. एवी रीतें स्वादिष्ट नवीने खाय, तेने संयोजनादोष लागे. साधुने तो पात्रमां जेवो आहार पड्यो होय, तेवो खावो, पण ते आहारने यागल पाबल करे नहीं तथा आहारनी प्रत्येक चीज जूदी जूदी खाधि जाय नहिं तो सर्व चीज की मेलवीने घोलीने खाइ जाय पण जे आहार श्री रसमृद्धि वधे, ते न करे. कढी प्रमुख खातां थकां पण सबडका घणा थाय, ते न करे तथा पापड प्रमुख खातां थकां घणा वरड का थाय, ते न करे. घणा करडका न करे तथा घणो बचबचाट शब्द थाय, ते न करे. एवी रीतें साधु जोजन करे, तेम बतां जे साधु द्रव्यांतर मेलवी ने रससहित सरडका प्रमुख नरीने खाय, त्यारे तेने संयोजनादोष लागे.
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२ बीज प्रमाणातिक्रमदोष. ते पुरुषनो आहार बनीश को या प्रमाणनो बे ने स्त्रीनो आहार श्रद्वावीश कोलीयानोबे, ए करतां एक वे प्रमुख कवल वधारे जमे, तो प्रमाणातिक्रमदोष. ३ त्री जो अंगारदोष. ते साधु चाहार करती वखतें आहारना देनारनी अथवा श्राहारनी तारीफ करतो खाय, ते एम के मुक प्रहारनो आपनार पण चतुरते. आहो शी एनी चतुराइडे ? जोजन पण सर्व सरस ने सुखादडे, वली ए आहार श्रापनार गृहस्थ हाथनो पण उदारते. जेने पेढे तेनुं पात्र जरपुर करी
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१६० द्वादश अतिथिसंविनाग व्रत. आपेले. आहारवहोरवा फरी वीजाने घेर जवानी श्बा रहेतीन । थी. तथा जे वस्तु वहोरावे, ते पण घणी खादिष्ट अने जावें करी वहोरावे . तेमां पण आजनो आहार तो घणो खादिष्टजे. एवी आहारना आपनारनी तारीफ करीने खाय, ते अंगारदोष.
४ चोथो धूम्रदोष. ते आहारना आपनारनी तथा आहारनी निंदा करतोथकोखाय.ते एमके फलाणो दातार तो को सारो न थी, हाथनो महा कृपण, वली एनामां कांश चातुर्य पण नथी, सारी वस्तुने वगाडी नाखीने खायजे. एनो सदा सर्वदा एज ढंगजे. जून ! चीज बरोवर जो वनावी होय, तो केवी स्वादिष्ट थाय ? तेने केवी वेखाद करीनाखीने ? एतो कमोदने कुशका करीने खाय डे. चतुर होय ते तो कुशकाने कमोद करीने खाय. आ आहार केवी रीतें खाधो जाय ? एमां कांश खाद नथी. एतो गले पण उतरतो नथी. एवां दूषणो देतो थको खाय, ते धूम्रदोष. ____५ पांचमो अकारणदोष. ते जे साधु, विनय, वैयावच्च, संय मनिर्वाह, प्रवलकुधा शुजध्यानस्थिरता. इत्यादिक कारण विना केवल शरीरनी पुष्टता निमित्तं सरस अने सुस्वाद आहारनुं जोजन करे, ते अकारणदोष. ए पांच मंमलिकदोष कह्या. ते आगला वेंतालीश साथै मेलवतां सडतालीश दोष थया. ए सडतालीश दोष रहित आहारना लेनारा जे साधु तेमने अतिथि कहीयें. तेवा साधुने श्रावक, दोष टालीने आहार निमंत्रणा करे अने जे जे आहार साधुयें लीधो होय, तेमांनोज आहार पोते पण ज मे, कदाचित् एवा साधुनो योग न मले, त्यारें शुद्ध श्रद्धावान् अने व्रत नियमादिकधारक, एवा सुश्रावकने अति घणा मान थी वोलावीने महोटा नक्तिनाव पूर्वक जमाडे अने जे आहार ते जमे, तेमांनोज पोते पण खाय; परंतु पंक्तिविछेद आहार न करे.प्रायें ए व्रतनी, पोसहनुं पारणुं करवामां मुख्यताठे. प्रवाह
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द्वादश अतिथिसंविनाग व्रतं. १६१ थकी बीजा दिवसोमां पण व्रत प्रमुख करेजले. तेना पांच अ तिचार, ते कदे.
१ प्रथम सचित्तनिकेप अतिचार. ते सचित्त चीज माटी, पा णीनो घडो, बलतो चूलो अथवा अनाजनो ढगलो, अथवा सचि त्त पान, तथा फल, एवी चीजना उपर, दान देवा लायक जे श्रा हार होय, ते मूकी राखे एटले मनमां साधुने श्राहार नहीं देवा नी तुब बुझिये विचार करे जे, में तो अतिथिसंविनागवत लीधं बे, तेथी मारे तो साधुने सर्व चीजनी निमंत्रणा अवश्य करवी पडशे; अने साधु पण लेवा लायक हार जोड्ने लेशे. माटे हमणांधीज था युक्ति करुं ने पढ़ी जो हुं निमंत्रणा करीने श्राप ह करीश, तो पण ते आहार साधु लेशे नहीं. एवो तुब बुद्धियें वि चार करी आहारने सचित्त चीज उपर धरी राखे.पली साधुने श्रा ग्रह करी बोलावे, जूठी नावना नावे; पण साधु, सदोष आहारदे खीने ते श्राहार सीधा विना पाटो फरे; त्यारे ते कुटिल बुद्धिवा लो जाणे जे में साधुने निमंत्रणा सर्व चीजनी करी, माटे महारं व्रत तो अखंग थयु, अने थाहारनो खरच पण न थयो ! एवो फे ल करे, ते प्रथम अतिचार. एवं ते कुबुद्धि कुटिलताथी करे, कां तो अज्ञाननकलावथी करे.
२ बीजो सचित्तपिहिण अतिचार. ते दान देवानी चीज सचि त्त फल पत्रादिकें करी ढांकी राखे. ए पण न देवानी बुद्धिथी ढां की राखे, अथवा अज्ञानताथी ढांकी राखे, ते बीजो अतिचार.
३ त्रीजो अन्यव्यपदेश अतिचार. ते श्राहार नहीं देवाना निमित्तें ज्यारें साधु आवे, त्यारें महोटो नाव देखाडीने आहार नी चीज, पोताना हाथमा लेश्ने साधुना मुख आगल धरे. त्यारें साधुना आचार प्रमाणे साधु पूढे के ए चीज कोण संबंधी ? एटले ए चीज कोनी ? ते सांजली ते दाता कहे के हे खामिजी!"
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बादश अतिथिसंविजाग व्रतं. ए चीज तमे लीयो, ए अमारी नथी पण अमारा नाश्नी श्र थवा संबंधीनी डे एटले ते अमारीज . ते अमारो नाश्पण बहु ज नाविक तथा धर्मरुचि. तमने आ चीज थापी सांजलीने बहुज खुशी थशे. ए माटे आप लेश्य; कशो खतरो नथी. एवीरी तें बहु मान अने आग्रह करे, पण मनमां जाणे जे के या पार की चीज ते साधु वेशे नहीं. माटे बहुज जाव देखाडे पण ते साधु, सीधा विनाज पालो फरी जाय, त्यारे ते दाता विचारे के में तो मारुं व्रत पण साचव्यु अने कांश खरच पण न थयु! एवी कुबुछिनो फेलाव करे. तथा को दृष्टिरागी दातार, दृष्टिरागथीदे वानी बुछियें वीजानी चीजने पोतानी कहीने आपे,ते पण एमांज आवे. श्रावकें तो शुद्धाहारार्थी साधु आंगल याथातथ्य कहेवू जोश्ये, पण कपट न करवू. ए प्रमाणे त्रीजो अतिचार लागे.
४ चोथो समत्सरदान अतिचार. ते गृहस्थने घेर को साधु गोचरी आवे थके को बति चीज जूए, ने ते चीजनो साधुने ख प होय तेथी ते चीजनी याचना करे, त्यारे दातार होय ते तोड ती चीजनी ना कही शके नहीं; पण मनमां खीजाश्ने श्रापे, ते समत्सरदान कहीयें. अथवा को सामान्य गृहस्थ सारी रीतेथी परिगल दान श्रापेजे, तेनी तारीफ लांजलीने सहन करी न शके, तेवारें मनमां ईर्ष्या आणीने कहे के, ए सामान्य गरीव उतां दान सारी रीतें आपीने शुं माराथी पण महोटो थवानी चाह राखे ने ? तो हवे हुँ एवं दान आपुं, के तेवु दान एनाथी दीधुं जाय नहीं. ए पोतानी मेलें थाकीने वेसी जशे, एवी रीतें पारका गुणनी ईर्ष्या धरीने जे दान आपे, ते पण समत्सरदान कहे वाय. ए चोथो अतिचार.
५पांचमो कालातिकम अतिचार.ते साधुने गोचरीनो वखत थ -", यो जाणीने साधुनी गवेषणा न करे,अने जाणे के हवे ए साधु ने
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द्वादश प्रतिथिसंविजाग व्रतं.
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श्राहार लेने पाढा पोताने स्थानकें जवानो वखत थयो, साधु पण पोतानो खप जेटलो आहार लइ आव्या होय, बीजा श्रहारनो खप न होय, त्यारें ते गृहस्थ कुटिलपणायें विचारे के आहार तो साधु ल व्यावे, अने हवे आहारनो खप हशे तो थोडो ह शे! एम विचारी गोचरी थी फरती वखतें साधुने जोवो नीकले. ए वामां कोइ साधु पोताना प्रयोजन मात्र आहार लेने पोताना स्थानक प्रत्यें जता होय तेमनी कने जश्ने ते श्रावक महोटी मनु हार करे के हे स्वामिजी! मारे घेर पधारीयें, मारा मनोरथ सफल करीयें, महारी विनति दीलमां धरीयें, क्रपा करीने मने निस्ता रियें, कांक शुद्ध आहार लेइयें, जेम हुं पण पञ्चखाण पालुं. एम वारंवार कहे. एवी तेनी विनति सांगली साधु कहे के हे महानुभाव ! श्रमा रे तो हवे आहारनो खप नथी. खप माफक तो श्रमे लाव्या ढैयें,
धारे आहार अमारे शा कामनो ? एवं कहीने ते साधु आगल चालता याय, त्यारे फरी ते कुटिल दाता कहे के, हे स्वामिजी ! मा रे साधुने श्राहार वहोराव्या विना खावानो नियमले . तमे कांइक पण वहोरो तो हुं खाइश, नहीं वहोरशो तो नहीं खाउं. ते सां जली साधु अंतरायना जयश्री एवं विचारे के एने घेर जश्ने थोडुं लेइ आयुं, बहु नहीं लनं एवं विचारी तेने घेर जश्ने किंचित् मात्र आहार लइने जाय, त्यारें ते गृहस्थ, मनमां विचा रे के मारुं व्रत पण पल्युं ने खरच पण घणो न थयो ! अ थवा साधुने स्थं किल भूमि प्रये जतां देखी ने कुटिलताथी ते श्रा वक, प्राडो फरीने जाव देखाडी ने कड़े के दे खामीजी ! घेर पधारो, अने शुद्धमान आहारनो अनुग्रह करो. ते सांजली साधु कहे के हे महानुनाव ! हमणां तो श्रमे आहार पाणी करी चूक्या; हवे निहारभूमि प्रत्ये जश्एं बैयें. त्यारें ते मर्कट वैराग्य बतावे के हुं जाग्यहीन, मने घणा अंतरायनो उदयबे जुर्ज घणो वखत थ
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द्वादश श्रतिथिसंविजाग व्रतं.
इ गयो !! तो पण महारो मनोरथ सफल थयो नहीं. साधुने गोचरीनो वखत पण जतो रह्यो, श्रमारे घेर असूर यइ गइ. ह वे शुं करूं ? एवो देखाडवामात्र पश्चात्ताप करतो घेर जाय. ते पण पां चमो अतिचार अथवा देवाना निमित्तथी पहेलो पोतें जमे
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पी साधु बोलावे, तो कालातिक्रम थाय एटले साधु केम श्रावे ? कदापि वे तो बाकी वधेलो आहार साधुने पे. सा धुने तो एवा आहारनो पण कशी हर्ष शोक नथी. शरीरने जा डुं आपवामाटे ए आहार पण सारोजबे परंतु दातारनी ए शुद्ध चाल नथी, दान आपीनेज जमवुं, ए चालते. एम करी पठी पेलो गृहस्थ मनमा विचारे के में दान पण प्युं ने बहु खरच प ण न युं ! ए पांचमो अतिचार ए पांच प्रतिचार मांदेला प हेला त्रण ने पांचमो, ए मलीने चार अतिचार दंजथी थायवे. अथवा अज्ञानपणायें जोलाजावथी थाय. ने चोथो प्रति चार, द्वेषदोषथी थायडे. ए चोथा शिक्षाव्रतनी शैली कही. इति श्री द्वादशव्रत विवरणे पंमित श्री उद्योतसागरग पिनाकृता द्वाद प्रतिथिसंविजागनामक चतुर्थ शिक्षाव्रतकथने जाषा संपूर्णा १२ एटले श्रीं श्री सम्यक्त्वमूल वारे व्रतनी विगत संपूर्ण य.
हवे सम कितमूल वार व्रतधारी श्रावकने एकशो चोवीश श्र तिचारनी खबर राखवी, ए सर्व श्रतिचार जाणपणामां राखत्रा, पण आदरवा नहीं. एटला माटे एकशो चोवीश अतिचारतो विचार लखी यें यें ॥
मां प्रथम सम कितना पांच प्रतिचार, वार व्रतना प्रत्येकना पांच पांच प्रतिचार करतां दानना पंदर अतिचार. ए
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था, ने कर्मा २० श्रतिचारनां
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संलेषणा बतातिचार स्वरूपं. १६५ खरूप तो व्रतनी विगतमां लखी गया बैयें. बाकी संवेषणाना पां च तथा ज्ञानाचारना आउ, दर्शनाचारना आउ, चारित्राचारना श्राप, तपाचारना बार, अने वीर्याचारना त्रण. ए बझा मली चु म्मानीश अतिचार, तेनुं स्वरूप कहीएं जैएं.
॥अथ ॥ ॥ श्रीसंलेषणाव्रतातिचारस्वरूप प्रारंभः॥ त्यां संलेषणाना बे नेदजे. एक अव्यसंलेषणा, बीजी जावसं लेषणा. तेमां प्रथम अव्यसंलेषणा. ते जे साधु तथा श्रावक श्रन शननो मनोरथ करे, त्यारें प्रथम संलेषणातप करे. ते तप, आ गमोक्त विधियें करे. ते संलेषणातपत्रण प्रकारनुं बे. उत्कृष्ट, मध्यम, अने जघन्य, तेमां उत्कृष्ट बार वर्षमुं, मध्यम बार मासर्नु, अने जघन्य बार पदमुं. तेमा उत्कृष्ट संलेषणातपवा लो प्रथम चार वर्ष विचित्र तप करे, पड़ी फरीचार वर्ष षट् विगय रहित विचित्र तप करे, पनी वली बे वर्ष एकांतरें उपवास करे; अने पारणे आंबिल करे. पबीब मास नानाविध विकृष्ट तप करे, बउथी वं तप करे नहीं अने पारणे आंबिल करे, वसीम हीना अतिविकृष्ट तप करे परंतु आठमथी उर्छ तप करे नहीं, पारणे आंबील करे. तेवार पबी वली एक वर्ष निरंतर आंबिल करे, ए रीतें बार वर्ष उत्कृष्ट तप पूर्ण थाय.
१ एजरीतें मध्यम तथा जघन्य तप पण. जेवी वर्षनी संख्या बे तेवीज मासनी तथा पदानी गणतरी. आ संवेषणातप कर तां शरीर गतरस, अने धातु सर्व शोषाय, अस्थिचर्मावशेष अ पशण करवा योग्य शरीर करे, त्यारे तेने अव्यसंलेषणा कहीयें.
बीजुं नावसंलेषणा. ते अंतरमांथी विषय, कषाय, नोकषा य, गारव, संज्ञा. इत्यादि अंतरदोषने अति दीण करे. एटले प्रब
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१६७ ___ संलेषणा व्रतातिचार स्वरूपं. ती नथी. माटे पीडाथी वहेला पार उतरी ! एवो विकल्प उठे, ते चोथो अतिचार. ____५ पांचमो विसयासंसप्पळगे अतिचार. ते अणशण करीने अणशणनुं फल, काम नोगनी प्राप्ति श्वे; ते पांचमो अतिचार. __ए संलेषणाना पांचे अतिचार व्यवहार प्रसिद्धथी तो श्रण शण निष्ठाएं कहेवायचे. परंतु वस्तुगतें तो सर्वव्रतमा लागेजे.
१ जेम सर्वव्रत, सर्व नियम, दान, पूजा, विनय, वैचावच्च, अने प्रत्याख्यानादि क्रिया करीने या लोकना सुखनी श्छा न राखवी. तेम बतां जो राखे, तो पहेलो अतिचार लागे. ___ तथा परलोकें देवगत्यादिकनी श्वा न राखवी, तेम बतां जो राखे, तो बीजो अतिचार लागे.
३ तथा आवो मनुष्यावतार पाम्या बैयें, धर्मनियमकरणी, जी , वदया, जिनपूजा महोत्सव प्रमुख करीयें जैएं; शास्त्र सांजलीएं बै यें,ए सारंबे, ए माटे घणुंजीवीए तो सारूं.रखे आयुष्य स्थिति पासें आवी जाय ? एहवो विकल्प न करे,अने करे, तो त्रीजो अतिचार.
४ वली धर्म करतां को पूर्वसंचित पापकर्मना उदय थवाथी घणी अशाता पामवा लाग्यो. त्यारें मरणने श्वे जे मरण पामीएं तो आ मुःखथी बूटीएं. पण ते एबुं न विचारे जे मरण पामवा श्री कांश कर्म तूटे नहीं. मुवाथकी पण वीजा जन्ममां अनुक्त कर्म पागलने आगल तैय्यार."कृतकर्मयोनास्ति' एम जाण बु,उलटी मरणनी श्छा राखवाथकी अशुजकर्मरसपोपण थायवे. कारण के नवा अशुन्न विकल्पं अशुनबंध थाय; ए माटे साधक, मरणनी श्छा नं राखे जो राखे, तो चोथो अतिचार लागे. , ५ तथा धर्मफल तो निर्जरा.ते निर्जरा साध्य धरीने जे जे धर्म करे,तेमार्गी जीव श्राराधक कहेवाय.त्यहां कामनोगनुं फल साध्य राखीने कर्म करे, त्यारे पांचमो अतिचार लागे. एम सर्व व्रतमां
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ज्ञानातिचार खरूपं. संलेषणाना पांचे अतिचार लागे. ए माटे उपयोग संजालीने पांचे अतिचार त्यागवाथी साधकता समरे, इति संलेषणा पंच व्रतातिचारखरूपं संपूर्णम् ॥
॥ अथ ॥ ॥श्री ज्ञानाचारस्य अष्टातिचारस्वरूप प्रारंन॥ १ प्रथम आकालाध्ययन अतिचार. ते काल विना सूत्र सिद्धांत जणे गणे. त्यां अतिचार लागे, ते कालवेला कहेजे. प्रथम सवा रमां एक घडी रात्रीनी अने एक घडी प्रातःकाल अरुणोदय थया पलीनी. ए बे घडी प्रजातनी कालवेला कहीयें. तथा ए वीज रीतें बे घडी मध्यान्ह कालनी, तथा एज रीतें बे घडी सं ध्यानी, तथा बे घडी मध्यरात्रीनी. ए चारेने कालवेला कहीएं. ए कालवेलामां नर्बु जण, गणवू, सांजलवु, ए कांश पण कर, नहीं. ए कालवखतें ए कालनी क्रिया जे पडिकमणादिकले ते सुखें करे; पण बीजु नवु नणे गणे नहीं. ए कालनी वखतें म नोगत जप, ध्यान सुखें करे, पण वचनोच्चार करीने नणे नहीं. ए अतिचार, साधु अने श्रावक बन्नेने साचववो. जो नणे, तो साधु अने श्रावक बन्नेने अतिचार लागे. तथा साधुने कालिक सिकांत पहेले पहोर अथवा चोथा पहोर शिवाय शेष कालमां सिकांतसूत्र नणाय नहीं. रात्रिये पण एमज जाणवू, वली वीजा, त्रीजा पोहोरमां अर्थचिंतवन करे तथा अकालें मेघवृष्टि थाय तथा त्रण चोमासाना महा पडवाना अढी दिवस असलाइ, ते आवी रीतें के अर्जी चउदश, पूर्णिमा अने पडवो ए अढी दिवस तथा आशो अने चैत्र शुद पांचमथी ते वदि पड़वा सुधी अससार. तथा बर गाउमा महासंग्राम थतो होय, त्यहां सुधी
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ज्ञानातिचार स्वरूपं.
असझाइ तथा राजा, छत्रपति, महोटो देशाधिपति मरण पाम्यो होय तेना तखत उपर ज्यां,सुधी नवो राजा न वेसे, त्यां सुधी ते देश मांझा इत्यादिक अनेक सिद्धांतमां सझाइकाल कोठे. तथा म्लेच्छना तहेवारकालें एटले बकरीदें महाहिंसा थायवे. मा टे ते दिवसें केटलोएक कालरात्री प्रमुख, महा हिंसाना दिवस मां पण सिद्धांत एवं नहीं. तथा सो हाथमां पंचेंद्रिय जीवनुं क लेवर ज्यां सुधी पड्यं होय, त्यां सुधी सिद्धांत जे जिनप्रणीत सूत्र ते कांs aणाय गणाय नहीं. ए क्षेत्रथी असझाइ कहीएं. इत्यादि असझाना प्रकार श्रागममां घणा कह्याबे; तेमां सिद्धांत जण वुं तथा सांजल पण नहीं. ने जो नणे तथा सांजले, तो ज्ञाननो कालातिचार लागे.
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२ बीजो विनयहीना तिचार ते गुरु, पुस्तक, तथा ज्ञान नां उपकरण जे पाटी, पोथी, ठवणी, कवली, सांपडा, सांपडी, ढ़ सतरी, वही, नोकरवाली तथा अढार जातिनी बीपिना अक्षर स हित कागल प्रमुख उपकरणने पग लगाडे, पगथी दावे, यूंक ल गाडे, यूंकी कर मूंसे, एठे हाथे स्पर्श करे, अक्षर उपर रेती नाखे, उपर वेसे, सूवे तथा फाडी नाखे, एवा मुखें एनो उच्चार क रे, कोइ द्रव्यना उपर अक्षर होय, तेने पासें राख्या थका त्यां व डीनीति, लघुनीति करे, लघुनीति, वडीनीति करतां उच्चार करे,
स्नान, मैथुन, पूजा करतां बोले, पुस्तकने वाले, जलमां वृ काडे, वेचे. इत्यादिक आशातना करे, अने गुरुनी तेत्री आशा तना न टाले, ते विनयही ना तिचार.
३ त्री जो वहुमाना तिचार. ते गुरु तथा पुस्तकादिकनुं घ मान न करे, तेमनी व राखे नहीं. वह साध्य धराप दरिवर्म पुरुषने धनप्राप्ति थयाथी जेवो यति आ काम जोगनुं फल साध्य मान्य पुरुषने घेर राजा पोतें चालीनेचार लागे. एम सर्व व्रतमां
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ज्ञानातिचार स्वरूपं.
१७१, श्रानंद पामे ? अने आश्चर्य पामे? तेम गुरु पुस्तकादिकनी नेट करवा वखतें तेथी पण विशेष आनंद पामे, ते न करे तथा ज्ञानव्य इंजिय सुखमां वापरे, अथवा कोई अव्य खातो होय तेने जाणीने देखीने बति शक्तियें उवेखे नहीं तथा बति शक्तियें शिक्षा न आपे, को उपर उग्रता करें नहीं; मनमां एवं जाणे के आपणने शुंडे ? जे जेवू करशे, ते तेवू पामशे. एवी रीतें गश् गुजरी करी जाय. तथा ज्ञानी पुरुष उपर वेष राखे, ज्ञानीनो अवर्णवाद बोले, झान नणनारने अंतराय करे, बति शक्तिएं ज्ञानने जणवा,गणवा, तथा सांजलवावालानी सहायता करे नहीं. ज्ञाननागंजीरनावमां असदहणा करे, शास्त्रोना अटपटा अदरनी मजाक करे, इसे, कुयुक्ति लगाडे, गुरु तथा सिद्धांतनी प्रत्यनीकता करे, अने मतिज्ञानादि पांच छाननी असदहणा करे, इत्यादि अतिचार लगावे, ते त्रीजो अबहुमानातिचार.
४ चोथो उपधानहीनातिचार. ते श्रावक, उपधान वह्या वि ना षडावश्यकादि क्रिया करे, तथा साधु, योगनी तपक्रिया कीधा विना सिद्धांत जणे, जणावे, तथा संचलावे, त्यारें तेने चोथो उपधानहीनातिचार लागे. ____५ पांचमो गुरुनिन्हवण अतिचार.ते कोअल्पश्रुत, अल्पवि ख्यात एवा साधु अथवा श्रावकनी पासें नण्यो होय, मूल उपकार तो तेनो होय, पनी नणवावालो पोताना सारा क्षयोपशम उद्यम श्री शास्त्रमा घणो हुशीआर, शाणो अने चतुर थयो; त्यारे को इनक लोको, तेनी निपुणता, अने चमत्कारिक ज्ञान जोश्ने ते चमत्कार पामी बहुमान करी पूजे के, अहो खामिजी ! तमे श्रुतमां सावधान बो, एवी श्रुतज्ञाननी चतुराश्, संपूर्ण विद्या,
ति के बासें जण्या बो ? जो ते गुरु हाल अहीं विद्यमान त तथा श्राशोअमे पण दर्शन करियें. हवे ते गुरु तो सुधो
असताश तथा बर गाउम
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दर्शना तिचार स्वरूपं.
गरीब, पण ज्ञानगुणसंयुक्त होय ने पोतें तो महोटो बोगा लो होय अथवा श्रावक होय तो महोटो तालेवर होय, पोषा 'क प्रमुख सारो होय, चाकर प्रमुख घणा होय, तेवारें ते उन्नता दोषी मनमां विचारे के महारो विद्यागुरु तो घणो प्रख्यात न श्री, माटे एनुं नाम लश, तो महारी महोटाइ थशे नहीं माटे ते वर्त्तमान कालमा कोइ महोटो पंक्ति वृद्ध होय, जेनुं यश प्र ख्यात होय, तेनुं नाम बीये. एम करी पोताना मूल गुरुने दुपावे. ते गुरुलोपी, महापापी ने पांचमो गुरुनिन्हवण अतिचार लागे. कूटसूत्रा तिचार. ते सूत्रना अक्षर खोटा उच्चारे. हव दीर्घनी खबर न राखे, अक्षर, मात्राहीन अथवा अधिक करीने जणे. दोनंग करी जणे, पद, संपदासहित न बोले, ते सूत्रकूटा तिचार सातमो अर्थकूटा तिचार. ते पोताना अज्ञानदोषथी थवा कोइ कुमति कदाग्रहना उदयथी अशुद्ध अर्थ करे, विप तरुपे, ते सातमो अर्थकूटा तिचार.
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आठमो जनयकूटा तिचार ते सूत्र ने अर्थ ए बन्ने शुद्ध जणे, प्ररूपे, ते आठमो उजयकूटातिचार. इति ज्ञानाच स्यष्टतिचारखरूपं संपूर्णम् ॥
॥ अथ ॥
॥ श्री दर्शनाचारस्य प्रष्टातिचारस्वरूप प्रारंभः ॥
१ प्रथम शंकातिचार. ते जे जिनागमना सूक्ष्म अतींद्रिय गंजीरजाव सांजलीने पोताना मंददयोपशमना योगथी तथा मिथ्यात्वना प्रदेशोदयाथी शंका धरे, जे ए वात केम वरशे ? एकेम हशे ? कां मनमां वेसती नथी. शुं जाणीयें जे केवी रीतेंबे ? एते साचुंबे के जूटुंबे ? एवो विकल्प उठे, ते प्रथम अतिचार.
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दर्शना तिचार स्वरूपं,
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अथवा जेने मंदक्षयोपशमबे, पण मिथ्यात्वना बहुप्रदेशोदय नथी. सम कितनुं स्थान उंचुं बे, ते पण गंजिरनाव सांजलतां बुद्धिमांतो एका एक आवे नहीं. पण ते समकेती एम विचारे जे ए वात, मारी बुद्धिमां नयी यावती; ते मारा आत्मदोषथी मने यावरणो दय घांबे; पण ए वात साचीबे; कारण के जे माटे ए सर्वजिन जाषित बे ने श्री जिनेश्वरजी तो असत्यभाषी नथी. श्रसत्य जाषणमात्रणे दोष जे राग, द्वेष, अने अज्ञान, ते तो जेमना नाशपायाने ते दोषना सहचारी जे हास्य जयादिक ते पण जेमना नाश पाम्याबे, तो तेवा वीतराग परमेश्वर कोण कारणे जू तुं बोले ? विना उद्देश कोइ कार्य प्रवर्त्ति बेज नहीं अने वीतराग कृतकृत्यने तो कोइ कार्यनो उद्देश रह्यो नथी, ए माटे जे केवलि जाषित बे, ते सर्व सत्यजबे एमां कां संदेह नथी. एवी निश्चल बुद्धि यश, तेने सम कितनी निर्मलता वधती जाय. अने जेने एवी निश्चल बुद्धि न होय, तेने अतिचारना सबबथी समकि त, मलीन थर जाय. ते प्रथमा तिचार.
2 वीज आकांक्षा तिचार. ते जे दान, शील, तप प्रमुख ध र्मकरणी करीने पुण्यरूपी फलनी इछा राखे, अति आतुरता क रे, अथवा आकांक्षा ते परमतानिलाष श्रन्यदर्शनीना धर्मनो उन्नतिभाव देखी, ते धर्मनी इछा राखे जे, या पण धर्म सारोबे, श्राचरवा लायकडे, जू जूर्ज !! एमां पण केवा केवा प्राणी बे ? औदार्य, धैर्य, गांभीर्य, पूर्णजक्ति, परोपकार, अने निस्पृहता के वी धारण करे बे ? एवा धर्मने केम निंदीएं ? एवो विकल्प, ते बीजो आकांक्षा तिचार.
३ त्री जो वितिगिठा तिचार. ते धर्म करणीना फलनो संदेह धरे. अहींयां पोतानां पूर्वकृत पापना उदयश्री कोइ उदयिक दुःख पामे, त्यारें शिथिल परिणामना योगयी श्रशुद्ध विकल्प उठे,
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१७४ दर्शननातिचार स्वरूपं. जे श्रमे विधिपूर्वक धर्मकरणी करीयें बैयें, पण कांश फल नजरमां श्रावतुं नथी. कोण जाणे केवं फल पामगुं? पण एम न विचारे जे, धर्म तो आजन्ममां पाम्या बैये, अने हमणां करीयें यें तेनुं फल तो निश्चे आगल पामगुं.पण एतो पूर्वजन्मने विषे मिथ्यात्वा दि चारनी प्रवलताथी जे चीकणां कर्म बांध्यां तेनो अहीं उदय श्रयो , ते पोताना विपाक मात्र जोश्ने जेने धर्ममां निश्चल बुद्धिजे, तेनां कर्म तरत नाश पामशे, जे कारण माटे धर्मक रणी करतां पाप नदय थाय. ते प्रायें निकांचितरसियां कर्म उद य आवे, अने बंध, स्पष्ट, निधत्त रसीयां कर्म ते धर्मना परिणा मथी विफलोदय थर जाय, एवं न विचारे. एम फुःखनी आतुर तामां नूले, ते पण अतिचार . तथा साधु साधवीनां मलमली न वस्त्र तथा शरिरादिक जोश्ने मनमां गंडा करे, सूग आणे, जे ए सर्वकरणी तो सारी पण ए गलीच रहे, ते बूलं करे . जो ते अचित्त फासु परिमित जलथी स्नानादिक करीने शुकर देतो घणुं सारं: एवो विकल्प करे, पण एम न विचारे के ए पु जल, सर्व एक सरखांजने. सारं नगरुं को नथी. जे कारण मा टे शुचि ते अशुचि थाय,अने जे अशुचि होय ते शुचि थाय. सम य समय अशुचि पुजलमां शुचि पुजल आवे, अने शुचि पुजल मां अशुचि जाय. जे शरीरने पवित्र करवाने विविध प्रकार करें ने, ते शरीर तो केवल अशुचिथी नखुले; तो तुं क्यहां सुधी एने पवित्र करीश ? वली आ शरीर, पवित्र करवाथी कांजीव पवित्र नहीं थशे, जीव तो सर्व पुजलनी बांबना मटवाथी पवित्र थशे. जो अहीयां फांसु अचित जलथी पवित्रता करे, तो पण ते पुन लरंगी थयो; अने ज्यारे जीव पुजलरंगी थयो, त्यारें आ जीवनी अनादिनी मूल मटी नहीं. एने तो पहेलोज दिवसठे. सर्व धर्म नुं मूल तो ए. के जेम जेम पुजल वासना उतरे, तेम तेम धर्म
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दर्शनातिचार खरूपं. १७५ निश्चलता होय. पवित्र अपवित्रपणानी वासना तो राग द्वेषनुं मूलने, अने ज्यां राग द्वेषनी पुष्टिले, त्यां धर्म क्या? इत्यादिक शुरुयुक्ति चित्तमा न आवे, त्यारे कुविकल्प करे. अथवा विति गिला ते घणो पुण्योदय थये थके माचे, मनमा फुले, अनि मान धरे; अने अतिपापोदय थये थके दुःख धरे, बहु अरति वेदे, उदासी रहे, दीनता करे, दिलगिरी रहे, ए सर्व उगंछा बे. तथा एक सारो, अने एक लूंमो ए लक्षणे करीने ए त्रण प्रकारना विफल्प, ते त्रीजा अतिचारमा आवे. ____४ चोथो मूढदृष्टि अतिचार. ते जे अन्यदर्शनी मिथ्यात्वीनां कष्ट, मंत्र, चमत्कार, अथवा को मिथ्यात्वीना देवनो परतो जे मनःकामनापूर्ण, ते जोश्ने दिलमां मुरकाय जे आ देवधर्म तो प्रत्यदरे तो गुरु केम ना कहे ? कां खबर पडती नश्री. एम मुरकाय, पण एम न विचारे जे सुख दुःखतो कर्मना उदयने या धीनजे. देवता तो तिमित्तमात्र. आपणां पुण्य पापना उदय विना देवताथी कांश थनार नथी. ते तो केवल आपणां पुण्य पापना उदयनिमित्त थश्ने यश ग्रहबे; पण उदायिक पाप पुण्य ना उदय विना सुख दुःख आपी शकता नथी. अन्यदर्शनना जे जे प्रजावक देवता , तेमनी सेवनाना करवावाला तो कोश् सर्व सुखी नथी, तेमां पण घणा फुःखी, ए माटे कर्मना उदय विना सुख फुःखनी प्राप्ति, ते मिथ्या. अथवा श्री जिनागमना अति सूक्ष्म विचार, निगोदना, अथवा षट्नव्यना, नय, गम, नंग, प्र स्तारा दिक गहन विचार सांजलीने पोताना आवरणना दोषथी बुद्धिमां न आवे,त्यारें मुकाय, ते एम के कोण जाणे ए शुं कहे बे? कां खबर पडती नथी. कोण जाणे शी रीतें हशे ? ए प्र. कारें विकल्प करे, ते चोथो मूढदृष्टि अतिचार. . - पांचमो अणुववुह अतिचार. ते जे पोतानी सत्ताना गुणप
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दर्शना तिचार स्वरूपं.
र्याय प्रकाश करीने कहे नहीं. अथवा गुणवंतना गुण जाणे तो पण तारीफ करीने प्रकाशे नहीं. पांच लोकमां गुणीना गुण प्रस्ता वती वखतें तेना गुण प्रगट जांखे नहीं. प्रकाशे नहीं, मोढेथी क नहीं तथा रागद्वेषादिक, कर्मउपाधि संयोगिक जाव, सर्व दुःखनुं मूलबे. एम वीशदरीतें प्रकाश करीने कहे नहीं, ते पांचो अतिचार .
६ t स्थिरीकरण अतिचार. ते जे आपने कोई पाप कर्मनो उदय थयो, त्यारें आपदा, रोग, शोक, याजीविका, डु जता, कूडां श्राल, तेवी दिनपर दिन दुःखनी चढती जोइने कोइ मिथ्यात्वना प्रदेश उदयवलें करी जैनमार्गथी परिणाम खसता जा य. आचारमां शिथिल थाय, ते पोतेंज पोताना शास्त्रपरिचयथी जाणे जे मारां परिणाम धर्ममार्गथी शिथिल थयाबे, पूर्वथी मा री श्रद्धा पण मलीन रहेबे एवं जाणे तो पण तेनी दृढतानां कारण जे सकुरुसेवन, शास्त्रश्रवण, दृढवृत्ति, महापुरुषचरित्रस्म रण, देवदर्शन, उत्सवादिगमन, कर्मग्रंथादिक अथवा अध्यात्म शास्त्रपठन, इत्यादि दृढतानां कारणवे, ते न सेवे, ने जाणतां
तां पण गुरुसंसर्ग, शास्त्रपठनादि उद्यम करे नहीं. अथवा कोइ धर्मरुचि प्राणीथी परचो करे, अथवा कोइ बीजो धर्म रुचि जीव होय, तेने धर्मथी पडतो देखे, त्यारें कहे फलाणो पुरुष,
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गल धर्ममार्गमां घपोज दृढ थयो हतो, हवे तो दिवसें दि बसें एना शिथिलतानां परिणाम नजरें वंधारे यावे. एवं पोतें जाणे ने पोतामां एवी शक्ति पण वे. के ते धर्म शिथिलने वहुविध हेतुयुक्ति देखाडी ने धर्ममार्गमां स्थिर करे ने पडवा न दीए. एवी शक्ति बतां पण तेने उपकार बुद्धिएं करी शुद्धोप देशें दुर्गतिपतनादि विपाकदर्शन. इत्यादि स्थिरीकरण न करे, मनमां जाणे जे आपणुं शुं वगढेवे ? चेतना तो एनी बगडे
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दर्शनाचारा तिचार स्वरूपं,
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माटे जे करशे, ते पामशे. एवी उदासी करीने बति शक्तियें धर्मी गतो होय, तेने धर्ममार्गमां स्थिर न करे, तो तेने स्थिरीकरण तिचार लागे.
७ सातमो वात्सल्या तिचार. ते जे जे साधर्मी प्राणी, जे नी एक श्रद्धा, अने शास्त्रश्रवण, देवदर्शन, सामायक, पोसह प्रमुख कर, इत्यादिक धर्मकरणी सार्थेज करता होय, जेनी साथै धर्मनो महोटो संबंधबे ने जे एक गुरुना उपदेशित प्रभु ख बे, तेने साधर्मी कहीयें. ते साधर्मीनी बति शक्तियें जक्ति न करे तेने कोइ रीतनुं संकट यावी पड्युं होय अने पोतानामां ते संकट टालवानी शक्ति बे, तो पण तेनो उद्धार न करे, ते संक टने मटा नहीं, ते साधर्मी उपर घणुं देत न धरे, तेने जोइने खुशी न थाय. संघमध्यें कोइ गुणवान् पुरुषनी शोना यश, प्रतिष्ठा सांजलीने प्रीति उपजे तथा साधर्मीकनो समुदाय मले, त्यां कषाय करीने मांहो मांहे विरोध पेदा करावे. साधर्मी साथै शत्रुतानी रीति राखे, तेनी उपर अशुभ परिणाम चिंतवे, अथवा सर्वजीव सत्तामां सरखाडे, एकज जाति, समान गुणप र्यायी, अने तेनुं वस्तुगतें एकज स्वरूपबे, ए माटे समानसाध मी था, एवं शास्त्राना उपकारथी जाण्युं, तो पण तेर्जनी र क्षा न करे, ते वात्सल्यदोष अथवा स्वनिष्ठामां अंतर्गत मां पोताना ज्ञान दर्शनादि गुणपर्याय बे, ते निश्चें साधर्मी बे, एवं गुरुकृपाथी जाणे तो पण तेने ज्ञान, ध्यान, संवर ने समता रमणें करी पोषे नहीं, अथवा जेम वार तहेवारें पोताना पाप कुटुं वने दरी ने क्तिथी बोलावी विविध उपचारो करी हर्षे करी पोषेढेः तेम कोइ वार्षिक पर्वादि धर्मगत पर्व यावे थके, स्वामीवा त्सल्यादिक नक्ति, बति शक्तियें करे नहीं; ते पण वात्सल्यदोष रूप अतिचार वे अथवा देवद्रव्य, ज्ञानद्रव्य, गुरुद्रव्य, अने
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दर्शनाचारातिचार स्वरूपं साधारणअव्य वावरे, को देवाव्य नक्षण करतो होय, तेने बति शक्तियें शिक्षा न आपे. मनमां विचारे के आपणने शंबे ? जे खाशे, ते फुर्गतिनो देखवावालो थशे, संघमां शं श्रापणे एक लाज वैयें !! वीजो तो कोई वोलतो नथी, त्यारें हुं एकलो शा माटे को नाश् कुटुंबीने मानु मनावं ? एवं विचारे तथा बति श क्तियें देहेरा प्रमुख धर्मस्थानकना अव्यनी खबर राखे नहीं, थवा खंमित, मित,मेली, अशुद्ध, अपवित्र धोतीथी पूजा करे श्र थवा पूजा करतां बीजाने एवीज रीतें, एवे वे जोश्ने तेने का कहे नहीं, अथवा पूजा करतां मुखकोश बांधे नहीं, तेत्रीश आ शातना टालीने पूजा करे नहीं, अथवा पूजा करतां विंबने हा थमाथी पाडी नाखे, विंबने कलश प्रमुखनो धक्को लगाडे, देहेरा नी दश आशातना न साचवे, सामायक तथा पोसहमा थापना चार्यनी पडिलेहणा करतां हाथमाथीनूमि उपर गिरावे अने शुक माननक्ति न राखे. ए सर्व सातमो अवात्सल्यातिचार जाणवो.
आग्मो अपनावनातिचार. ते जे, बति शक्तियें धर्मनी जन्न तिनां जे जे कारणो, जेवां के स्नात्रपूजा, सत्तरप्रकारीपूजा, एक शो अष्टोत्तरीपूजा अने एकवीशप्रकारीपूजा ते महोटा हर्पथी क राववी, तथा थोडी शक्ति होय तो व्यवहारें अष्टप्रकारनी पूजा,प्र नावना,संघनक्ति, रथयात्रा,तीर्थयात्रा,संघसहित जवू, महोत्सव, विवप्रतिष्ठा कराववी, तीयोंकार कराववा, जीर्णोछार पोताथी क राववां,अथवा अन्यने उपदेशप्ररूपकथश्ने नवांप्रासाद वीजाकने कराववां, अने सद्गुरु, आचार्य, नहारक प्रमुख आवे थके तेमने संपत्तियुक्त अवारित दान आपे. ति शक्तियें उतुं न करे. सोना ना तथा रत्नना ढुंचनां करतो थको तेने नगरप्रवेश करावे ते समय उदारचित्तवालोथश्जेवू पोतार्नु सामर्थ्य होय,ते प्रमाणे चौटाप्र मुखमां शोना करावे. प्रतोली प्रमुख विविध प्रकारे विनूषा वना
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चारित्राचारातिचार स्वरूपं. वे उदारताथी दीनने दान थापे. ए सर्व शासननी उन्नतिन , कारण जे. जेकारण माटे एवा उत्सव, महोत्सव, बहुमान कने
अवारित दाननी उदारता विगेरेने देखवाथी सर्व को निक 'वी जीव, धर्मनी अनुमोदना करीने पुण्योपार्जन करे. मुहर धी पण थर जाय,अने आपणा पण एवे कारणे करी परिएन मल थाय. कोश् वेश्या एवी श्रावी जाय के, तेवी वेशा का .. मरमां पण आवे नहीं. एवो परिणाम समरी जाय, शासन नावनाथी घणा जीवोने उपकार थाय; एवं जाणवां नं अने बति शक्तियें पण प्रत्नावना न करे, अथवा नियं अनावर अँट.. र्गतमां ज्या ज्यां पुष्टनिमित्त जे देवगुरुदर्शन, झावा , सेवन, जेनाथी आत्माना गुणनी वृद्धि थाय, बादी नि, बर.. आत्मामां ज्ञानप्रकाश थाय. एवं सर्व पोतें जाने गरेन णे करे नहीं, ते अप्रजावनादोषातिचार यावमा हा . दर्शनाचारस्य अष्टातिचारस्वरूपं संपूर्णम् ॥
॥अथ ।। ॥श्री चारित्राचारस्य अष्टातिचारम्बार
१ प्रथम अनुपयुक्तगमनातिचार, ते माने । चन, काया, एकत्र उपयोगीरूप प्रणिधान र साधु सर प्रमाण नूमियें दृष्टि पडिया
यसमितियुक्त गमन थाय. त्या सावुन म श्रावकने सामायक पोसह कीधे होय. चपलतासहित वर्ते, तोते प्रथमथनुपयुलर
बीजो अनुपयुक्तनाषी अतिवार ल, अने श्रावक सामायक पोसदमा
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चारित्राचारा तिचार स्वरूपं.
त्यां भाषाना चार दबे प्रथम सत्यनाषा. ते जेवुं होय, तेवुंज कहे, पण कम वेश न कहे, बीजी सत्यनाषा, ते कां कहे वानुं होय तेने बदले कांइ कहे. त्रीजी मिश्रभाषा. ते कांइक जू तुं ने कांक सातुं, जेम के श्राजे नगरमां दशनो जन्म थयो. ए
कड़े, ते मिश्राषा. चोथी अनुजयजाषा. ते साधुं पण नहीं
जू पण नहीं, पण जे लोकव्यवहारें बोलवुं. ते जेम गाम श्राव्यं रात्री पडी, वली कोइनुं नाम कहेवुं. जेम के जगत्पाल, लक्ष्मीधर, देवदत्त, अमर इत्यादि व्यवहारजाषा चोथी. त्यां साधु सदाकाल, यने श्रावक सामायक पोसहमां पहेली अने चोथी ए बन्ने जाषा बोले, ते पण प्रणिधानयुक्त उपयोगी ने जयणायुक्त वोले. ते हयां विना उपयोगें अशुद्ध बोले, ते वीजो प्रतिचार.
३ त्री जो अनुपयुक्तएषणा तिचार. ते जे पूर्वोक्त प्रणिधानयुक्त बेतालीश दोष टालीने निक्षा ले. पांच दोष टालीने आहार करे, ते चारित्राचारवे; पण उपयोग विना एथकी विपरीतपणे आहार ले, ते त्रीजो अतिचार. अहींयां एषणाशुद्धिमां वीजं पण वस्त्र, पात्र, शय्या, संथारक, वसती प्रमुख जे जे चीज चारित्रने उप कारी होय, ते चीज जो निर्दोष ले, तो आचार जावो ने जो सदोष ले, तो अतिचार लागे. ए पण अतिचार साधुने सर्वदा,
ने गृहस्थने पोसह सामायक लीधे लागे. एम पोतानी दशा माफक पाले, तेमां जो अनुपयुक्त प्रवर्तें, तो ते त्री जो अतिचार.
४ चोथो अनुपयुक्तचादानमोचना तिचार. ते जे साधु सदा काल, ने श्रावक सामायक पोसहमां जे जे चीज ले, तथा मूके, ते चीज पूर्वोक्त प्रणिधानयुक्त उपयोगी थको दृष्टि पडिले हा पूर्वक ले, फरी एवी रीतेंज मूके, एवो आचारवे ने जे नुपयुक्त अवधिथी यादान मोचन करे, ते चोथो अतिचार कहीयें. ५ पांचो अनुपयुक्तपरिष्ठापन अतिचार. ते जे साधु सर्व
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चारित्राचारा तिचार स्वरूपं.
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काल, ने श्रावक सामायक पोसहमां लघुनीति, वडी नीति, मे ल, श्लेष्मादि जे परठवणा लायक वस्तु, ते शुद्ध निर्जीव भूमि ना स्थानकमां दृष्टिपडिलेहणापूर्वक, पुजन प्रमार्जन करीने परवे, एवो याचार. तेथी विपरीत, प्रणिधान रहित अनुप योगी को परवे, तो पांचमो अतिचार लागे. हींयां पहेली बे समिति, पोसह सामायकमां तो अवश्य साचववी. कदापि न सचवाय, तो पण ए बेनो जैनधर्मीने उपयोग राखवो, कारण ए धर्मनो मूलमार्गबे. बो
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अनुपयुक्तमनप्रवर्त्तनातिचार. ते जे साधु सर्व कालें श्रावक सामायकादिक धर्मकरणीना अवसरें पूर्वोक्त प्रणि धानपूर्वक सर्व कुविकल्प बोडीने सूत्रार्थ चिंतवन प्रमुख आलं बनयुक्त उपयोगी थको मनने स्थिर राखे, ते मनगुप्ति आचार, नाथ विपरीत यार्त्तध्यानादिकें करी कुविकल्पमां मन दोडावे, ते बघ तिचार.
७ सातमो अनुपयुक्त कारणवचनातिचार. ते जे साधु सर्व काल छाने श्रानक सामायक पोसहमां प्रायें मौनज रहे. अने बोले, तो पण उपयोगी, पूर्वोक्तप्रणिधानयुक्त अवश्य कारण योगें जिनाज्ञायुक्त सर्व जीवने हितकारक, एवं शुद्ध जांगे सां जलवामां मधुर एवं वचन कहे, ते वचनगुप्ति आचार एनाथ विपरीत निष्कारणे जेतुं तेवुं बोले, ते सातमो तिचार. मनुपयुक्त निष्कारण काययोगचपलता तिचार. ते जे साधु सर्वकाल श्रावक पोसह सामायकमां इंडिजने गुप्त क री राखेने अवश्य कारण योगें उपयोगी थको प्रणिधान यु क्त श्राज्ञापूर्वक जयणाथी हस्त पादादिक याकुंचन प्रसारण क रे, अथवा उठे, बेसे, ते कायगुप्ति प्रचार. पण निष्कारण, अनुपयुक्त, अने विधिपूर्वक जे हस्त पादादिक योगचपल
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तपाचारातिचार वरूपं. ता करे, ते आठमो अतिचार जाणवो. ए अतिचार जाणवामां राखे, पण आदरे नहीं. अहिंयां गुप्तिधर्म ते उत्सर्गधर्म के अने समिति यादिक जे पांचे, ते अपवादधर्म. ए आने धर्मनी माता कहेवाय, जे जे धर्म करणी, ते ए बातें करी युक्त, ते आचारले. अने ए विना जे करे, ते अतिचार जाणवो ॥ इति चारित्राचारस्य आष्टातिचारखरूपं संपूर्णम् ॥
॥अथ ॥ ॥श्री तपाचारस्य हादशातिचार स्वरूप प्रारंनः॥ त्यां तपनुं मूल लक्षण एजे, श्री जिनेश्वरें बार प्रकारना तपनी प्ररूपणा कीधी, ते तप, परम निर्जरातुं कारण. पण श्वा निरोध करीने मनमां ग्लानपणुं नहीं, मन हारे नहीं, अग्लान नी आतुरता रहित, विषयानुष्ठान, गरलानुष्टान रहित, अन्योन्या नुष्ठानरहित एटले आ लोकने विषे आजीविका हेतुयें अथवा मानने अर्थे, तथा पूजाने अर्थे, अने परलोकें देवादिक पदवीना हेतुयें ए त्रण अनुष्ठान ; इत्यादिक आशयरहित, क्रोधमा नादि कषायरहित, उमंगसहित, समतासहित, अने चित्तनी प्र सन्नतायें करी, केवल कर्मदयना निमित्तें करे, तेने शुद्धतप क हीयें. ते तपना वार नेद , माटे वार अतिचार लागे, ते लखे.
१ प्रथम अणशणतप. ते जे जे उपवासादिक वीविध प्रकार ना, ते करीने पळी पूर्वे लोगवेला आहारने याद करे, नक्तकथा करे, आगला दिवसें पारणानी चिंता करे के आवी रीतें रसोश्व नावीने खाश. एवो मनमां विकल्प करे. आ संसारमा आहार संज्ञादि दोषवे, ते मोहोट्टं लांबन, अने सर्व आरंजनुं मूल . "ए काहनो थाय ज्यारे जटो, त्यारें बने एक रोटो" एवो श्र नादि दोष जिनवचन सांजलवाथी जाण्यो पण ते दोष सर्व प्रका
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तपाचारातिचार स्वरूपं. रें परित्यागवाने तो लाचार बे, त्यारें मोदार्थी जीव, पोतानी श क्ति मुजब योग्य परिमित काल कवलाहार त्रिविध योगें त्यागरू प पञ्चखाण करे; एटले धारणापरिमाणकाल सुधी बकायने अन्न यदान थयु. अने रसनेजियादिक मार्गी थया. त्यारें सकल लब्धि प्रमुख आत्मिक संपत्तिनुं बीज रोप्यु. एम सकल मनःकामना पूर्ण करवाने समर्थ एवं तप करीने आगला पाबला दिवसनी चिं ता, अनुमोदना करे, ते तपफल व्यर्थ करे, अथवा मनग्लान करे जे, उपवास महोटो कग्नि थयो ? आ शुं कमु ? एवो पश्चात्ताप करे. ए सर्व, तपना अतिचार ॥ इति अणशण तपातिचार. __५ बीजो ऊणोदरीतप अतिचार. ते जे पुरुषनो पूर्ण आहार बत्रीश कवलप्रमाण, अने स्त्रीनो अहावीश कवल प्रमाण आ हार. ए नीरोगी शुद्धकायार्नु लदणजे. एमां जो कमी जास्तीया हार थाय, ते प्रायें रोग औषधादिकना प्रत्नावथी थइ जाय तो लाचारी, पण प्रमाण तो बत्रीश कवलनुं . अने एक कवलनुं प्रमाण मुरगीतुं इंमुअथवा जेवडं आंबटुं तेवडं, अथवा आपणा मोढानी फाडमां जेवडो कवल सुखें आवे एटलो ग्रास लेवो तेने पण कवलप्रमाण कहीयें, अथवा आपणो जेटलो आहार होय, तेना बत्रीश नाग करीएं तेमांना एक नागने पण कवल कहीयें. एवा बत्रीश कवलनो जे आहार करे, ते पूर्णाहारी कहेवाय. ते पूर्ण आहारमाथी श्वारोध करीने कुधा बते संतोष धरीने वे अथवा चार अथवा आठ कोलीया उबग खाय; तेने कणोदरी तप कहीये. त्यां जणोदरीतप करीने कवल परिमाणमा महोटा महो टा कोलीया गणतरीमा राखीने खाय अथवा सरस आहार जे मो दक प्रमुख चीज घणी चीकणीने, तेना कोलीया खावामां पण बा श्रावे. कारण तेना थोडा कोलीयामांज तृप्ति थाय. ते थोडा को दीया गणतरीमा राखे, अथवा विशेष खादथी घणुं खाय, एवं
आहार को
नागने
थाहार
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तपाचारातिचार खरूपं. करीने विचारे जे आहार प्रमाण तो बत्रीश कोलीयानु; अने में तो चोवीश कोलीया खाधा; माटे मारे पण ऊपोदरी तप थयु. पण एम न विचारे जे, बत्रीश कोलीयामां मोदक प्रमुख चीकणी वस्तुनी गणतरी नहीं जाणवी. तेम बतां आशानदोषथी समजीने ते एवो मनमां विकल्प करे, ते जणोदरी तप अतिचार.
॥त्रीजुं वृत्तिसंदेपतप. ते विविध प्रकारना अनिग्रह धरे, अने श्रावक चौद नियम धरे. अथवा आहारनी चीज होय तेनी अव्य धारायें संख्या राखे, ते वृत्तिसंदेपतप कहीये. ते तप करी ने साधु वार्तामां अथवा उपदेश देतां थकां पोताना अनिग्रहनी वात पण गृहस्थना आगल कही दे, त्यारे ते सांजलीने गृहस्थ जाणे जे अहो !! साधुयें केवा केवा अनिग्रह लीधा. तेथी वि वेकी अने चतुर श्रावक होय, ते पोतानी बुद्धिथकी अवसर थये थके अनिग्रह पूरे, तथा गृहस्थ अव्यपरिमाणादि नियम धरतो होय, ते पोताना घरमां संकेत शिक्षारूप करे. जे तमे तो स्नेह ग्रथिल बो तेथी हरेक चीज लावीने नोजन करती वखतें नोज नमां नाखशो; अने अमें तो वृत्तिसंदेप बैयें, तेथी अव्य अधिक थ जाय त्यारें व्रत खंमन थाय. माटे अमने जूदी जूदी चीज आपवी नहीं. अमाराथी एकठी करेली चीज लीधी जाय, जेनुं एक अव्य गण्युं जाय माटे हलफल करीने विना खवरथी कोइ चीज जूदी आपशो नहीं. एवी शिक्षा कहे त्यारे ते रसोश्दार तुरत रहस्य पामी जाय अने पनी पोतानी निपुणताथी लूण, म रचुं, जीरे, हिंग संयुक्त व्यंजनादिक मीठी चीज प्रमुख पागल थी एकठी मेलवीने राखे अने ते सौ चीज सुस्वाद होय ते पी रसे अने ते चीज आरोगे, मनमां जाणे के, मारुं व्यापरिमाण हुं शुक राखंडं. पण पूर्व एवी संझा करी, तेथी व्रत तो मलिन थयु. एवो कुविकल्प, ते वृत्तिसंदेपतपयतिचार,
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तपाचारा तिचार स्वरूपं.
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४ चोथो रसत्यागतप यतिचार. ते रस जे ब विगय, ते वि कारना हेतुबे ने रसगृद्धिना बहु कटु विपाक बे; एवं जाणीने त्याग करो. पी को कारण विना ने गुरुप्राज्ञा विना निविखाता करी खाय अथवा अन्य द्रव्यांतरसंयोग मेलावी घणी रीतें अग्निसं स्कार करीने तेनी मजा श्रावे; एवी गुणवान् चीज करी खाय एटले जिव्हानी रसग्रद्धि मटाडवा सारु ए तप कीधुं हतुं ते तो थयुं नहीं, ते चोथो प्रतिचार.
५ पांचमो कायक्लेशतप अतिचार. ते जे साधु, मुनीश्वर लोच करावे. तडकामां ताप सहन करे, शीत सहन करे, मांस, मछर, कुतरा प्रमुखना परिसह सहन करे, विकटासनें स्थिर थने ध्यान करे, विकटासनें सजाय करे, ए तप साधुने तो हररोजबे
श्रावकने तो सामायक, पोसह अथवा जाप, नवकरवाली, पंचपरमेष्टिना ध्यानना अवसरमा कायक्लेश सहन करवानोबे त्यां बति शक्तियें गलथी वस्त्रादिक लपेटी सर्व शरीर, आवृत करीने किया करे, अथवा कोमल आसनें बेशीने जपादिक करे, ते कायक्लेशतप यतिचार.
६ बो संलीनतात तिचार. ते जे साधुने तो सदा संलीनता तपबे तेथी सदा पोताना अंगोपांग संवरी राखे. विना कारणें द लावे नहीं ने श्रावक पण सामायक पोसहमां, अथवा पूजा ज पादिक अवसरें पोतानुं अंग संवरी विनयगुणयुक्त राखे एटले गप लांबा करवा, श्रवष्टज लेवो, गले हाथ देवो अंगोपांग मोडवा दिक न करे. एक शुद्ध उपयोगी अंगोपांग संवरी जयणापू र्वक विनयगुणयुक्त प्रवर्त्तन करे, ते संलीनतातप कहीये. त्यां एवं तप करीने पूर्वोक्त दूषण लगाडे, तेने संलीनतातप प्रतिचार बहो लागे. ए व प्रकारां बाह्य तपना व अतिचार कह्या.
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तपाचारातिचार स्वरूपं. हवे ब प्रकारनां अत्यंतर तपनांब अतिचार कहे. १ त्यां प्रथम प्रायश्चित्ततप अतिचार. ते जे साधु अथवा श्राव क, पोतपोताना व्रतमां दूषण लाग्युं जाणे, त्यारे ज्ञानी गुरुपासें
आलोयणा ले.त्यां आलोयणा बे प्रकारनी. एक खट्पविषयी व स्पकालीन. ते कोशएक नियमनो तथा व्रतादिकनो अतिचार, लाग्यो जाणे, त्यारे तरत गुरुने पूबीने तेनुं प्रायश्चित्त लीये. वीजी बहुविषयी, बटुकालीन,उमरगत दूषणनी आलोयणा. तेमां जे एकाद नियमना दूषणनी आलोयणा तो, जे, वर्तमाने शाणो हो य,तेने पूबीले; पण ज्यारेबाखी उमरनी महोटी आलोयणा लेवा ने चहाय, त्यारें शुक्रगुरु जे ज्ञान अने क्रिया ए बन्ने गुणोयें युक्त होय, तेनी पासें आलोयणा ले. कदापि ए बन्ने गुणोयें युक्त एवो शुद्धगुरु न मले, तो बहुश्रुत, ज्ञानवान्, शुद्ध नाषी, एवो पासना प्रमुख होय, तेनी पासेंथी आलोयणा ले; पण जे उत्कृष्ट क्रियावंतज होय परंतु सिद्धांतना रहस्यने न जाणे तो तेनी पासेंथी न ले. कदापि ज्ञानवंत पासबो पण न मले तो वे गुणे युक्त अथवा एक गुणे युक्त शुझारूपक ज्यां होय, त्यां तेनो शोध करीने तेने माटे वीजे गाम वीजे देश जाय.एवी रीतें खोज करतां पोताना निवासक्षेत्रथी सातशे योजन सुधी गुरुनी गवेष णा करे, तथा कालथी वार वर्ष पर्यंत गवेषणा करे, एम शोधतां शो धतां कदापि तेनुं अयुष्य पूर्ण थाय; तो पण तेने आराधक कही यें.तथा गवेषणा करतामां ज्यां गुणवंत गुरु मले,त्यां ते गुरुनी पासें बालोयणा ले. एम करतां वे गुणयुक्त अथवा एक गुणयुक्त पण गुरु साधु पासबो अथवा ज्ञानवान् होय तेनी खबर, वार वर्प सुधी खोज करतांन मली,त्यारेपठी कोइएक ठेकाणेथी एवी खवर मली के एक साधु, बहुश्रुत अने क्रियावंत हतो, ते साधु को पापकर्मना उदयथी प्रतिपाति थश्ने अहींयांथी को दूर देशांतर
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तपाचारातिचार स्वरूपं. जश्ने त्यां ते वेष बोडीने गृहस्थ थयो, तेनुं नाम पछाकडो. श्रा वक कहीये ते फलाणा गाममां बे. एवं सांजलीने प्रायश्चित्ती त्यां जाय अने ते पन्छाकडाने एवो प्रतिबोध आपे के हे महानुन्नाव! तमे तो रत्नत्रयिनी महोटी पदवी पामी करीने बोडी दीधी,ते सारं नहीं कलुं..पण तेमां तमे शुं करो ? उदय जे ते महाबलवान् .. तेना जोरथी तमारा परिणाम शिथिल थइ गया. ते तो जे थवानुं हतुं ते थ गयु, ते माटे हवे कांश्चेतो अने फरी पराक मने फोरवो. हमणां अशुन कर्मना उदयनी अशाता पानी हठ वानो समय थयो जणायजे तेथी करी अमारो पण तमारी साथै मेलाप थयो. वनी तमोने तो महाज्ञाननो आधार. तो तमे देखी पेखीने केम जूलमां पडोगे ? ए माटे फरीथी खबरदार थइ चारित्ररत्नने अंगीकार करो अने आत्माने तारो. आगल पण घणा पतित थश्ने फरी जायत थयाडे, सर्व कर्मनो दय करीने मुक्तिसुखने पाम्या ए माटे तमे पण चारित्रव्यो, ढील करो नहीं. एवो सारो उपदेश सांजलीने ते पछाकडा श्रावकना परिणाम सुधरे, तो तेने चारित्र लेवरावी, पबी तेनी यासेंथी प्रा। यश्चित्त ले. एम करतां पण ते नारे कर्मीबे, तेथी एम कहे के। ना सादेव ! गजपाखर ते रासनथी केम उगवी शकाशे ? तेम माराथी आ निष्कलंक चारित्ररत्त न पले तो तेने जूतुं लीधा थी शो गुण थाय ? जो ते विधि माफक निर्वहे नहीं तो हुँ उलटो महापापी अने अघोरी था. एकवार तो थयो बजं अने ए माघ लागी चूक्यो. हवे एवी हकीकत कही अने ते नाश्य सांजली ते समयें ते, ते पडाकडाने जिनमंदिरमा लेजाय अने त्यां तेने सामायक देवरावे. पठी तेने वंदन करीने तेनी पासेंथी आलोय णा ले; पण अज्ञानी पासेंथी बालोयणा ले नहीं. एवी रीतें गुरुनी गवेषणा करीने पण आलोयणा ले, ते एवीरीते के जेम पोतानी
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तपाचारा तिचार स्वरूपं.
माता कने वालक पोताना मननी वात कहे; तेमांनी कांइ पण पावे नहीं, कोइ वात कहेतां लाजे पण नहीं, तेम साधक पण गुरुनी गल जेवी वीती होय तेवी, निष्कपटी थइ करीने त्रणे योग जे मन, वचन, छाने काया तेणे करी जे मूल थर होय ते कही आ. कोइ जाणीती वातमां दुपावे नहीं, तेने आलोया कही यें. पण जो कांइ बानुं राखी ने कहे, तो ते तत्वदंजी थयो, तेथी तेनी शुद्धि थाय नहीं. एवा विधिपूर्वक साधकें गुरु यागल, सर्व पाप प्रगट करी दीघां; गुरुयें पण सर्व जाणी लीधुं. त्यार पढी गुरु, आगमना ज्ञाताने ते विचारे के पापकर्म, चार रीतें लागेढे १ कुट्टी, दर्प, ३ कल्प, अने ४ प्रमाद. एवा चार प्रकारना पापमां आलोयणा लेनार कया पापना प्रायश्चित्तने लायक बे ? एवो विवेक करीने यथायोग्य प्रायश्चित्ततप, गुरु थापे, ते शिष्य प्रसन्न ने लेने एवं जाणे के गुरुजीयें मारा उपर महोटी कृपा करीने संकष्टमांथी बोडाव्यो ने मने घणो सुखी करचो. मने घणो शुद्ध उपाय बताव्यो. ए गुणना उपकारने कोण वि सरे ? एवी रीतें हर्षित चित्तथी गुरुदत्त प्रायश्चित्ततप ले. पी गुरुयें उपदिष्टकालने विषे जे तप प्युं बे, ते तप लेखा शुद्ध पूरुं करी पहोचा. ते प्रायश्चित्ततपाचार कहीयें. अने जे गुरुयें आपेला मार्गने बोडीने पोतानी मतिकल्पनापूर्वक करे, अथवा प्रतिज्ञात कालथी वधारे काल, विना कारणे लगाडे, अथवा कमवेश करे अथवा प्रतिज्ञा, राजवेव समान करे, पांच लोकमां बूटतुं करे अथवा शून्यचित्तथी करे अथवा फरी तेज श्राश्रवसेवन करे, ते प्रायश्चित्ततप अतिचार कहीयें. २ वी जो विनयतप अतिचार. ते जे साधु तथा श्रावक सहु पो त पोतानी दशा माफक विनयपूर्वक श्रागममां "ध्याय रियजवझाए" इत्यादिक गुणवंत प्रत्ये विनय जे वंदन, नमन, अभ्युत्थानादि
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तपाचारातिचार खरूपं.
१ए ___ उचितनक्तिक्रियारूप, ते श्रागमशैली प्रमाणे करे, ते विनयत
पाचार कहीयें; अने जे आगमोक्तिथी कमवेश करे अथवा विपरीत करे अथवा अण बूटतो करे अथवा दंलथी करे, ते विनयतप अतिचार कहीये.
३ त्रीजो वैयावञ्चतप अतिचार. ते जे साधु तथा श्रावकने, कुल, गण, चैत्य, संघ इत्यादिकनुं जेनुं जेनुं जेवू जेवू वैयावच्च करवू आगममां कडंबे, ते प्रमाणे तेनुं वैयावच्च करे, त्यहां वै यावच ते रोगादिक विघ्न उपजे थके तेनो प्रतिकार जे उपाय विविध औषध, अंगमईन, पथ्य, जक्तादि योगमां तत्पर थश्न ‘क्तिपूर्वक करे, ते वैयावच्चतपाचार कहीये अने जे ते वैयावच्चनी वखतें काश् बानुं काढी टली जाय अथवा वैयावच्च खोटुं करे अने जे नक्ति विना अणबूटते करे अथवा दंनथी करे अथवा श्राचार्यादिकना जयथी करे अथवा पोताने करवानु, ते बीजा पासे करावे, तेने वैयावञ्चतप अतिचार कहीये.
४ चोथो सशायतप अतिचार. ते जे साधु तथा श्रावक पोत पोतानी योग्यता प्रमाणे श्रुताननो अभ्यास करे, ते ससायत पाचार कहीये. ते सतायतप, पांच प्रकारनुं. १ वांचवू, २ पू. ब्वु, ३ परावर्त्तवं, ४ अनुप्रेक्षा, ५ धर्मकथा.
१ त्यां प्रथम वाचनसशाय. ते जे श्रुतनुं गणवू नणाव, ते वांचनसशाय कहीयें.
बीजी प्रचणासलाय. ते जे जणवामां संदेह थयो, तेनुं शि ये पूवु अथवा गुरुये शिष्यने कहे.ते प्रवणानामें बीजी ससाय.
३ त्रीजी परावर्त्तनासलाय. ते जे पूर्वे लणेला श्रुतनुं गणवू अथवा गुरुये शिष्यनी परावर्त्तना सांजलवी अथवा परावर्तना करवानी प्रेरणा करवी, ते परावर्तनाससाय कहीयें.
४ चोथी अनुदाससाय, ते जे पवितश्रुतना अर्थनुं चिंतव
LEM
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१ए
तपाचारातिचार खरूप. न करवू, अथवा परस्पर साधु श्रावकें मलीने चर्चा करवी अथवा गुरु, स्याहादशैलीपूर्वक उक्ति युक्तियें करी शिष्यनो संशय टाले, ते अनुदासशाय, ____५ पांचमी धर्मकथासशाय. ते जे रुचिवंत जीवने नाव करु णापूर्वक धर्मोपदेश कहे; धर्म प्रत्ये पमाडे, तेने 'धर्मकथासला य कहीयें. ए पांचे प्रकारनी सशाय, शिष्य अथवा गुरु पोतानी दशा माफक यथागम करे, ते सझायतप कहीएं.
१ अथवा शिष्य विनयसहित हर्षित थको, गुरु आशय अट कल करतो, अनुकूलपणे आसनस्थ प्रशांत इत्यादि विधिपूर्वक वां चना ले तथा गुरु पण प्रसन्नचित्तथी तेनी योग्यता माफक प्रमाद तजीने अग्लानपणे वाचना आपे, ते वेजने वांचनासलाय तप.
२ तथा प्रणाससाय, ते आसनस्थ गुरु जोश्ने शिष्य विन यादि गुणयुक्त आशय अनुकूल थश्ने पू. गुरु पण नाव दया धरीने धर्मरागथी घणी बुझिनो खरच करीने स्याद्वादशैली अनुसरतो, एवो जवाब आपे के, तेणे करी शिष्यना चित्तनो संशय तरत मटी जाय, ते वेजने प्रचणाससायतप कहीये.
३ तथा परावर्त्तनासझाय. ते जे शिष्य, तीव्र उपयोगी थको पूर्व पवितशास्त्रने गुणे, तथा गुरु पण तीव्र उपयोगी थका सां जले, नूल चूक कही दीए, ते वन्नेने परावर्तनासज्ञायतप कहीये.
अनुप्रेदाससाय. ते जे अर्थनी चर्चा,शिष्य सहाध्यायी अने वी जापण निपुण साधुमलीने विविधयुक्ति जैनशैलीपूर्वक करे,त्यांक्या
रेंक चर्चा करतांजक्ति युक्तिपूर्वक निर्णयथाय अने क्यारेक निर्णयन ... थाय,त्यारेगुरुपण आगमानुकूल उपयोगीथश्ने विशदरीतेंचर्चानो
५ करी थापे, ते वन्नेने पूर्वोक्त अनुप्रेक्षाससाय तप कहीयें. तथा धर्मोपदेशसझाय, ते वन्नेने पूर्वोक्त विधिपूर्वक उ बुद्धिथी धर्मोपदेश आपे. त्यां जो पोताने उपदेश आप
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तपाचारातिचार खरूपं. ___ वानी योग्यता होय, तोश्रागमशैलीपूर्वक उपदेश आपे, अने जो
आगमशैलीना नय, निक्षेप, प्रमाण, सप्तनंगी प्रमुखमां तथा वि ध दायोपशम न होय, त्यारे जे बहुश्रुत उपदेश आपे, ते क्वचित हर्षित अने विस्मय स्मेरमुख थको सांजले, ते धर्मकथासलाय तप कहीये. ए पांचे समाय, कहेली रीतिथी विपरीत करे अथवा दनथी करे, अथवा शिरबोजनिहन्यायें करे, अथवा अनिमान धरीने करे, बीजानी ईर्ष्याथी करे, अथवा उतावलो उतावलो गड बड करीने पूरी करे, अथवा पोतानी मरजी माफक करे, अथवा यश अर्थे करे, ते सहायतप अतिचार कहियें.
५ पांचमो ध्यानतप अतिचार. ते जे धर्मध्यान अने शुक्नध्यान ए बन्ने मुक्तिदायक. त्यां प्रथम साधुने धर्मध्यानना चारे पाद ध्याववाना. ते धर्मध्यानने ध्यावतां ध्यावतां, ज्यारे परिपूर्ण अप्र मत्त नामे उत्कृष्ट स्थाने पहोंचे, त्यार पडी आउमा गुणस्थानकने पामे. त्यां शुक्लध्यानना प्रथम पादनुं ध्यान करे, ते ध्यावतां थकां
आगल बारसुं गुणस्थानक पामे, तेवारें शुक्लध्यानना बीजा पादनुं ध्यान करे,ते ध्यावतां थकां बारमुं गुणस्थानक ज्यारे पुरंथ रहे, त्यारे चारे घनधातीकर्म क्ष्य थजाय, एटले केवलज्ञान पामे,तेर मुं गुणस्थानक पामे अने त्यार पनी पोताना आयुष्यनी स्थितिमा फक तेरमे गुणस्थानकें रहे.पढी जेवारें तेरमा गुणस्थानकनो शेष अं तरमुहर्त काल रहे,ते वारे शुक्लध्यानना शेष बे पाद ध्यावे, त्यांच उदमा गुणस्थानकें पहोचे, ते स्थलें सर्वकर्मनो दय करीने मुक्ति सुख पामे, ए साधुना ध्याननी पद्धति बे तथा श्रावकने तो धर्म ध्यान अने शुक्लध्यानने ध्याववानी योग्यता नथी जे कारणे मूल घाती चार कषाय उदयवंत सरु ने, ए माटे ते श्रावक, अनित्य अशरणादि बारे नावनाने एक चित्तें शुन आर्तरूपें ध्यावे. ते ना वना करतां, को उत्तम जीवने उपयोगनी निर्मलताथी लयली
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वीर्याचारा तिचार स्वरूपं.
नता थाय, तेनाथी धर्मध्याननी समाप्ति थाय. समाप्ति ते एम के, जेम सूर्योदय पहेलां आरुणोदय जास मात्र होय, ते सूर्य नथी पण एथी सूर्योदयजन्य कार्य, घट पटादि सर्वनो अनुभव थ जाय. तेम श्रावकने पण जावनाजन्य शुद्धोपयोगथी धर्मध्याननी समाप्ति ऊलकरूप धर्मध्यानसरखो अनुभव थाय. मुनिनावनो
खादमात्र पामे, पण ध्यानपदनी पूर्णता पामे नहीं, ए जे ध्या नयोग, ते ध्यानतप कहीयें. अने जे ए जे ए ध्यानमां बीजो विकल्प, योगचपलतादिक करे, ते ध्यानतपत्र्यतिचार कहीयें.
६ as त्यात अतिचार. त्यां त्यागतपना वे नेदवे. एक द्रव्यत्याग, अने बीजो जावत्याग. त्यां द्रव्यत्याग, ते साधु त था श्रावकने पोतपोतानी दशा माफक आहार उपधि तथा नव विध परिग्रहरूप इंद्रियसुखनो तथा अवस्थाविशेषे देहनो पण त्याग करे, वोसरावे, ते द्रव्यथी त्यागतप कहीयें. अने जे वि षयतृमा तथा कषाय जे क्रोधमानादिक, तेनो जे त्याग करे, तेने जावत्यागतप कहियें. ए रीतें जिनागममां जावत्याग तप कह्युंडे. तेनो बति शक्तियें त्याग न करे, अथवा विधिरहित करे, अथवा तत्वप्रतीतिधरी करे नहीं, अथवा पांच माणसमां अतूटते करे, अथवा निदान धरी करे, ते त्यागतप अतिचार कहीयें || इति तपाचारस्य द्वादशातिचारस्वरूपं संपूर्णम् ॥
॥ अथ ॥
॥ श्री वीर्याचारातिचारत्रय प्रारंभः ॥
१ त्यहां वीर्याचार. ते जीवने मन, वचन ने काया, ए त्रणे यौगनुं सामर्थ्य जे शक्तिविशेष, ते वीर्य कहीयें. त्यां साधु तथा थावेक, पोत पोताना गुण स्थानक माफक तथा पोत पोतानी द
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रए३
वीर्याचारातिचार स्वरूपं. शा माफक जे जे धर्मकरणी करे, ते मनादि त्रणे योगर्नु वीर्य फोरवीने करे, सर्व धर्मकरणीमां जेत्रो जेवो वीर्योवास होय, ते q ते ते फल पामे, जे माटे गुणस्थान, योगस्थान अने संयम स्थानना नेद पडे. ते वीर्यनी प्रबलता अने मंदताथी चढवू अ ने पड, थाय. त्यां प्रथम काययोगथी सर्वधर्मकरणीमां पोताना अंगनुं बल, वीर्य, फोरववामां जूल न करे तथा मनोयोगथी उ साह, नक्ति, उमंग तथा प्यार, बहु धरतो करे अने वचनयोगथी धर्मकरणीनी प्रशंसा घणा मानथी करे; धर्मनी उन्नति, उपमा आपी आपीने करे अने घणा जीवने धर्मसंन्मुख करे, पोताना आत्माने धर्मप्राप्ति सराहे, एटले वखाणे के, धन्य माहं जाग्य, के मने श्री जिनेश्वरजीना मार्गनी धर्मप्रवृत्ति मती ! हवे मने नवदुःखनो जय नथी. इत्यादि त्रिकरण योगशक्तिधर्मकरणीमां वीर्योल्लास फोरवे, ते वीर्याचारनो थाराधक थोडा कालमां अदा य लीला पामे, जो थोडी पण दानादि करणीमां वीर्योहास घणो होय तो, महोटी करणीथी पण वधारे फल पामे. . अने धर्मकरणीमां जे बति शक्तियें काययोगें आलस्य करे, कायबल फोरवे नहीं अथवा राजवेल समान करे, कांश पण न क्ति विना जयादि कारणे करे अथवा अजिमानथी करे अथवा देखा देखीये करे अथवा ते लालची, अनुष्ठानादिक वांबाथी क रे, ते काययोगवीर्याचारातिचार प्रथम जाणवो.
तथा वचनयोगें उत्साहथी सशाय स्तवनादि करे नहीं, मंद मंद नाषाथी गडबड करीने जणणानी रीतें कहे, तथा वीजो कोश धर्मकार्य करतो होय, तेने दुष्करता कही देखाडे, जे ए धर्म काम बे, ते घणुं मुश्केल , तमाराथी पूरुं पडशे नहीं मादे' प्रथ मथीज जो विचारीने करजो. ए प्रमाणे कहीने समर्थने पण उ त्साहनंग करे तथा धर्मकार्य करतां अथवा करीने पनी खेदनां
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रए४ __ ग्रंथसमातिना दोहा. वचन कहे जे, ए धर्मकार्य क, पण ए धर्मकार्य करतां महोटी तस्दी पाम्या, ए काम घणुंज, कठिन बे. करशे, तेज जाणशे. मने वीती ते माझं मन जाणेने, को सहाय पण न थयुं, एने कोश्यें जपाड्युं नहीं. त्यारें शुं करीयें ? अमे कोने कहीये. अधिकारी थ या त्यारे सर्व अमोने करवू पड्यं, बीजुं शुं कहीयें ? आ धर्मकार्य करतामां आ शरीर, पुर्बल थरंगयुंजे, ते हजी सुधी ठेकाणे आव्यु नथी. एवां वचन कहीने घणानां चित्त, नंग करे. इत्यादि हीन तानां वचन कहे, ते वचनयोगवीर्याचारातिचार बीजो जाणवो.
३ तथा मनोयोगें सीदातो को करे अथवा उत्साह विना करे, जे आ कामनी वेठ क्यारें उतरशे ? ए काम हाथमां नहीं लेत तो सारु थात. नाहक आ काम में उठगव्युं तो खलं, पण हवे को वीजो माथे ले, तो हुँ मूकी आपुं. कोरीतें बूटे तो सारंथ जाय अथवा ए काममा महेनत घणी थशे, पैशो घणो खरचा शे, शुं करीयें ? वगर विचारे कयुं तो आवी फसाया; हवे फरी एवी वातमां पडणुं नहीं अथवा आ तप, क्रिया दिक, कग्नि थ यां. हवे फरी जोश्ने आदर करशुं ! इत्यादिक कुविकल्प मन मां करे, ते मनोयोगवीर्याचारातिचार त्रीजो जाणवो ॥ इति वीर्याचारातिचारत्रयस्वरूपं संपूर्णम् ॥
ए प्रमाणे सर्व साधु अने श्रावकना धर्मना सर्व मली एक शो चोवीश अतिचारनुं विवरण कडं. इति श्री सम्कक्त्वमूल द्वादशव्रतविवरणं समाप्तम् ॥ एवी विगतथी दोष मटाडीने जे व्रत पाले, ते परमकल्याणमाला वरे ॥
॥दोहा॥ शत हारे ऊपरे, वीते वर्ष बवीश; । मगशिर शुदि पंचमि गुरु, पूरण नई जगीश ॥१॥
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ग्रंथसमातिना दोहा. ՀԱՍ सुरसरिताके तट वसे, पामलिपुर शुजथान; जिहां सुदर्शन साधुवर, पाया केवलज्ञान ॥२॥ ब्रह्मचारि शिर सेहरो, थूबिनम गुणधाम; जिण कोश्या प्रतिबूळवी, जिणपुर राख्यु नाम ॥३॥ तिण पुर साह शिरोमणि, सोमचंद अनिधान; दाता जुक्ता शुजमति, चातुरजन परधान ॥४॥ तसु सुत नजक व्रतरुचि, धर्मे दृढमतिमान; हेमचंद नामें निपुण, हाटक सम गुणवान् ॥५॥ धर्मकथा सुणिने नर, व्रतरुचि तव कहे साह; लिख दीजें व्रतकी विगत, विस्तरसें हम चाह ॥६॥ समकित युं व्रत बारकी, विगत पुनी अतिचार, वृद्धपरंपर शास्त्र बहु, विखि कीनो बिस्तार ॥ ७॥ आगमजलधि अपार है, मुज मति नौका तुब को निवहे जादों नदी, पकरे नेडी पुड ॥७॥ आगे बहुश्रुतने लिखे, विरती वात विशेष; वाकू दिख नाषा लिखू, उनमें कौन विशेष ॥ ए तौजी तसु आसय अगम, जो बिन पाय अशुद्ध; लिखि मिला मुक्कडं, साखी गुरुजन बुद्ध ॥ १० ॥ अल्पमती आज्ञान हूं, जाणुं न बहुत रहस्य; कृपा करी मोपरि कृती, करजो शुद्ध अवश्य ॥११॥ विगत एह व्रत बारकी, लिखी यथामति योग, व्रतरुचि विविध अन्न्यास करि,करजो तसु परिजोग॥१२॥ काल अनंत अनंतमय, जो पुग्गल परिअहः सोनी अनंतानंत गये, जनम मरण संघट्ट ॥ १३ ॥ परमरिपू परमाद है, तसु जय करण उपाय%; विधियुत मानव नव लह्यो, तौनि न चेतो कांय ॥१४॥
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ग्रंथसमातिना दोहा. नूले जव जो एह तुम, बहुरि न आवै हब; तो चेतो चितमें चतुर! निसुणी श्रुत परमब ॥ १५॥ . सुविहित सूरि सिरोमणि, नागरवंदित पाय%; (श्री) पुण्य सागर सूरिंज ते, तपगबपति सुखदाय ॥१६॥ . तसु आणा सिर धारतां, वारतां विषय कषाय; श्रुतधारी उपगारिबहु, (श्री)ज्ञान सागर उवद्याय॥१७॥ तासु शिष्य पूरव तणा, तीरथ नेटण काज; किय प्रयाण शुन दिन घडी, शुन्न शकुलें शु साज ॥१७॥ तीरथ फरसत आविया, पटणा नयर सुगय; परमानंद नयो वंदतां, शेठ सुनीसर पाय ॥ १५ ॥ दिन केताश्क तिहां रहि, लिख्यो सुव्रतविस्तार, वज्रोत्कीर्णमणिसूत परि, बहु श्रुतके उपगार ॥ २० ॥ इह विधि जो व्रत धारशे, वारशे विषयकषाय; विलपे ज्ञान उद्योतमय, आनंदघन सुखदाय ॥२१॥
इति श्रीसम्यक्त्वमूल द्वादशत्रतविचार
पतिः विस्तारसहिता संपूर्णा ॥ यं E, थाग्रंथःकिंचिन्यूनोचतुःसहस्त्रः॥
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